लेखक परिचय
लीलाधर मंडलोई
इनका जन्म 1954 को जन्माष्टमी के दिन छिंदवाड़ा जिले के एक छोटे से गाँव गुढ़ी में हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भोपाल और रायपुर में हुई। प्रसारण की उच्च शिक्षा के लिए 1987 में कॉमनवेल्थ रिलेशंस ट्रस्ट, लंदन की ओर से आमंत्रित किये गए। इन दिनों प्रसार भारती दूरदर्शन के महानिदेशक का कार्यभार संभाल रहे हैं।
तताँरा वामीरो कथा पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ ‘तताँरा वामीरो कथा’ अंडमान निकोबार द्वीप समूह के एक छोटे से द्वीप पर केंद्रित है। उस द्वीप पर एक -दूसरे से शत्रुता का भाव अपनी अंतिम सीमा पर पहुँच चूका था। इस शत्रुता की भावना को जड़ से उखाड़ने के लिए एक जोड़े को आत्मबलिदान देना पड़ा था। उसी जोड़े के बलिदान का वर्णन लेखक ने प्रस्तुत पाठ में किया है।
बहुत समय पहले ,जब लिटिल अंदमान और कार -निकोबार एक साथ जुड़े हुए थे ,तब वहाँ एक बहुत सुंदर गाँव हुआ करता था। उसी गाँव के पास में ही एक सुंदर और शक्तिशाली युवक रहा करता था। जिसका नाम तताँरा था। निकोबार के सभी व्यक्ति उससे बहुत प्यार करते थे। इसका एक कारण था कि तताँरा एक भला और सबकी मदद करने वाला व्यक्ति था।जब भी कोई मुसीबत में होता तो हर कोई उसी को याद करता था और वह भी भागा -भागा वहाँ उनकी मदद करने के लिए पहुँच जाता था।
तताँरा हमेशा अपनी पारम्परिक पोशाक ही पहनता था और हमेशा अपनी कमर में एक लकड़ी की तलवार को बाँधे रखता था। लोगों का मानना था कि उस तलवार में लकड़ी की होने के बावजूद भी अनोखी दैवीय शक्तियाँ हैं। तताँरा कभी भी अपनी तलवार को अपने से अलग नहीं करता था। वह दूसरों के सामने तलवार का प्रयोग भी नहीं करता था। तताँरा की तलवार जिज्ञासा पैदा करने वाला एक ऐसा राज था जिसको कोई नहीं जानता था।
एक शाम को तताँरा दिन भर की कठोर मेहनत करने के बाद समुद्र के किनारे घूमने के लिए चल पड़ा।समुद्र से ठंडी ठंडी हवाएँ आ रही थी। शाम के समय पक्षियों की जो चहचहाहटें होती हैं वे भी धीरे -धीरे शांत हो रही थी। अपने ही विचारों में खोया हुआ तताँरा समुद्री बालू पर बैठ कर सूरज की आखरी किरणों को समुद्र के पानी पर देख रहा था जो बहुत रंग -बिरंगी लग रही थी। तभी कहीं से उसे मधुर संगीत सुनाई दिया जो उसी के आस पास कोई गा रहा था।तताँरा बैचेन मन से उस दिशा की ओर बढ़ता गया। आखिरकार तताँरा की नज़र एक युवती पर पड़ी उस युवती को यह पता नहीं था कि कोई युवक उसे बिना कुछ बोले बस देखता जा रहा है। उसी समय अचानक एक ऊँची लहर उठी और उसको भिगो कर चली गई। इस तरह अचानक भीगने से वह युवती हड़बड़ा गई और अपना गाना भूल गई। तताँरा ने बहुत ही विनम्र तरीके से उस युवती से पूछा ‘तुमने अचानक इतना सुरीला और अच्छा गाना अधूरा ही क्यों छोड़ दिया ?’
अपने सामने एक सुंदर युवक को देख कर वह युवती आश्चर्यचकित हो गई।उसने नकली नाराजगी दिखाते हुए उत्तर दिया।
“पहले ये बताओ कि तुम कौन हो,मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो और इस तरह के अनुचित या बेकार के प्रश्न पूछने का क्या कारण है ?”
तताँरा बार- बार अपना प्रश्न दोहराता रहा। तताँरा के बार – बार एक ही प्रश्न को दोहराने के कारण युवती चिढ़ गई। युवती ने कहा -आखिर मैं गीत क्यों गाऊं अर्थात मैं तुम्हारी बात क्यों मानूं ?क्या उसे गाँव का नियम नहीं मालूम कि एक गाँव का व्यक्ति दूसरे गाँव के व्यक्ति से बात नहीं कर सकता ? इतना कह कर वह युवती जाने के लिए तेज़ी से मुड़ी। उसके मुड़ते ही मानो तताँरा को कुछ होश आया। अब उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था। तताँरा उस युवती के सामने चला गया और उसका रास्ता रोक कर लाचारी के साथ प्रार्थना करने लगा कि तुम बस अपना नाम बता दो मैं तुम्हें जाने दूंगा। तताँरा द्वारा नाम पूछे जाने पर युवती ने जवाब दिया ” वामीरो ” यह नाम सुनना तताँरा को ऐसा लगा जैसे उसके कानों में किसी ने रस घोल दिया हो। तताँरा ने वामीरो से कहा कि कल वह वही चट्टान पर उसकी प्रतीक्षा करेगा । वह वामीरो को जरूर आने के लिए कहता है।
वामीरो ने तताँरा के बारे में बहुत सी कहानियाँ सुनी थी। उसकी सोच में तताँरा एक बहुत ही शक्तिशाली युवक था। परन्तु वही तताँरा जब वामीरो के सामने आया तो बिलकुल अलग ही रूप में था। वह सुंदर और शक्तिशाली तो था ही साथ ही साथ वह बहुत शांत ,समझदार और सीधा साधा था। वह बिलकुल वैसा ही था जैसा वामीरो अपने जीवन साथी के बारे में सोचती थी। परन्तु दूसरे गाँव के युवक के साथ उसका सम्बन्ध रीति रिवाजों के विरुद्ध था। इसलिए वामीरो ने तताँरा को भूल जाना ही समझदारी समझा। परन्तु यह आसान नहीं लग रहा था क्योकि तताँरा बार -बार उसकी आँखों के सामने आ रहा था जैसे वह बिना पलकों को झपकाए उसकी प्रतीक्षा कर रहा हो।