कवि परिचय
गिरिजाकुमार माथुर
इनका जन्म सन 1918 में गुना, मध्य प्रदेश में हुआ था। इन्होने प्रारंभिक शिक्षा झांसी, उत्तर प्रदेश में ग्रहण करने के बाद एम.ए अंग्रेजी व एल.एल.बी की उपाधि लखनऊ से अर्जित की। शुरू में कुछ समय वकालत किया तथा बाद में दूरदर्शन और आकाशवाणी में कार्यरत हुए। इनकी मृत्यु 1994 में हुई।
छाया मत छूना Class 10 Hindi कविता का सार ( Short Summary )
छाया मत छूना कविता मानव जीवन के संदर्भों से जुड़ी हुई है। हमारे जीवन में सुख आते हैं तो दुःख भी अपने रंग दिखाते हैं। मनुष्य को सुख अच्छे लगते हैं तो दु:ख परेशान करने वाले। व्यक्ति पुराने सुखों को याद करके वर्तमान के दुःखों को और अधिक बढ़ा लेते हैं। कवि की दृष्टि में ऐसा करना उचित नहीं है। इससे दुःखों की मात्रा बढ़ जाती है। सुख तो हमें सदा ही अच्छे लगते हैं। उनके द्वारा दी गई प्रसन्नताएँ मन पर देर तक छायी रहती हैं। प्रेम भरे क्षण भुलाने की कोशिश करने पर भी भूलते नहीं हैं। मनुष्य सुखों के पीछे जितना अधिक भागता है उतना ही अधिक भ्रम के जाल में उलझता जाता है। हर सुख के बाद दुःख अवश्य आता है। हर चांदनी के बाद अमावस्या भी तो छिपी रहती है। मनुष्य को जीवन की वास्तविकता को समझना चाहिए; उसे स्वीकार करना चाहिए। मनुष्य के मन में छिपा साहस का भाव जब छिप जाता है तो उसे जीवन की राह दिखाई नहीं देती। मानव मन में छिपे दुःखों की सीमा का तो पता ही नहीं है। हर व्यक्ति को जीवन में सब कुछ नहीं मिलता। जो हमें वर्तमान में प्राप्त हो गया है हमें उसी को प्राप्त कर संतुष्ट होना चाहिए। जो अभी प्राप्त नहीं हुआ उसे भविष्य में प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए लेकिन पुरानी यादों से स्वयं को चिपकाए रखने का कोई लाभ नहीं है। उनसे तो दुःख बढ़ते हैं, घटते नहीं।
छाया मत छूना Class 10 Hindi कविता का सार ( Detailed Summary )
छाया मत छूना कविता का भावार्थ- Chaya Mat Chuna Summary
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
छाया मत छूना कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि छाया मत छूना अर्थात अतीत की पुरानी यादों में जीने के लिए मना कर रहा है। कवि के अनुसार, जब हम अपने अतीत के बीते हुए सुनहरे पलों को याद करते हैं, तो वे हमें बहुत प्यारे लगते हैं, परन्तु जैसे ही हम यादों को भूलकर वर्तमान में वापस आते हैं, तो हमें उनके अभाव का ज्ञान होता है। इस तरह हृदय में छुपे हुए घाव फिर से हरे हो जाते हैं और हमारा दुःख बढ़ जाता है।
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने पुराने मीठे पलों को याद कर रहा है। ये सारी यादें उनके सामने रंग-बिरंगी छवियों की तरह प्रकट हो रही हैं, जिनके साथ उनकी सुगंध भी है। कवि को अपने प्रिय के तन की सुगंध भी महसूस होती है। यह चांदनी रात का चंद्रमा कवि को अपने प्रिय के बालों में लगे फूल की याद दिला रहा है। इस प्रकार हर जीवित क्षण जो हम जी रहे हैं, वह पुरानी यादों रूपी छवि में बदलता जाता है। जिसे याद करके हमें केवल दुःख ही प्राप्त हो सकता है, इसलिए कवि कहते हैं छाया मत छूना, होगा दुःख दूना।
यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
छाया मत छूनामन, होगा दुख दूना।
छाया मत छूना कविता का भावार्थ :- इन पंक्तियों में कवि हमें यह सन्देश देना चाहते हैं कि इस संसार में धन, ख्याति, मान, सम्मान इत्यादि के पीछे भागना व्यर्थ है। यह सब एक भ्रम की तरह हैं।
कवि का मानना यह है कि हम अपने जीवन-काल में धन, यश, ख्याति इन सब के पीछे भागते रहते हैं और खुद को बड़ा और मशहूर समझते हैं। लेकिन जैसे हर चांदनी रात के बाद एक काली रात आती है, उसी तरह सुख के बाद दुःख भी आता है। कवि ने इन सारी भावनाओं को छाया बताया है। हमें यह संदेश दिया है कि इन छायाओं के पीछे भागने में अपना समय व्यर्थ करने से अच्छा है, हम वास्तविक जीवन की कठोर सच्चाइयों का सामना डट कर करें। यदि हम वास्तविक जीवन की कठिनाइयों से रूबरू होकर चलेंगे, तो हमें इन छायाओं के दूर चले जाने से दुःख का सामना नहीं करना पड़ेगा। अगर हम धन, वैभव, सुख-समृद्धि इत्यादि के पीछे भागते रहेंगे, तो इनके चले जाने से हमारा दुःख और बढ़ जाएगा।
दुविधा हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
छाया मत छूना कविता का भावार्थ :- कवि कहता है कि आज के इस युग में मनुष्य अपने कर्म पथ पर चलते-चलते जब रास्ता भटक जाता है और उसे जब आगे का रास्ता दिखाई नहीं देता, तो वह अपना साहस खो बैठता है। कवि का मानना है कि इंसान को कितनी भी सुख-सुविधाएं मिल जाएं वह कभी खुश नहीं रह सकता, अर्थात वह बाहर से तो सुखी दिखता है, पर उसका मन किसी ना किसी कारण से दुखी हो जाता है। कवि के अनुसार, हमारा शरीर कितना भी सुखी हो, परन्तु हमारी आत्मा के दुखों की कोई सीमा नहीं है। हम तो किसी भी छोटी-सी बात पर खुद को दुखी कर के बैठ जाते हैं। फिर चाहे वो शरद ऋतू के आने पर चाँद का ना खिलना हो या फिर वसंत ऋतू के चले जाने पर फूलों का खिलना हो। हम इन सब चीजों के विलाप में खुद को दुखी कर बैठते हैं।
इसलिए कवि ने हमें यह संदेश दिया है कि जो चीज़ हमें ना मिले या फिर जो चीज़ हमारे बस में न हो, उसके लिए खुद को दुखी करके चुपचाप बैठे रहना, कोई समाधान नहीं हैं, बल्कि हमें यथार्थ की कठिन परिस्थितियों का डट कर सामना करना चाहिए एवं एक उज्जवल भविष्य की कल्पना करनी चाहिए।
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NCERT Solution – छाया मत छूना कविता
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