Bal Ram Katha is a book containing various chapters of stories about Ram and his family and all of the stories that children grow up hearing. About Ram, we know about the Ramayana, but the Bal Ram Katha propagates a lot more stories about the god so that students get a fair idea of Hindu culture and its history and significance. In a country like India, where culture takes centre-stage in every aspect of life, it is important to know these stories.
पाठ का सार
महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को लेकर राज महल से निकल चुके थे। वे आगे बढ़ रहे थे उन्होंने सरयू नदी को पार करते हुए उसके किनारे चलते गए। राम और लक्ष्मण उनके पीछे पीछे चल रहे थे अयोध्या बहुत पीछे छूट चुका था। अचानक महर्षि रुके और उन्होंने आसमान पर दृष्टि डाली जहां पर चिड़ियों के झुंड थे चरवाहे लौट रहे थे। महर्षि ने आज रात वहीं रुकने का फैसला किया।उन्होंने वहां पर राम और लक्ष्मण को बला – अतिबला नाम की विद्या सिखाई। पत्तों और तिनको के बिस्तर पर रात उन्होंने वही व्यतीत की।
सुबह होते ही वे दोबारा चल पड़े सरयू नदी के किनारे-किनारे और एक ऐसे स्थान पर पहुंच गए जहां पर दो नदियां आपस में मिलती थी। दूसरी नदी गंगा थी।
महर्षि अब भी आगे चल रहे थे और वे उनके पीछे चल रहे थे उनकी बातों को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। आगे उन्हें जंगलों से होकर जाना था जो यात्रा कठिन थी। अब उन्हें नदी पार करनी थी लेकिन अंधेरा हो चुका था इसलिए उन्होंने रात यही गुजारने का निश्चय किया और अगली सुबह उन्होंने नाव से गंगा नदी पार की। नदी पार करके आगे जंगल था और जंगल में असली खतरा ताड़का राक्षसी से था। ताड़का के डर से जंगल में कोई नहीं आता था। महर्षि की आज्ञा पाकर राम ने धनुष की प्रत्यंचा खींच दी। उसकी आवाज सुनकर ताड़का राक्षसी क्रोधित हो गई उसके बाद राम और लक्ष्मण ने उन पर तीरो की बौछार कर दी और राम जी का एक तीर उसके हृदय में जा लगा जिससे उसकी मृत्यु हो गई। ताड़का राक्षसी की मृत्यु से विश्वामित्र बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने राजकुमारों को सौ तरह के नए अस्त्र-शस्त्र दिए । उनको उपयोग करने की विधि बताई और उनका महत्व समझाया। अब रात हो चुकी थी इसीलिए तीनों ने रात वहीं ताड़का वन में व्यतीत की।
सिद्धाश्रम पहुंचने के लिए वे थोड़ी दूर और चले।आश्रम पहुंचने पर आश्रम वासियों ने उनका स्वागत किया और वहां पर खुशी की लहर दौड़ उठी। विश्वामित्र ने आश्रम की रक्षा का कार्यभार राजकुमारों को सौंप दिया और खुद यज्ञ की तैयारी में लग गए। 5 दिनों तक सब ठीक चला लेकिन यज्ञ के अंतिम दिन में वहां पर सुबाहू और मारीच नामक राक्षसों के दल ने आश्रम पर आक्रमण कर दिया। वे अपनी मां ताड़का की मृत्यु का बदला लेने आए थे।
राम ने राक्षसों पर बाणों की बौछार कर दी और सभी राक्षसों को मार भगाया। यज्ञ समाप्त होने के बाद वे तीनों मिथिला की तरफ चल दिए। मिथिला में राजा जनक ने उनका भव्य स्वागत किया। विश्वामित्र ने उन्हें बताया कि मैं इन राजकुमारों को आपका शिव धनुष दिखाने लाया हूं। शिव धनुष को लोहे की पेटी में रखकर लाया गया। उस पेटी में 8 पहिए लगे हुए थे और उस धनुष को उठाना लगभग असंभव था। राजा जनक ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि जो इस धनुष को उठाकर इस पर प्रत्यंचा चलाएगा उससे वह अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे। बहुत सारे योद्धाओं ने शिव धनुष को उठाने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे । महर्षि की आज्ञा पाकर राम ने शिव धनुष उठा लिया और जब उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे तो उस दबाव में वह धनुष टूट गया। उसके बाद बरात के लिए अयोध्या में निमंत्रण भेजा गया। 5 दिनों के बाद बारात मिथिला पहुंच गई।और वहां पर श्री राम का विवाह सीता से संपन्न हुआ उसके बाद लक्ष्मण का विवाह उर्मिला से भरत का विवाह मांडवी से और शत्रुघ्न का विवाह श्रुत्कीर्ति से हुआ। बारात कुछ दिनों तक मिथिला में रुकने के बाद अयोध्या वापस लौट आई।
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