श्रवण एवं वाचन | class 12th | Hindi श्रवण एवं वाचन, परियोजना ncert solution

Class 12 Hindi श्रवण एवं वाचन

भाषा का मौखिक प्रयोग ही भाषा का मूल रूप है। इसलिए बोलचाल को ही भाषा का वास्तविक रूप माना जाता है। मानव जीवन में लिखित भाषा की अपेक्षा मौखिक भाषा ही अधिक महत्त्वपूर्ण होती है, क्योंकि हम अपने दैनिक जीवन के अधिकांश कार्य मौखिक भाषा द्वारा ही संपन्न करते हैं। हास-परिहास, वार्तालाप, विचार-विमर्श, भाषण, प्रवचन आदि कार्यों में मौखिक भाषा का उपयोग स्वयंसिद्ध है। सार्वजनिक जीवन में मौखिक अभिव्यक्ति का विशेष महत्त्व है। जो वक्ता मौखिक अभिव्यक्ति में अधिक कुशल होता है, वह श्रोताओं को अधिक प्रभावित करता है तथा अपना लक्ष्य सिद्ध कर लेता है।

सामाजिक संवाद में कुशल बनने के लिए प्रयोग और अभ्यास भी अनिवार्य है। बिना अभ्यास के आत्म-विश्वास डगमगाने लगता है। यह आवश्यक नहीं है कि अभ्यास के लिए स्थिति सामने लाई जाए क्योंकि शादी, मृत्यु आदि का अवसर कक्षा में नहीं लाया जा सकता। अतः छात्रों को अध्यापक की सहायता से काल्पनिक स्थिति बनाकर अभ्यास करना चाहिए।

(क) मानक उच्चारण के साथ शुद्ध भाषा का प्रयोग।
(ख) व्यावहारिक भाषा का प्रयोग।
(ग) विनीत और स्पष्ट भाषा का प्रयोग।
(घ) विषयानुरूप प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग।

मौखिक अभिव्यक्ति के अनेक रूप हैं; जैसे-

  1. कविता पाठ
  2. कहानी कहना
  3. भाषण
  4. समाचार वाचन
  5. साक्षात्कार लेना व देना
  6. वर्णन करना
  7. वाद-विवाद
  8. परिचर्चा
  9. उद्घोषणा
  10. बधाई देना
  11. धन्यवाद
  12. संवेदना प्रकट करना
  13. आस-पड़ोस में संपर्क
  14. अतिथि का स्वागत।

कुछ महत्त्वपूर्ण रूपों पर यहाँ प्रकाश डाला जा रहा है-

1 कविता सुनाना

कविता सुनाना भी अपने-आप में एक कला है। यह कला कुछ लोगों में जन्म से पाई जाती है तो कुछ इसे अभ्यास द्वारा सीख सकते हैं। कवि सम्मेलनों में जाने तथा कवियों के सान्निध्य से कविता पाठ सुनकर अभ्यास किया जाए तो सीखने का कार्य सरल हो जाता है। कविता पाठ में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-

  • सर्वप्रथम ऐसी कविता का चयन करें जो अपनी रुचि के अनुसार हो, जिसे आप अपने हृदय से पसंद करते हों, क्योंकि ऐसी कविता में ही आप उन भावों को भर सकते हैं, जो आपके दिल से निकलते हैं।
  • कविता को पूर्णत: कठस्थ कर लें। कंठस्थ कविता से ही लय बनती है।
  • उस कविता का बार-बार अभ्यास करें।
  • कंठस्थ कविता को नज़दीकी लोगों को सुनायें।
  • एकांत कमरे में शीशे के सामने खड़े होकर अपने हाव-भाव को कविता की प्रवृत्ति के अनुसार बनायें।
  • जो शब्द या वाक्य आपके प्रवाह में बाधक हों, उन्हें बदल कर उनके स्थान पर पर्यायवाची रख दें।
  • शब्द परिवर्तन से कविता के अर्थ में परिवर्तन नहीं आना चाहिए।
  • उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
  • कविता सुनाते समय मुक्त कंठ से कविता का उच्चारण करें।
  • श्रोता की रुचि व आराम का विशेष ध्यान रखें।
  • श्रोताओं के हाव-भाव पढ़ने का प्रयत्न करें।
  • भावों के अनुसार स्वरों में उतार-चढ़ाव होना भी आवश्यक है। हास्य, व्यंग्य व करुणा के भावों के अनुसार वाणी का उतार चढ़ाव अधिक प्रभावशाली बन जाता है।
  • कविता रुक-रुक कर सुनाई जानी चाहिए, ताकि श्रोतागण उसका पूरा आनंद ले सकें।
  • श्रोतागण के आनंद को उनके द्वारा दी गई दाद/तालियों से समझा जा सकता है। ऐसे अवसरों पर कविता की उस पंक्ति को दोबारा दोहराया जाना चाहिए।
  • जिन पंक्तियों पर आप श्रोता का ध्यान आकर्षित करना चाहते हों, उन पंक्तियों को दोहराना चाहिए।
  • कविता को गाकर भी सुनाया जा सकता है।
  • कविता का चयन अवसरानुकूल होना चाहिए।
  • कविता को भावपूर्ण हृदय से सुनाकर श्रोतागण को भाव-विभोर करना ही श्रेष्ठ कविता का वाचन होता है।
  • अवसरानुकूल कविता की प्रस्तुति से श्रोताओं का भाव-विभोर हो जाना निश्चित है, क्योंकि हृदय से निकली आवाज मन को अवश्य बाँधती है।

अभ्यास प्रश्न

1. निम्नलिखित कविताओं का कक्षा में प्रभावशाली ढंग से वाचन कीजिए-

(1) झाँसी की रानी की समाधि पर

इस समाधि में छिपी हुई है
एक राख की ढेरी।
जलकर जिसने स्वतंत्रता की
दिव्य आरती फेरी॥

यह समाधि, यह लघु समाधि है
झाँसी की रानी की।
अंतिम लीलास्थली यही है
लक्ष्मी मर्दानी की॥

यहीं कहीं पर बिखर गई वह
भग्न विजय-माला-सी।
उसके फूल यहाँ संचित हैं
है यह स्मृति-शाला-सी॥

वार पर वार अंत तक
लड़ी वीर बाला-सी।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर
चमक उठी ज्वाला-सी॥

बढ़ जाता है मान वीर का
रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की
भस्म यथा सोने से॥

रानी से भी अधिक हमें अब
यह समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतंत्रता की
आशा की चिनगारी॥

इससे भी सुंदर समाधियाँ
हम जग में हैं पाते।
उनकी गाथा पर निशीथ में
क्षुद्र जंतु ही गाते॥

पर कवियों की अमर गिरा में
इसकी अमिट कहानी।
स्नेह और श्रद्धा से गाती
है वीरों की बानी॥ सहे

बुंदेले हरबोलों के मुख
हमने सुनी कहानी।
खूब लड़ी मर्दानी वह थी
झाँसी वाली रानी॥

यह समाधि, यह चिर समाधि
है झाँसी की रानी की।
अंतिम लीलास्थली यही है
लक्ष्मी मर्दानी की॥

-सुभद्रा कुमारी चौहान

(2) निज रक्षा का अधिकार रहे जन-जन को,
सबकी सुविधा का भार किंतु शासन को।
मैं आर्यों का आदर्श बताने आया।
जन-सम्मुख धन को तुच्छ जताने आया।
सुख-शांति-हेतु मैं क्रांति मचाने आया,
विश्वासी का विश्वास बचाने आया,
मैं आया उनके हेतु कि जो तापित हैं,
जो विवश, विकल, बल-हीन, दीन शापित हैं।
हो जाएँ अभय वे जिन्हें कि भय भासित हैं,
जो कौणप-कुल से मूक-सदृश शासित हैं।
मैं आया, जिसमें बनी रहे मर्यादा,
बच जाय प्रबल से, मिटे न जीवन सादा।
सुख देने आया, दुःख झेलने आया,
संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया
मैं मनुष्यत्व का नाट्य खेलने आया।
मैं यहाँ एक अवलंब छोड़ने आया,
गढ़ने आया हूँ, नहीं तोड़ने आया।
मैं यहाँ जोड़ने नहीं, बाँटने आया,
जगदुपवन में झंखाड़ छाँटने आया।
मैं राज्य भोगने नहीं, भुगाने आया।
हंसों को मुक्ता-मुक्ति चुगाने आया,
भव में नव वैभव व्याप्त कराने आया।
नर को ईश्वरता प्राप्त कराने आया।
संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया,
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।
अथवा आकर्षण पुण्यभूमि का ऐसा,
अवतरित हुआ मैं, आप उच्च फल जैसा।

-मैथिलीशरण गुप्त

2. कहानी कहना

कहानी कहना या सुनाना भी एक कला है। एक अच्छा कहानी लिखने वाला अच्छा कहानी सुनाने वाला भी हो, यह आवश्यक नहीं। यह कला अभ्यास के द्वारा प्राप्त की जा सकती है।

विद्यार्थियों को यदि इस कला से अवगत कराया जाए तो उनमें इस गुण का विकास किया जा सकता है। एक अच्छे कहानीकार में निम्नलिखित गुणों का होना अत्यंत आवश्यक होता है-

1. जिस कहानी को सुनाना हो उसका सार कहानी सुनाने वाले के दिमाग में बिलकुल स्पष्ट होना चाहिए।

2. उसे सारी घटनाएँ याद होनी चाहिए जिससे वह कहानी को उलट-पलट कर न सुना दे। क्योंकि ऐसा होने पर कहानी का रस ही समाप्त हो जाता है।

3. कहानी सुनाते समय कहानी के पात्रों, तिथियों, स्थानों का नाम पूर्ण रूपेण याद होना चाहिए। केवल अनुमान लगाकर सुनाई गई कहानी अपनी वास्तविकता खो देती है।

4. भाषा और संवाद भी कहानी की जान होते हैं। भाषा का स्तर उम्र, बौद्धिक स्तर आदि के अनुकूल होने पर ही कहानी प्रभावशाली बन पाती है। संवादों में बचपना या परिपक्वता सामने बैठे श्रोतागण के अनुसार होने पर ही कहानी में रुचि जाग्रत हो सकती है।

5. कहानी को रोचक बनाने के लिए संवाद व वर्णन-दोनों का उचित मात्रा में प्रयोग किया जाना चाहिए। जिस प्रकार भोजन में उचित मात्रा में तेल, मसाले आदि डाले जाएँ तो भोजन रुचिकर बनता है ठीक उसी प्रकार संवाद और वर्णन का सही मेल ही कहानी में जान डाल सकता है।

6. कहानी सुनाते समय श्रोता के हाव-भाव को पढ़ना भी कहानीकार का मुख्य कार्य होता है, क्योंकि श्रोता की रुचि और अरुचि का पता उनके हाव-भाव से लगाकर अपनी कहानी को अधिक रोचक या सरल बनाकर सुनाने पर ही श्रोता की वाह-वाही लूटी जा सकती है।

7. कहानी सुनाने वाले की आवाज़ में एक विशिष्ट आकर्षण होना भी अत्यंत आवश्यक होता है। कहानीकार की आवाज़ का केवल मधुर होना ही काफ़ी नहीं है, बल्कि उसका बुलंद होना भी जरूरी होता है। यदि आखिरी पंक्ति में बैठा श्रोता उसकी आवाज़ नहीं सुन पा रहा है तो वह कहानी उसके लिए रुचिकर कैसे हो सकती है। इसका अर्थ यह नहीं कि कहानी सुनाने वाला चिल्ला-चिल्लाकर कहानी सुनाए। ऐसा करने पर श्रोतागण के सिर में दर्द भी हो सकता है और अरुचिवश वे वहाँ से उठकर भी जा सकते हैं।

8. कहानी को रोचक बनाने के लिए अच्छे मुहावरों व सूक्तियों के द्वारा भाषा को लच्छेदार बनाना भी आवश्यक होता है। सीधी, सरल भाषा ज्यादा देर तक श्रोताओं को नहीं बाँध सकती है।

9. लच्छेदार भाषा के साथ कहानी कहने वाले की आवाज़ में उतार-चढ़ाव होना भी अत्यंत आवश्यक होता है। आवाज़ का जादू अच्छे-अच्छों के होश उड़ा देता है। एक-सी आवाज़ में कही गई कहानी श्रोता को बाँधने में असफल होती है। लेकिन आवाज़ में उतार-चढ़ाव आवश्यकता के अनुसार ही होना चाहिए अन्यथा अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती। 406

10. जोश और उत्साह की बात बताते समय चेहरे की प्रसन्नता तथा आवाज़ की बुलंदी तथा दुख भरी घटना सुनाते समय भाव-विभोर हो मंद आवाज़ में कही गई बात सीधी श्रोता के दिल में उतर जाती है।

11. भाव-विभोर होकर कहानी सुनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि आपकी आवाज़ सामने बैठे श्रोताओं की आखिरी पंक्ति तक पहुँचनी चाहिए।

12. कहानी की रोचकता को बनाये रखने के लिए जिज्ञासा का बना रहना अत्यंत ज़रूरी है। श्रोता के मन में यदि हर पल यह जिज्ञासा बनी रहे कि अब आगे क्या होगा तो कहानी सुनने का आनंद दुगुना हो जाता है। कहानी सुनाने वाले के द्वारा इस जिज्ञासा को बनाए रखना अति आवश्यक होता है।

13. कहानी बहुत अधिक लंबी नहीं होनी चाहिए अन्यथा श्रोता बोरियत का अनुभव करने लगते हं।

14. कहानी किसी उद्देश्य से परिपूर्ण हो यह भी अति आवश्यक है। निश्चित निष्कर्ष को लेकर सुनाई गई कहानी अधिक रुचिकर होती है।

15. कहानी में हास्य-व्यंग्य का पुट होना चाहिए।

16. कहानी में मार्मिक संवाद अनिवार्य है।

अभ्यास प्रश्न

1. निम्नलिखित कहानियों को कक्षा में रोचक ढंग से सुनाइए

1. एक बार राजा भोज को सपने में व्यक्ति का रूप धारण कर स्वयं ‘सत्य’ ने दर्शन दिए। राजा के पूछने पर सत्य ने बताया “मैं सत्य हूँ जो अंधों की आँखें खोलता हूँ और मृग-तृष्णा में भटके हुओं का भ्रम मिटाता हूँ। यदि तुझमें साहस है तो मेरे साथ चल मैं तेरे भी मन की जाँच कर लूँ।” चूँकि राजा भोज को अपने सत्कर्मों का बहुत अहंकार था इसलिए वह तुरंत ही इसके लिए सहमत हो गया। सत्य उसे अपने साथ मंदिर के उस ऊँचे दरवाजे पर ले गया, जहाँ से एक सुंदर बाग दिखाई देता था।

उस बाग में तीन पेड़ लगे हुए थे। सत्य ने राजा से पूछा ‘क्या तुम बता सकते हो कि ये पेड़ किसके हैं?’ राजा ने प्रसन्नता से भरकर उत्तर दिया – “ये तीनों ही पेड़ मेरे पुण्य कर्म का प्रतिफल हैं। लाल-लाल फलों से लदा हुआ पेड़ मेरे दान का है। पीले फल मेरे न्याय और सफ़ेद फल मेरे तप का प्रभाव दिखलाते हैं।” सत्य ने राजा से कहा, “चल, उन पेड़ों के पास चलकर छूकर देखते हैं।” सत्य ने जैसे ही पहले वृक्ष को छुआ तो क्या देखता है कि सारे फल उसी तरह पृथ्वी पर गिरे जिस प्रकार आसमान से ओले गिरते हैं।

दूसरे पेड़ों को भी छूने पर वही हाल हुआ जो प्रथम का हुआ था। राजा की आँखें नीची हो गईं और उसने सत्य से इसका कारण पूछा। सत्य ने कहा “प्रथम पेड़ के फल इसलिए गिर गये क्योंकि तूने जो कुछ भी किया वह ईश्वर की भक्ति या जीवों के प्रेम से वशीभूत होकर नहीं किया। तूने अपने आपको भुलाने और मिथ्या प्रशंसा पाने के लिए यह सब किया था।” पीले फलों से युक्त पेड़ के संदर्भ में सत्य ने कहा, “जिस न्याय की तू बात करता है वह न्याय तूने मात्र अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए किया है।

तू अच्छी तरह से जानता है कि न्याय किसी राज्य की जड़ है और जिस राज्य में न्याय नहीं, वह तो बे-नींव का घर है, जो बुढ़िया के दाँतों की तरह हिलता है, अब गिरा, तब गिरा।” सफ़ेद फल जो कि राजा के अनुसार उसके तप के फल थे के बारे में सत्य ने कहा, “ये फल तप ने नहीं, बल्कि अहंकार ने लगा रखे थे। तेरी ईश्वर की भक्ति, जीवों के प्रति दया, वंदना, विनती सभी इसलिए की गई थी – मानों ईश्वर तुम्हारे बहकावे में आकर स्वर्ग का राजा बना दे।

“अंत में, सत्य ने कहा “मनुष्य तो केवल कर्मों के अनुसार दूसरे मनुष्य की भावना का विचार करता है और ईश्वर मनुष्य के मन की भावना के अनुसार उसके कर्मों का हिसाब लेता है। अतः इन पेड़ों के फल उसी व्यक्ति के हिस्से में आते हैं जो शुद्ध हृदय, निष्कपट, निरहंकार होकर अपना कर्तव्य समझते हुए अपना कार्य करता है। ईश्वर. उसी का निवेदन स्वीकार करते हैं जो नम्रता और श्रद्धा के साथ सच्चे मन से प्रार्थना करता है।”

2.  एक बार मंथरक नाम के जुलाहे के सब उपकरण, जो कपड़ा बुनने के काम आते थे, टूट गए। उपकरणों को फिर से बनाने के लिए लकड़ी की ज़रूरत थी। लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी लेकर वह समुद्र तट पर स्थित वन की ओर चल दिया। समुद्र के किनारे पहुँचकर उसने एक वृक्ष देखा और सोचा कि इसकी लकड़ी से उसके सब उपकरण बन जाएँगे। यह सोचकर वह वृक्ष के तने में कुल्हाड़ी मारने को ही था कि वृक्ष की शाखा पर बैठे हुए एक देव ने उससे कहा – “मैं वृक्ष पर सुख से रहता हूँ और समुद्र की शीतल हवा का आनंद लेता हूँ! तुम्हें वृक्ष को काटना उचित नहीं, दूसरे के सुख को छीनने वाला कभी सुखी नहीं होता

जुलाहे ने कहा – “मैं भी लाचार हूँ। लकड़ी के बिना मेरे उपकरण नहीं बनेंगे, कपड़ा नहीं बुना जाएगा, जिससे मेरे कुटुंबी मर जाएंगे। इसलिए अच्छा यही है कि तुम किसी और वृक्ष का आश्रय लो, मैं इस वृक्ष की शाखाएँ काटने को विवश हूँ।
देव ने कहा – “मंथरक! मैं तुम्हारे उत्तर से प्रसन्न हूँ। तुम कोई भी एक वर माँग लो, मैं उसे पूरा करूँगा। केवल इस वृक्ष को मत काटो।
मंथरक बोला – “यदि यही बात है तो मुझे कुछ देर का अवकाश दो। मैं अभी घर जाकर अपनी पत्नी से और मित्र से सलाह करके तुमसे वर मागूंगा।
देव ने कहा – “मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा।
गाँव पहुँचने के बाद मंथरक की भेंट अपने एक मित्र नाई से हो गई। उसने उससे पूछा – “मित्र! एक देव मुझे वरदान दे रहा है। मैं तुमसे पूछने आया हूँ कि कौन-सा वरदान माँगा जाए?
नाई ने कहा – “यदि ऐसा है तो राज्य माँग ले। मैं तेरा मंत्री बन जाऊँगा, हम सुख से रहेंगे।”

तब मंथरक ने अपनी पत्नी से सलाह लेने के बाद वरदान का निश्चय लेने की बात नाई से कही। नाई ने स्त्रियों के साथ ऐसी मंत्रणा करना नीति विरुद्ध बतलाया। उसने सम्मति दी कि स्त्रियाँ प्रायः स्वार्थ-परायण होती हैं। अपने सुख-साधन के अतिरिक्त उन्हें कुछ भी सूझ नहीं सकता। अपने पुत्र को भी जब वे प्यार करती हैं, तो भविष्य में उसके द्वारा सुख की कामनाओं से ही करती हैं। मंथरक ने फिर भी पत्नी से सलाह लिए बिना कुछ भी न करने का विचार प्रकट किया। घर पहुँचकर वह पत्नी से बोला – “आज मुझे एक देव मिला है वह एक वरदान देने को उद्यत है। नाई की सलाह है कि राज्य माँग लिया जाए। तू बता कि कौन-सी चीज़ माँगी जाए?

पत्नी ने उत्तर दिया – “राज्य-शासन का काम बहुत कष्टप्रद है। संधि-विग्रह आदि से ही राजा को अवकाश नहीं मिलता। राजमुकुट प्रायः कांटों का ताज होता है। ऐसे राज्य से क्या लाभ जो सुख न दे!
मंथरक ने कहा – “प्रिये! तुम्हारी बात सच है। किंतु प्रश्न यह है कि राज्य न माँगा जाए तो क्या माँगा जाए?

मंथरक की पत्नी ने उत्तर दिया – “तुम अकेले दो हाथों से जितना कपड़ा बुनते हो उसमें भी हमारा व्यय पूरा हो जाता है। यदि तुम्हारे हाथ दो की जगह चार हों और सिर भी एक की जगह दो हों तो कितना अच्छा हो। तब हमारे पास आज की अपेक्षा दुगुना कपड़ा हो जाएगा। इससे समाज में हमारा मान बढ़ेगा।”
मंथरक को पत्नी की बात जंच गई। समुद्र-तट पर जाकर वह देव से बोला – “यदि आप वर देना ही चाहते हैं तो यह वर दें कि मैं चार हाथ और दो सिर वाला हो जाऊँ।”
मंथरक के कहने के साथ ही उसका मनोरथ पूरा हो गया। उसके दो सिर और चार हाथ हो गए, किंतु इस बदली हालत में वह गाँव में आया तो लोगों ने उसे राक्षस समझ लिया और राक्षस-राक्षस कहकर सब उस पर टूट पड़े।

3. भाषण कला

भाषण, भाषा के विभिन्न कौशलों की एक मिश्रित अभिव्यक्ति है। भाषण कौशल की प्रक्रिया में संरचनाओं का सुव्यवस्थित चयन, शब्दों की द्रुतगति से प्रवाहपूर्ण प्रयोग तथा एक निश्चित संख्या में उनको जोड़ना शामिल है। इसमें शब्द समूह और वाक्य साँचों का क्रमबद्ध प्रयोग होता है। भाषण कौशल को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है – एक उच्चारण और दूसरा अभिव्यक्ति। उच्चारण के अंतर्गत समस्त ध्वनि व्यवस्था के प्रायोगिक रूप का समावेश रहता है। विद्यार्थियों को चाहिए कि अपने भाषा को तैयार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें

  • भाषण ऐसा हो कि श्रोता उसमें रुचि ले सकें।
  • सदैव भाषण देते समय आरोह अवरोह का ध्यान रखा जाना चाहिए।
  • भाषण विषयानुकूल तथा भावानुकूल होना चाहिए।
  • भाषण देते समय क्रियात्मक अभिनय का समावेश करना चाहिए।
  • भाषण में हास्य व्यंग्य का पुट होना भी आवश्यक होता है, जिससे श्रोतागण उसको रुचिपूर्वक सुन सकें।
  •  विषय का प्रस्तुतीकरण रोचक व नवीन ढंग से होना चाहिए, अर्थात् उसमें कुछ नयापन होना चाहिए।
  • भाषण में कठिन शब्दों का प्रयोग न करते हुए आम बोलचाल (हिंदुस्तानी) की भाषा का प्रयोग करना चाहिए ताकि लोग उसे आसानी से समझ सकें।
  • वक्ता को भाषा के विभिन्न प्रकार के नवीन शब्दों और भाषा के अन्य नवीन तथ्यों का सहज रूप से अभ्यास होना चाहिए।
  • वक्ता चित्रात्मक तथा प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग कर भाषण को और भी अधिक प्रभावशाली बना सकता है।
  • विषय से संबंधित कोई विशिष्ट उक्ति या प्रसिद्ध कवि की कविताओं को यदि वक्ता अपने भाषण में जोड़ लेता है तो उसके भाषण में चार चाँद लग जाते हैं।
  • भाषण देते समय वक्ता को शब्दों के उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए वरना अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है।
  • छोटे वाक्यों का प्रयोग करना वक्ता के लिए अधिक प्रभावशाली हो सकता है।
  • भाषण को तैयार कर यदि वक्ता उसे टेप पर पुनः सुनता है तो वह स्वयं अपनी गलतियों को पहचानकर उन्हें ठीक कर सकता है।
  • भाषण जोश और उत्साह से भरा होना चाहिए।
  • भाषण में संबोधन का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। श्रोतागण को किया गया संबोधन अत्यंत सहज व आत्मीय होना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रहे कि केवल सभापति या निर्णायक गण ही वहाँ उपस्थित नहीं हैं।
  • भाषण की शुरुआत पर वक्ता को विशेष ध्यान देना चाहिए। जितनी अधिक प्रभावशाली शुरुआत होगी उतनी ही अधिक श्रोताओंकी प्रशंसा व एकाग्रता वक्ता को मिलेगी।
  • भाषण का अंत कभी भी अधूरा नहीं रहना चाहिए। अर्थात् भाषण में पूर्णता होनी चाहिए। श्रोताओं को यह न लगे कि आप अपनी बात को स्पष्ट करने में असफल रहे हैं।
  • भाषण में परिपक्वता अवश्य होनी चाहिए अर्थात् उसमें विषय से हटकर कुछ भी न कहा गया हो तथा कम-से-कम शब्दों में अपनी बात को स्पष्ट किया गया हो।

4. साक्षात्कार लेना व देना

साक्षात्कार लेना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। साक्षात्कार लेने वाला व्यक्ति अभ्यर्थियों की योग्यता की पूर्ण जाँच करता है। वह अभ्यर्थी की हर क्रिया व प्रतिक्रिया को ध्यान से देखता व सुनता है। साक्षात्कार का कार्य शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ स्वभाव को भी जानना होता है।

साक्षात्कार लेते वक्त ध्यान रखने योग्य बातें-

  • अभ्यर्थी का आत्मविश्वास बनाए रखना चाहिए।
  • बातचीत का आरंभ परिचयात्मक होना चाहिए।
  • प्रश्नों की शुरुआत व्यक्तिगत जीवन से संबंधित सामान्य प्रश्नों से करनी चाहिए।
  • साक्षात्कार-कर्ता के प्रश्न संक्षिप्त व स्पष्ट होने चाहिए।
  • अभ्यर्थी द्वारा दिए गए उत्तरों को अनसुना न कर ध्यान से सुनना चाहिए।
  • अभ्यर्थी द्वारा गलत या भ्रामक उत्तर देने पर एकाध स्पष्टीकरण लेना ही पर्याप्त है।
  • यदि अभ्यर्थी किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देता है तो उससे अगला प्रश्न पूछ लेना चाहिए।
  • साक्षात्कार को अधिक लंबा नहीं खींचना चाहिए।
  • यदि अभ्यर्थी उत्तर को लंबा खींच रहा हो तो आप बीच में यह कहकर अगला प्रश्न पूछ सकते हैं – ‘आपकी बात ठीक है। आप कृपया यह बताएँ कि ……।’
  • जिस पद हेतु साक्षात्कार लिया जा रहा है, उससे संबंधित एक-दो प्रश्न अवश्य करें।
  • अभ्यर्थी से आत्मीयतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए।

उदाहरण

उत्तर प्रदेश राज्य की प्रतिष्ठित न्यायिक सेवा परीक्षा में सिविल जज पद पर सातवें स्थान पर पहले प्रयास में ही चयनित होकर श्री कृष्ण चंद्र पांडेय ने एक महत्त्वपूर्ण सफलता अर्जित की है, प्रशांत दविवेदी ने उनका साक्षात्कार लिया, जो इस प्रकार है-

प्रशांत द्विवेदी – आपकी इस सफलता के लिए बधाई।
कृष्ण चंद्र – जी, धन्यवाद।
प्रशांत द्विवेदी – आपको अपने चयन की सूचना कैसे मिली?
कृष्ण चंद्र – मेरे मित्र हरि प्रकाश शुक्ल APO इलाहाबाद में कार्यरत, द्वारा मुरादाबाद ट्रेनिंग सेंटर पर फ़ोन द्वारा प्राप्त हुई।
प्रशांत द्विवेदी – चयन होने पर आपको कैसा लगा?

कृष्ण चंद्र – मुझे गलत सूचना मिली कि मैं असफल हो गया हूँ, लगभग आधे घंटे पश्चात् मुझे इस सफलता की सूचना प्राप्त हुई, इस प्रकार मैंने असफलता का दंश और सफलता की प्रसन्नता-दोनों का अनुभव किया।
प्रशांत द्विवेदी – आपको न्यायिक सेवा में जाने की प्रेरणा कैसे मिली?
कृष्ण चंद्र – बड़े बहनोई श्री नलिनीश शुक्ला, एडवोकेट ने मुझे प्रेरित किया कि मैं इसे अपना कैरियर बनाऊँ। उन्होंने मुझे सदैव इसके लिए प्रेरित किया, इसके अतिरिक्त मुझे विधि विभाग गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्ण विभागाध्यक्ष प्रो. उदय राज राय ने भी प्रेरित किया।
प्रशांत द्विवेदी – यह सफलता आपने कितने प्रयासों में अर्जित की?
कृष्ण चंद्र – यह मेरा पहला प्रयास था।
प्रशांत द्विवेदी – आपने इस परीक्षा के लिए तैयारी किस प्रकार की?

कृष्ण चंद्र – कुछ चुनिंदा बिंदुओं पर प्रामाणिक पुस्तकों से नोट्स बनाए; Bare Acts का सूक्ष्म अवलोकन किया, L-L.M में Interpretation of Statue एक विषय होने के कारण Bare Acts के सूक्ष्म निर्वचन पर ध्यान केंद्रित किया, विभिन्न धाराओं को Co-relate करके अध्ययन किया। मूलतः नोट्स की अपेक्षा किताबें मेरे अध्ययन का केंद्र-बिंदु रहीं। प्रो. रमेश चंद्र श्रीवास्तव जी के निर्देशन में एल-एल.एम. (फाइनल) में ‘हितग्राही में अनुयोजन का अधिकार’ विषय पर डिजर्टेशन लिखने के कारण मेरी लेखनी परिष्कृत हुई, इसका भी लाभ मुझे इस परीक्षा में मिला।
प्रशांत द्विवेदी – आपकी सफलता का मूल मंत्र क्या रहा?
कृष्ण चंद्र – आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय, कठिन परिश्रम, एकाग्रता एवं कभी न हार मानने वाली अदम्य जिजीविषा। इसके अलावा गुरुजनों का आशीर्वाद, मित्रों का प्रेम, प्रोत्साहन, पारिवारिक सहयोग भी इसमें सहायक हुए। प्रशांत द्विवेदी-साक्षात्कार में पूछे गए प्रश्न क्या थे?
कृष्ण चंद्र – साक्षात्कार 3 अगस्त, 20XX दिन शुक्रवार के दिन श्री के.बी. पांडेय (चेयरमैन, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग) के बोर्ड में, बोर्ड के अन्य सदस्य

न्यायमूर्ति वी. के. राव एवं प्रोफेसर खान (अलीगढ़ विश्वविद्यालय) थे, साक्षात्कार लगभग 30 मिनट चला। बोर्ड का रवैया सहयोगात्मक था। साक्षात्कार का आरंभ प्रो. पांडेय ने किया एवं समापन प्रो० खान द्वारा हुआ। सामान्य परिचयात्मक प्रश्नों के अलावा मुझसे कई प्रश्न पूछे गए।
प्रशांत द्विवेदी – प्रतियोगिता दर्पण पत्रिका के विषय में आपके क्या विचार हैं?
कृष्ण चंद्र – यह पत्रिका सिविल सर्विस के परीक्षार्थियों के लिए रामबाण है। संविधान पर इसका अतिरिक्तांक न्यायिक परीक्षा के लिए अत्यंत उपयोगी है। यदि पत्रिका में कुछ विधिक लेख भी नियमित रूप से प्रकाशित होने लगे तो यह न्यायिक परीक्षा के लिए भी समान रूप से उपयोगी हो जाएगी।
प्रशांत द्विवेदी – आगामी प्रतियोगियों के लिए आप क्या परामर्श देंगे?
कृष्ण चंद्र – दृढ़ आत्मविश्वास के साथ गंभीर परिश्रमयुक्त सतत् एवं सुव्यवस्थित अध्ययन ही सफलता की सीढ़ी है। Revision is a must पढ़ें, पर स्वयं को Confuse होने से बचाए रखें, बस अर्जुन की तरह लक्ष्य पर एकाग्रचित रहें, अंतत: सफलता वरण करेगी ही।

साक्षात्कार देना

छात्रों को अनेक कार्यों के लिए साक्षात्कार देना होता है। कुछ में इसका डर बैठ जाता है। वस्तुतः साक्षात्कार परीक्षा जैसा होता है। इसमें अल्प समय में बहुत कुछ कहना होता है। अभ्यर्थी को दो कार्य करने होते हैं – स्वयं को परिचित कराना तथा साक्षात्कार मंडल को प्रभावित करना।

साक्षात्कार देने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना होता है

  • साक्षात्कार देते वक्त सहज रहें।
  • अपनी बात को सरल ढंग से कहें।
  • साक्षात्कार में जाते समय वेशभूषा संतुलित होनी चाहिए।
  • साक्षात्कार पर जाने से पहले वरिष्ठ छात्रों से अभ्यास करें।
  • साक्षात्कार-कक्ष में प्रवेश करने से पहले मुख्य साक्षात्कार कर्ता की ओर मुख करके अंदर आने की अनुमति लें – “क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?”
  • अंदर आने की अनुमति मिलने के बाद आप संतुलित कदमों से उस कुरसी की ओर बढ़ें जहाँ अभ्यर्थी को बिठाया जाता है। इस क्रिया में आप अपना मुख साक्षात्कार मंडल की ओर रखें। मुसकराते हुए प्रमुख साक्षात्कार कर्ता और अन्य सभी को हाथ जोड़कर नमस्कार कहें। नमस्कार करते समय चेहरे पर विनय का भाव रखें। सम्मान प्रकट करने के लिए सिर तथा शरीर को हल्का-सा झुकाएँ।
  • आपके हाथ में फाइल या कुछ कागजात होंगे। इसलिए फाइल सहित नमस्कार करने का ढंग सीख लें।
  • साक्षात्कार के दौरान आप जिन प्रमाण-पत्रों, उपलब्धियों या कागज़ों-पुस्तकों को साक्षात्कार-मंडल को दिखाना चाहते हैं, उन्हें पहले से ही सुव्यवस्थित और ऊपर-ऊपर तैयार रखें। 9. जब तक कुरसी पर बैठने के लिए नहीं कहा जाए, तब तक खड़े रहें।
  • साक्षात्कार के दौरान स्वयं को चुस्त व तत्पर रखें।
  • प्रश्न को आराम व ध्यान से समझें।
  • पूछे गए प्रश्न का उत्तर एकदम न देकर समझकर देना चाहिए।
  • प्रश्न की प्रवृत्ति के अनुसार उत्तर देने में समय लगाना चाहिए।
  • आप किसी मुद्दे पर कितने ही विश्वासपूर्ण हों, परंतु अपनी बात पर अड़ना नहीं चाहिए।
  • यदि साक्षात्कार-कर्ता आपकी बात से असहमत हो तो आप अपनी बात कहते हुए उनके मत को भी सम्मान दें।
  • प्रश्न का उत्तर न देने पर स्पष्ट कहें – क्षमा कीजिए, मुझे इसका ज्ञान नहीं है।
  • सारी बातचीत में चेहरे पर घबराहट व तनाव नहीं आना चाहिए।

5. वर्णन करना

वर्णन मौखिक भाषा – व्यवहार का एक महत्त्वपूर्ण रूप है। मनुष्य विभिन्न स्थितियों, व्यक्तियों और वस्तुओं का अनुभव करता है और उनका वर्णन करता है, किंतु अनेक बार प्रशिक्षण के अभाव के कारण वर्णन अव्यवस्थित हो जाता है। कई बार महत्त्वपूर्ण बिंदुओं की उपेक्षा हो जाती है तथा सारा वर्णन प्रभावहीन हो जाता है। इसलिए छात्रों को वर्णन करने की कला का विधिवत् प्रशिक्षण दिया जाए। वर्णन की कुशलता इसी में निहित है कि वर्णनकर्ता पूर्ण आत्मविश्वास और रोचक ढंग से इस प्रकार वर्णन करें कि श्रोता का उत्साह

और रुचि बनी रहे। वर्णन करने की कला की क्षमता का विकास बाल सभा, कक्षा आदि में किसी दृश्य, मनोरंजन, प्रसंग, समारोह, घटना आदि के वर्णन द्वारा किया जा सकता है।

उदाहरण

(क) राजस्थान के किसी गाँव की यात्रा का वर्णनमुझे मालूम नहीं था कि भारत में ‘तिलोनिया’ नाम की भी कोई जगह है जहाँ हमारे देश के समसामयिक इतिहास का एक विस्मयकारी पन्ना लिखा जा रहा है। किसी बड़े शहर में रहते हुए हम केवल अखबार द्वारा ही देश-विदेश के बारे में अपनी जानकारी हासिल करते हैं और आजकल तो इस जानकारी से मन अशांत व क्षुब्ध ही होता है। उस वक्त तक तिलोनिया के बारे में मुझे इतनी ही जानकारी थी कि वहाँ पर एक स्वावलंबन विकास केंद्र चल रहा है, जिसे स्थानीय ग्रामवासी, स्त्री-पुरुष मिल-जुलकर चला रहे हैं।

बस, इतना ही और मैं वहाँ अपनी किसी प्रयोजन से भी नहीं जा रहा था। मुंबई को जाने वाली जरमैली सड़क को छोड़कर हमारी जीप एक तंग राजस्थानी सड़क पर आ गई थी। मतलब साफ़, समतल सड़क को छोड़कर ऊबड़-खाबड़ सड़क पर आ गई थी पर यहाँ भी दूर-दूर तक कुछ दिखाई नहीं देता था, केवल सपाट मैदान, कंटीली झाड़ियों के झुरमुट और दोपहर का बोझिल वातावरण …… ।

(ख) किसी रमणीक स्थान की यात्रा का वर्णनपिछले वर्ष गरमियों में हमने पिता जी के साथ बद्रीनाथ व केदारनाथ की यात्रा का हठ किया। पिता जी अपने साथ ले जाने को तैयार न थे। उन्होंने हमें बताया कि इन स्थानों की यात्रा करना सहज नहीं है। विशेष रूप से केदारनाथ की यात्रा के अंतिम चरण में लगभग 16 किलोमीटर पैदल चलाना पड़ता है। इस पैदल यात्रा में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं। हमने पिता जी के आदेश को अस्वीकार करते हुए उनके साथ जाने का हठ किया।

अत: पिता जी हमें अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गए। दिल्ली से बस द्वारा हम लोग हरिद्वार पहुँचे। हम लोग हरिद्वार दो दिन रुके। गंगा मैया के पवित्र जल में स्नान करके मेरा तन-मन शीतल हो गया। गंगा का विराट एवं तीव्र प्रवाह देखकर मैं विस्मय विमुग्ध हो गया। संध्या के समय गंगा मैया की आरती का दृश्य देखकर मेरा मन मयूर नृत्य कर उठा। हरकी पौड़ी पर उस समय हज़ारों लोग उपस्थित थे। बहुत से भक्तजन दोनों हाथों में पुष्प तथा प्रज्ज्वलित दीप रखकर गंगा जी में प्रवाहित कर रहे थे।

अंधकार की चादर ने धरती को ढक लिया था। आकाश के वक्ष पर असंख्य नक्षत्र जगमगा रहे थे और गंगा की तरंगों पर तैरते छोटे-छोटे दीपक एक दिव्य दृश्य उपस्थित कर रहे थे। हरिद्वार में हमने पावन धाम, भीमगोडा, सप्तऋषि आश्रम, दक्षेश्वर महादेव, मंसा देवी, चंडी देवी आदि पवित्र स्थानों के दर्शन किए। दो दिन के पश्चात् हम लोग बस द्वारा ऋषिकेश पहुँचे। हमारे मन में बद्रीनाथ तथा केदारनाथ के पवित्र स्थानों को देखने की उत्कंठा थी अतः हम ऋषिकेश में नहीं रुके तथा केदारनाथ जाने के लिए यात्रा-पत्र लेने वालों की पंक्ति में खड़े हो गए।

तभी हमें ज्ञात हुआ कि यात्रा-पत्र लेने से पहले हैजे का टीका लगवाना अनिवार्य है। मुझे टीका लगवाना अच्छा नहीं लगता, परंतु मैं विवश था। टिकट लेने के पश्चात् हम लोग अन्य यात्रियों के साथ बस में बैठ गए। कुछ देर के पश्चात् बस चल पड़ी। एक ओर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और दूसरी ओर तन्वंगी गंगा का प्रवाह देखते ही बनता श्रवण एवं वाचन था। पहाड़ी सड़कें निर्धन के भाग्य-सी टेढ़ी-मेढ़ी थीं। पहाड़ी वन अत्यंत मनमोहक प्रतीत हो रहे थे। दिल्ली और यहाँ के वातावरण में ज़मीन-आसमान का अंतर था।

धूप निखरी हुई थी फिर भी यहाँ के वायुमंडल में शीतलता व्याप्त थी। लगभग 56 किलोमीटर की यात्रा के पश्चात् हम लोग कर्णप्रयाग पहुँचे। यहाँ एक छोटा-सा पहाड़ी कस्बा है। यहाँ के लोगों की वेशभूषा और प्रकृति शहर के लोगों से स्पष्टतः भिन्न है। यात्रियों ने कुछ जलपान किया और यात्रा पुनः आरंभ हो गई। रुद्रप्रयाग होते हुए हम लोग श्रीनगर पहुंचे। यहाँ बस लगभग आधा घंटा रुकी। यात्रियों ने भोजन ग्रहण किया और उसके पश्चात् सोनप्रयाग होते हुए हम लोग गौरी कुंड पहुँचे।

यहाँ से केदारनाथ जाने के लिए पैदल रास्ता आरंभ हो जाता है। गौरी कुंड में एक तप्त जल का कुंड है। इस क्षेत्र में मई-जून के महीनों में भी काफ़ी सरदी पड़ती है। यहाँ एक छोटा-सा गाँव है जहाँ गरमियों के दिनों में यात्रियों का जमघट लगा रहता है। गौरी कुंड से पहाड़ी रास्ता अत्यंत दुर्गम हो जाता है। यात्री ‘जय केदारनाथ’ कहते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं। लगभग 7 घंटे की यात्रा के पश्चात् हम केदारनाथ पहुंचे। बरफ़ से ढके पहाड़ों को देखकर हम आत्म-विस्मृत हो गए।

मंदाकिनी के तीव्र प्रवाह का स्वर पहाड़ियों में दिव्य संगीत की सृष्टि कर रहा था। केदारनाथ के निकट ही शंकराचार्य की समाधि के दर्शन भी हमने किए और अगले दिन यहाँ से हम बद्रीनाथ की ओर चल पड़े। रास्ते में ‘तुंगनाथ’ नामक स्थान पर बस रुकी। वहाँ का प्राकृतिक वातावरण अद्भुत है। बद्रीनाथ में भगवान विष्णु की अत्यंत भव्य मूर्ति है। हमने बद्रीनाथ तथा पंच-शिलाओं के दर्शन किए। यहाँ मुख्य मंदिर के निकट बहती अलकनंदा का प्रवाह देखते ही बनता है। बद्रीनाथ में लगभग चार दिन रहने के बाद हरिद्वार होते हुए दिल्ली वापिस लौट आए।

6. वाद-विवाद

वाद-विवाद किसी विषय के पक्ष-विपक्ष में विचार करने का साधन है। इसका उद्देश्य किसी विवादास्पद मसले पर जनता का ध्यान आकर्षित करना होता है। इसमें भाग लेने वाले कम से कम दो छात्र होते हैं। एक पक्ष में बोलता है तथा दूसरा विपक्ष में। ये वक्ता भरी सभा में बोलते हैं तथा पूरे सदन को संबोधित करते हैं।

वाद-विवाद में सभापति एक निर्णायक मंडल होता है। दोनों वक्ताओं का उद्देश्य पूरे सदन को अपने विचारों से सहमत करना होता है। इसमें एक-दूसरे की बात काटना व अपनी बात रखना होता है।

वाद-विवाद में ध्यान रखने योग्य बातें-

  • हर प्रतियोगी को अपने पक्ष को तर्क व मज़बूती के साथ प्रस्तुत करना चाहिए।
  • पक्ष में बोलने वाला वक्ता शांत स्वर में अपने विषय को तर्क व उदाहरणों से पुष्ट करता है।
  • विपक्ष में बोलने वाला वक्ता आक्रामक होता है। उसके स्वर में धारा प्रवाह बोलने की क्षमता होती है।
  • पक्ष या विपक्ष – दोनों वक्ताओं को व्यक्तिगत टिप्पणी, कटाक्ष व अभद्र बातों से बचना चाहिए।
  • दोनों वक्ताओं को सबसे पहले सदन को संबोधित करके विषय बताना होता है।
  • प्रारंभिक पंक्तियों में ही वक्ता को स्पष्ट कर देना चाहिए कि वह पक्ष में बोल रहा है या विपक्ष में।
  • वाद-विवाद की अपनी सीमाएँ हैं।
  • प्रायः वाद-विवाद का आरंभ इस प्रकार होता है
    आदरणीय अध्यक्ष महोदय, निर्णायक मंडल व उपस्थित श्रोताओं, आज की वाद-विवाद प्रतियोगिता का विषय है …………..
  • वाद-विवाद में भाषण कला के सभी गुणों का उपयोग करना चाहिए।

अभ्यास प्रश्न

विषय : क्या चाँद पर अंतरिक्ष यान भेजना भारत के लिए उचित है?
पक्ष में-

यह कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी कि धरतीवासियों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान एक कौतूहल का विषय रहा है। तारों, ग्रहों, आकाशगंगाओं का अध्ययन व अंतरिक्ष यात्रा सैकड़ों वर्षों से महत्त्वपूर्ण है। चार हजार वर्ष पूर्व इतालवी दार्शनिक तथा खगोलविद् ब्रुनो ने कहा था कि ब्रह्मांड अनगिनत तारों से भरा पड़ा है, जिनके चारों ओर असीमित मात्रा में ग्रह है, जो ‘होमोसेपियंस’ के लिए खासा शोध का विषय है और रहेगा। गौरतलब है कि मौजूदा ‘हाईटेक युग’ में अंतरिक्ष को लेकर की गई खोजों एवं अभियानों पर नज़र दौड़ाए तो इनमें एक तेज़ वृद्धि नज़र आ रही है।

इस हलचल को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 21वीं शताब्दी में नक्षत्रीय दोहन के लिए बहुत बड़ी राशि का निवेश किया जाने वाला है। 12 वर्षों बाद विश्वभर के वैज्ञानिकों की निगाहें ‘चंदा मामा’ पर टिकी हैं और इन दिनों भारत भी ‘मिशन टू मून’ चंद्रयान भेजने (2008) का निर्णय लिया है, जो न सिर्फ प्रासंगिक, उचित, समयानुकूल व देशहित में है, अपितु इससे देश के चतुर्दिक विकास को भी एक अभूतपूर्व आयाम मिलेगा। इसके कई सबल पक्ष हैं-

1. इससे जहाँ अंतरिक्ष विज्ञान के कई अनसुलझे रहस्य सुलझेंगे, वहीं भारत के चाँद पर अपनी दावेदारी होने से इसकी मिट्टी में पड़े लाखों टन हीलियम-3 से विश्व सहित भारत को आने वाले दिनों में होने वाली ऊर्जा संकट से मुक्ति मिलेगी।

2. इससे अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी को उन्नति मिलेगी जो अंततः भारत की मिसाइल विकास कार्यक्रम को नई तथा उन्नत जानकारी देगी और भारत भी यू.एस.ए. की तरह ‘एयर डिफेंस सिस्टम’ बना सकेगा, जो पूर्णतः देशी तकनीक पर आधारित होगा। कहने का आशय है कि भारतीय लूनर मिशन की सफलता देश की सुरक्षा व खुफिया व्यवस्था को एक नया आयाम देगा।

3. हालांकि भारत जैसे गरीब व विकासशील देश में 3.75 अरब रुपए की महँगी यात्रा को अव्यावहारिक बताया जा रहा है, लेकिन मेरा एक सवाल है कि गरीबी व निर्धनता की आड़ लेकर नई तकनीक को तिलांजलि देना कहाँ की बुद्धिमानी है? इसरो के आँकड़ों पर यदि नजर दौड़ाएँ तो पाएंगे कि प्रक्षेपण और यान की परिक्रमा पर यह खर्च हमारे सालाना अंतरिक्षीय बजट में महज 5-7 फीसदी की बढोत्तरी है जिसकी अनदेखी अंतरिक्ष विज्ञान और अनुसंधान की दृष्टि से सक्षम राष्ट्र भारत के लिए उचित नहीं है, ध्यातव्य है कि पिछले 30 वर्षों में भारत ने 29-30 उपग्रह स्थापित किए हैं और इन पर कुल 10-12 हज़ार करोड़ रुपए खर्च आया, जो अमरीका के 3-4 विफल हो गए, अभियानों के खर्च के बराबर है, ऐसे में चाँद पर आधिपत्य को लेकर यह खर्च सहज ही वहन किया जा सकता है, ताकि बाद में कम-से-कम हम अपने देशवासियों की अपेक्षाओं पर खरे उतर सकें। हकीकत तो यह है कि हम भारतीय भय, भूख, बेरोज़गारी व गरीबी से तो लड़-भिड़ सकते हैं, लेकिन वैचारिक, मानसिक व तकनीकी पिछड़ेपन से कदापि नहीं।

4. मैं ‘मिशन टू मून’ चंद्रयान की वकालत इसलिए भी करना चाहता हूँ कि जिस तरह आज अंटार्कटिका की अकूत खनिज संपदा पर अपना-अपना अधिकार जताने को लेकर विभिन्न देशों में आपाधापी मची हुई है उसकी तरह भविष्य में यदि चाँद की संपत्ति को लेकर काननी पक्ष उभरता है, तो उस समय भारत अपना पॉजिटिव पक्ष तभी पेश कर सकेगा जब आज वह चाँद पर जाने की प्रक्रिया को अंजाम देगा, इस नजरिए से भारत का ‘मिशन टू मून’ और भी प्रासंगिक व ज़रूरी हो जाता है ताकि बाद में चाँद की चाँदी (खनिज संपदा) पर हम भी दावे पेश कर सकें।

5. विवादों में पड़कर हम एक उपलब्धि, एक अभियान, एक नई टेक्नोलॉजी को तिलांजलि नहीं दे सकते। और फिर हम अगर यह लक्ष्य पाने में देर करेंगे, तो बाजी हमारे हाथ से निकल जाएगी। ऐसी स्थिति में हमें दूसरे देशों के सामने ‘याचक मुद्रा’ में खड़ा होना पड़ेगा, जो नागवार गुजरेगा, जरा सोचिए! एक स्वाभिमानी मुल्क के वैज्ञानिक ऐसी स्थिति को किसी सूरत में गँवारा नहीं करेंगे। इतिहास गवाह है कि हर विषय व विपरीत परिस्थिति में हमारे वैज्ञानिकों ने अपने ‘सुपर ब्रेन’ का परिचय दिया है चाहे वह अमरीका द्वारा नकारे जाने पर ‘सुपर कंप्यूटर’ का आविष्कार हो या रूस से क्रायोजनिक इंजन न मिलने पर खुद के द्वारा क्रायोजनिक तकनीक का डेवलपमेंट हो या फिर स्वयं के बूते हरित क्रांति जैसे लक्ष्य को पाना हो।

अंततः इसरो के पूर्व चेयरमैन डॉ० के० कस्तूरीरंगन की मान्यता महत्त्वपूर्ण है, “समूचा भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम वैज्ञानिक जिज्ञासा पूरी करने की अपेक्षा व्यावहारिक ज़रूरतें पूरी करने के लिए बन गया है, इसलिए भारत का ‘चाँद-मिशन’ भी उस दिशा में उठाया गया एक कदम होगा, जिसके तहत् देश को आर्थिक लाभ भले ही नहीं हो, लेकिन इससे टेकनोलॉजी संबंधी जो विशेष क्षमताएँ हासिल होंगी उनका इस्तेमाल स्वदेशी औद्योगिक क्षमता को पुख्ता करने में सहायक हो सकता है।कम-से-कम हमारे युवा वैज्ञानिकों का उत्साहवर्धन होगा तथा हमारे तकनीकी ज्ञान में वृद्धि होगी।

खैर! जो भी इसे लेकर ऊहापोह बने इतना तो तय है कि ‘मिशन टू मून-2008’ वर्तमान समय का तकाजा है क्योंकि इससे न सिर्फ तेज़ी से बदलती दुनिया के अंतरिक्ष में भारत का सिक्का जमेगा, अपितु नक्षत्रीय अभियानों के चुनिंदा क्लब का सदस्य बनकर भविष्य में होने वाली गतिविधियों पर भारतीय दावेदारी को महत्त्वपूर्ण व सशक्त स्थान मिलेगा।

विपक्ष में –

वर्तमान समय में भारत के चंद्रयान-I अभियान की चर्चा चारों ओर है और साथ ही यह विवाद भी उठ खड़ा हुआ है कि भारत द्वारा सन् 2008 में पहला चंद्रयान भेजा जाना उचित है या नहीं? मेरी दृष्टि में भारत द्वारा चंद्रमा पर यान भेजने का निर्णय अनुचित ही नहीं, निरर्थक भी है जिसके कारण निम्नांकित हैं

1. सर्वविदित है कि 21 जुलाई, 1969 को ही चंद्रमा पर अमरीकी यान अपोलो-I नील.ए. आर्मस्ट्रांग को लेकर पहुंच चुका था और उसके बाद कई यान और कई वैज्ञानिक चंद्रमा पर जा चुके हैं और कई महत्त्वपूर्ण खोजें हो चुकी हैं, चाँद के संबंध में बहुत कुछ जाना जा चुका है, फिर चंद्रमा पर 2008 में भारत द्वारा यान भेजने जाने का औचित्य क्या है?

2. भारत के इस चंद्रयान-I अभियान पर चार अरब रुपए के व्यय का अनुमान है, यदि इतने पैसे खर्च करके भारत कोई उन्नत सेटेलाइट छोड़े तो उसे संचार, सूचना आदि के क्षेत्रों में ज्यादा लाभ होगा, यदि इतने पैसे बेरोज़गारी, निरक्षरता आदि के उन्मूलन पर खर्च किए जाएँ तो ठोस परिणाम संभव है।

3. अब तक जिन राष्ट्रों ने अपने यान चंद्र-तल पर भेजे हैं, उनकी उच्च तकनीक का लोहा सारा विश्व मानता है, उन राष्ट्रों की तकनीक के आगे भारतीय तकनीक अभी शैशवास्था में है, अत: हमारे भारतीय वैज्ञानिक अब तक हुई खोजों से अलग चंद्रमा पर कुछ खोज कर लेंगे यह बाद गले नहीं उतरती।

4. भारत द्वारा छोड़े गए एक सेटेलाइट में पुर्जे 60-70% विदेशी होते हैं, इस चंद्रयान में भी अधिकांश पुर्जे विदेशी ही लगे होंगे। स्पष्टतः इस अभियान से भारतीय तकनीक को कोई लाभ पहुँचने वाला नहीं है।

5. इस चंद्रयान अभियान के बाद जैसा कि कहा जा रहा है कि भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। सारे विश्व को यह पता है कि भारत के इस स्वदेशी (?) यान के सारे पुर्जे विदेशी हैं, “कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा” वाली कहावत ही चरितार्थ होती है इस भारतीय अभियान के संदर्भ में।

6. भारत की इस अलाभकारी योजना के पीछे न सिर्फ पैसे बर्बाद होंगे, बल्कि मानव ऊर्जा जो किसी अन्य तरफ लगाए जाने पर कुछ नई खोज कर सकती है, वह भी बर्बाद होगी।

7. भारत जैसे गरीब राष्ट्र में जहाँ एक ओर लोगों की न्यूनतम बुनियादी मानवीय आवश्यकताएँ यथा भोजन, वस्त्र, आवास तक उपलब्ध नहीं है, वहीं दूसरी ओर इतने रुपए चंद्रयान-I जैसी अलाभकारी योजनाओं पर खर्च किए जाएँ, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।

अंततः इतना ही कहा जा सकता है कि चर्चित चंद्रयान-I अभियान अनावश्यक एवं अनुचित है और हमारे नीति निर्धारकों को इस प्रकार के अनावश्यक कार्यों से परहेज करना चाहिए।

7.  उद्घोषणा/कार्यक्रम प्रस्तुति

उद्घोषणा करना भी एक विशेष कला है। एक कुशल मंच संचालक सभी कार्यक्रमों में जान फूंक सकता है। उद्घोषणा वह कला है, जिसके आधार पर दर्शकों व श्रोताओं की रुचि व जिज्ञासा को बनाए रखा जा सकता है। उद्घोषक के पास हाज़िरजवाबी, प्रेरक प्रसंगों का भंडार तथा हास्य प्रसंगों का भंडार होना चाहिए।
उद्घोषणा करते वक्त निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  • उद्घोषक को सुखद और शालीन वेशभूषा में मंच पर आना चाहिए।
  • उसके हाथों में फाइल और पेन होना चाहिए।
  • उसके पास प्रस्तुत होने वाले सभी कार्यक्रमों की पूरी जानकारी होनी चाहिए।
  • उद्घोषक को यह भी जान लेना चाहिए कि प्रस्तुत होने वाले कार्यक्रम का मुख्य भाव या विषय क्या है? उद्घोषक को कार्यक्रम पेश होने से पहले वैसी ही भूमिका देनी चाहिए।
  • कार्यक्रम की सफल प्रस्तुति के बाद मंच से उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। वह प्रशंसा ऐसी हो कि श्रोताओं के मन में जो भाव चल रहे हों, लगभग उसी को कहना चाहिए।
  • उद्घोषक ही श्रोताओं से तालियाँ बजवाता है तथा कलाकारों व श्रोताओं का मनोबल ऊँचा रखता है। उसे कार्यक्रम की प्रशंसा से ऐसा माहौल बनाना चाहिए, जिससे हॉल तालियों से गूंज उठे।
  • यदि उद्घोषक को मशहूर कवियों या विचारकों की छोटी-छोटी काव्य पंक्तियाँ, सूक्तियाँ या शेर आदि याद हों और वह उचित अवसर पर उन्हें कुशलता से सुना दे तो कार्यक्रम का रंग ही कुछ और हो जाता है।
  • उद्घोषक का मुख्य काम होता है-प्रस्तुत होने वाले कार्यक्रमों का परिचय देना और उनका आनंद लेने के लिए श्रोताओं को तैयार करना। इसके लिए उसे अलग से समय नहीं लेना चाहिए।
  • उद्घोषक को कम-से-कम बोलना चाहिए। दो कार्यक्रमों के बीच में आधे मिनट से दो मिनट का जो खाली समय होता है, उसे बस उसी का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
  • उद्घोषक की आवाज़ सुरीली होनी चाहिए।
  • उद्घोषक तथा समाचार वाचक में अंतर स्पष्ट होना चाहिए।
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फ़ीचर लेखन | class 12th | Hindi कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन ncert solution

Class 12 Hindi फ़ीचर लेखन

प्रश्नः 1.
फ़ीचर की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तरः

फ़ीचर पत्रकारिता की अत्यंत आधुनिक विधा है। भले ही समाचार पत्रों में समाचार की प्रमुखता अधिक होती है लेकिन एक समाचार-पत्र की प्रसिद्धि और उत्कृष्टता का आधार समाचार नहीं होता बल्कि उसमें प्रकाशित ऐसी सामग्री से होता है जिसका संबंध न केवल जीवन की परिस्थितियों और परिवेश से संबंधित होता है प्रत्युत् वह जीवन की विवेचना भी करती है। समाचारों के अतिरिक्त समाचार-पत्रों में मुख्य रूप से जीवन की नैतिक व्याख्या के लिए ‘संपादकीय’ एवं जीवनगत् यथार्थ की भावात्मक अभिव्यक्ति के लिए ‘फ़ीचर’ लेखों की उपयोगिता असंदिग्ध है।

समाचार एवं संपादकीय में सूचनाओं को सम्प्रेषित करते समय उसमें घटना विशेष का विचार बिंदु चिंतन के केंद्र में रहता है लेकिन समाचार-पत्रों की प्रतिष्ठा और उसे पाठकों की ओर आकर्षित करने के लिए लिखे गए ‘फ़ीचर’ लेखों में वैचारिक चिंतन के साथ-साथ भावात्मक संवेदना का पुट भी उसमें विद्यमान रहता है। इसी कारण समाचार-पत्रों में उत्कृष्ट फ़ीचर लेखों के लिए विशिष्ट लेखकों तक से इनका लेखन करवाया जाता है। इसलिए किसी भी समाचार-पत्र की लोकप्रियता का मुख्य आधार यही फ़ीचर होते हैं। इनके द्वारा ही पाठकों की रुचि उस समाचार-पत्र की ओर अधिक होती है जिसमें अधिक उत्कृष्ट, रुचिकर एवं ज्ञानवर्धक फ़ीचर प्रकाशित किए जाते हैं।

‘फ़ीचर’ का स्वरूप कुछ सीमा तक निबंध एवं लेख से निकटता रखता है, लेकिन अभिव्यक्ति की दृष्टि से इनमें भेद होने के कारण इनमें पर्याप्त भिन्नता स्पष्ट दिखाई देती है। जहाँ ‘निबंध एवं लेख’ विचार और चिंतन के कारण अधिक बोझिल और नीरस बन जाते हैं वहीं ‘फ़ीचर’ अपनी सरस भाषा और आकर्षण शैली में पाठकों को इस प्रकार अभिभूत कर देते
हैं कि वे लेखक को अभिप्रेत विचारों को सरलता से समझ पाते हैं।

प्रश्नः 2.
फ़ीचर का स्वरूप बताइए।
उत्तरः

‘फ़ीचर’ (Feature) अंग्रेजी भाषा का शब्द है। इसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के फैक्ट्रा (Fectura) शब्द से हुई है। विभिन्न
शब्दकोशों के अनुसार इसके लिए अनेक अर्थ हैं, मुख्य रूप से इसके लिए स्वरूप, आकृति, रूपरेखा, लक्षण, व्यक्तित्व आदि अर्थ प्रचलन में हैं। ये अर्थ प्रसंग और संदर्भ के अनुसार ही प्रयोग में आते हैं। अंग्रेज़ी के फ़ीचर शब्द के आधार पर ही हिंदी में भी ‘फ़ीचर’ शब्द को ही स्वीकार लिया गया है। हिंदी के कुछ विद्वान इसके लिए ‘रूपक’ शब्द का प्रयोग भी करते हैं लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में वर्तमान में ‘फ़ीचर’ शब्द ही प्रचलन में है।

विभिन्न विदवानों ने ‘फ़ीचर’ शब्द को व्याख्यायित करने का प्रयास किया है, लेकिन उसकी कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। फिर भी कतिपय विद्वानों की परिभाषाओं में कुछ एक शब्दों में फेरबदल कर देने मात्र से सभी किसी-न-किसी सीमा तक एक समान अर्थ की अभिव्यंजना ही करते हैं। विदेशी पत्रकार डेनियल आर० विलियमसन ने अपनी पुस्तक ‘फ़ीचर राइटिंग फॉर न्यूजपेपर्स’ में फ़ीचर शब्द पर प्रकाश डालते हुए अपना मत दिया है कि-“फ़ीचर ऐसा रचनात्मक तथा कुछ-कुछ स्वानुभूतिमूलक लेख है, जिसका गठन किसी घटना, स्थिति अथवा जीवन के किसी पक्ष के संबंध में पाठक का मूलतः मनोरंजन करने एवं सूचना देने के उद्देश्य से किया गया हो।” इसी तरह डॉ० सजीव भानावत का कहना है-“फ़ीचर वस्तुतः भावनाओं का सरस, मधुर और अनुभूतिपूर्ण वर्णन है।

फ़ीचर लेखक गौण है, वह एक माध्यम है जो फ़ीचर द्वारा पाठकों की जिज्ञासा, उत्सुकता और उत्कंठा को शांत करता हुआ समाज की विभिन्न प्रवृत्तियों का आकलन करता है। इस प्रकार फ़ीचर में सामयिक तथ्यों का यथेष्ट समावेश होता ही है, साथ ही अतीत की घटनाओं तथा भविष्य की संभावनाओं से भी वह जुड़ा रहता है। समय की धड़कनें इसमें गूंजती हैं।” इस विषय पर हिंदी और अन्य भाषाओं के अनेक विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाओं और मतों को दृष्टिगत रखने के उपरांत कहा जा सकता है कि किसी स्थान, परिवेश, वस्तु या घटना का ऐसा शब्दबद्ध रूप, जो भावात्मक संवेदना से परिपूर्ण, कल्पनाशीलता से युक्त हो तथा जिसे मनोरंजक और चित्रात्मक शैली में सहज और सरल भाषा द्वारा अभिव्यक्त किया जाए, फ़ीचर कहा जाता है।

‘फ़ीचर’ पाठक की चेतना को नहीं जगाता बल्कि वह उसकी भावनाओं और संवेदनाओं को उत्प्रेरित करता है। यह यथार्थ की वैयक्तिक अनुभूति की अभिव्यक्ति है। इसमें लेखक पाठक को अपने अनुभव से समाज के सत्य का भावात्मक रूप में परिचय कराता है। इसमें समाचार दृश्यात्मक रूप में पाठक के सामने उभरकर आ जाता है। यह सूचनाओं को सम्प्रेषित करने का ऐसा साहित्यिक रूप है जो भाव और कल्पना के रस से आप्त होकर पाठक को भी इसमें भिगो देता है।

प्रश्नः 3.
फ़ीचर का महत्त्व लिखिए।
उत्तरः

प्रत्येक समाचार-पत्र एवं पत्रिका में नियमित रूप से प्रकाशित होने के कारण फ़ीचर की उपयोगिता स्वतः स्पष्ट है। समाचार की तरह यह भी सत्य का साक्षात्कार तो कराता ही है लेकिन साथ ही पाठक को विचारों के जंगल में भी मनोरंजन और औत्सुक्य के रंग बिरंगे फूलों के उपवन का भान भी करा देता है। फ़ीचर समाज के विविध विषयों पर अपनी सटीक टिप्पणियाँ देते हैं। इन टिप्पणियों में लेखक का चिंतन और उसकी सामाजिक उपादेयता प्रमुख होती है।

लेखक फ़ीचर के माध्यम से प्रतिदिन घटने वाली विशिष्ट घटनाओं और सूचनाओं को अपने केंद्र में रखकर उस पर गंभीर चिंतन करता है। उस गंभीर चिंतन की अभिव्यक्ति इस तरह से की जाती है कि पाठक उस सूचना को न केवल प्राप्त कर लेता है बल्कि उसमें केंद्रित समस्या का समाधान खोजने के लिए स्वयं ही बाध्य हो जाता है। फ़ीचर का महत्त्व केवल व्यक्तिगत नहीं होता, बल्कि यह सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी समाज के सामने अनेक प्रश्न उठाते हैं और उन प्रश्नों के उत्तर के रूप में अनेक वैचारिक बिंदुओं को भी समाज के सामने रखते हैं।

वर्तमान समय में फ़ीचर की महत्ता इतनी अधिक बढ़ गयी है कि विविध विषयों पर फ़ीचर लिखने के लिए समाचार-पत्र उन विषयों के विशेषज्ञ लेखकों से अपने पत्र के लिए फ़ीचर लिखवाते हैं जिसके लिए वह लेखक को अधिक पारिश्रमिक भी देते हैं। आजकल अनेक विषयों में अपने-अपने क्षेत्र में लेखक क्षेत्र से जुड़े लेखकों की माँग इस क्षेत्र में अधिक है लेकिन इसमें साहित्यिक प्रतिबद्धता के कारण वही फ़ीचर लेखक ही सफलता की ऊँचाईयों को छू सकता है जिसकी संवेदनात्मक अनुभूति की प्रबलता और कल्पना की मुखरता दूसरों की अपेक्षा अधिक हो।

प्रश्नः 4.
फ़ीचर कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तरः

फ़ीचर विषय, वर्ग, प्रकाशन, प्रकृति, शैली, माध्यम आदि विविध आधारों पर अनेक प्रकार के हो सकते हैं। पत्रकारिता के
क्षेत्र में जीवन के किसी भी क्षेत्र की कोई भी छोटी-से-छोटी घटना आदि समाचार बन जाते हैं। इस क्षेत्र में जितने विषयों के आधार पर समाचार बनते हैं उससे कहीं अधिक विषयों पर फ़ीचर लेखन किया जा सकता है। विषय-वैविध्य के कारण इसे कई भागों-उपभागों में बाँटा जा सकता है। विवेकी राय, डॉ० हरिमोहन, डॉ० पूरनचंद टंडन आदि कतिपय विद्वानों ने फ़ीचर के अनेक रूपों पर प्रकाश डाला है। उनके आधार पर फ़ीचर के निम्नलिखित प्रकार हो सकते हैं –

सामाजिक सांस्कृतिक फ़ीचर – इसके अंतर्गत सामाजिक संबंधी जीवन के अंतर्गत रीति-रिवाज, पर परंपराओं, त्योहारों, मेलों, कला, खेल-कूद, शैक्षिक, तीर्थ, धर्म संबंधी, सांस्कृतिक विरासतों आदि विषयों को रखा जा सकता है।

घटनापरक फ़ीचर – इसके अंतर्गत युद्ध, अकाल, दंगे, दुर्घटनायें, बीमारियाँ, आंदोलन आदि से संबंधित विषयों को रखा जा सकता है। प्राकृतिक फ़ीचर-इसके अंतर्गत प्रकृति संबंधी विषयों जैसे पर्वतारोहण, यात्राओं, प्रकृति की विभिन्न छटाओं, पर्यटन स्थलों आदि को रखा जा सकता है।

राजनीतिक फ़ीचर – इसके अंतर्गत राजनीतिक गतिविधियों, घटनाओं, विचारों, व्यक्तियों आदि से संबंधित विषयों को रखा जा सकता है।

साहित्यिक फ़ीचर – इसके अंतर्गत साहित्य से संबंधित गतिविधियों, पुस्तकों, साहित्यकारों आदि विषयों को रखा जा सकता है।

प्रकीर्ण फ़ीचर – जिन विषयों को ऊपर दिए गए किसी भी वर्ग में स्थान नहीं मिला ऐसे विषयों को प्रकीर्ण फ़ीचर के अंतर्गत रखा जा सकता है। लेकिन उपर्युक्त विषयों के विभाजन और विषय वैविध्य को दृष्टिगत रखा जाए तो फ़ीचर को अधिकांश विद्वानों ने दो भागों में बाँटा है जिसके अंतर्गत उपर्युक्त सभी विषयों का समावेश हो जाता है –

समाचार फ़ीचर अथवा तात्कालिक फ़ीचर – तात्कालिक घटने वाली किसी घटना पर तैयार किए गए समाचार पर आधारित फ़ीचर को समाचारी या तात्कालिक फ़ीचर कहा जाता है। इसके अंतर्गत तथ्य अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं, जैसे कुरुक्षेत्र में एक बच्चे के 60 फुट गहरे गड्ढे में गिरने की घटना एक समाचार है लेकिन उस बच्चे द्वारा लगातार 50 घंटे की संघर्ष गाथा का भावात्मक वर्णन उसका समाचारी-फ़ीचर है।

विशिष्ट फ़ीचर – जहाँ समाचारी फ़ीचर में तत्काल घटने वाली घटनाओं आदि का महत्त्व अधिक होता है वहीं विशिष्टफ़ीचर में घटनाओं को बीते भले ही समय क्यों न हो गया हो लेकिन उनकी प्रासंगिकता हमेशा बनी रहती है। जैसे प्रकृति की छटाओं या ऋतुओं, ऐतिहासिक स्थलों, महापुरुषों एवं लम्बे समय तक याद रहने वाली घटनाओं आदि पर लिखे गए लेखक किसी भी समय प्रकाशित किए जा सकते हैं। इन विषयों के लिए लेखक विभिन्न प्रयासों से सामग्री का संचयन कर उन पर लेख लिख सकता है। ऐसे फ़ीचर समाचार पत्रों के लिए प्राण-तत्त्व के रूप में होते हैं। इनकी प्रासंगिकता हमेशा बनी रहती है इसलिए बहुत से पाठक इनका संग्रहण भी करते हैं। इस तरह के फ़ीचर किसी दिन या सप्ताह विशेष में अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं; जैसे-दीपावली या होली पर्व पर इन त्यौहारों से संबंधित पौराणिक या ऐतिहासिक संदर्भो को लेकर लिखे फ़ीचर, महात्मा गांधी जयंती या सुभाषचंद्र बोस जयंती पर गांधी जी अथवा सुभाषचंद्र बोस के जीवन और विचारों पर प्रकाश डालने वाले फ़ीचर आदि।

प्रश्नः 5.
फ़ीचर की विशेषताएँ बताइए।
उत्तरः

फ़ीचर लेखन के विविध पक्षों एवं लेखक की रचना-प्रक्रिया से संबंधित पहलुओं पर प्रकाश डालने से पहले फ़ीचर की विशेषताओं के बारे में जान लेना आवश्यक है। अपनी विशेषताओं के कारण ही एक फ़ीचर समाचार, निबंध या लेख जैसी विधाओं से भिन्न अपनी पहचान बनाता है। एक अच्छे फ़ीचर में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए –

सत्यता या तथ्यात्मकता – किसी भी फ़ीचर लेख के लिए सत्यता या तथ्यात्मकता का गुण अनिवार्य है। तथ्यों से रहित किसी अविश्वनीय सूत्र को आधार बनाकर लिखे गए लेख फ़ीचर के अंतर्गत नहीं आते हैं। कल्पना से युक्त होने के बावजूद भी फ़ीचर में विश्वसनीय सूत्रों को लेख का माध्यम बनाया जाता है। यदि वे तथ्य सत्य से परे हैं या उनकी प्रामाणिकता संदिग्ध है तो ऐसे तथ्यों पर फ़ीचर नहीं लिखा जाना चाहिए।

गंभीरता एवं रोचकता–फ़ीचर में भावों और कल्पना के आगमन से उसमें रोचकता तो आ जाती है किंतु ऐसा नहीं कि वह विषय के प्रति गंभीर न हो। समाज की सामान्य जनता के सामने किसी भी सूचना को आधार बनाकर या विषय को लक्ष्य में रखकर फ़ीचर प्रस्तुत किया जाता है तो वह फ़ीचर लेखक विषय-वस्तु को केंद्र में रखकर उसके विभिन्न पहलुओं पर विचार करता है। उसके गंभीर चिंतन के परिणामों को ही फ़ीचर द्वारा रोचक शैली में संप्रेषित किया जाता है।

मौलिकता-सामान्यतः एक ही विषय को आधार बनाकर अनेक लेखक उस पर फ़ीचर लिखते हैं। उनमें से जो फ़ीचर अपनी मौलिक पहचान बना पाने में सफल होता है वही फ़ीचर एक आदर्श फ़ीचर कहलाता है। विषय से संबंधित विभिन्न तथ्यों का संग्रहण और विश्लेषण करते हुए फ़ीचर लेखक की अपनी दृष्टि अधिक महत्त्वपूर्ण होती है लेकिन साथ ही वह सामाजिक एवं राष्ट्रीय दृष्टि से भी उन तथ्यों को परखता है जिससे उसकी प्रामाणिकता अधिक सशक्त हो जाती है। लेखक जितने अधिक तथ्यों को गहनता से विश्लेषित कर उसे अपनी दृष्टि और शैली से अभिव्यक्ति प्रदान करता है उतना ही उसका फ़ीचर लेख मौलिक कहलाता है।

सामाजिक दायित्व बोध-कोई भी रचना निरुद्देश्य नहीं होती। उसी तरह फ़ीचर भी किसी न किसी विशिष्ट उद्देश्य से युक्त होता है। फ़ीचर का उद्देश्य सामाजिक दायित्व बोध से संबद्ध होना चाहिए क्योंकि फ़ीचर समाज के लिए ही लिखा जाता है इसलिए समाज के विभिन्न वर्गों पर उसका प्रभाव पड़ना अपेक्षित है। इसलिए फ़ीचर सामाजिक जीवन के जितना अधिक निकट होगा और सामाजिक जीवन की विविधता को अभिव्यंजित करेगा उतना ही अधिक वह सफल होगा।

संक्षिप्तता एवं पूर्णता–फ़ीचर लेख का आकार अधिक बड़ा नहीं होना चाहिए। कम-से-कम शब्दों में गागर में सागर भरने की कला ही फ़ीचर लेख की प्रमुख विशेषता है लेकिन फ़ीचर लेख इतना छोटा भी न हो कि वह विषय को पूर्ण रूप से अभिव्यक्त कर पाने में सक्षम ही न हो। विषय से संबंधित बिंदुओं में क्रमबद्धता और तारतम्यता बनाते हुए उसे आगे बढ़ाया जाए तो फ़ीचर स्वयं ही अपना आकार निश्चित कर लेता है।

चित्रात्मकता-फ़ीचर सीधी-सपाट शैली में न होकर चित्रात्मक होना चाहिए। सीधी और सपाट शैली में लिखे गए फ़ीचर पाठक पर अपेक्षित प्रभाव नहीं डालते। फ़ीचर को पढ़ते हुए पाठक के मन में उस विषय का एक ऐसा चित्र या बिम्ब उभरकर आना चाहिए जिसे आधार बनाकर लेखक ने फ़ीचर लिखा है।

लालित्ययुक्त भाषा – फ़ीचर की भाषा सहज, सरल और कलात्मक होनी चाहिए। उसमें बिम्बविधायिनी शक्ति द्वारा ही उसे रोचक बनाया जा सकता है। इसके लिए फ़ीचर की भाषा लालित्यपूर्ण होनी चाहिए। लालित्यपूर्ण भाषा द्वारा ही गंभीर से गंभीर विषय को रोचक एवं पठनीय बनाया जा सकता है। उपयुक्त शीर्षक-एक उत्कृष्ट फ़ीचर के लिए उपयुक्त शीर्षक भी होना चाहिए। शीर्षक ऐसा होना चाहिए जो फ़ीचर के विषय, भाव या संवेदना का पूर्ण बोध करा पाने में सक्षम हो। संक्षिप्तता एवं सारगर्भिता फ़ीचर के शीर्षक के अन्यतम गुण हैं। फ़ीचर को आकर्षक एवं रुचिकर बनाने के लिए काव्यात्मक, कलात्मक, आश्चर्यबोधक, भावात्मक, प्रश्नात्मक आदि शीर्षकों को रखा जाना चाहिए।

प्रश्नः 6.
फ़ीचर लेखक में किन-किन गुणों का होना आवश्यक है?
उत्तरः
फ़ीचर लेखक में निम्नलिखित योग्यताओं का होना आवश्यक है।

विशेषज्ञता-फ़ीचर लेखक जिस विषय को आधार बनाकर उस पर लेख लिख रहा है उसमें उसका विशेषाधिकार होना चाहिए। चुनौतीपूर्ण होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक विषय पर न तो शोध कर सकता है और न ही उस विषय की बारीकियों को समझ सकता है। इसलिए विषय से संबंधित विशेषज्ञ व्यक्ति को अपने क्षेत्राधिकार के विषय पर लेख लिखने चाहिए।

बहुज्ञता-फ़ीचर लेखक को बहुज्ञ भी होना चाहिए। उसे धर्म, दर्शन, संस्कृति, समाज, साहित्य, इतिहास आदि विविध विषयों की समझ होनी चाहिए। उसके अंतर्गत अध्ययन की प्रवृत्ति भी प्रबल होनी चाहिए जिसके द्वारा वह अनेक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न लेखक अपने फ़ीचर को आकर्षक, प्रभावशाली तथा तथ्यात्मकता से परिपूर्ण बना सकता है।

परिवेश की प्रति जागरूक-फ़ीचर लेखक को समसामयिक परिस्थितियों के प्रति सदैव जागरूक रहना चाहिए। अपनी सजगता से ही वह जीवन की घटनाओं को सक्ष्मता से देख, समझ और महसूस कर पाता है जिसके आधार पर वह एक अच्छा फ़ीचर तैयार कर सकने योग्य विषय को ढूँढ लेता है। समाज की प्रत्येक घटना आम आदमी के लिए सामान्य घटना हो सकती है लेकिन जागरूक लेखक के लिए वह घटना अत्यंत महत्त्वपूर्ण बन सकती है।

आत्मविश्वास-फ़ीचर लेखक को अपने ऊपर दृढ़ विश्वास होना चाहिए। उसे किसी भी प्रकार के विषय के भीतर झाँकने और उसकी प्रवृत्तियों को पकड़ने की क्षमता के लिए सबसे पहले स्वयं पर ही विश्वास करना होगा। अपने ज्ञान और अनुभव पर विश्वास करके ही वह विषय के भीतर तक झाँक सकता है।

निष्पक्ष दृष्टि-फ़ीचर लेखक के लिए आवश्यक है कि वह जिस उद्देश्य की प्रतिपूर्ति के लिए फ़ीचर लेख लिख रहा है उस विषय के साथ वह पूर्ण न्याय कर सके। विभिन्न तथ्यों और सूत्रों के विश्लेषण के आधार पर वह उस पर अपना निर्णय प्रस्तुत करता है। लेकिन उसका निर्णय विषय के तथ्यों और प्रमाणों से आबद्ध होना चाहिए। उसे अपने निर्णय या दृष्टि को उस पर आरोपित नहीं करना चाहिए। उसे संकीर्ण दृष्टि से मुक्त हो किसी वाद या मत के प्रति अधिक आग्रहशील नहीं रहना चाहिए।

भाषा पर पूर्ण अधिकार-फ़ीचर लेखक का भाषा पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए। भाषा के द्वारा ही वह फ़ीचर को लालित्यता और मधुरता से युक्त कर सकता है। उसकी भाषा माधुर्यपूर्ण और चित्रात्मक होनी चाहिए। इससे पाठक को भावात्मक रूप से अपने साथ जोड़ने में लेखक को कठिनाई नहीं होती। विषय में प्रस्तुत भाव और विचार के अनुकूल सक्षम भाषा में कलात्मक प्रयोगों के सहारे लेखक अपने मंतव्य तक सहजता से पहँच सकता है।

प्रश्नः 7.
फ़ीचर लेखन की तैयारी कैसे करें।
उत्तरः

फ़ीचर लेखन से पूर्व लेखक को निम्नलिखित तैयारियाँ करनी पड़ती हैं।
विषय चयन – फ़ीचर लेखन के विविध प्रकार होने के कारण इसके लिए विषय का चयन सबसे प्रथम आधार होता है। उत्कृष्ट फ़ीचर लेखन के लिए फ़ीचर लेखक को ऐसे विषय का चयन करना चाहिए. जो रोचक और ज्ञानवर्धक होने के साथ-साथ उसकी अपनी रुचि का भी हो। यदि लेखक की रुचि उस विषय क्षेत्र में नहीं होगी तो वह उसके साथ न्याय नहीं कर पाएगा। रुचि के साथ उस विषय में लेखक की विशेषज्ञता भी होनी चाहिए अन्यथा वह महत्त्वपूर्ण से महत्त्वपूर्ण तथ्यों को भी छोड़ सकता है और गौण-से-गौण तथ्यों को भी फ़ीचर में स्थान दे सकता है। इससे विषय व्यवस्थित रूप से पाठक के सामने नहीं आ पाएगा।

फ़ीचर का विषय ऐसा होना चाहिए जो समय और परिस्थिति के अनुसार प्रासंगिक हो। नई से नई जानकारी देना समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं का उद्देश्य होता है। इसलिए तत्काल घटित घटनाओं को आधार बनाकर ही लेखक को विषय का चयन करना चाहिए। त्यौहारों, जयंतियों, खेलों, चुनावों, दुर्घटनाओं आदि जैसे विशिष्ट अवसरों पर लेखक को विशेष रूप से संबंधित विषयों का ही चयन करना चाहिए। लेखक को विषय का चयन करते समय पत्र-पत्रिका के स्तर, वितरण-क्षेत्र और पाठक-वर्ग की रुचि का भी ध्यान रखना चाहिए। दैनिक समाचार-पत्रों में प्रतिदिन के जीवन से जुड़े फ़ीचर विषयों की उपयोगिता अधिक होती है। इसलिए समाचार-पत्र के प्रकाशन अवधि के विषय में भी लेखक को सोचना चाहिए।

सामग्री संकलन-फ़ीचर के विषय निर्धारण के उपरांत उस विषय से संबंधित सामग्री का संकलन करना फ़ीचर लेखक का अगला महत्त्वपूर्ण कार्य है। जिस विषय का चयन लेखक द्वारा किया गया है उस विषय के संबंध में विस्तृत शोध एवं अध्ययन के द्वारा उसे विभिन्न तथ्यों को एकत्रित करना चाहिए। सामग्री संकलन के लिए वह विभिन्न माध्यमों का सहारा ले सकता है। इसके लिए उसे विषय से संबंधित व्यक्तियों के साक्षात्कार लेने से फ़ीचर लेखक के लेख की शैली अत्यंत प्रभावशाली बन जाएगी।

फ़ीचर लेखक अपने लेख को अत्यधित पठनीय और प्रभावी बनाने के लिए साहित्य की प्रमुख गद्य विधाओं में से किसी का सहारा ले सकता है। आजकल कहानी, रिपोर्ताज, डायरी, पत्र, लेख, निबंध, यात्रा-वृत्त आदि आधुनिक विधाओं में अनेक फ़ीचर लेख लिखे जा रहे हैं। पाठक की रुचि और विषय की उपयोगिता को दृष्टिगत रखकर फ़ीचर लेखक इनमें से किसी एक या मिश्रित रूप का प्रयोग कर सकता है।

अंत-फ़ीचर का अंतिम भाग उपसंहार या सारांश की तरह होता है। इसके अंतर्गत फ़ीचर लेखक अपने लेख के अंतर्गत प्रस्तुत की गई विषय-वस्तु के आधार पर समस्या का समाधान, सुझाव या अन्य विचार-सूत्र देकर कर सकता है लेकिन लेखक के लिए यह ध्यान रखना आवश्यक है कि वह अपने दृष्टिकोण या सुझाव को किसी पर अनावश्यक रूप से न थोपे। अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता को ध्यान में रखकर वह उस लेख का समापन इस तरह से करे कि वह पाठक की जिज्ञासा को शांत भी कर सके और उसे मानसिक रूप से तृप्ति भी प्रदान हो। अंत को आकर्षक बनाने के लिए फ़ीचर लेखक चाहे तो किसी कवि की उक्ति या विद्वान के विचार का भी सहारा ले सकता है। इसका कोई निश्चित नियम नहीं है। बस अंत ऐसा होना चाहए कि विषय-वस्तु को समझाने के लिए कुछ शेष न रहे।

फ़ीचर लेखक को अपना लेख लिखने के उपरान्त एक बार पुनः उसका अध्ययन करके यह देखना चाहिए कि कोई ऐसी बात उस लेख के अंतर्गत तो नहीं आई जो अनावश्यक या तथ्यों से परे हो। अगर ऐसा है तो ऐसे तथ्यों को तुरंत लेख से बाहर निकालकर पुनः लेख की संरचना को देखना चाहिए। अंत में अपने फ़ीचर को आकर्षक बनाने के लिए फ़ीचर लेखक उसकी विषय-वस्तु को इंगित करने वाले उपयुक्त ‘शीर्षक’ का निर्धारण करता है। शीर्षक ऐसा होना चाहिए कि पाठक जिसे पढ़ते ही उस फ़ीचर को पढ़ने के लिए आकर्षित हो जाए। इसके लिए नाटकीय, काव्यात्मक, आश्चर्यबोधक, प्रश्नसूचक आदि विभिन्न रूपों के शीर्षकों का सहारा फ़ीचर लेखक ले सकता है।

अपने लेखक को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए फ़ीचर लेखक अपने लेख के साथ विषय से संबंधित सुंदर और उत्कृष्ट छायाचित्रों का चयन भी कर सकता है। इसके लिए चाहे तो वह स्वयं किसी चित्र को बनाकर या प्रासंगित चित्रों को स्वयं ही कैमरे से खींचकर उसे लेख के साथ छापने के लिए प्रस्तुत कर सकता है। छायाचित्रों से फ़ीचर में जीवंतता और आकर्षण का भाव भर जाता है। छायाचित्रों से युक्त फ़ीचर विषय-वस्तु को प्रतिपादित करने वाले और उसे परिपूर्ण बनाने में सक्षम होने चाहिए।

नीचे फ़ीचर लेखन के तीन उदाहरण आपके लिए प्रस्तुत किए जा रहे हैं जिनसे आप फ़ीचर लेखन की संरचना को समझ सकते हैं।

उदाहरण

प्रश्नः 1.
‘नींद क्यूँ रात भर नहीं आती’
उत्तरः
आजकल महानगरों में अनिद्रा यानि की नींद न आने की शिकायत रोज़ बढ़ती जा रही है। अक्सर आपको आपके परिचित मित्र शिकायत करते मिल जायेंगे कि उन्हें ठीक से नींद नहीं आती। रात भर वे या तो करवटें बदलते रहते हैं या घड़ी की ओर ताकते रहते हैं। कुछेक तो अच्छी नींद की चाह में नींद की गोली का सहारा भी लेते हैं।

नींद न आना, बीमारी कम, आदत ज़्यादा लगती है। वर्तमान युग में मनुष्य ने अपने लिए आराम की ऐसी अनेक सुविधाओं का विकास कर लिया है कि अब ये सुविधाएँ ही उसका आराम हराम करने में लगी हुई हैं। सूरज को उगते देखना तो शायद अब हमारी किस्मत में ही नहीं है। ‘जल्दी सोना’ और ‘जल्दी उठना’ का सिद्धांत अब बीते दिनों की बात हो चला है या यूँ कहिए कि समय के साथ वह भी ‘आऊटडेटेड’ हो गई है। देर रात तक जागना और सुबह देर से उठना अब दिनचर्या कम फ़ैशन ज्यादा हो गया है। लोग ये कहते हुए गर्व का अनुभव करते हैं कि रात को देर से सोया था जल्दी उठ नहीं पाया। जो बात संकोच से कही जानी चाहिए थी अब गर्व का प्रतीक हो गयी है। एक ज़माना था जब माता-पिता अपने बच्चों को सुबह जल्दी उठने के संस्कार दिया करते थे। सुबह जल्दी उठकर घूमना, व्यायाम करना, दूध लाना आदि ऐसे कर्म थे जो व्यक्ति को सुबह जल्दी उठने की प्रेरणा देते ही थे साथ ही उससे मेहनतकश बनने की प्रेरणा भी मिलती थी। मगर धीरे-धीरे आधुनिक सुख-सुविधाओं ने व्यक्ति को काहित बना दिया और इस काहिली में उसे अपनी सार्थकता अनुभव होने लगी है।

आराम की इस मनोवृत्ति ने मनुष्य को मेहनत से बेज़ार कर दिया है जिसका परिणाम यह हुआ है कि मनुष्य की रोग-प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगी है और वह छोटी-छोटी बीमारियों के लिए भी दवाईयाँ खाने की कोशिश करता है जबकि इन बीमारियों का ईलाज केवल दिनचर्या-परिवर्तन से ही हो सकता है। नींद न आना ऐसी ही एक बीमारी है जो आधुनिक जीवन की एक समस्या है। हमारी आराम तलबी ने हमें इतना बेकार कर दिया है कि हम सोने में भी कष्ट का अनुभव करते हैं। रात भर करवटें बदलते हैं और दिन-भर ऊँघते रहते हैं। नींद न आने के लिए मुख्य रूप से हमारी मेहनत न करने की मनोवृत्ति जिम्मेदार है।

हम पचास गज की दूरी भी मोटर कार या स्कूटर से तय करने की इच्छा रखते हैं। सुबह घूमना हमें पसंद नहीं है, सीधे बैठकर लिखना या पढ़ना हमारे लिए कष्ट साध्य है। केवल एक मंजिल चढ़ने के लिए हमें लिफ्ट का सहारा लेना पड़ता है। ये हमारी आरामतलबी की इंतहा है। इसी आराम ने हमें सुखद नींद से कोसों दूर कर दिया है। नींद एक सपना होती जा रही है। अच्छी नींद लेने के लिए हमें विशेषज्ञों की राय की आवश्यकता पड़ने लगी है जबकि इसका आसान-सा नुस्खा हमारी दादी और नानी ने ही बता दिया था कि खूब मेहनत करो, जमकर खाओ और चादर तानकर सो जाओ।

हज़ारों लाखों रुपये जोड़कर भी नींद नहीं खरीदी जा सकती। नींद तो मुफ्त मिलती है –कठोर श्रम से। शरीर जितना थकेगा, जितना काम करेगा, उतना ही अधिक आराम उसे मिलेगा। कुछ को नरम बिस्तरों और एयर कंडीश्नर कमरों में नींद नहीं आती और कुछ चिलचिलाती धूप में भी नुकीले पत्थरों पर घोड़े बेचकर सो जाते हैं। इसीलिए अच्छी नींद का एक ही नुस्खा है वो है-मेहनत-मेहनत-मेहनत। दिन-भर जी-तोड़ मेहनत करने वाले इसी नुस्खे को आजमाते हैं। नींद पाने के लिए हमें भी उन जैसा ही होना होगा। किसी शायर ने क्या खूब कहा है –

सो जाते हैं फुटपाथ पे अखबार बिछाकर,
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।

(लेखक : हरीश अरोड़ा)

प्रश्नः 2.
भारतीय साहित्य की विशेषताओं पर एक फ़ीचर लिखिए।
उत्तरः
समस्त भारतीय साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता, उसके मूल में स्थित समन्वय की भावना है। उसकी यह विशेषता इतनी प्रमुख है कि केवल इसके बल पर संसार के अन्य साहित्यों के सामने वह अपनी मौलिकता का पताका फहराता रहा है और अपने स्वतंत्र अस्तित्व की सार्थकता प्रमाणित करता रहा है। जिस तरह धर्म के क्षेत्र में भारत के ज्ञान, भक्ति तथा कर्म के समन्वय प्रसिद्ध हैं, ठीक उसी तरह साहित्य तथा अन्य कलाओं में भी भारतीय प्रकृति समन्वय की ओर रही है। साहित्यिक समन्वय से हमारा तात्पर्य साहित्य में प्रदर्शित सुख-दुख, उत्थान-पतन, हर्ष-विषाद आदि विरोधी तथा विरपरीत भावों के सामान्यीकरण तथा एक अलौकिक आनंद में उनके विलीन हो जाने से है। साहित्य के किसी भी अंग को लेकर देखिए? सर्वत्र यही समन्वय दिखाई देगा। भारतीय नाटकों में ही सुख और दुख के प्रबल घात-प्रतिघात दिखाए गए हैं, पर सबका अवसान आनंद में ही किया गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारतीयों का ध्येय सदा से जीवन का आदर्श स्वरूप उपस्थित करके उसका आकर्षण बढ़ाने और उसे उन्नत बनाने का रहा है। वर्तमान स्थिति से उसका इतना संबंध नहीं है, जितना भविष्य उत्कर्ष से है। इसीलिए हमारे यहाँ यूरोपीय ढंग के दुखांत नाटक दिखाई नहीं पड़ते हैं।

प्रश्नः 3.
पर्यटन के महत्त्व पर एक फ़ीचर लिखिए।
उत्तरः
पर्यटन करना, घूमना, घुमक्कड़ी का ही आधुनिकतम नाम है। आज के पर्यटन के पीछे भी मनुष्य की घुमक्कड़ प्रवृत्ति ही कार्य कर रही है। आज भी जब वह देश-विदेश के प्रसिद्ध स्थानों की विशेषताओं के बारे में जब सुनता-पढ़ता है, तो उन्हें निकट से देखने, जानने के लिए उत्सुक हो उठता है। वह अपनी सुविधा और अवसर के अनुसार उस ओर निकल पड़ता है। आदिम घुमक्कड़ और आज के पर्यटक में इतना अंतर अवश्य है कि आज पर्यटन उतना कष्ट-साध्य नहीं है जितनी घुमक्कड़ी वृत्ति थी। ज्ञान-विज्ञान के आविष्कारों, अन्वेषणों की जादुई शक्ति के कारण एवं सुलभ साधनों के कारण आज पर्यटन पर निकलने के लिए अधिक सोच-विचार की आवश्यकता नहीं होती। आज तो मात्र सुविधा और संसाधन चाहिए। इतना अवश्य मानना पड़ेगा कि पर्यटक बनने का जोखिम भरा आनंद तो उन पर्यटकों को ही आया होगा जिन्होंने अभावों और विषम परिस्थितियों से जूझते हुए देश-विदेश की यात्राएँ की होगी। फाह्यान, वेनसांग, अलबेरुनी, इब्नबतूता, मार्को पोलो आदि ऐसे ही यात्री थे।

पर्यटन के साधनों की सहज सुलभता के बावजूद आज भी पर्यटकों में पुराने जमाने के पर्यटकों की तरह उत्साह, धैर्य साहसिकता, जोखिम उठाने की तत्परता दिखाई देती है।

आज पर्यटन एक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय उद्योग के रूप में विकसित हो चुका है। इस उद्योग के प्रसार के लिए देश-विदेश में पर्यटन मंत्रालय बनाए गए हैं। विश्वभर में पर्यटकों की सुविधा के लिए बड़े-बड़े पर्यटन केंद्र खुल चुके हैं।

प्रश्नः 4.
आतंकवाद के प्रभाव पर एक फ़ीचर लिखिए।
उत्तरः
इस युग में अतिवाद की काली छाया इतनी छा गई है कि चारों ओर असंतोष की स्थिति पैदा हो रही है। असंतोष की यह अभिव्यक्ति अनेक माध्यमों से होती है। आतंकवाद आज राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए एक अमोघ अस्त्र बन गया है। अपनी बात मनवाने के लिए आतंक उत्पन्न करने की पद्धति एक सामान्य नियम बन चुकी है। आज यदि शक्तिशाली देश कमज़ोर देशों के प्रति उपेक्षा का व्यवहार करता है तो उसके प्रतिकार के लिए आतंकवाद का सहारा लिया जा रहा है। उपेक्षित वर्ग भी अपना अस्तित्व प्रमाणित करने के लिए आतंकवाद का सहारा लेता है।

स्वार्थबदध संकचित दृष्टि ही आतंकवाद की जननी है। क्षेत्रवाद, धर्मांधता, भौगोलिक एवं ऐतिहासिक कारण, सांस्कृतिक टकराव, भाषाई मतभेद, आर्थिक विषमता, प्रशासनिक मशीनरी की निष्क्रियता और नैतिक ह्रास अंततः आतंकवाद के पोषण एवं प्रसार में सहायक बनते हैं। भारत को जिस प्रकार के आतंकवाद से जूझना पड़ रहा है, वह भयावह और चिंतनीय है। यह चिंता इसलिए है क्योंकि उसके मूल में अलगाववादी और विघटनकारी ताकतें काम कर रही हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही देश के विभिन्न भागों में विदेशी शह पाकर आतंकवादी सक्रिय हो उठे थे। इसका दुष्परिणाम यह है कि आज कश्मीर का एक बहुत बड़ा भाग पाकिस्तानी कबाइलियों और उनके देश में आए पाक सैनिकों के हाथ पहुँच गया है। आज भारत का सबसे खूबसूरत हिस्सा पाक अधिकृत कश्मीर कहलाता है।

प्रश्नः 5.
भारतीय संस्कृति की महत्ता अथवा अखंड परंपरा पर एक फ़ीचर लिखिए।
उत्तरः
सामाजिक संस्कारों का दूसरा नाम ही संस्कृति है। कोई भी समाज विरासत के रूप में इसे प्राप्त करता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि संस्कृति एक विशिष्ट जीवन शैली है। संस्कृति ऐसी सामाजिक विरासत है जिसके पीछे एक लंबी परंपरा होती है। भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम तथा महत्त्वपूर्ण संस्कृतियों में से एक है। यह कब और कैसे विकसित हुई? यह कहना कठिन है प्राचीन ग्रंथों के आधार पर इसकी प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है। वेद संसार के प्राचीनतम ग्रंथ हैं। भारतीय संस्कृति के मूलरूप का परिचय हमें वेदों से ही मिलता है। वेदों की रचना ईसा से कई हजार वर्ष पूर्व हुई थी। सिंधु घाटी की सभ्यता का विवरण भी भारतीय संस्कृति की प्राचीनता पर पूर्णरूपेण प्रकाश डालता है। इसका इतना कालजयी और अखंड इतिहास इसे महत्त्वपूर्ण बनाता है। मिस्र, यूनान और रोम आदि देशों की संस्कृतियाँ आज केवल इतिहास बन कर सामने हैं। जबकि भारतीय संस्कृति एक लंबी ऐतिहासिक परंपरा के साथ आज भी निरंतर विकास के मार्ग पर अग्रसर है। इकबाल के शब्दों में कहा जा सकता है कि –

यूनान, मिस्र, रोम, सब मिट गए जहाँ से।
कुछ बात है, कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।।

प्रश्नः 6.
नारी के संदर्भ में कही गई “नारी तू नारायणी” बात पर फ़ीचर लिखिए।
उत्तरः
प्राचीन युग में नारी केवल भोग की वस्तु थी। पुरुष नारी की आशा-आकांक्षाओं के प्रति बहुत उदासीन रहता था। अभागी नारी घर की लक्ष्मण रेखा को पार करने का दुस्साहस करने में बिलकुल असमर्थ थी। नारी को किसी भी क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। नारी की स्थिति जिंदा लाश की तरह थी। वह बच्चे पैदा करने वाली मशीन के अतिरिक्त कुछ और न थी लेकिन आधुनिक युग में नारी ने अपने महत्ता को पहचाना। उसने दासता के बंधनों को तोड़कर स्वतंत्र वातावरण में सांस ली। आधुनिक नारी ने शिक्षा, राजनीति, व्यवसाय आदि विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा प्रदर्शन करके सबको चौंका दिया। इसीलिए आजकल किशोरों की अपेक्षा किशोरियाँ शिक्षा के क्षेत्र में कहीं आगे हैं। वह कला विषयों में ही नहीं बल्कि वाणिज्य और विज्ञान विषयों में भी अत्यंत सफलतापूर्वक शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।

आधुनिक नारी ने राजनीति के क्षेत्र में भी अपनी महत्ता एवं प्रतिभा का परिचय दिया है। भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का कालजयी उदाहरण हमारे सामने है। भारत की राजनीति में ही नहीं बल्कि विश्व की राजनीति में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। वर्तमान समय में मध्य प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान आदि प्रदेशों की बागडोर भी महिला मुख्यमंत्रियों के हाथों में है। इंग्लैंड की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती मारग्रेट थैचर भी एक महिला है। यूरोपीय देशों में नारियाँ किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। हमारे देश की नारियाँ भी प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति करने के लिए दृढ़ संकल्प हैं। आज की नारी नौकरी द्वारा धन का अर्जन करती है। इस प्रकार वह आर्थिक क्षेत्र में भी पुरुष को सहयोग देती है। आधुनिक नारी प्राचीन अंधविश्वास की बेड़ियों से सर्वथा मुक्त हो चुकी है। आज की नारी भावुकता के स्थान पर बौद्धिकता को अधिक प्रश्रय देने लगी है।

आधुनिक नारियाँ नित नए क्षेत्र में कदम रख रही हैं। वे उन क्षेत्रों में मज़बूती से पाँव जमा रही हैं जिन पर कभी पुरुषों का एकाधिकार समझा जाता था। श्रीमती मधु जैन ने नारी की बढ़ती शक्ति के बारे में लिखा है कि-“आधुनिक नारी हवाई जहाज़ उड़ा रही है और कंपनी प्रबंधक पद पर पहुंच रही है।” अब तक केवल पुरुषों का क्षेत्र समझे जाने वाले शेयर बाज़ार में भी वह मौजूद है तो पत्रकारिता में भी। गैराज में वह कार दुरुस्त करती नज़र आती है तो ज़मीन-जायदाद के व्यवसाय में भी वह पीछे नहीं है। एकल परिवारों के बढ़ने से इस नई भारतीय नारी का आविर्भाव हुआ है। जो पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती देती प्रतीत होती है।

प्रश्नः 7.
भ्रष्टाचार की फैलती विष बेल पर फ़ीचर लिखिए।
उत्तरः
आधुनिक युग को यदि भ्रष्टाचार का युग कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रत्येक व्यक्ति भ्रष्टाचार का प्रतीक बनकर रह गया है। सामाजिक धरातल पर देखें तो यही नज़र आता है कि समाज में धन कमाने की लालसा बढ़ती ही जा रही है। प्रत्येक व्यक्ति अधिक धनी बनने के लालच के कारण अनेक प्रकार के अनुचित बुरे अथवा भ्रष्ट आचरण करता है। व्यापारी लोग अधिक धन कमाने के लिए खाने-पीने की सामान्य वस्तुओं में मिलावट करते हैं। सिंथेटिक दूध बेचकर लोग लाखों लोगों के स्वस्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हैं। इस दूध में यूरिया तथा अन्य हानिकारक पदार्थ मिलाए जाते हैं। विभिन्न समाचार चैनलों तथा समाचार पत्रों में बताया गया था कि कोल्ड ड्रिंक्स में भी कीटनाशक जहर मिलाया जा रहा है। नकली दवाइयाँ खाकर लोग अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं। इसी प्रकार फलों और सब्जियों को भी रासायनिक पदार्थों द्वारा धोकर और पकाकर आकर्षक बनाया जाता है।

प्रश्नः 8.
बेरोज़गारी की गंभीर समस्या पर फ़ीचर लिखिए।
उत्तरः
एक ज़माना था कि कोई अपने आपको स्नातक या एम०ए० कहते हुए गर्व से फूला न समाता था लेकिन आज के समय में एम०ए० करने वाला भी बगले झांकने को मजबूर हैं। वह समझ नहीं पाता कि एम०ए० की डिग्री को लेकर क्या करे? आज नौकरी प्राप्त करने के लिए एम० ए० की कोई अहमियत नहीं। नौकरी छोटी हो या बड़ी, सरकारी हो या निजी सब काम को देख रहे हैं, अनुभव को देख रहे हैं, प्रोडक्शन को देख रहे हैं। उनके लिए शिक्षा कोई अर्थ नहीं रखती। सन् 2000 तक तो डिग्रियों की फिर भी कुछ पूछ थी, किंतु इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करते ही शिक्षा के निजीकरण का बोलबाला हो गया। तकनीकी शिक्षा और कंप्यूटर अनिवार्य कर दिए गए। कॉलेज की सैद्धांतिक शिक्षा बिलकुल बेकार हो चुकी है। आज स्थिति यह है कि बी०ए०, एम०ए० किए हुए लड़के लगभग बेकार घूमते हैं। जब तक वे कंप्यूटर, बी०एड० या अन्य कोई व्यावसायिक डिग्री न ले लें, उनके लिए नौकरी के द्वारा बंद ही समझो।

ठीक यही स्थिति बी०कॉम० तथा बी०एस०सी० की भी है। इन्हें भी आजीविका के लिए कार्य-अनुभव या फिर व्यासायिक पाठ्यक्रम से गुजरना पड़ता है। कुछ समय पहले हर छात्र कक्षा दस-बारह तक पढ़ने के बाद कॉलेज में पढ़ने का सपना सँजोता था। उसके लिए शिक्षित होना सुनहरे सपने के समान था। शिक्षित होने के लिए वह आजीविका या व्यावसायिकता को भी नज़रअंदाज कर जाता था, परंतु अब ज़माना बदल चुका है वह जागरूक हो गया है।

आज स्थिति यह है कि स्कूल-कॉलेजों की शिक्षा-प्रणाली हाशिए पर आ चुकी है। जागरूक माता-पिता प्राइवेट प्रशिक्षण को महत्त्व देने लगे हैं। बच्चे के पैदा होते ही उन्हें प्री-प्राइमरी स्कूल में प्रवेश पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इसके लिए घर-घर खुले हुए प्रशिक्षण केंद्रों की शरण में जाना पड़ता है। स्कूल में पढ़ते हुए भी बच्चे ट्यूशन पर अधिक निर्भर रहने लगे हैं। अच्छे से अच्छे स्कूलों की भी यही दशा है माता-पिता को कहीं शांति अथवा चैन नहीं। वे चाहते हैं कि उनका बच्चा 90 प्रतिशत से ऊपर अंक के साथ प्रथम आए। इसके चलते योग्य शिक्षकों ने प्राइवेट डॉक्टरों की तरह प्राइवेट ट्यूशन अकादमियाँ खोल ली हैं। वे 8 से 10 हज़ार की सीमित आय के बजाय हज़ारों लाखों कमाने लगे हैं। घर-घर में ट्यूशन सेंटर खुल चुके हैं। जिसके फलस्वरूप कितने ही बेरोजगारों को रोजगार मिला है।

कक्षा बारहवीं तो मनो वाटर लू का मैदान हो गई है। यह साल बच्चे के लिए टर्निंग प्वाइंट होता है। इसलिए माता-पिता बच्चे पर इस वर्ष सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं। विज्ञान के बच्चे पूरा वर्ष ट्यूशन और कोचिंग का बोझ उठाते हैं। उसके बाद प्रवेश परीक्षा के लिए रिफ्रेशर या क्रैश कोर्स करते हैं। आज पढ़ाई मानो युद्ध का मैदान हो गई है। अब लोग अच्छी शिक्षा के लिए प्राइवेट कोचिंग केंद्रों पर ज्यादा भरोसा करने लगे हैं। इन केंद्रों में मोटी फीस वसूल की जाती है।

बारहवीं कक्षा के बाद अधिकतर योग्य छात्र इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, चार्टेड अकाउंटेंट आदि के निश्चित व्यवसाय खोज लेते हैं। जो इन क्षेत्रों में असफल रहते हैं, वे ही दूसरे विकल्प के रूप में कॉलेज की परंपरागत शिक्षा की ओर रुख करते हैं। इसलिए कॉलेज की पढ़ाई तो दूसरी श्रेणी की पढ़ाई बनकर रह गई है। कुछ अच्छे कॉलेजों में चल रहे व्यावसायिक या तकनीकी पाठ्यक्रमों को छोड़ दें, तो शेष सब कॉलेज मानो टाइम पास करने का माध्यम बनकर रह गए हैं। किशोर-किशोरियाँ आते हैं
और गप्पे लड़ाकर घर लौट जाते हैं।

प्रश्नः 9.
लत है ज़रा बचकर ।
उत्तरः
शॉपिंग करने में सबको मजा आता है। कुछ लोग ज़रूरत होने पर ही शॉपिंग करते हैं। वहीं कुछ लोग शॉपिंग का बहाना ढूँढ़ते हैं। वह आदतन बाज़ार जाकर कुछ न कुछ खरीददारी करते रहते हैं। ऐसे लोग कई दिनों तक बाज़ार न जा पाएं, तो उन्हें अजीब सा महसूस होने लगता है। ऐसे लोगों को शॉपहोलिक माना जाता है। एक शोध के मुताबित अमेरिका में लगभग 6 प्रतिशत लोग शॉपहोलिक हैं। आज जिस तरीके से रिटेलर्स अपने उत्पादों की ब्रांडिंग और उनका प्रमोशन कर रहे हैं, उस लिहाज से शॉपहोलिक लोगों की संख्या भारत में भी लगातार बढ़ रही है। ऑनलाइन बाजार में तेजी आने से लोगों को खरीदारी की लत लग रही है। वे घर बैठे ऐसे ढेरों आइटम ऑर्डर कर देते हैं, जिनकी ज़रूरत उन्हें नहीं है। मनोचिकित्सकों का मानना है कि शॉपहोलिक होना एक तरह की समस्या है और सिर्फ अपने को खुश रखने के लिए इस आदत पर कंट्रोल बहुत ज़रूरी है।

कहीं आपमें तो यह लक्षण नहीं…

अगर बाजार से लौटने के दो-तीन दिन बाद ही आपको लगता है कि बाज़ार गए काफ़ी दिन हो गए हैं, तो यह शॉपहोलिक
होने का एक लक्षण है।
बिना प्लानिंग के आप मार्किट चले जाते हैं और फिजूल में ढेर सारी चीजें खरीद लेते हैं।
जो चीजें पहले से आपके पास हैं और मार्किट में उसके नए डिजाइन आपको दिखते हैं, तो आप उन्हें भी खरीद लेते हैं।
अक्सर इलेक्ट्रोनिक सामान के मामले में ऐसा होता है।
यदि अपनी कमाई का ज़्यादा हिस्सा शॉपिंग पर उड़ाते हैं, तो भी आप शॉपहोलिक हैं।

..तो उपाय क्या है

लोग सेल के लुभावने ऑफर के चलते ज़रूरत से ज़्यादा शॉपिंग करते हैं। अपनी जेब को ध्यान में रखें और ज़रूरत की ही शॉपिंग करें।
अगर आपके पास क्रेडिट कार्ड हैं, तो शॉपिंग पर कंट्रोल करना मुश्किल होता है। इसलिए इस आदत से बचें।
बिना प्लानिंग के शॉपिंग न करें। अगर मन है, तो पहले प्लानिंग करें कि क्या खरीदना है।
खाली समय में शॉपिंग करने की आदत है, तो उस समय का इस्तेमाल दूसरे कामों में करें।

प्रश्नः 10.
शहर से पहले समाज को स्मार्ट बनाएँ
उत्तरः
आजकल स्मार्ट सिटी बनाने की चर्चा जोरों पर है। एक ऐसा शहर, जहाँ जीवन की सभी आधारभूत सुविधाएँ ऑनलाइन उपलब्ध हो जाएँ। न भाग-दौड़, न घूस, न सिफारिश की ज़रूरत पड़े। जहाँ आवागमन, पर्यावरण, स्वच्छता, स्वास्थ्य, पानी, बिजली, सुरक्षा और मनोरंजन की अति आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हों। जहाँ का जीवन बाधा रहित हो। जहाँ का समाज देश और मानव मूल्यों के उच्च स्तर से स्वयं को जोड़े, ऐसे शहर या गांव की परिकल्पना बुरी नहीं है। इसका हर कोई स्वागत करेगा, करना भी चाहिए। मगर ऐसी परिकल्पना केवल कुछ लोगों के लिए या उदाहरण मात्र हो और बाकी समाज नारकीय जिंदगी जीने को अभिशप्त हो, तो इस पर उँगलियाँ उठेगी ही। दुनिया ने जन सुविधाओं को बेहतर बनाकर जो मुकाम हासिल किया है, उसको देखते हुए, हमारी स्थिति अब भी आदिम स्तर की है। देश में हमने जीवन के कई स्तरों का निर्माण किया है। कुछ के पास

खर्च करने को अथाह पैसा है, तो बहुतों का पूरा दिन रोटी के जुगाड़ में बीत जाता है। किसी का एक वक्त में पेट हज़ारों में भरता है, तो कोई महज 26 रुपए में पूरे परिवार को पालता है। ऐसे में स्मार्ट सिटी बनाने की नीति क्या कुछ धनाढ्यों के लिए है या देश के सभी नागरिकों के लिए, यह स्पष्ट कर देना चाहिए।

स्मार्ट सिटी में रहने वाले नागरिक, जाहिर है, स्मार्ट होंगे। मसलन स्मार्ट समाज ही स्मार्ट सिटी में रह सकता है, हकीकत में हमारा समाज, ज्ञान, विज्ञान और सभ्यता के क्षेत्र में कबीलाई और ‘ई’ मानसिकता में एक साथ जी रहा है। देश के सभी नागरिकों के जीवन स्तर में बहुत ज्यादा असमानता होने का मतलब यही होगा कि स्मार्ट योजनाएँ, चंद गिनती के लोगों के लिए तो संभव बना दी जाएंगी, मगर सबके लिए नहीं। अभी तक हमारे पास यह योजना नहीं कि आने वाले दिनों में बढ़ती जनसंख्या और उसके उपयोग की सारी चीज़ों, मसलन आवागमन के साधन, शिक्षा, स्वास्थ्य या रहने के लिए मकान कैसे उपलब्ध कराए जाएंगे?

शहर स्मार्ट बनें, जन सुविधाएँ बेहतर हों और आम नागरिक का जीवन सुखमय हो, यही तो विकास का पैमाना है। हमारे यहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य और संचार के साधन आम नागरिकों के हिस्से में किस स्वरूप में उपलब्ध हैं, और आने वाले दिनों में किस स्वरूप में उपलब्ध होंगे, स्मार्ट बनने की दिशा में ये ही मुख्य कारक होंगे। स्मार्ट सिटी को लेकर जो पैमाने गढ़े जा रहे हैं, उन्हें पढ़कर एक भ्रम पैदा हो रहा है कि क्या हमारी जनसंख्या को स्मार्ट बनाने की दिशा में हम बेहतर तरीके अपना रहे हैं? शिक्षा की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। दलित, अल्पसंख्यकों और निर्बल समाज पर जुल्म बढ़ रहे हैं। साक्षर होने का मतलब हमने महज अक्षर ज्ञान से लगा लिया है। ऐसे में यह विचार किया जाना चाहिए कि क्या अल्पशिक्षित आबादी किसी स्मार्ट सिटी का हिस्सा बनने में सक्षम होगी, यह हम ऐसी अल्पशिक्षित आबादी को निकाल कर कोई शहर बसाने जा रहे हैं ? अगर नहीं, तो क्या पहले लोगों को स्मार्ट बनाने की दिशा में हमें आगे नहीं बढ़ना चाहिए। क्या महानगरों में रेल की पटरियों पर शौच करती एक बड़ी आबादी को पहले शौचालयों तक नहीं पहुँचाना चाहिए? क्या जनसंख्या का जो विस्फोट शहरों में समाता जा रहा है, उसको नियंत्रित करने या समाहित कर लेने की क्षमता हमारे नियोजन में है ? हमारे जीवन के संसाधन सिमटते जा रहे हैं। हवा, पानी और अन्न विषैले होते जा रहे हैं। इस दिशा में चिंता करना ही स्मार्ट समाज निर्माण की पहली ज़रूरत होनी चाहिए।

प्रश्नः 11.
हँसने की वजह
उत्तरः
हास्य एक-आयामी नहीं है, इसमें मनुष्य की आत्मा के तीनों आयाम हैं। जब तुम हँसते हो, तो तुम्हारा शरीर उसमें सम्मिलित होता है, तुम्हारा मन उसमें सम्मिलित होता है, तुम्हारी आत्मा उसमें सम्मिलित होती है। हास्य में भेद खो जाते हैं, विभाजन खो जाते हैं, खंडमना व्यक्तित्व खो जाता है लेकिन यह उन लोगों के विपरीत पड़ता था, जो मनुष्य का शोषण करना चाहते थेराजे-महाराजे, चालबाज़ राजनीतिज्ञ। उनके समस्त प्रयास जैसे-तैसे मनुष्य को कमज़ोर व रुग्ण करने के थे : मनुष्य को दुखी बना दो और वह कभी विद्रोह नहीं करेगा।

मनुष्य का हास्य उससे छीन लेना उसका जीवन ही छीन लेना है। दुखी लोग खतरनाक हैं, सिर्फ इस कारण क्योंकि यह पृथ्वी बचे या नष्ट हो जाए, उन्हें कोई परवाह नहीं। वे इतने दुखी हैं कि गहरे में वे सोच सकते हैं कि सबकुछ विनष्ट हो जाता तो बेहतर होता। अगर तुम दुख में जी रहे हो तो कौन फिक्र करता है? केवल आनंदित लोग, मस्त लोग, नाचते हुए लोग चाहेंगे कि यह ग्रह सदा-सदा रहे।

क्या तुमने स्वयं पृथ्वी पर हँसने का कोई कारण नहीं पाया? ऐसा है, तो तुमने खोज बुरी तरह की। एक बच्चा भी कारण पा सकता है। वास्तव में, केवल बच्चे ही खिलखिलाते व हंसते पाए जाते हैं और वयस्क लोग सोचते हैं कि चूंकि वे अज्ञानी बच्चे हैं, उन्हें क्षमा किया जा सकता है-अभी वे ‘सभ्य’ नहीं हुए हैं, आदिम ही हैं। मां-बाप, समाज आदि का सारा प्रयास ही यही है कि कैसे उन्हें ‘सभ्य’ बना देना, गंभीर बना देना, कैसे ऐसा बना देना कि वे गुलामों की तरह व्यवहार करें, स्वतंत्र व्यक्तियों की तरह नहीं।

बच्चे हँस सकते हैं, क्योंकि उन्हें किसी बात की अपेक्षा नहीं है। उनकी आँखों में एक स्पष्टता है चीज़ों को देखने की-और दुनिया इतने बेतुकेपन से, इतनी हास्यास्पदताओं से भरी हुई है! केले के छिलकों पर फिसलकर इतना गिरना हो रहा है कि बच्चा उसे देखने से बच नहीं सकता! ये हमारी अपेक्षाएँ हैं, जो हमारी आँखों पर परदे का काम करती हैं।

जिस दिन मनुष्य हँसना भूल जाता है, जिस दिन मनुष्य हंसी-खेलपूर्ण रहना भूल जाता है, जिस दिन मनुष्य नाचना भूल जाता है, वह मनुष्य नहीं रह जाता। वह अर्ध-मानवीय योनियों में गिर गया। खिलंदड़पन उसे हलका बनाता है, प्रेम उसे हलका बनाता है, हास्य उसे पंख देता है। हर्षोल्लास से नाचते हुए वह सुदूरतम सितारों को छू सकता है, वह जीवन के रहस्यों में प्रवेश पा सकता है।

गंभीर आदमी हँस नहीं सकता, नाच नहीं सकता, खेल नहीं सकता। वह निरंतर स्वयं को नियंत्रित कर रहा है, अपना ही जेलर बन गया है। निष्ठावान व्यक्ति निष्ठा से खुशियाँ मना सकता है, नाच सकता है, हँस सकता है और हँसने में व्यक्ति का शरीर, मन, आत्मा सम्मिलित हो जाते हैं। खंड विलीन हो जाते हैं, खंडित व्यक्तित्व खो जाता है।

हास्य तुम्हें वापस ऊर्जा से भर देता है। क्या तुमने कभी अपने भीतर इसका निरीक्षण किया है-जब तुम प्रसन्न होते हो, आनंदित होते हो, तो कुछ सृजन करना चाहते हो। जब तुम दुखी और पीड़ित होते हो, तुम कुछ नष्ट करना चाहते हो।

एक ही वाक्य में कहना हो, तो मैं कह सकता हूँ कि हम मानवता को प्रमुदित कर सकें, तो तीसरा महायुद्ध नहीं होगा।

प्रश्नः 12.
दो झंडे पर रोक
उत्तरः
जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की एक बड़ी बेंच द्वारा राज्य सरकार के फ्लैग ऑर्डर पर, जिसमें सरकारी इमारतों और गाड़ियों पर राष्ट्रीय ध्वज के साथ राज्य का झंडा फहराए जाने का प्रावधन है, रोक लगाने के ताजा फैसले को उसकी समग्रता में समझने की ज़रूरत है। दरअसल राज्य में पीडीपी-भाजपा की गठबंधन सरकार के सत्ता में आने के बाद भाजपा के मंत्रियों-विधायकों ने जिस तरह राज्य के झंडे की अनदेखी शुरू की, उसे देखते हुए सरकार ने फ्लैग ऑर्डर पर अमल करने के लिए परिपत्र जारी किया था, पर भाजपा की आपत्ति के बाद उसे वापस ले लिया गया। इस पर जब एक नागरिक ने एक याचिका दायर की, तब उच्च न्यायालय की डिविजनल बेंच ने तिरंगे के साथ राज्य का झंडा फहराने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट की दो जजों वाली बेंच ने अब उस फैसले पर रोक लगाई है। यह इतना गंभीर मामला है कि इस पर तत्काल प्रतिक्रिया देने में संयम बरतना चाहिए। जम्मू-कश्मीर न केवल बेहद संवेदनशील राज्य है, बल्कि वहां के क्षोभ या अस्थिरता का फायदा उठाने के लिए अलगाववादी तत्व हमेशा तैयार रहते हैं।

इसलिए जो लोग इसे राज्य की पहचान खत्म करने की कोशिश बता रहे हैं, उन्हें अदालत के अगले आदेश तक इंतजार करना चाहिए। दूसरी ओर, अदालत की इस रोक को तिरंगे की सर्वोच्चता के रूप में व्याख्यायित करने वाले लोगों को समझना होगा कि जम्मू-कश्मीर इंस्ट्रमेंट ऑफ एसेसन या विलय की जिन शर्तों के साथ भारतीय गणतंत्र का हिस्सा बना था, उनमें राज्य का अलग संविधान और अलग झंडा भी था। संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का जो दर्जा प्राप्त है, उसे अचानक खत्म नहीं किया जा सकता। भाजपा चूंकि राज्य की गठबंधन सरकार में भागीदार है, लिहाजा सांविधानिक यथास्थिति और सूबे में शांति और स्थिरता बहाल रखना उसकी भी जिम्मेदारी है। उसे भूलना नहीं चाहिए कि विधानसभा चुनाव के समय खासकर घाटी के मतदाताओं ने उसकी नीतियों पर संदेह जताया था। ऐसे में, अब अगर वह सूबे के विशिष्ट सांविधानिक चरित्र पर सवाल उठाती है, तो उसकी छवि तो प्रभावित होगी ही, इसका दूसरे कई मामलों में असर दिखेगा।

प्रश्नः 13.
छोटे सिनेमाघरों का बढ़ता दौर
उत्तरः
नए वर्ष में भी फ़िल्म उद्योग में सफलता का प्रतिशत बदलने की कोई आशा नहीं है और यह भी सही है कि संयोगवश किसी को अवसर मिलेगा और वह सफल फ़िल्म बना लेगा और यह भी सही है कि असाधारण प्रतिभाशाली लोग फिर कोई ‘मसान’ प्रस्तुत कर दे, कहीं से कोई ‘कहानी’ या ‘विकी डोनर’ आ जाए। विगम 103 वर्षों में ये दोनों धाराएँ हर वर्ष मौजूद रही हैं। दरअसल, फ़िल्म उद्योग की मूल समस्या सरकार का स्लीपिंग पार्टनर होना नहीं है। मूल समस्या यह है कि सवा सौ करोड़ की आबादी में किसी भी सफल फ़िल्म को 2.25 करोड़ लोगों ने ही सिनेमाघर में देखा है, क्योंकि पूरे देश में मात्र 9 हज़ार एकल सिनेमा हैं।

अनगिनत कस्बों और छोटे शहरों में सिनेमाघर ही नहीं है। भारत में 30 हजार छोटे एकल सिनेमाघरों की आवश्यकता है ताकि पहले सप्ताह की आय भी मौजूदा सौ करोड़ से बढ़कर 3000 करोड़ की हो जाए। सबसे बड़ा भ्रम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने सौ, दो सौ और तीन सौ करोड़ की आय के आंकड़े प्रकाशित करके फैलाया है। वास्तव में यह ग्रॉस यानी सकल आय है और इसका 45 फीसदी ही शुद्ध आय है। उदाहरण के लिए ‘दिलवाले’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ ने छुट्टियों से भरे बारह दिनों में 130 करोड़ की प्रॉस आय अर्जित की है अर्थात शुद्ध आय पचास के ऊपर नहीं है और दोनों की लागत 150 करोड़ प्रति फ़िल्म है तथा अब आने वाले दिनों में वे अपनी लागत तक नहीं पहुँच पाएंगे।

डेढ़ सौ सीटों के एकल सिनेमाओं की वृद्धि की परम आवश्यकता है। मल्टीप्लेक्स टिकिट बिक्री के आधार पर नहीं टिके हैं, जो बमुश्किल औसतन 30 प्रतिशत से अधिक नहीं है वरन् पॉपकॉर्न, शीतल पेय और पार्किंग लॉट से वे मुनाफे में हैं। एकल सिनेमा निर्माण की राह में सबसे बड़ा रोड़ा लायसेंसिंग नियमावली है और प्रदर्शन के क्षेत्र में कॉर्पोरेट भागीदारी आवश्यक कर दी गई है। सबसे बडी त्रासदी यह है कि कॉर्पोरेट और औदयोगिक घरानों को अभी तक भारत की विराट संभावनाओं की कल्पना तक नहीं है। आप टूथपेस्ट या साबुन केवल महानगरों और मध्यम शहरों में बेचकर खुश हैं, जबकि ग्रामीण और आंचलिक विराट मार्केट की आपको कल्पना ही नहीं है। समर्थ लोगों की सोच यही है कि सूर्य का प्रकाश-वृत्त छोटी ही बना रहे और उस पर उनका कब्जा रहे। अगर प्रकाश-वृत्त चहुं ओर पहुँच जाए तो पृथ्वी जगमगा उठेगी। इन घरानों ने फ़िल्म निर्माण में धन लगाया और इसमें पूँजी निवेश बढ़ाने पर भी वे सितारों की दासता करते रहेंगे परंतु डेढ़ सौ सीट के हजारों सिनेमाघर बनाकर वे फ़िल्म उद्योग के राजा हो सकते हैं। अभी तक देश के सारे उद्योगों का हाल यह है कि वे अपनी कूप मंडूकता के शिकार हैं। उनकी अपनी संकीर्णता उन्हें आगे नहीं बढ़ने देती। सारे मामले को शैलेंद्र ने क्या खूबी से प्रस्तुत किया है, ‘मन का घायल पंछी उड़ने को है बेकरार, पंख हैं कोमल, आँख है धुंधली, जाना है सागर पार, अब तू ही हमें बता, कौन दिशा से आए हम।’

प्रश्नः 14.
असफलता को उत्सव की तरह मनाएँ
उत्तरः
हम दो चीज़ों से बहुत डरते हैं। एक भगवान से और दूसरा असफलता से। भारतीय समाज में असफलता का इतना आतंक है कि नाकाम होने वाले इंसान में दोबारा कोशिश करने की हिम्मत ही नहीं रहती। इसके खौफ से घबरा कर कई लोग तो अपनी जान तक दे देते हैं। इसी डर की वजह हम न तो कुछ नया सोच पाते हैं और न ही किसी प्रयोग के लिए तैयार होते हैं। हम करना तो बहुत कुछ चाहते हैं। काबिलियत भी होती है लेकिन फेल न हो जाएँ, इस डर से कदम खींच लेते हैं। हम डरते हैं, कहीं गलती न हो जाए। निर्णय गलत न लिया जाए। कहीं बेवकूफ न बन जाएँ। अगर नाकाम रहे तो जग हँसाई हो जाएगी। इसे विडंबना कहेंगे कि जहाँ पूरी दुनिया प्रयोगों पर केंद्रित हो रही है, हम आज भी डरों की चादर में दुबके बैठे हैं। असफलता को गले लगाना तो दूर, उसका सामना करने को तैयार नहीं हैं। इस पर खुली चर्चा और बहस होनी चाहिए।

मेरी नज़र में असफलता अधूरा और भ्रामक शब्द है और न ही यह सफलता का विपरीत शब्द है। क्योंकि असफलता नाम की कोई वस्तु नहीं होती। हाँ यह सफलता का एक हिस्सा आवश्य है। एक पड़ाव है। हर प्रयास या कोशिश से व्यक्ति कुछ न कुछ नया सीखता है। अनुभवी होता है। फिर वह असफल कैसे हुआ? जो नाकाम रहता है वो उन लोगों की तुलना में अधिक साहसी, आत्मविश्वासी और काबिल होता है, जिन्होंने डर की वजह से कभी कोशिश ही नहीं की। अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था अगर आप कभी असफल नहीं हुए तो इसका अर्थ है कि आपने कभी नया करने की कोशिश ही नहीं की। एडीसन ने अपने प्रयासों को कभी असफल नहीं कहा अपितु बताया कि उन्हें दस हज़ार ऐसे तरीकों का ज्ञान हआ जो इस दिशा में काम नहीं करते।

आज पूरी दुनिया में असफलता के मायने बदल चुके हैं। गूगल, थ्री-एम, आईबीएम, जैसी कंपनियाँ नए प्रयोगों के लिए अपने कर्मियों को निरंतर प्रेरित करती हैं। असफल रहने पर उनके प्रयासों और प्रयोगों से कई दफा ऐसे आइडिए निकल आते हैं, जिनकी कभी कल्पना ही नहीं की गई होती। स्वाभाविक है, जिस मुल्क में जितनी अधिक असफलताएँ होंगी वहाँ उतनी ज्यादा कामयाबियाँ भी होंगी। यही वजह है हम भारतीय लोग रचनाशीलता की ग्लोबल तालिका में फिसड्डी हैं।

‘इंजीनियर्स विदाउट बार्डर्स’ कनाडा की ऐसी संस्था है जो अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के इंजीनियरिंग समाधान ढूढ़ती है। यह संस्था हर वर्ष बाकायदा अपनी फेलयोर रिपोर्ट प्रकाशित करती है। इसके माध्यम से बताना चाहते हैं कि हम जोखिम उठाते हैं, असफल भी रहते हैं, दसलिए हम अपनी इनोवेशन की ताकत से दुनिया भर की समस्याएँ सुलझा लेते हैं।

आस्ट्रेलिया की फ़ौज में केवल उन्हीं आवेदकों को चुना जाता है जो कभी न कभी असफल ज़रूर हुए हों। उनका मानना है यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में असफल नहीं हुआ तो वह किसी भी संकट में असफलता के डर से घबरा सकता है।

असफलता के प्रति हमारे सामाजिक नज़रिए में बदलाव की ज़रूरत है क्योंकि कोशिश करना और असफल होना कोई मजाक नहीं है। उसमें समय पैसा, उत्साह और सपने बहुत कुछ दांव पर लगा होता है जिसकी वजह से निराशा आती है। गुस्सा और खीझ भी पैदा होती है। कई बार उखड़ भी जाते हैं। ऐसे में सामाजिक दबाव दोबारा कोशिश के दरवाज़े बंद कर देता है।

दरअसल हमारी जिंदगी एक प्रयोगशाला यानि लोबोरेट्री है, जहाँ संभावनाओं को तलाशने के लिए निरंतर प्रयोग करने चाहिए। इसके बिना हम जान ही नहीं पाते कि हमारे भीतर क्या-क्या छिपा है। हमें खोजना चाहिए। बार-बार खोजना चाहिए। ई-कॉमर्स की दुनिया के बादशाह और ऑमेज़न के मालिक जेफ बेजोस कहते हैं जो व्यक्ति या कंपनी निरंतर प्रयोग नहीं करते और फेलियर को गले नहीं लगाते वे निराशाजनक स्थिति में पहुँच जाते हैं।
इसलिए हम असफलताओं को न केवल गले लगाएँ बल्कि उनका उत्सव मनाएँ।

प्रश्नः 15.
लॉलीवुड को भारत का इंतज़ार
उत्तरः
भारतीय एयरटेल डिश टेलीविज़न पूरे पाकिस्तान में देखा जाता है और खास तौर पर यह रावलपिंडी में सैन्यकर्मियों की पत्नियों के बीच काफ़ी लोकप्रिय है। भले नियंत्रण रेखा पर दोनों मुल्कों के बीच छोटी-मोटी झड़पें हो रही हों, पर ‘सास-बहू’ वाले धारावाहिकों की पाकिस्तान में काफ़ी माँग है। जो लोग भारतीय राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं, उन्हें विभिन्न चैनलों पर चलने वाले न्यूज टॉक शो देखना अच्छा लगता है। इसके बावजूद पाकिस्तानी दर्शक जी टीवी पर दिखाए जा रहे नए धारावाहिक के प्रोमो से दुखी हैं, जो सांप्रदायिक दंगे की पृष्ठभूमि में एक प्रेम कहानी पर आधारित है और जिसमें हिंदू एवं मुस्लिमों को एक दूसरे के खून का प्यासा दिखाया गया है। अब तक जो दृश्य दिखाए गए हैं, वे काफी भयावह हैं।

पाकिस्तान के धारावाहिकों में इतना कुत्सित दृश्य कभी नहीं दिखाया जाएगा। मुल्क का बंटवारा एक सच्चाई है। पर आज जब सहिष्णुता का बिलकुल अभाव है, तब ऐसे धारावाहिक न तो दोनों मुल्कों और न ही दो समुदायों के रिश्ते को बेहतर बना सकते हैं। दोनों समुदायों के बीच का तनाव खत्म करने में भी यह धारावाहिक कैसे मदद करेगा? टीवी और सिनेमा का दर्शकों पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है, लिहाजा घृणा फैलाने वाले ऐसे दृश्य नफ़रत ही ज़्यादा पैदा करेंगे।

भारत को पाकिस्तानी फ़िल्मों का भी आयात करना चाहिए, ताकि दुनिया भर की फिल्में देखने वाले भारतीय दर्शक लॉलीवुड (पाकिस्तानी फ़िल्म उद्योग) की फिल्में भी देख सकें। आखिर अब माहिरा और फवाद खान जैसे लॉलीवुड के बड़े कलाकार बॉलीवुड में काम करते हैं। पाकिस्तान के आधुनिक और कव्वाली जैसे शास्त्रीय संगीत के गायक भी भारत में काफी लोकप्रिय हैं।

पाक टीवी ने कुछ अनूठे धारावाहिक बनाए हैं, जैसे हमसफर, जिसे भारत में जी टीवी ने प्रसारित किया। इसी तरह पाकिस्तानी फिल्मों के पुनरुद्धार की कहानी दुनिया भर की सुर्खियों में है। ऐसे में अगर भारतीय दर्शकों को पाकिस्तानी फ़िल्म देखने का मौका दिया जाए, तो फवाद और माहिरा खान जैसे सितारों के लिए उनका दिल भी धड़केगा।

आज भारतीय फ़िल्में पूरे पाकिस्तान में देखी जाती हैं, जहाँ बजरंगी भाईजान और वेलकम बैक बॉक्स ऑफिस पर बेहद सफल रही हैं। लॉलीवुड में मंटो फ़िल्म बनाई है, जो हाउस फुल चल रही है। ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ कि बॉलीवुड की फ़िल्म की तुलना में किसी पाक फ़िल्म की इतनी ज़्यादा मांग रही हो। कट्टी-बट्टी के प्रदर्शन के दौरान सिनेमा हॉल की सीटें खाली पड़ी थीं। ऐसी प्रतिस्पर्धा अच्छी बात है, इससे पाकिस्तानी फ़िल्मों में सुधार आएगा।

राजनीति भारतीय फ़िल्म निर्माताओं एवं सितारों को पाकिस्तान में काम करने से हतोत्साहित करेगी, पर इतिहास साक्षी है कि कला एवं संस्कृति हमेशा राजनीति से श्रेष्ठ और स्थायी रही है। पाकिस्तान में हिंदू शासन नहीं कर पाए, पर कटासराज मंदिर तमाम राजनीति से बचा हुआ है। उसी तरह भारत में मुसलमान सत्ता में नहीं हैं, पर उनकी विरासत ताजमहल अब भी बचा हुआ है।

खबर है कि महेश भट्ट लॉलीवुड के साथ फ़िल्म बनाएंगे, ऐसे में अन्य भारतीय फ़िल्म निर्माता भी पाकिस्तान का रुख कर सकते हैं। भारतीय सितारे चूंकि काफ़ी पैसे लेते हैं, ऐसे में पाकिस्तानी निर्माताओं के लिए उतना भुगतान करना बहुत मुश्किल होगा। मोटे पैसे के लालच में ही पाक सितारे भारत में काम करने जाते हैं।

फ़िल्मों और टीवी में अगर कड़वे इतिहास की कहानी दिखानी ही हो, तो इसे पेशेवर ढंग और संवेदनशील तरीके से दिखाना चाहिए, ताकि नफ़रत भरे दृश्य कम दिखें। मुगले आजम, मदर इंडिया, शोले और कई अन्य फ़िल्में नफरत से आजाद हैं, पर
इन फ़िल्मों ने इतिहास रचा है।

प्रश्नः 16.
ट्रेन में बैठा है शहरों का भविष्य
उत्तरः
आप किसी भी शहर में क्यों न हों आपको पूरी तरह स्वचालित और सुविधाओं से लैस ट्रेनों की सुविधा मिलेगी, जो घड़ी के कांटे के साथ एक के बाद एक स्टेशन पर आती रहेंगी। न वेटिंग लिस्ट और न टिकट के लिए कतार में लगने का झंझट। यह कोई दिन में देखा गया ख्वाब नहीं है, इनमें से कुछ बातें तो कई देशों में साकार हो चुकी हैं। हमें ट्रेनों में बदलाव नहीं दिखाई देता, लेकिन कम लागत, कम प्रदूषण और सड़क परिवहन की तुलना में एक-तिहाई जगह की ज़रूरत के कारण रेल भविष्य की तरक्की का ‘इंजन’ है।

अब गांवों की बजाय शहरों में लोग बढ़ते जा रहे हैं तो देश में मेट्रो ट्रेन महानगरों से मझले शहरों में प्रवेश कर रही है। जहाँ तक सुविधाओं की बात है तो दक्षिण कोरिया के सिओल की ट्रेन में टीवी और ठंड के दिनों के लिए गरम सीटों की सुविधा है तो कोपेनहेगन में कम लागत की ड्राइवरलेस ट्रेन चल रही है। 2030 तक दुनिया की 60 फीसदी आबादी शहरों में होगी। इसमें भारत भी शामिल है।

19वीं सदी की शुरुआत में घोडागाडी परिवहन का लोकप्रिय साधन रहा है। घोड़े के पीछे लगे कोच को स्टेजकोच कहा जाता था। इसी से 1830 के दशक में रेलवे कोच का विचार आया। शुरुआत के कुछ कोच में से एक था ‘स्टैनहॉप।’ इसमें हालांकि छत होती थी, लेकिन फर्श पर छेद बने होते थे ताकि बारिश के दिनों में दरवाजे व खिड़कियों से आने वाला पानी निकल सके। इसके साथ दिक्कत यह थी कि यात्रियों को पूरी यात्रा में खड़े रहना पड़ता था। फिर कोच की श्रेणियाँ बनीं। प्रथम व द्वितीय श्रेणी के कोच बंद होते थे जबकि तृतीय श्रेणी के कोच खुले होते थे और वे बंद कोच के पीछे लगे होते थे। इनमें बैठने के लिए बेंचें होती थीं।

साल गुज़रने के साथ बैठने की व्यवस्था में अधिक आराम का ख्याल रखा जाने लगा। अब तृतीय श्रेणी, गार्ड और सामान को भी कोच के भीतर जगह दी जाने लगी। पुराने चार पहियों वाले कोच की जगह छह पहिये वाले अधिक आरामदेह कोच ने ले ली।

पश्चिम के ठंडे देशों में ट्रेन में गरमी की व्यवस्था करने की समस्या थी। वहाँ शुरू में तो स्टेशनों पर गरम पानी की बोतलें व कंबल किराए पर मिलते थे। बाद में इंजन से मिलने वाली भाप से डिब्बों को गरम रखा जाने लगा। शुरुआत में गार्ड के पास हैंड ब्रेक होता था और यात्रियों के लिए ट्रेन रोकने की जंजीर, लेकिन अधिक सुरक्षा के लिहाज से बाद में सारे डिब्बों में ‘कंटीन्यूअस ब्रेक’ की व्यवस्था रखी जाने लगी, जिसका नियंत्रण आज की तरह ड्राइवर के पास था। आपको जानकर अचरज होगा कि शुरुआत में कोच में रोशनी की व्यवस्था लालटेन से होती थी। हालांकि खास लोगों के लिए ‘सलून’ होते थे, जिनकी छत में रोशनी के लिए कांच लगे होते थे।

फिर लालटेन की जगह गैस वाले लैंप आए, लेकिन आग लगने की कुछ भयावह दुर्घटनाओं के बाद बिजली का इस्तेमाल होने लगा। 1900 आते-आते ट्रेनों में ‘बोगी’ कोच आ गए, जो लगभग वैसे ही थे, जैसे आज हम जानते हैं। इनके पहियों और बोगियों के बीच ससपेंशन स्प्रिंग होने से यात्रा में लगने वाले झटके बहुत कम हो गए और सफर आरामदेह हो गया। चूंकि भारत में ट्रेन आने तक कोच का काफ़ी कुछ विकास हो चुका था, इसलिए यहां कभी खुले और खड़े रहकर सफर किए जाने वाले कोच नहीं आए। बोगी कोच के बाद स्लीपिंग कार या यानी स्लीपर कोच का विचार आया।

प्रश्नः 17.
ऑनलाइन निमंत्रण, हाजिर मेहमान
उत्तरः
घर में शादी होती थी, तो निमंत्रण कार्ड का हल्दी और चावल से पूजन होता था। इसके बाद प्रथम निमंत्रण भगवान को देने के बाद रिश्तेदारों और परिचितों को कार्ड बांटे जाते थे, लेकिन जैसे-जैसे हमारी जीवनशैली में इंटरनेट की दखलअंदाजी बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे कार्ड बांटने की जगह ऑनलाइन निमंत्रण का चलन बढ़ता जा रहा है। दूर-दराज रह रहे लोगों को कार्ड देने जाना किसी चुनौती से कम नहीं है। शादी की तैयारियों के बीच कार्ड बांटने में काफ़ी समय लगता है।

इसलिए ऑनलाइन निमंत्रण एक आसान माध्यम है मेहमानों और परिचितों तक संदेश पहुँचाने का। खासबात यह है कि ऑनलाइन निमंत्रण भी विशेष रूप से डिजाइन किए जा रहे हैं। ऑनलाइन निमंत्रण में भी कई तरह से सेग्मेंट होते हैं। जैसे वीडियो निमंत्रण और ऑडियो निमंत्रण। आप अपनी ज़रूरत और पसंद के हिसाब से कार्ड डिजाइन करा सकते हैं और फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर और मेल के जरिए भेज सकते हैं। रेस्पॉन्स के चांसेज ज़्यादा होते हैं। अगर आपने व्हाट्सऐप, फेसबुक या मेल के माध्यम से किसी को निमंत्रण भेजा है, तो जवाब तुरंत मिल जाता है।

प्रश्नः 18.
एप : जिसने उँगली तले ला दिया नेट
उत्तरः
स्मार्टफ़ोन से यदि एप निकाल दिए जाएँ, तो वो मात्र एक डिवाइस रह जाएगा। एप ही स्मार्टफ़ोन की स्मार्टनेस हैं। एक समय था, जब मोबाइल का काम केवल बातें करना और मैसेज भेजना होता था। स्मार्टफ़ोन बनने से उसका उपयोग बढ़ गया। इसी तरह एप तैयार करने की संभावनाएँ बढ़ीं और फिर क्रांति ही आ गई। आज पूरी दुनिया एप बना रही है, लेकिन 10 देशों का कब्जा है। उनमें भारत भी प्रमुख है।

एप ऑपरेट करने के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम ज़रूरी था। ब्रिटेन की माइक्रोकंप्यूटर सिस्टम कंपनी सायन (Psion) के संस्थापक व चेयनमैन डेविट ई. पॉटर ने इसके लिए पर्सनल डिजिटल असिस्टेंट (पीडीए) बनाया। उनकी कंपनी घरेलू कंप्यूटरों के लिए गेम्स सॉफ्टवेयर पहले से बनाती थी। डेविड इसे उँगलियों से चलने वाले मोबाइल फ़ोन में लाना चाहते थे। वर्ष 1984 में उनकी कंपनी ने पहला पीडीए ‘सायन ऑर्गेनाइज़र’ बनाया। उसे हाथ पर चलने वाला कम्प्यूटर कहा गया। दिखने में वह पॉकेट केलकुलेटर जैसा था। फिर वर्ष 1986 में सायन ऑर्गेनाइज़र-2 आया, जो ज़्यादा सफल रहा।

वर्ष 1987 में डेविड ने 16 बिट वाला ऑर्गेनाइज़र डिवाइस बनाना शुरू किया। वह एडवांस पीडीए का मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम ‘ईपीओसी’ कहलाया। वर्ष 1989 में पहली बार वह बाज़ार में आया। उसमें वर्ड प्रोसेसर, डेटाबेस, स्प्रेडशीट, टू डू लिस्ट और डायरी एप थे। इसी के 32 बिट वाले मॉडल में सॉफ्टवेयर पैक से अतिरिक्त एप शामिल किए जा सकते थे। उसकी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज ओपन होती थीं, जिससे कोई भी एप बना सकता था, लेकिन डेविड की नज़र में एप की राह अभी मुश्किल थी। उन्होंने वर्ष 1991 में पीडीए का एडवांस टच स्क्रीन वाला ‘सायन सीरीज़-3’ बनाया, जो वर्ष 1993 में सीरीज़-3ए नाम से बाज़ार में आया।

यही वह दौर था, जब एपल ने भी अगस्त 1993 में टच स्क्रीन वाला ‘न्यूटन’ पीडीए रिलीज़ कर दिया था। न्यूटन के लिए एप बनाने की जिम्मेदारी कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स ने अपने डेवलपरों को सौंपी। उसमें भी वेब, ई-मेल, कैलेंडर और एड्रेस बुक थी। वे एप का महत्त्व समझ गए थे। वे उसे ज़्यादा एडवांस बनाना चाहते थे, जिसमें यूज़र को उँगली रखते ही कई तरह की जानकारी मिल जाए। जून 1983 में जॉब्स ने भविष्यवाणी कर दी थी आगे चलकर सॉफ्टवेयर डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम बनाना होगा।

एक ऐसा प्लेटफॉर्म, जिसे फ़ोन लाइन से संचालित किया जा सके। ब्रिटिश मूल के सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर एवं लेखक चार्ल्स स्ट्रॉस ने सीरीज-3ए पीडीए को सबसे नायाब डिवाइस माना, क्योंकि उसकी बैटरी 20 से 35 घंटे चलती थी। इसे पॉकेट कंप्यूटर भी कहा गया। वर्ष 1996 में कैलिफोर्निया की पाम कंप्यूटिंग ने जेफरी (जेफ) हॉकिन्स के नेतृत्व में ज़्यादा पीडीए बना दिया, जो मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टर ही था। नई श्रेणी के डिवाइस बनाने का श्रेय इसी कंपनी को जाता है। यही वह कंपनी थी, जिसने दूसरी कंपनियों को इस दिशा में आगे बढ़ने की मदद की।

वर्ष 1997 में नोकिया मोबइल 6110 में पहली बार स्नैक गेम आया, यह पहला मौका था, जब कोई एप एवं मोबाइल फ़ोन में शामिल किया गया था। पीडीए के एप्लीकेशन ही वर्ष 1997 के बाद एप कहलाए। एप ऑपरेट करने के लिए मोबाइल यूज़र इंटरफेस (यूआई) ज़रूरी था, जिसमें किसी डिवाइस की स्क्रीन, इनपुट और डिजाइन तय होता है। हालांकि यूआई से पहले ग्राफिकल यूज़र इंटरफेस (जीयूआई) आया। स्टैनफोर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट के डगलस इंजेलबार्ट की टीम ने उसका आविष्कार किया, जिससे एप ऑपरेट करने में मदद मिली और मोबाइल फ़ोन में बड़े बदलाव की शुरुआत हुई।

प्रश्नः 19.
कैंपस हैं या धर्म के अखाड़े?
उत्तरः
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विश्वविद्यालयों के बारे में कहा था, ‘अगर विश्वविद्यालय ठीक रहेंगे तो देश भी ठीक रहेगा।’ सवाल यह है कि क्या उच्च शिक्षा के हमारे गढ़ों में देश को ठीक बनाए रखने का पाठ पढ़ाया जा रहा है या फिर राजनीतिक वर्चस्व के जरिए हमारी पीढ़ियाँ धार्मिक और जातिवादी हस्तक्षेप के चक्रव्यूह में फँसती जा रही है। उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजी एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘कई राज्यों में सत्ता बदलने के साथ एसपी व थानेदार बदल जाते हैं, इसलिए वह जनता की जिम्मेदारी को समझते ही नहीं। कुछ वर्षों से लग रहा है कि सरकारें विश्वविद्यालयों को थाना और वीसी को एसपी समझने लगी हैं।

अगर इसे नहीं रोका गया तो देश की मेधा राजनीतिज्ञों की फुटबॉल बन जाएगी। सवाल यह है कि आखिर वह कौन-सी लकीर है, जिसके बाद लगने लगता है कि एक कैंपस हिंदूवादी, मुस्लिमपंथी, वामपंथी या कांग्रेसी होने लगा है। नैनीताल विवि के पूर्व शिक्षक और पद्मश्री शेखर पाठक मानते हैं, ‘एक कैंपस में जब सीधा राजनीतिक हस्तक्षेप होने लगता है और शिक्षक से लेकर नीतियों तक में सरकार दखल देने लगती है तब लकीर गाढ़ी हो जाती है।’ हाल ही में हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी के मामले की जड़ में भी कहीं न कहीं यह लकीर ही नज़र आती है।

लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रो. सुधीर पंवार के अनुसार, ‘एकध्रुवीय संस्कृति को हावी करने में जुटा संघ सरकार बदलने के बाद से शिक्षा को बतौर हथियार इस्तेमाल कर रहा है। उनको पता है कि किसी चुनाव से भी ज्यादा असर शिक्षा परिसरों का होगा।’ हाल ही में मैग्ससे पुरस्कार विजेता और बीएचयू आईआईटी प्रोफेसर संदीप पांडेय को यूनिवर्सिटी ने नक्सल समर्थक कहकर निकाल दिया। इस बारे में संदीप कहते हैं, ‘इन दिनों काबिलियत को जेब में रख विचारधारा के आधार पर कैंपसों को पाटा जा रहा है।’ पूरे देश की यूनिवर्सिटीज़ में इस तरह के राजनीतिक या धार्मिक झुकाव और उनके कारण विवाद के मामले देखे जाते रहे हैं।

प्रश्नः 20.
सोच बदलेगी चेहरा बदलेगा
उत्तरः
फैशन को हम अक्सर बिना ज़्यादा सोचे अपनी जिंदगी में शामिल कर लेते हैं। ऐसा कम देखने को मिलता है कि फ़ैशन ने हमें अपनी जिंदगी में शामिल किया हो। लेकिन इस बार कुछ ऐसा ही हो रहा है।

साल 2005 में लक्ष्मी का नाम खबरों में था। वजह था एसिड अटैक। यह साल.2016 है। एक बार फिर लक्ष्मी चर्चा में हैं। वजह है फैशन की दुनिया में उनका नया अवतार। एसिड अटैक के बाद लक्ष्मी खुद भी अपने आप को पहचानना नहीं चाहती थीं, मगर आज उनकी पहचान लोगों के लिए मिसाल बन गई है। ऐसे और भी कई उदाहरण धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं, जिनसे फ़ैशन की दुनिया एक नये सिरे से बनती और संवरती हुई लगती है। जहाँ न गोरे होने की गरज है, न साइज जीरो बनने का दबाव। जहाँ सिर्फ आप हैं, जैसे हैं, जो हैं, उसी तरह।

एसिड अटैक की शिकार लक्ष्मी को फैशन रैंप तक पहुँचाने के पीछे उनके अपनों का साथ और लोगों की प्रेरणा तो है ही, इसमें अहम भूमिका निभाई है भारतीय एपेरल ब्रांड ‘वीवा एन दीवा’ ने। ‘वीवा एन दीवा’ ने अपने ब्रांड कैंपेन के लिए एक एसिड अटैक सर्वाइवर के चेहरे का चुनाव कर फैशन की दुनिया से जुड़ी कई मान्यताओं (स्टीरियोटाइप) को तोड़ने की एक सकारात्मक पहल की है। इनके ब्रांड कैंपेन ‘फेस ऑफ करेज’ का उद्देश्य है एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए फ़ैशन इंडस्ट्री में ज्यादा से ज्यादा संभावनाएँ तैयार करना।

खूबसूरत चेहरों से भरे इसे फ़ैशन जगत में अपना पहला कदम रख चुकी लक्ष्मी इस नई शुरुआत से बेहद खुश हैं। लक्ष्मी कहती हैं, ‘बात पिछले साल की है। एसिड सर्वाइवर रूपा के तैयार किए गए कुछ परिधानों में दिल्ली के फोटोग्राफर राहल सहारण ने तीन-चार एसिड अटैक सर्वाइवर्स का फोटो शूट किया था। उन्होंने कुछ तसवीरों को फेसबुक पर पोस्ट भी किया, जिन्हें देखने के बाद ‘वीवा एन दीवा’ ने अपने डिजाइनर कपड़ों के प्रचार के लिए मुझे अपना नया चेहरा चुना। सोलह भारतीय परिधानों में मेरा फोटोशूट हुआ। पहली बार बतौर मॉडल मैंने कैमरा फेस किया। लाइट्स, कैमरा, मेकअप आर्टिस्ट, पूरी तरह से एक अलग दुनिया थी, जिसके हर पल को मैंने जिया। हर पल मुझे महसूस हुआ जैसे मैं किसी प्रोफेशनल मॉडल से कम नहीं हूँ। इस कैंपेन के जरिए मैं लोगों को यही संदेश देना चाहूँगी कि चेहरे की खूबसूरती ही सब कुछ नहीं। शारीरिक रूप से सुंदर न होने के बावजूद भी हम किसी से कम नहीं हैं।’

जहाँ वर्षों से फ़ैशन और खूबसूरती का पुराना रिश्ता रहा है, वहां ‘वीवा एन दीवा’ की इस पहल का कारण क्या था? इसका जवाब देते हैं ‘वीवा एन दीवा’ के को-फाउंडर और डायरेक्टर रूपेश झवर, ‘हमारी आंखें हर दिन कैमरे के सामने खूबसूरत और बेदाग त्वचा वाली मॉडल्स को देखने की आदी हो गई थीं। जब पहली बार मैंने फोटोशूट में एसिड अटैक सर्वाइवर्स की तस्वीरें देखीं, तो एक पल में मैंने खूबसूरती के नए अंदाज को महसूस किया और फिर हमने सोचा क्यों न इस बार इनकी जिंदगी में कुछ नए रंग घोलें। उन्हें भी एक ऐसा मंच व प्लेटफॉर्म दें, जिसमें रोज़गार के साथ-साथ जीने की नई आशा मिले और वे भी एक सामान्य महिला की तरह स्टाइल में इतरा सकें, खुद पर नाज़ कर सकें। हमने कोशिश की और ये रंग भी लाई। ये कोशिश आगे भी जारी रहेगी।’

बेशक भारत में ऐसा कम या शायद पहली बार ही देखने को मिला हो, मगर न्यूयॉर्क और टोक्यो फैशन वीक में प्लस-साइस
मॉडल्स, हैंडिकैप्ड मॉडल्स और डाउन सिंड्रोम पीड़ित मॉडल्स रैंप पर पहले भी अलग-अलग अंदाज़ में नज़र आ चुके हैं।

प्रश्नः 21.
अब गुमसुम सी हारमोनियम की धुन
उत्तरः
तबले की थाप सुनी, तो याद आया, ‘वाह ताज’!, ढोलक की आवाज़ सुनी, तो याद आ गए वे सारे गीत जिन पर कभी भजन संध्या हुई, तो कभी शादी-ब्याह के गीत गाए गए। वीणा के तार छिड़े, तो प्रार्थनाएँ जुबान पर आने लगीं। मगर हारमोनियम की बात हुई, तो क्या याद आया! बाजे वाले और पेटी वाले, या फिर शायद कुछ भी नहीं। लोकगीत, भजन संध्या, कव्वाली, ठुमरी, सबद, गजल से लेकर बॉलीवुड के कई मशहूर गानों का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होने के बावजूद हारमोनियम आज भी कहीं गुम सा है। इसे हमेशा सहायक वाद्ययंत्र ही माना गया जबकि सिनेमा का पहला गीत हारमोनियम के सुरों से ही सजा था। सन् 1931 में पहली बोलती हुई फ़िल्म आई ‘आलमआरा’। इसके गाने ‘दे दे खुदा के नाम पर…’ में पहली बार हारमोनियम पर गीत गाया गया था। फ़िल्म और गाना दोनों सफल हुए।

इस गाने के जरिये प्लेबैक सिंगिंग शुरू हुई थी। इसे तबला और हारमोनियम पर रिकॉर्ड किया गया था। इसका प्रभाव कुछ ऐसा रहा कि वर्ष 1940 के बाद हारमोनियम ने फ़िल्म इंडस्ट्री में अपने लिए अच्छी खासी जगह बना ली। आगे भी यह सिलसिला जारी रहा। फ़िल्म ‘पड़ोसन’ का गाना ‘एक चतुर नार’ याद कीजिए… किशोर कुमार और महमूद इस गाने में हारमोनियम के जरिये ही एक-दूसरे के सामने अपने संगीत का हुनर दिखाते हैं इसके अलावा फ़िल्म ‘दोस्ती’ का ‘कोई जब राह नाम आए’ और ‘अपनापन’ फ़िल्म का ‘आदमी मुसाफिर’ है भी हारमोनियम की धुन पर ही हैं। इसके आगे के दौर में हारमोनियम के हुनर के साथ ही म्यूजिक डायरेक्टर्स की जोड़ी भी बनीं। इसका उदाहरण हैं शंकरजयकिशन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसी संगीतकार जोड़ियाँ। एक जोड़ी में जहाँ जयकिशन माहिर हारमोनियम प्लेयर थे, वहीं दूसरी में प्यारेलाल हारमोनियम के उस्ताद थे। हारमोनियम के माहिर संगीत निर्देशकों की बात करें, तो नौशाद अली का ज़िक्र भी ज़रूरी है।

एक दौर वह भी आया, जब ढोलक से अलग संगीत को लचकबद्ध करने के लिए हारमोनियम एक ज़रूरी साज बन गया। फैमिली फंक्शन, सामाजिक, धार्मिक आयोजनों में भी इसका बोलबाला था। फ़िल्म ‘वक्त’ के ‘ए मेरी जौहरजबी’ गाने को कौन भूल सकता है, जिसमें बैकग्राउंड में हारमोनियम बजता है। इसके अलावा अमिताभ बच्चन की फ़िल्में जैसे ‘मंजिल’ फ़िल्म का गाना ‘रिमझिम गिरे सावन’, ‘सिलसिला’ का ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली’, ‘चुपके-चुपके’ के ‘सारेगामा’ में भी हारमोनियम के सुर लगे हैं। 21वीं सदी में भी हारमोनियम की धुन पर कई यादगार गाने हैं, जो लोगों की जुबान पर चढ़ गए। सन् 2010 में आई फ़िल्म ‘तीस मार खाँ’ का गाना ‘शीला की जवानी’ याद करें।

बेशक विशाल शेखर की आवाज़ और कैटरीना कैफ के डांसिंग स्टैप्स ने इसे पॉपुलर बनाया लेकिन, हारमोनियम का इस्तेमाल भी इस गाने की बड़ी खासियत रही। गाने के अंतरे के दौरान हारमोनियम का जिस तरह इस्तेमाल हुआ, उससे संगीत प्रेमियों की हारमोनियम से जुड़ी पुरानी यादें ताजा हो गई होंगी। साल 2006 में आई फ़िल्म ‘ओमकारा’ का गाना ‘नमक इश्क का’ भी उस वक्त सभी की जुबां पर चढ़ा था। इसके बोलों के साथ-साथ हारमोनियम की धुन ने भी इसे मशहूर बनाया था। हारमोनियम के जरिये सिनेमा की दुनिया बेशक निखरी और संवारी हो, मगर हारमोनियम का वास्तविक वजूद बनना-संवरना अभी बाकी है।

गत वर्षों में पूछे गए प्रश्न निम्नलिखित विषयों पर फ़ीचर लेखन कीजिए

1. स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत अथवा ‘वन रहेंगे : हम रहेंगे’ विषय पर एक फ़ीचर लिखिए। (CBSE-2017)
2. “मुझे जन्म देने से पहले ही मत मारो माँ!” अथवा “जाति प्रथा : एक अभिशाप” विषय पर एक फ़ीचर लिखिए। (CBSE-2017)
3. किसी पर्यटन-स्थल का नैसर्गिक सौंदर्य अथवा ‘चुनाव-प्रचार की नई-नई विधियाँ’ विषय पर एक फ़ीचर लिखिए। (CBSE-2017)
4. ‘बदलता शैक्षिक परिवेश’ अथवा ‘बाल मजदूरी’ विषय पर एक फ़ीचर लिखिए। (CBSE-2017)
5. ‘जल ही जीवन है’ अथवा ‘मेरा देश मेरा कर्तव्य’ विषय पर एक फ़ीचर लिखिए। (CBSE-2017)
6. भीड़ भरी बस का अनुभव। (CBSE-2016)
7. चुनाव प्रचार का एक दिन। (CBSE-2016)
8. जंक फूड की समस्या। (CBSE-2015)
9. स्वच्छता अभियान। (CBSE-2015)
10. सजग नागरिक। (CBSE-2015)
11. विलुप्त होती गौरैया। (CBSE-2015)
12. काम पर जाते बच्चे। (CBSE-2015)
13. मज़दूरों की समस्या। (CBSE-2015)
14. सुनसान होते गाँव। (CBSE-2015)
15. भूकंप की त्रासदी। (CBSE-2015)
16. सब पढ़े सब बढ़ें। (CBSE-2015)
17. महानगरों के विद्यालयों में प्रवेश की समस्या। (CBSE-2014)
18. केदारनाथ में जल प्रलय। (CBSE-2014)
19. बच्चों का छिनता बचपन। (CBSE-2014)
20. शिक्षा का बाज़ारीकरण। (CBSE-2014)
21. भ्रष्टाचार का दानव। (CBSE-2014)
22. क्रिकेट का बादशाह सचिन। (CBSE-2014)
23. जंतर-मंतर पर प्रदर्शन। (CBSE-2013)
24. वर्षा न होने से बढ़ता अकाल का दायरा। (CBSE-2013)

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पुस्तक समीक्षा | class 12th | Hindi कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन ncert solution

Class 12 Hindi पुस्तक समीक्षा

पुस्तक समीक्षा
आधुनिक काल में भले ही इंटरनेट का जोर हो, ई-बुक्स का प्रचार-प्रसार हो रहा है। इन सबके बावजूद, दुनियाभर में पुस्तकों की बिक्री बढ़ रही है। पुस्तकें ज्ञान का भंडार हैं। मुद्रित पुस्तक को पढ़ने के लिए समय की ज़रूरत होती है। पुस्तक पठन के लिए उम्र व स्थान का बंधन नहीं होता। किसी पुस्तक की समीक्षा हेतु निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना अनिवार्य है –

  1. पुस्तक का पूर्व अध्ययन करना चाहिए।
  2. पुस्तक के मुख्य-मुख्य बिंदुओं को नोट करना चाहिए।
  3. पुस्तक के शिल्प पक्ष का भी ज्ञान होना चाहिए।
  4. पुस्तक की अच्छाइयों के वर्णन के साथ-साथ कमियों को भी उजागर करना चाहिए।
  5. समीक्षा करते समय पूर्वाग्रह से दूर रहना चाहिए।

उदाहरण (हल सहित)
जिंदगी की साँझ से संवरती कविताएँ

-डॉ० रूप देवगुण

कविता-संग्रह : साँझ का स्वर
कवयित्री : डॉ० सुधा जैन
प्रकाशन : अक्षरधाम प्रकाशन, कैथल
मूल्य: 150/- वर्ष : 2012

डॉ० सुधा जैन हरियाणा की प्रतिष्ठित कवयित्री, कहानी लेखिका व लघुकथाकार हैं। ‘साँझ का स्वर’ इनका छठा काव्य-संग्रह है। इस संग्रह में इनकी कुछ कविताएँ जीवन की साँझ को मुखरित करती हैं। ‘साँझ घिर आई’ में वृद्धावस्था में व्यतीत हो रहे जीवन का लेखा-जोख है। दिनभर का लेखा-जोखा/क्या खोया क्या पाया/ ‘फिर मिलेंगे’ में बचपन, जवानी, बुढ़ापा, मृत्यु व पुनर्जन्म की बात की गई है। ‘हँसते-हँसते’ में फिर बुढ़ापे की जिंदगी को दोहराया गया है-बिस्तर में सिमट गई जिंदगी/किताबों में खो गई जिंदगी/ ‘भीतर की आंखें’ में बुजुर्गों की दयनीय दशा का वर्णन है। वे बाहर से अशक्त दिखाई देते हैं और भीतर की आंखों से ही संसार का अवलोकन कर सकते हैं-भीतर की खुल गई आँखें/मैं भी देख रही अब/अपने चारों ओर बिखरा संसार/ढलती उम्र में विस्मृतियों का सहारा लेना पड़ता है-पुरानी फाइलों में दबे पत्र पढ़े। कितनी घटनाएँ, कितने लोग, कितने नाम, विस्मृति के अंधेरे में खोये टिमटिमा उठे (विस्मृति का कोहरा)।

डॉ० सुधा जैन ने इस संग्रह की कई कविताओं में नारी के स्वर को तरजीह दी है। ‘घर-बाहर के बीच पिसती औरत’ कविता में नौकरी करने वाली औरतों की तकलीफदेह ज़िन्दगी का लेखा-जोखा है-सुबह पाँच बजे उठती/घर संवारती/चाय, नाश्ता, खाना बनाती/बच्चे स्कूल भेजतीं/पति को ऑफिस भेज/भागती दौड़ती/अपने दफ़्तर पहुँचती/बॉस की डांट सुनतीं/रोज ही देर हो जाती। औरत आज भी सुरक्षित नहीं है-आज भी सुरक्षित नहीं/औरत/इतनी शिक्षा/इतने ऊँचे-ऊँचे ओहदों पर/पहुँचने के बाद (औरत)। माँ की आँखें दफ़्तर से लौटने वाली जवान बेटी को खोज रही हैं- खोज रही आँखें/भीड़ में अपनी बेटी/लौटी नहीं/दफ्तर से।

घूमते सब ओर/सड़कों में, पार्कों में बसों में/ट्रेनों में (नहीं लौटेंगे कदम पीछे) वस्तुतः औरत संपन्न पिंजरे की मैना जैसी है-सबका मनोरंजन करती/मैं पिंजरे की मैना/उड़ना भूल गई/(पिंजरे की मैना) धन संपन्न नारियाँ अधिकतर रोगग्रस्त हैं, इसका वर्णन कवयित्री ने ‘धन संपन्न नारियाँ कविता में किया है। वास्तव में इनके पास सब कुछ है किंतु सुख नाम की कोई चीज़ नहीं है। गांव में रहने वाली औरत का और भी बुरा हाल है। ‘गांव की छोटी’ कविता में डॉ० सुधा जैन ने लिखा है-चाहा उसने यदि/अपने मन की मीत/ तो लांघ गई सीमा/गंडासे से काट दी जाति। ‘इतनी उपेक्षा क्यों’ कविता में भ्रूण समस्या को लिया गया है।

डॉ० सुधा जैन ने आज के मशीनी युग का वर्णन इस प्रकार किया है-मशीनी युग में। जीते-जीते/मशीनवत हो गए हम/(मशीनों का युग) विदेशी माल की भर्त्सना करते हुए कवयित्री ने लिखा है-बाजार भर गये/विदेशी माल से/ढूँढ़ते लोगी/चीनी जापानी…. बनी चीजें/(कहां खो गया अपना देश) डॉ० सुधा जैन ने ‘जीने की राह’ कविता में जीवन की एकरसता को तोड़ने के साधन बताए हैं- मेले पिकनिक/सेर सपाटे/यात्राएँ तीज/त्योहार/जन्मदिन/शादियों के आयोजन/भिन्न-भिन्न समारोह/तोड़ देते एक रसता।

‘त्राहि-त्राहि’ कविता में महँगाई की समस्या को लिया गया है। किसान की दुर्दशा का भी कवयित्री ने वर्णन किया है-कहीं बाढ़/बह रहे मवेशी, मनुष्य/गाँव के गाँव/कहीं रो रहा किसान (बाढ़) प्रकृति से हम दूर होते जा रहे हैं, इसका वर्णन ‘प्रकृति से टूट रहा नाता’ कविता में इस प्रकार किया है-रात को सोते थे/खुली छतर पर/चाँदनी में नहाते…. प्रभात की मंद बयार/कितना मोहक होता था। प्रकृति का वह पहर। ‘चदरिया’ में जीवन-मृत्यु की दार्शनिक बाते हैं फिर भी क्यों/जीने की चाह/न जन्म अपना/न मृत्यु अपनी।

डॉ० सुधा जैन की इन कविताओं में सरल भाषा है, तुलनात्मक व संस्मरणात्मक शैलियाँ हैं। इन्होंने नारी जाति की समस्याओं को विशेष रूप से अपनी कविताओं में लिया है। इनकी कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता जीवन की सांध्य को लेकर लिखी रचनाएँ हैं। डॉ० सुधा जैन को अच्छी व स्तरीय कविताओं के लिए साधुवाद।

विसंगति, विडंबना और प्रेम

-डॉ० वेदप्रकाश अमिताभ

कहानी-संग्रह : प्रेम संबंधों की कहानियाँ
लेखक : संतोष श्रीवास्तव
प्रकाशन : नमन प्रकाशन, 4231/1, अंसारी रोड, दरियागंज, दिल्ली
मूल्यः 250/- प्रथम संस्करण : 2012

संतोष श्रीवास्तव की प्रेम संबंधों पर केंद्रित इन कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि प्रायः कोई न कोई हादसा कोमल रागात्मक संबंधों को आहत कर गया है। यह हादसा प्रायः किसी स्वजन की मृत्यु के रूप में है। हालांकि आकस्मिक मृत्यु के संदर्भ अलग-अलग हैं। अजुध्या की लपटें में रुस्तम जी सांप्रदायिक नफ़रत के शिकार हुए हैं, ‘अपना-अपना नर्क’ में शिशिर और अनूप सड़क दुर्घटना में क्षत-विक्षत हुए हैं। आतंकवाद के दानवी पंजे (‘शहीद खुर्शीद बी’)हों या विमान दुर्घटना (‘दरम्यान’) या रंगभेद हो या पर्वतारोहण (‘ब्लैक होल’) के दौरान घटित अघटित हो, एक व्यक्ति की मृत्यु उनके आत्मीयों के लिए अभिशाप बन गई है। हालांकि मरे हुओं के साथ दूसरे लोग मर नहीं जाते, जीवित रहते हैं। इस जीवित रहने में जो तकलीफ है, स्मृति के दंश हैं, पश्चाताप है, कुछ कठोर निर्णय हैं, उनका बहुत स्वाभाविक, मनोवैज्ञानिक और मार्मिक अंकन इन कहानियों में हुआ है।

यह ध्यानाकर्षक है कि कई कहानियों में विपरीत और त्रासद परिस्थितियों में भी रागात्मक लगाव जीवित रहता है। मृत्यु मनुष्यों की हुई है, बहुत से सपने असमय काल कवलित हुए हैं, पारिवारिक संबंधों में दरारें आयी हैं, लेकिन समर्पण-भाव और अनन्य अनुराग शिथिल या कम नहीं हुआ है। इस दृष्टि से ‘शहतूत पक गए हैं’, ‘आइरिश के निकट’, ‘फरिश्ता’, ‘ब्लैक होल’, एक मुट्ठी आकाश’ आदि कहानियाँ उल्लेखनीय हैं। ‘शहतूत पक गए हैं’ की दिदिया और जगदीश जैसे एक दूजे के लिए बने थे, लेकिन परिवारी जन उनका ‘साझा सपना’ साकार नहीं होने देते और दिदिया खुद को ‘अगरबत्ती की तरह’ आहिस्ता-आहिस्ता जलने को तैयार कर लेती हैं।

‘आइरिश के निकट’ और ‘अजुध्या की लपटें’ में ‘सम्प्रदाय’ दो दिलों के मिलने में आडे आया है। ‘फरिश्ता’ में रंगभेद श्वेत मेलोडी और अश्वेत एंजेली के बीच खाई बना है। ‘एक मुट्ठी आकाश’ में डिवॉसी कुमकुम से मनीष का लगाव भारी पड़ता है, परिवार, दोस्त, माँ सब मुँह फेर लेते हैं लेकिन इन सभी कहानियों में प्रेम अविचलित है, उसका संबंध तन तक सीमित नहीं है। ‘अपना अपना नर्क’ में मीनाक्षी और शिशिर का विवाह होने से पहले शिशिर एक दुर्घटना में जान गँवा देता है लेकिन मीनाक्षी उसकी स्मृतियों से मुक्त नहीं हो पाती। ‘ब्लैक होल’ की उर्मि भी प्रशांत की मृत्यु को स्वीकार नहीं कर पाती है।

लेकिन ये कहानियाँ भावुकता में लिपटी कोरी प्रेम कहानियाँ नहीं हैं। संतोष श्रीवास्तव ने इन्हें परिवेश की प्रामाणिकता से समृद्ध कर बृहत्तर यथार्थ का संवाहक बना दिया है। प्रायः कहानियाँ नारी चरित्रों पर केंद्रित हैं, अतः स्त्री संबंध अवमूल्य और कुरूपताएँ विशेष मुखर हैं।

अपने अभिप्राय को व्यक्त करने में सर्वथा सक्षम भाषा संतोष श्रीवास्तव के पास है। अतः वे स्थितियों-मनः स्थितियों को सफलतापूर्वक उकेर सकी हैं। ‘तुम्हारा हिस्सा कनकलता’ में रवींद्र दा के निधन के बाद कात्यायनी की मनःस्थिति के चित्रण के लिए कहानीकार ने ‘चक्रवात’ और ‘कटे पेड़’ का सहारा लिया है और ‘ब्लैक होल’ में ब्लैक होल का प्रतीकार्थ व्यापक है। एक कहानी में ‘कलम’ को वह जादू की छड़ी कहा गया है, जो सिंड्रेला को राजकुमारी बना सकती है। कलम की कुछ नया और महत्त्वपूर्ण रचने की ताकत इन कहानियों में भी दबी-ढंकी नहीं है।

गलीवाला आम का वृक्ष

कहानी-संग्रह : गलीवाला आम का वृक्ष
लेखक : कुँवर किशोर टंडन
प्रकाशन : पहले-पहल प्रकाशन, भोपाल
मूल्य: 115/- पृष्ठ : 104

कुँवर किशोर टंडन का नवीनतम कहानी-संग्रह ‘गलीवाला आम का वृक्ष’ है। इससे पहले उनके दो काव्य-संग्रह आ चुके हैं। इस कहानी-संग्रह में कुल ग्यारह कहानियाँ शामिल हैं। सभी कहानियाँ मानव-जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी हुई हैं। इसके विभिन्न पात्र भी सभी समुदायों तथा वर्गों से लिए गए हैं।

आमतौर से यह धारणा बनी रहती है कि सरकारी उच्च अधिकारी सदा ऐश करते हैं और उन्हें काम-धाम नहीं करना पड़ता, वे लोग सिर्फ सरकारी तथा गैर-सरकारी सुख-सुविधाओं का उपभोग करते हैं, मगर टंडन की कहानी ‘आशंकाओं के घेरे’ पढ़ने के बाद यह धारणा काफ़ी बदल जाती है, क्योंकि एक छोटे से शक की वजह से एक सरकारी अधिकारी किस मुश्किल में पड़ सकता है, इसका अंदाजा एक साधारण व्यक्ति को नहीं हो सकता।

दोस्ती-यारी को जीवन में एक उच्च स्थान दिया जाता है, मगर आप जिसे दोस्ती समझ रहे हो, आपका मित्र उसका व्यावसायीकरण कर उसका इवजाना माँगने लगे तो ‘सो आवत यह देश’ के विवेक की भाँति मन यही सोचने लगता है कि शंकर ने उससे जो कहा, वह झूठ ही रहे। यह कहानी हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था पर भी काफ़ी गहरी चोट करती है, जिसकी धीमी प्रक्रिया सालों-साल लगा देती है।

‘गलीवाला आम का वृक्ष’ कहानी हमारी उस पारंपरिक सोच की ओर इंगित करती है, जहाँ पुरुष की बुरी नियत का शिकार होने पर सारा दोष लडकी को ही दिया जाता है, चाहे वह कितनी मासूम, भोली और कम उम्र की क्यों न हो और सबसे बड़ी बात बेकसूर होने पर भी समाज की ओर से दंड की भागीदारी उसे ही बनना पड़ता है।

कुछ इसी प्रकार की सच्चाइयाँ कहानीकार अपनी अन्य कहानियों में भी प्रस्तुत करता है, जिनमें से ‘मशीन और नारी’, ‘धागे से झूलती हुई ज़िन्दगी’, ‘एक टूटी हुई संवेदना’ आदि का जिक्र किया जा सकता है। इन सभी कहानियों की कथावस्तु इस बात का संज्ञान करवाती हैं कि वस्तुतः सामाजिक परिस्थितियों तथा भोगवादी प्रवृत्तियों के तहत आज की युवा पीढ़ी में ही नहीं बल्कि अधिकतर व्यक्तियों में संवेदनहीनता बढ़ती जाती है।

कहानियों में तनाव की स्थिति इस बात का अहसास करवाती है कि आज के युग में सामान्य जन-जीवन भी आसान नहीं। यथार्थ की कटुता के बीच भी ‘डायरी’ की वह तारीख तथा ‘बेंत वाली काठ की कुर्सी’ सरीखी भावुक तथा सौहार्दपूर्ण घटनायें भी जीवन को इंसानियत तथा रिश्तों की गरिमा के दायरे में बाँधती प्रतीत होती हैं। कुल मिलाकर ‘गलीवाला आम का वृक्ष’ के साथ पाठकों को निकटता का अहसास होता है।

कितने पास कितने दूर

कहानी-संग्रह : कितने पास कितने दूर ।
लेखक : आनंद प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
प्रकाशन : सूर्य भारती प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य: 150/- पृष्ठ : 96

आनंद प्रकाश ‘आर्टिस्ट’ के प्रथम कहानी-संग्रह के रूप में पाठकों/आलोचकों के सामने आया ‘कितने पास कितने दूर’। नौ कहानियों का समावेश करता यह कहानी-संग्रह अपने मुख्य शीर्षक को ही तकरीबन सभी कहानियों में प्रतिपादित करता है। कौन कितना पास होकर भी दूर है, और कौन दूर होकर भी पास है, इसका सही-सही अनुमान लगाना आसान नहीं होता, विशेषकर प्रेमियों के संदर्भ में।

‘कितने पास कितने दूर’ नामक मुख्य शीर्षक वाली कहानी में दो प्रेमी आपस में प्रेम करने के बावजूद समाज के रीति-रिवाजों तथा नियमों के आड़े आ जाने के कारण शादी के बंधन में नहीं बँध पाते, मगर भावनाओं तथा संवेगों से एक-दूसरे से निकटता ही महसूस करते हैं।

‘कौन किसका है’ नामक कहानी में भी दो प्रेमियों के सामने वर्ग-श्रेणी आ जाती है। जिसे अपना मन का मीत माना जाता है, वही शादी के बाद बदल जाता है, ऐसे में कॉलेज समय का एक मित्र आकर कृष्णा को उसके दुख से उबारता है।

अध्यापन के क्षेत्र से जुड़े होने के कारण लेखक की कहानियों के अधिकतर पात्र अध्यापक वर्ग से लिए गये हैं। लेखक की नज़र में भी अध्यापकों का चरित्र ऊँचा होने के कारण वह इसी पारंपरिक अवधारणा को ही मान्यता देते हुए कहानियों के मुख्य पात्रों को आदर्श तथा उच्च चरित्र का ही दर्शाया है, जो अपने जीवन की सबसे बड़ी खुशी को भी समाज के नियमों के अधीन कुर्बान कर देते हैं। चाहे वे कितने पास कितने दूर का अध्यापक हो या कौन किसका है की कृष्णा या फिर ‘फूल तुम्हें भेजा है’ का अध्यापक अविनाश।

अन्य कहानियाँ ‘आदर्श, मुहब्बत का दर्द, खोया हुआ अतीत इत्यादि में भी लेखक आदर्शों तथा उच्च मूल्यों को अपनाने पर जोर देता है। उसकी सभी कहानियाँ वृत्तांत ढंग से बयान की गयी हैं। लंबे-लंबे संवाद, जो भाषण या प्रवचन शैली को अपनाते प्रतीत होते हैं। अधिकतर बात पात्रों के माध्यम से की गयी है। सभी कहानियों में शिक्षक, शिक्षा अधिकारी इत्यादि का ज़िक्र थोड़ा-सा अखरता भी है। हो सकता है, लेखक का प्रथम प्रयास होने के कारण उससे अनजाने में ऐसा हो गया हो। उम्मीद करते हैं कि लेखक का आने वाला अगला कहानी-संग्रह कुछ नवीन विषयों तथा पात्रों सहित पाठकों के सामने आएगा।

मानवीय परिप्रेक्ष्य का संवेदनात्मक विस्तार : हरियश राय की कहानियाँ

-डॉ० राजकुमार

अंतिम पड़ाव

पुस्तक : अंतिम पड़ाव (कहानी संग्रह)
लेखक : हरियश राय
प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन 4855-56/24, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002
मूल्य : एक सौ चालीस रुपये

हरियश राय के नवीनतम कहानी-संग्रह ‘अंतिम पड़ाव’ की अधिसंख्य कहानियों के केंद्र में वही सवाल हैं जो आज के समाज की चिंता के केंद्र में मौजूद हैं। भारत में बाज़ारवाद और धार्मिक संकीर्णतावाद एक तरह से जुड़वा अवधारणाओं की तरह उभरे हैं। धर्म के सहारे राजनीतिक और आर्थिक सत्ता की सीढ़ियां चढ़ता मध्ययुगीन तत्ववाद और सबकुछ मानवीयता को विस्थापित करता बाजारवाद। कहानीकार स्थानीय अनुभव को वैश्विक स्तर के परिदृश्य से जोड़कर अपने समय और समाज के क्रूर सत्य की इन दो तहों को खोलता हुआ आगे बढ़ता है। ‘न धूप न हवा’, ‘नींद’, ‘ढानी में ठिठुरन’, ‘होमोग्लोबीन’, ‘पानी की तेज़ धार’ जैसी कहानियों में महानगर से लेकर धुर देहात तक फैली आत्म-निर्वासन की उदासी पाठक की संवेदना को बार-बार झकझोरती है। समूचे परिवेश में पसरे इस आत्मनिर्वासन के अपने कारण, अपना स्वभाव और अपनी विशेष स्थिति है जो वर्तमान समाज के ढांचे और उसके अंतर्विरोधों से उत्पन्न हुई हैं।

इस निर्वासन का सामाजिक और इससे भी अधिक आर्थिक संदर्भ है। घोर आर्थिक विषमता में रहता हुआ आदमी ‘डिप्रेशन’ महसूस करता है। चूँकि उसका अपनी मेहनत से पैदा की गई वस्तु से कोई लगाव नहीं होता, यंत्रों की तरह संबंधहीनता और जड़ता उसमें समाती जाती है, जो सारे सामाजिक संबंधों और दायित्वों तक फैल जाती है। यह परायापन पूँजीवादी सभ्यता की देन है, जिसमें सभी ठोस परिस्थितियाँ और समूचा वातावरण आदमी को बराबर यह महसूस करवाते रहते हैं कि वह एक ऐसे निर्वैयक्तिक ढांचे-अप्रेटस पर निर्भर है जो उसके बाहर (और भीतर भी) चालू है और बिना उसकी संचेतना और सहयोग के उसे चलाता है।

‘न धूप न हवा’ का रामानंद, ‘नींद’ के नवीन शर्मा, ‘ढाणी में ठिठुरन’ का मंगला ‘हीमोग्लोबिन’ की विनय सुनेजा, ‘पानी की तेज़ धार’ के श्रीनिवासन इसी आत्मनिर्वासन के शिकार चरित्र हैं। ‘अंतिम पड़ाव’ में एक मुट्ठी चावल के लिए तेज़ धूप में मीलों खटती और रंचमात्र मानवीय संवेदना के लिए तरसती सोना घोष और पानूबाला के माध्यम से हरियश राय ने वृंदावन में घोर अमानवीय परिस्थितियों में जीवन काटती बंगाली विधवाओं की करुण गाथा को नया मानवीय संदर्भ दिया है।

‘खफा-खफा से’ कहानी में लेखक हिंदुत्ववादी शक्तियों के उभार के बाद आम मुस्लिम समाज की कठिनाइयों से हमें रू-ब-रू कराता है। नसीम अख्तर से पूछा गया रफीक हुसैन का यह सवाल हमारे जेहन में बराबर कौंधता है-“क्या आपको नहीं लगता सर कि हमारा उपहास-सा किया जा रहा है। हमें हाशिए पर जानबूझकर रखा जा रहा है। हमसे आत्मीयता नहीं जताई जाती। एक अनचाही-सी दूरी हमसे बनाई जाती है। आप ही बताइए सर, एक असुरक्षा की भावना क्यों है हममे? हम लोग अपनी बदनामी से क्यों इतना डरते हैं ? हम अपने जीवन के फैसले लेते समय अपने आपको मुस्लिम के रूप में क्यों देखते हैं ? हमारे लिए शहर के कुछ इलाके वर्जित क्यों हैं? हमें बार-बार क्यों यह अहसास कराया जाता है कि हम मुसलमान हैं? क्यों हम लोगों से एक दूरी लोग बनाए रखते हैं ? इन ढेर सारी मुश्किलों को हम कैसे अपनी कोशिशों से दूर कर सकते हैं ?”

महान कथाकार टामस हार्डी ने कहा था कि, ‘एक अच्छी कहानी थप्पड़-सा मारकर हमारी संवेदना को जगाती है और हमें नई सामाजिक सच्चाइयों की जानकारी देती है।’ इसी तर्ज पर हरियश राय की ये कहानियाँ हमारी संवेदना और सामाजिक जागरूकता को ज़रूर विस्तार देती हैं।

दलित साहित्य का संवेदनशील मूल्यांकन

-डा० राजकुमार

पुस्तक : दलित साहित्य : एक मूल्यांकन
लेखक : प्रो० चमन लाल
प्रकाशक : राजपाल एंड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली-110006
मूल्य : दो सौ पच्चीस रुपये

‘दलित साहित्य एक मूल्यांकन’ प्रोफेसर चमनलाल के पिछले दो दशकों में प्रकाशित उन महत्त्वपूर्ण लेखों का संकलन है जो उन्होंने ‘दलित प्रश्न’ के विविध साहित्यिक, सामाजिक और आर्थिक पक्षों को लेकर लिखे थे। यहाँ संकलित लेखों में से अनेक ऐसे हैं जो विभिन्न विश्वविद्यालयों और उच्चतर शोध संस्थानों में आयोजित संगोष्ठियों में लेखक द्वारा प्रस्तुत शोध-निबंधों के रूप में तैयार किये गये थे लेकिन एक सुखद विस्मय का अनुभव इन शोध और आलोचनात्मक लेखों के बीच से गुज़र कर होता है।

वह इस वजह से कि इन लेखों में आयंत एक ऐसी संवेदनशील मानवीय प्रतिश्रुति उपस्थित मिलती है जो हमें एक अपार दुख संवलित मानवता के अविभाज्य और अहम हिस्से के रूप में दलित वर्ग के बारे में बेरुखी से भरी तटस्थ अकादमिक नीरसता में ले जाकर अकेला नहीं छोड़ देती बल्कि हमें गहरे वैचारिक सोच से भरते हुए उनकी नियति से एकात्म होकर संगठित कार्रवाई के लिए संकल्पबद्ध करती है। लेखक का यह कहना सही है कि ‘भारतीय समाज में दलित थे नहीं, वे एक ऐतिहासिक-सामाजिक प्रक्रिया में भारत के मूल निवासियों से ही अप्राकृतिक रूप से क्रूर सत्ता व दमन का प्रयोग कर ‘दलित’ बनाए गए हैं।

‘दलित साहित्य’ पर विचार करते हुए लेखक ने इस राय पर अपनी ताइत्तिफाकी जाहिर की है कि ‘दलित लेखन’ वही है जो दलितों द्वारा ‘दलितों के लिए’ लिखा जाता है। उसका कहना है कि ‘दलित समुदाय बृहत्तर समाज का अंग है। दलितों की मानवीय अस्मिता के प्रति बृहत्तर समाज की संवेदना जाग्रत होनी ही चाहिए, जिसमें दलित साहित्य की भूमिका हो सकती है।

….अब रहा ‘दलितों के जीवन पर’ लिखने का अधिकार। बृहत्तर समाज एक ऐसी इकाई है जिसमें विभिन्न सामाजिक समुदाय एक-दूसरे से आदान-प्रदान में रहते हैं।…इस अर्थ में दलित लेखक की दलित समुदाय से निकटता या उस समुदाय का अंग होने की स्थिति, अपने समुदाय को अधिक संवेदना, सहानुभूति या अधिक वस्तुगतता से चित्रित करने में सहायक हो सकती है। लेकिन समाज के विभिन्न समुदायों को एक-दूसरे से काटकर नहीं देखा जा सकता। इस अर्थ में हर लेखक अपनी रचना में बहुत सारे समुदायों को एक ही समय चित्रित करेगा और इस भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि एक लेखक की अंतर्दृष्टि, उसकी विकसित मानवीय संवेदना उसे उसी समुदाय के साथ जोड़ेगी जो मानवीय स्तर पर सर्वाधिक उत्पीड़ित (अनेक अर्थों में–वर्ग, जाति या लिंग के स्तर पर) हैं।”

‘दलित साहित्य और मार्क्सवाद’ शीर्ष से लिखे अपने लेख में प्रो० चमनलाल ने सही कहा है कि ‘भारतीय समाज व भारतीय साहित्य के संदर्भ में प्रगतिशील साहित्य व दलित साहित्य-दोनों ही प्रवृत्तियाँ समाज की ऐतिहासिक अनिवार्यता से पैदा हुई हैं, दोनों का अन्त:संबंध एक-दूसरे का विरोधी न होकर पूरक होने का है व दोनों ही प्रवृत्तियाँ विश्व की महान परिवर्तनकामी मानवतावादी क्रांतिकारी साहित्य-परम्परा का गौरवशाली अंग है, जो भारतीय समाज के रूढ़िवादी संस्कारों को बदलने व नई मूल्य-चेतना विकसित करने में अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभा रही है।’

यह पुस्तक विभिन्न भारतीय भाषाओं में लिखे गए और लिखे जा रहे दलित साहित्य के अब तक अलक्षित पहलुओं से हमें रू-ब-रू कराते हुए हमारी जानकारी को तो बढ़ाती ही है साथ ही मौजूदा समाज में तेजी से स्वीकार्यता पाते जा रहे ‘दलित विमर्श’ में भी बहुत कुछ सकारात्मक जोड़ती है। ‘

….अहमक फफूंदवी : एक बढ़िया किताब।’

-अजय

‘जंगे आज़ादी के कलमी सिपाही : अहमक फफूंदवी’ स्वतंत्रता की लड़ाई में अपनी शेरो-शायरी से हिंदुस्तान की अवाम के जमीर को झिझोंड़कर जगाने वाले इंकलाबी दानिशवर जनाब ‘मुस्तफा खाँ ‘मद्दाह” उर्फ ‘अहमक फफूंदवी’ को एक नौजवान कलमकार का बाअदब सलाम भी है और कृतज्ञ राष्ट्रवादी मानसिकता की पावन श्रद्धांजलि भी। इस पुस्तक के लेखक श्री गोविन्द द्विवेदी मूलतः कवि हैं। गीतकार के रूप में उनकी कीर्ति अनेक सोपान पारकर उच्च पटल पर स्थापित हो चुकी है।

प्रकाशन के क्षेत्र में यह पुस्तक साहित्य जगत को उनकी दूसरी भेंट है। इससे पूर्व वह ‘श्री हनुमानाष्टक’ का प्रकाशन करा चुके हैं। अध्यापन के माध्यम से लोक-कल्याण हेतु कटिबद्ध गोविन्द जी भावना एवं आचरण से अत्यंत विनम्र हैं। उनकी चेतना मानव की संकुचित संकीर्णताओं से निस्संदेह ऊपर, बहुत ऊपर उठ चुकी है। अहमक फफूंदवी पर किया गया उनका यह कार्य साबित करता है कि उनका दृष्टिकोण विस्तृत है, सामाजिक संदर्भो में भी, आत्मपरक संदर्भो में भी। तभी तो अपने साहित्यिक जीवन के प्रायः शैशव काल में ही उनकी प्रज्ञा उन्हें कौमी इंकलाब के हंगामाखेज शायर जनाब मुस्तफा खाँ ‘मद्दाह’ (अहमक फफूंदवी) की यादें कलमबद्ध करने के लिए प्रेरित कर सकी।

मेरी दृष्टि में तो लेखनी की सफलता तथा सिद्धि इसी में है कि वह आदम सभ्यता के उन शीर्षस्थ मुद्दों पर लिखे जो मानव की संवेदनाओं से भी जुड़े हों और संस्कारों से भी और इन सबसे भी अधिक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है ‘राष्ट्रीय चेतना एवं राष्ट्र धर्म’। मैंने पूर्व में एक मुक्तक लिखा था यहाँ बड़ा प्रासंगिक लग रहा है।

वीर प्रसू माँ की व्यथायें कागजों पर लिख सके,
शौर्य साहस की ऋचायें कागजों पर लिख सके।
कलम ने सिर कलम करवाया तो केवल इसलिए,
उन शहीदों की कथायें कागजों पर लिख सके।

जनाब ‘अहमक’, विचारों की सृष्टि से शहीद क्रांतिकारियों की विरादरी के ही थे। उनके शेरों की बोली जंगे आज़ादी के उन दीवानों की गोली से कम मारक नहीं थी, न ही उनकी शायरी की धार भारत माता की आजादी के लिए उठी किसी तलवार की धार से कमतर। उनके फों में चाबुक जैसी मार थी और कोड़ों जैसी फटकार। कई बार तो वह अदबी उसूलों और बाहर की बंदिशों से बाहर जाकर भी गोरी सरकारी और समाज के सरमायादारों को डाँट पड़ते थे-

देखिये एक बानगी :

यूँ नहीं मिलने की इन खूखार कुत्तों से निजात,
शेर बनिये और मैंदाँ में बिफरना सीखिये।

कृतिकार गोविन्द द्विवेदी ने लेखन में इस बात का विशेष ध्यान रखा है कि जनाब ‘अहमक फफूंदवी’ के इंकलावी तेवर अधिक से अधिक खूबसूरत अंदाज में पाठक के सामने प्रस्तुत किए जायें।

‘प्रेमचंद के उपन्यासों में दलित चेतना’

-प्रभा

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का कथा जगत् में अवतरण हिंदी की एक युगांतरकारी घटना है। हिंदी की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा कथा साहित्य में प्रेमचंद से एक नए युग का सूत्रपात होता है। प्रेमचंद जी की उपलब्धि यह थी कि उन्होंने भारतवर्ष के आंचलिक परिवेश की समग्र या सर्वांग अभिव्यक्ति अपने कथा-साहित्य में पूर्ण संवेदना के साथ की है। उनकी सभी कृतियों में शोषण का प्रतिकार है, अस्तु उनके उपन्यासों को दलित चेतना के महान दस्तावेज की संज्ञा से अभिहित किया गया है।

विवेकानंद पी०जी० कॉलेज, दिबियापुर के हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष के रूप में कार्यरत डॉ० धर्मेंद्र प्रताप सिंह द्वारा लिखित ‘प्रेमचंद के उपन्यासों में दलित चेतना’ नामक कृति को वर्ष 2008 के कुछ विशिष्ट प्रकाशनों में से एक के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। आकार-प्रकार की दृष्टि से कृति बहुपृष्ठीय न होकर मात्र 112 पृष्ठों की है तथापि चिंतन एवं विचारों की सघन प्रस्तुति ने कृति को सर्वांगपूर्ण बना दिया है। कृति के सृजनकाल में विद्वान लेखक की दृष्टि में कृति के केंद्रवर्ती कथाकार का वह स्वरूप विद्यमान रहा है, जिसके कारण उनकी तुलना विश्व के सर्वश्रेष्ठ लेखकों इंग्लैंड के चार्ल्स डिकिंस, रूस के मौक्सिन गोर्की एवं चीन के लशुन के साथ चतुर्थ लेखक के रूप में की जाती है। कथाकार के प्रति इस प्रकार की विश्वन्द्य अवधारणा के साथ इस कृति में कृतिकार ने आस्थावश गागर में सागर भरने का सफल प्रयास किया है।

संपूर्णकृति को आठ अध्यायों में विभक्त करते हुए – उपन्यास विधा के उद्भव एवं विकास, परिभाषा, उनके विभिन्न प्रकार, प्रेमचंद कालीन पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थितियों पर विशदता के साथ विचार किया गया है। भाव की अभिव्यक्ति के केंद्र में रखते हुए दलित विवेचन, जातिगत स्तरीकरण, दलितों पर अत्याचार, ब्राह्मणों के दम्भवश दलितों की आत्मरक्षार्थ सन्नद्धता एवं प्रेमचंद के उपन्यासों में दलित चेतना की विवेचना पर पंचम एवं षष्ठ अध्याय में कथाकार के उपन्यासों में दलितोद्धार हेतु कृत प्रयासों की प्रकारान्तर से की गयी सफलता अभिव्यक्ति का प्रयास एवं अष्टम अध्याय में उपसंहार है। उपसंहार के अंतर्गत कथाकार प्रेमचंद की दलितोद्धार विषयक औपन्यासिक उपलब्धियों का चित्रांकन किया गया है।

शिवकुमार ‘अर्चन’ : उत्तर की तलाश (गीत-संग्रह)

कविता संग्रह : उत्तर की तलाश
कवि : शिवकुमार ‘अर्चन’
प्रकाशक : प्रथम प्रकाशन, भोपाल (म०प्र०)
प्रकाशन वर्ष : 2013
मूल्य : 150/-रुपए

काव्य-मंच पर निरंतर सक्रिय रहने के बावजूद कवि शिवकुमार ‘अर्चन’ ने अपने तथाकथित ‘प्रमाद एवं संकोच के कारण’ अपना प्रथम गीत-संकलन साठोत्तरीय वय में प्रकाशित किया है। इससे पूर्व उनका एक गजल-संग्रह अवश्य आ चुका है। गीत-नवगीत के नाम पर अनेक ऊल-जलूल प्रकाशनों के मध्य जब कोई श्रेष्ठ संकलन पढ़ने को मिलता है तो बबूल-कुंज में सहसा उग आए पारिजात के पुष्पों की सुगंध- जैसा आभास होता है। ‘उत्तर की तलाश’ नामक इस संग्रह में 55 गीत हैं। अपनी विनम्रता और सौम्यता का परिचय कवि ने इस संग्रह को उन्हें समर्पित करते हुए दिया है, जो मुझे गीतकार ही नहीं मानते।

संग्रह का प्रारंभिक गीत ही आत्मपरिचयात्मक रूप से अभिव्यक्त होता है- ‘गीतों के नीलकंठ, उतर रहे सांस पर”। नीलकंठ एक विहग-मात्र नहीं है। यह महादेव शंकर का स्वरूप है, जिनमें सत्यम, शिवम, सुंदरम विद्यमान हैं। ‘अर्चन’ की रचनाओं में सौंदर्य के ये तीनों प्रतिमान दृष्टिगोचर होते हैं। प्रारंभिक लगभग दस गीतों में वसंत, ग्रीष्म, वर्षा व हेमंत ऋतुओं के माध्यम से न केवल प्रकृति के विभिन्न रंगों से आकर्षक रंगोली चित्रित हुई है, बल्कि आंचलिक भाषा का पुट लिए शब्द-संयोजन की उत्कृष्टता भी प्रतिष्ठित हुई है। “कोहरे की विदा हुई डोली/कोई माथे लगा गया रोली/खाकर कसमें अमराई की, कोयल भी पंचम में बोली।”

मानव-स्वभाव नैसर्गिक रूप से आशावादी होता है। बच्चा भी हर वस्तु को प्राप्त करने के लिए लालायित रहता है। नन्हा-सा बीज भी अपने वृक्ष-स्वरूप की परिकल्पना में हरियाली के प्रति आशांवित रहता है। मानवीय मनीषा के प्रतिरूप इस भाव का चित्रण ‘बीज हूँ मैं’, गीत में बड़े ही प्रभावी ढंग से हुआ है- “बीज हूँ मैं, एक नन्हा बीज हूँ/वृक्ष बनने की प्रबल संभावना मुझमें/मिले मुझको धूप, जल, मिट्टी अगर/मौसमों से प्यार की चिट्ठी अगर/धूल-मिट्टी ओढ़कर भी जी उलूंगा/छांह, कलरव, नीड़ की प्रस्तावना मुझमें।” देश के स्वातंत्र्य के बाद हर नागरिक ने सुखद व उज्ज्वल भविष्य की कामना की थी, रंगीन स्वप्न संजोए थे, लेकिन राजनीति के वर्तमान स्वरूप ने उसकी आंखों के सभी स्वप्न भंग कर दिए- “स्वराज है, स्वराज है/उनके ही हाथों में, अब सबकी नब्ज है। भूखों को बता रहे, तुमको तो कब्ज है/भीतर के रोगों का बाहरी इलाज है।” इसी तथ्य को प्रतीकात्मक रूप में वर्षा ऋतु के माध्यम से भी व्यक्त किया है।

मन की कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति- पीर पर्वत

-डॉ० शील

पुस्तक : पीर पर्वत (गीत-संग्रह)
लेखिका : आशा शैली ।
प्रकाशक : आरती प्रकाशन, नैनीताल
पृष्ठ : 116, मूल्य: 160 रुपए

दस पुस्तकों की रचयिता आशा शैली का ‘पीर पर्वत’ प्रथम गीत-संग्रह है, जिसमें समय-समय पर उपजी मन की कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई है। उत्तराखंड भाषा संस्थान द्वारा अनुदान प्राप्त इस कृति में उनकी 59 छंदबद्ध रचनाएँ हैं, जिनमें गीत, दोहे और गजलें सम्मिलित हैं। कवयित्री ने अपने अंतर्मन में वर्षों से व्याप्त पीड़ा को ही मुख्य रूप से इन गीतों का आधार बनाया है, तभी तो वह समर्पण की इन पंक्तियों में कहती हैं- “पोर-पोर में पीर लेखनी ने/झेली है हर पल/तभी खिली मुस्काई है/गीतों की यह फुलवारी।”

इस गीतमाला के प्रथम चार गीत- ‘शुभ सभी संचार हैं’, ‘तुम्हें शत नमन’, ‘शारदे वर दे’ तथा ‘गुण तुम्हारे गाएंगे’, मां शारदे की वंदना में कृतज्ञता प्रकट करते हुए लिखे गए हैं। संग्रह में होली के कुछ दोहे यहाँ उद्धृत करना चाहूँगी, जिनसे बृज की होली का चित्र सामने चित्रित हो उठता है- “होली आई री सखी, चलो न बृज की ओर/कान्हा बिछुरे रैन हो, कृष्ण मिले हो भोर”। “कान्हा होरी खेलते, थिरक रहे सब अंग/कण-कण बृज का नाचता, नचा अजब हुड़दंग”। “बेसुध गोपी नाचती, सुन मुरली की टेर/कैसे होरी से बचे, कान्हा लेते घेर।”

आशा शैली जी ने देशप्रेम के प्रति संवेदनाएँ जगाने के लिए गीत लिखे हैं, जैसे- ‘चाहिए आनंद मठ इक और भारत में’, ‘कैसे तेरे काम आऊं?’ ‘मेरी भाग्यविधाता’, ‘विद्रोही स्वर’, ‘सारा जहाँ तुम्हारा है’ और ‘भगत सिंह पैदा कर’। देश के बिगड़े हालात पर व्यथित हो कवयित्री आहवान करती है- “पथभ्रष्ट बटोही फिरते हैं/अवनति के बादल पिरते हैं/जयचंद घर-घर में जन्मे हैं/पांचों विकार ही मन में हैं/कोई तो भगत सिंह पैदा कर/ओ कलमकार ओ यायावर/गीतों में अब तू ज्वाला भर।”

बरखा ऋतु में प्रीतम से विरह की तड़फन भावपूर्ण तरीके से इन पंक्तियों में प्रकट हुई है- “तपे बदन पर बूंद पड़े तो/पायल की झंकार लगे/आसमान की कारी बदरी/परदेसी का प्यार लगे।” (पृष्ठ 36)

बसंत ऋतु मन को किस तरह आह्लाद से भर देती है, इसकी एक झांकी गीत की इन पंक्तियों में द्रष्टव्य है- “बंद करो मत द्वार, बयार बसंती आने दो/मन का आंचल आज, हवाओं में लहराने दो/कोयल कुहुकेगी, बुलबुल/छेड़ेगी गीत नए/तुम भी गाओ, मुझको भी/सुर आज सजाने दो।” (पृष्ठ 40, 41) ‘आज लूं संवार’ गीत की पंक्तियों में अद्भुत भावबोध देखने को मिलता है- “मितवा मुस्काए देखो बंदनवार/सुधि की तितली आई है मन के द्वार/झाड़-पोंछ फेंक आई जीवन की कुंठा/घर की हर एक दिशा, आज लूं संवार।” (पृष्ठ 44)

“पिय की पाती’ गीत में अवसादग्रस्त प्रेमिका कहती है- “पीड़ाओं ने ऐसा धुनका/तार-तार है आंचल मन का/मुझ तक आतेआते खुशियाँ/प्रश्न-चिन्ह बन जातीं।” (पृष्ठ 89)

समग्रतः ‘पीर पर्वत’ संग्रह में देशप्रेम के साथ-साथ प्रेम और विरह की सूक्ष्म भावनाएँ हैं, जिन्हें कवयित्री ने दिल की गहराइयों में डूबकर कलमबद्ध किया है। सहज, सरल भाषा और सीधे-सादे शिल्प में लिखी इन कविताओं का भावपक्ष प्रबल है। कवयित्री ने अभिव्यक्ति के रूप में लाउड हुए बिना धीमे बहते झरने जैसा सुखद अहसास कराया है क्योंकि ‘पीर पर्वत’ संग्रह में गीत के अतिरिक्त दोहे और गजलें भी शामिल की गई हैं तथा संग्रह की अनेक रचनाएँ छंद और मात्राओं की कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं। अतः उस संग्रह को गीत-संग्रह कहने की अपेक्षा, कविता-संग्रह कहा जाए तो बेहतर होगा। नैनीताल की प्राकृतिक छटा वाले मुख आवरण सहित संग्रह के प्रकाशन पर हार्दिक शुभकामनाओं सहित

सामाजिक विसंगतियों का आईना हैं ‘इक्कीस कहानियाँ’

पुस्तक : इक्कीस कहानियाँ (कहानी-संग्रह)
लेखिका : डॉ० मृदुला झा
प्रकाशक : मोनिका प्रकाशन, जयपुर
पृष्ठ : 119, मूल्य : 250 रुपए

तीन काव्य-संग्रह, दो कहानी-संग्रह, एक उपन्यास तथा एक यात्रा-प्रसंग की रचयिता डॉ० मृदुला झा की ‘इक्कीस कहानियाँ सद्य प्रकाशित कहानी-संग्रह है। 119 पृष्ठों में सिमटी इन छोटी-बड़ी इक्कीस कहानियों में समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार की विसंगतियाँ हैं, जो मन को कचोटती हैं और उद्वेलित भी करती हैं। मध्यमवर्गीय जीवन जीने वाले शहरी और ग्रामीण लोगों के जीवन से संबंधित देखी-सुनी घटनाओं को ही लेखिका ने सीधे-सीधे इन कहानियों का कथ्य बनाया है। कथाकार मृदुला ने इन स्थितियों को करीब से अनुभूत करके कहानियों में पिरोया है।

हैरत होती है कि इक्कीसवीं सदी में भी पुरातन समय से चली आ रही बेमेल-विवाह और छुआछूत की विचारधारा जारी है। कहानी ‘मैयो गे मैयो’ में बेमेल-विवाह और छोटी-छोटी बच्चियों की खरीद-फरोख्त को उद्घाटित किया गया है। गुजरात की स्थानीय पात्रानुकूल भाषा में लिखी यह कहानी संवेदना जगाती है कि कैसे चंद रुपयों के एवज में आठ वर्ष की लड़की को 50 साल के अधेड़ के पल्ले बांध देते हैं। दांपत्य सुख से वंचित, वह बच्ची जिंदगी भर केवल भोग की वस्तु बनकर रह जाती है। इसी तरह कहानी ‘काया कल्प’ में जात-पात, ऊँच-नीच को दर्शाते हुए एक दलित महिला की मार्मिक व सजीव कहानी है, जिसमें संदेश दिया गया है कि मानव धर्म से बढ़कर कोई धर्म नहीं।

नेताओं की संवेदनहीनता पर कटाक्ष है कहानी ‘बहन जी… गीता मर गई’, जिसमें माननीय बहन जी के चुनावी दौरे के लिए की गई नाकाबंदी और जिंदाबाद बहन जी के नारों के बीच प्रेमचंद की गंभीर रूप से बीमार पत्नी समय पर इलाज न मिलने के कारण दम तोड़ देती है। ‘प्रगति का परचम’ कहानी सरकारी योजना ‘मनरेगा’ के दुरुपयोग तथा ‘करोड़पति बनने का नुस्खा’ नौकरी का झांसा देकर करोड़ों कमाने वाली बोगस कंपनियों की, कुछ जागरूक लोगों की वजह से पोल खोलने व सचेत करने वाली कहानियाँ हैं। ‘माता-कुमाता’ में ‘पूत-कपूत भले ही हो जाए, पर माता-कुमाता नहीं हो सकती’ वाली उक्ति का भावपूर्ण वर्णन हुआ है।

आज के आर्थिकता प्रधान युग में स्वार्थपरता और घटते प्रेम के कारण पारिवारिक विघटन और वृद्धों की दयनीय हालत, जैसे ज्वलंत विषयों से संबंधित कहानियाँ हैं- ‘अपर्णा आंटी’, ‘मंदाकिनी’, ‘माता-कुमाता’ तथा ‘अटूट संबंध’, इनमें विवशता और दर्द का सजीव चित्रण है। नक्सलियों द्वारा सामूहिक नरसंहार में मां-बाप के मार दिए जाने के बाद जिंदा बची लक्ष्मी की बहादुरी को दर्शाया है, जिसमें वो पुलिस अधिकारी बनकर अपने मां-बाप की मौत का बदला लेती है।

इस प्रकार मृदुला जी की विविध विषयक इस संग्रह की कहानियों में कोई न कोई संदेश, आदर्श या चेतावनी मुखरित हुई है। परिवेश से उद्धृत इन कहानियों की भाषा सहज और सरल है, जिससे कहानियों की प्रवाहमयता बनी हुई है। बिना किसी कहानीकला के इन कहानियों का भाव-पक्ष उज्ज्वल है, वर्णनात्मक शैली में लिखी ये कहानियाँ किसी देखी-सुनी घटनाओं का ही विस्तार मालूम पड़ती हैं। कहानियों में उपस्थित सकारात्मकता की आंच पाठक पर अच्छा प्रभाव छोड़ने में सक्षम है। सुंदर, आकर्षक आवरण, त्रुटिरहित स्तरीय पुस्तक के प्रकाशन हेतु प्रकाशक महोदय बधाई के पात्र हैं। मृदुला जी के इस यथार्थ व सामाजिक सोद्देश्यता वाले कहानी-संग्रह का साहित्य जगत में स्वागत होगा, ऐसी मेरी कामना है।

मानवीय सरोकारों की संवेदनशील कहानियाँ

-तरुणा

पुस्तक : मेरी प्रिय कहानियाँ : अंतर्मन की अनुभूतियाँ (कहानी-संग्रह)
रचनाकार : हेमचन्द्र सकलानी
प्रकाशक : शब्द-संस्कृति प्रकाशन, देहरादून
पृष्ठ : 76, मूल्यः 100 रुपए

श्री हेमचन्द्र सकलानी के इससे पूर्व भी यात्रा वृतांत, कहानी व काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। वर्ष 2013 में प्रकाशित उनके कथा संग्रह ‘मेरी प्रिय कहानियाँ : अंतर्मन की अनुभूतियाँ’ में उनकी ग्यारह कहानियाँ व दो व्यंग्य संकलित हैं। लेखक ने इन्हें ‘संघर्ष का जीवन दर्शन’ और ‘स्पर्शों के सच्चे धरातल से स्वतः प्रस्फुटित कहानियाँ’ कहा है। उनकी सभी रचनाएँ जमीन से जुड़ीं, मानव जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर करती हुई व सामाजिक सोद्देश्यपूर्ण कही जा सकती हैं।

सभी कहानियाँ अलग-अलग मुद्दों पर आधारित हैं। जीवन को संघर्ष के दर्शन रूप में प्रस्तुत करने वाली कहानियां ‘लात को मात’ तथा आत्मकथात्मक ‘अपनी बात’ संदेश देती हैं कि व्यक्ति अपनी इच्छाशक्ति, जिजीविषा, जीवट व मेहनत के बल पर जीवन में कोई भी लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। वहीं कहानी ‘कमीनी चीज़’ दर्शाती है कि धन से सब कुछ पाया-खरीदा नहीं जा सकता और जीवन में अंततः सुख-शांति व संतोष के भाव ही सर्वोपरि होते हैं।

मनुष्य के आपसी संबंधों व सामाजिक रिश्तों का भी सम्यक चित्रण किया गया है। कथा ‘जड़’ में जहाँ अपनी माटी, घर-द्वार से रिश्ता तोड़ सुविधाजीवी बनते लोगों का चित्रण है, वहीं अपनी जड़ों, संस्कार व संस्कृति से कटने व सूने होते घर-गांव का मार्मिक दर्द भी है। ‘आरोप प्रत्यारोप’ कहानी में दांपत्य जीवन में परस्पर विश्वास, समझ, सहनशीलता व धैर्य की महत्ता को दिखाया गया है तो ‘मैं फिर बेटी को ही जन्म देना चाहूँगी’ शीर्षक वाली कहानी में महिलाओं के दोहरे मापदंड व कथनी-करनी के अंतर को लड़के-लड़की में भेद द्वारा प्रभावशाली तरीके से दिखाया गया है। कहानी का सकारात्मक अंत पुत्रमोह से ग्रस्त लोगों की आंखें खोलने का प्रयास करता है।

संग्रह में प्रकृति व पर्यावरण के प्रति सचेत करती कहानियाँ भी समावेशित हैं। कहानी ‘कहीं सूख गया पानी’ में भविष्य की बड़ी समस्या की ओर संकेत करते हुए मनोरंजक ढंग से दिखाया गया है कि पानी की कमी किस तरह परस्पर सौहार्द और आत्मीयता को पी जाती है और जल के अभाव में तन में ही नहीं मन और भावनाओं में भी शुष्कता आ जाती है। कहानियाँ ‘लौट आओ गोरैया’ और ‘आम का पेड़’ मशीनी एकरस जिंदगी जीने वालों को प्रकृति की ओर जाने की प्रेरणा देती हैं और बताती हैं कि मनुष्य की जरा-सी संभाल, देखभाल और प्यार को प्रकृति कई गुना करके लौटाती है।

अभ्यास

1. निम्नलिखित विधाओं की पुस्तक समीक्षा लिखिए –
(क) हाल में पढ़े कहानी संग्रह की समीक्षा
(ख) हाल में पढ़े उपन्यास की समीक्षा
(ग) हाल में पढ़े कविता संग्रह की सीमक्षा

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आलेख लेखन | class 12th | Hindi कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन ncert solution

Class 12 Hindi आलेख लेखन

प्रश्नः 1.
आलेख के विषय में बताइए।
उत्तरः

आलेख वास्तव में लेख का ही प्रतिरूप होता है। यह आकार में लेख से बड़ा होता है। कई लोग इसे निबंध का रूप भी मानते हैं जो कि उचित भी है। लेख में सामान्यत: किसी एक विषय से संबंधित विचार होते हैं। आलेख में ‘आ’ उपसर्ग लगता है जो कि यह प्रकट करता है कि आलेख सम्यक् और संपूर्ण होना चाहिए। आलेख गद्य की वह विधा है जो किसी एक विषय पर सर्वांगपूर्ण और सम्यक् विचार प्रस्तुत करती है।

प्रश्नः 2.
सार्थक आलेख के गुण बताइए।
उत्तरः

सार्थक आलेख के निम्नलिखित गुण हैं –

  • नवीनता एवं ताजगी।
  • जिज्ञासाशील।
  • विचार स्पष्ट और बेबाकीपूर्ण ।
  • भाषा सहज, सरल और प्रभावशाली।
  • एक ही बात पुनः न लिखी जाए।
  • विश्लेषण शैली का प्रयोग।
  • आलेख ज्वलंत मुद्दों, विषयों और महत्त्वपूर्ण चरित्रों पर लिखा जाना चाहिए।
  • आलेख का आकार विस्तार पूर्ण नहीं होना चाहिए।
  • संबंधित बातों का पूरी तरह से उल्लेख हो।

उदाहरण

1. भारतीय क्रिकेट का सरताज : सचिन तेंदुलकर

पिछले पंद्रह सालों से भारत के लोग जिन-जिन हस्तियों के दीवाने हैं-उनमें एक गौरवशाली नाम है-सचिन तेंदुलकर। जैसे अमिताभ का अभिनय में मुकाबला नहीं, वैसे सचिन का क्रिकेट में कोई सानी नहीं। संसार-भर में एक यही खिलाड़ी है जिसने टेस्ट-क्रिकेट के साथ-साथ वन-डे क्रिकेट में भी सर्वाधिक शतक बनाए हैं। अभी उसके क्रिकेट जीवन के कई वर्ष और बाकी हैं। यदि आगे आने वाला समय भी ऐसा ही गौरवशाली रहा तो उनके रिकार्ड को तोड़ने के लिए भगवान को फिर से नया अवतार लेना पड़ेगा। इसीलिए कुछ क्रिकेट-प्रेमी सचिन को क्रिकेट का भगवान तक कहते हैं। उसके प्रशंसकों ने हनुमान-चालीसा की तर्ज पर सचिन-चालीसा भी लिख दी है।

मुंबई में बांद्रा-स्थित हाउसिंग सोसाइटी में रहने वाला सचिन इतनी ऊँचाइयों पर पहुँचने पर भी मासूम और विनयी है। अहंकार तो उसे छू तक नहीं गया है। अब भी उसे अपने बचपन के दोस्तों के साथ वैसा ही लगाव है जैसा पहले था। सचिन अपने परिवार के साथ बिताए हुए क्षणों को सर्वाधिक प्रिय क्षण मानता है। इतना व्यस्त होने पर भी उसे अपने पुत्र का टिफिन स्कूल पहुँचाना अच्छा लगता है।

सचिन ने केवल 15 वर्ष की आयु में पाकिस्तान की धरती पर अपने क्रिकेट-जीवन का पहला शतक जमाया था जो अपने-आप में एक रिकार्ड है। उसके बाद एक-पर-एक रिकार्ड बनते चले गए। अभी वह 21 वर्ष का भी नहीं हुआ था कि उसने टेस्ट क्रिकेट में 7 शतक ठोक दिए थे। उन्हें खेलता देखकर भारतीय लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर कहते थे-सचिन मेरा ही प्रतिरूप है।

2.ग्रामीण संसाधनों के बल पर आर्थिक स्वतंत्रता

समाज में सकारात्मक बदलाव के तीन ही मुख्य सूचक होते हैं। आचरण, आर्थिकी व संगठनात्मक पहल। इन तीनों से ही समाज को असली बल मिलता है और प्रगति के रास्ते भी तैयार होते हैं। इन सबको प्रभाव में लाने के लिए सामूहिक पहल ही सही दिशा दे सकती है।

हेस्को (हिमालयन एन्वायर्नमेंटल स्टडीज कन्जर्वेशन ऑर्गेनाइजेशन) ने अपनी कार्यशैली में ये तीन मुद्दे केंद्र में रखकर सामाजिक यात्रा शुरू की। कुछ बातें स्पष्ट रूप से तय थीं कि किसी भी प्रयोग को स्थायी परिणाम तक पहुँचाना है तो स्थानीय भागीदारी, संसाधन और बाज़ार की सही समझ के बिना यह संभव नहीं होगा। वजह यह है कि बेहतर आर्थिकी गाँव समाज की पहली चिंता है और उसका स्थायी हल स्थानीय उत्पादों तथा संसाधनों से ही संभव है। सही, सरल व सस्ती तकनीक आर्थिक क्रांति का सबसे बड़ा माध्यम है। स्थानीय उत्पादों पर आधारित ब्रांडिंग गाँवों के उत्पादों पर उनका एकाधिकार भी तय कर सकती है और ये उत्पाद गुणवत्ता व पोषकता के लिए हमेशा पहचान बना सकते हैं, इसलिए बाज़ार के अवसर भी बढ़ जाते हैं।

गाँवों की बदलती आर्थिकी की दो बड़ी आवश्यकताएँ होती हैं। संगठनात्मक पहल, बराबरी व साझेदारी तय करती है। किसी • भी आर्थिक-सामाजिक पहल की बहुत-सी चुनौतियाँ संगठन के दम पर निपटाई जाती हैं। सामूहिक सामाजिक पहलुओं का अपना एक चरित्र व आचरण बन जाता है, जो आंदोलन को भटकने नहीं देता। हेस्को की इसी शैली ने हिमालय के घराटों में पनबिजली व पन उद्योगों की बड़ी क्रांति पैदा की। जहाँ ये घराट (पन चक्कियाँ) मृतप्राय हो गई थीं, अब एक बड़े आंदोलन के रूप में आटा पिसाई, धान कुटाई ही नहीं बल्कि पनबिजली पैदा कर घराटी नए सम्मान के साथ समाज में जगह बना चुके हैं।

इनके संगठन और आचरण ने मिलकर केंद्र व राज्यों में राष्ट्रीय घराट योजना के लिए सरकारों को बाध्य कर दिया। एक घराट की मासिक आय पहले 1,000 रुपए तक थी, आज वह 8,000 से 10,000 रुपए कमाता है। आज हज़ारों घराट नए अवतार में स्थानीय बिजली व डीजल चक्कियों को सीधे टक्कर दे रहे हैं। इन्होंने बाज़ार में अपना घराट आटा उतार दिया है, जो ज़्यादा पौष्टिक है।

फल-अनाज उत्पाद गाँवों को बहुत देकर नहीं जाते। विडंबना यह है कि उत्पादक या उपभोक्ता की बजाय सारा लाभ इनके बाजार या प्रसंस्करण में जुटा बीच का वर्ग ले जाता है। 1990 के दौरान हेस्को ने स्थानीय फल-फूलों को बेहतर मूल्य देने के लिए पहली प्रसंस्करण इकाई डाली और जैम-जेली जूस बनाने की शुरुआत की। देखते-देखते युवाओं-महिलाओं ने ऐसी इकाइयाँ डालनी शुरू की और आज उत्तराखंड में सैकड़ों प्रोसेसिंग इकाइयाँ काम कर रही हैं। एक-दूसरे के उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए संगठन भी खड़े कर दिए।

उत्तराखंड फ्रूट प्रोसेसिंग एसोसिएशन इसी का परिणाम है। ये जहाँ, अपने आपसी मुद्दों के प्रति सजग रहते हैं वहीं, सरकार को भी टोक-टोक कर रास्ता दिखाने की कोशिश करते हैं। ऐसे बहुत से प्रयोगों ने आज बड़ी जगह बना ली है। उत्तराखंड में मिस्त्री, लोहार, कारपेंटर आज नए विज्ञान व तकनीक के सहारे बेहतर आय कमाने लगे हैं। पहले पत्थरों का काम, स्थानीय कृषि उपकरण व कुर्सी-मेज के काम शहरों के नए उत्पादनों के आगे फीके पड़ जाते थे। आज ये नए विज्ञान व तकनीक से लैस हैं। इनके संगठन ने इन्हें अपने हकों के लिए लड़ना भी सिखाया है।

हेस्को पिछले 30 वर्षों में ऐसे आंदोलन के रूप में खड़ा हुआ, जिसमें हिमालय के ही नहीं बल्कि देश के कई संगठनों को भी दिशा दी है और ये आंदोलन मात्र आर्थिक ही नहीं था बल्कि समाज में संगठनात्मक व आचरण की मज़बूत पहल बनकर खड़ा हो गया। गाँवों की आर्थिकी का यह नया रास्ता अब राज्यों के बाद राष्ट्रीय आंदोलन होगा। जहाँ ग्रामीण संसाधनों पर आधारित गाँवों की अधिक स्वतंत्रता की पहल होगी।

3.कूड़े के ढेर हैं दुनिया की अगली चुनौती

शिक्षाविदों और पर्यावरण वैज्ञानिकों द्वारा एकत्रित जानकारी के आधार पर विश्व में अपशिष्ट के पचास महाकाय क्षेत्र हैं : 18 अफ्रीका में, 17 एशिया में, आठ दक्षिण अमेरिका में, पाँच मध्य अमेरिका और कैरिबियन में तथा दो यूरोप में। कूड़े की विशाल बस्तियाँ चीन में भी हैं, पर उनकी सही गिनती और ब्योरा पाना असंभव है। विश्व की आधी आबादी को बेसिक वेस्ट मैनेजमेंट

सुविधा उपलब्ध न होने के कारण अनुमानतः दुनिया का लगभग चालीस फीसदी कूड़ा खुले में सड़ता है, जो निकट बस्तियों में रहनेवालों के स्वास्थ्य के लिए घातक है। समृद्ध देशों में कूड़े की रीसाइकिलिंग महँगी पड़ती है। गरीब देशों के लिए कूड़ा अतिरिक्त आय का साधन बनता है, भले म अपशिष्ट को योजनाबद्ध और सुरक्षित तरीके से ठिकाने लगाने के लिए उनके पास धन व संसाधन का घोर अभाव हो। कारखानों, अस्पतालों से निकला विषाक्त मल ढोने वालों और उसकी री-साइकिलिंग करनेवालों के प्रशिक्षण या स्वास्थ्य सुरक्षा का कोई प्रबंध नहीं। वयस्क और युवा कूड़ा कर्मी नंगे हाथों काम करते हुए जख्मी होते हैं, उसमें से खाद्य सामग्री टटोलते और खाते फिरते हैं।

भीषण गरमी में बिना ढका-समेटा और सड़ता अपशिष्ट खतरनाक कीटाणु और जहरीली गैस पैदा करता है। बारिश में इसमें से रिसता पानी भूमिगत जल में समाता है और आसपास के नदी, नालों, जलाशयों को प्रदूषित करता है। जलते कूड़े की जहरीली गैस और घोर प्रदूषण के बीच जीविका कमाने वालों और निकटवर्ती बस्तियों में रहनेवाले लोगों के स्वास्थ्य को दीर्घावधि में जो हानि निश्चित है, उनका जीवन काल कितना घटा है, उसके प्रति विश्व स्वास्थ्य संगठन कितना चिंतित है? यह ऐसा टाइम बम है, जो फटने पर विश्व जन स्वास्थ्य में प्रलय ला सकता है। संयुक्त राष्ट्र को ब्रिटेन की लीड्स यूनिवर्सिटी में संसाधन प्रयोग कुशलता के लेक्चरार कॉस्टस वेलिस की चेतावनी है कि खुले कूड़े के विशालकाय ढेर मलेरिया, टाइफाइड, कैंसर और पेट, त्वचा, सांस, आँख तथा जानलेवा जेनेटिक और संक्रामक रोगों के जनक हैं।

विकसित देशों की कई ज़रूरतें पिछड़े देशों से पूरी होती हैं। ज़रूरतमंद देशों की ‘स्वेटशॉप्स’ में बना सामान लागत से कई गुनी अधिक कीमत पर पश्चिमी देशों की दुकानों में सजता है। बड़ी बात नहीं कि कूड़े से ऊर्जा उत्पादन में अग्रणी जर्मनी का अनुसरण करने वाले अन्य यूरोपीय देश अफ्रीका जैसे पिछड़े देशों से कूड़ा आयात करने लगें। वह कूड़ा, जो सर्वव्यापी उपभोक्तावाद के रूप में पश्चिम की देन का ही अंजाम है। यह भी निश्चित है कि तब संपूर्ण अपशिष्ट के बाकायदा ‘वेस्ट मैनेजमेंट’ के कड़े से कड़े नियम लागू किए जाने के लिए शोर भी उन्हीं की तरफ से उठेगा कि आयातित कडा पूर्ण रूप से प्रदूषण रहित और आरोग्यकर हो।

मुंबई की देओनार कचरा बस्ती को ऐकरा (घाना), इबादान (नाइजीरिया), नैरोबी (केन्या), बेकैसी (इंडोनेशिया) जैसी अन्य विशाल कूड़ा बस्तियों की दादी-नानी कहा गया है। 1927 से अब तक इसमें 170 लाख टन कूड़े की आमद आंकी गई है। इससे लगभग छह मील की परिधि में रहने वाली पचास लाख आबादी के विरोध पर इसे धीरे-धीरे बंद किया जा रहा है, पर अब भी 1,500 लोग यहाँ कूड़ा बीनने, छाँटने के काम से रोजी कमाते हैं। विश्व के समृद्ध देशों को भारतोन्मुख करने का सबसे सार्थक प्रयास ऊर्जा उत्पादन में हो सकता है। कूड़े से ऊर्जा उत्पादन में अग्रणी यूरोपीय देशों की तकनीक भारत की कूड़ा बस्तियों को अभिशाप से वरदान में बदल सकती है।
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4. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना

एनडीए सरकार ने किसानों के हित में बड़ा कदम उठाते हुए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को मंजूरी दी है, जो इसी साल खरीफ सीजन से लागू होगी। इससे किसानों को प्राकृतिक या स्थानीय आपदा के चलते फ़सल को हुए नुकसान की भरपाई हो सकेगी। इसके तहत किसानों को बहुत कम प्रीमियम, जैसे रबी फसलों के लिए अधिकतम 1.5 प्रतिशत, खरीफ फसलों के लिए दो फीसदी और वार्षिक, वाणिज्यक एवं बागवानी फसलों के लिए पाँच प्रतिशत देना होगा जबकि किसानों को बीमा राशि पूरी मिलेगी। सरकार इस पर करीब 8,800 करोड़ रुपये खर्च करेगी और इससे साढ़े तेरह करोड़ किसानों को लाभ होगा।

यह कदम उठाने की ज़रूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि विगत में शुरू की गई फ़सल बीमा योजनाएँ अब तक कारगर नहीं रही हैं। पिछली एनडीए सरकार ने 1999 में कृषि क्षेत्र में बीमा की शुरूआत कर एक अभिनव पहल की थी, पर यूपीए सरकार ने 2010 में इसमें कई ऐसे बदलाव कर दिए, जो किसानों के लिए घातक साबित हुए। मोदी सरकार की यह फ़सल बीमा योजना ‘एक राष्ट्र, एक योजना’ तथा ‘वन सीजन, वन प्रीमियम’ के सिद्धांत पर आधारित है। इसमें बीमा राशि सीधे किसान के बैंक खाते में जाएगी।

यूपीए सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई ‘संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना’ (एमएनएआइएस) की सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसमें प्रीमियम अधिक हो जाने पर एक अधिकतम सीमा निर्धारित रहती थी। नतीजतन किसान को मिलने वाली दावा राशि भी कम हो जाती थी।

जबकि नई बीमा योजना में कोई किसान यदि तीस हजार रुपये का बीमा कराता है, तो 22 प्रतिशत प्रीमियम होने पर भी मात्र 600 रुपये देने होंगे, जबकि बाकी के 6,000 रुपये का भुगतान सरकार करेगी। अगर किसान का शत-प्रतिशत नुकसान होता है, तो उसे 30 हजार रुपये की पूरी दावा राशि प्राप्त होगी। पहले किसानों को 15 प्रतिशत तक प्रीमियम देना पड़ता था, पर अब इसे घटाकर डेढ़ से दो फीसदी कर दिया गया है। साथ ही, ओलावृष्टि, जलभराव और भूस्खलन को स्थानीय आपदा माना जाएगा। इसमें पोस्ट हार्वेस्ट नुकसान को भी शामिल किया गया है। फ़सल कटने के 14 दिन तक फ़सल खेत में है और उस दौरान कोई आपदा आ जाती है, तो किसानों को दावा राशि प्राप्त हो सकेगी। पहले यह सुविधा सिर्फ तटीय क्षेत्रों को प्राप्त थी।

अब तक देखा गया है कि फ़सल बीमा होने के बावजूद किसानों को बीमित राशि लेने के लिए जगह-जगह चक्कर लगाने पड़ते हैं। इस योजना में प्रौद्योगिकी के उपयोग का फैसला किया गया है। इससे फ़सल कटाई/नुकसान का आकलन शीघ्र और सही हो सकेगा और किसानों को दावा राशि त्वरित रूप से मिल सकेगी। इसके लिए सरकार रिमोट सेंसिंग तकनीक और स्मार्टफोन का इस्तेमाल करेगी। कुल मिलाकर, सरकार ने किसानों के हित में एक समग्र योजना की शुरूआत की है, जिसका लाभ पूरे देश के किसानों को मिलेगा।

5. नए सामाजिक बदलाव

जब भारत आर्थिक वृद्धि की दर बढ़ाने के साथ सबको तरक्की का लाभ देने और शिक्षा, ऊर्जा के अधिकतम उपयोग के साथ जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर रहा है तो सामाजिक उद्यमशीलता (सोशल आंत्रप्रेन्योरशिप) स्थायी सामाजिक बदलाव का सबसे बड़ा जरिया साबित हो रहा है। सोशल आंत्रप्रेन्योर बुद्ध की करुणा और उद्योगपति की व्यावसायिक बुद्धिमानी का मिश्रण होता है। यानी वे उद्यमशीलता का माध्यम के रूप में इस्तेमाल करने वाला बदलाव के वाहक हैं।

समाज की ज्वलंत समस्याओं के लिए उसके पास इनोवेटिव समाधान होते हैं, जिन्हें सुलझाने के लिए किसी बाधा को आड़े नहीं आने देता। पिछले एक दशक में देश में बदलाव का यह जरिया बहुत तेजी से बढ़ा है और इसमें आईआईएम और आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के युवाओं ने गहरी रुचि दिखाई है। एक उदाहरण बिहार के ऐसे पिछड़े इलाकों का दिया जा सकता है, जहाँ अब तक बिजली नहीं पहुंची थी। सामाजिक उद्यमशीलता के जरिये भूसे से बिजली बनाकर ये इलाके रोशन किए गए हैं।

भारत में सामाजिक उदयमों के जरिये शिक्षा से स्वास्थ्य रक्षा, अक्षय ऊर्जा, कचरा प्रबंधन, ई-लर्निंग व ई-बिजनेस, आवास, झुग्गी-झोपड़ियों का विकास, जलप्रदाय व स्वच्छता, महिलाओं के खिलाफ हिंसा की रोकथाम और महिलाओं, बच्चों व बुजर्गों से संबंधित कई समस्याओं को हल किया जा रहा है। इन सामाजिक उद्यमों का मुख्य उद्देश्य देश के वंचितों व हाशिये पर पड़े तबकों को टिकाऊ और गरिमामय जिंदगी मुहैया कराना है। खास बात यह है कि मुनाफे को ध्यान में रखते हुए सामाजिक बदलाव हासिल करने के स्तर में फर्क हो सकता है, लेकिन हर प्रयास में आर्थिक टिकाऊपन को आधार बनाया गया है, क्योंकि इसी से स्थायी बदलाव लाया जा सकता है।

इसका एक तरीका ऐसे बिजनेस मॉडल अपनाना है, जो सामाजिक समस्याएँ सुलझाने के लिए सस्ते उत्पादों व सेवाओं पर जोर देते हैं। लक्ष्य ऐसा सामाजिक बदलाव लाना है, जो व्यक्तिगत मुनाफे से मर्यादित नहीं है। गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) की बजाय सामाजिक आंत्रप्रेन्योरशिप व्यापक पैमाने पर बदलाव लाता है। एनजीओ से वे इस मायने में अलग हैं कि उनका उद्देश्य छोटे पैमाने और निश्चित समय-अवधि से सीमित बदलाव की जगह व्यापक आधार वाले, दीर्घावधि बदलाव लाना है।

फिर एनजीओ आयोजनों, गतिविधियों और कभी-कभी प्रोडक्ट बेचकर पैसा जुटाते हैं, लेकिन पैसा इकट्ठा करने में समय और ऊर्जा लगती है, जिनका उपयोग सीधे काम करने और प्रोडक्ट की मार्केटिंग में किया जा सकता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सामाजिक आंत्रप्रेन्योर प्रभावित लोगों को निष्क्रिय लाभान्वितों की बजाय समाधान का हिस्सा मानता है। मसलन, माइक्रो फाइनेंस को लें। कई संगठन कमज़ोर तबकों खासतौर पर महिलाओं को कम राशि के लोन देकर उनकी जिंदगी बदल रहे हैं। लोन के जरिये वे कोई काम शुरू करते हैं और उन्हें आजीविका का स्थायी जरिया मिलता है। देश में काम कर रहे कुछ माइक्रो फाइनेंस को लें।

कई संगठन कमज़ोर तबकों खासतौर पर महिलाओं को कम राशि के लोन देकर उनकी जिंदगी बदल रहे हैं। लोन के जरिये वे कोई काम शुरू करते हैं और उन्हें आजीविका का स्थायी जरिया मिलता है। देश में काम कर रहे कुछ माइक्रो फाइनेंस संगठन दुनिया के सबसे बड़े और तेजी से बढ़ते ऐसे संगठन हैं। सामाजिक उदयमशीलता.के जरिये जिन क्षेत्रों में बदलाव लाया जा रहा है उनमें सबसे पहले हैं सस्ती स्वास्थ्य-रक्षा सुविधाएँ। देश में 60 फीसदी आबादी गाँवों व छोटे कस्बों में रहती हैं, जबकि 70 फीसदी मध्यम व बड़े अस्पताल बड़े शहरों व महानगरों में है। इससे भी बड़ी बात यह है कि 80 फीसदी माँग प्राथमिक व द्वितीयक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए हैं और केवल 30 फीसदी अस्पताल से सुविधाएं मुहैया कराते हैं। स्वास्थ्य रक्षा की बड़ी खामी सामाजिक उद्यमों के द्वारा दूर की जा रही है।

इसी तरह शहरी आवास बाजार में 1.88 आवासीय इकाइयों की कमी है। सामाजिक उद्यमशीलता से निर्माण लागत व समय में कमी लाकर बदलाव लाया जा रहा है। पानी और स्वच्छता के क्षेत्र में भी इस तरह का बदलाव देखा जा रहा है। जलदोहन और संग्रहण, सप्लाई और वितरण और कचना प्रबंधन। इसमें खासतौर पर वर्षा के पानी के उपयोग पर काम हो रहा है। स्वच्छता में खास मॉडल में घरों में टॉयलेट का निर्माण, भुगतान पर इस्तेमाल किए जा सकने वाले टॉयलेट और ‘इकोसन टॉयलेट’ के जरिये बायो फ्यूल बनाया जा रहा है। देश में 70 फीसदी से अधिक ग्रामीण आबादी को खेती से आजीविका मिलती है। इसकी खामियों को दूर कर आर्थिक व सामाजिक बदलाव लाया जा रहा है। इसमें फ़सल आने के पहले की सुविधाओं और फ़सल को बाजार तक पहुँचाने की श्रृंखला पर काम करके बदलाव लाया जा रहा है।

6. किस-किसको आरक्षण

गुड़गाँव में चार पहिया गाड़ियों के शोरूम में कुछ लोग पहुँचते हैं। वे कई शोरूम जाते हैं और हर जगह एक ही लाइन बोलते हैं, ‘पाँच चूड़ियों वाली गड्डी कठै सै?’ पाँच चूड़ियों का रहस्य अब शोरूम के लोग जान चुके हैं, वह ऑडी कार के शोरूम की ओर इशारा करते हैं। वहाँ पहुँचते ही ये लोग खुश हो जाते हैं। इनमें से कोई बोलता है, ‘चौधरी का छोरा यो हीले ग्या… हम भी ले चलते हैं।’ ये है हरियाणा का एक सीन।

जाटों को पिछड़े वर्ग में शामिल करने और उनकी आरक्षण की माँग की चर्चा होने पर अक्सर दूसरी जतियों के लोग कुछ ऐसे ही दिलचस्प किस्से सुनाते हैं। कई बार इसी से मिलते-जुलते किस्से राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गुर्जरों और गुजरात के पटेलों के बारे में भी सुनने को मिल जाते हैं। जाहिर है जाटों, गुर्जरों और पटेलों के बारे में यह बातें इसलिए प्रचारित हो पा रही हैं, क्योंकि उनकी समृद्धि को लेकर यह एक तरह की आम समझ है।

सोशल मीडिया पर घूम रहे एक संदेश में दावा किया जा रहा है कि हरियाणा में 63 फीसदी मंत्री, 71 फीसदी एचसीएस, 60 फीसदी आइएएस, 69 फीसदी आइपीएस, 58 फीसदी एलायड ऑफिसर, 71 फीसदी अन्य सरकारी कर्मचारी जाट हैं। दावा यह भी है कि राज्य के 43 फीसदी पेट्रोल पंप, 41 फीसदी गैस एजेंसी, 39 फीसदी रीयल स्टेट और 69 फीसदी हथियारों के लाइसेंस जाटों के हैं। पर मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के हरियाणा राज्य संयोजक और पेशे से वकील पंकज त्यागी इसे समृद्धि की ऊपरी सतह मानते हैं, जो जाटों की असलियत को ढक देती है। वे कहते हैं, ‘केंद्र सरकार का आँकड़ा है कि देश के चालीस फीसदी किसान खेती छोड़ चुके हैं।

छोटी जोत के किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा है। हरियाणा में 80 फ़ीसदी किसानों को दो एकड़ या इससे कम की खेती है। दिल्ली में जाति उन्मूलन आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक जेपी नरेला पूछते हैं, ‘हरियाणा में जाटों को पिछड़ी जाति में आरक्षण क्यों मिले? क्यों देश के हजारों करोड़ रुपए बर्बाद हों और आम लोग उनकी गलत माँगों के लिए सांसत सहें।’ राजस्थान में मज़दूर किसान शक्ति संगठन के साथ सक्रिय भंवर मेघवंशी के अनुसार, ‘हरियाणा में किस जाति ने जाटों को अस्पृश्य माना, जातीय आधार पर उत्पीड़न किया, गाँव निकाला दिया, समाज में बराबरी नहीं दी और ज़मीनों पर क़ब्जा किया। इनमें से एक भी सवाल का जवाब जाटों के पक्ष में नहीं जाता।

आरक्षण की व्यवस्था सिर्फ उन जातियों को प्राप्त है जो सामाजिक रूप से पिछड़ी हैं, दबंगों को नहीं।’ आंदोलन जोड़ता है लेकिन अराजकता भयभीत और मज़बूर करती है और वह मज़बूरी ही है कि हरियाणा सरकार ने आने वाले विधानसभा सत्र में बिल लाकर जाटों की माँगें मानने का वादा कर दिया है, राज्य में आतंक का पर्याय बन चुका ‘धरना’ अब खत्म हो चुका है। भाजपा सांसद और दलित नेता उदित राज सवाल करते हैं, ‘गाड़ियाँ फूंकना, सड़क उखाड़ देना, मॉल जलाने को क्या आंदोलन कहेंगे। हमने भी बहुत आंदोलन किए हैं पर ऐसा तो कभी नहीं किया जैसा हरियाणा में देखा। आंदोलन सृजन के लिए होता है या विध्वंस के लिए।’ राजस्थान के झुंझनू जिले के किसान नेता श्रीचंद डुढ़ी के मुताबिक, ‘यहाँ पार्टियाँ आरक्षण के नाम पर रोज़गार का सपना दिखा एक-दूसरी जातियों को लड़ा रही हैं। आज जाट हैं कल कोई और होगा। पर जो नहीं होगा वह है इनकी माँग का पूरा होना।’

औद्योगिक संस्था एसोचैम के आँकड़ों के मुताबिक सप्ताह भर चले इस आंदोलन में 36 हजार करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है। हरियाणा रोडवेज को 20 करोड़ तो उत्तर रेलवे को 2 सौ करोड़ की चपत लगी है। लाखों लोगों का काम बाधित होने के साथ कई महत्त्वपूर्ण परीक्षाएँ रद्द करनी पड़ीं, बीस से ज़्यादा जान गई है और सैकड़ों घायल हुए हैं।

ऐसे में सवाल वही कि आखिर यह आंदोलन किस पार्टी के नेतृत्व में हुआ। नेता कौन था. इसका। जाटों की छोटी होती जोत, महँगी होती खेती और परिवार चलाने में हो रही मुश्किल का रामबाण इलाज आरक्षण में है, जहर की यह पूड़िया किसने बाँटी। दोषी कौन है, आग किसने लगाई, तरीका किसने सुझाया और सजा किसको मिले। सड़क पर तांडव मचाती युवाओं की भीड़ किसके वादों से इस कदर खफा, निराश और कुंठित थी कि अपने ही संसाधनों को फूंककर माँग की आँच को शांत करती रही। फायदा किसका हुआ? कौन हैं वो लोग जाट जिनकी तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं कि कल मेरा बेटा सरकारी नौकरी में होगा।

हरियाणा हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील और स्वराज अभियान के प्रवक्ता राजीव गोदारा की राय में, जाटों की समस्याएँ हैं, बेकारी बहुत है लेकिन उसका हल अराजकता और अपने खिलाफ लोगों को खड़ाकर कैसे निकाला जा सकता है। हिसार के भगाणा आंदोलन के नेता सतीश काजला की राय में जाटों को आरक्षण नहीं चाहिए। वह अराजकता फैलाकर राज्य की उन 35 जातियों को डराना चाहते हैं जिनको आरक्षण का लाभ मिल रहा है। वह चाहते हैं कि हम उनके डर से आरक्षण छोड़ दें। आर्थिक आधार पर आरक्षण की माँग गुजरात और हरियाणा से उठी है, जहाँ भाजपा की सरकारें हैं। आरएसएस हमेशा ही जातीय आधार पर आरक्षण की विरोधी और आर्थिक आधार की समर्थक रही है। काजला के इस आशंका के मद्देनज़र आरक्षण में शामिल भीड़ की आवाज़ को समझने की ज़रूरत है।

मीडिया से बोलते हुए जाट बार-बार कह रहे हैं कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दीजिए और नहीं दे सकते तो सबका खत्म कर दीजिए। जुलाई 2015 में गुजरात में पिछड़े वर्ग के तहत आरक्षण माँग रहे पाटिदारों के आंदोलन से भी इसी तरह का रोश उभरा था। पाटिदारों के नेता के रूप में उभरे हार्दिक पटेल जब अपनी माँग को न्यायोचित नहीं ठहरा पाते हैं तो तुरंत वह कह पड़ते हैं कि हमें नहीं दे सकते तो सबका खत्म करिए।

7. ग्रामीण माँग बढ़ाने की ज़रूरत

पिछले वर्ष जब वित्त मंत्री अरुण जेटली अपने पहले पूर्ण बजट पर बोलने के लिए खड़े हुए थे, तब अनेक लोग यह उम्मीद कर रहे थे कि वह कोई ऐसा नीतिगत दस्तावेज पेश करेंगे, जिससे मोदी सरकार के वायदों को पूरा करने की ठोस ज़मीन तैयार हो। इस बार जब वह बजट पेश करेंगे, तो अपेक्षाएँ अचानक बहुत बदल गई हैं। राष्ट्र अब कुछ प्रमुख मुद्दों पर विश्वसनीय समाधान की ओर देख रहा है।

वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम गिरे हैं, जिससे यह 30 डॉलर प्रति बैरल तक आ गया। इससे सरकार को जब इसके दाम . 120 से लेकर 140 डॉलर के उच्च स्तर पर थे, उसकी तुलना में 1.5 लाख करोड़ रुपये का लाभ हुआ है। इससे चालू खाते के घाटे को कम करने में मदद मिली है और वित्तीय घाटे की स्थिति सुधरी है। हालाँकि अर्थव्यवस्था के कई अन्य घटक चिंता की वजह हैं, जहाँ वित्त मंत्री को खासतौर से हस्तक्षेप करने की ज़रूरत है।

ऐसा पहला क्षेत्र कृषि है, जिसकी देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। तकरीबन साठ फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है, मगर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इसका योगदान सिर्फ 17 फीसदी है। पिछले दो वर्षों से देश को कमज़ोर मानसून का सामना करना पड़ा है। कृषि क्षेत्र में हताशा बढ़ी है, जहाँ तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है। सूखे से बचाव के कुछ उपाय ज़रूर किए गए हैं, जिससे कृषि उत्पादन स्थिर बना हुआ है। मसलन, दालों का उत्पादन जहाँ 25.3 करोड़ टन पर स्थिर है, तो गन्ने और कपास जैसी नकद फ़सलों के उत्पादन में गिरावट आई है। कृषि बीमा की पुनरीक्षित योजना लाने का निर्णय अच्छा कदम है, मगर इसका असर दिखने में वक्त लगेगा। असल में ज़रूरत कृषि व्यापार व्यवस्था को बेहतर बनाने की है। हमें हर तरह के कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में समुचित बढ़ोतरी करनी ही चाहिए। इसमें जब मनरेगा के तहत राज्यों में बढ़ा हुआ आवंटन भी जुड़ जाएगा, तब ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च करने की क्षमता भी बढ़ेगी। अर्थव्यवस्था के विकास के लिए ग्रामीण माँग का बढ़ना बहुत ज़रूरी है।

दूसरी बात यह है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ़्तार सुस्त बनी हुई है। यूरोपीय अर्थव्यवस्थाएँ डेढ़ से दो फीसदी की गति से ही आगे बढ़ रही है। वर्ष 2016 में जर्मनी की विकास दर 1.7 फीसदी और फ्रांस की विकास दर के 1.5 फीसदी रहने की उम्मीद है। जापान को मंदी के लंबे दौर से बाहर निकलना है और इस वर्ष उसकी विकास दर 1.2 फीसदी रह सकती है। वहीं अमेरिका ने तेज़ी से बेहतर प्रदर्शन किया है, जबकि चीन की अर्थव्यवस्था, जो कि वैश्विक विकास की प्रमुख संवाहक है, मंदी से गुजर रही है। इसका असर विश्व व्यापार पर पड़ेगा।

तीसरी बात बैंकिंग क्षेत्र से जुड़ी है, जहाँ अमेरिका में लेहमन संकट पैदा होने पर खुशी की लहर देखी गई थी। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की समस्याओं ने इस क्षेत्र की कमजोरियों को उजागर कर दिया है। 2011 में एनपीए (गैर निष्पादित संपत्तियाँ) कुल 2.5 फीसदी था, जो कि 2013-14 में 4.5 फीसदी से 4.9 फीसदी के बीच हो गया और सितंबर 2015 में यह 5.1 फीसदी हो गया। परेशानी का कारण यह है कि सिर्फ प्रावधान करने से इस समस्या को नहीं सुलझाया जा सकता। यदि कुछ निश्चित क्षेत्र में मंदी का असर पूरे कर्ज पर पड़ेगा, तो एनपीए को बढ़ना ही है। इसीलिए नीतिगत उपाय ज़रूरी हैं, ताकि ऐसी इकाइयाँ बेहतर प्रदर्शन करें। इसके अलावा एक स्वतंत्र संस्था की भी ज़रूरत है, जो ऐसे खराब कर्ज का निपटारा कर सके।

पिछले बजट में आधारभूत संरचना खासतौर से ऊर्जा, सड़क, बंदरगाह और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने का वायदा किया गया था। मगर कई ढांचागत क्षेत्रों में अपेक्षित नतीजे नहीं दिखते। यूएमपीपीएस (अल्ट्रा मेगा पॉवर प्रोजेक्ट्स) की स्थापना के लिए ऊर्जा क्षेत्र में किए गए निवेश से कोई लाभ नहीं होगा। छत्तीसगढ़ ने पहले ही संकेत दिए हैं कि यह परियोजना उनके यहाँ व्यावहारिक नहीं है। सड़क क्षेत्र में अच्छी प्रगति हुई है, मगर इसमें प्राथमिक तौर पर राज्यों से हुए निवेश का योगदान है। बजट में हवाई अड्डों के विस्तार का जिक्र नहीं था। यह ऐसा क्षेत्र है, जिसमें 12 फीसदी से अधिक की वृद्धि हो सकती है। इसमें निजी क्षेत्र से कोई निवेश नहीं आ रहा है। मध्य वर्ग के विस्तार के साथ इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है। इसके साथ ही बंदरगाहों को निगमित करने की बात भी थी, मगर अभी तक ऐसी पहल नहीं हुई।

8. स्टार्ट-अप और भारत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 जनवरी को नई दिल्ली के विज्ञान भवन से ‘स्टार्ट-आप इंडिया-स्टैंडअप इंडिया’ नाम के जिस आंदोलन की शुरुआत की, वह भारत को विश्व में एक आर्थिक महाशक्ति के तौर पर स्थापित करने की दिशा में मील का एक पत्थर साबित हो सकता है।

1991 में नरसिंह राव की सरकार ने तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में जिस उदारीकरण की नीति का आगाज किया था, उसका मूल आधार दरअसल विदेशी पूँजी को भारत लाना और उसके आधार पर आर्थिक ग्रोथ हासिल करना था, लेकिन आर्थिक सुधारों के उस पहले चरण के बाद सुधारों की गति थम सी गई। नतीजा यह हुआ कि उस शुरुआत के लगभग डेढ़ दशक के बाद भी आज हम दहाई अंक के ग्रोथ रेट से कहीं दूर खड़े हैं।

दरअसल विदेशी पूँजी से देश के आर्थिक विकास की अपनी एक सीमा है और उस सीमा के पार जाने के लिए देश में अपनी एक बड़ी आंत्रप्रेन्योरिशप का खड़ा होना बहुत ज़रूरी है। इसे चीन के उदाहरण से भी समझा जा सकता है, जिसने लगातार दो दशकों तक दहाई अंकों से ज़्यादा की विकास दर हासिल कर दिखाई है।

चीन की यह विकास यात्रा केवल विदेशी पूँजी का नतीजा नहीं है। कम लोगों को यह पता है कि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की यात्रा में चीन के उद्यमियों ने रीढ़ की हड्डी की भूमिका निभाई है। जैक मा, पोनी मा, रॉबिन ली, रेन झेंगफे, यांग युआनकिंग, ली जुन, यु गैंग, ली शुफु, शु लियाजी, डियान वांग, शेन हाइबिन, वांग जिंगबो, झांग यू जैसे युवा उद्यमियों की एक पूरी फ़ौज है, जिसने चीन के आर्थिक विकास को आसमान की बुलंदियों तक पहुँचाया है। दूसरी ओर पिछले डेढ़ साल में नया बिजनेस शुरू करने की दिशा में लालफीताशाही और नियमों की जटिलता कम करने की मोदी सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद विश्व बैंक की ‘ईज ऑफ डुईंग बिजनेस’ लिस्ट में भारत अब भी 130वें स्थान पर है। इन कोशिशों में पिछले साल अगस्त में सरकार द्वारा 2,000 करोड़ रुपये के ‘इंडिया एस्पीरेशन फंड’ की घोषणा भी शामिल है।

ऐसे में इतना तो साफ़ है कि भारत में फंडिंग स्टार्ट-अप की समस्या नहीं है। इसीलिए मोदी सरकार ने इस नए ‘स्टार्टअप इंडिया-सटैंडअप इंडिया’ को केवल फंडिंग प्रोग्राम न बनाकर एक आंदोलन बनाने की कोशिश की है। अगले 4 साल तक के लिए 2,500 करोड़ रुपये प्रति वर्ष के हिसाब से 10,000 करोड़ रुपये आवंटित करने के अलावा कई ऐसे फ़ैसले किए गए हैं, जो स्टार्ट-अप के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने पर केंद्रित हैं। फंडिंग के अलावा नई स्थापित होने वाली कंपनियों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड का गठन किया गया है, जिसमें हर साल 500 करोड़ रुपये दिए जाएंगे। रजिस्ट्रेशन को आसान बनाने के लिए सेल्फ सर्टिफिकेशन का ऐलान किया गया है और स्टार्ट-अप को 3 साल तक के लिए सरकारी निगरानी से मुक्त कर दिया गया है। स्टार्ट-अप केंद्र सिंगल प्वाइंट काउंटर होंगे जिस तक मोबाइल पर ऐप के जरिए भी पहुँचा जा सकेगा। पेटेंट शुल्क में 80 फीसदी की कमी कर दी गई है।

9. नुकसान का हर्जाना

हार्दिक पटेल मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय को अगर यह कहना पड़ा है कि आंदोलनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को होने वाले नुकसान की जवाबदेही तय करने के लिए मानक तय किए जाने चाहिए, तो इसे समझा जा सकता है। शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी बेशक पाटीदार आंदोलन के संदर्भ में है, लेकिन हरियाणा में आरक्षण के लिए हुए जाटों के आंदोलन के संदर्भ में भी यह उतनी ही प्रासंगिक है। दोनों आंदोलनों में सार्वजनिक संपत्ति को व्यापक नुकसान पहुंचाया गया। हरियाणा की ही बात करें, तो आंदोलनकारियों ने एकाधिक रेलवे स्टेशनों में आग लगाई, रोडवेज की बसें फूंक दी और दूसरे सरकारी भवनों को भी भारी नुकसान पहुंचाया। एसोचैम ने वहाँ हुए नुकसान का आँकड़ा करीब बीस हजार करोड़ रुपये का बताया है, जिसे उत्तर भारत के कुल नुकसान के संदर्भ में देखें, तो यह लगभग चौंतीस हजार करोड़ रुपये का बैठता है। मामला सिर्फ इन दो आंदोलनों के दौरान हुई क्षति का ही नहीं है, यह हर आंदोलन की सच्चाई है।

ऐसे आंदोलनों के पीछे राजनीतिक लाभहानि की मंशा होती है। कई बार राजनीतिक दल ऐसे आंदोलनों को सीधे या परोक्ष तौर पर समर्थन देते हैं, लेकिन इन्हें हिंसक होने से रोकने की कोई कोशिश नहीं होती। हरियाणा में आरक्षण के नाम पर कई दिनों तक हिंसा, दहशत और गतिरोध का जो आलम रहा, वह तो स्तब्ध करने वाला था। सुप्रीम कोर्ट ने ठीक कहा है कि आंदोलन के दौरान संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए भाजपा, कांग्रेस या किसी भी संगठन को जवाबदेह ठहराया जा सकता है।

बेहतर हो कि सरकारें और राजनीतिक पार्टियाँ अदालत की इस टिप्पणी को सिर्फ उसकी क्षोभ भरी प्रतिक्रिया न समझें, बल्कि अब वे वाकई जिम्मेदार बनें, ताकि आंदोलनों को हिंसक होने से रोका जाए और सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हो। ऐसी कोई न कोई व्यवस्था अब बनानी ही पड़ेगी, ताकि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले छूट न पाएँ। सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी के संदर्भ में ऐसी कोई शुरुआत अभी से क्यों नहीं होनी चाहिए कि गुजरात और हरियाणा में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से हर्जाना वसूला जाए। ऐसी कोई व्यवस्था शुरू हो, तो सरकारें भी जिम्मेदार बनेंगी और प्रशासन भी।

10. वन कानूनों की समीक्षा का वक्त

जलवायु परिवर्तन के लिहाज से जंगल की अधिकता किसी भी राज्य के लिए गौरव की बात हो सकती है, पर यदि जनता के लिए वन परेशानियों का सबब बन जाएँ, तो यह चिंता का विषय है। 65 प्रतिशत वन क्षेत्र वाले उत्तराखंड राज्य में निरंतर कड़े होते जा रहे वन कानूनों के चलते पर्वतीय क्षेत्र में न केवल विकास कार्य बाधित हुई है, बल्कि ग्रामीणों की आजीविका भी प्रभावित हुई है।

उत्तराखंडी ग्रामीण समुदाय का वनों के साथ चोली-दामन का संबंध रहा है। कृषि, दस्तकारी एवं पशुपालन ग्रामीणों की आजीविका का पुश्तैनी आधार रहा है, जो वनों के बिना संभव नहीं हैं। पर्यावरण सुरक्षा तथा जैव विविधता के लिए ज़रूरी है कि वन एवं वन निर्भर समुदाय को एक दूसरे के सहयोगी के रूप में देखा जाय। दुर्भाग्यवश जब भी पर्यावरण, जैव विविधता संरक्षण अथवा जलवायु परिवर्तन की बात होती है, हमारे नीति नियंता ग्रामीणों को वनों का दुश्मन समझ कठोर वन कानूनों के जरिये समाधान ढूँढ़ने का प्रयास करते हैं। राज्य गठन के बाद उम्मीद थी कि वनों के प्रति सरकार के नज़रिये में बदलाव आएगा, पर ऐसा नहीं हुआ।

राज्य बनने के बाद पहला संशोधन वन पंचायत नियमावली में किया गया। 2001 में किए गए इस संशोधन के जरिये वन पंचायतों की स्वायत्तता समाप्त कर उन्हें वन विभाग के नियंत्रण में दे दिया गया। यहाँ मौजूद 12,089 तथाकथित वन पंयायतें 544964 हेक्टेयर वन क्षेत्र का प्रबंधन कर रही हैं। उत्तराखंड में मौजूद वन पंचायतें, जो कि जन आधारित वन प्रबंधन की सस्ती, लोकप्रिय एवं विश्व की अनूठी व्यवस्था थी, अब नहीं रहीं। आज उनकी वैधानिक स्थिति ग्राम वन की है। 2001 में ही वन अधिनियम में संशोधन कर आरक्षित वन से किसी भी प्रकार के वन उपज के दोहन को गैरजमानती जुर्म की श्रेणी में डाल दिया गया। अभयारण्य, नेशनल पार्क व बायोस्फेयर रिजर्व के नाम पर संरक्षित क्षेत्रों के विस्तार का क्रम जारी है।

इन संरक्षित क्षेत्रों में ग्रामीणों के सारे परंपरागत वनाधिकार प्रतिबंधित कर दिए गए हैं। अब इन संरक्षित क्षेत्रों की सीमा से लगे क्षेत्र को इको सेंसेटिव जोन बनाया जा रहा है। इको टूरिज्म के नाम पर जंगलों में भारी संख्या में पर्यटकों की आवाजाही से जंगली जानवरों के वासस्थल प्रभावित हो रहे हैं। वन संरक्षण अधिनियम, 1980 ने पहले ही पर्वतीय क्षेत्र में ढाँचागत विकास को काफ़ी हद तक प्रभावित किया है। वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1976 अपने ही खेत में स्वयं उगाए गए पेड़ को काटने से रोकता है।

इन वन कानूनों के चलते पर्वतीय क्षेत्र में न केवल विकास कार्य बाधित हुए हैं, बल्कि कृषि, पशुपालन एवं दस्तकारी पर भी हमला हुआ है। जंगली सूअर, साही, बंदर, लंगूर द्वारा फ़सलों को क्षति पहुँचाई जा रही है। तेंदुए मवेशियों को शिकार बना रहे हैं। वन्यजीवों के हमलों से हर साल राज्य में औसतन 26 लोगों की मौत हो रही है। अकेले 47 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले बिनसर अभयारण्य में प्रतिवर्ष 140 मवेशी तेंदुओं का शिकार बन रहे हैं, जबकि वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा है। कभी खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर गाँवों में हर साल बंजर भूमि का विस्तार हो रहा है। कांग्रेस सरकार अपने चुनाव घोषणापत्र में 25 प्रतिशत वन भूमि ग्राम समाज को लौटाने का वायदा भूल चुकी है। राज्य में वनाधिकार कानून लागू करने में भी अब तक की सरकारें नाकाम रहीं हैं। वन कानूनों की आड़ में वन विभाग द्वारा ग्रामीणों के उत्पीड़न की घटनाएँ बढ़ रही हैं। दूसरी तरफ संरक्षित क्षेत्रों के भीतर बड़े पैमाने पर गैरकानूनी तरीके से जमीनों की खरीद-फरोख्त जारी है। अकेले बिनसर अ यारण्य में 10 हेक्टेयर से अधिक जमीनों की खरीद-फरोख्त अवैध रूप से हुई है। वहाँ आलीशान रिसॉर्ट्स बनाए गए हैं। ऐसे में जंगल के प्रति ग्रामीणों का नजरिया बदल गया है। चिपको आंदोलन की शुरुआत करने वाले रैणी, लाता गाँव के लोग 25 साल बाद झपटो-छीनो का नारा देने को विवश हुए हैं। ऐसे में, मनुष्य को केंद्र में रखकर वन कानूनों की फिर से समीक्षा करने का वक्त आ चुका है।

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रिपोर्ट लेखन | class 12th | Hindi कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन ncert solution

Class 12 Hindi रिपोर्ट लेखन

प्रश्नः 1.
रिपोर्ट के विषय में बताइए।

उत्तरः
‘रिपोर्ट’ शब्द का हिंदी पर्याय ‘प्रतिवेदन’ है। समाचार संकलित करके उसे लिखकर प्रेस में भेजना रिपोर्टिंग कहलाता है। ज्यादातर यह कार्य फील्ड में जाकर किया जाता है। एक संवाददाता सेमिनार, रैली अथवा संवाददाता सम्मेलन से विविध प्रकार की खबरें एकत्रित करके उन्हें अपने कार्यालय में प्रेषित कर देता है। वास्तव में रिपोर्ट एक प्रकार की लिखित विवेचना होती है जिसमें किसी संस्था, सभा, दल, विभाग अथवा विशेष आयोजन की तथ्यों सहित जानकारी दी जाती है। रिपोर्टिंग का उद्देश्य संबंधित व्यक्ति, संस्था, परिणाम, जाँच अथवा प्रगति की सही एवं पूर्ण जानकारी देना है।

प्रश्नः 2.
रिपोर्टिंग के प्रकार बताइए।

उत्तरः
रिपोर्टिंग कई प्रकार की होती है; यथा –

  • राजनीतिक, साहित्यिक, सामाजिक, आर्थिक भाषणों एवं सम्मेलनों की रिपोर्ट।
  • अदालतों की रिपोर्ट।
  • आपराधिक मामलों की रिपोर्ट।
  • प्रेस कांफ्रेंस या संवाददाता सम्मेलन की रिपोर्ट।
  • युद्ध एवं विदेश यात्रा की रिपोर्ट।
  • प्राकृतिक आपदा, दुर्घटना, दंगा आदि की रिपोर्ट।
  • संगीत सम्मेलन व कला संबंधी रिपोर्ट।
  • खोजी समाचारों की रिपोर्ट।
  • व्यावसायिक प्रगति अथवा स्थिति की रिपोर्ट।
  • पुस्तक प्रदर्शनी, चित्र प्रदर्शनी आदि की रिपोर्ट।

प्रश्नः 3.
अच्छी रिपोर्टिंग के लिए अपेक्षित गुण बताइए।

उत्तरः
एक रिपोर्टिंग तभी अच्छी और उपयोगी बन सकती है, जब उसमें गुण हों। अच्छी रिपोर्टिंग के लिए निम्नलिखित गुण होना अनिवार्य है –

  • रिपोर्टर के डेस्क से संबंध अच्छे होने चाहिए।
  • रिपोर्ट पूरी तरह स्पष्ट और पूरी हो।
  •  रिपोर्ट की भाषा न आलंकारिक हो, न ही मुहावरेदार।
  • रिपोर्ट में सूचना भर होनी चाहिए।
  • किसी भी वाक्य के एक-से अधिक अर्थ न निकलें।
  • भाषा में प्रथम पुरुष का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  • जो भी तथ्य दिए जाएँ वे विश्वसनीय एवं प्रामाणिक हों।
  • रिपोर्ट संक्षिप्त हों।
  • उन्हीं तथ्यों का समावेश करना चाहिए जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण हों।
  • तथ्यों का तर्क और क्रम सुविधानुसार हों।
  • रिपोर्ट का शीर्षक स्पष्ट और सुरुचिपूर्ण हों।
  • शीर्षक ऐसा हो जो मुख्य विषय को रेखांकित करे।
  • रिपोर्ट में प्रत्येक तथ्य और विषय को अलग अनुच्छेद में लिखा जाना चाहिए।
  • प्रतिवेदन के अंत में सभा अथवा दल अथवा संस्था के अध्यक्ष को हस्ताक्षर कर देने चाहिए।

प्रश्नः 4.
रिपोर्टिंग लिखने की विधि बताइए।

उत्तरः
रिपोर्टिंग लिखने में निम्नलिखित विधियों को अपनाना चाहिए –

  • सर्वप्रथम संस्था का नाम लिखा जाना चाहिए।
  • बैठक सम्मेलन का उद्देश्य स्पष्ट किया जाना चाहिए।
  • आयोजन स्थल का नाम लिखें।
  • आयोजन की तिथि और समय की सूचना दी जानी चाहिए।
  • कार्यक्रम में उपस्थित लोगों की जानकारी दी जाए।
  • कार्यक्रम एवं गतिविधियों की जानकारी दी जाए।
  • यदि भाषण है तो उसके मुख्य बिंदुओं के बारे में बताया जाए।
  • निर्णयों की जानकारी भी दी जानी चाहिए।
  • प्रतियोगिता का परिणाम आया हो तो उसका भी उल्लेख किया जाना चाहिए।

प्रश्नः 5.
रिपोर्ट की विशेषताएँ बताइए।

उत्तरः
रिपोर्ट अपने आप में एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसका महत्त्व मात्र समसामयिक नहीं होता अपितु संबंधित क्षेत्र में सुदूर भविष्य तक भी इसकी उपयोगिता रहती है। रिपोर्ट की विशेषताओं का विवेचन नीचे किया जा रहा है –

1. कार्य योजना-रिपोर्टर को पहले पूरी योजना बनानी चाहिए। विषय का अध्ययन करके उसके उद्देश्य को समझना चाहिए। इसकी प्रारंभिक रूपरेखा बनाने से रिपोर्ट लिखने में सहायता मिलती है।

2. तथ्यात्मकता-रिपोर्ट तथ्यों का संकलन होता है। इसलिए सबसे पहले विषय से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी लेनी पड़ती है। इसके लिए पुराने रिपोर्टों, फाइलों, नियम-पुस्तकों, प्रपत्रों के द्वारा आवश्यक सूचनाएँ इकट्ठी की जाती हैं। सर्वेक्षण तथा साक्षात्कार द्वारा आँकड़ों और तथ्यों को प्राप्त किया जाता है। इन तथ्यों को रिकार्ड किया जाए और आवश्यकता पड़े तो इनके फोटो भी लिए जा सकते हैं।

3. प्रामाणिकता-तथ्यों का प्रामाणिक होना अत्यंत आवश्यक है। किसी विषय, घटना अथवा शिकायत आदि के बारे में जो तथ्य जुटाए जाएँ, उनकी प्रामाणिकता से रिपोर्ट की सार्थकता बढ़ जाती है।

4. निष्पक्षता-रिपोर्ट एक प्रकार से वैधानिक अथवा कानूनी दस्तावेज़ बन जाती है। इसलिए रिपोर्टर का निर्णय विवेकपूर्ण होना अत्यंत आवश्यक है। रिपोर्ट लिखते समय या प्रस्तुत करते समय रिपोर्टर प्रत्येक तथ्य, वस्तुस्थिति, पक्ष-विपक्ष, मत-विमत का निष्पक्ष भाव से अध्ययन करे और फिर उसके निष्कर्ष निकाले। इस प्रकार प्रत्येक स्थिति में उसका यह नैतिक दायित्व हो जाता है कि वह नीर-क्षीर विवेक का परिचय दे। इससे रिपोर्ट उपयोगी होगा और मार्गदर्शक भी सिद्ध होगा।

5. विषय-निष्ठता-रिपोर्ट का संबंधित प्रकरण पर ही केंद्रित होना अपेक्षित है। यदि किसी विषय-विशेष पर रिपोर्ट लिखा जाना है तो उससे संबंधित तथ्यों, कारणों और सामग्री आदि तक ही सीमित रखना चाहिए। इसमें प्रकरण को एक सूत्र की तरह प्राप्त तथ्यों में पिरोया जाए, जिससे प्रकरण अपने-आप में स्पष्ट होगा।

6. निर्णयात्मकता-रिपोर्ट मात्र विवरण नहीं होती। इसलिए रिपोर्टर को संबंधित विषय का विशेष जानकार होना आवश्यक है। यदि वह विशेषज्ञ होगा तो साक्ष्यों और तथ्यों का सही या गलत अनुमान लगा पाएगा तथा उनका विश्लेषण करने में समर्थ होगा। साथ ही वह प्राप्त तथ्यों, साक्ष्यों और तर्कों का सम्यक परीक्षण कर पाएगा और अपने सुझाव तथा निर्णय भी दे पाएगा।

7. संक्षिप्तता और स्पष्टता-रिपोर्ट लिखते समय यह ध्यान रखा जाए कि उसमें अनावश्यक विस्तार न हो। प्रत्येक तथ्य या साक्ष्य का संक्षिप्त और सुस्पष्ट विवरण दिया जाए। यदि रिपोर्ट काफी लंबा हो गया हो तो उसका सार दिया जाए जिससे प्राप्त तथ्यों और सुक्षावों पर ध्यान तुरंत आकृष्ट हो सके। लेकिन अस्पष्ट सूचना या विवरण से उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता। अत: रिपोर्ट संक्षिप्त होते हुए भी अपने आप में स्पष्ट और पूर्ण होनी चाहिए।

उदाहरण

प्रश्नः 1.
अपने मोहल्ले में हुई चोरी की वारदात पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तरः
गत 20 जून, 2016 को हमारे मोहल्ले में लाला खजूरी दास के यहाँ चोरी हो गई। चोरी रात के लगभग 12 बजे हुई। घर के सभी लोग शादी समारोह में गए थे। हमारे मोहल्ले में हर रोज रात 11 बजे से 2 बजे तक बिजली गुल हो जाती है। चोरों ने इसका भरपूर फायदा उठाया। वे पीछे के दरवाज़े से कोठी में दाखिल हुए। उन्होंने घर की प्रत्येक चीज़ का मुआयना किया। वे अपने साथ 50,000 रुपये नकद, 21 तोले सोना और अन्य कीमती सामान ले गए। लाला जी को चोरी की बात सुबह 2:30 बजे पता चली जब वे वापिस लौटे। वे कुछ गणमान्य व्यक्तियों को साथ लेकर थाने में पहुँचे। पुलिस ने चोरी की रिपोर्ट दर्ज कर ली है। वह चोरों की तलाश में जुट गई है। इंस्पेक्टर महोदय ने आश्वासन दिया है कि जल्द ही चोरों को पकड़ लिया जायेगा।

प्रश्नः 2.
पार्क में हुई छेड़छाड़ की घटना पर रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तरः
स्थानीय पार्क में आम दिनों की तरह ही कल भी भारी भीड़ थी। लोग काफ़ी संख्या में मौजूद थे। बच्चे, बूढ़े, युवक युवतियाँ सभी पार्क में घूमने फिरने का आनंद उठा रहे थे। तभी अचानक हलचल-सी शुरू हो गई जिसे देखो वही पार्क के पश्चिमी छोर की ओर भागा जा रहा था। पता चला कि कुछ मनचले युवकों ने एक लड़की से छेड़छाड़ की है। पता चलते ही लोगों ने उन युवकों को पकड़ लिया। लड़की ने सारी घटना कह सुनाई। इसके बाद लोगों में रोष भर आया। उन्होंने तसल्ली से उन मनचले युवकों की पिटाई कर दी। अंत में लड़कों ने सभी से माफ़ी माँगी तथा युवती को बहन कहा। लोगों में बहुत गुस्सा भरा था अतः एक बुजुर्ग व्यक्ति ने मोबाइल से पुलिस को बुला लिया। पुलिस सभी मनचले युवकों को पकड़कर ले गई। लड़की के बयान पुलिस ने दर्ज कर ली है। आगे की कार्यवाही जारी है।

प्रश्नः 3.
भारतीय संस्कृति संस्थान की आगरा शाखा ने 13 मई से 13 जून तक संस्कृति मास मनाया। इसका संक्षिप्त रिपोर्ट तैयार करें।
उत्तरः
भारतीय संस्कृति संस्थान की आगरा शाखा ने 13 मई से 13 जून तक संस्कृति मास बड़ी धूमधाम से मनाया। इसके अंतर्गत कई स्कूली प्रतियोगिताएँ आयोजित की गईं। नागरिकों के लिए भी कई प्रतियोगिताएँ रखी गई थीं। इन प्रतियोगिताओं में सरस्वती वंदना, भाषण, कथा, सुलेख, रागिनी, देशप्रेम गीत, समूहगान, वंदे मातरम् गायन, पुष्प सज्जा, रंगोली, चित्रकला, कोलॉज और फैंसी ड्रेस आदि प्रमुख थी।

इन प्रतियोगिताओं में 50 विद्यालयों के 1200 बच्चों ने भाग लिया। सभी प्रतियोगिताएँ शाखा के अनुसार की गई। आगरा में संस्थान की कुल 15 शाखाएँ हैं। इसके बाद खंड के अनुसार प्रतियोगिताएँ हुईं। अंत में पूरे आगरा से चयनित कलाकारों की प्रतियोगिताएँ हुई। सारा आयोजन कुशलता और सादगी से हुआ। आगरा शाखा के संरक्षक डॉ० राजेश्वर गोयल ने बताया कि इस वर्ष से सामूहिक गान का आयोजन अखिल भारतीय स्तर पर आरंभ किया हुआ है जो भविष्य में भी जारी रहेगा। राष्ट्रीय गान प्रतियोगिता में काँटे की टक्कर थी। निर्णायक मंडल को भी निर्णय लेने में अतिरिक्त समय लगा। इस प्रतियोगिता में 300 बच्चों ने भाग लिया था। नागरिकों के लिए रखी गई प्रतियोगिताओं में भी शहर के हजारों लोगों ने रुचि पूर्वक भाग लिया। विजेताओं को पुरस्कार मिले। अंत में राष्ट्रगान से संस्कृति मास का समापन हो गया।

प्रश्नः 4.
आप जयेश सिंहल हैं। जम्मू के रघुनाथ मंदिर के नजदीक जबरदस्त बम विस्फोट हुआ है। विस्फोट के समय आप वहीं मौजूद थे। अपने अखबार के लिए इस विस्फोट की रिपोर्ट तैयार करें।
उत्तरः
रघुनाथ मंदिर के नजदीक जबरदस्त बम विस्फोट : आज दिनांक 10 अगस्त को जम्मू के विश्व प्रसिद्ध रघुनाथ मंदिर के नजदीक जबरदस्त बम विस्फोट हो गया। विस्फोट शाम को लगभग 5:30 बजे हुआ। धमाके के साथ ही लोगों में हाय-तौबा मच गई। विस्फोट इतना जबरदस्त था कि कई दुकानों के शीशे तक टूट गए। शाम के समय इस बाज़ार में बहुत भीड़ होती है। बम के छर्रे कई लोगों को लगे। इस विस्फोट में 10 लोग मौके पर ही मारे गए। लगभग 3 दर्जन से ज़्यादा लोग घायल हुए। घायलों में महिलाएँ ज़्यादा थीं। पुलिस ने घटना स्थल पर पहुँचकर स्थिति को नियंत्रण में कर लिया है। – जयेश सिंहल

प्रश्नः 5.
आपके विद्यालय में पिछले सप्ताह रक्तदान शिविर लगाया गया। अपने विद्यालय की वार्षिक पत्रिका के लिए इस शिविर पर एक रिपोर्ट लिखें जो 120 शब्दों से ज़्यादा न हों।
उत्तरः
विद्यालय में रक्तदान शिविर का आयोजन –
हमारे विद्यालय में पिछले सप्ताह रेड क्रास सोसायटी द्वारा रक्तदान शिविर आयोजित किया गया। प्राचार्य महोदय ने स्वयं छात्रों को रक्तदान के लिए प्रेरित किया। उन्होंने स्वयं रक्तदान कर छात्रों के सामने उदाहरण पेश किया। उन्होंने बताया कि आपके द्वारा दान की गई रक्त की एक बूंद भी दूसरे को जीवन दे सकती है। हमारे विद्यालय के कई अध्यापकों और छात्रों ने इस शिविर में बढ़-चढ़कर भाग लिया। यह शिविर सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे तक चला। रेड क्रास सोसाइटी के जिला अधिकारियों द्वारा रक्तदान करने वालों को प्रमाण-पत्र दिए गए। नारायण शंकर कक्षा-ग्यारहवीं

प्रश्नः 6.
भ्रष्टाचार : सिर्फ रैंकिंग घटी उत्तरः ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट : 85 से 76वें नंबर पर आया भारत लेकिन अंक वही 38 ही
उत्तरः
भ्रष्टाचार कम करने के मामले में भारत 38 अंकों के साथ दुनिया में 76वें पायदान पर आ गया है जबकि पिछले साल इस लिस्ट में भारत 85वें नंबर पर था। यानी रैंकिंग के हिसाब से हम भ्रष्टाचार कम करने में कामयाब रहे हैं लेकिन ऐसा है नहीं, क्योंकि हमें इस बार भी उतने ही नंबर मिले, जितने पिछली बार मिले थे। यानी हमें रैंकिंग में यह फायदा भ्रष्टाचार कम करने की वजह से नहीं, बल्कि लिस्ट में देशों की संख्या घटने की वजह हुआ है। वर्ष 2014 में इस लिस्ट में 174 देश थे, जबकि 2015 में 168 देशों को इस लिस्ट में शामिल किया गया। इतना ही नहीं, इस पायदान पर ब्राजील, थाईलैंड समेत छह देश हमारे साथ खड़े हैं।

यह खुलासा ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के करप्शन परसेप्शंस इंडेक्स (सीपीआई) 2015 की जारी रिपोर्ट में हुआ है। सीपीआई देशों को 1 से 100 तक का स्कोर देता है। जिस देश का स्कोर जितना ज्यादा होता है वहाँ भ्रष्टाचार उतना ही कम माना जाता है। सीपीआई दुनियाभर के विशेषज्ञों की राय के आधार पर सरकारी विभागों में फैले भ्रष्टाचार का अनुमान लगाता है।

डेनमार्क सबसे कम भ्रष्ट देश-इस सूची में 100 में से सबसे ज़्यादा 91 अंक डेनमार्क को मिले हैं। यानी डेनमार्क दुनिया का सबसे कम भ्रष्ट देश है। दूसरे नंबर पर फिनलैंड (90) और तीसरे नंबर पर स्वीडन (89) है। 8-8 अंकों के साथ उत्तर कोरिया और सोमालिया दुनिया के सबसे भ्रष्ट देश हैं।
CBSE Class 12 Hindi रिपोर्ट लेखन

प्रश्नः 7.
टेनिस कोर्ट भी फिक्सिंग के चंगुल में
उत्तरः
वर्ष के पहले ग्रैंड स्लैम ऑस्ट्रेलियन ओपन के पहले ही दिन फिक्सिंग की रिपोर्ट ने टेनिस जगत को झकझोर कर रख दिया है। फिक्सिंग का साया कई खेलों पर यदा-कदा मंडराता रहा है। लगता है कि अब यह टेनिस कोर्ट पर भी पांव पसार रहा है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि टेनिस में बड़े पैमाने पर मैच फिक्सिंग होती है। बीबीसी और बजफीड न्यूज का दावा है कि पिछले एक दशक में विश्व के शीर्ष 50 में से 16 खिलाड़ी फिक्सिंग में लिप्त रहे हैं जिनमें ग्रैंड स्लैम चैंपियन भी शामिल हैं। विंबलडन में भी तीन मैच फिक्स थे। संदेह के घेरे में रहे आठ खिलाड़ी इस समय ऑस्ट्रेलियन ओपन में खेल रहे हैं। इसका भंडाभोड़ करने वाले एक अज्ञात समूह की ओर से लीक की गई गोपनीय फाइलों के आधार पर रिपोर्ट में कहा गया है कि इन 16 में से किसी खिलाड़ी पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया। खिलाड़ियों से डील टूर्नामेंट के दौरान होटलों के कमरों में होती है।

प्रश्नः 8.
भारतीय उद्यमी सबसे ज़्यादा आशावादी
उत्तर
अर्थव्यवस्था में रिकवरी की उम्मीद के मामले में भारतीय उद्यमियों का रवैया सबसे ज़्यादा आशावादी है। रिसर्च फर्म ग्रांट थॉर्नटन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के उद्यमियों की यह सकारात्मक सोच सरकार के सुधारवादी दृष्टिकोण, हाल के दिनों में की गई नीतिगत घोषणाओं और नियामकीय बदलावों के चलते उत्पन्न हुई है।

ग्रांड थॉर्नटन ने अपनी इंटरनेशनल बिजनेस रिपोर्ट (आईबीआर) में बताया है कि भारत के करीब 89 फीसदी उद्यमी सरकार की स्थिरता से खुश हैं और उन्हें अर्थव्यवस्था में सुधार (रिकवरी) की उम्मीद है। ग्लोबल आधार पर किया गया यह सर्वे 36 देशों के 2,580 उद्योगपतियों (बिजनेस लीडर्स) दवारा व्यक्त की गई राय पर आधारित है। यह सर्वे अक्तूबर-दिसंबर 2015 तिमाही के दौरान किया गया था और इसमें उद्यमियों से पूछा गया था कि अगले 12 महीनों में वह अर्थव्यवस्था को लेकर कितने आशावादी हैं।

भारत 89 फीसदी सकारात्मक जवाबों के साथ इस सर्वे में टॉप पर रहा। दूसरे स्थान पर 88 फीसदी के साथ आयरलैंड रहा, जबकि फिलीपींस 84 फीसदी के साथ तीसरे स्थान पर रहा।

प्रश्नः 9.
वायु प्रदूषण से दुनिया में हर साल हो रहीं 55 लाख मौतें
उत्तरः
दुनिया भर के शहरों में तेजी से बढ़ रहा वायु प्रदूषण लोगों को बीमार ही नहीं कर रहा बल्कि जान भी ले रहा है। जहरीली हवा के कारण हर साल 55 लाख लोगों की समय से पहले मौत हो जाती है। विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था चीन और भारत में ही इनमें से आधे से अधिक लोग अपनी जान गंवाते हैं। भारत, चीन, अमेरिका और कनाडा के शोधकर्ताओं ने अमेरिकन एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ साइंस (एएएएस) की वार्षिक बैठक में जो रिपोर्ट रखी है, उससे बहुत ही खौफनाक तसवीर उभरती है। ऊर्जा एवं औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले महीन कण, कोयले की राख और गाड़ियों का धुआँ हवा को वाकई जहरीला बना रहा है। इनके कारण वायु प्रदूषण मौत की चौथी सबसे बड़ी वजह बन गया है।

केवल उच्च रक्तचाप, खराब खानपान और सिगरेट ही इससे अधिक जान लेते हैं। भारत और चीन की स्थिति बेहद खराब है। वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली मौत की 55 फीसदी घटनाएँ इन्हीं दो देशों में घटती हैं। वर्ष 2013 में चीन में करीब 16 लाख और भारत में 14 लाख लोग वायु की खराब गुणवत्ता की वजह से मरे थे। चीन में कोयला वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक है। कोयले के कारण बाहर होने वाले प्रदूषण ने 2013 में 366 लाख जान ली थी। यदि इस समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो 2030 तक यह आँकड़ा बढ़कर 13 लाख तक हो सकता है। दूसरी ओर भारत में खाना बनाने के लिए लकड़ी, गोबर के उपले तथा दूसरी ऑर्गेनिक चीजों का इस्तेमाल हवा को घुटन भरा बना रहा है। वायु प्रदूषण कम करने के लिए किए जा रहे सारे प्रयास नाकाफ़ी हैं।

भारत और पाक में बदतर होती जा रही स्थिति – रिपोर्ट में भारी जनसंख्या वाले एशियाई देशों को खासतौर पर चेतावनी दी गई है कि अगर वायु की गुणवत्ता सुधारने के लिए तुरंत उपाय नहीं शुरू किए गए तो अगले 20 सालों में समस्या और विकराल हो जाएगी। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के माइकल ब्राउर के अनुसार भारत, बांग्लादेश और पाक में स्थिति बदतर हो रही है। चीन वायु प्रदूषण पर काबू कर सकता है लेकिन वहाँ के हालात पहले ही खराब हैं। उन्होंने चेताया कि उम्र बढ़ने के साथ सांस की बीमारियों की चपेट में आने का खतरा बढ़ जाएगा।

प्रश्नः 10.
43% जज कम हैं हाईकोर्ट में, तेज़ी से बढ़ रहे हैं पेंडिंग केस
उत्तरः
देश के 24 हाईकोर्ट इस समय जजों की कमी से जूझ रहे हैं। 1044 पद हैं, जबकि 443 कुर्सियाँ खाली हैं। 43% जज कम हैं। आठ हाईकोर्ट में तो चीफ जस्टिस ही नहीं हैं। कार्यवाहक चीफ जस्टिस ही नेतृत्व कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी 31 में से पाँच जजों के पद खाली हैं। पेंडिंग केस लगातार बढ़ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में 60 हजार तो हाईकोर्ट में 45 लाख केस पेंडिंग हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के लिए बने राष्ट्रीय न्यायिक आयोग कानून को रद्द किया था। इससे कॉलेजियम व्यवस्था फिर लागू हो गई लेकिन इसके बाद कॉलेजियम में सुधार के लिए सुनवाई शुरू हो गई।

14 अप्रैल के बाद से कोई नियुक्ति नहीं हुई-14 अप्रैल 2015 को एनजेएसी कानून का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद से अब तक हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में कोई नई नियुक्ति नहीं हुई है। किसी हाईकोर्ट के जज का ट्रांसफर या पदोन्नति भी नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट में तो आखिरी नियुक्ति जस्टिस अमिताव रॉय की 27 फरवरी 2015 को हुई थी।

एडिशनल जजों के भरोसे चल रहे हैं हाईकोर्ट-हाईकोर्ट में जजों की कमी दूर करने के लिए पिछले नौ महीने से एडिशनल जजों का कार्यक्रम ही बढ़ाया जाता रहा। निर्भरता इसी बात से समझ सकते हैं कि चार हाईकोर्टों में एडिशनल जज मंजूर पदों से भी ज्यादा है। कलकत्ता में 9, छत्तीसगढ़ में 1, गुवाहाटी में 2 और केरल में 5 एडिशनल जज ज्यादा है।

प्रश्नः 11.
दुनिया की आधी दौलत समेटे बैठे हैं महज 62 धन कुबेर
उत्तरः
दुनिया भर में लोगों की आर्थिक स्थिति और आमदनी में असमानता में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इसी का नतीजा है कि दुनिया की आधी दौलत महज 62 अमीर लोगों के पास सिमट कर रह गई है। इस बात का खुलासा राइट्स ग्रुप ओक्सफेम की एक ताजा सर्वे रिपोर्ट में किया गया है। ‘एन इकनॉमी फॉर वन पर्सेट’ शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दुनिया के इन सबसे अमीर 62 लोगों में महिलाओं की संख्या केवल 9 है। इनकी आय में वर्ष 2010 के बाद से 1.76 लाख करोड़ डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया की करीब आधी दौलत रखने वाले 62 रईसों से इतर दुनिया की कुल आबादी में आधी भागीदारी रखने वाले सबसे गरीब लोगों की आय में वर्ष 2010 के बाद से करीब एक लाख करोड़ डॉलर की गिरावट आई है। प्रतिशत में देखा जाए तो यह गिरावट 41 फीसदी बैठती है। गिरावट का यह अनुपात भी तब है, जब इस अवधि के दौरान दुनिया की कुल आबादी में 40 करोड़ की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

विश्व आर्थिक मंच (डब्लूईएफ) की मंगलवार से शुरू होने वाली पाँच दिवसीय सालाना बैठक से पूर्व जारी यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि बीते पाँच वर्षों में दुनिया भर में लोगों की आय में असमानता कितनी तेजी से बढ़ी है। दुनिया की आधी दौलत वर्ष 2015 में 62 लोगों के पास सिमटकर आ जाने से पूर्व 2010 में इतनी ज़्यादा दौलत रखने वालों की जमात में 388 लोग शामिल थे। इसके बाद से आय में असमानता बढ़ने के चलते इन चुनिंदा रईसों का क्लब वर्ष 2011 में तेजी से सिमट कर महज 177 लोगों पर आ गया।

इसके बाद 2012 में यह संख्या 159 पर आई। तत्पश्चात वर्ष 2013 में एक बार फिर इसमें बड़ा बदलाव दिखा, जिससे दुनिया की आधी दौलत महज 92 लोगों के पस सिमट गई और 2014 में धन कुबेरों का यह क्लब सिमट कर महज 80 के दायरे में आ गया। दुनिया के विभिन्न देशों में लोगों की आय में असमानता का जिक्र करते हुए इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) का वेतन यहाँ काम करने वाले कर्मचारियों की औसत आय के मुकाबले 439 गुना अधिक है।

प्रश्नः 12.
अशांत के मुकाबले शांत देशों में मारे गए दोगुने पत्रकार
उत्तरः
दुनिया में युद्ध से जूझ रहे अशांत देशों की तुलना में शांति प्रिय माने जाने वाले देशों में इस साल दोगुने पत्रकार मारे गए हैं। पिछले साल ये आँकड़े बिलकुल उलट थे। वर्ष 2014 में युद्धग्रस्त देशों में दो तिहाई पत्रकारों की हत्या हुई थी। इस साल दुनिया भर में पत्रकारों की कुल हत्याओं में सिर्फ 36 प्रतिशत युद्धग्रस्त क्षेत्रों में हुई। जबकि 64 प्रतिशत हत्याएँ आम तौर पर शांत माने जाने वाले देशों में हुई, जिनमें भारत भी शामिल है। यह खुलासा मीडिया के लिए काम करने वाली संस्था ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ की ताजा रिपोर्ट में हुआ है।

इसके मुताबिक 2015 में दुनिया भर में 110 पत्रकारों की हत्या हुई। इनमें फ्रांस के 10 और भारत के 9 पत्रकार शामिल हैं। 67 पत्रकारों की हत्या काम के दौरान हुई है। इनमें फ्रांस और सोमालिया की एक-एक महिला पत्रकार भी शामिल हैं। फ्रांस में चार्ली हेब्दो मामले की वजह से पत्रकारों की हत्या हुई हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तुलना में भारत में सबसे ज़्यादा पत्रकारों की हत्या हुई है।

प्रश्नः 13.
दुनिया के 30 सुपर शहरों में दिल्ली का 24वां स्थान
उत्तरः
दुनिया के सबसे ताकतवर, उत्पादक और संपर्क वाले 30 शहरों में दो भारतीय शहर दिल्ली और मुंबई के भी नाम हैं। इंटरनेशनल रियल एस्टेट कंसल्टेंसी जेएलएल द्वारा तैयार की गई इस सुपर सिटी सूची में भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई को 22वीं रैंक दी गई है, जबकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को 24वां स्थान मिला है। सूची में प्रथम पायदान पर जापान की राजधानी टोक्यो है। दूसरे नंबर पर न्यूयॉर्क, तीसरे पर लंदन और चौथे पर पेरिस है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन तीस शहरों में सीमा पार निवेश का 64 फीसदी आता है। इन शहरों के प्रति व्यावसायिक आकर्षण है। ये आर्थिक और रियल एस्टेट में ताकतवर हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई का टॉप-20 इंप्रूवर सिटीज में भी है। ये वे शहर हैं जिनका व्यावसायिक आकर्षण अधिक है। जिन अन्य शहरों में अपने व्यावसायिक आकर्षण में सुधार किया है, उनमें मिलान (इटली), इस्तांबुल (तुर्की), तेहरान (ईरान), मेंड्रिड (स्पेन), काहिरा (मिस्र), रियाद (सऊदी अरब), लागोस (नाइजीरिया), जकार्ता (इंडोनेशिया) और जेद्दाह (सऊदी अरब) शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले तीन सालों में इन शहरों ने 7 प्रतिशत से अधिक वृद्धि दर हासिल की। जेएलएल के मुताबिक ग्लोबल कॉर्पोरेशन के लिए एक हब के रूप में मुंबई ने अपनी स्थिति को मज़बूत किया है। गुजर बसर करने के लिहाज से दुनिया के सबसे सस्ते स्थानों में नई दिल्ली और मुंबई भी शुमार हैं। जबकि सबसे महँगे शहरों में ज्यूरिख, जिनेवा, न्यूयॉर्क, ओस्लो और लंदन शामिल हैं। स्विस बैंक यूबीएस की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन की राजधानी लंदन पाँचवां सबसे महँगा शहर है लेकिन बड़े शहरों की तुलना में यहाँ रहना कठिन है।

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संपादकीय लेखन | class 12th | Hindi कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन ncert solution

 Class 12 Hindi संपादकीय लेखन

प्रश्नः 1.
संपादकीय का क्या महत्त्व है?

उत्तरः
संपादक संपादकीय पृष्ठ पर अग्रलेख एवं संपादकीय लिखता है। इस पृष्ठ के आधार पर संपादक का पूरा व्यक्तित्व झलकता है। अपने संपादकीय लेखों में संपादक युगबोध को जाग्रत करने वाले विचारों को प्रकट करता है। साथ ही समाज की विभिन्न बातों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। संपादकीय पृष्ठों से उसकी साधना एवं कर्मठता की झलक आती है। वस्तुतः संपादकीय पृष्ठ पत्र की अंतरात्मा है, वह उसकी अंतरात्मा की आवाज़ है। इसलिए कोई बड़ा समाचार-पत्र बिना संपादकीय पृष्ठ के नहीं निकलता।

पाठक प्रत्येक समाचार-पत्र का अलग व्यक्तित्व देखना चाहता है। उनमें कुछ ऐसी विशेषताएँ देखना चाहता है जो उसे अन्य समाचार से अलग करती हों। जिस विशेषता के आधार पर वह उस पत्र की पहचान नियत कर सके। यह विशेषता समाचार-पत्र के विचारों में, उसके दृष्टिकोण में प्रतिलक्षित होती है, किंतु बिना संपादकीय पृष्ठ के समाचार-पत्र के विचारों का पता नहीं चलता। यदि समाचार-पत्र के कुछ विशिष्ट विचार हो, उन विचारों में दृढ़ता हो और बारंबार उन्हीं विचारों का समर्थन हो तो पाठक उन विचारों से असहमत होते हुए भी उस समाचार-पत्र का मन में आदर करता है। मेरुदंडहीन व्यक्ति को कौन पूछेगा। संपादकीय लेखों के विषय समाज के विभिन्न क्षेत्रों को लक्ष्य करके लिखे जाते हैं।

प्रश्नः 2.
किन-किन विषयों पर संपादकीय लिखा जाता है?

उत्तरः
जिन विषयों पर संपादकीय लिखे जाते हैं, उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –

  • समसामयिक विषयों पर संपादकीय
  • दिशा-निर्देशात्मक संपादकीय
  • संकेतात्मक संपादकीय
  • दायित्वबोध और नैतिकता की भावना से परिपूर्ण संपादकीय
  • व्याख्यात्मक संपादकीय
  • आलोचनात्मक संपादकीय
  • समस्या संपादकीय
  •  साहित्यिक संपादकीय
  • सांस्कृतिक संपादकीय
  • खेल से संबंधित संपादकीय
  • राजनीतिक संपादकीय।

प्रश्नः 3.
संपादकीय का अर्थ बताइए।

उत्तरः
‘संपादकीय’ का सामान्य अर्थ है-समाचार-पत्र के संपादक के अपने विचार। प्रत्येक समाचार-पत्र में संपादक प्रतिदिन ज्वलंत
विषयों पर अपने विचार व्यक्त करता है। संपादकीय लेख समाचार पत्रों की नीति, सोच और विचारधारा को प्रस्तुत करता है। संपादकीय के लिए संपादक स्वयं जिम्मेदार होता है। अतएव संपादक को चाहिए कि वह इसमें संतुलित टिप्पणियाँ ही प्रस्तुत करे।

संपादकीय में किसी घटना पर प्रतिक्रिया हो सकती है तो किसी विषय या प्रवृत्ति पर अपने विचार हो सकते हैं, इसमें किसी आंदोलन की प्रेरणा हो सकती है तो किसी उलझी हुई स्थिति का विश्लेषण हो सकता है।

प्रश्नः 4.
संपादकीय पृष्ठ के बारे में बताइए।

उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ को समाचार-पत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर अखबार विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय रखता है। इसे संपादकीय कहा जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार लेख के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आमतौर पर संपादक के नाम पत्र भी इसी पृष्ठ पर प्रकाशित किए जाते हैं। वह घटनाओं पर आम लोगों की टिप्पणी होती है। समाचार-पत्र उसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं।

प्रश्नः 5.
अच्छे संपादकीय में क्या गुण होने चाहिए?

उत्तरः
एक अच्छे संपादकीय में अपेक्षित गुण होने अनिवार्य हैं –

  • संपादकीय लेख की शैली प्रभावोत्पादक एवं सजीव होनी चाहिए।
  • भाषा स्पष्ट, सशक्त और प्रखर हो।
  • चुटीलेपन से भी लेख अपेक्षाकृत आकर्षक बन जाता है।
  • संपादक की प्रत्येक बात में बेबाकीपन हो।
  • ढुलमुल शैली अथवा हर बात को सही ठहराना अथवा अंत में कुछ न कहना-ये संपादकीय के दोष माने जाते हैं,अतः संपादक को इनसे बचना चाहिए।

उदाहरण

1. दाऊद पर पाक को और सुबूत

डॉन को सौंप सच्चे पड़ोसी बने जनरल

भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान के चेहरे से नकाब नोच फेंका है। मुंबई बमकांड के प्रमुख अभियुक्तों में से एक और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के पाक में होने के कुछ और पक्के सुबूत मंगलवार को नई दिल्ली ने इस्लामाबाद को सौंपे हैं। इनमें प्रमाण के तौर पर दाऊद के दो पासपोर्ट नंबर पाकिस्तान को सौंपे हैं। यही नहीं, भारत सरकार ने दाऊद के पाकिस्तानी ठिकानों से संबंधित कई साक्ष्य भी जनरल साहब को भेजे हैं। इनमें दो पते कराची के हैं। भारत एक लंबे समय से पाकिस्तान से दाऊद के प्रत्यर्पण की माँग करता आ रहा है। अमेरिका भी बहुत पहले साफ कर चुका है कि दाऊद पाक में ही है। पिछले दिनों बुश प्रशासन ने वांछितों की जो सूची जारी की थी, उसमें दाऊद का पता कराची दर्ज है। दरअसल अलग-अलग कारणों से भारत, अमेरिका और पाकिस्तान के लिए दाऊद अह्म होता जा रहा है। भारत का मानना है कि 1993 में मुंबई में सिलसिलेवार धमाकों को अंजाम देने के बाद, फरार डॉन अब भी पाकिस्तान से बैठकर भारत में आतंकवाद को गिजा-पानी मुहैया करा रहा है।

अमेरिका ने दाऊद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों की फेहरिस्त में शामिल कर लिया है। वाशिंगटन का दावा है कि दाऊद कराची से यूरोप और अमेरिकी देशों में ड्रग्स का करोबार भी चला रहा है, लिहाजा उसका पकड़ा जाना बहुत ज़रूरी है। तीसरी तरफ, पाकिस्तान के लिए दाऊद इब्राहिम इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में आतंक फैला रहे संगठनों को जोड़े रखने और उनको पैसे तथा हथियार मुहैया कराने में दाऊद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। खबर तो यहाँ तक है कि दाऊद ने पाकिस्तान की सियासत में भी दखल देना शुरू कर दिया है और यही वह मुकाम है, जब राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को कभी-कभी दाऊद खतरनाक लगने लगता है। फिर भी, वह उसे पनाह दिए हुए है। जब भी भारत दाऊद की माँग करता है, पाक का रटा-रटाया जवाब होता है कि वह पाकिस्तान में है ही नहीं पिछले दिनों परवेज मुशर्रफ ने कोशिश की कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों और इंटरपोल की फेहरिस्तों से दाऊद के पाकिस्तानी पतों को खत्म करा दिया जाए, लेकिन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश इसके लिए तैयार नहीं हुए।

भारत के खिलाफ आतंकवाद को पालने-पोसने और शह देने में पाकिस्तान की भूमिका जग-जाहिर है। एफबीआई ने दो दिन पूर्व अमेरिका की एक अदालत में सचित्र साक्ष्यों के साथ एक हलफनामा दायर कर दावा किया है कि पाक के बालाघाट में आतंकी शिविर सक्रिय है। बुधवार को भारत की सर्वोच्च पंचायत संसद में सरकार ने खुलासा किया कि पाक अधिकृत कश्मीर में 52 आतंकी शिविर चल रहे हैं। क्या जॉर्ज बुश इन बातों पर गौर फरमाएँगे? भारत को भी दाऊद चाहिए और अमेरिका को भी, तो क्यों नहीं बुश प्रशासन पाकिस्तान पर जोर डालता है कि वह डॉन को भारत को सौंपकर एक सच्चे पड़ोसी का हक अदा करे। पाकिस्तान के शासन को भी समझना चाहिए, साँप-साँप होता है जिस दिन उनको डसेगा, तब पता चलेगा।

2. धरती के बढ़ते तापमान का साक्षी बना नया साल

उत्तर भारत में लोगों ने नववर्ष का स्वागत असामान्य मौसम के बीच किया। इस भू-भाग में घने कोहरे और कडाके की ठंड के बीच रोमन कैलेंडर का साल बदलता रहा है, लेकिन 2015 ने खुले आसमान, गरमाहट भरी धूप और हल्की सर्दी के बीच हमसे विदाई ली। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं हुआ। ब्रिटेन के मौसम विशेषज्ञ इयन कुरी ने तो दावा किया कि बीता महीना ज्ञात इतिहास का सबसे गर्म दिसंबर था। अमेरिका से भी ऐसी ही खबरें आईं। संयुक्त राष्ट्र पहले ही कह चुका था कि 2015 अब तक का सबसे गर्म साल रहेगा। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में आने वाले दिनों में तापमान ज्यादा नहीं बदलेगा। यानी आने वाले दिनों में भी वैसी सर्दी पड़ने की संभावना नहीं है, जैसा सामान्यतः वर्ष के इन दिनों में होता है। दरअसल, कुछ अंतरराष्ट्रीय जानकारों का अनुमान है कि 2016 में तापमान बढ़ने का क्रम जारी रहेगा और संभवतः नया साल पुराने वर्ष के रिकॉर्ड को तोड़ देगा।

इसकी खास वजह प्रशांत महासागर में जारी एल निनो परिघटना है, जिससे एक बार फिर दक्षिण एशिया में मानसून प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से हवा का गरमाना जारी है। इन घटनाक्रमों का ही सकल प्रभाव है कि गुजरे 15 वर्षों में धरती के तापमान में चिंताजनक स्तर तक वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप हो रहे जलवायु परिवर्तन के लक्षण अब स्पष्ट नज़र आने लगे हैं। आम अनुभव है कि ठंड, गर्मी और बारिश होने का समय असामान्य हो गया है। गुजरा दिसंबर और मौजूदा जनवरी संभवत: इसी बदलाव के सबूत हैं। जलवायु परिवर्तन के संकेत चार-पाँच दशक पहले मिलने शुरू हुए। वर्ष 1990 आते-आते वैज्ञानिक इस नतीजे पर आ चुके थे कि मानव गतिविधियों के कारण धरती गरम हो रही है।

उन्होंने चेताया था कि इसके असर से जलवायु बदलेगी, जिसके खतरनाक नतीजे होंगे, लेकिन राजनेताओं ने उनकी बातों की अनदेखी की। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन रोकने की पहली संधि वर्ष 1992 में ही हुई, लेकिन विकसित देशों ने अपनी वचनबद्धता के मुताबिक उस पर अमल नहीं किया। अब जबकि खतरा बढ़ चुका है, तो बीते साल पेरिस में धरती के तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्शियस तक सीमित रखने के लिए नई संधि हुई। नया साल यह चेतावनी लेकर आया है कि अगर इस बार सरकारों ने लापरवाही दिखाई तो बदलता मौसम मानव सभ्यता की सूरत ही बदल देगा।

3. कामकाजी महिलाओं को मज़बूती देता फैसला

मातृत्व अवकाश की अवधि 12 से 26 हफ्ते करने और माँ बनने के बाद दो साल तक घर से काम करने का विकल्प देने का केंद्र का इरादा सराहनीय है। आशा है, इसका चौतरफा स्वागत होगा। सरकार इन प्रावधानों को निजी क्षेत्र में भी लागू करना चाहती है, लेकिन इससे कॉर्पोरेट सेक्टर को आशंकित नहीं होना चाहिए। इन नियमों को लागू कर कंपनियाँ न सिर्फ समाज में लैंगिक समता लाने में सहायक बनेंगी, बल्कि गहराई से देखें तो उन्हें महसूस होगा कि कामकाजी महिलाओं के लिए अधिक अनुकूल स्थितियाँ खुद उनके लिए भी फायदेमंद हैं। अक्सर माँ बनने के साथ महिलाओं के कॅरियर में बाधा आ जाती है।

अनेक महिलाएँ तब नौकरी छोड़ देती हैं। इसके साथ ही उन्हें ट्रेनिंग और तजुर्बा देने में कंपनियाँ, जो निवेश करती हैं वह बेकार चला जाता है। असल में अनेक कंपनियाँ यही सोचकर नियुक्ति के समय प्रतिभाशाली महिला उम्मीदवारों का चयन नहीं करतीं। इस तरह वे श्रेष्ठतर मानव संसाधन से वंचित रह जाती हैं। नए प्रस्ताव लागू होने पर महिलाएँ नौकरी छोड़ने पर मजबूर नहीं होंगी। साथ ही ये नियम बड़े सामाजिक उद्देश्यों के अनुरूप भी हैं। मसलन, बाल विकास की दृष्टि से जीवन के आरंभिक छह महीने बेहद अहम होते हैं। उस दौरान शिशु को माता-पिता के सघन देखभाल की आवश्यकता होती है, इसीलिए अब विकसित देशों में पितृत्व अवकाश भी दिया जाने लगा है, ताकि नवजात बच्चों की तमाम शारीरिक, मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक ज़रूरतें पूरी हो सकें।

फिर जब आधुनिक सूचना तकनीक भौतिक दूरियों को अप्रासंगिक करती जा रही है, तो (जहाँ संभव हो) घर से काम करने का विकल्प देने में किसी संस्था/कंपनी को कोई नुकसान नहीं होगा। केंद्रीय सिविल सर्विस सेवा (अवकाश) नियम-1972 के तहत सरकारी महिला कर्मचारियों को छह महीने का मातृत्व अवकाश पहले से मिल रहा है। अब दो साल तक घर से काम करने का विकल्प सरकारी और निजी, दोनों क्षेत्रों की नई माँ बनीं महिला कर्मचारियों को देना प्रगतिशील कदम माना जाएगा। .इससे भारत उन देशों में शामिल होगा, जहाँ महिला कर्मचारियों के लिए उदार कायदे अपनाए गए हैं। 42 देशों में 18 हफ्तों से अधिक मातृत्व अवकाश का प्रावधान लागू है। वहाँ का अनुभव है कि इन नियमों से सामाजिक विकास को बढ़ावा मिला, जबकि उत्पादन या आर्थिक विकास पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं हुआ। बेशक ऐसा ही भारत में भी होगा। अत: नए नियमों को लागू करने की तमाम औपचारिकताएँ सरकार को यथाशीघ्र पूरी करनी चाहिए।

4. जीवन गढ़ने वाला साहित्यकार

जिन्होंने अपने लेखन के जरिये पिछले करीब पाँच दशकों से गुजराती साहित्य को प्रभावित किया है और लेखन की करीब सभी विधाओं में जिनकी मौजूदगी अनुप्राणित करती है, उन रघुवीर चौधरी को इस वर्ष के ज्ञानपीठ सम्मान के लिए चुनने का फैसला वाकई उचित है। गीता, गाँधी, विनोबा, गोवर्धनराम त्रिपाठी और काका कालेलकर ने उन्हें विचारों की गहराई दी, तो रामदरश मिश्र से उन्होंने हिंदी संस्कार लिया। विज्ञान और अध्यात्म, यथार्थ तथा संवेदना के साथ व्यंग्य की छटा भी उनके लेखन में दिखाई देती है। रघुवीर चौधरी हृदय से कवि हैं। विचारों की गहराई और तस्वीरों-संकेतों का सार्थक प्रयोग अगर तमाशा जैसी उनकी शुरुआती काव्य कृतियों में मिलता है, तो सौराष्ट्र के जीवन पर उनके काव्य में लोकजीवन की अद्भुत छटा दिखती है।

अलबत्ता व्यापक पहचान तो उन्हें जीवन की गहराइयों और रिश्तों की फाँस को परिभाषित करते उनके उपन्यासों ने ही दिलाई। उनके उपन्यास अमृता को गुजराती साहित्य में एक मोड़ घुमा देने वाली घटना माना जा सकता है। इसके जरिये गुजराती साहित्य में अस्तित्ववाद की प्रभावी झलक तो मिली ही, पहली बार गुजराती साहित्य में परिष्कृत भाषा की भी शुरुआत हुई। गुजराती भाषा को मांजने में उनका योगदान दूसरे किसी से भी अधिक है। उपर्वास त्रयी ने रघुवीर चौधरी को ख्याति के साथ साहित्य अकादमी सम्मान दिलाया, तो रुद्र महालय और सोमतीर्थ जैसे ऐतिहासिक उपन्यास मानक बनकर सामने आए।

पर रघुवीर चौधरी का परिचय साहित्य के दायरे से बहुत आगे जाता है। भूदान आंदोलन से बहुत आगे जाता है। भूदान आंदोलन से लेकर नवनिर्माण आंदोलन तक में भागीदारी उनके एक सजग-जिम्मेदार नागरिक होने का परिचायक है, जिसका सुबूत अखबारों में उनके स्तंभ लेखन से भी मिलता है। साहित्य अकादमी से लेकर प्रेस काउंसिल और फ़िल्म फेस्टिवल तक में उनकी भूमिका उनकी रुचि वैविध्य का प्रमाण है। आरक्षण पर उन्होंने किताब लिखी है; हालांकि आरक्षण के मामले में गांधी और अंबेडकर के समर्थक रघुवीर चौधरी पाटीदार आंदोलन के पक्ष में नहीं हैं। अपने गाँव को सौ फीसदी साक्षर बनाने से लेकर कृषि कर्म में उनकी सक्रियता भी उन्हें गांधी की माटी के एक सच्चे गांधी के तौर पर प्रतिष्ठित करती है।

5. अखंड भारत की सुंदर कल्पना

भाजपा महासचिव राम माधव ने अल जजीरा को दिए एक इंटरव्यू में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश को मिलाकर अखंड भारत के निर्माण की जो इच्छा जताई है, वह नई न होने के बावजूद चौंकाती है, तो उसकी वजह है। तीनों देशों को एक करने की इच्छा बहुतेरे लोग जताते हैं। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव तो जब-तब भारत-पाक-बांग्लादेश महासंघ की बात करते हैं लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस संकल्पना के पीछे, राम माधव पिछले साल तक भी जिसके प्रवक्ता थे, वस्तुतः वृहद हिंदू राष्ट्र की वह संकल्पना है, जो विभाजन के कारण साकार नहीं हो सकी लेकिन भारत को हिंदू राष्ट्र मानने वाले राम माधव यह उम्मीद भला कैसे कर सकते हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम बहुसंख्यक मुल्क आपसी रजामंदी से संघ और भाजपा की इच्छा के अनुरूप वृहद हिंदू राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए तैयार हो जाएँगे? यही नहीं, राम माधव को इस मुद्दे पर संघ और भाजपा के उन नेताओं की भी राय ले लेनी चाहिए, जो केंद्र की मौजूदा सरकार की रीति-नीतियों पर सवाल उठाने वाले लोगों को पाकिस्तान भेज देने की बात करते हैं।

अलबत्ता इच्छा चाहे वृहद हिंदू राष्ट्र की संकल्पना को साकार करने की हो या भारत-पाक-बांग्लादेश महासंघ बनाने की, यथार्थ के आईने में यह व्यर्थ की कवायद ही ज़्यादा है। आज़ादी के बाद भारत ने लोकतांत्रिक परंपरा को मज़बूत करते हुए विकास के रास्ते पर लगातार कदम बढ़ाया, जबकि पाकिस्तान सामंतवादी व्यवस्था में जकड़ा रहा, जिसके सुबूत सैन्यतंत्र की मज़बूती, लोकतंत्र की कमजोरी और कट्टरवाद तथा आतंकवाद के मज़बूत होने के रूप में दिखाई पड़ी। बांग्लादेश ने ज़रूर अपने स्तर पर कमोबेश प्रगति की, पर कट्टरता के मामले में वह पीछे नहीं है। लिहाजा इन दो देशों को अपने साथ जोड़ने से भारत पर बोझ ही बढ़ेगा। जब सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात करते हुए छोटी इकाइयों को तरजीह दी जा रही है, तब तीन देशों का महासंघ प्रशासनिक दृष्टि से कितनी बड़ी चुनौती होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। लिहाजा यथार्थ को स्वीकारते हुए इन तीनों देशों के आपसी रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश करना ही अधिक व्यावहारिक लगता है।

6. संपादकीय

प्रत्येक जीव में अपने प्रति सुरक्षा का भाव होना एक सहज वृत्ति है। पराक्रमी और शक्तिशाली व्यक्ति या जीव से लेकर निरीह प्राणी तक, जिस किसी में भी चेतना होती है, सभी अपने लिए एक सुरक्षित स्थान की तलाश या अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण की जद्दोजहद में जुटे दिखाई पड़ते हैं। यदि हम अपने चारों ओर देखें तो, अपने दैनिक जीवन में ही इसके कई उदाहरण दिखाई पड़ेंगे लेकिन सुरक्षित और अनुकूल परिस्थिति का निर्माण बिना जोखिम उठाये संभव नहीं होता है। यदि किसी को सभी प्रकार से अनुकूल वातावरण बिना किसी संघर्ष के मिल भी जाए तो वह जीवन अर्थहीन माना जाएगा।

ध्यान रहे कि संघर्ष से न डरने वालों का जीवन सुगमतापूर्वक व्यतीत सदैव समस्याओं की दलदल में फँसता रहता है। कर्मपथ पर सबसे अधिक भरोसा स्वयं पर करना होता है, लेकिन परिस्थितियाँ आने पर दूसरों के सहयोग की भी ज़रूरत होती है। लेकिन यह सनद रहे कि केवल दूसरों से ही सहयोग लेना उचित नहीं होता बल्कि सहयोग देने के लिए भी तत्पर रहना होता है। हालांकि कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें दूसरों से सहयोग लेने की आदत पड़ जाती है, जो उन्हें पराश्रित बना देती है और इस प्रकार व्यक्ति न केवल कमज़ोर होता जाता है बल्कि स्वयं के कौशलों को भी क्षीण करता जाता है।

लक्ष्य की ओर बढ़ते हर युवा को यह समझना चाहिए कि जीवन में आदर्श परिस्थितियों जैसा कभी कुछ नहीं होता। कभी धाराएँ अपनी दिशा में तो कभी प्रतिकूल दिशा में होती है। ऐसे में, हर व्यक्ति का यही कर्तव्य है कि वह बगैर हिम्मत हारे, पूरी क्षमता से अपनी पतवार चलाता रहे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व्यक्ति के आत्मबल पर खूब जोर देते थे। याद रहे कि मुश्किल परिस्थितियों में व्यक्ति का आत्मबल ही सबसे अचूक हथियार होता है। हमें अपने आत्मबल को इतना ऊँचा और अपने संकल्प को इतना दृढ़ बना लेना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में हमारी मानसिक शांति पर आँच न आ सके। हर युवा को यह समझ लेना चाहिए कि कोई भी परिस्थिति इतनी कठिन नहीं होती कि वह व्यक्ति के अस्तित्व पर हावी हो जाए।

7. व्यक्ति पूजा की संस्कृति से बाहर निकलें पार्टियाँ

अपने 131वें स्थापना दिवस पर कांग्रेस पार्टी को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। पार्टी की महाराष्ट्र इकाई की पत्रिका ‘कांग्रेस दर्शन’ में छपे लेखों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के अतीत को उकेरा गया और जवाहर लाल नेहरू की कुछ नीतियों की ओलाचना की गई। नेहरू के संबंध में कहा गया कि अगर वे सरदार वल्लभभाई पटेल की सलाह से चलते तो चीन, तिब्बत तथा जम्मू-कश्मीर के मामलों में स्थितियाँ कुछ अलग होतीं, लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। ऐसी राय रखने वाले लोग हमेशा मौजूद रहे हैं। यह भी सही है कि प्रथम प्रधानमंत्री के अनेक समकालीन नेता तथा इतिहासकार यह नहीं मानते-जैसाकि ‘कांग्रेस दर्शन’ के लेख में कहा गया है-कि नेहरू और पटेल के संबंध तनावपूर्ण थे या उनमें संवादहीनता थी। वैसे गुजरे दौर के बारे में बौद्धिक एवं राजनीतिक दायरे में अलग-अलग समझ सामने आए, इसमें कुछ अस्वाभाविक नहीं है। कांग्रेस के लिए बेहतर होता कि वह ऐसे मामलों पर पार्टी के अंदर सभी विचारों को व्यक्त होने का मौका देती। उससे पार्टी का वैचारिक-यहाँ तक सांगठनिक आधार भी-अधिक व्यापक होता।

हालांकि, सोनिया गांधी के बारे में कही गई बातों के पीछे दुर्भावना तलाशी जा सकती है, लेकिन बेहतर नज़रिया यह होगा कि पार्टी इन बातों का सीधे सामना करे, इसलिए कि अगर (जैसाकि लेख में अध्यक्ष का कोई दोष नहीं है। यह कहना कि पार्टी में शामिल होने के महज 62 दिन बाद वे कांग्रेस की अध्यक्ष बन गईं, सोनिया से कहीं ज्यादा कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति पर टिप्पणी है, जिसकी एक परिवार पर निर्भरता जग-जाहिर है लेकिन ऐसा अब ज़्यादातर पार्टियों के साथ हो चुका है।

दरअसल, अपने देश में राजनीतिक दलों ने अपने नेता को ‘सुप्रीमो’ यानी सबसे और तमाम सवालों से ऊपर मानने तथा वंशवादी उत्तराधिकार की ऐसी संस्कृति अपना रखी है, जिससे उनके भीतर लोकतांत्रिक विचार-विमर्श अवरुद्ध हो गया है। इस कारण उन दलों को गाहे-ब-गाहे शार्मिंदगियों से भी गुजरना पड़ता है। फिलहाल, ऐसा कांग्रेस के साथ हुआ है। इस पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया अगर ‘कांग्रेस दर्शन’ के संपादक की बर्खास्तगी तक सीमित रह गई, तो यही कहा जाएगा कि उसने असली समस्या से आँखें चुरा लीं। सही सबक यह होगा कि पार्टी अपने भीतर इतिहास और वैचारिक सवालों पर खुली चर्चा को प्रोत्साहित करे तथा किसी पूर्व या वर्तमान नेता को आलोचना से ऊपर न माने।

8. हिंसक आंदोलनों पर अब लगाम लगाने का वक्त

मामला गुजरात का था, लेकिन हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा और तोड़फोड़ की ताजा पृष्ठभूमि में यह सुप्रीम कोर्ट के विचारार्थ आया। उद्योगपतियों की संस्था एसोचैम का अनुमान है कि हरियाणा में इस आंदोलन के दौरान 25,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ। पिछले वर्ष गुजरात में पटेल आरक्षण आंदोलन के समय भी बड़े पैमाने पर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया था। ऐसा ही राजस्थान में गुर्जर आंदोलन के वक्त हुआ। ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण पाने का जाट अथवा दूसरी जातियों का दावा कितना औचित्यपूर्ण है, यह दीगर सवाल है। मगर लोग अराजकता जैसी हालत पैदा करने पर उतर आएँ, तो उसे लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। लोकतांत्रिक समाज में वह सिरे से अस्वीकार्य होना चाहिए।

यह बात दरअसल तमाम किस्म के आंदोलनों पर लागू होती है, इसलिए यह संतोष की बात है कि अब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों को अति-गंभीरता से लिया है। जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ पटेल समुदाय के नेता हार्दिक पटेल पर दायर राजद्रोह मामले की सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान उसने यह महत्त्वपूर्ण टिप्पणी की, ‘हम लोगों को राष्ट्र की संपत्ति जलाने और आंदोलन के नाम पर देश को बंधक बनाने की इजाजत नहीं दे सकते।’ कोर्ट ने कहा कि वह सार्वजनिक संपत्ति को क्षतिग्रस्त करने वाले लोगों को दंडित करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करेगा।

न्यायाधीशों ने संकेत दिया कि इसके तहत संभव है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वाले लोगों को क्षतिपूर्ति देनी पड़े। असल में यातायात रोकने से होने वाली दिक्कतों पर भी इसके साथ ही विचार करने की आवश्यकता है। उससे हजारों लोगों के समय और धन की बर्बादी होती है और उन्हें एवं उनके परिजनों को गहरी मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ती है। अपनी माँग मनवाने के लिए दूसरों को ऐसी मुसीबत में डालने का यह चलन खासकर आरक्षण की माँग को लेकर होने वाले आंदोलनों में बढता गया है। इस पर तुरंत रोक लगाने की ज़रूरत है। सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख से अब इस दिशा में प्रभावी पहल की उम्मीद बंधी है। वैसे बेहतर होता राजनीतिक दल आम-सहमति बनाते और संसद इस बारे में एक व्यापक कानून बनाती। किंतु वोट बैंक की चिंता में रहने वाली पार्टियों से यह उम्मीद करना बेमतलब है, इसीलिए अनेक दूसरे मामलों की तरह इस मुद्दे पर भी आशा न्यायपालिका से ही है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्नः 1.
संपादक के दो प्रमुख कार्य बताइए। (CBSE-2011, 2012, 2015)
उत्तरः
संपादक के दो प्रमुख कार्य हैं –
(क) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त समाचारों का चयन कर प्रकाशन योग्य बनाना।
(ख) तात्कालिक घटनाओं पर संपादकीय लेख लिखना।

प्रश्नः 2.
संपादकीय किसे कहते हैं? (CBSE-2009, 2010, 2014)
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ पर तत्कालीन घटनाओं पर संपादक की टिप्पणी को संपादकीय कहा जाता है। इसे अखबार की आवाज़ माना जाता है।

प्रश्नः 3.
संपादकीय में लेखक का नाम क्यों नहीं दिया जाता? (CBSE-2009, 2014)
उत्तरः
संपादकीय को अखबार की आवाज़ माना जाता है। यह व्यक्ति की टिप्पणी नहीं होती। अपितु समूह का पर्याय होता है। इसलिए संपादकीय में लेखक का नाम नहीं दिया जाता।

प्रश्नः 4.
संपादकीय का महत्त्व समझाइए। (CBSE-2016)
उत्तरः
संपादकीय तत्कालीन घटनाक्रम पर समूह की राय व्यक्त करता है। वह निष्पक्ष होकर उस पर अपने सुझाव भी देता है। मज़बूत लोकतंत्र में संपादकीय की महती आवश्यकता है।

प्रश्नः 5.
समाचार पत्र के किस पृष्ठ पर विज्ञापन देने की परंपरा नहीं है?
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ।

प्रश्नः 6.
सामान्यतः किस दिन संपादकीय नहीं छपता?
उत्तरः
रविवार।

प्रश्नः 7.
संपादकीय का उददेश्य क्या है?
उत्तरः
संपादकीय का उद्देश्य विषय विशेष पर अपने विचार पाठक व सरकार तक पहुँचाना है।

प्रश्नः 8.
संपादकीय पृष्ठ पर क्या-क्या होता है?
उत्तरः
संपादकीय, संपादक के नाम पत्र, आलेख, विचार आदि।

प्रश्नः 9.
भारत में संपादकीय पृष्ठ पर कार्टून न छपने का क्या कारण है?
उत्तरः
कार्टून हास्य व्यंग्य का प्रतीक है। यह संपादकीय पृष्ठ की गंभीरता को कम करता है।

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जनसंचार माध्यम प्रिंट माध्यम | class 12th | Hindi कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन ncert solution

Class 12 Hindi जनसंचार माध्यम प्रिंट माध्यम

प्रिंट माध्यम

प्रश्नः 1.
संचार क्या है?
उत्तरः
‘संचार’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘चर’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है-चलना या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचना। संचार सिर्फ दो व्यक्तियों तक सीमित परिघटना नहीं है। यह हज़ारों-लाखों लोगों के बीच होने वाले जनसंचार तक विस्तृत है। अत: सूचनाओं, विचारों और भावनाओं को लिखित, मौखिक या दृश्य-श्रव्य माध्यमों के जरिए सफलतापूर्वक एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना ही संचार है और इस प्रक्रिया को अंजाम देने में मदद करने वाले तरीके संचार माध्यम कहलाते हैं।

प्रश्नः 2.
संचार के विभिन्न प्रकार बताइए।
उत्तरः
संचार एक जटिल प्रक्रिया है। उसके कई रूप या प्रकार हैं जो निम्नलिखित हैं –
(क) मौखिक संचार : एक-दूसरे के सामने वाले इशारे या क्रिया को मौखिक संचार कहते हैं। इसमें हाथ की गति, आँखों व चेहरे के भाव, स्वर के उतार-चढ़ाव आदि क्रियाएँ होती हैं।

(ख) अंतरवैयक्तिक संचार : जब दो व्यक्ति आपस में और आमने-सामने संचार करते हैं तो इसे अंतरवैयक्तिक संचार कहते हैं। इस संचार की मदद से आपसी संबंध विकसित करते हैं और रोजमर्रा की ज़रूरतें पूरी करते हैं। संचार का यह रूप पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों की बुनियाद है।

(ग) समूह संचार : इसमें एक समूह आपस में विचार-विमर्श या चर्चा करता है। कक्षा-समूह इसका अच्छा उदाहरण है। इस रूप का प्रयोग समाज और देश के सामने उपस्थित समस्याओं को बातचीत और बहस के जरिए हल करने के लिए होता है।

(घ) जनसंचार : जब व्यक्तियों के समूह के साथ संवाद किसी तकनीकी या यांत्रिकी माध्यम के जरिए समाज के एक विशाल वर्ग से किया जाता है तो इसे जनसंचार कहते हैं। इसमें एक संदेश को यांत्रिक माध्यम के जरिए बहुगुणित किया जाता है ताकि उसे अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके। रेडियो, अखबार, टीवी, सिनेमा, इंटरनेट आदि इसके माध्यम हैं।

प्रश्नः 3.
जनसंचार की विशेषताएँ बताइए।
उत्तरः
जनसंचार की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  • जनसंचार माध्यमों के जरिए प्रकाशित या प्रसारित संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है।
  • जनसंचार के लिए औपचारिक संगठन होता है।
  • इस माध्यम के लिए अनेक द्वारपाल होते हैं। द्वारपाल वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह है जो जनसंचार माध्यमों से प्रकाशित या प्रसारित होने वाली सामग्री को नियंत्रित और निर्धारित करता है।

प्रश्नः 4.
जनसंचार के कार्य बताइए।
उत्तरः
जनसंचार के कार्य निम्नलिखित हैं –

  • सूचना देना
  • शिक्षित करना
  • मनोरंजन करना
  • एजेंडा तय करना
  • निगरानी करना
  • विचार-विमर्श के मंच।

प्रश्नः 5.
पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तरः
प्रिंट, रेडियो, टेलीविज़न या इंटरनेट के जरिए खबरों के आदान-प्रदान को ही पत्रकारिता कहा जाता है। इसके तीन पहलू हैं – समाचार संकलन, संपादन व प्रकाशन।

प्रश्नः 6.
रेडियो के विषय में बताइए।
उत्तरः
रेडियो एक ध्वनि माध्यम है। इसकी तात्कालिकता, घनिष्ठता और प्रभाव के कारण इसमें अद्भुत शक्ति है। ध्वनि तरंगों के कारण यह देश के कोने-कोने तक पहुँचता है। आकाशवाणी, एफ०एम० चैनल, बीबीसी, वॉयस ऑफ अमेरिका, मास्को रेडियो आदि अनेक केंद्र हैं।

प्रश्नः 7.
टेलीविज़न का वर्णन करें।
उत्तरः
टेलीविज़न जनसंचार का सर्वाधिक ताकतवर व लोकप्रिय माध्यम है। इसमें शब्द, ध्वनि व दृश्य का मेल होता है जिसके कारण इसकी विश्वसनीयता कई गुना बढ़ जाती है। भारत में इसकी शुरुआत 15 सितंबर, 1959 को हुई। 1991 में खाड़ी युद्ध में दुनिया भर में युद्ध का सीधा प्रसारण किया गया। इसके बाद सीधे प्रसारण का महत्त्व बढ़ गया। आज भारत में 400 से अधिक चैनल प्रसारित हो रहे हैं।

प्रश्नः 8.
इंटरनेट को जनसंचार का नया माध्यम कहा जाता है। क्यों?
उत्तरः
इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है जिसमें प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविज़न, किताब, सिनेमा यहाँ तक कि पुस्तकालय के सारे गुण मौजूद हैं। इसकी पहुँच व रफ़्तार का कोई जवाब नहीं है। इसमें सारे माध्यमों का समागम है। यह एक अंतरक्रियात्मक माध्यम है यानी आप इसमें मूक दर्शक नहीं हैं। इसमें आप बहस कर सकते हैं, ब्लाग के जरिए अपनी बात कह सकते हैं। इसने विश्व को ग्राम में बदल दिया है। इसके बुरे प्रभाव भी हैं। इस पर अश्लील सामग्री भी बहुत अधिक है जिससे समाज की नैतिकता को खतरा है। दूसरे, इसका दुरुपयोग अधिक है तथा सामाजिकता कम होती जाती है।

प्रश्नः 9.
जनसंचार माध्यमों के लाभ व हानि बताइए।
उत्तरः
जनसंचार माध्यम के निम्नलिखित लाभ हैं –

  • यह हमारे दैनिक जीवन में शामिल हो गया है।
  • धर्म से लेकर सेहत तक की जानकारी मिल रही है।
  • इससे मानव जीवन सरल, समर्थ व सक्रिय हुआ है।
  • सूचनाओं व जानकारियों के कारण लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मज़बूती मिली है।
  • सरकारी कामकाज पर निगरानी बढ़ी है।

इसकी हानियाँ निम्नलिखित हैं –

  • इसने काल्पनिक जीवन को बढ़ावा दिया है। इससे पलायनवादी प्रवृत्ति बढ़ रही है।
  • समाज में अश्लीलता व असामाजिकता बढ़ रही है।
  • गलत मुद्दों को जबरदस्त प्रचार के जरिए सही ठहराया जाता है।

प्रश्नः 10.
समाचार क्या है?
उत्तरः
समाचार किसी भी ऐसी ताज़ा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है जिसमें अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिक-से-अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा है।

प्रश्नः 11.
समाचार के तत्व कौन-से हैं?
उत्तरः
समाचार के निम्नलिखित तत्व होते हैं –

  • नवीनता
  • निकटता
  • प्रभाव
  • जनरुचि
  • टकराव
  • महत्त्वपूर्ण लोग
  • अनोखापन
  • पाठक वर्ग
  • नीतिगत ढाँचा।

प्रश्नः 12.
संपादन का अर्थ बताइए।
उत्तरः
संपादन का अर्थ है-किसी सामग्री से उसकी अशुद्धियों को दूर करके उसे पठनीय बनाया। एक उपसंपादक अपनी रिपोर्टर की खबर को ध्यान से पढ़कर उसकी भाषागत अशुद्धियों को दूर करके प्रकाशन योग्य बनाता है।

प्रश्नः 13.
संपादन के सिद्धांत बताइए।
उत्तरः
पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करना ज़रूरी है –

  • तथ्यों की शुद्धता
  • वस्तुपरकता
  • निष्पक्षता
  • संतुलन
  • स्रोत।

प्रश्नः 14.
पत्रकार की बैसाखियाँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तरः
पत्रकार की बैसाखियाँ निम्नलिखित हैं –

  • संदेह करना
  • सच्चाई
  • संतुलन
  • निष्पक्षता
  • स्पष्टता।

प्रश्नः 15.
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ को समाचार पत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर अखबार विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय रखता है। इसे संपादकीय कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ महत्त्वपूर्ण जनसंचार माध्यम और लेखन मुद्दों पर अपने विचार लेख के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आमतौर पर संपादक के नाम पत्र भी इसी पृष्ठ पर प्रकाशित किए जाते हैं। वह घटनाओं पर आम लोगों की टिप्पणी होती है।

प्रश्नः 16.
पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार कौन-से हैं?
उत्तरः
पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं –

  • खोजपरक पत्रकारिता
  • विशेषीकृत पत्रकारिता
  • वॉचडॉग पत्रकारिता
  • एडवोकेसी पत्रकारिता
  • वैकल्पिक पत्रकारिता।

1. खोजपरक पत्रकारिता – खोजपरक पत्रकारिता से आशय ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें गहराई से छानबीन करके ऐसे तथ्यों और सूचनाओं को सामने लाने की कोशिश की जाती है जो आम जनता के सामने नहीं आते। यह पत्रकारिता सार्वजनिक महत्त्व के मामलों में भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को सामने लाने की कोशिश करती है। इस पत्रकारिता का उपयोग उन्हीं स्थितियों में किया जाता है जब सच्चाई बताने का कोई और उपाय नहीं रह जाता। टेलीविज़न में यह स्टिंग ऑपरेशन के रूप में होता है। अमेरिका का वाटरगेट कांड इसका नायाब उदाहरण है जिसमें राष्ट्रपति निक्सन को इस्तीफ़ा देना पड़ा था।

2. विशेषीकृत पत्रकारिता – पत्रकारिता का अर्थ घटनाओं की सूचना देना मात्र नहीं है। पत्रकार से अपेक्षा होती है कि वह घटनाओं की तह तक जाकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और आम पाठक को बताए कि उस समाचार का क्या महत्त्व है ? इसके लिए विशेषता की आवश्यकता होती है। पत्रकारिता में विषय के हिसाब से विशेषता के सात प्रमुख क्षेत्र हैं। इनमें संसदीय पत्रकारिता, न्यायालयी पत्रकारिता, आर्थिक पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता, विज्ञान और विकास पत्रकारिता, अपराध पत्रकारिता तथा फ़ैशन और फ़िल्म पत्रकारिता शामिल हैं। इन क्षेत्रों के समाचार और उनकी व्याख्या उन विषयों में विशेषता हासिल किए बिना देना कठिन होता है।

3. वॉचडॉग पत्रकारिता – लोकतंत्र में पत्रकारिता और समाचार मीडिया का मुख्य उत्तरदायित्व सरकार के कामकाज पर निगाह रखना है और कहीं भी कोई गड़बड़ी हो तो उसका परदाफ़ाश करना है। इसे परंपरागत रूप से वॉचडॉग पत्रकारिता कहा जाता है। इसका दूसरा छोर सरकारी सूत्रों पर आधारित पत्रकारिता है। समाचार मीडिया केवल वही समाचार देता है जो सरकार चाहती है और अपने आलोचनात्मक पक्ष का परित्याग कर देता है। आमतौर पर इन दो बिंदुओं के बीच तालमेल के जरिए ही समाचार मीडिया और इसके तहत काम करने वाले विभिन्न समाचार संगठनों की पत्रकारिता का निर्धारण होता है।

4. एडवोकेसी पत्रकारिता – ऐसे अनेक समाचार संगठन होते हैं जो किसी विचारधारा या किसी खास उद्देश्य या मुद्दे को उठाकर आगे बढ़ते हैं और उस विचारधारा या उद्देश्य या मुद्दे के पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार और ज़ोरशोर से अभियान चलाते हैं। इस तरह की पत्रकारिता को पक्षधर या एडवोकेसी पत्रकारिता कहा जाता है। भारत में भी कुछ समाचारपत्र या टेलीविजन चैनल किसी खास मुद्दे पर जनमत बनाने और सरकार को उसके अनुकूल प्रतिक्रिया करने के लिए अभियान चलाते हैं। उदाहरण के लिए जेसिका लाल हत्याकांड में न्याय के लिए समाचार माध्यमों ने सक्रिय अभियान चलाया।

5. वैकल्पिक पत्रकारिता – मीडिया स्थापित राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था का ही एक हिस्सा है और व्यवस्था के साथ तालमेल बिठाकर चलने वाले मीडिया को मुख्यधारा का मीडिया कहा जाता है। इस तरह की मीडिया आमतौर पर व्यवस्था के अनुकूल और आलोचना के एक निश्चित दायरे में ही काम करता है। इस तरह के मीडिया का स्वामित्व आमतौर पर बड़ी पूँजी के पास होता है और वह मुनाफ़े के लिए काम करती है। उसका मुनाफ़ा मुख्यतः विज्ञापन से आता है।

इसके विपरीत जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करता है उसे वैकल्पिक पत्रकारिता कहा जाता है। आमतौर पर इस तरह के मीडिया को सरकार और बड़ी पूँजी का समर्थन हासिल नहीं होता है। उसे बड़ी कंपनियों के विज्ञापन भी नहीं मिलते हैं और वह अपने पाठकों के सहयोग पर निर्भर होता है।

प्रश्नः 17.
समाचार माध्यमों के मौजूदा रुझान पर टिप्पणी करें।
उत्तरः
देश में मध्यम वर्ग के तेज़ी से विस्तार के साथ ही मीडिया के दायरे में आने वाले लोगों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है। साक्षरता और क्रय शक्ति बढ़ने से भारत में अन्य वस्तुओं के अलावा मीडिया के बाज़ार का भी विस्तार हो रहा है। इस बाज़ार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हर तरह के मीडिया का फैलाव हो रहा है-रेडियो, टेलीविज़न, समाचारपत्र, सेटेलाइट टेलीविज़न और इंटरनेट सभी विस्तार के रास्ते पर हैं लेकिन बाज़ार के इस विस्तार के साथ ही मीडिया का व्यापारीकरण भी तेज़ हो गया है और मुनाफा कमाने को ही मुख्य ध्येय समझने वाले पूँजीवादी वर्ग ने भी मीडिया के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रवेश किया है।

व्यापारीकरण और बाजार होड़ के कारण हाल के वर्षों में समाचार मीडिया ने अपने खास बाजार (क्लास मार्केट) को आम बाज़ार (मास मार्केट) में तब्दील करने की कोशिश की है। यही कारण है कि समाचार मीडिया और मनोरंजन की दुनिया के बीच का अंतर कम होता जा रहा है और कभी-कभार तो दोनों में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है। समाचार के नाम पर मनोरंजन बेचने के इस रुझान के कारण आज समाचारों में वास्तविक और सरोकारीय सूचनाओं और जानकारियों का अभाव होता जा रहा है।

आज निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि समाचार मीडिया का एक बड़ा हिस्सा लोगों को जानकार नागरिक’ बनाने में मदद कर रहा है बल्कि अधिकांश मौकों पर यही लगता है कि लोग ‘गुमराह उपभोक्ता’ अधिक बन रहे हैं, अगर आज समाचार की परंपरागत परिभाषा के आधार पर देश के जाने-माने समाचार चैनलों का मूल्यांकन करें तो एक-आध चैनल को छोड़कर अधिकांश सूचनारंजन (इन्फोटेनमेंट) के चैनल बनकर रह गए हैं, जिसमें सूचना कम और मनोरंजन ज्यादा है। इसकी वजह यह है कि आज समाचार मीडिया का एक बड़ा हिस्सा एक ऐसा उद्योग बन गया है जिसका मकसद अधिकतम मुनाफा कमाना है। समाचार उद्योग के लिए समाचार भी पेप्सी-कोक जैसा एक उत्पाद बन गया है जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को गंभीर सूचनाओं के बजाय सतही मनोरंजन से बहलाना और अपनी ओर आकर्षित करना हो गया है।

दरअसल, उपभोक्ता समाज का वह तबका है जिसके पास अतिरिक्त क्रय शक्ति है और व्यापारीकृत मीडिया अतिरिक्त क्रय शक्ति वाले सामाजिक तबके में अधिकाधिक पैठ बनाने की होड़ में उतर गया है। इस तरह की बाज़ार होड़ में उपभोक्ता को लुभाने वाले समाचार पेश किए जाने लगे हैं और उन वास्तविक समाचारीय घटनाओं की उपेक्षा होने लगी है जो उपभोक्ता के भीतर ही बसने वाले नागरिक की वास्तविक सूचना आवश्यकताएँ थीं और जिनके बारे में जानना उसके लिए आवश्यक है। इस दौर में समाचार मीडिया बाज़ार को हड़पने की होड़ में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की चाहत पर निर्भर होता जा रहा है और लोगों की ज़रूरत किनारे की जा रही है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि समाचार मीडिया में हमेशा से ही सनसनीखेज़ या पीत-पत्रकारिता और पेज-थ्री पत्रकारिता की धाराएँ मौजूद रही हैं। इसका हमेशा अपना स्वतंत्र अस्तित्व रहा है, जैसे ब्रिटेन का टेबलॉयड मीडिया और भारत में भी ‘ब्लिट्ज़’ जैसे कुछ समाचार पत्र रहे हैं। पेज-थ्री भी मुख्यधारा की पत्रकारिता में मौजूद रहा है लेकिन इन पत्रकारीय धाराओं के बीच एक विभाजन रेखा थी जिसे व्यापारीकरण के मौजूदा रुझान ने खत्म कर दिया है।

यह स्थिति हमारे लोकतंत्र के लिए एक गंभीर राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संकट पैदा कर रही है। आज हर समाचार संगठन सबसे अधिक बिकाऊ बनने की होड़ में एक ही तरह के समाचारों पर टूटता दिखाई पड़ रहा है। इससे विविधता खत्म हो रही है और ऐसी स्थिति पैदा हो रही है जिसमें अनेक अखबार हैं और सब एक जैसे ही हैं। अनेक समाचार चैनल हैं। ‘सर्फ़’ करते रहिए, बदलते रहिए और एक ही तरह के समाचारों को एक ही तरह से प्रस्तुत होते देखते रहिए।

विविधता समाप्त होने के साथ-साथ समाचार माध्यमों में केंद्रीकरण का रुझान भी प्रबल हो रहा है। हमारे देश में परंपरागत रूप से कुछ बड़े राष्ट्रीय अखबार थे। इसके बाद क्षेत्रीय प्रेस था और अंत में जिला-तहसील स्तर के छोटे समाचार पत्र थे। नई प्रौद्योगिकी आने के बाद पहले तो क्षेत्रीय अखबारों ने जिला और तहसील स्तर के प्रेस को हड़प लिया और अब राष्ट्रीय प्रेस क्षेत्रीय पाठकों में अपनी पैठ बना रहा है और क्षेत्रीय प्रेस राष्ट्रीय रूप अख्तियार कर रहा है। आज चंद समाचार पत्रों के अनेक संस्करण हैं और समाचारों का कवरेज अत्यधिक आत्मकेंद्रित, स्थानीय और विखंडित हो गया है। समाचार कवरेज में विविधता का अभाव तो है ही, साथ ही समाचारों की पिटी-पिटाई अवधारणाओं के आधार पर लोगों की रुचियों और प्राथमिकताओं को परिभाषित करने का रुझान भी प्रबल हुआ है।

प्रश्नः 18.
प्रिंट माध्यम का वर्णन करते हुए इसकी विशेषताएँ भी बताइए।
उत्तरः
प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में से सबसे पुराना है। आधुनिक युग का प्रारंभ छपाई के आविष्कार
से हुआ। चीन में सबसे पहले मुद्रण शुरू हुआ, परंतु आधुनिक छापेखाने का आविष्कार जर्मनी के गुटेनबर्ग ने किया। यूरोप में पुनर्जागरण ‘रेमेसाँ’ की शुरुआत में छापेखाने की प्रमुख भूमिका थी। भारत में ईसाई मिशनरियों ने सन् 1556 में गोवा में धार्मिक पुस्तकें छापने के लिए खोला था।

प्रिंट माध्यम की विशेषताएँ –

मुद्रित माध्यमों के तहत अखबार, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि हैं। मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता या शक्ति यह है कि छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है। उसे आप आराम से और धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं। पढ़ते हुए उस पर सोच सकते हैं।

अगर कोई बात समझ में नहीं आई तो उसे दोबारा या जितनी बार इच्छा करे, उतनी बार पढ़ सकते हैं।

यही नहीं, अगर आप अखबार या पत्रिका पढ़ रहे हों तो आप अपनी पसंद के अनुसार किसी भी पृष्ठ और उस पर प्रकाशित किसी भी समाचार या रिपोर्ट से पढ़ने की शुरुआत कर सकते हैं।

मुद्रित माध्यमों के स्थायित्व का एक लाभ यह भी है कि आप उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं और उसे संदर्भ की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। मुद्रित माध्यमों की दूसरी बड़ी विशेषता यह है कि यह लिखित भाषा का विस्तार है। जाहिर है कि इसमें लिखित भाषा की सभी विशेषताएँ शामिल हैं। लिखित और मौखिक भाषा में सबसे बड़ा अंतर यह है कि लिखित भाषा अनुशासन की माँग करती है। बोलने में एक स्वतःस्फूर्तता होती है, लेकिन लिखने में आपको भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शब्दों के उपयुक्त इस्तेमाल का ध्यान रखना पड़ता है। यही नहीं, अगर लिखे हुए को प्रकाशित होना है यानी ??? लोगों तक पहुँचना है तो आपको एक प्रचलित भाषा में लिखना पड़ता है ताकि उसे अधिक-से-अधिक लोग समझ पाएँ।

मुद्रित माध्यमों की तीसरी विशेषता यह है कि यह चिंतन, विचार के विश्लेषण का माध्यम है। इस माध्यम में आप गंभीर और गूढ बातें लिख सकते हैं, क्योंकि पाठक के पास न सिर्फ उसे पढ़ने, समझने और सोचने का समय होता है बल्कि उसकी योग्यता भी होती है। असल में, मुद्रित माध्यमों का पाठक वही हो सकता है जो साक्षर हो और जिसने औपचारिक या अनौपचारिक ??? के जरिए एक विशेष स्तर की योग्यता भी हासिल की हो।

मुद्रित माध्यमों की कमज़ोरी :

1. निरक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम किसी काम के नहीं हैं। साथ ही, मुद्रित माध्यमों के लिए लेखन करने वालों को अपने पाठकों के भाषा-ज्ञान के साथ-साथ उनके शैक्षिक ज्ञान और योग्यता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। इसके अलावा उन्हें पाठकों की रुचियों और जरूरतों का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता है।

2. वे रेडियो, टी०वी० या इंटरनेट की तरह तुरंत घटी घटनाओं को संचालित नहीं कर सकते। ये एक निश्चित अवधि पर प्रकाशित होती हैं; जैसे अखबार 24 घंटे में एक बार या साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में एक बार प्रकाशित होती है। अखबार या पत्रिका में समाचारों या रिपोर्ट को प्रकाशन के लिए स्वीकार करने की एक निश्चित समय-सीमा होती है। जिसे डेडलाइन कहते हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर समय-सीमा समाप्त होने के बाद कोई सामग्री प्रकाशन के लिए स्वीकार नहीं की जाती। इसलिए मुद्रित माध्यमों के लेखकों और पत्रकारों को प्रकाशन की समय-सीमा का पूरा ध्यान रखना पड़ता है।

3. इसी तरह मुद्रित माध्यमों में लेखक को जगह (स्पेस) का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए। जैसे किसी अखबार या पत्रिका
के संपादक ने अगर आपको 250 शब्दों में रिपोर्ट या फ़ीचर लिखने को कहा है तो आपको उस शब्द सीमा का ध्यान रखना पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि अखबार या पत्रिका में असीमित जगह नहीं होती। साथ ही उन्हें विभिन्न विषयों और मुद्दों पर सामग्री प्रकाशित करनी होती है।

4. मुद्रित माध्यम के लेखक या पत्रकार को इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है कि छपने से पहले आलेख में मौजूद सभी गलतियों और अशुद्धियों को दूर कर दिया जाए, क्योंकि एक बार प्रकाशन के बाद वह गलती या अशुद्धि वहीं चिपक जाएगी। उसे सुधारने के लिए अखबार या पत्रिका के अगले अंक का इंतज़ार करना पड़ेगा।

प्रश्नः 19.
रेडियो माध्यम के विषय में बताइए।
उत्तरः
रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें सब कुछ ध्वनि, स्वर और शब्दों का खेल है। इन सब वजहों से रेडियो पर श्रोताओं से संचालित माध्यम माना जाता है। रेडियो पत्रकारों को अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसकी वजह यह है कि अखबार के पाठकों को यह सुविधा उपलब्ध रहती है कि वे अपनी पसंद और इच्छा से कभी भी और कहीं से भी पढ़ सकते हैं।

अगर किसी समाचार/लेख या फ़ीचर को पढ़ते हुए कोई बात समझ में नहीं आई तो पाठक उसे फिर से पढ़ सकता है या शब्दकोश में उसका अर्थ देख सकता है या किसी से पूछ सकता है, लेकिन रेडियो के श्रोता को यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती। वह अखबार की तरह रेडियो समाचार बुलेटिन को कभी भी और कहीं से भी नहीं सुन सकता। उसे बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतज़ार करना होगा और फिर शुरू से लेकर अंत तक बारी-बारी से एक के बाद दूसरा समाचार सुनना होगा। इस बीच, वह इधर-उधर नहीं आ जा सकता और न ही उसके पास किसी गूढ़ शब्द या वाक्यांश के आने पर शब्दकोश का सहारा लेने का समय होता है।

स्पष्ट है कि रेडियो में अखबार की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं है। अगर रेडियो बुलेटिन में कुछ भी भ्रामक या अरुचिकर है तो संभव है कि श्रोता तुरंत स्टेशन बंद कर दे। दरअसल, रेडियो मूलतः एकरेखीय (लीनियर) माध्यम है और रेडियो समाचार बुलेटिन का स्वरूप, ढाँचा और शैली इस आधार पर ही तय होता है। रेडियो की तरह टेलीविज़न भी एकरेखीय माध्यम है, लेकिन वहाँ शब्दों और ध्वनियों की तुलना में दृश्यों/तसवीरों का महत्त्व सर्वाधिक होता है। टी०वी० में शब्द दृश्यों के अनुसार और उनके सहयोगी के रूप में चलते हैं, लेकिन रेडियो में शब्द और आवाज़ ही सब कुछ है।

प्रश्नः 20.
रेडियो समाचार की संरचना किस शैली पर आधारित होती है?
उत्तरः
रेडियो समाचार की संरचना उलटा पिरामिड-शैली पर आधारित होती है।

प्रश्नः 21.
उलटा पिरामिड-शैली क्या होती है?
उत्तरः
समाचार लेखन की सबसे प्रचलित, प्रभावी और लोकप्रिय शैली उलटा पिरामिड-शैली ही है। सभी तरह जनसंचार माध्यमों में सबसे अधिक यानी 90 प्रतिशत खबरें या स्टोरीज़ इसी शैली में लिखी जाती हैं। उलटा पिरामिड-शैली समाचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखा जाता है और उसके बाद घटते हुए महत्त्वक्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना / विचार / समस्या का ब्योरा कालानुक्रम के बजाए समाचार के महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरू होता है। तात्पर्य यह कि इस शैली में, कहानी की तरह क्लाइमेक्स अंत में नहीं बल्कि खबर के बिलकुल शुरू में आ जाता है।

उलटा पिरामिड-शैली में कोई निष्कर्ष नहीं होता। उलटा पिरामिड शैली के तहत समाचार को तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है-इंट्रो-बॉडी और समापन। समाचार के इंट्रो या लीड को हिंदी में मुखड़ा भी कहते हैं। इसमें खबर के मूल तत्व को शुरू की दो या तीन पंक्तियों में बताया जाता है। यह खबर का सबसे अहम हिस्सा होता है। इसके बाद बॉडी में समाचार के विस्तृत ब्योरे को घटते हुए महत्त्वक्रम में लिखा जाता है। हालाँकि इस शैली में अलग से समापन जैसी कोई चीज़ नहीं होती और यहाँ तक कि प्रासंगिक तथ्य और सूचनाएँ दी जा सकती हैं, अगर ज़रूरी हो तो समय और जगह की कमी को देखते हुए आखिरी कुछ लाइनों या पैराग्राफ़ को काटकर हटाया भी जा सकता है और उस स्थिति में खबर वहीं समाप्त हो जाती है।

प्रश्नः 22.
टेलीविज़न लेखन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तरः
टेलीविज़न लेखन में दृश्यों की अहमियत सबसे ज़्यादा है। यह टेलीविज़न देखने और सुनने का माध्यम है और इसके लिए समाचार या आलेख (स्क्रिप्ट) लिखते समय इस बात पर खास ध्यान रखने की ज़रूरत पड़ती है कि आपके शब्द परदे पर दिखने वाले दृश्य के अनुकूल हों। टेलीविज़न लेखन इन दोनों ही माध्यमों से काफी अलग है। इसमें कम-से-कम शब्दों में ज़्यादा-से-ज्यादा खबर बताने की कला का इस्तेमाल होता है। इसलिए टी०वी० के लिए खबर लिखने की बुनियादी शर्त दृश्य के साथ लेखन है। दृश्य यानी कैमरे से लिए गए शॉट्स, जिनके आधार पर खबर बुनी जानी है। अगर शॉट्स आसमान के हैं तो हम आसमान की बात लिखेंगे, समंदर की नहीं। अगर कहीं आग लगी हुई है तो हम उसका जिक्र करेंगे पानी का नहीं।

प्रश्नः 23.
टी०वी० खबरों के विभिन्न चरण बताइए।
उत्तरः
किसी भी टी०वी० चैनल पर खबर देने का मूल आधार वही होता है जो प्रिंट या रेडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रचलित है यानी सबसे पहले सूचना देना। टी०वी० में भी यह सूचनाएँ कई चरणों से होकर दर्शकों के पास पहुँचती हैं। ये चरण हैं –

  • फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़
  • ड्राई एंकर
  • फ़ोन-इन
  • एंकर-विजुअल
  • एंकर-बाइट
  • लाइव
  • एंकर-पैकेज

फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ – सबसे पहले कोई बड़ी खबर फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। इसमें कम-से-कम शब्दों में महज़ सूचना दी जाती है।

ड्राई एंकर – इसमें एंकर खबर के बारे में दर्शकों को सीधे-सीधे बताता है कि कहाँ, क्या, कब और कैसे हुआ। जब तक खबर के दृश्य नहीं आते एंकर, दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है।

फ़ोन-इन – इसके बाद खबर का विस्तार होता है और एंकर रिपोर्टर से फोन पर बात करके सूचनाएँ दर्शकों तक पहुँचाता है। इसमें रिपोर्टर घटना वाली जगह पर मौजूद होता है और वहाँ से उसे जितनी ज़्यादा-से-ज्यादा जानकारियाँ मिलती हैं, वह दर्शकों को बताता है।

एंकर-विजुअल – जब घटना के दृश्य या विजुअल मिल जाते हैं तब उन दृश्यों के आधार पर खबर लिखी जाती है, जो एंकर पढ़ता है। इस खबर की शुरुआत भी प्रारंभिक सूचना से होती है और बाद में कुछ वाक्यों पर प्राप्त दृश्य दिखाए जाते हैं।

एंकर-बाइट – बाइट यानी कथन। टेलीविज़न पत्रकारिता में बाइट का काफ़ी महत्त्व है। टेलीविज़न में किसी भी खबर को पुष्ट करने के लिए इससे संबंधित बाइट दिखाई जाती है। किसी घटना की सूचना देने और उसके दृश्य दिखाने के साथ ही इस घटना के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों या संबंधित व्यक्तियों का कथन सुनाकर खबर को प्रामाणिकता प्रदान की जाती है।

लाइव – लाइव यानी किसी खबर का घटनास्थल से सीधा प्रसारण। सभी टी०वी० चैनल कोशिश करते हैं कि किसी बडी घटना के दृश्य तत्काल दर्शकों तक सीधे पहुँचाए जा सकें। इसके लिए मौके पर मौजूद रिपोर्टर और कैमरामैन ओ०बी० वैन के जरिए घटना के बारे में सीधे दर्शकों को दिखाते और बताते हैं।

एंकर-पैकेज – पैकेज किसी भी खबर को संपूर्णता के साथ पेश करने का एक जरिया है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, इससे जुड़े लोगों की बाइट, ग्राफ़िक के जरिए ज़रूरी सूचनाएँ आदि होती हैं। टेलीविज़न लेखन इन तमाम रूपों को ध्यान में रखकर किया जाता है। जहाँ जैसी ज़रूरत होती है, वहाँ वैसे वाक्यों का इस्तेमाल होता है। शब्द का काम दृश्य को आगे ले जाना है ताकि वह दूसरे दृश्यों से जुड़ सके, उसमें निहित अर्थ को सामने लाना है, ताकि खबर के सारे आशय खुल सकें।

प्रश्नः 24.
टी०वी० में ध्वनियों का क्या महत्त्व है?
उत्तरः
टी०वी० में दृश्य और शब्द के अलावा ध्वनियाँ भी होती हैं। टी०वी० में दृश्य और शब्द-यानी विजुअल और वॉयस ओवर
(वीओ) के साथ दो तरह की आवाजें और होती हैं। एक तो वे कथन या बाइट जो खबर बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं और दूसरी वे प्राकृतिक आवाजें जो दृश्य के साथ-साथ चली आती हैं-यानी चिड़ियों का चहचहाना या फिर गाड़ियों के गुज़रने की आवाज़ या फिर किसी कारखाने में किसी मशीन के चलने की ध्वनि।

टी०वी० के लिए खबर लिखते हए इन दोनों तरह की आवाज़ों का ध्यान रखना ज़रूरी है। पहली तरह की आवाज़ यानी कथन या बाइट का तो खैर ध्यान रखा ही जाता है। अकसर टी०वी० की खबर बाइट्स के आसपास ही बुनी जाती है। लेकिन यह काम पर्याप्त सावधानी से किया जाना चाहिए। कथनों से खबर तो बनती ही है, टी०वी० के लिए उसका फ़ॉर्म भी बनता है। बाइट सिर्फ किसी का बयान भर नहीं होते जिन्हें खबर के बीच उसकी पुष्टिभर के लिए डाल दिया जाता है। वह दो वॉयस ओवर या दृश्यों का अंतराल भरने के लिए पुल का भी काम करता है।

लेकिन टी०वी० में सिर्फ बाइट या वॉयस ओवर नहीं होते और भी ध्वनियाँ होती हैं। उन ध्वनियों से भी खबर बनती है या उसका मिजाज़ बनता है। इसलिए किसी खबर का वॉयस ओवर लिखते हुए उसमें शॉट्स के मुताबिक ध्वनियों के लिए गुंजाइश छोड़ देनी चाहिए। टी०वी० में ऐसी ध्वनियों को नेट या नेट साउंड यानी प्राकृतिक आवाजें कहते हैं-यानी वो आवाजें जो शूट करते हुए खुद-ब-खुद चली आती हैं। जैसे रिपोर्टर किसी आंदोलन की खबर ला रहा हो जिसमें खूब नारे लगे हों। वह अगर सिर्फ इतना बताकर निकल जाता है कि उसमें कई नारे लगे और उसके बाद किसी नेता की बाइट का इस्तेमाल कर लेता है तो यह अच्छी खबर का नमूना नहीं कहलाएगा। उसे वे नारे लगते हुए दिखाना होगा और इसकी गुंजाइश अपने वीओ में छोड़नी होगी।

ध्वनियों के साथ-साथ ऐसे दृश्यों के अंतराल भी खबर में उपयोगी होते हैं। जैसे किसी क्रिकेट मैच की खबर में वॉयस ओवर खत्म होने के बाद भी कुछ देर तक मैदान में शॉट्स चलते रहें तो दर्शक को अच्छा लगता है।

प्रश्नः 25.
रेडियो और टेलीविज़न समाचार की भाषा व शैली के विषय में बताइए।
उत्तरः
रेडियो और टी०वी० आम आदमी के माध्यम हैं। भारत जैसे विकासशील देश में उसके श्रोताओं और दर्शकों में पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मज़दूर तक सभी हैं। इन सभी लोगों की सूचना की ज़रूरतें पूरी करना ही रेडियो और टी०वी० का उद्देश्य है। लोगों तक पहुँचने का माध्यम भाषा है और इसलिए भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सभी को आसानी से समझ में आ सके, लेकिन साथ ही भाषा के स्तर और गरिमा के साथ कोई समझौता भी न करना पड़े।

लेखक आपसी बोलचाल में जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह की भाषा का इस्तेमाल रेडियो और टी०वी० समाचार में भी करें। सरल भाषा लिखने का सबसे बेहतर उपाय यह है कि वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ। रेडियो और टी०वी० समाचार में भाषा और शैली के स्तर पर काफ़ी सावधानी बरतनी पड़ती है। ऐसे कई शब्द हैं जिनका अखबारों में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है, लेकिन रेडियो और टी०वी० में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित और क्रमांक आदि शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में बिलकुल मना है। इसी तरह द्वारा शब्द के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है, क्योंकि इसका प्रयोग कई बार बहुत भ्रामक अर्थ देने लगता है। उदाहरण के लिए इस वाक्य पर गौर कीजिए-पुलिस द्वारा चोरी करते हुए दो व्यक्तियों को पकड़ लिया गया। इसके बजाय पुलिस ने दो व्यक्तियों को चोरी करते हुए पकड़ लिया। ज़्यादा स्पष्ट है।

इसी तरह तथा, एवं, अथवा, व, किंतु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए और उनकी जगह और, या लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। साफ़-सुथरी और सरल भाषा लिखने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से बचना चाहिए। इनसे भाषा कई बार बोझिल होने लगती है। मुहावरों के इस्तेमाल से भाषा आकर्षक और प्रभावी बनती है। इसलिए उनका प्रयोग होना चाहिए। लेकिन मुहावरों का इस्तेमाल स्वाभाविक और जहाँ ज़रूरी हो वहीं होना चाहिए अन्यथा वे भाषा के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करते हैं।

प्रश्नः 26.
इंटरनेट के लाभ-हानि बताइए।
उत्तरः
इंटरनेट सिर्फ एक टूल यानी औज़ार है, जिसे आप सूचना, मनोरंजन, ज्ञान और व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संवादों के आदान-प्रदान के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान का बेहतरीन औज़ार है, वहीं वह अश्लीलता, दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का भी जरिया है। इंटरनेट पर पत्रकारिता के भी दो रूप हैं। पहला तो इंटरनेट का एक माध्यम या औजार के तौर पर इस्तेमाल, यानी खबरों के संप्रेषण के लिए इंटरनेट का उपयोग। दूसरा, रिपोर्टर अपनी खबर को एक जगह से दूसरी जगह तक ईमेल के जरिए भेजने और समाचारों के संकलन, खबरों के सत्यापन और पुष्टिकरण में भी इसका इस्तेमाल करता है।

रिसर्च या शोध का काम तो इंटरनेट ने बेहद आसान कर दिया है। टेलीविज़न या अन्य समाचार माध्यमों में खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने या किसी खबर की पृष्ठभूमि तत्काल जानने के लिए जहाँ पहले ढेर सारी अखबारी कतरनों की फाइलों को ढूँढना पड़ता था, वहीं आज चंद मिनटों में इंटरनेट विश्वव्यापी संजाल के भीतर से कोई भी बैकग्राउंडर या पृष्ठभूमि खोजी जा सकती है।

प्रश्नः 27.
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता पर टिप्पणी करें।
उत्तरः
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का अभी दूसरा दौर चल रहा है। भारत के लिए पहला दौर 1993 से शुरू माना जा सकता है, जबकि दूसरा दौर सन् 2003 से शुरू हुआ है। पहले दौर में हमारे यहाँ भी प्रयोग हुए। डॉटकॉम का तूफ़ान आया और बुलबुले की तरह फूट गया। अंततः वही टिके रह पाए जो मीडिया उद्योग में पहले से ही टिके हुए थे। आज पत्रकारिता की दृष्टि से ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘हिंदू’, ‘ट्रिब्यून’, ‘स्टेट्समैन’, ‘पॉयनियर’, ‘एनडीटी.वी.’, ‘आईबीएन’, ‘जी न्यूज़’, ‘आजतक’ और ‘आउटलुक’ की साइटें ही बेहतर हैं। ‘इंडिया टुडे’ जैसी कुछ साइटें भुगतान के बाद ही देखी जा सकती हैं। जो साइटें नियमित अपडेट होती हैं, उनमें ‘हिंदू’, ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘आउटलुक’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘एनडीटी.वी.’, ‘आजतक’ और ‘जी न्यूज़’ प्रमुख हैं।

लेकिन भारत में सच्चे अर्थों में यदि कोई वेब पत्रकारिता कर रहा है तो वह ‘रीडिफ़ डॉटकॉम’, ‘इंडियाइंफोलाइन’ व ‘सीफी’ जैसी कुछ ही साइटें हैं। रीडिफ़ को भारत की पहली साइट कहा जा सकता है जो कुछ गंभीरता के साथ इंटरनेट पत्रकारिता कर रही है। वेब साइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय ‘तहलका डॉटकॉम’ को जाता है।

प्रश्नः 28.
हिंदी नेट संसार पर टिप्पणी करें।
उत्तरः
हिंदी में नेट पत्रकारिता ‘वेब दुनिया’ के साथ शुरू हुई। इंदौर के नई दुनिया समूह से शुरू हुआ यह पोर्टल हिंदी का संपूर्ण पोर्टल है। इसके साथ ही हिंदी के अखबारों ने भी विश्वजाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की। ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘नई दुनिया’, ‘हिंदुस्तान’, ‘भास्कर’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’ व ‘राष्ट्रीय सहारा’ के वेब संस्करण शुरू हुए। ‘प्रभासाक्षी’ नाम से शुरू हुआ अखबार, प्रिंट रूप में न होकर सिर्फ इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। आज पत्रकारिता के लिहाज़ से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ साइट बीबीसी की है। यही एक साइट है जो इंटरनेट के मानदंडों के हिसाब से चल रही है। वेब दुनिया ने शुरू में काफ़ी आशाएँ जगाई थीं, लेकिन धीरे-धीरे स्टाफ और साइट की अपडेटिंग में कटौती की जाने लगी जिससे पत्रकारिता की वह ताज़गी जाती रही जो शुरू में नज़र आती थी।

हिंदी वेबजगत का एक अच्छा पहलू यह भी है कि इसमें कई साहित्यिक पत्रिकाएँ चल रही हैं। अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिंदी नेस्ट, सराय आदि अच्छा काम कर रहे हैं। यही नहीं, सरकार के तमाम मंत्रालय, विभाग, बैंक आदि ने भी अपने हिंदी अनुभाग शुरू किए हैं।

हिंदी वेब पत्रकारिता में प्रमुख समस्या हिंदी के फॉन्ट की है। अभी कोई ‘की बोर्ड’ हिंदी में नहीं बना है। डायनमिक फॉन्ट की अनुपलब्धता के कारण हिंदी की अधिकतर साइटें नहीं खुलती।

प्रश्नः 29.
पत्रकारीय लेखन क्या है? इसके कितने रूप हैं?
उत्तरः
अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचना पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं और इसके कई रूप हैं। पत्रकार तीन तरह के होते हैं-पूर्णकालिक, अंशकालिक और फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र। पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन में काम करनेवाला नियमित वेतनभोगी कर्मचारी होता है, जबकि अंशकालिक पत्रकार (स्ट्रिंगर) किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर काम करनेवाला पत्रकार है, लेकिन फ्रीलांसर पत्रकार का संबंध किसी खास अखबार से नहीं होता है, बल्कि वे भुगतान के आधार पर अलग-अलग अखबारों के लिए लिखता है।

ऐसे में, यह समझना बहुत ज़रूरी है कि पत्रकारीय लेखन का संबंध और दायरा समसामयिक और वास्तविक घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों से है। हालाँकि यह माना जाता है कि पत्रकारिता जल्दी में लिखा गया साहित्य है। लेकिन यह साहित्य और सृजनात्मक लेखन-कविता, कहानी, उपन्यास आदि से इस मायने में अलग है कि इसका रिश्ता तथ्यों से है न कि कल्पना से। दूसरे, पत्रकारीय लेखन साहित्यिक-सृजनात्मक लेखन से इस मायने में भी अलग है कि यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों और जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है, जबकि साहित्यिक रचनात्मक लेखन में लेखक को काफ़ी छूट होती है।

प्रश्नः 30.
अखबार के लिए प्रयुक्त भाषा में किन-किन बातों का ध्यान रखा जाता है?
उत्तरः
अखबार और पत्रिका के लिए लिखने वाले लेखक और पत्रकार को यह हमेशा याद रखना चाहिए कि वह विशाल समुदाय के लिए लिख रहा है जिसमें एक विश्वविद्यालय के कुलपति सरीखे विद्वान से लेकर कम पढ़ा-लिखा मज़दूर और किसान सभी शामिल हैं। इसलिए उसकी लेखन शैली, भाषा और गूढ़ से गूढ़ विषय की प्रस्तुति ऐसी सहज, सरल और रोचक होनी चाहिए कि वह आसानी से सबकी समझ में आ जाए। पत्रकारीय लेखन में अलंकारिक-संस्कृतनिष्ठ भाषा-शैली के बजाय आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया जाता है।

पाठकों को ध्यान में रखकर ही अखबारों में सीधी, सरल, साफ़-सुथरी, लेकिन प्रभावी भाषा के इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है। शब्द सरल और आसानी से समझ में आने वाले होने चाहिए। वाक्य छोटे और सहज होने चाहिए। जटिल और लंबे वाक्यों से बचना चाहिए। भाषा को प्रभावी बनाने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, जार्गन्स (ऐसी शब्दावली जिससे बहुत कम पाठक परिचित होते हैं) और क्लीशे (पिष्टोक्ति या दोहराव) का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इनके प्रयोग से भाषा बोझिल हो जाती है।

प्रश्नः 31.
समाचार लेखन और छह ककार का संबंध बताइए।।
उत्तरः
किसी समाचार को लिखते हुए मुख्यत: छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है। क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ? इस-क्या, किसके (या कौन), कहाँ, कब, क्यों और कैसे-को छह ककारों के रूप में भी जाना जाता है। किसी घटना, समस्या या विचार से संबंधित खबर लिखते हुए इन छह ककारों को ही ध्यान में रखा जाता है।

समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ़ या शुरुआती दो-तीन पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं-क्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारों-कैसे और क्यों का जवाब दिया जाता है। इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें से पहले चार ककारक्या, कौन, कब और कहाँ-सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं जबकि बाकी दो ककारों-कैसे और क्यों में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।

प्रश्नः 32.
संपादकीय लेखन पर टिप्पणी करें।
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय को उस अखबार की अपनी आवाज़ माना जाता है। संपादकीय के जरिये अखबार किसी घटना, समस्या या मुद्दे के प्रति अपनी राय प्रकट करते हैं। संपादकीय किसी व्यक्ति विशेष का विचार नहीं होता इसलिए उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता। संपादकीय लिखने का दायित्व उस अखबार में काम करने वाले संपादक और उनके सहयोगियों पर होता है। आमतौर पर अखबारों में सहायक संपादक, संपादकीय लिखते हैं। कोई बाहर का लेखक या पत्रकार संपादकीय नहीं लिख सकता है।

प्रश्नः 33.
स्तंभ लेखन क्या है?
उत्तरः
स्तंभ लेखन विचारपरक लेखन का एक प्रमुख रूप है। कुछ महत्त्वपूर्ण लेखक अपने खास वैचारिक रुझान के लिए जाने जाते हैं। उनकी अपनी एक लेखन-शैली भी विकसित हो जाती है। ऐसे लेखकों की लोकप्रियता को देखकर अखबार उन्हें एक नियमित स्तंभ लिखने की ज़िम्मेदारी दे देते हैं। स्तंभ का विषय चुनने और उसमें अपने विचार व्यक्त करने की स्तंभ लेखक को पूरी छूट होती है। स्तंभ में लेखक के विचार अभिव्यक्त होते हैं। यही कारण है कि स्तंभ अपने लेखकों के नाम पर जाने और पसंद किए जाते हैं। कुछ स्तंभ इतने लोकप्रिय होते हैं कि अखबार उनके कारण भी पहचाने जाते हैं, लेकिन नए लेखकों को स्तंभ लेखन का मौका नहीं मिलता है।

प्रश्नः 34.
संपादक के नाम पत्र के विषय में बताइए।
उत्तरः
अखबारों के संपादकीय पृष्ठ पर और पत्रिकाओं की शुरुआत में संपादक के नाम पाठकों के पत्र भी प्रकाशित होते हैं। सभी अखबारों में यह एक स्थायी स्तंभ होता है। यह पाठकों का अपना स्तंभ होता है। इस स्तंभ के जरिये अखबार के पाठक न सिर्फ विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते हैं बल्कि जन समस्याओं को भी उठाते हैं। एक तरह से यह स्तंभ जनमत को प्रतिबिंबित करता है। ज़रूरी नहीं कि अखबार पाठकों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों से सहमत हो। यह स्तंभ नए लेखकों के लिए लेखन की शुरुआत करने और उन्हें हाथ माँजने का भी अच्छा अवसर देता है।

प्रश्नः 35.
लेख पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तरः
सभी अखबार संपादकीय पृष्ठ पर समसामयिक मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकारों और उन विषयों के विषेषज्ञों के लेख प्रकाशित करते हैं। इन लेखों में किसी विषय या मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की जाती है। लेख विशेष रिपोर्ट और फ़ीचर से इस मामले में अलग होते हैं, क्योंकि उसमें लेखक के विचारों को प्रमुखता दी जाती है, लेकिन ये विचार तथ्यों और सूचनाओं पर आधारित होते हैं और लेखक उन तथ्यों और सूचनाओं के विश्लेषण और अपने तर्कों के जरिये अपनी राय प्रस्तुत करता है। लेख लिखने के लिए पर्याप्त तैयारी ज़रूरी है। इसके लिए उस विषय से जुड़े सभी तथ्यों और सूचनाओं के अलावा पृष्ठभूमि सामग्री भी जुटानी पड़ती है। यह भी देखना चाहिए कि उस विषय पर दूसरे लेखकों और पत्रकारों के क्या विचार हैं?

लेख की कोई एक निश्चित लेखन शैली नहीं होती और हर लेखक की अपनी शैली होती है, लेकिन अगर आप अखबारों और पत्रिकाओं के लिए लेख लिखना चाहते हैं तो शुरुआत उन विषयों के साथ करनी चाहिए जिस पर आपकी अच्छी पकड़ और जानकारी हो। लेख का भी एक प्रारंभ, मध्य और अंत होता है। लेख की शुरुआत में अगर उस विषय के सबसे ताज़ा प्रसंग या घटनाक्रम का विवरण दिया जाए और फिर उससे जुड़े अन्य पहलुओं को सामने लाया जाए, तो लेख का प्रारंभ आकर्षक बन सकता है। इसके बाद तथ्यों की मदद से विश्लेषण करते हुए आखिर में अपना निष्कर्ष या मत प्रकट कर सकते हैं।

प्रश्नः 36.
साक्षात्कार के विषय में बताइए।
उत्तरः
समाचार माध्यमों में साक्षात्कर का बहुत महत्त्व है। पत्रकार एक तरह से साक्षात्कार के जरिये ही समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट और अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल इकट्ठा करते हैं। पत्रकारीय साक्षात्कार और सामान्य बातचीत में यह फ़र्क होता है कि साक्षात्कार से एक पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय और भावनाएँ जानने के लिए सवाल पूछता है। साक्षात्कार का एक स्पष्ट मकसद और ढाँचा होता है। एक सफल साक्षात्कार के लिए आपके पास न सिर्फ ज्ञान होना चाहिए बल्कि आपमें संवेदनशीलता, कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए। एक अच्छे और सफल साक्षात्कार के लिए यह ज़रूरी है कि आप जिस विषय पर और जिस व्यक्ति के साथ साक्षात्कार करने जा रहे हैं, उसके बारे में आपके पास पर्याप्त जानकारी हो। दूसरे आप साक्षात्कार से क्या निकालना चाहते हैं, इसके बारे में स्पष्ट रहना बहुत ज़रूरी है। आपको वे सवाल पूछने चाहिए जो किसी अखबार के एक आम पाठक के मन में हो सकते हैं। साक्षात्कार को अगर रिकार्ड करना संभव हो तो बेहतर है, लेकिन अगर ऐसा संभव न हो तो साक्षात्कार के दौरान नोट्स तैयार करते रहें।

समाचार के उदाहरण

(1) मैकुलम ने आमिर का समर्थन किया

न्यूजीलैंड के कप्तान ब्रैंडन मैकुलम ने कहा है कि स्पॉट फिक्सिंग मामले में सज़ा काटने वाले तेज़ गेंदबाज़ मोहम्मद आमिर को ‘संदेह का लाभ’ मिलना चाहिए और उसे इस महीने न्यूजीलैंड में सीमित ओवरों के मैचों में खेलने की स्वीकृति मिलनी चाहिए। आमिर को पाकिस्तान की टीम में शामिल किया गया है जो न्यूजीलैंड में तीन टी-20 और तीन वनडे मैचों की सीरिज में हिस्सा लेगी। इस तेज़ गेंदबाज का खेलना हालाँकि न्यूजीलैंड के आव्रजन अधिकारियों के उन्हें वीजा जारी करने पर निर्भर करता है। आमिर जब सिर्फ 18 साल का था तब स्पॉट फिक्सिंग में शामिल होने पर 2011 में उस पर क्रिकेट से पाँच साल का प्रतिबंध लगा था। उसने छह महीने की सज़ा में से तीन महीने जेल में भी बिताए थे। आईसीसी द्वारा लगाया प्रतिबंध अब खत्म हो गया है और मैकुलम ने कहा कि उसे अपना कॅरिअर बहाल करने की स्वीकृति मिलनी चाहिए।

(2) वर्ल्ड डार्ट में हॉलैंड का दबदबा खत्म, लेविस और एंडरसन फाइनल में

एड्रियन लेविस और गैरी एंडरसन ने वर्ल्ड डार्ट चैंपियनशिप में हॉलैंड का दबदबा खत्म कर फाइनल में जगह बना ली है। दोनों ने सेमीफाइनल में डच खिलाड़ियों को हराया। इंग्लैंड के लेविस ने पाँच बार के वर्ल्ड चैंपियन रेमंड वान बर्नवेल्ड को 6-3 से मात दी। स्कॉटलैंड के एंडरसन ने ‘द कोबरा’ के नाम से मशहूर जेल क्लासेन को 6-0 से हराया। क्लासेन के नाम सबसे कम उम्र (22 साल) में वर्ल्ड चैंपियन बनने का रिकॉर्ड है। टूर्नामेंट के विजेता को 3 लाख पाउंड (करीब 2.93 करोड़ रु.) इनामी राशि मिलेगी।

(3) नया सिस्टम : परीक्षा केंद्र भी अपने राज्य में ही मिलेगा
रेलवे ने पहली बार बनाया अब अपनी मरजी के दिन दीजिए परीक्षा

रेलवे बेरोज़गारों को बड़ी राहत देने जा रहा है। पहली बार भरती परीक्षा में ऐसी छूट मिलेगी जिससे अभ्यर्थी परीक्षा कार्यक्रम के दौरान अपनी सुविधानुसार किसी भी तारीख को परीक्षा दे पाएगा। इतना ही नहीं, भरती परीक्षा देने के लिए अभ्यर्थियों को अब प्रदेश से बाहर नहीं जाना पड़ेगा। अभ्यर्थी भले ही देश के 21 में से किसी भी भरती बोर्ड में आवेदन करे, वह अपने राज्य में ही परीक्षा दे सकेगा। रेलवे की यह व्यवस्था नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरीज ग्रेजुएट (एनटीपीसी) परीक्षा से शुरू होने जा रही है। परीक्षा के लिए अभी आवेदन लिए जा रहे हैं।

परीक्षा ऑनलाइन होगी, पेपर लीक की आशंका खत्म होगी
परीक्षा ऑनलाइन होने से पेपर लीक जैसी आशंकाएँ खत्म हो जाएंगी। परीक्षा केंद्र के रूप में अपने ही राज्य के पाँच शहरों के विकल्प चुनने से परीक्षार्थी को दूसरे राज्य नहीं जाना पड़ेगा। अब तक जिस भरती बोर्ड के लिए आवेदन किया जाता था, अभ्यर्थी को परीक्षा देने वहीं जाना पड़ता था। आर्थिक बोझ भी घटेगा।

नए सिस्टम से अभ्यर्थी को फ़ायदा
तय तारीख को परीक्षा देने में अक्षम तो रेलवे से तारीख बढ़ाने को कह पाएँगे

  • परीक्षा केंद्र के लिए पाँच विकल्प माँगे गए हैं। यह केंद्र भी अभ्यर्थी के राज्य के ही पाँच शहरों के हैं। एनटीपीसी ऑनलाइन परीक्षा 15 दिन से अधिक समय तक चल सकती है।
  • अभ्यर्थी को परीक्षा के लिए जो दिन दिया जाएंगा, अगर उसे उस दिन परीक्षा देने में परेशानी है तो वह परीक्षा अवधि के दौरान किसी भी दिन परीक्षा दे पाएगा।

(4) नेपाल में फूट की राह पर मधेस मोरचा

नेपाल में मधेस मोरचा फूट की राह पर जाता दिखाई दे रहा है। मधेस मोरचा में शामिल सद्भावना पार्टी ने रविवार को दक्षिणी नेपाल के तराई इलाकों में अलग से आंदोलन छेड़ने का एलान किया है। इस एलान के चलते मधेस मोर्चा में फूट पड़ने की आशंका और बढ़ गई है।

संघीय लोकतांत्रिक मोरचा ने सद्भावना पार्टी के इस फैसले से नाखुशी जताते हुए आलोचना की है। इसके प्रमुख उपेंद्र यादव ने इसे बड़ी भूल करार दिया है। हालांकि सद्भावना पार्टी ने मोरचा से अलग होने की खबरों को खारिज करते हुए अपने मुखिया राजेंद्र महतो के साथ हुए दुर्व्यवहार की वजह से सरकार के साथ वार्ता से भी दूरी बना ली है। महतो प्रदर्शन के दौरान पुलिस के लाठीचार्ज में बुरी तरह घायल हो गए थे। उनका दिल्ली में इलाज चल रहा है। सद्भावना पार्टी के उपाध्यक्ष लक्ष्मण लाल कर्ण ने बताया कि उनकी पार्टी तब तक बातचीत के लिए तैयार नहीं होगी, जब तक कि सरकार इस घटना पर माफ़ी नहीं माँग लेती।

  • महतो की सद्भावना पार्टी ने तराई में अलग आंदोलन छेड़ने का किया एलान
  • हालांकि, मोरचा में फूट पड़ने की आशंका को पार्टी ने किया दरकिनार

घायल मधेसी ने दम तोड़ा

नेपाल में रविवार को एक मधेसी प्रदर्शनकारी की मौत हो गई है। यह प्रदर्शनकारी बीते दिनों आंदोलन के दौरान हुई पुलिस फायरिंग में गोली लगने से घायल हो गया था। 50 वर्षीय शेख मैरुद्दीन को बीते साल 14 अक्तूबर को रौतहट के जिला मुख्यालय गौर में गोली लगी थी।

(5) प्रॉपर्टी डीलर ने कर्ज उतारने को रचा था 59 लाख की लूट का ड्रामा

फतेहाबाद-रतिया रोड पर शनिवार शाम को 59 लाख की लूट की वारदात हुई ही नहीं थी। प्रॉपर्टी डीलर ने लूट की झूठी कहानी गढ़ी थी। मात्र तीन घंटे में ही उसका राज़ खुल गया। पुलिस ने उसके खिलाफ़ झूठी शिकायत देने का केस दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस के अनुसार कथित लूट का शिकार हुए हरनेक फौज़ी के जरिए बलियाला निवासी जगतार सिंह ने पंजाब में ज़मीन खरीदी थी। उसके लिए उसने 59 लाख रुपए हरनेक को दे रखे थे। सोमवार को पंजाब में उस ज़मीन की रजिस्ट्री होनी थी और ज़मीन की कीमत उसके मालिक को दी जानी थी, लेकिन, हरनेक ने जगतार के 59 लाख रुपए उसने अपने कर्ज उतारने में खर्च कर दिए। इसी वजह से शनिवार को हरनेक ने 59 लाख रुपए की लूट का ड्रामा रचा। गुरुद्वारा झाड़ साहब रतिया रोड फतेहाबाद के पास सड़क किनारे लगे पिलर में टक्कर मारकर और ईंट से गाड़ी का सामने का शीशा तोड़ा और मोबाइल फ़ोन को घटनास्थल के पास फेंककर पुलिस को लूट की झूठी सूचना दी। हरनेक से 59 लाख रुपए की राशि में से उसके पास बचे हुए 7 लाख 75 हजार रुपए बरामद किए जा चुके हैं।

(6) आत्मनिर्भरता के लिए देश में बनाने होंगे सभी हथियार : मोदी ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “देश को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाना है। इसके लिए देश में ही हथियार बनाने होंगे।” मोदी कर्नाटक के टुमकुर में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के 75वें स्थापना दिवस समारोह में बोल रहे थे। इस मौके पर उन्होंने 5,000 करोड़ रुपए के ग्रीनफील्ड हेलिकॉप्टर प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया। उन्होंने कहा, ‘भारत को दुनिया में किसी भी देश पर आश्रित न रहना पड़े, यह काम अभी होना है। इसके लिए बहुत लंबी यात्रा पूरी करना बाकी है। भारत की सेना दुनिया की किसी भी सेना से कमजोर नहीं होनी चाहिए। भारत की सेना के पास दुनिया के किसी भी देश से कम ताकतवर शस्त्र नहीं होने चाहिए। सेना के लिए शस्त्र विदेशों से लाने पड़ते हैं। अरबों-खरबों रुपया विदेशों में जाता है। बाहर से जो शस्त्र मिलते हैं वो थोड़े कम ताकतवर मिलते हैं। अगर विश्व में भारत को अपनी सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है तो उसे अपनी ज़रूरत के अनुसार और अपनी सुरक्षा के लिए शस्त्र खुद बनाने पड़ेंगे।’

विज्ञान से फायदा उठाने के लिए पाँच ‘ई’ सिद्धांत –

मोदी ने कहा, ‘देश में विज्ञान से पूरा फायदा उठाने के लिए वैज्ञानिकों और तकनीकविदों को पाँच ‘ई’ के सिद्धांत को अपनाना चाहिए। यह पाँच ई हैं-इकोनॉमी (अर्थव्यवस्था), एनवायरमेंट (पर्यावरण), एनर्जी (ऊर्जा), एम्पैथी (सहानुभूति) और इक्विटी (निष्पक्षता)।

4,000 परिवारों को रोज़गार –

प्रोजेक्ट में करीब 5,000 करोड़ रुपए का पूँजी निवेश होगा। ये सबसे ज़्यादा पूँजी वाली फैक्टरी बनने वाली है। इस प्रोजेक्ट के कारण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करीब 4,000 परिवारों को किसी-न-किसी को यहाँ पर रोजगार मिलने वाला है।

योग भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में मिलाना होगा
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘स्वास्थ्य के पेशेवरों, नीति बनाने वालों, सरकारी संगठनों और उद्योगों को साथ आना होगा। वे मिलकर ही भारत में अलग चिकित्सा तंत्रों के बीच अंतर पाट सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि आप योग और पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को आपके स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था में शामिल करेंगे।’ वे डीम्ड यूनिवर्सिटी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान में योग पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोल रहे थे।

(7) बेंगलुरू की स्टार्टअप ने लैब में लिवर बनाया

बेंगलुरू की एक स्टार्टअप ने लेबोरेटरी में कृत्रिम लिवर तैयार करने में सफलता हासिल की है। दरअसल ये थ्रीडी प्रिंटर से तैयार किए गए टिशू हैं जो लिवर का काम बखूबी कर सकते हैं। इन्हें ह्यूमन सेल्स की मदद से ही बनाया गया है। इनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि लिवर की बीमारियों के इलाज में अब ह्यूमन या एनिमल ट्रायल्स पर निर्भरता कम हो जाएगी। इनकी मदद से दवा और वैक्सीन और अच्छी तरह से विकसित की जा सकेंगी साथ ही उनकी लागत भी कम हो जाएगी। सबसे बड़ी बात, जल्दी ही लिवर को पूरी तरह ट्रांसप्लांट भी किया जा सकेगा।

रिसर्चर अरुण चंद्र बताते हैं कि लिवर में मौजूद टॉक्सिन्स और दवाओं का मेटाबॉलिज्म बड़ी परेशानी है। इसी वजह से ह्यूमन ट्रायल्स विफल हो रहे हैं। चंद्र के अनुसार उनकी कंपनी ने इसे पूरी तरह देश में ही तैयार किया है। उनका दावा है कि वे इस तरह के हज़ारों और टिशू तैयार कर सकते हैं और लिवर संबंधी बीमारियों पर दवाओं के प्रभाव का पता लगा सकते हैं। चाहे वह लिवर कैंसर ही क्यों न हो। चंद्र के साथ इनोवेशन टीम में शामिल हैं वरिष्ठ वैज्ञानिक अब्दुल्ला चाँद और शिवराजन टी, वो भी वैज्ञानिक हैं। पेंडोरम से ही जुड़े तुहीन भौमिक बताते हैं कि इस तरह से कृत्रिम अंगों को बनाकर हम कई गंभीर बीमारियों का इलाज खोज पाएँगे। ह्यूमन सेल्स की मदद से बनाए गए इस ऑर्गन से बॉयो आर्टिफिशियल लिवर सपोर्ट सिस्टम बनाया जा सकेगा। जो लिवर फेल होने की दशा में मरीज की जिंदगी बचा सकेगा। पेंडोरम टेक्नोलॉजीस नामक स्टार्टअप की नींव इन्हीं तीनों ने साथियों के साथ मिलकर रखी थी। उस समय वे सभी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलोर में पढ़ रहे थे। उन्हें ये आइडिया तब आया था जब एक कंपीटिशन जीती थी। तब से उन्होंने आर्टिफिशियल ऑर्गन्स को लेकर रिसर्च शुरू की। चंद्रू बताते हैं कि ‘शुरुआत में परिवार और मित्रों ने पैसों से मदद की।

बाद में उन्हें बायोटेक इंडस्ट्री और रिसर्च काउंसिल और सरकार से मदद मिली। इस इनोवेशन पर वे एक करोड़ रु. से ज्यादा खर्च कर चुके हैं। इसमें आधी मदद सरकार ने की है।

(8) बड़ी सफलता, शरीर की ऊर्जा से काम करेगी कंप्यूटर चिप

वैज्ञानिकों की हमेशा यह कोशिश रही है कि ऐसी मशीन बनाई जाए, जो मनुष्य की आंतरिक ऊर्जा से संचालित हो सके। इसमें कुछ सफलता मिल गई है। कोलंबिया में इंजीनियरिंग पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों ने ऐसी कंप्यूटर चिप बनाने में सफलता हासिल की है, जो हमारे शरीर की ऊर्जा से काम करेगी। इसमें शरीर की गतिविधियों से रासायनिक ऊर्जा का संचार होता है, जो सर्किट में लगे सीमॉस तक पहुँचता है और वह सक्रिय हो जाता है।

शोध करने वाली टीम के लीडर प्रो० केन शेफर्ड ने बताया कि विश्व में पहली बार हमारे शरीर की गतिविधियों से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को इंटीग्रेटेड सर्किट तक पहुँचाने में सफलता मिल गई है। ऐसा प्रयोग हम पहले मोबाइल फ़ोन में कर चुके हैं। इस चिप में शोधकर्ताओं ने लिपिड बिलैयर मेंबरेंस तैयार किया, जिसमें इऑन पंप लगा होता है। इसे बायोलॉजी के क्षेत्र में एनर्जी करेंसे मॉलिक्यूल कहते हैं। इसमें एटीपी (एडीनोजिन ट्रिपोस्फेट) होता है, जो एक तरह का कोएन्जाइम होता है, वह लिविंग सेल में रासायनिक ऊर्जा ट्रांसफर करने का काम करता है। इस तरह लिविंग सिस्टम वैसे ही मैकेनिकल काम करता है, जैसे सेल डिविजन और मॉस कॉन्ट्रैक्शन काम करते हैं।

शेफर्ड के अनुसार इऑन पंप ट्रांजिस्टर जैसे काम करते हैं। उसका इस्तेमाल वे न्यूरॉन की क्षमता बनाए रखने के लिए कर चुके हैं। पंप से आर्टिफिशियल लिपिड मेंबरेंस को ऊर्जा मिलती है और वहाँ से इंटीग्रेटेड सर्किट तक। उन्हें उम्मीद है कि इंटेल के डिजाइनर इस ओर ध्यान देंगे।

(9) 104 की उम्र में बकरियाँ बेच गाँव के लिए बनवाए शौचालय

ये हैं 104 साल की कुंबर बाई। राजधानी रायपुर से करीब 90 किमी दूर धमतरी के कोटाभर्रा गाँव में रहती हैं। उम्र के आखिरी पड़ाव में वे इस कोशिश में जुटी हैं कि गाँव की हर महिला का मान रहे, हर घर में शौचालय रहे। पैसे नहीं थे तो बकरियाँ बेचकर दो शौचालय बनवाए। इसके बाद पूरे गाँव ने उनकी ख्वाहिश को अपना बना लिया। अब हर घर में शौचालय है। कुंवर बाई के दो बेटे थे। एक की बचपन में मौत हो गई। 30 साल पहले दूसरा बेटा भी चल बसा। इसके बाद सास-बहू को घर की गाड़ी खींचनी पड़ी। कुंवर बाई के मुताबिक इतने संघर्ष के दौर में सबसे बड़ा संघर्ष खुले में शौच के लिए जाना होता था। जब तक मज़बूरी थी, तब तक चला, लेकिन बहू और उसके बाद नातिन के सामने यही मज़बूरी आई तो वह देख नहीं पाईं। तय किया कि शौचालय बनवाऊँगी।

(10) भिखारियों के लिए डेवलपमेंट प्रोग्राम लाएगी केंद्र सरकार

केंद्र सरकार भिखारियों के लिए स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम लाने की तैयारी कर रही है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से तैयार की गई स्कीम के मुताबिक भीख माँग रहे लोगों को खाना, शेल्टर, हेल्थ केयर और पुनर्वास मुहैया कराया जाएगा।इस योजना के तहत ऐसे भिखारियों को स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग दी जाएगी, जो शरीर से स्वस्थ हैं ताकि ऐसे लोग समाज की मुख्यधारा में आ सकें। एक वरिष्ठ सरकारी मंत्रालय के मुताबिक इस योजना में पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने के लिए एक डेटाबेस तैयार किया जाएगा। योजना का लाभ मिलने वाले लोगों की कंप्यूटरीकृत सूची तैयार की जाएगी।

(11) प्रलय के बाद भी हो खेती, इसलिए बनाया बीज बैंक

मान लीजिए युद्ध, बाढ़ या ग्लोबल वार्मिंग की वजह से सारी फ़सलें बरबाद हो जाती हैं। इन फ़सलों के बीज भी नष्ट हो जाते हैं। तो आगे खेती कैसे होगी? हम खाएँगे क्या? दुनिया के चुनिंदा वैज्ञानिकों को भी यह चिंता हई। उन्होंने इसका समाधान निकाला। वे पूरी दुनिया की प्रमुख फ़सलों के बीज डीप फ्रीज में जमा कर रहे हैं। यह बीज बैंक सामान्य नहीं है। इस ‘ग्लोबल सीड वॉल्ट’ को आर्कटिक के स्वालबार्ड द्वीप पर पहाड़ के नीचे बनाया गया है। उत्तरी ध्रुव से 1,300 किलोमीटर दूर इस द्वीप पर तापमान माइनस में रहता है। जिस जगह बीज हैं वहाँ का तापमान (-)18 डिग्री सेल्सियस रखा जाता है। यहाँ कोयले की भी खान है। रेफ्रिजिरेशन यूनिट चलाने के लिए बिजली इसी कोयले से बनाई जाती है।

न मिसाइल का असर, न बाढ़ का खतरा –
बीज बैंक का प्रवेश द्वार समुद्र से 130 मीटर ऊपर है। स्वालबार्ड को लेकर देशों के बीच कोई विवाद नहीं है, फिर भी भविष्य में आर्कटिक में कोई बड़ा धमाका कर दे और उत्तरी ध्रुव की सारी बर्फ पिघल जाए, तब भी पानी इस वॉल्ट के प्रवेश द्वार तक नहीं पहुँचेगा। पहाड़ के गर्भ में, 115 मीटर नीचे होने से इस पर मिसाइल हमले का भी असर नहीं होगा। यहाँ भूकंप का खतरा भी कम है।

5 हज़ार प्रजाति के 8.7 लाख सैंपल जमा –
इस सीड वॉल्ट में अभी तक दुनिया की 5,000 से ज़्यादा प्रजाति की फ़सलों के 8,65,871 सैंपल जमा किए जा चुके हैं। यहाँ 45 लाख सैंपल रखने की जगह है। विश्व की जितनी भी महत्त्वपूर्ण फ़सलें हैं, उनमें से करीब आधी के सैंपल यहाँ जमा हो चुके हैं।

सीरिया को भेजे गए गेहूँ के बीज –
‘ग्लोबल सीड वॉल्ट’ का महत्त्व अभी से दिखने लगा है। गृहयुद्ध ग्रस्त सीरिया में फ़सलें बरबाद हो गईं। तब वहाँ खेती के लिए यहीं से गेहूँ, जौ, मटर आदि की कई किस्मों के बीज भेजे गए।

यहाँ मफ़्त में रख सकते हैं बीज –
नॉर्वे सरकार ने इसे 60 करोड़ रुपए में बनाया था। यहाँ बीज रखने वालों को पैसे नहीं लगते। खर्च नॉर्वे सरकार और ग्लोबल क्रॉप डायवर्सिटी ट्रस्ट उठाती है। ट्रस्ट को बिल गेट्स फाउंडेशन, कई सरकारों से पैसे मिलते हैं।

(12) स्मार्ट ग्रिड वाला पहला शहर पानीपत

मार्च 2017 तक 12,000 उपभोक्ता जुड़ जाएँगे स्मार्ट ग्रिड से –

हरियाणा का पानीपत स्मार्ट ग्रिड से जुड़ने वाला पहला शहर बनने जा रहा है। अगले साल मार्च तक यहाँ के 12,000 बिजली उपभोक्ताओं के लिए स्मार्ट ग्रिड की स्थापना के बाद बिजली कटौती समाप्त हो जाएगी। स्मार्ट ग्रिड से जुड़ने वाले उपभोक्ताओं के यहाँ न तो इनवर्टर की ज़रूरत होगी और न ही किसी प्रकार के पावर बैक-अप की। सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि स्मार्ट ग्रिड वाले इलाके में बिजली की चोरी नहीं हो पाएगी। अभी यह पता लगाना कठिन होता है कि बिजली की चोरी किस क्षेत्र में हो रही है, लेकिन स्मार्ट ग्रिड की स्थापना से आसानी से यह देखा जा सकेगा कि किस इलाके में बिजली की चोरी की जा रही है। वर्ष 2012 में स्मार्ट ग्रिड की स्थापना को लेकर देश के 14 पायलट परियोजनाओं की शुरुआत की गई थी। इनमें सबसे तेजी से पानीपत में काम चल रहा है। इंडिया स्मार्ट ग्रिड फोरम के प्रेसिडेंट रेजी कुमार पिल्लई ने बताया कि स्मार्ट ग्रिड की कई पायलट परियोजनाओं का काम फंड की कमी की वजह से धीमी गति से चल रहा है।

उन्होंने बताया कि पानीपत की स्मार्ट ग्रिड पायलट परियोजना का काम वर्ष 2017 के मार्च तक पूरा हो जाएगा और स्मार्ट ग्रिड से जुड़ने वाला पहला शहर होगा। उन्होंने बताया कि स्मार्ट ग्रिड से लोड शेडिंग (बिजली कटौती) समाप्त हो जाएगी, क्योंकि स्मार्ट ग्रिड की मदद से बिजली की माँग और आपूर्ति का पहले से पता होगा। बिजली की माँग का पहले से पता होने पर बिजली की कमी होने पर किसी एक ही क्षेत्र में थोड़ी देर के लिए बिजली की कटौती होगी। स्मार्ट ग्रिड की बदौलत क्वालिटी पावर की आपूर्ति होगी। वोल्टेज में होने वाले उतार-चढ़ाव की कोई गुंजाइश नहीं रह जाएगी। ऐसे में घरों में वोल्टेज नियंत्रण करने के लिए स्टेबलाइजर की ज़रूरत नहीं होगी। वहीं बिजली की निर्बाध आपूर्ति होने से पावर बैकअप भी नहीं रखना पड़ेगा। स्मार्ट ग्रिड से जुड़ने वाले उपभोक्ताओं को अपने-अपने घरों में स्मार्ट मीटर लगवाना होगा।

(13) डाकघरों में खुलेंगे 1,000 एटीएम

डाक विभाग इस साल तक देशभर में एक हज़ार एटीएम खोलने जा रहा है। इस कदम से विभाग देशभर में फैले अपने करीब 25,000 डाकघरों के जरिए लोगों को कोर बैंकिंग प्रणाली (सीबीएस) की सुविधा मुहैया कराना चाहता है।

डाक विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि विभाग 12,441 डाकघरों को पहले ही सीबीएस के तहत ला चुका है और डाकघरों में 300 एटीएम खोले जा चुके हैं। उन्होंने बताया कि इसे आगे बढ़ाने के लिए मार्च तक 1,000 नए एटीएम खोले जाएंगे। डाकघरों में सीबीएस प्रणाली स्थापित हो जाने पर लोग डाक संबंधी कामों के अलावा यहाँ से बैंकिंग सेवाओं का लाभ भी उठा सकेंगे, भले ही उनका खाता कहीं भी हो।

पारिभाषिक शब्दावली

अपडेटिंग-विभिन्न वेबसाइटों पर उपलब्ध सामग्री को समय-समय पर संशोधित और परिवर्धित किया जाता है। इसे ही अपडेटिंग कहते हैं।

ऑडिएस-जनसंचार माध्यमों के साथ जुड़ा एक विशेष शब्द। यह जनसंचार माध्यमों के दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों के लिए सामूहिक रूप से इस्तेमाल होने वाला शब्द है।

ऑप-एड-समाचार पत्रों में संपादकीय पृष्ठ के सामने प्रकाशित होने वाला वह पन्ना जिसमें विश्लेषण, फ़ीचर, स्तंभ, साक्षात्कार और विचारपूर्ण टिप्पणियाँ प्रकाशित की जाती हैं। हिंदी के बहुत कम समाचार पत्रों में ऑप-एड पृष्ठ प्रकाशित होता है, लेकिन अंग्रेज़ी के हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबारों में ऑप-एड पृष्ठ देखा जा सकता है।

डेडलाइन-समाचार माध्यमों में किसी समाचार को प्रकाशित या प्रसारित होने के लिए पहुँचने की आखिरी समय-सीमा को डेडलाइन कहते हैं। अगर कोई समाचार डेडलाइन निकलने के बाद मिलता है तो आमतौर पर उसके प्रकाशित या प्रसारित होने की संभावना कम हो जाती है।

डेस्क-समाचार माध्यमों में डेस्क का आशय संपादन से होता है। समाचार माध्यमों में मोटे तौर पर संपादकीय कक्ष डेस्क और रिपोर्टिंग में बँटा होता है। डेस्क पर समाचारों को संपादित किया जाता है उसे छपने योग्य बनाया जाता है।

न्यूज़पेग-न्यूज़पेग का अर्थ है किसी मुद्दे पर लिखे जा रहे लेख या फ़ीचर में उस ताज़ा घटना का उल्लेख, जिसके कारण वह मुद्दा चर्चा में आ गया है। जैसे अगर आप माध्यमिक बोर्ड की परीक्षाओं में सरकारी स्कूलों के बेहतर हो रहे प्रदर्शन पर एक रिपोर्ट लिख रहे हैं तो उसका न्यूज़पेग सीबीएसई का ताज़ा परीक्षा परिणाम होगा। इसी तरह शहर में महिलाओं के खिलाफ़ बढ़ रहे अपराध पर फ़ीचर का न्यूज़पेग सबसे ताज़ी वह घटना होगी जिसमें किसी महिला के खिलाफ़ अपराध हुआ है।

पीत पत्रकारिता (येलो जर्नलिज़्म)-इस शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में अमेरिका में कुछ प्रमुख समाचार पत्रों के बीच पाठकों को आकर्षित करने के लिए छिड़े संघर्ष के लिए किया गया था। उस समय के प्रमुख समाचार पत्रों ने पाठकों को लुभाने के लिए झूठी अफ़वाहों, व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपों, प्रेम संबंधों, भंडाफोड़ और फ़िल्मी गपशप को समाचार की तरह प्रकाशित किया। उसमें सनसनी फैलाने का तत्व अहम था।

पेज थी पत्रकारिता-पेज थ्री पत्रकारिता का तात्पर्य ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें फ़ैशन, अमीरों की पार्टियों, महफ़िलों और जाने-माने लोगों (सेलीब्रिटी) के निजी जीवन के बारे में बताया जाता है। यह आमतौर पर समाचार पत्रों के पृष्ठ तीन पर प्रकाशित होती रही है। इसलिए इसे पेज थ्री पत्रकारिता कहते हैं। हालाँकि अब यह ज़रूरी नहीं है कि यह पृष्ठ तीन पर ही प्रकाशित होती हो, लेकिन इस पत्रकारिता के तहत अब भी ज़ोर उन्हीं विषयों पर है।

फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन (एफ़०एम०)-रेडियो प्रसारण की एक विशेष तकनीक जिसमें फ्रीक्वेंसी को मॉड्यूलेट किया जाता है। रेडियो का प्रसारण दो तकनीकों के जरिए होता है जिसमें एक तकनीक एमप्लीच्यूड मॉड्यूलेशन (ए०एम०) है और दूसरा फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन (एफ़०एम०)। एफ़०एम० तकनीक अपेक्षाकृत नई है और इसकी प्रसारण की गुणवत्ता बहुत अच्छी मानी जाती है, लेकिन ए०एम० रेडियो की तुलना में एफ़०एम० के प्रसारण का दायरा सीमित होता है।

फ्रीलांस पत्रकार-फ्रीलांस पत्रकार से आशय ऐसे स्वतंत्र पत्रकार से है जो किसी विशेष समाचार पत्र या पत्रिका से जुड़ा नहीं होता या उसका कर्मचारी नहीं होता। वह अपनी इच्छा से किसी समाचार पत्र को लेख या फ़ीचर प्रकाशन के लिए देता है जिसके प्रकाशन पर उसे पारिश्रमिक मिलता है।

बीट-समाचार पत्र या अन्य समाचार माध्यमों द्वारा अपने संवाददाता को किसी क्षेत्र या विषय यानी बीट की दैनिक रिपोर्टिंग की ज़िम्मेदारी। यह एक तरह के रिपोर्टर का कार्यक्षेत्र निश्चित करना है। जैसे कोई संवाददाता शिक्षा बीट कवर या इंफोटेन्मेंट कहते हैं।

सीधा प्रसारण (लाइव)-रेडियो और टेलीविज़न में जब किसी घटना या कार्यक्रम को सीधा घटित होते हुए दिखाया या सुनाया जाता है तो उस प्रसारण को सीधा प्रसारण (लाइव) कहते हैं। रेडियो में इसे आँखों देखा हाल भी कहते हैं जबकि टेलीविज़न के परदे पर सीधे प्रसारण के समय लाइव लिख दिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि उस समय आप जो भी देख रहे हैं, वह बिना किसी संपादकीय काट-छाँट के सीधे आप तक पहुँच रहा है।

स्टिंग आपरेशन-जब किसी टेलीविज़न चैनल का पत्रकार छुपे टेलीविज़न कैमरे के जरिए किसी गैर-कानूनी, अवैध और असामाजिक गतिविधियों को फ़िल्माता है और फिर उसे अपने चैनल पर दिखाता है तो इसे स्टिंग आपरेशन कहते हैं। कई बार चैनल ऐसे आपरेशनों को गोपनीय कोड दे देते हैं। जैसे आपरेशन दुर्योधन या चक्रव्यूह । हाल के वर्षों में समाचार चैनलों पर सरकारी कार्यालयों आदि में भ्रष्टाचार के खुलासे के लिए स्टिंग आपरेशनों के इस्तेमाल की प्रवृत्ति बढ़ी है।

गत वर्षों में पूछे गए प्रश्नः

प्रश्नः 1.
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की दो विशेषताएँ लिखिए। (CBSE-2016, 2017)
उत्तरः

  1. यह विशाल क्षेत्र में पहुँच जाता है।
  2. इसमें दृश्य व श्रव्य माध्यम हैं।

प्रश्नः 2.
संपादक के दो दायित्वों का उल्लेख कीजिए। (CBSE-2012, 2015, 2016)
उत्तरः

  1. विभिन्न स्रोतों से प्राप्त समाचारों का चुनाव कर प्रकाशन योग्य बनाना।
  2. तात्कालिक घटनाओं पर संपादकीय लेख लिखना।

प्रश्नः 3.
संपादकीय का महत्त्व समझाइए। (CBSE-2016, 2017)
उत्तरः
संपादकीय किसी भी समाचार पत्र की आवाज़ होता है। यह एक निश्चित जगह पर छपता है। यह समाचार पत्र की राय है।

प्रश्नः 4.
रेडियो माध्यम भाषा की दो विशेषताएँ लिखिए। (CBSE-2016)
उत्तरः

  1. रेडियो माध्यम की भाषा आम बोलचाल की होनी चाहिए।
  2. इसमें सटीक मुहावरों का प्रयोग भी होना चाहिए।

प्रश्नः 5.
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ क्यों कहा जाता है? (CBSE-2016)
उत्तरः
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, क्योंकि यह जनसमस्याओं को शेष तीनों स्तंभों के सामने प्रस्तुत करता है तथा इन तीनों स्तंभों के कार्यों की समीक्षा भी करता है।

प्रश्नः 6.
अंशकालिक पत्रकार से आप क्या समझते हैं ? (CBSE-2015, 2017)
उत्तरः
अंशकालिक पत्रकार वे पत्रकार हैं जो किसी भी समाचार पत्र में स्थायी नहीं होते। ये एक से अधिक अखबारों के लिए सामग्री एकत्रित करते हैं।

प्रश्नः 7.
पेज थ्री पत्रकारिता क्या है? (CBSE-2014, 2015)
उत्तरः

पीत पत्रकारिता को ‘पेज थ्री’ पत्रकारिता कहा जाता है। यह प्राय: चरित्रहीनता से संबंधित होती है। इसमें सनसनीखेज़ खबर होती है।

प्रश्नः 8.
जनसंचार का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2015)
उत्तरः
जब व्यक्तियों के समूह के साथ संवाद किसी तकनीकी या यांत्रिकी के माध्यम से समाज के एक विशाल वर्ग से किया जाता है तो इसे जनसंचार कहते हैं।

प्रश्नः 9.
आल इंडिया रेडियो की स्थापना कब हुई ? आजकल यह किस संस्था के अंतर्गत है? (CBSE-2015)
उत्तरः
आल इंडिया रेडियो की स्थापना 1936 ई० में हुई। आजकल यह फ्रिक्वेंसी मॉड्यूलेशन संस्था के अंतर्गत है।

प्रश्नः 10.
फ़ीचर के दो लक्षण लिखिए। (CBSE-2014, 2015)
उत्तरः

  1. फ़ीचर एक सृजनात्मक, सुव्यवस्थित व आत्मनिष्ठ लेखन है जो पाठक को मनोरंजक रूप में जानकारी देता है।
  2. इसकी भाषा सरल, आकर्षक व मन को छूने वाली होनी चाहिए।

प्रश्नः 11.
पत्रकार किसे कहते हैं? (CBSE-2015)
उत्तरः
वह व्यक्ति जो समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपने के लिए लिखित रूप में सामग्री देने, सूचनाएँ और समाचार एकत्र करता है, पत्रकार कहलाता है।

प्रश्नः 12.
डेडलाइन किसे कहते हैं? (CBSE-2014, 2015)
उत्तरः
अखबार में समाचार या रिपोर्ट को प्रकाशन हेतु स्वीकार करने के लिए एक निश्चित समय-सीमा होती है। इसी को डेड लाइन कहते हैं।

प्रश्नः 13.
वॉचडॉग पत्रकारिता से क्या आशय है? (CBSE-2015, 2017)
उत्तरः
वह पत्रकारिता जो सरकार के कामकाज पर निगाह रखती है तथा भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करती है, वॉचडॉग पत्रकारिता कहलाता है।

प्रश्नः 14.
ब्रेकिंग न्यूज का क्या आशय है? (CBSE-2015)
उत्तरः
ब्रेकिंग न्यूज वह है जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण तथा तुरंत प्राप्त होती है। यह बहुत कम शब्दों में दर्शकों तक पहुँचाई जाती है।

प्रश्नः 15.
संचार प्रक्रिया में फीडबैक किसे कहते हैं और इसका क्या महत्त्व है? (CBSE-2015)
उत्तरः
कूटीकृत संदेश के पहुंचने पर प्राप्तकर्ता अपनी राय व्यक्त करता है। यही फीडबैक है। इससे संदेश के पहुँचने का पता चलता है।

प्रश्नः 16.
‘समाचार’ शब्द को परिभाषित कीजिए। (CBSE-2017)
उत्तरः
समाचार किसी भी ऐसी ताज़ा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है जिसमें अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो व असरकारक है।

प्रश्नः 17.
इंटरनेट की लोकप्रियता के दो कारणों का उल्लेख कीजिए। (CBSE-2015)
उत्तरः

  1. यह संप्रेषण का बेहतरीन साधन है।
  2. यह दृश्य, श्रव्य व भागीदारी का माध्यम है।

प्रश्नः 18.
किसी समाचार की प्रस्तुति में जनरुचि का क्या महत्त्व है? (CBSE-2015)
उत्तरः
समाचार पत्रों में जनरुचि के अनुसार ही खबरों को स्थान दिया जाता है। राजनीति, खेल, हिंसा, अर्थ आदि खबरें पाठक वर्ग की रुचि के अनुसार महत्ता पाती हैं।

प्रश्नः 19.
संपादन में वस्तुपरकता से क्या तात्पर्य है? (CBSE-2015)
उत्तरः
वस्तुपरकता का आशय है-समाचार, घटनाएँ तथा तथ्य उसी रूप में प्रस्तुत किए जाएँ, जिस रूप में वे घटित हुए हों। इनमें दबाव के कारण बदलाव नहीं आना चाहिए।

प्रश्नः 20.
कार्टून कोना किसे कहते हैं? (CBSE-2015)
उत्तरः
कार्टून कोना समाचार पत्र के कोने पर होता है। इसके माध्यम से की गई सटीक टिप्पणियाँ पाठक को छूती हैं। यह एक तरह से हस्ताक्षरित संपादकीय है।

प्रश्नः 21.
पत्रकार के दो प्रकार लिखिए। (CBSE-2015)
उत्तरः
पूर्वकालिक पत्रकार, अंशकालिक पत्रकार, स्वतंत्र पत्रकार ।

प्रश्नः 22.
एंकर बाइट किसे कहते हैं? (CBSE-2013, 2015, 2017)
उत्तरः
एंकर बाइट किसी घटना से संबंधित व्यक्तियों का वह कथन है जिसे घटना की सूचना व उसके दृश्य के साथ दिखाया जाता है ताकि खबर प्रामाणिक हो सके।

प्रश्नः 23.
विशेष लेखन क्या है? (CBSE-2012, 2013, 2015)
उत्तरः
किसी विशेषज्ञ द्वारा विषय पर लिखा गया विशेष लेख विशेष लेखन कहलाता है।

प्रश्नः 24.
जनसंचार का आधुनिकतम माध्यम क्या है? (Sample Paper-2014)
उत्तरः
इंटरनेट।

प्रश्नः 25.
फ़ीचर किसे कहा जाता है? (CBSE-2013, 2014, 2015)
उत्तरः
फ़ीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने के
साथ मुख्य रूप से उसका मनोरंजन करना होता है।

प्रश्नः 26.
प्रमुख जनसंचार माध्यम कौन-से हैं? (CBSE-2013, 2015)
उत्तरः
रेडियो, टी०वी०, अखबार, इंटरनेट आदि।

प्रश्नः 27.
समाचार लेखन की बहुप्रचलित शैली कौन-सी है? (CBSE-2015)
उत्तरः
उलटा पिरामिड शैली।

प्रश्नः 28.
भारत में पहला छापाखाना कब और कहाँ खुला? (CBSE-2014)
उत्तरः
भारत में पहला छापाखाना 1556 ई० में गोवा में खुला।

प्रश्नः 29.
किन्हीं दो राष्ट्रीय समाचार पत्रों के नाम लिखिए। (CBSE-2014)
उत्तरः
दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, जनसत्ता।

प्रश्नः 30.
एनकोडिंग से आप क्या समझते हैं? (CBSE-2014)
उत्तरः
संदेश भेजने के लिए शब्दों, संकेतों या ध्वनि चित्रों का उपयोग किया जाता है। भाषा भी एक प्रकार का कोड है। प्राप्तकर्ता को समझाने योग्य कूटों में संदेश बाँधना एनकोडिंग कहा जाता है।

प्रश्नः 31.
‘फ़ोन इन’ का आशय समझाइए। (CBSE-2017)
उत्तरः
फ़ोन-इन वे सूचनाएँ या समाचार हैं जो घटनास्थल पर मौजूद रिपोर्टर से फ़ोन पर बातें करके एंकर दर्शकों तक पहुँचाता

प्रश्नः 32.
पत्रकारिता में बीट’ शब्द का क्या अर्थ है? (CBSE-2010, 2014)
उत्तरः
पत्रकारिता में खबरों के प्रकार को बीट कहते हैं, जैसे-राजनीतिक, आर्थिक, खेल, फ़िल्म तथा कृषि आदि। इनके आधार पर संवाददाताओं को काम दिया जाता है।

प्रश्नः 33.
संपादकीय में लेखक का नाम क्यों नहीं होता? (CBSE-2014)
उत्तरः
संपादकीय में लेखक का नाम नहीं होता, क्योंकि यह व्यक्ति विशेष का विचार नहीं होता, बल्कि अखबार का दृष्टिकोण व्यक्त करता है।

प्रश्नः 34.
स्वतंत्र पत्रकार किसे कहा जाता है? (CBSE-2014, Sample Paper-2014)
उत्तरः
ऐसा पत्रकार किसी अखबार विशेष से न बँधकर भुगतान के आधार पर अलग-अलग अखबारों के लिए लिखता है।

प्रश्नः 35.
स्तंभ लेखन से आप क्या समझते हैं? (CBSE-2014)
उत्तरः
स्तंभ लेखन वे विचारपरक लेख हैं जो कुछ विशेष लेखकों द्वारा अपनी वैचारिकता को व्यक्त करने की अलग शैली है।

प्रश्नः 36.
पत्रकारिता की भाषा में मुखड़ा (इंट्रो) किसे कहते हैं ? (CBSE-2014, 2017)
उत्तरः
इंट्रो को पत्रकारिता की भाषा में मुखड़ा कहते हैं। इसे समाचार के पहले पैराग्राफ़ की शुरुआत दो-तीन पंक्तियों में 3-4 ककारों के आधार पर लिखा जाता है।

प्रश्नः 37.
एडवोकेसी पत्रकारिता क्या हैं? (CBSE-2014)
उत्तरः
इस पत्रकारिता में वे समाचार संगठन होते हैं जो किसी विधारधारा या किसी खास मुद्दे को उठाकर आगे बढ़ाते हैं और उसके पक्ष में जनमत बनाने के लिए जोर-शोर से अभियान चलाते हैं।

प्रश्नः 38.
संपादकीय किसे कहते हैं? (CBSE-2010, 2013, 2014)
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाला अनाम लेख को संपादकीय कहा जाता है। इसके जरिए अखबार अपनी राय प्रकट करता है।

प्रश्नः 39.
मुद्रित माध्यम की किसी एक विशेषता को स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2013)
उत्तरः
मुद्रित माध्यम में स्थायित्व होता है।

प्रश्नः 40.
हिंदी में नेट पत्रकारिता में सबसे बड़ी अड़चन क्या है? (CBSE-2013)
उत्तरः
हिंदी में नेट पत्रकारिता की सबसे बड़ी अड़चन फॉन्ट है।

प्रश्नः 41.
ऐसे चार हिंदी समाचार पत्रों के नाम लिखिए जिनके वेब (नेट) संस्करण भी उपलब्ध हैं। (CBSE-2013)
उत्तरः
दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी।

प्रश्नः 42.
समाचार लेखन के छह ककारों के नाम लिखिए। (CBSE-2017)
उत्तरः
समाचार लेखन के छह ककार हैं-क्या, किसके, कहाँ, कब, कैसे तथा क्यों।

प्रश्नः 43.
खोजपरक पत्रकारिता किसे कहा जाता है? (CBSE-2013)
उत्तरः
वह पत्रकारिता जो भ्रष्टाचार, अनियमितता, गड़बड़ी आदि को उजागर करती है, खोजपरक पत्रकारिता कहलाती है।

प्रश्नः 44.
मुद्रित माध्यम की एक विशेषता बताइए जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में नहीं है? (CBSE-2013)
उत्तरः
मुद्रित माध्यम में स्थायित्व होता है जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में नहीं है।

प्रश्नः 45.
हिंदी में प्रकाशित किन्हीं चार दैनिक समाचार पत्रों के नाम लिखिए। (CBSE-2012)
उत्तरः
दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी।

प्रश्नः 46.
किन्हीं दो हिंदी समाचार चैनलों के नाम लिखिए। (CBSE-2010)
उत्तरः
आजतक, एबीपी, एनडीटी०वी० ।

प्रश्नः 47.
समाचार और फ़ीचर में क्या अंतर होता है? (CBSE-2010)
उत्तरः
समाचार में किसी घटना का यथातथ्य वर्णन होता है जबकि फ़ीचर का उद्देश्य पाठक को शिक्षित करने के साथ मनोरंजन करना भी है।

प्रश्नः 48.
विशेष लेखन के किन्हीं दो प्रकारों का नामोल्लेख कीजिए। (CBSE-2010)
उत्तरः
खेल, शिक्षा, व्यवसाय आदि।

प्रश्नः 49.
समाचार लेखन कौन करते हैं? (Sample Paper-2015)
उत्तरः
समाचार लेखन संवाददाता करते हैं।

प्रश्नः 50.
अखबार अन्य माध्यमों से अधिक लोकप्रिय क्यों हैं? एक मुख्य कारण लिखिए।(Sample Papper-20)
उत्तरः
अखबार अन्य माध्यमों से अधिक लोकप्रिय हैं क्योंकि इसमें स्थायित्व है। इसका प्रयोग सुविधानुसार किया जा सकता है।

प्रश्नः 51.
पत्रकारीय लेखन में सर्वाधिक महत्त्व किस बात का है?
उत्तरः
पत्रकारीय लेखन में सर्वाधिक महत्त्व समसामयिक घटनाओं की जानकारी पर है।

प्रश्नः 52.
वेब पत्रकारिता से क्या आशय है?(CBSE-2012)
उत्तरः
जो पत्रकारिता इंटरनेट के जरिए की जाए, उसे बेव पत्रकारिता कहते हैं।

प्रश्नः 53.
उलटा पिरामिड शैली क्या है? (CBSE-2012)
उत्तरः
वह शैली जिसमें महत्त्वपूर्ण तथ्यों के बाद घटते हुए महत्त्वक्रम से अन्य तथ्यों व सूचनाओं को लिखा जाता है। उलटा पिरामिड शैली होती है।

प्रश्नः 54.
इंटरनेट पत्रकारिता के दो लाभ लिखिए। (CBSE-2017)
उत्तरः

  1. इसकी गति तीव्र होती है।
  2. इसे कहीं भी पढ़ा जा सकता है।

प्रश्नः 55.
विशेष रिपोर्ट के मूलभूत तत्व क्या हैं? (CBSE-2012)
उत्तरः
गहरी छानबीन, तथ्यों का एकत्रीकरण, विश्लेषण तथा व्याख्या।

प्रश्नः 56.
पत्रकारिता की भाषा में साक्षात्कार का क्या आशय है? (CBSE-2011)
उत्तरः
पत्रकारिता में साक्षात्कार के जरिए समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट आदि के लिए कच्चा माल इकट्ठा किया जाता है। पत्रकार अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय व भावनाएँ जानने के लिए सवाल पूछता है।

प्रश्नः 57.
ड्राई एंकर से क्या तात्पर्य है? (CBSE-2011)
उत्तरः
ड्राई एंकर वह है जो समाचार के चित्र नहीं आने तक दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारी के आधार पर घटना से संबंधित सूचना देता है।

प्रश्नः 58.
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से क्या तात्पर्य है? (CBSE-2011)
उत्तरः
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में रेडियो, टेलीविज़न, कंप्यूटर, इंटरनेट आते हैं।

प्रश्नः 59.
रेडियो की अपेक्षा टी०वी० समाचारों की लोकप्रियता के दो कारण लिखिए। (CBSE-2011)
उत्तरः

  1. टी०वी० पर चित्र होने के साथ समाचार अधिक विश्वसनीय हो जाता है।
  2. इनके साथ दर्शक सीधे रूप से जुड़ जाता है।

प्रश्नः 60.
रेडियो नाटक से आप क्या समझते हैं? (CBSE-2010)
उत्तरः
रेडियो पर मनोरंजन के लिए प्रसारित होने वाले नाटक रेडियो नाटक कहलाते हैं।

प्रश्नः 61.
पत्रकारीय लेखन और साहित्यिक सृजनात्मक लेखन में क्या अंतर है?
उत्तरः
पत्रकारीय लेखन में पत्रकार पाठकों, दर्शकों व श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं, जबकि साहित्यिक सृजनात्मक लेखन में चिंतन के जरिए नई रचना का उद्भव होता है।

प्रश्नः 62.
फ़ीचर लेखन की भाषा-शैली कैसी होनी चाहिए? (Sample Paper-2009)
उत्तरः
फ़ीचर लेखन की भाषा, सरल, रूपात्मक, आकर्षक व मन को छूने वाली होनी चाहिए।

प्रश्नः 63.
पत्रकारिता का मूल तत्व क्या है? (Sample Paper-2009)
उत्तरः
पत्रकारिता का मूल तत्व लोगों की जिज्ञासा की भावना ही है।

प्रश्नः 64.
जनसंचार के प्रचलित माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम क्या है? (CBSE-2009)
उत्तरः
मुद्रित माध्यम।

प्रश्नः 65.
फ़्लैश किसे कहते हैं? (CBSE-2009)
उत्तरः
वह बड़ी खबर जो कम-से-कम शब्दों में दर्शकों तक तत्काल महज सूचना के रूप में दी जाती है, फ़्लैश कहलाती है।

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कार्यालयी पत्र | class 12th | Hindi कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन ncert solution

Class 12 Hindi कार्यालयी पत्र

कार्यालयी पत्र

पत्र लिखना भी एक बहुत बड़ी और अद्भुत कला है। यह कला परिश्रम व अभ्यास द्वारा ही हासिल की जा सकती है। सही ढंग से लिखा गया पत्र न केवल हमारा प्रभुत्व बढ़ाता है, बल्कि हमारे व्यक्तित्व की छाप भी पाठक पर अवश्य छोड़ता है। हम पत्रों के माध्यम से न केवल दूसरों के दिलों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि मैत्री बढ़ा सकते हैं तथा अपने समाज को वश में कर सकते हैं। अतः पत्र लिखना एक ऐसी कला है जिसके लिए बुद्धि और ज्ञान की परिपक्वता, विचारों की विविधता, विषय का ज्ञान, अभिव्यक्ति की शक्ति और भाषा पर नियंत्रण की आवश्यकता होती है। इसके बिना हमारे पत्र अत्यंत साधारण होंगे। पत्र केवल हमारे कुशल समाचारों के आदान-प्रदान का माध्यम ही नहीं, बल्कि उसके द्वारा आज के वैज्ञानिक युग में संपूर्ण कार्य व्यापार चलता है तथा इसकी आवश्यकता और उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता। अतः इसे लिखने और इसके आकार-प्रकार की पूरी जानकारी होनी अतिआवश्यक है।

पत्र-लेखन की विशेषताएँ –

1. सरलता – पत्र की भाषा सरल, स्वाभाविक तथा स्पष्ट होनी चाहिए। इसमें कठिन शब्द या साहित्यिक भाषा का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि जटिल व क्लिष्ट भाषा के प्रयोग से पत्र नीरस व प्रभावहीन बन जाते हैं।

2. स्पष्टता – जो भी हमें पत्र में लिखना है, यदि वह स्पष्ट, सुमधुर होगा तो पत्र उतना ही प्रभावशाली होगा। सरल भाषा शैली, शब्दों का चयन, वाक्य रचना की सरलता पत्र को प्रभावशाली बनाने में हमारी सहायता करती है। इसलिए भारी भरकम और अप्रचलित शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए तथा छोटे व प्रवाहपूर्ण वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए। हमें ऐसे विचार नहीं लिखने चाहिए जो अस्पष्ट हों।

3. संक्षिप्तता – पत्र में अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए। पत्र जितना संक्षिप्त व गठा हुआ होगा, उतना ही अधिक प्रभावशाली भी होगा। संक्षिप्तता का अर्थ यह भी नहीं कि पत्र अपने-आप में पूर्ण न हो। जो कुछ भी पाठक द्वारा कहा जाना है, वह व्यर्थ के शब्द-जाल से मुक्त होना चाहिए। अतः जो कुछ भी पत्र में कहा जाए, कम से कम शब्दों में कहना चाहिए।

4. प्रभावोत्पादकता – पत्र की शैली से पाठक प्रभावित हो सके तभी वह सफल मानी जाती है। हमारे विचारों की छाप उस पर पड़नी चाहिए, अतः इसके लिए शैली का परिमार्जित होना भी आवश्यक होता है। अच्छी व शुद्ध भाषा के बिना पत्र अपना असली रूप ग्रहण नहीं करता। वाक्यों का नियोजन, शब्दों का प्रयोग, मुहावरों का प्रयोग-अच्छी भाषा के गुण होते हैं। हमें सदा इसका प्रयोग करके पत्र को प्रभावशाली बनाने का प्रयास करना चाहिए।

5. आकर्षकता व मौलिकता – पत्र का आकर्षक होना भी महत्त्वपूर्ण होता है। विशेषकर व्यापारिक व कार्यालयी पत्र स्वच्छता से टाइप किया हुआ होना चाहिए। मौलिकता भी पत्र का एक महत्त्वपूर्ण गुण है। पत्र लिखते समय प्रचलित घिसे-पिटे वाक्यों के प्रयोग से बचना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि पत्र में हम अपने विषय में कम तथा प्राप्तकर्ता के विषय में अधिक लिख रहे हों।

6. उददेश्यपूर्णता – कोई भी पत्र अपने कथन या मंतव्य में स्वत: संपूर्ण होना चाहिए। उसे पढने के उपरांत तदविषयक किसी प्रकार की जिज्ञासा, शंका या स्पष्टीकरण की आवश्यकता शेष नहीं रहनी चाहिए। कई बार देखा गया है कि पत्र लेखक जिस विचार से पत्र लिखना आरंभ करता है, वह अप्रकट या अपूर्ण रह जाता है, लेकिन फिजूल बातों से ही पत्र भर जाता है। इसलिए पत्र लिखते समय इस बात का विशिष्ट ध्यान रखा जाना चाहिए कि कथ्य अपने-आप में पूर्ण तथा उद्देश्य की पूर्ति करने वाला हो।

7. शिष्टता – किसी पत्र में उसके लेखक के व्यक्तित्व, स्वभाव, पद-प्रतिष्ठा-बोध और व्यावहारिक आचरण की झलक मिलती है। सरकारी, व्यावसायिक तथा अन्य औपचारिक पत्र की भाषा-शैली शिष्टतापूर्ण होनी चाहिए। अस्वीकृति, शिकायत, खीझ या नाराजगी भी शिष्ट भाषा में प्रकट की जाए तो उसका अधिक लाभकारी प्रभाव पड़ता है। उदाहरणतः किसी  आवेदनकर्ता के आवेदन की अस्वीकृति इन शब्दों में भेजी जा सकती है –

‘खेद है कि हम आपकी सेवाओं का उपयोग नहीं कर सकेंगे।’

8. चिह्नांकन-पत्र में प्रयुक्त चिह्न पर हमें विशेष ध्यान देना चाहिए। चिह्नांकन अनुच्छेद (पैराग्राफ) का प्रयोग समुचित किया जाना चाहिए। हर नए विचार, नई बात के लिए पैराग्राफ, अल्पविराम, अर्ध विराम, पूर्णविराम, कोष्ठक आदि का प्रयोग उचित स्थल पर ही होना चाहिए। इससे पत्र-कला में निखार आता है।

पत्र के अंग

पत्र अनेक प्रकार के होते हैं। विषय, संदर्भ, व्यक्ति और क्षेत्र के अनुसार अनेक प्रकार के पत्रों को लिखने का तरीका भी भिन्न-भिन्न होता है। यहाँ हम व्यावसायिक (औपचारिक) तथा निजी (अनौपचारिक) पत्रों के लिखने के लिए आवश्यक तथ्यों-संकेतों पर प्रकाश डालेंगे –

(क) प्रेषक का नाम व पता-व्यावसायिक पत्रों में सबसे ऊपर लिखने वाले का नाम व पता दिया होता है ताकि पाने वाला पत्र देखते ही समझ जाए कि पत्र किसने भेजा है और कहाँ से आया है ? प्रेषक का नाम व पता ऊपर की ओर दाएँ कोने में दिया जाता है। पते के नीचे टेलीफ़ोन नंबर तथा उसके नीचे दिनांक के लिए स्थान निर्धारित रहता है। सरकारी पत्रों में उसके ठीक सामने बाईं ओर पत्र का संदर्भ व पत्र-संख्या लिखी जाती है।

(ख) पाने वाले का नाम व पता-प्रेषक के बाद पृष्ठ की बाईं ओर पत्र पाने वाले का नाम व पता लिखा जाता है। नाम की जगह कभी-कभी केवल पदनाम भी लिखते हैं। कभी-कभी नाम व पदनाम दोनों भी लिखा जाता है अर्थात् पाने वाले का पूरा विवरण इस प्रकार होना चाहिए- नाम, पदनाम, कार्यालय का नाम, स्थान, जिला, शहर और पिन-कोड।

(ग) विषय-संकेत-औपचारिक पत्रों में यह आवश्यक होता है कि जिस विषय में पत्र लिखा जा रहा है, उस विषय को अत्यंत संक्षेप में पाने वाले के नाम और पते के पश्चात् बाएँ ओर से ‘विषय’ शीर्षक देकर लिखना चाहिए। इससे पत्र देखते ही पता चल जाता है कि मूल रूप में पत्र का विषय क्या है।

(घ) संबोधन-विषय के बाद पत्र के बाईं ओर संबोधन सूचक शब्द का प्रयोग किया जाता है। व्यक्तिगत पत्र में प्रिय लिखकर प्राप्तकर्ता का नाम या उपनाम दिया जाता है; जैसे–’प्रिय रमेश’, ‘प्रिय राधा’ आदि। अपने से बड़ों के लिए प्रिय के स्थान पर पूज्य, मान्यवर, श्रद्धेय आदि शब्दों का प्रयोग होता है। सरकारी पत्रों में यह कार्य ‘प्रिय महोदय’ या प्रिय महोदया के द्वारा संपन्न कर लिया जाता है।

(ङ) पत्र की मुख्य सामग्री-संबोधन के पश्चात् पत्र की मूल सामग्री लिखी जाती है। आवश्यकता, समय तथा परिस्थिति के अनुसार विषय में परिवर्तन होता रहता है।

(च) समापन-सूचक शब्द-पत्र की सामग्री समाप्त होने पर प्रेषक प्राप्तकर्ता से अपने संबंध और विषय की औपचारिकता अनौपचारिकता के अनुसार कुछ समापन सूचक शब्दों का प्रयोग कर पत्र समाप्त करता है। बड़ों के लिए ‘आपका आज्ञाकारी’, ‘आपका प्रिय’, बराबर वालों के लिए ‘स्नेहशील’, दर्शनाभिलाषी’, ‘स्नेही’ और छोटों के लिए ‘शुभचिंतक’, ‘शुभाकांक्षी’ जैसे शब्द प्रयोग किये जाते हैं। औपचारिक व्यावसायिक पत्रों में साधारणतः ‘भवदीय’ लिखा जाता है। उपर्युक्त सभी समापन शब्द मूल सामग्री के तुरंत बाद नई पंक्ति में दाएँ कोने में लिखा जाना चाहिए।

(छ) हस्ताक्षर और नाम-समापन शब्द के ठीक नीचे भेजने वाले के हस्ताक्षर होते हैं। हस्ताक्षर के ठीक नीचे कोष्ठक में भेजने वाले का पूरा नाम व पता भी अवश्य दिया जाना चाहिए। इसका कारण यह है कि हस्ताक्षर प्रायः सुपाठ्य नहीं होते, अतः प्रेषक का नाम भी लिखा होना चाहिए।

(ज) संलग्नक-सरकारी-पत्रों में प्रायः मूलपत्र के साथ अन्य आवश्यक कागजात भी भेजे जाते हैं। इन्हें उस पत्र के ‘संलग्न पत्र’ या ‘संलग्नक’ कहते हैं। इस स्थिति में समापन सूचक शब्द ‘भवदीय’ आदि के ठीक बाएँ और थोड़ा नीचे ‘संलग्नक’ शीर्षक देकर उसके आगे संख्या 1, 2, 3, के द्वारा संकेत दिया जाता है।

(झ) पुनश्च-कभी-कभी पत्र लिखते समय मूल सामग्री में से किसी महत्त्वपूर्ण अंश के छूट जाने पर इसका प्रयोग होता है। ‘समापनसूचक शब्द’, ‘हस्ताक्षर’, ‘संलग्नक’ आदि सब कुछ लिखने के पश्चात् कागज पर अंत में सबसे नीचे या उसके पृष्ठ भाग पर ‘पुनश्च’ शीर्षक देकर छूटी हुई सामग्री लिखकर एक बार पुनः हस्ताक्षर कर दिए जाते हैं।

औपचारिक व अनौपचारिक पत्र आरंभ तथा समाप्त करने की तालिका
CBSE Class 12 Hindi कार्यालयी पत्र 1

उपर्युक्त समस्त आवश्यक बातों को व्यावहारिक रूप में समझने के लिए निम्नलिखित प्रारूप प्रस्तुत किए जा रहे हैं –

पत्रों के प्रकार

विभिन्न प्रकार के पत्रों का विभाजन मूलतः दो वर्गों में किया जा सकता है –

  1. औपचारिक पत्र
  2. अनौपचारिक पत्र

1. औपचारिक पत्र-विशिष्ट नियम-विधानों में आबद्ध पत्र ‘औपचारिक पत्र’ कहलाते हैं। औपचारिक पत्रों की परिधि बहुत व्यापक है। इसके अनेकानेक रूप अथवा प्रकार संभव हैं जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं –

  1. सरकारी पत्र
  2. व्यावसायिक पत्र
  3. संपादक के नाम पत्र
  4. शोक पत्र
  5. अर्धसरकारी पत्र
  6. आवेदन पत्र
  7. शिकायती पत्र
  8. निमंत्रण पत्र
  9. विज्ञापन पत्र
  10. अनुस्मारक पत्र
  11. बधाई पत्र
  12. शुभकामना पत्र।

इन सभी प्रकार के पत्रों के उत्तर में लिखे जाने वाले पत्र भी अपना अलग अस्तित्व और महत्त्व रखते हैं। इस प्रकार औपचारिक पत्रों के अनेक भेद संभव हैं।

2. अनौपचारिक पत्र-जो पत्र निजी, व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक होते हैं, वे ‘अनौपचारिक-पत्र’ कहलाते हैं। ऐसे पत्रों में किसी प्रकार की विशेष विधि अथवा नियम-पद्धति के पालन की आवश्यकता नहीं होती। इस पत्र में किसी तरह की औपचारिकता के निर्वाह का बंधन नहीं होता। इन पत्रों में प्रेषक अपनी बात व भावना को उन्मुक्तता के साथ, बिना संकोच के लिख सकता है। इन पत्रों का प्राण तत्व आत्माभिव्यक्ति, निजीपन और आत्मीयता है। ये आकार-प्रकार में अत्यंत लचीले होते हैं, अर्थात् संक्षिप्त भी हो सकते हैं तो अत्यंत विस्तृत भी।
CBSE Class 12 Hindi कार्यालयी पत्र Q2

CBSE Class 12 Hindi कार्यालयी पत्र Q2.1
CBSE Class 12 Hindi कार्यालयी पत्र Q2.2

उदाहरण

औपचारिक पत्र

प्रश्नः 1.
दिल्ली परिवहन निगम के मुख्य प्रबंधक को पत्र लिखकर एक बस कर्मचारी के प्रशंसनीय और साहसिक व्यवहार की सूचना देते हुए उसे सम्मानित करने का आग्रह कीजिए।
उत्तरः

प्रति महाप्रबंधक
दिल्ली परिवहन निगम
सिंधिया हाउस, नई दिल्ली।

महोदय

मैं इस पत्र के द्वारा आपका ध्यान आपके विभाग के एक साहसी तथा कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारी के व्यवहार की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ तथा आशा करता हूँ कि आप उस कर्मचारी को उचित पुरस्कार देकर सम्मानित करेंगे।

मैं दिनांक 6 फरवरी को विकासपुरी मोड़ से 851 रूट की बस नं0 DL-1P-7486 में प्रात:काल 7-30 बजे चढ़ा। बस में काफ़ी भीड़ थी। अत: मैं पीछे ही खड़ा था। बस मोतीनगर पहुँची थी कि आठ-दस लोगों की भीड़ पीछे से चढ़ी और तभी मेरी जेब से मेरा पर्स गायब हो गया। मैंने शोर मचाया, तो एक व्यक्ति बस से कूद कर भाग निकला। कंडक्टर श्री रविकांत ने बस रुकवाई और उसके पीछे भाग लिया। उस व्यक्ति ने चाकू दिखाया, मगर इसका रविकांत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और उसने उसे धर दबोचा तथा उसे पुलिस के हवाले कर दिया। मेरा पर्स सही सलामत मुझे वापस मिल गया। मैंने उसे सौ रुपये पुरस्कार स्वरूप देने चाहे, मगर उसने सधन्यवाद लौटा दिये। ऐसे कर्तव्यनिष्ठ एवं साहसी कर्मचारी कम ही देखे जाते हैं, जो अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की सहायता करते हैं। अतः आप से निवेदन है कि श्री रविकांत, जिनका बैज नं० 34560 है, को सम्मानित करके अन्य कर्मचारियों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करें।

भवदीय
रमेश गुप्ता
644, विकासपुरी, नई दिल्ली
दिनांक : 11 फरवरी, 20XX

प्रश्नः 2.
अपने क्षेत्र के पोस्टमास्टर साहब को इस आशय का पत्र लिखिए कि आपके क्षेत्र में डाक का वितरण ठीक से नहीं हो रहा है।
उत्तरः

सेवा में
पोस्टमास्टर महोदय
डाकघर राजौरी गार्डन
नई दिल्ली

महोदय

मैं राजौरी गार्डन बी-27 का रहने वाला हूँ। मैं इस पत्र के द्वारा अपने क्षेत्र की डाक वितरण की अनियमितताओं की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ।

मान्यवर, पिछले चार माह से इस क्षेत्र में डाक-वितरण का काम ठीक से नहीं हो रहा है। पोस्टमैन पत्रों को या तो घरों के जीने में फेंक जाता है या जीने के सामने खड़े किसी बच्चे के हाथ में पकड़ा जाता है। अनेक बार महत्त्वपूर्ण पत्र या तो दूसरे के घरों में पहुँच जाते हैं या देर से मिलते हैं। डाक-वितरण की व्यवस्था दिन में तीन बार है, जबकि हमारे पोस्टमैन महोदय एक से अधिक बार नहीं आते। हमारे क्षेत्र के निवासियों की आम शिकायत है कि ये पोस्टमैन साहब त्यौहारों के अवसर पर बखशीश देने को बाध्य करते हैं तथा न देने वालों की डाक में गड़बड़ी कर देते हैं। कई बार हमने पोस्टमैन को समझाने की चेष्टा की, मगर उसके कान पर तक न रेंगी। इसीलिए हारकर हमें आपका दरवाजा खटखटाना पड़ा। अतः आपसे प्रार्थना है कि आप इस विषय में जाँच-पड़ताल कर डाक वितरण ठीक करने की कृपा करें तथा संबंधित पोस्टमैन को उचित चेतावनी देकर यथासंभव उन्हें दंडित करें। इसके लिए हम आपके सदैव आभारी रहेंगे।

धन्यवाद।
भवदीय
जे० पी० गुप्ता
सचिव
राजौरी गार्डन कल्याण समिति,
नई दिल्ली।
दिनांक : 16-3-20XX

प्रश्नः 3.
अपने नगर विकास प्राधिकरण के सचिव को अपनी कालोनी के पार्क के विकास के लिए पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
सचिव
दिल्ली नगर विकास प्राधिकरण
टाउन हाल
दिल्ली

महोदय

मैं आपका ध्यान दिल्ली महानगर के शक्तिनगर क्षेत्र के पार्क की अव्यवस्था और उपेक्षा की ओर दिलाना चाहता हूँ। इस क्षेत्र में दिल्ली विकास प्राधिकरण की ओर से पार्क के लिए स्थान छोड़े गए हैं। उनकी चारदीवारी भी की गयी है, लेकिन इससे आगे कोई कदम लगातार दो वर्षों से आगे नहीं बढ़ा है। दुख और चिंता की बात यह है कि पार्कों के लिए इन छोड़ी हुई जगहों में कूड़ों के ढेर दिखाई देने लगे हैं। इससे बड़ी बदबू आती है। बीमारी के बढ़ने की आशंका भी पैदा हो गई है।

यदि पार्क के लिए छोड़े हुए इन स्थानों में अच्छे पेड़-पौधे और घास को लगा दिया जाए तो कॉलोनी निवासियों को स्वास्थ्य लाभ, सैर-सपाटे, व्यायाम आदि का अच्छा साधन प्राप्त हो जायेगा। इससे हमारी कॉलोनी की रौनक बढ़ जाएगी। अतएव आपसे सादर निवेदन है कि आप हमारी कॉलोनी के समुचित स्थानों में पार्क की सुव्यवस्था शीघ्र करवा करके हमें कृतार्थ करें। इसके लिए हम सब आपके सदैव आभारी रहेंगे।

भवदीय
शक्तिनगर निवासी
दिनांक : 18 अप्रैल, 20XX

प्रश्नः 4.
नगर निगम के गृहकर अधिकारी को अपना गृहकर का बिल ठीक कराने के लिए पत्र लिखिए।
उत्तरः

गृहकर अधिकारी
दिल्ली नगर निगम
टाउन हाल,
दिल्ली

महोदय

सविनय निवेदन है कि प्रार्थी प्रेम नगर क्षेत्र (शक्ति नगर क्षेत्र) का निवासी है। प्रार्थी का मकान नं० 7330. प्रेम नगर, दिल्ली है। प्रार्थी के गृह-कर (टैक्स) दो बार से पूर्वापेक्षा से कुछ अधिक वसूल किया जा रहा है। इस संबंध में प्रार्थी में आशंका है कि यह गड़बड़ी गृहकर बिल की गड़बड़ी के कारण ही है।

अतः आपसे सादर प्रार्थना है कि प्रार्थी का गृहकर बिल ठीक कराते हुए उससे नियमानुसार गृहकर वसूल करवाने की कृपा करें।

सधन्यवाद
प्रार्थी
मोहन देव
7330, प्रेम नगर,
दिल्ली-110007
दिनांक : 5 अप्रैल, 20XX

प्रश्नः 5.
अपने क्षेत्र में पेड़-पौधों के अनियंत्रित कटाव को रोकने के लिए अपने जिलाधिकारी को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
जिलाधिकारी महोदय
बदरपुर (बाहरी दिल्ली)
नई दिल्ली

महोदय

सविनय निवेदन है कि हम दक्षिणी दिल्ली के बदरपुर क्षेत्र के निवासी हैं। हमारे इस क्षेत्र में कुछ महीनों से पेड़-पौधों की बेरोक-टोक कटाई हो रही है। इस अंधाधुंध वन-कटाव से हम लोगों का यह क्षेत्र पेड़-पौधों से लगभग रहित-सा हो गया है। चारों ओर एक वीरान दृश्य उपस्थित हो गया है। इससे इस क्षेत्र के पर्यावरण पर बहत गंभीर प्रभाव पड़ने लगा है। हवा जो पेड़ों-पौधों से सुलभ होती है, लगभग दुर्लभ हो रही है। फलतः वायु-प्रदूषण तीव्र गति से बढ़ने लगा है। इससे विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य से संबंधित खतरनाक बीमारियों के फैलने की आशंका बढ़ती जा रही है। अतः अगर निकट भविष्य में इस प्रकार से बेरोक-टोक पेड़-पौधों के कटाव को न रोका गया तो लोगों का जीना दुर्लभ हो जायेगा। आशा है कि आप इस दिशा में उचित कदम उठाकर हमें कृतार्थ करेंगे। इसके लिए हम आपके सदैव आभारी रहेंगे।

सधन्यवाद
भवदीय
बदरपुर क्षेत्र के निवासी,
(बाहरी दिल्ली)
दिनांक : 18 अप्रैल, 20XX

प्रश्नः 6.
परिवहन निगम को अपने गाँव तक बस सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
अध्यक्ष
दिल्ली परिवहन निगम
महरौली टर्मिनल, नई दिल्ली

महोदय

सविनय निवेदन यह है कि हम महरौली क्षेत्र के निवासी हैं। हम लोगों का यह क्षेत्र महरौली-गुड़गाँव मार्ग पर स्थित है। यहाँ तक डी० टी० सी० की कोई भी बस नहीं आती है। केवल कुछ ही वाहन आते-जाते हैं। ये वाहन समय पर न आने के साथ ही कुछ ही समय तक आते-जाते हैं। फलतः आवश्यकतानुसार कोई भी वाहन या आवागमन का साधन इस मार्ग पर सुलभ नहीं है। डी०टी०सी० की बसें एयर फोर्स कैंटीन तक ही आती-जाती हैं। यह हमारे निवास क्षेत्र से लगभग दो किलोमीटर दूर है। फलतः आवागमन की इस असुविधा का घोर अभिशाप इस क्षेत्र के निवासियों को सहना पडता है। इस संबंध में आपको हम सूचित भी कर चुके हैं लेकिन अभी तक इस विषय में हमें न कोई सूचना मिली है और न ही इसके लिए कोई कदम ही उठाया गया है।

आशा है कि अब अवश्य ही कोई न कोई उचित कदम यथाशीघ्र उठाकर हमें कृतार्थ करेंगे।

सधन्यवाद
प्रार्थी
महरौली क्षेत्र के निवासी
नई दिल्ली
दिनांक : 10 मार्च, 20xx

प्रश्नः 7.
अपने मोहल्ले में वर्षा के कारण उत्पन्न हुई जल-भराव की समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट कराने के लिए नगरपालिका के स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
स्वास्थ्य अधिकारी
नगरपालिका
दिल्ली

महोदय

सविनय निवेदन है कि हम सब शक्ति नगर क्षेत्र के निवासी हैं। गत दिनों भयंकर वर्षा के कारण इस क्षेत्र में जगह-जगह पानी भर गया है। नालियों और सीवर के बंद होने के कारण सड़कों की बिगड़ी हुई दशा के कारण जल पाइप कहीं-कहीं कट-फट गए हैं। परिणामस्वरूप जल की बाढ़ आ गयी है। आपके विभाग के संबंधित कर्मचारी बिलकुल ही इस तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं। यही कारण है कि इस क्षेत्र में चारों ओर जल ही जल दिखाई दे रहा है। इससे न केवल आवागमन की बहुत बड़ी असुविधा उत्पन्न हो गई है अपितु विभिन्न प्रकार की बीमारियों के भी फैल जाने की आशंका बढ़ गई है। अतएव आपसे सादर अनुरोध है कि आप इस दिशा में यथाशीघ्र उचित कदम उठाकर हमें कृतार्थ करें। इसके लिए हम सदैव अभारी रहेंगे।

भवदीय
शक्तिनगर क्षेत्र के निवासी
दिनांक : 6 मार्च 20XX

प्रश्नः 8.
पुलिस आयुक्त को लाउडस्पीकरों का अनुचित प्रयोग रोकने के लिए पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
पुलिस आयुक्त
माल रोड
दिल्ली

महोदय

मैं अपने इस पत्र द्वारा आपका ध्यान दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर लाउडस्पीकरों के अनुचित प्रयोग की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ। आजकल दिल्ली में प्रायः सभी स्थानों पर लाउडस्पीकरों का अनुचित प्रयोग किया जा रहा है। बाजारों, पार्कों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों, मंदिरों, मस्जिदों तथा गुरुद्वारों में हर समय लाउडस्पीकर बजते रहते हैं। इन लाउडस्पीकरों के बजने से वैसे तो शांति भंग होती ही है, साथ ही विद्यार्थी वर्ग को इससे विशेष हानि उठानी पड़ रही है। परीक्षाएँ निकट आ रही हैं तथा दिन-रात लाउडस्पीकरों के शोर के कारण विद्यार्थी वर्ग एकाग्र होकर पढ़ाई नहीं कर सकता।

अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि लाउडस्पीकरों के प्रयोग की अनुमति अतिआवश्यक कार्य तथा निश्चित समय के लिए ही दें। रात 8 बजे के बाद इनका प्रयोग करने वालों के विरुद्ध उचित कार्यवाही की जाए।

आशा है आप छात्र-वर्ग की इस असुविधा को ध्यान में रखते हुए संबंधित अधिकारियों को उचित निर्देश देंगे।

भवदीय
क.ख.ग.

प्रश्नः 9.
नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी को मोहल्ले की सफ़ाई के विषय में पत्र लिखिए।
उत्तरः

प्रति
स्वास्थ्य अधिकारी
पश्चिमी क्षेत्र, नगर निगम
दिल्ली

महोदय

सविनय निवेदन है कि हम हरिनगर के निवासी अपने क्षेत्र की सफ़ाई की समस्या की ओर आपका ध्यान आकर्षित कराना चाहते हैं। इस मोहल्ले में सफ़ाई का समुचित प्रबंध नहीं है। इसके प्राय: सभी ब्लॉकों में यत्र-तत्र कूड़े के ढेर बिखरे दिखाई देते हैं, जिनसे प्रायः दुर्गंध आती रहती है। नालियों में गंदगी भरी रहती है। इस कारण मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है। इस काम के लिए नियुक्त किये गये जमादारों में अधिकांश अपना काम ठीक प्रकार से नहीं करते। यदि उनसे कुछ कहा जाये, तो वे दुर्व्यवहार करने लगते हैं तथा अगले दिन से काम में और भी ढील दे देते हैं।

महोदय ! आजकल गरमी के दिन हैं। नगर के कई भागों में मलेरिया का प्रकोप फैल रहा है। ऐसी अवस्था में स्थान-स्थान पर कूड़े के ढेरों का पड़े रहना, मच्छरों और मलेरिया को निमंत्रण देना ही है। कृपया आप संबंधित अधिकारियों को उचित निर्देश दें जिससे वे हमारे क्षेत्र की सफाई की समस्या को सुलझाकर इस क्षेत्र के निवासियों को मलेरिया के प्रकोप से बचा लें।

धन्यवाद
भवदीय
क.ख.ग.
हरिनगर सुधार समिति, नई दिल्ली।

प्रश्नः 10.
दिल्ली परिवहन निगम के प्रबंध अधिकारी को बस में छूटे सामान के बारे में पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
प्रबंध अधिकारी
दिल्ली परिवहन निगम
सिंधिया हाउस, नई दिल्ली

महोदय

निवेदन है कि मैंने कल दिनांक 28 जनवरी, 20XX को सवेरे 9.35 पर तिलक नगर से 810 नं० की बस केंद्रीय टर्मिनल के लिए पकड़ी थी। बस में काफ़ी भीड़ थी, अतः मुझे खड़े ही जाना पड़ा। मेरे पास एक ब्रीफकेस था जिस पर मेरा पता लिखा हुआ है। केंद्रीय टर्मिनल आने पर मैं जल्दी में उस ब्रीफकेस को बस में छोड़कर ही नीचे उतर गया। अपने दफ़्तर में पहुँचकर मुझे अपने ब्रीफकेस का ध्यान आया। मैंने केंद्रीय टर्मिनल फ़ोन करके पता किया, लेकिन मुझे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। आशा है कि मेरा ब्रीफकेस आपके यहाँ अवश्य जमा. करा दिया गया होगा। उसका रंग काला है। उस पर मेरा पता लिखा है तथा उसमें मेरे दफ्तर के ज़रूरी कागजात तथा लगभग पाँच सौ रुपये हैं। कृपया उसके बारे में मुझे सूचित करें।

धन्यवाद
भवदीय
क.ख.ग.

आवेदन पत्र

आज रोजमर्रा के जीवन में प्रायः आवेदन पत्र या प्रार्थना पत्र लिखने की आवश्यकता पड़ती है। अवकाश हेतु, किसी विभाग में नियुक्ति हेतु, आवास प्राप्ति हेतु, स्थानांतरण या पदोन्नति हेतु किसी भी विषय में निवेदन करने आदि से संबंधित पत्र आवेदन पत्र या प्रार्थना पत्र कहे जाते हैं।

आवेदन पत्र लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है –

  1. प्रारंभ-सर्वप्रथम बाईं ओर ‘सेवा में’ या ‘प्रति’ लिखकर ठीक उसके नीचे प्रेषिती का नाम, पदनाम व पूरा पता लिखा जाता है।
  2. विषय-यहाँ संक्षेप अर्थात् केवल एक पंक्ति में पत्र के विषय को प्रेषित किया जाना चाहिए।
  3. संबोधन–महोदय/महोदया संबोधन सूचक शब्द ठीक सेवा में की पंक्ति में लिखा जाना चाहिए।
  4. शिष्टाचार द्योतक शब्द-अल्पविराम के ठीक नीचे मुख्य विषय के प्रारंभ में ‘प्रार्थना है, सविनय निवेदन है, विनम्र निवेदन है’ आदि शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  5. मुख्य विषय-यहाँ मुख्य विषय को सरल, स्पष्ट और संयत भाषा में संक्षिप्त रूप में लिखना चाहिए।
  6. पत्र का समापन–पत्र की समाप्ति पर सधन्यवाद, सम्मान सहित आदि शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  7. समापन सूचक शब्द-पत्र की समाप्ति पर बाईं ओर भवदीय/भवदीया, प्रार्थी/प्रार्थिनी आदि समापनसूचक शब्दों का प्रयोग कर अल्पविराम लगाना चाहिए।
  8. नाम और पता-समापनसूचक शब्द के नीचे आवेदनकर्ता को अपने स्पष्ट हस्ताक्षर करने चाहिए और हस्ताक्षर के नीचे कोष्ठक में पूरा नाम लिखकर, पदनाम और स्थाई पता भी लिखना चाहिए।
  9. तिथि-प्रेषक के पते के बाईं ओर आवेदन करने की तिथि उल्लिखित करनी चाहिए।
  10. संलग्न-यदि आवेदन पत्र के साथ कोई प्रमाण पत्र या पत्रज्ञात की प्रति संलग्न की गई हो, तो अंत में संलग्नक लिखकर संख्यावार 1, 2, 3 लिखकर उनका उल्लेख कर देना चाहिए।

प्रश्नः 11.
शिक्षा निदेशक को छात्रवृत्ति के लिए एक आवेदन पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
शिक्षा निदेशक
शिक्षा निदेशालय
रामकृष्णपुरम्, दिल्ली

महोदय

सविनय निवेदन है कि प्रार्थी ने इस वर्ष दिल्ली बोर्ड की 10वीं कक्षा सर्वोच्च अंकों में उत्तीर्ण की है। परीक्षा के सभी विषयों में (हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत, गणित, विज्ञान व सामाजिक विषय में) 80 प्रतिशत से ऊपर अंक प्राप्त हुए हैं। अतएव आप से सादर प्रार्थना है कि प्रार्थी को उसकी योग्यतानुसार छात्रवृत्ति यथाशीघ्र प्रदान कर उसके मनोबल को बढ़ाने की कृपा करें। इसके लिए प्रार्थी सदैव आपका आभारी रहेगा।

सधन्यवाद
प्रार्थी
क.ख.ग.
सरिता विहार, थाना-बदरपुर
नई दिल्ली
दिनांक 20 जुलाई, 20XX

नोट-इस प्रार्थना पत्र के साथ शिक्षा विभाग का आवेदन-पत्र समुचित अंकों एवं चरित्र प्रमाण पत्रों की प्रतिलिपि संलग्न है।

प्रश्नः 12.
निम्न श्रेणी के लिपिक पद के लिए रेलवे भर्ती बोर्ड नई दिल्ली के सहायक सचिव के नाम आवेदन पत्र लिखिए।
अथवा
जिलाधीश के कार्यालय में टाइपिस्ट के रिक्त पद के लिए आवेदन पत्र लिखिए।
उत्तरः

प्रति
जिलाधीश महोदय
गुड़गाँव (हरियाणा)

मान्यवर
विषय-टाइपिस्ट पद के लिए आवेदन पत्र।

दिनांक 15-2-20XX के नवभारत टाइम्स में आपके कार्यालय के लिए टाइपिस्ट के पदों के लिए प्रार्थना-पत्र आमंत्रित किए गए हैं। मैं भी इस पद के लिए अपनी सेवाएँ प्रस्तुत करना चाहता हूँ।

मेरी शैक्षणिक योग्यताएँ तथा अन्य विवरण इस प्रकार हैं –

  1. मैंने माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, दिल्ली से सन् 1999 में दसवीं कक्षा की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है।
  2. मैंने माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, दिल्ली की ही बारहवीं कक्षा की परीक्षा सन् 2001 में द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की है।
  3. मैंने एक वर्ष तक हिंदी टंकण तथा आशुलिपि का अभ्यास किया है। टंकण में मेरी गति 45 शब्द प्रति मिनट तथा आशुलिपि में लगभग 100 शब्द प्रति मिनट है। मैंने एक वर्ष सेंट कोलंबस स्कूल में लिपिक का कार्य किया है।
  4. मैं इक्कीस वर्ष का स्वस्थ नवयुवक हूँ। यदि मुझे सेवा का अवसर प्रदान किया गया तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि अपने कार्य, ईमानदारी, कार्यकुशलता तथा व्यवहार से अपने अधिकारियों को सदैव संतुष्ट रखने का प्रयास करूँगा।

प्रार्थना पत्र के साथ प्रमाण पत्रों तथा प्रशंसा पत्रों की सत्यापित प्रतियाँ संलग्न हैं।

भवदीय
क.ख.ग.

प्रश्नः 13.
नगर निगम के कार्यालय में सहायक पद के लिए एक आवेदन पत्र लिखिए।
उत्तरः

प्रति
मुख्य आयुक्त
नगर निगम
दिल्ली
विषय-सहायक पद के लिए आवेदन पत्र।

माननीय महोदय

दिनांक 25 जनवरी, 20XX के ‘रोजगार समाचार’ में नगर निगम के कार्यालय में सहायक पद के लिए प्रकाशित विज्ञापन के उत्तर में उक्त पद के लिए निवेदन पत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ। मेरा व्यक्तिगत विवरण निम्नलिखित है –

  1. नाम – रमेश चंद्र अग्रवाल
  2. पिता का नाम – सोमेश चंद्र अग्रवाल
  3. जन्म तिथि – 28 जनवरी, 19XX
  4. शैक्षिक योग्यता –
    1. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से दसवीं की परीक्षा 19XX में 80 प्रतिशत अंकों के साथ . उत्तीर्ण की।
    2. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से 19XX में सीनियर सेकेंडरी परीक्षा 72 प्रतिशत अंक प्राप्त कर उत्तीर्ण की।
    3. दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए. (आनर्स) की परीक्षा 20XX में 62 प्रतिशत अंकों से पास की।
    4. मेरी टंकण गति 60 शब्द प्रति मिनट है।
    5. कार्यालयी अनुभव – 1. इससे पहले मैं शांति प्रा० लि० कंपनी में छह महीने लिपिक के पद पर कार्य कर चुका हूँ। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यदि आपने मुझे सेवा का अवसर दिया तो मैं पूरी निष्ठा एवं लगन से कार्य कर अपने अधिकारियों को संतुष्ट रखने का पूरा प्रयास करूँगा।

धन्यवाद
प्रार्थी
रमेश चंद्र अग्रवाल
1650, कश्मीरी गेट,
दिल्ली
दिनांक : 20 जुलाई, 20XX

प्रश्नः 14.
सहायक अध्यापक के पद के लिए शिक्षा निदेशक के नाम आवेदन पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
शिक्षा निदेशक
शिक्षा विभाग
दिल्ली
विषय-सहायक अध्यापक पद के लिए आवेदन

मान्यवर

पिछले सप्ताह दिनांक 23 जुलाई, 20XX आपके विभाग की ओर से ‘नवभारत टाइम्स’ में सहायक अध्यापक के रिक्त पदों का विज्ञापन दिया गया था। इस पद के प्रत्याशी के रूप में मैं अपना आवेदन प्रस्तुत कर रहा हूँ। मेरी शैक्षणिक योग्यताओं तथा अन्य उपलब्धियों का विवरण निम्नलिखित है –

  1. नाम – अमित कुमार शर्मा
  2. पिता का नाम – सुरेंद्र कुमार शर्मा
  3. जन्म तिथि – 3 जनवरी, 19XX
  4. शैक्षणिक योग्यता –
    1. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से दसवीं की परीक्षा 19XX में 80 प्रतिशत अंक प्राप्त कर उत्तीर्ण की।
    2. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से 19XX में सीनियर सेकेंडरी परीक्षा 80 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण की।
    3. दिल्ली विश्वविद्यालय से बी०ए० (आनर्स) की परीक्षा 20XX में 63 प्रतिशत अंकों से पास की।
    4. रोहतक विश्वविद्यालय से 20XX में एक वर्षीय टीचर-ट्रेनिंग कोर्स किया।

अध्यापन में मेरी विशेष रुचि शुरू से ही रही है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपने मुझे यदि सेवा का अवसर प्रदान किया तो मैं निष्ठा से अपना कर्तव्य पालन करूँगा। शिक्षा प्रदान करने के अलावा मैं विद्यार्थियों के व्यक्तिगत विकास तथा चारित्रिक विकास पर भी पूर्ण ध्यान दूंगा।

धन्यवाद
प्रार्थी
क.ख.ग.
(अमित कुमार शर्मा)
26, शांति नगर, दिल्ली
दिनांक : 24 जुलाई, 20XX

प्रश्नः 15.
हिंदुस्तान टाइम्स में उप-संपादक पद के लिए आवेदन पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
हिंदुस्तान टाइम्स
बहादुरशाह ज़फरमार्ग,
नई दिल्ली
विषय-उप-संपादक पद हेतु आवेदन पत्र।

महोदय

23 मार्च, 20… के हिंदुस्तान टाइम्स अखबार के विज्ञापन के माध्यम से पता चला है कि आपको अपने दैनिक पत्र के लिए एक योग्य उप संपादक की आवश्यकता है। मैं अपने आपको इस पद के लिए प्रस्तुत करता हूँ। मेरा परिचय एवं शैक्षणिक योग्यताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. नाम : दिनेश शर्मा
  2. पिता का नाम : श्री रूपेश शर्मा
  3. जन्म तिथि : 10 नवंबर, 19XX
  4. पत्र व्यवहार का पता : 16/39, शक्ति नगर, नई दिल्ली।
    1. शैक्षणिक योग्यताएँ : कक्षा दसवीं की परीक्षा में प्रथम स्थान कुल 85 प्रतिशत अंकों से प्राप्त किया।
    2. बारहवीं कक्षा की परीक्षा में प्रथम स्थान कुल 82 प्रतिशत अंकों से प्राप्त किया। हिंदी साहित्य में बी०ए० की उपाधि दिल्ली विश्वविद्यालय से 75 प्रतिशत अंकों के साथ प्राप्त की।
    3. हिंदी साहित्य में एम०ए० दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्राचार के माध्यम से प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की।

अनुभव : पिछले दो वर्षों से मासिक पत्रिका ‘रश्मि’ के उप-संपादक पद पर कार्य कर रहा हूँ। मेरी कुछ पुस्तकें स्थानीय प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं।

विश्वविद्यालय की परीक्षाओं के प्रमाण पत्र तथा मेरे द्वारा लिखी गई पुस्तकों की प्रतियाँ साथ भेज रहा हूँ।
आशा करता हूँ कि आप मुझे साक्षात्कार का अवसर प्रदान कर मेरी क्षमताओं को आपके सामने उजागर करने का अवसर प्रदान करेंगे।

सधन्यवाद।
प्रार्थी
रतनेश अग्रवाल
16/39, शक्ति नगर
नई दिल्ली
दिनांक : 25-3-20XX

प्रश्नः 16.
समाचार पत्र में विज्ञापित अध्यापक पद हेतु आवेदन पत्र लिखें।
उत्तरः

सेवा में
डी०ए०वी० पब्लिक स्कूल
पश्चिम विहार,
नई दिल्ली
विषय-अध्यापक पद के लिए आवेदन पत्र

महोदय

विनम्र निवेदन है कि दिनांक 3 फरवरी, 20XX के नवभारत टाइम्स में प्रकाशित विज्ञापन से मुझे ज्ञात हुआ है कि आपके विद्यालय में रसायन शास्त्र के लिए प्रशिक्षित (पी०जी०टी०) अध्यापक के लिए स्थान रिक्त है। मैं अपनी सेवाएँ उक्त पद के लिए अर्पित करना चाहता हूँ। मैं अपनी शैक्षणिक तथा अनुभव संबंधी योग्यताएँ लिख रहा हूँ और इस आवेदन-पत्र के साथ अपने प्रमाण पत्रों की सत्यापित प्रतिलिपियाँ संलग्न कर रहा हूँ।

  1. नाम : राहुल सक्सेना
  2. पिता का नाम : श्री देवेंद्र सक्सेना
  3. जन्म तिथि : 18 अगस्त, 19XX
  4. पत्र व्यवहार का पता : 16/24, नवीन शहर, बुलंदशहर।
  5. शैक्षणिक योग्यताएँ :
    1. दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में बी०ए० उत्तीर्ण।
    2. मेरठ विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में एम०ए० उत्तीर्ण।
    3. मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से बी०एड० की परीक्षा उत्तीर्ण ।

अनुभव : मैं एक प्राइवेट विद्यालय में अध्यापन कार्य कर रहा हूँ। मुझे दो वर्ष का अनुभव है। उपर्युक्त सेवा काल में मेरे प्रधानाचार्य तथा छात्र मुझसे बहुत प्रसन्न हैं।

आशा है, आप मुझे एक अवसर अवश्य प्रदान करेंगे और मैं एक आदर्श अध्यापक के नाते काम कर सकूँगा। अन्य कोई जानकारी साक्षात्कार के समय दे सकूँगा।

सधन्यवाद
आपका विश्वासी
राहुल सक्सेना
दिनांक : 5-3-20XX

प्रार्थना पत्र

प्रश्नः 17.
प्रधानाचार्य को चरित्र प्रमाण पत्र देने का अनुरोध करते हुए एक प्रार्थना पत्र लिखिए तथा यह भी बताइए कि उसकी आपको क्यों आवश्यकता है।
उत्तरः

सेवा में
प्रधानाचार्य महोदय
भारतीय विद्या भवन, मेहता विद्यालय
कस्तूरबा गांधी मार्ग,
नई दिल्ली

मान्यवर महोदय

सविनय निवेदन है कि मैं 20XX से 20XX तक आपके विद्यालय का छात्र रहा हूँ। मैंने 20XX की सीनियर सेकेंडरी परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की थी। मैंने पढ़ाई के अतिरिक्त वाद-विवाद प्रतियोगिताओं, नाटक, संगीत तथा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी भाग लिया था। मैंने स्कूल के लिए कई ट्राफियाँ भी जीती थीं। मैं 20XX-20XX में विद्यालय की फुटबाल टीम का कैप्टन भी रहा हूँ। मेरे बारे में अन्य जानकारी मेरे वर्ग आचार्य श्री बी० एन० श्रीवास्तव से आपको मिल जायेगी। मान्यवर, मुझे राष्ट्रीय मिलिटरी कॉलेज के आवेदन पत्र के साथ संलग्न करने के लिए चरित्र प्रमाण पत्र की आवश्यकता है। अतः आप से निवेदन है कि चरित्र प्रमाण पत्र यथाशीघ्र भेजने की कृपा करें।

धन्यवाद
आपका आज्ञाकारी
क.ख.ग.
मेरा पता ……….
………………….
………………….
………………….
दिनांक : 17 जुलाई, 20XX

प्रश्नः 18.
अपने स्कूल के प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखकर खेल संबंधी कठिनाइयाँ सूचित कीजिए और उन्हें दूर करने की प्रार्थना कीजिए।
उत्तरः

सेवा में
प्रधानाचार्य महोदय
रामजस स्कूल नं० 2,
दरियागंज
दिल्ली

मान्यवर

निवेदन है कि हमारा विद्यालय दिल्ली के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में गिना जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रसिद्ध होते हुए भी खेलों में हमारे विद्यालय की गिनती अच्छे विद्यालयों में नहीं की जाती। मैं विद्यालय का खेल-कूद कप्तान होने के नाते आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता हूँ।

हमारे विद्यालय का क्रीड़ा क्षेत्र समतल नहीं है तथा वहाँ गंदगी रहती है। विद्यालय में खेलकूद का सामान भी कम है। विद्यालय का समय समाप्त होने के बाद छात्रों को खेलकूद में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा विभिन्न खेलों के प्रशिक्षकों द्वारा छात्रों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। यदि आपकी ओर से विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया गया, तो मुझे विश्वास है कि विद्यार्थी खेलकूद में भाग लेंगे और हमारे विद्यालय का नाम रोशन करेंगे।

धन्यवाद
आपका आज्ञाकारी
कमल कांत
क्रीड़ा-कप्तान
दिनांक : 6 मार्च, 20XX

प्रश्नः 19.
दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण परीक्षा देने में असमर्थता प्रकट करते हुए अपने प्रधानाचार्य को एक प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
प्रधानाचार्य
सर्वोदय विद्यालय नं० 1
शक्तिनगर, दिल्ली

सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय के कक्षा दसवीं ‘अ’ (अनुक्रमांक 10) का नियमित छात्र हूँ। सड़क पार करते समय एक स्कूटर से टकरा जाने से मुझे गंभीर रूप से चोट लगी है। दोनों पैरों में काफ़ी चोट लगी है। एक पैर तो टूट गया है। सिर फट गया है। डॉक्टर की जाँच के अनुसार मुझे लगभग 20 दिनों तक पूर्ण आराम की आवश्यकता है। अतएव इन दिनों होने वाली परीक्षा में मैं सम्मिलित होने में बिलकुल ही असमर्थ हूँ।

अतएव आप से सादर प्रार्थना है कि आप मुझे 20 दिनों का अवकाश प्रदान करने की कृपा करें।

सधन्यवाद
आपका आज्ञाकारी छात्र
केशव प्रसाद
कक्षा दसवीं ‘अ’
अनुक्रमांक 10
दिनांक : 5 मार्च, 20xx

प्रश्नः 20.
अपनी आर्थिक कठिनाइयों का वर्णन करते हुए फ़ीस माफ़ करने (शुल्क-मुक्ति ) के लिए प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
श्रीमान् प्रधानाचार्य
हंसराज मॉडल स्कूल
पंजाबी बाग, नई दिल्ली

मान्यवर

मैं आपके विद्यालय में दसवीं ‘ख’ कक्षा का छात्र हूँ। मैं एक अत्यंत निर्धन परिवार से हूँ। मेरे पिता जी नई दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन में दफ़्तरी हैं। उनका वेतन कुल मिलाकर छह हज़ार रुपए हैं। मेरे पिता जी के अतिरिक्त हमारे परिवार में और कोई कमाने वाला नहीं है। मेरे अतिरिक्त हमारे घर में चार और पढ़ने वाले हैं। मेरा बड़ा भाई बी० ए० में तथा एक छोटी बहन छठी कक्षा में पढ़ती है। इस स्थिति में परिवार का खर्च बड़ी मुश्किल से चल पाता है।

सूचनार्थ निवेदन है कि मैं प्रत्येक वर्ष अपनी कक्षा में प्रथम आता रहा हूँ। गत परीक्षा में भी मैंने 84 प्रतिशत अंक प्राप्त किये हैं। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि भविष्य में भी मैं इसी प्रकार अच्छे अंक लेकर परीक्षाएँ उत्तीर्ण करता रहूँगा। अपने व्यवहार, चरित्र तथा कार्य से सदैव अपने गुरुजनों तथा आपको संतुष्ट रखने का प्रयास करता रहूँगा।

यदि मुझे शुल्क मुक्ति न मिली तो मेरे लिए पढ़ाई जारी रखना कठिन हो जाएगा। अतः आपसे करबद्ध निवेदन है कि मुझे पूर्ण शुल्क मुक्ति प्रदान करके अनुगृहीत करें।

सधन्यवाद
आपका आज्ञाकारी शिष्य
क. ख. ग.
कक्षा ‘ख’
दिनांक : 20 जुलाई, 20XX

संपादक को पत्र

प्रश्नः 21.
अपने नगर के समाचार पत्र के संपादक को एक पत्र लिखकर मोहल्ले में बढ़ रही जुआखोरी की जानकारी दीजिए।
उत्तरः

सेवा में
संपादक
नवभारत टाइम्स
नई दिल्ली

महोदय

मैं आपके इस दैनिक पत्र के माध्यम से आपका ध्यान अपने नगर में बढ़ रही दिनों-दिन जुआखोरी की दुष्प्रवृत्ति और बुरे व्यसनों की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। यह ध्यान देने की बात है कि इस बुरी आदत में बच्चे, जवान और बूढ़े सभी बुरी तरह से फंस चुके हैं। पुलिस ने कई लोगों को इस मामले में गिरफ्तार करके छोड़ दिया है। समय-समय पर पुलिस आती रहती है। फिर भी लोग चोरी-छिपे जुआ खेलते ही रहते हैं। अतएव आप अपने इस समाचार पत्र के माध्यम से प्रशासन को ऐसा कदम उठाने के लिए सुझाव प्रस्तुत करें, जिससे यह बुरी आदत यथाशीघ्र समाप्त की जा सके और हमारा यह नगर फिर अच्छे वातावरण में आगे बढ़ सके।

भवदीय
क.ख.ग.
दिनांक : 2 फरवरी, 20XX

प्रश्नः 22.
अपने क्षेत्र की गंदगी की ओर अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए किसी दैनिक समाचार पत्र के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
संपादक
नवभारत टाइम्स
नई दिल्ली

महोदय

मैं लोकप्रिय समाचार पत्र ‘नवभारत टाइम्स’ के माध्यम से अपने क्षेत्र में बढ़ती हुई गंदगी की ओर इस क्षेत्र के स्वास्थ्य अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। इस संदर्भ में यह कहना है कि दिल्ली गेट क्षेत्र के आस-पास आजकल गंदगी बहुत हो गई है। कूड़ों के ढेर जगह-जगह हैं। उन पर विभिन्न प्रकार के जानवर घूमते रहते हैं। कई दिनों से सफ़ाई न होने से नालियों में गंदा पानी जमा हो गया है। फलतः बड़ी बदबू फैल रही है। इससे निकट भविष्य में किसी जानलेवा बीमारी के फैल जाने की आशंका बढ़ रही है।

अतः इस क्षेत्र के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का ध्यान इस समाचार पत्र के माध्यम से न केवल ध्यान आकर्षित करने, अपितु उनको इस दिशा में उचित कदम उठाने के लिए भी आप सुझाव देंगे। इसके लिए हम सब इस क्षेत्र के निवासी आपके सदैव आभारी रहेंगे।

सधन्यवाद
भवदीय
दिल्ली गेट क्षेत्र के निवासी,
नई दिल्ली
दिनांक : 3 मार्च, 20XX

प्रश्नः 23.
अपने क्षेत्र में बिजली के संकट और उससे उत्पन्न कठिनाइयों का वर्णन करते हुए ‘दैनिक हिंदुस्तान’ के संपादक के नाम एक पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
संपादक महोदय
दैनिक हिंदुस्तान
नई दिल्ली

मान्यवर

मैं आपके लोकप्रिय समाचार पत्र के माध्यम से ‘दिल्ली विद्युत बोर्ड’ के अधिकारियों का ध्यान दिल्ली में बिजली के संकट से उत्पन्न कठिनाइयों की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ तथा दिल्ली निवासियों की कठिनाइयों को अधिकारियों तक पहुँचाना चाहता हूँ। कृपया अपने समाचार पत्र में इसे उचित स्थान पर प्रकाशित करके अनुग्रहीत करें।

मान्यवर, आए दिन दिल्ली की जनता को बिजली का संकट सहना पड़ रहा है। गरमी के मौसम में बिजली के चले जाने से जन-जीवन कितना कठिन हो जाता है तथा लोगों को कितनी कठिनाई का सामना करना पड़ता है, इसका अनुमान आप स्वयं ही लगा सकते हैं।

प्रायः उन्हीं इलाकों की बिजली अधिक जाती है, जो सर्वाधिक भीड़भाड़ के क्षेत्र हैं। चाँदनी चौक, अजमेरी गेट, कश्मीरी गेट इन तीनों क्षेत्रों की बिजली घंटों गायब रहती है। ये तीनों क्षेत्र दिल्ली के भीड़भाड़ से भरे क्षेत्र माने जाते हैं। यहाँ के बाजारों में हज़ारों लोगों की भीड़ रहती है। बिजली के बिना व्यापारियों तथा ग्राहकों को बड़ी परेशानी उठानी पड़ती है। आश्चर्य की बात यह है कि ‘विद्युत-विभाग’ के अधिकारियों को इस बारे में कई बार मौखिक तथा लिखित रूप में सूचित किया गया, लेकिन उन्होंने स्थिति में सुधार लाने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया। अतः आपसे निवेदन है कि संबंधित अधिकारियों को उचित निर्देश दें, जिससे इन क्षेत्रों के निवासियों को बिजली की उचित आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।

भवदीय
क.ख.ग.
दिनांक : 31 दिसंबर, 20XX

शिकायती पत्र

प्रश्नः 24.
दिल्ली परिवहन के महाप्रबंधक के नाम एक पत्र लिखिए जिसमें बस कंडक्टर के अभद्र व्यवहार की शिकायत की गई हो।
उत्तरः

प्रति
महाप्रबंधक
दिल्ली परिवहन निगम
इंद्रप्रस्थ एस्टेट
नई दिल्ली

महोदय

निवेदन है कि मैं हरिनगर घंटाघर का निवासी हूँ। मैं प्रतिदिन प्रातः आठ बजे बस रूट नं0 73 में केंद्रीय टर्मिनल के लिए यात्रा करता हूँ। इस बस में प्रायः सभी यात्री जाने-पहचाने हैं, क्योंकि उनमें से अधिकांश प्रतिदिन इसी बस से जाते हैं। दिनांक 05-05-20XX को इस रूट पर चंद्रपाल नाम का संवाहक (कंडक्टर) नियुक्त था। मैंने उसे बीस रुपये दिए तथा केंद्रीय सचिवालय तक का दस रुपये का टिकट देने को कहा। संवाहक महोदय ने दस रुपए का टिकट तो दे दिया, पर शेष बचे दस रुपए बाद में देने को कहा। मैं एक सीट पर बैठ गया। राजेंद्र नगर बस स्टॉप आने पर मैंने संवाहक से अपने शेष दस रुपए माँगे, तो वह आना-कानी करने लगा तथा बोला कि मैंने उसे दस रुपए ही दिए हैं, बीस रुपये का नोट नहीं। चूंकि मैंने बीस रुपये का नोट अपने कई सहयात्रियों के सामने दिया था। उन्होंने भी संवाहक को दस रुपए वापस करने को कहा, परंतु उसने किसी की न सुनी और अपशब्द कहने लगा। मैंने उससे परिवाद-पुस्तिका माँगी, तो उसने इस पर भी आनाकानी की। बोला, ‘तुम्हें जहाँ शिकायत करनी है, करो, मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।’ मुझे एक यात्री ने बताया कि जिस दिन भी यह संवाहक इस रूट पर आता है, उस दिन इसी प्रकार कई यात्रियों के शेष पैसे नहीं देता। वे यात्री उतरते समय स्वयं भूल जाते हैं या फिर संवाहक महोदय शेष राशि देने की बात स्वीकार ही नहीं करते।

आपसे अनुरोध है कि आप स्वयं किसी दिन किसी अधिकारी को सादे कपड़ों में इस महाशय की ड्यूटी के समय यात्रा करने का आदेश दें, जिससे वे स्वयं इसके अभद्र व्यवहार तथा आचरण की प्रथम जाँच कर सके। इन संवाहक महोदय के विरुद्ध एक आरोप और भी है-ये बस में धूम्रपान भी करते हैं, जिस पर यदि आपत्ति की जाए, तो इनका अभद्र व्यवहार देखने को मिलता है।

आशा है, आप ऐसे कर्मचारियों को सुधारने के लिए समुचित कार्यवाही करेंगे।

धन्यवाद
भवदीय
सुनील शर्मा
A-31/C, हरिनगर,
नई दिल्ली
दिनांक : 06-05-20XX

प्रश्नः 25.
मनीआर्डर गुम हो जाने की शिकायत करते हुए लोदी रोड, नई दिल्ली के डाकपाल को पत्र लिखिए।
अथवा
मनीआर्डर गुम हो जाने की शिकायत करते हुए डाकपाल को एक पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
डाकपाल महोदय
मुख्य डाकघर, लोदी रोड
नई दिल्ली

महोदय

निवेदन है कि मैंने दिनांक 16 दिसंबर, 20XX को पाँच सौ रुपये का मनीआर्डर अपने पिता श्री चंद्रप्रकाश शर्मा, 18 C, नई मंडी, रोहतक के पते पर लोदी रोड डाकघर से करवाया था। लगभग एक माह का समय बीत चुका है। अभी तक न तो वह मनीआर्डर ही मेरे पिता के पास पहुँचा है और न ही लौटकर मुझे मिला है। मैंने इस संबंध में नई मंडी, रोहतक के डाकघर से भी संपर्क किया, पर मनीआर्डर वहाँ नहीं पहुँचा।

मनीआर्डर की रसीद का नंबर 2307 तथा दिनांक 16-2-20XX है। आप से अनुरोध है कि इस संबंध में आवश्यक जाँचपड़ताल करके मुझे सूचित करवाने का कष्ट करें। आपकी सुविधा के लिए मनीआर्डर की रसीद की फोटो प्रति भी पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूँ।

सधन्यवाद
भवदीय
दिनेश शर्मा
P-615, सेवा नगर,
नई दिल्ली
दिनांक : 15 जनवरी, 20XX

प्रश्नः 26.
बिजली बोर्ड के अध्यक्ष को अपने क्षेत्र में बिजली के संकट से उत्पन्न कठिनाइयों के संबंध में पत्र लिखिए।
अथवा
नगर के दिल्ली विद्युत बोर्ड के महाप्रबंधक को पत्र लिखिए जिसमें परीक्षा के दिनों में बार-बार बिजली चले जाने से उत्पन्न असुविधा का वर्णन हो।
उत्तरः

प्रति
अध्यक्ष
दिल्ली विद्युत बोर्ड
दिल्ली

महोदय

मैं इस पत्र द्वारा आपका ध्यान नवीन शाहदरा क्षेत्र में बिजली के संकट से उत्पन्न कठिनाइयों की ओर आकृष्ट कराना चाहता हूँ। नवीन शाहदरा पुस्तक-छपाई उद्योग की दृष्टि से दिल्ली का प्रमुख केंद्र बन गया है। इस क्षेत्र में और भी अनेक लघु उद्योग-धंधे स्थित हैं। इस क्षेत्र में घंटों बिजली नहीं होती, जिसके कारण यहाँ के निवासियों, व्यापारियों तथा विद्यार्थियों को अत्यधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है। बीच-बीच में दस-पाँच मिनट को बिजली आती है, तो राहत का अनुभव होता है, परंतु थोड़ी ही देर में पुनः चली जाने पर ऐसा लगता है, मानो बिजली आँखमिचौली का खेल खेल रही है। यह सिलसिला प्रायः प्रतिदिन चलता है। यदि बिजली जाने का कोई निश्चित समय हो, तो सब्र किया जा सकता है, परंतु अनिश्चितता से सभी को अत्यधिक कष्ट होता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बिजली आती तो है, पर बहुत कम वोल्ट की, जिससे ट्यूब आदि भी नहीं जलती। हमने दिल्ली विद्युत बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारियों से अनेक बार प्रार्थना की, परंतु हमारी एक न सुनी गई। बिजली के न आने से विद्यार्थियों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। उनकी पढ़ाई नहीं हो पाती। यदि यह क्रम और जारी रहा, तो इस क्षेत्र के विद्यार्थियों के परीक्षा-परिणाम पर बुरा असर पड़ेगा। उनका भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।

बिजली चले जाने से असामाजिक तत्वों को भी प्रोत्साहन मिल रहा है। आए दिन इस क्षेत्र में चोरी आदि की वारदातें दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। बिजली के न आने से पानी की भी भीषण समस्या उत्पन्न होती है। आप सोच सकते हैं कि गरमी के इन दिनों में यदि बिजली और पानी दोनों ही उपलब्ध न हों, तो जनजीवन कितना अस्तव्यस्त और कष्टमय हो जाता है।

आपसे अनुरोध है कि इस क्षेत्र के निवासियों की इस समस्या को सुलझाने के लिए आवश्यक कदम उठाएँ तथा संबंधित अधिकारियों को उचित निर्देश दें।

आभार सहित
भवदीय
क. ख. ग.
सचिव
नवीन शाहदरा जन-कल्याण समिति, नवीन शाहदरा।
दिनांक : 17-2-20XX

प्रश्नः 27.
डाकतार विभाग की लापरवाही की ओर अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए किसी दैनिक समाचार पत्र के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
संपादक महोदय
नवभारत टाइम्स
7, बहादुरशाह जफर मार्ग, नई दिल्ली
विषय-डाकतार विभाग की लापरवाही के विषय में पत्र।

महोदय

मैं आपके लोकप्रिय दैनिक समाचार पत्र में चिट्ठी पत्री स्तंभ के अंतर्गत अपनी यह शिकायत छपवाना चाहता हूँ। मैं दिल्ली नगर का निवासी हूँ। मैंने अपने मित्र के नाम उत्तर प्रदेश, नोएडा के पते पर एक पत्र शीघ्र डाक से दिनांक 20 जनवरी, 20XX को भेजा था। इस पत्र में कुछ अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण कागज थे, जिनका शीघ्र ही उस तक पहुँचना अत्यंत आवश्यक था, लेकिन उसके पास यह पत्र दस दिनों के बाद पहुँचा। इस वजह से उसका बहुत बड़ा नुकसान हुआ। ऐसी केवल यह एक ही घटना नहीं है। अनेक लोग डाक-तार विभाग की अव्यवस्था के शिकार हैं।

मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि इस संदर्भ में आप अपने समाचार पत्र में छापे तथा संबंधित अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकृष्ट करने का प्रयत्न करें, ताकि इस ओर उचित कदम उठाकर इस अव्यवस्था को सुधारा जाए। आम जनता को इस अव्यवस्था से आगे किसी और तरह की असुविधा न उठानी पड़े।

इसके लिए मैं आपका अत्यंत आभारी रहूँगा।

धन्यवाद सहित
भवदीय
राहुल त्यागी
26/2, मॉडल टाउन, दिल्ली
दिनांक : 2-2-20XX

प्रश्नः 28.
गलत किताबें प्रेषित करने के लिए पुस्तक विक्रेता को पत्र लिखें।
उत्तरः

सेवा में
श्रीमान् व्यवस्थापक महोदय
पुस्तक महल
दरियागंज, नई दिल्ली
विषय-गलत किताबें प्रेषित करने के लिए शिकायत।

प्रिय महोदय

आपके द्वारा प्रेषित दिनांक 5 अप्रैल, 20XX का पार्सल हमें प्राप्त हुआ। यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि जिन किताबों का हमने ऑर्डर दिया था, वे किताबें हमें उस पार्सल में नहीं मिली। हमने आपसे सरस भारती भाग-3 की 20 प्रतियाँ मँगाई थीं, लेकिन आपने सरस भारती के भाग-1 तथा कथा कलश के भाग-2 की प्रतियाँ भिजवा दी हैं।

आपकी तरफ से की गई इस लापरवाही से अनेक विद्यार्थियों के लिए परेशानी खड़ी हो गई है। कृपया इस पत्र के प्राप्त होते ही मँगाई गई पुस्तकों का पार्सल भेजने की कृपा करें। आशा है आप इस संबंध में विलंब करके हमें निराश नहीं करेंगे।

भवदीय
भरत बुक डिको
अलीगढ़
दिनांक : 7 अप्रैल, 20XX

व्यावसायिक पत्र

प्रश्नः 29.
वी०पी०पी० द्वारा पुस्तकें मँगाने के लिए प्रकाशक को एक पत्र लिखिए।
उत्तरः

4/44, सफदरजंग एनक्लेव
नई दिल्ली
दिनांक : 26 फरवरी, 20XX
व्यवस्थापक महोदय, फ्रैंक एजुकेशनल ऐड्स प्रा०लि०,
ए-39, सेक्टर-4, नोएडा
प्रिय महोदय

कृपया अधोलिखित पुस्तकें वी०पी०पी० द्वारा दिए गए पते पर यथा शीघ्र भेजने का कष्ट करें। पंद्रह सौ रुपये अग्रिम राशि के रूप में धनादेश (मनीआर्डर) द्वारा भेज दिए गए हैं। कृपया उन्हें बिल में से काट दीजिए। पुस्तकें भेजने से पहले देख लें कि किसी पुस्तक के पृष्ठ कम या फटे हुए न हों। पुस्तकों की पैकिंग ढंग से की गई हो।
पुस्तकों की सूची

  1. इतिहास (रिफ्रेशर कोर्स) – 3 प्रतियाँ 2018 का संस्करण
  2. भूगोल (रिफ्रेशर कोर्स) – 3 प्रतियाँ 2018 का संस्करण
  3. जीव-विज्ञान (रिफ्रेशर कोर्स) – 2 प्रतियाँ 2018 का संस्करण
  4. अंग्रेज़ी कोर्स (A) (रिफ्रेशर कोर्स) – 3 प्रतियाँ 2018 का संस्करण
  5. हिंदी (रिफ्रेशर कोर्स) – 3 प्रतियाँ 2018 का संस्करण

भवदीय
क. ख. ग.
मेरा पता
………….
………….

प्रश्नः 30.
गलत माल मिलने की शिकायत करते हुए खेल का सामान बेचने वाले प्रतिष्ठान ‘क्रीड़ा-विहार’ को एक पत्र लिखिए।
उत्तरः

6/11, सुभाष नगर
नई दिल्ली-16
दिनांक : 20 फरवरी, 20XX
व्यवस्थापक महोदय
क्रीड़ा-विहार
दरियागंज, दिल्ली

प्रिय महोदय

निवेदन है कि हमने आपके प्रतिष्ठान को दिनांक 14-12-20XX को खेल के कुछ सामान का आर्डर दिया था। इस आर्डर में निम्नलिखित सामान मँगाया था –

  1. क्रिकेट बैट (कश्मीर) – 5
  2. बैडमिंटन रैकिट (स्पेशल क्वालिटी) – 10
  3. फुटबाल (नं० 777) 4
  4. क्रिकेट बॉल (स्पेशल क्वालिटी नं० 36) -10
  5. हॉकी स्टिक (सुपर जेट क्वालिटी) – 20

आपके द्वारा भेजे गये बिल सं० 1674 2-1-20XX के अनुसार यह सामान हमें 7-1-20XX को प्राप्त हुआ। खेद की बात है कि कुछ सामान उस क्वालिटी का नहीं है तथा फुटबाल के स्थान पर वालीबाल भेजे गये हैं तथा 10 बैडमिंटन के रैकिट की जगह 5 रैकिट तथा 5 क्रिकेट बैट की जगह 10 बैट भेजे गये हैं। अतः यह सामान वापस भेजा जा रहा है। कृपया उचित सामान शीघ्र भिजवाने का कष्ट करें तथा सामान भेजने से पूर्व निरीक्षण करवा लें कि सही समान ही भेजा जाये।

धन्यवाद सहित
भवदीय
क.ख.ग.

सरकारी पत्र

सरकारी कार्यालयों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए इन पत्रों को कई श्रेणियों में बाँट दिया गया है। मसलन कई पत्र सूचनाएँ माँगने या भेजने के लिए लिखे जाते हैं। कुछ पत्रों द्वारा मुख्यालय या बड़े अधिकारी अपने अधीनस्थ कार्यालयों या अधीनस्थ कर्मचारियों को आदेश भेजते हैं। कुछ पत्र अखबारों को विभागीय गतिविधियों की जानकारी देने के लिए भेजे जाते हैं। हर श्रेणी के पत्र के लिए एक विशेष स्वरूप निर्धारित कर दिया गया है।

पत्र लिखने का तरीका –

  1. सरकारी पत्र औपचारिक पत्र की श्रेणी में आते हैं।
  2. प्रायः ये पत्र एक कार्यालय, विभाग या मंत्रालय से दूसरे कार्यालय, विभाग या मंत्रालय को लिखे जाते हैं।
  3. पत्र के शीर्ष पर कार्यालय, विभाग या मंत्रालय का नाम व पता लिखा जाता है।
  4. पत्र के बाईं तरफ फाइल संख्या लिखी जाती है जिससे यह स्पष्ट हो सके कि पत्र किस विभाग दवारा किस विषय के तहत कब लिखा जा
  5. रहा है। जिसे पत्र लिखा जा रहा है उसका नाम, पता आदि बाईं तरफ लिखा जाता है। कई बार अधिकारी का नाम भी दिया जाता है। ‘सेवा में’ का प्रयोग धीरे-धीरे कम हो रहा है।
  6. ‘विषय’ शीर्षक के अंतर्गत संक्षेप में यह लिखा जाता है कि पत्र किस प्रयोजन के लिए या किस संदर्भ में लिखा जा रहा
  7.  विषय के बाद बाईं तरफ ‘महोदय’ संबोधन लिखा जाता है।
  8. पत्र की भाषा सरल एवं सहज होनी चाहिए। क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए।
  9. सटीक अर्थ प्रेषित करने के लिए प्रशासनिक शब्दावली का प्रयोग ही उचित होता है।
  10. पत्र के बाईं ओर प्रेषक का पता और तारीख दी जाती है।
  11. अंत में ‘भवदीय’ शब्द का प्रयोग अधोलेख के रूप में होता है।
  12. भवदीय के नीचे पत्र भेजने वाले के हस्ताक्षर होते हैं। हस्ताक्षर के नीचे कोष्ठक में पत्र लिखने वाले का नाम मुद्रित होता है। नाम के नीचे पदनाम लिखा जाता है।

उदाहरण

अखिल भारतीय साहित्य एवं संस्कृति संस्थान क्षेत्रीय कार्यालय : मुंबई

CBSE Class 12 Hindi कार्यालयी पत्र 2
सेवा में
महानिदेशक

अखिल भारतीय साहित्य एवं संस्कृति संस्थान
तिलक मार्ग, नई दिल्ली-110001
विषय : मोबाइल फ़ोन पर होने वाले व्यय के लिए निर्धारित सीमा

महोदय

कृपया अपने परिपत्र को स्मरण करें जिसकी संख्या 24/13/4/20XX थी, जो 23 नवंबर, 20XX को जारी किया गया था। परिपत्र में हिदायत दी गई थी कि मोबाइल फ़ोन पर महीने में दो हज़ार से अधिक खर्च नहीं किया जाना चाहिए।

इस संबंध में निवेदन है कि मुंबई स्थित क्षेत्रीय कार्यालय की गतिविधियाँ अत्यंत व्यापक हैं। देश के तमाम फ़िल्म और टेलीविज़न निर्माता मुंबई में ही हैं। इनकी वजह से विभिन्न विधाओं के कलाकार बड़ी संख्या में मुंबई में ही निवास करते हैं। साथ ही निदेशक को देश के विभिन्न नगरों में स्थित कार्यालयों एवं क्षेत्रीय कार्यालय से भी निरंतर संपर्क में रहना पड़ता है। साथ ही संस्थान की गतिविधियों के लिए प्रायोजक जुटाने के सिलसिले में देश के विभिन्न औद्योगिक संगठनों से भी लगातार बात करनी पड़ती है।

ऊपर बताए तथ्यों की वजह से दो हज़ार रुपए मासिक की सीमा मुंबई कार्यालय के लिए कम पड़ रही है। पिछले छह महीनों से यह देखा जा रहा है कि मासिक खर्च छह हज़ार रुपए के आसपास आता है।

अतः निवेदन है कि मुंबई कार्यालय की विशेष स्थिति को ध्यान में रखते हुए मोबाइल फ़ोन पर मासिक खर्च की सीमा बढ़ाकर छह हज़ार रुपए कर दी जाए।

भवदीय
(राकेश कुमार)
निदेशक

अर्ध सरकारी पत्र

औपचारिक पत्र के विपरीत अर्ध सरकारी पत्र में अनौपचारिकता का पुट होता है। इसमें एक मैत्री भाव होता है। अर्ध सरकारी पत्र तब लिखे जाते हैं जब लिखने वाला अधिकारी संबंधित अधिकारी को व्यक्तिगत स्तर पर जानता है।

इस प्रकार का पत्र ऐसी स्थिति में भी लिखा जाता है जब किसी खास मसले पर संबोधित अधिकारी का ध्यान व्यक्तिगत रूप से आकर्षित कराया जाता है या उसका व्यक्तिगत परामर्श लिया जाए।

पत्र लिखने की प्रक्रिया –

  1. प्रारूप में बाईं ओर शीर्ष पर प्रेषक का नाम होता है। इसके नीचे उसका पदनाम होता है।
  2. अर्ध सरकारी पत्र के लिए अमूमन कार्यालय के ‘लेटर हेड’ का प्रयोग होता है, अगर उपलब्ध हो।
  3. पत्र के प्रारंभ में संबोधन के रूप में महोदय या प्रिय महोदय का प्रयोग नहीं होता। ऐसे पत्र में आमतौर पर प्रयोग किया जाने वाला संबोधन ‘प्रिय श्री…’ ‘प्रियवर श्री…’ हो सकता है।
  4. पत्र के अंत में अधोलेख के रूप में दाहिनी ओर ‘भवदीय’ के स्थान पर ‘आपका’ का प्रयोग किया जाता है।
  5. अंत में बाईं ओर संबोधित अधिकारी का नाम, पदनाम और पूरा पता दिया जाता है।

उदाहरण

अखिल भारतीय साहित्य एवं संस्कृति संस्थान
महानिदेशालय

CBSE Class 12 Hindi कार्यालयी पत्र 3

गुफरान अहमद
उपमहानिदेशक
प्रिय श्री कुमार

कृपया 15 मार्च, 20XX और 26 अप्रैल, 20XX को भेजे गए अपने पत्रों का स्मरण करें, जो मोबाइल फ़ोन पर किए जाने वाले मासिक व्यय की सीमा बढ़ाने के बारे में थे।

आपके अनुरोध पर कार्रवाई की जा रही है। चूँकि व्यय सीमा में बढ़ोतरी के लिए बोर्ड की अनुमति आवश्यक है अतः हम इस मसले को बोर्ड की अगली बैठक में प्रस्तुत करेंगे।

इस मसले पर बोर्ड के निर्णय से हम आपको अवगत करा देंगे।

शुभकामनाओं
सहित
आपका
निदेशक
श्री राकेश कुमार
दूरदर्शन केंद्र, मुंबई

टिप्पण अथवा टिप्पणी

किसी भी विचाराधीन पत्र अथवा प्रकरण को निपटाने के लिए उस पर जो राय, मंतव्य, आदेश अथवा निर्देश दिया जाता है वह टिप्पणी कहलाती है। टिप्पणी शब्द अंग्रेज़ी के नोटिंग शब्द के अर्थ में प्रयुक्त होता है। टिप्पणी लिखने की प्रक्रिया को हम टिप्पण यानी नोटिंग कहते हैं।

टिप्पणी का उद्देश्य उन तथ्यों को स्पष्ट तथा तर्कसंगत रूप से प्रस्तुत करना है जिन पर निर्णय लिया जाना है। साथ ही उन बातों की ओर भी संकेत करना है जिनके आधार पर उक्त निर्णय संभवतः लिया जा सकता है। टिप्पण का उद्देश्य मामलों को नियमानुसार निपटाना है।

टिप्पण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-सहायक स्तर पर टिप्पण तथा अधिकारी स्तर पर टिप्पण।

कार्यालय में टिप्पण कार्य अधिकतर सहायक स्तर पर होता है। इसे आरंभिक टिप्पण या मुख्य टिप्पण कहते हैं जिसमें सहायक विचाराधीन मामले का संक्षिप्त ब्योरा देते हुए उसका विवेचन करता है।

टिप्पण लिखने की प्रक्रिया –

  1. टिप्पण में सबसे पहले मूल पत्र या पावती में दिए गए विवरण या तथ्य का सार दिया जाता है। फिर निहित प्रस्ताव की व्याख्या की जाती है और संबंधित नियमों-विनियमों का हवाला देते हुए अपनी राय दी जाती है।
  2. टिप्पणी लिखने के बाद सहायक अधिकारी दाहिनी ओर अपने हस्ताक्षर कर उसे अपने अधिकारी के सम्मुख प्रस्तुत करता है। जिस अधिकारी को प्रस्तुत किया जाना है उसका पदनाम वहाँ बाईं ओर लिखा जाता है।
  3. टिप्पणी लिखने से पूर्व सहायक के लिए संबंधित विषय को समझना बहुत आवश्यक होता है।
  4. टिप्पणी अपने आप में पूर्ण एवं स्पष्ट होनी चाहिए। इसमें असली मुद्दे पर अधिक बल देना चाहिए।
  5. टिप्पणी संक्षिप्त, विषय-संगत, तर्कसंगत और क्रमबद्ध होनी चाहिए।
  6. टिप्पणकार को अपने विचार संतुलित एवं शिष्ट भाषा में देने चाहिए। इसमें व्यक्तिगत आक्षेप, उपदेश या पूर्वाग्रहों के लिए कोई स्थान नहीं होता।
  7. टिप्पणी सदैव अन्य पुरुष में लिखी जाती है।

उदाहरण

मुख्य टिप्पण (नोटिंग)

यह टिप्पणी मुंबई स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के निदेशक के उस पत्र से संबंधित है जिसकी फा. संख्या मुंबई/का./5/20XX जो दिनांक 15 मार्च, 20XX को भेजी गई है। पत्र में निदेशक ने मोबाइल फ़ोन के मासिक व्यय पर लगाई गई सीमा को दो हज़ार रुपए से छह हज़ार रुपए तक बढ़ाए जाने का आग्रह किया गया है।

इस संदर्भ में महानिदेशालय दवारा दिनांक 23 नवंबर, 20… को जारी परिपत्र पर ध्यान देना आवश्यक है जो इस फाइल की पृष्ठ संख्या 12 पर है। इस परिपत्र में खर्च की सीमा दो हज़ार रुपए निर्धारित कर दी गई है और किसी भी परिस्थिति में किसी प्रकार की छूट का प्रावधान नहीं है।

इस सिलसिले में कृपया इस फाइल में इसी विषय पर की गई पहले की टिप्पणी को देखें जो पृष्ठ संख्या 8/टिप्पण पर है। टिप्पणी को पढ़ने से स्पष्ट है कि खर्च की सीमा का निर्धारण सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद सोच-समझकर लिया गया है।

यह भी विचारणीय है कि खर्च की सीमा बोर्ड की स्वीकृति से निर्धारित हुई है और बिना बोर्ड की अनुमति के इसमें किसी भी प्रकार का बदलाव संभव नहीं है।
CBSE Class 12 Hindi कार्यालयी पत्र 4

आनुषंगिक टिप्पणी –

सहायक, आरंभिक या मुख्य टिप्पणी को जब संबंधित अधिकारी के पास भेजता है तो वह अधिकारी टिप्पणी पढ़ने के बाद नीचे मंतव्य लिखता है। इसे आनुषंगिक टिप्पणी कहते हैं और यह क्रिया आनुषंगिक टिप्पणी कहलाती है। अगर अधिकारी अपने अधीनस्थ की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत है तो इस प्रकार की टिप्पणी की आवश्यकता नहीं होती। अधिकारी अधीनस्थ की टिप्पणी के नीचे या तो केवल हस्ताक्षर भर करता है या ‘मैं उपर्युक्त टिप्पणी से सहमत हूँ’, लिखता है।

अगर अधिकारी अपने अधीनस्थ की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत है मगर उसे और सशक्त एवं तर्कसंगत बनाने के लिए अपनी ओर से भी कुछ जोड़ना चाहता है तो वह अपना मंतव्य आनुषंगिक टिप्पणी के रूप में दर्ज कर देता है। यदि अधिकारी पूर्णत: असहमत है या आंशिक रूप से सहमत है तो वह अपने तर्क और कारणों के साथ अपनी आनुषंगिक टिप्पणी करता है।

अधिकारी को अधीनस्थ की टिप्पणी को काटने, बदलने या हटाने का अधिकार नहीं है। वह केवल अपनी सहमति, आंशिक सहमति या असहमति व्यक्त कर सकता है।

आनुषंगिक टिप्पणी प्रायः संक्षिप्त होती है लेकिन असहमति की स्थिति में कई बार इस प्रकार की टिप्पणी बड़ी भी हो सकती है।

उदाहरण

मैं ऊपर लिखी टिप्पणी से सहमत हूँ, साथ ही इस ओर भी ध्यान दिलाना चाहूँगा कि मुंबई कार्यालय के निदेशक पिछले छह महीने से निर्धारित सीमा से अधिक खर्च करते रहे हैं, जो परिपत्र का उल्लंघन है। चूंकि परिपत्र में किसी प्रकार की छूट का प्रावधान नहीं है। अत: अतिरिक्त राशि निदेशक द्वारा देय होनी चाहिए। यह राशि निदेशक के वेतन से काटी जा सकती है।
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अनुस्मारक –

  • जब किसी पत्र, ज्ञापन इत्यादि का उत्तर समय पर प्राप्त नहीं होता तो याद दिलाने के लिए ‘अनुस्मारक’ भेजा जाता है। इसे ‘स्मरण पत्र’ भी कहते हैं।
  • इसका प्रारूप औपचारिक पत्र की तरह ही होता है मगर आकार छोटा होता है।
  • अनुस्मारक के शुरू में पूर्व पत्र का हवाला दिया जाता है।
  • जब एक से अधिक अनुस्मारक भेजे जाते हैं, तो पहले अनुस्मारक को ‘अनुस्मारक-1′, दूसरे ‘अनुस्मारक’, तीसरे को ‘अनुस्मारक-3’ इत्यादि लिखते हैं।

उदाहरण

अखिल भारतीय साहित्य एवं संस्कृति संस्थान
क्षेत्रीय कार्यालय : मुंबई ।

CBSE Class 12 Hindi कार्यालयी पत्र 6

सेवा में
महानिदेशक
अखिल भारतीय साहित्य एवं संस्कृति संस्थान,

तिलक मार्ग, नई दिल्ली-110001
विषय : मोबाइल फ़ोन पर होने वाले व्यय के लिए निर्धारित सीमा

महोदय

कृपया उपर्युक्त विषय पर इस कार्यालय द्वारा भेजे गए समसंख्यक पत्र का स्मरण करें जो 15 मार्च, 20xx को भेजा गया था।
निवेदन है कि मोबाइल फ़ोन की मासिक व्यय सीमा को बढ़ाने संबंधी इस कार्यालय के अनुरोध पर विचार कर कृपया आवश्यक स्वीकृति जारी की जाए।

भवदीय
निदेशक
(राकेश कुमार)

टिप्पण अथवा टिप्पणी

यह अपने स्वरूप में आरंभिक या मुख्य टिप्पणी से काफ़ी मिलती है। चूँकि यह टिप्पणी फाइल के ऊपर लिखकर स्वतंत्र रूप से भेजी जाती है। अतः इसके लिए यह आवश्यक हो जाता है कि यह अपने आप में संपूर्ण हो और केवल इस टिप्पणी को पढ़ लेने भर से पूरा मसला समझ में आ जाए। यदि आवश्यक हो तो संदर्भ के लिए किसी पिछली टिप्पणी, पत्र, ज्ञापन इत्यादि को संलग्नक के रूप में टिप्पणी के साथ लगाया जा सकता है।

बोर्ड के पास भेजी जाने वाली स्वतः स्पष्ट टिप्पणी किसी मसले पर बोर्ड की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए होती है। इसके लिए प्रारंभ में मसले की पृष्ठभूमि दी जाती है और उसके विभिन्न पहलुओं का विवेचन किया जाता है। इसके बाद स्वीकृति क्यों दी जानी चाहिए उसके समर्थन में तर्क दिए जाते हैं। अंत में स्वीकृति प्रदान किए जाने का अनुरोध होता है।

उदाहरण

अखिल भारतीय साहित्य एवं संस्कृति बोर्ड की पचपनवीं बैठक के विचारार्थ प्रस्तुत टिप्पणी विषय-मोबाइल फ़ोन के लिए निर्धारित व्यय सीमा।

बोर्ड ने 12 नवंबर, 20XX को हुई अपनी तैंतालीसवीं बैठक में निर्णय लिया था कि विभिन्न क्षेत्रीय कार्यालयों के निदेशकों को कार्यालय द्वारा प्रदान मोबाइल फ़ोन पर किए जाने वाले खर्च की सीमा दो हज़ार रुपए प्रतिमाह हो (बैठक के कार्यवृत्त का संबंधित अंश संलग्न है)।

बोर्ड के निर्णय का पालन करते हुए महानिदेशालय ने इस संबंध में 23 नवंबर, 20XX को एक परिपत्र जारी किया था। जिसकी एक प्रति संलग्न है।
संस्थान के मुंबई स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में ऐसा महसूस किया जा रहा है कि यह सीमा कार्यालय के दक्ष, सुचारु और प्रभावी संचालन में बाधक बन रही है।

निदेशक ने सूचित किया है कि कार्यालय की गतिविधियों में निरंतर वृद्धि हुई है। जिसकी वजह से निदेशक को मोबाइल फ़ोन का अत्यधिक प्रयोग करना पड़ रहा है। उन्हें विभिन्न विशेषज्ञों, कलाकारों, साहित्यकारों, प्रायोजकों, वरिष्ठ अधिकारियों, सहकर्मियों और अन्य कर्मियों के साथ निरंतर संपर्क में रहना पड़ता है।

कार्यालय की गतिविधियों में जो बढ़ोतरी हुई है उससे कार्यालय का राजस्व भी बढ़ा है। ऐसे में यह आवश्यक प्रतीत होता है कि केंद्र के अनुरोध को स्वीकार करते हुए उनकी मासिक व्यय सीमा दो हज़ार रुपए से बढ़ा कर छह हज़ार रुपए कर दी जाए। बोर्ड के विचारार्थ प्रस्तुत।

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अनुच्छेद लेखन | class 12th | Hindi कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन ncert solution

Class 12 Hindi अनुच्छेद लेखन

हिंदी साहित्य की महत्त्वपूर्ण विधाओं में एक है-अनुच्छेद लेखन। यह अपने मन के भाव-विचार अभिव्यक्त करने की विशिष्ट विधा है जिसके माध्यम से हम संबंधित विचारों को ‘गागर में सागर’ की तरह व्यक्त करते हैं। अनुच्छेद निबंध की तुलना में आकार में छोटा होता है, पर यह अपने में पूर्णता समाहित किए रहता है। इस विधा में बात को घुमा-फिराकर कहने के बजाए सीधे-सीधे मुख्य बिंदु पर आ जाते हैं। इसमें भूमिका और उपसंहार दोनों को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता है। इसी तरह कहावतों, सूक्तियों और अनावश्यक बातों से भी बचने का प्रयास किया जाता है। यहाँ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अनावश्यक बातों को छोड़ते-छोड़ते हम मुख्य अंश को ही न छोड़ जाए और विषय आधा-अधूरा-सा लगने लगे।

अनुच्छेद लेखन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  • विषय का आरंभ मुख्य विषय से करना चाहिए।
  • वाक्य छोटे-छोटे, सरल तथा परस्पर संबद्ध होने चाहिए।
  • भाषा में जटिलता नहीं होनी चाहिए।
  • पुनरुक्ति दोष से बचने का प्रयास करना चाहिए।
  • विषय के संबंध में क्या, क्यों, कैसे प्रश्नों के उत्तर इसी क्रम में देकर लिखने का प्रयास करना चाहिए।

निबंध की भाँति ही अनुच्छेदों को मुख्यतया चार भागों में विभाजित कर सकते हैं –

  1. वर्णनात्मक अनुच्छेद
  2. भावात्मक अनुच्छेद
  3. विचारात्मक अनुच्छेद
  4. विवरणात्मक अनुच्छेद

उदाहरण

मिट्टी तेरे रूप अनेक

संकेत बिंदु –

  • सामान्य धारणा
  • कल्याणकारी रूप
  • मानव शरीर की रचना के लिए आवश्यक
  • बच्चों के लिए मिट्टी।
  • जीवन का आधार

प्रायः जब किसी वस्तु को अत्यंत तुच्छ बताना होता है तो लोग कह उठते हैं कि यह तो मिट्टी के भाव मिल जाएगी। लोगों की धारणा मिट्टी के प्रति भले ही ऐसी हो परंतु तनिक-सी गहराई से विचार करने पर यह धारणा गलत साबित हो जाती है। समस्त जीवधारियों यहाँ तक पेड़-पौधों को भी यही मिट्टी शरण देती है। आध्यात्मवादियों का तो यहाँ तक मानना है कि मानव शरीर निर्माण के लिए जिन तत्वों का प्रयोग हुआ है उनमें मिट्टी भी एक है।

जब तक शरीर ज़िंदा रहता है तब तक मिट्टी उसे शांति और चैन देती है और फिर मृत शरीर को अपनी गोद में समाहित कर लेती है। पृथ्वी पर जीवन का आधार यही मिट्टी है, जिसमें नाना प्रकार के फल, फ़सल और अन्य खाद्य वस्तुएँ पैदा होती हैं, जिसे खाकर मनुष्य एवं अन्य प्राणी जीवित एवं हृष्ट-पुष्ट रहते हैं। यह मिट्टी कीड़े-मकोड़े और छोटे जीवों का घर भी है। यह मिट्टी विविध रूपों में मनुष्य और अन्य जीवों का कल्याण करती है। विभिन्न देवालयों को नवजीवन से भरकर कल्याणकारी रूप दिखाती है। मिट्टी का बच्चों से तो अटूट संबंध है। इसी मिट्टी में लोटकर, खेल-कूदकर वे बड़े होते हैं और बलिष्ठ बनते हैं। मिट्टी के खिलौनों से खेलकर वे अपना मनोरंजन करते हैं। वास्तव में मिट्टी हमारे लिए विविध रूपों में नाना ढंग से उपयोगी है।

आज की आवश्यकता-संयुक्त परिवार

संकेत बिंदु –

  • एकल परिवार का बढ़ता चलन
  • एकल परिवार और वर्तमान समाज
  • संयुक्त परिवार की
  • आवश्यकता
  • बुजुर्गों की देखभाल
  • एकाकीपन को जगह नहीं।

समय सतत परिवर्तनशील है। इसका उदाहरण है-प्राचीनकाल से चली आ रही संयुक्त परिवार की परिपाटी का टूटना और एकल परिवार का चलन बढ़ते जाना। शहरीकरण, बढ़ती महँगाई, नौकरी की चाहत, उच्च शिक्षा, विदेशों में बसने की प्रवृत्ति के कारण एकल परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके अलावा बढ़ती स्वार्थ वृत्ति भी बराबर की जिम्मेदार है। इन एकल परिवारों के कारण आज बच्चों की शिक्षा-दीक्षा, पालन-पोषण, माता-पिता के लिए दुष्कर होता जाता है। जिस एकल परिवार में पति-पत्नी दोनों ही नौकरी करते हों, वहाँ यह और भी दुष्कर बन जाता है। आज समाज में बढ़ते क्रेच और उनमें पलते बच्चे इसका जीता जागता उदाहरण हैं।

प्राचीनकाल में यह काम संयुक्त परिवार में दादा-दादी, चाचा-चाची, ताई-बुआ इतनी सरलता से कर देती थी कि बच्चे कब बड़े हो गए पता ही नहीं चल पाता था। संयुक्त परिवार हर काल में समाज की ज़रूरत थे और रहेंगे। भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवार और भी महत्त्वपूर्ण हैं। बच्चों और युवा पीढ़ी को रिश्तों का ज्ञान संयुक्त परिवार में ही हो पाता है। यही सामूहिकता की भावना, मिल-जुलकर काम करने की भावना पनपती और फलती-फूलती है।

एक-दूसरे के सुख-दुख में काम आने की भावना संयुक्त परिवार में ही पनपती है। संयुक्त परिवार बुजुर्गं सदस्यों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। परिवार के अन्य सदस्य उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं जिससे उन्हें बुढ़ापा कष्टकारी नहीं लगता है। संयुक्त परिवार व्यक्ति को अकेलेपन का शिकार नहीं होने देते हैं। आपसी सुख-दुख बाँटने, हँसी-मजाक करने के साथी संयुक्त परिवार स्वत: उपलब्ध कराते हैं। इससे लोग स्वस्थ, प्रसन्न और हँसमुख रहते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग-मनुष्यता के लिए खतरा

संकेत बिंदु –

  • ग्लोबल वार्मिंग क्या है?
  • समस्या का समाधान।
  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण
  • ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव

गत एक दशक में जिस समस्या ने मनुष्य का ध्यान अपनी ओर खींचा है, वह है-ग्लोबल वार्मिंग। ग्लोबल वार्मिंग का सीधा-सा अर्थ है है-धरती के तापमान में निरंतर वृद्धि। यद्यपि यह समस्या विकसित देशों के कारण बढ़ी है परंतु इसका नुकसान सारी धरती को भुगतना पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारणों के मूल हैं—मनुष्य की बढ़ती आवश्यकताएँ और उसकी स्वार्थवृत्ति।

मनुष्य प्रगति की अंधाधुंध दौड़ में शामिल होकर पर्यावरण को अंधाधुंध क्षति पहँचा रहा है। कल-कारखानों की स्थापना, नई बस्तियों को बसाने, सड़कों को चौड़ा करने के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की गई है। इससे पर्यावरण को दोतरफा नुकसान हुआ है तो इन गैसों को अपनाने वाले पेड़-पौधों की कमी से आक्सीजन, वर्षा की मात्रा और हरियाली में कमी आई है। इस कारण वैश्विक तापमान बढ़ता जा रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण एक ओर धरती की सुरक्षा कवच ओजोन में छेद हुआ है तो दूसरी ओर पर्यावरण असंतुलित हुआ है। असमय वर्षा, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सरदी-गरमी की ऋतुओं में भारी बदलाव आना ग्लोबल वार्मिंग का ही प्रभाव है। इससे ध्रुवों पर जमी बरफ़ पिघलने का खतरा उत्पन्न हो गया है जिससे एक दिन प्राणियों के विनाश का खतरा होगा, अधिकाधिक पौधे लगाकर उनकी देख-भाल करनी चाहिए तथा प्रकृति से छेड़छाड़ बंद कर देना चाहिए। इसके अलावा जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करना होगा। आइए इसे आज से शुरू कर देते हैं, क्योंकि कल तक तो बड़ी देर हो जाएगी।

नर हो न निराश करो मन को

संकेत बिंदु –

  • आत्मविश्वास और सफलता
  • आशा से संघर्ष में विजय
  • कुछ भी असंभव नहीं
  • महापुरुषों की सफलता का आधार।

मानव जीवन को संग्राम की संज्ञा से विभूषित किया है। इस जीवन संग्राम में उसे कभी सुख मिलता है तो कभी दुख। सुख मन में आशा एवं प्रसन्नता का संचार करते हैं तो दुख उसे निराशा एवं शोक के सागर में डुबो देते हैं। इसी समय व्यक्ति के आत्मविश्वास की परीक्षा होती है। जो व्यक्ति इन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपना विश्वास नहीं खोता है और आशावादी बनकर संघर्ष करता है वही सफलता प्राप्त करता है। आत्मविश्वास के बिना सफलता की कामना करना दिवास्वप्न देखने के समान है।

मनुष्य के मन में यदि आशावादिता नहीं है और वह निराश मन से संघर्ष करता भी है तो उसकी सफलता में संदेह बना रहता है। कहा भी गया है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत। मन में जीत के प्रति हमेशा आशावादी बने रहना जीत का आधार बन जाता है। यदि मन में आशा संघर्ष करने की इच्छा और कर्मठता हो तो मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। वह विपरीत परिस्थितियों में भी उसी प्रकार विजय प्राप्त करता है जैसा नेपोलियन बोनापार्ट ने।

इसी प्रकार निराशा, काम में हमें मन नहीं लगाने देती है और आधे-अधूरे मन से किया गया कार्य कभी सफल नहीं होता है। संसार के महापुरुषों ने आत्मविश्वास, दृढनिश्चय, संघर्षशीलता के बल पर आशावादी बनकर सफलता प्राप्त की। अब्राहम लिंकन हों या एडिसन, महात्मा गांधी हों या सरदार पटेल सभी ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आशावान रहे और अपना-अपना लक्ष्य पाने में सफल रहे। सैनिकों के मन में यदि एक पल के लिए भी निराशा का भाव आ जाए तो देश को गुलाम बनने में देर न लगेगी। मनुष्य को सफलता पाने के लिए सदैव आशावादी बने रहना चाहिए।

सबको भाए मधुर वाणी

संकेत बिंदु –

  • मधुर वाणी सबको प्रिय
  • मधुर वाणी एक औषधि
  • मधुरवाणी का प्रभाव
  • मधुर वाणी की प्रासंगिकता।

मधुर वाणी की महत्ता प्रकट करने वाला एक दोहा है –

कोयल काको दुख हरे, कागा काको देय।
मीठे वचन सुनाए के, जग अपनो करि लेय।।

यूँ तो कोयल और कौआ दोनों ही देखने में एक-से होते हैं परंतु वाणी के कारण दोनों में जमीन आसमान का अंतर हो जाता है। दोनों पक्षी किसी को न कुछ देते हैं और न कुछ लेते हैं परंतु कोयल मधुर वाणी से जग को अपना बना लेती है और कौआ अपनी कर्कश वाणी के कारण भगाया जाता है। कोयल की मधुर वाणी कर्ण प्रिय लगती है और उसे सब सुनने को इच्छुक रहते हैं। यही स्थिति समाज की है। समाज में वे लोग सभी के प्रिय बन जाते हैं जो मधुर बोलते हैं जबकि कटु बोलने वालों से सभी बचकर रहना चाहते हैं।

मधुर वाणी औषधि के समान होती है जो सुनने वालों के तन और मन को शीतलकर देती है। इससे लोगों को सुखानुभूति होती है। इसके विपरीत कटुवाणी उस तीखे तीर की भाँति होती है जो कानों के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करती है और पूरे शरीर को कष्ट पहुँचाती है। कड़वी बोली जहाँ लोगों को ज़ख्म देती है वहीं मधुर वाणी वर्षों से हुए मन के घाव को भर देती है। मधुर वाणी किसी वरदान के समान होती है जो सुनने वाले को मित्र बना देती है। मधुर वाणी सुनकर शत्रु भी अपनी शत्रुता खो बैठते हैं।

इसके अलावा जो मधुर वाणी बोलते हैं उन्हें खुद को संतुष्टि और सुख की अनुभूति होती है। इससे व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावी एवं आकर्षक बन जाता है। इससे व्यक्ति के बिगड़े काम तक बन जाते हैं। कोई भी काल रहा हो मधुर वाणी का अपना विशेष महत्त्व रहा है। इस भागमभाग की जिंदगी में जब व्यक्ति कार्य के बोझ, दिखावा और भौतिक सुखों को एकत्रकर पाने की होड़ में तनावग्रस्त होता जा रहा है तब मधुर वाणी का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। हमें सदैव मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए।

बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भूमिका

संकेत बिंदु –

  • शिक्षा और माता-पिता
  • शिक्षा की महत्ता
  • उत्तरदायित्व
  • शिक्षाविहीन नर पशु समान।

संस्कृत में एक श्लोक है –

माता शत्रु पिता वैरी, येन न बालो पाठिता।
न शोभते सभा मध्ये हंस मध्ये वको यथा।।

अर्थात वे माता-पिता बच्चे के लिए शत्रु के समान होते हैं जो अपने बच्चों को शिक्षा नहीं देते। ये बच्चे शिक्षितों की सभा में उसी तरह होते हैं जैसे हंसों के बीच बगुला। एक बच्चे के लिए परिवार प्रथम पाठशाला होती है और माता-पिता उसके प्रथम शिक्षक। माता-पिता यहाँ अभी अपनी भूमिका का उचित निर्वाह तो करते हैं पर जब बच्चा विद्यालय जाने लायक होता है तब कुछ मातापिता उनके शिक्षा-दीक्षा पर ध्यान नहीं देते हैं और अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं। ऐसे में बालक जीवन भर के लिए निरक्षर हो जाता है। मानव जीवन में शिक्षा की विशेष महत्ता एवं उपयोगिता है। शिक्षा के बिना जीवन अंधकारमय हो जाता है।

कभी वह साहूकारों के चंगुल में फँसता है तो कभी लोभी दुकानदारों के। उसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर होता है। वह समाचार पत्र, पत्रिकाओं, पुस्तकों आदि का लाभ नहीं उठा पाता है। उसे कदम-कदम पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ऐसे में माता-पिता का उत्तरदायित्व है कि वे अपने बच्चों के पालन-पोषण के साथ ही उनकी शिक्षा की भली प्रकार व्यवस्था करें। कहा गया है कि विद्याविहीन नर की स्थिति पशुओं जैसी होती है, बस वह घास नहीं खाता है। शिक्षा से ही मानव सभ्य इनसान बनता है। हमें भूलकर भी शिक्षा से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए।

जीवन में सरसता लाते त्योहार

संकेत बिंदु –

  • त्योहारों का देश भारत
  • नीरसता भगाते त्योहार
  • त्योहारों के लाभ
  • त्योहारों पर महँगाई का असर।

भारतवासी त्योहार प्रिय होते हैं। यहाँ त्योहार ऋतुओं और भारतीय महीनों के आधार पर मनाए जाते हैं। साल के बारह महीनों में शायद ही कोई ऐसा महीना हो जब त्योहार न मनाया जाता हो। चैत महीने में राम नवमी मनाने से त्योहारों का जो सिलसिला शुरू होता है, वह बैसाखी, गंगा दशहरा मनाने के क्रम में नाग पंचमी, तीज, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, दशहरा, दीपावली, क्रिसमस, लोहिड़ी से आगे बढ़कर वसंत पंचमी तथा होली पर ही आकर रुकती है। इसी बीच पोंगल, ईद जैसे त्योहार भी अपने समय पर मनाए जाते हैं।

त्योहार थके हारे मनुष्य के मन में उत्साह का संचार करते हैं और खुशी एवं उल्लास से भर देते हैं। वे लोगों को बँधी-बँधाई जिंदगी को अलग ही ढर्रे पर ले जाते हैं। इससे जीवन की ऊब एवं नीरसता गायब हो जाती है। त्योहार मनुष्य को मेल-मिलाप का अवसर देते हैं। इससे लोगों के बीच की कटुता दूर होती है। त्योहार लोगों में सहयोग और मिल-जुलकर कर रहने की प्रेरणा देते हैं। एकता बढ़ाने में त्योहारों का विशेष महत्त्व है। वर्तमान समय में त्योहार अपना स्वरूप खोते जा रहे हैं। इनको महँगाई ने बुरी तरह से प्रभावित किया है। इसके अलावा त्योहारों पर बाज़ार का असर पड़ा है। अब प्रायः बाज़ार में बिकने वाले सामानों की मदद से त्योहारों को जैसे-तैसे मना लिया जाता है। इसका कारण लोगों की व्यस्तता और समय की कमी है। त्योहार हमारी संस्कृति के अंग हैं। हमें त्योहारों को मिल-जुलकर हर्षोल्लास से मनाना चाहिए।

जीना मुश्किल करती महँगाई
अथवा
दिनोंदिन बढ़ती महँगाई

संकेत बिंदु –

  • महँगाई और आम आदमी पर प्रभाव
  • कारण
  • महँगाई रोकने के उपाय
  • सरकार के कर्तव्य।

महँगाई उस समस्या का नाम है, जो कभी थमने का नाम नहीं लेती है। मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के साथ ही गरीब वर्ग को जिस समस्या ने सबसे ज़्यादा त्रस्त किया है वह महँगाई ही है। समय बीतने के साथ ही वस्तुओं का मूल्य निरंतर बढ़ते जाना महँगाई कहलाता है। इसके कारण वस्तुएँ आम आदमी की क्रयशक्ति से बाहर होती जाती हैं और ऐसा व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताएँ तक पूरा नहीं कर पाता है। ऐसी स्थिति में कई बार व्यक्ति को भूखे पेट सोना पड़ता है।

महँगाई के कारणों को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि इसे बढ़ाने में मानवीय और प्राकृतिक दोनों ही कारण जिम्मेदार हैं। मानवीय कारणों में लोगों की स्वार्थवृत्ति, लालच अधिकाधिक लाभ कमाने की प्रवृत्ति, जमाखोरी और असंतोष की भावना है। इसके अलावा त्याग जैसे मानवीय मूल्यों की कमी भी इसे बढ़ाने में आग में घी का काम करती है। सूखा, बाढ़ असमय वर्षा, आँधी, तूफ़ान, ओलावृष्टि के कारण जब फ़सलें खराब होती हैं तो उसका असर उत्पादन पर पड़ता है।

इससे एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति पैदा होती है और महँगाई बढ़ती है। महँगाई रोकने के लिए लोगों में मानवीय मूल्यों का उदय होना आवश्यक है ताकि वे अपनी आवश्यकतानुसार ही वस्तुएँ खरीदें। इसे रोकने के लिए जनसंख्या वृद्धि पर लगाम लगाना आवश्यक है। महँगाई रोकने के लिए सरकारी प्रयास भी अत्यावश्यक है। सरकार को चाहिए कि वह आयात-निर्यात नीति की समीक्षा करे तथा जमाखोरों पर कड़ी कार्यवाही करें और आवश्यक वस्तुओं का वितरण रियायती मूल्य पर सरकारी दुकानों के माध्यम से करें।

समाचार-पत्र एक : लाभ अनेक
अथवा
समाचार-पत्र : ज्ञान और मनोरंजन का साधन

संकेत बिंदु –

  • जिज्ञासा पूर्ति का सस्ता एवं सुलभ साधन
  • रोज़गार का साधन
  • समाचार पत्रों के प्रकार
  • जानकारी के साधन।

मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अपने समाज और आसपास के अलावा देश-दुनिया की जानकारी के लिए जिज्ञासु रहता है। उसकी इस जिज्ञासा की पूर्ति का सर्वोत्तम साधन है-समाचार-पत्र, जिसमें देश-विदेश तक के समाचार आवश्यक चित्रों के साथ छपे होते हैं। सुबह हुई नहीं कि शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में समाचार पत्र विक्रेता घर-घर तक इनको पहुँचाने में जुट जाते हैं। कुछ लोग तो सोए होते हैं और समाचार-पत्र दरवाज़े पर आ चुका होता है। अब समाचार पत्र अत्यंत सस्ता और सर्वसुलभ बन गया है।

समाचार पत्रों के कारण लाखों लोगों को रोजगार मिला है। इनकी छपाई, ढुलाई, लादने-उतारने में लाखों लगे रहते हैं तो एजेंट, हॉकर और दुकानदार भी इनसे अपनी जीविका चला रहे हैं। इतना ही नहीं पुराने समाचार पत्रों से लिफ़ाफ़े बनाकर एक वर्ग अपनी आजीविका चलाता है। छपने की अवधि पर समाचार पत्र कई प्रकार के होते हैं।

प्रतिदिन छपने वाले समाचार पत्रों को दैनिक, सप्ताह में एक बार छपने वाले समाचार पत्रों को साप्ताहिक, पंद्रह दिन में छपने वाले समाचार पत्र को पाक्षिक तथा माह में एक बार छपने वाले को मासिक समाचार पत्र कहते हैं। अब तो कुछ शहरों में शाम को भी समाचार पत्र छापे जाने लगे हैं। समाचार पत्र हमें देशदुनिया के समाचारों, खेल की जानकारी मौसम तथा बाज़ार संबंधी जानकारियों के अलावा इसमें छपे विज्ञापन भी भाँति-भाँति की जानकारी देते हैं।

सबसे प्यारा देश हमारा
अथवा
विश्व की शान-भारत

संकेत बिंदु –

  • भौगोलिक स्थिति
  • प्राकृतिक सौंदर्य
  • विविधता में एकता की भावना
  • अत्यंत प्राचीन संस्कृति।

सौभाग्य से दुनिया के जिस भू-भाग पर मुझे जन्म लेने का अवसर मिला दुनिया उसे भारत के नाम से जानती है। हमारा देश एशिया महाद्वीप के दक्षिणी छोर पर स्थित है। यह देश तीन ओर समुद्र से घिरा है। इसके उत्तर में पर्वतराज हिमालय हैं, जिसके चरण सागर पखारता है। इसके पश्चिम में अरब सागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी है। चीन, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका आदि इसके पड़ोसी देश हैं। हमारे देश का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम है। हिमालय की बरफ़ से ढंकी सफ़ेद चोटियाँ भारत के सिर पर रखे मुकुट में जड़े हीरे-सी प्रतीत होती हैं। यहाँ बहने वाली गंगा-यमुना, घाघरा, ब्रह्मपुत्र आदि नदियाँ इसके सीने पर धवल हार जैसी लगती हैं।

चारों ओर लहराती हरी-भरी फ़सलें और वृक्ष इसका परिधान प्रतीत होते हैं। यहाँ के जंगलों में हरियाली का साम्राज्य है। भारत में नाना प्रकार की विविधता दृष्टिगोचर होती है। यहाँ विभिन्न जाति-धर्म के अनेक भाषा-भाषी रहते है। यहाँ के परिधान, त्योहार मनाने के ढंग और खान-पान व रहन-सहन में खूब विविधता मिलती है। यहाँ की जलवायु में भी विविधता का बोलबाला है, फिर भी इस विविधता के मूल में एकता छिपी है। देश पर कोई संकट आते ही सभी भारतीय एकजुट हो जाते हैं।

हमारे देश की संस्कृति अत्यंत प्राचीन और समृद्धिशाली है। परस्पर एकता, प्रेम, सहयोग और सहभाव से रहना भारतीयों की विशेषता रही है। ‘अतिथि देवो भवः’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना भारतीय संस्कृति का आधार है। हमारा देश भारत विश्व की शान है जो अपनी अलग पहचान रखता है। हमें अपने देश पर गर्व है।

सुरक्षा का आवरण : ओजोन
अथवा
पृथ्वी का रक्षक : अदृश्य ओजोन

संकेत बिंदु –

  • ओजोन परत क्या है?
  • मनुष्य की प्रगति और ओजोन परत
  • ओजोन नष्ट होने का कारण
  • ओजोन बचाएँ जीवन बचाएँ।

मनुष्य और प्रकृति का अनादिकाल से रिश्ता है। प्रकृति ने मनुष्य की सुरक्षा के लिए अनेक साधन प्रदान किए हैं। इनमें से एक है-ओजोन की परत। पृथ्वी पर जीवन के लिए जो भी अनुकूल परिस्थितियाँ हैं, उन्हें बनाए और बचाएँ रखने में ओजोन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। पृथ्वी पर चारों ओर वायुमंडल का उसी तरह रक्षा करता है जिस तरह बरसात से हमें छाते बचाते हैं। इसे पृथ्वी का रक्षा कवच भी कहा जाता है। मनुष्य ज्यों-ज्यों सभ्य होता गया त्यों-त्यों उसकी आवश्यकताएँ बढ़ती गईं। बढ़ती जनसंख्या की भोजन और आवास संबंधी आवश्यकता के लिए उसने वनों की अंधाधुंध कटाई की जिससे धरती पर कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ी। कुछ और विषाक्त गैसों से मिलकर कार्बन डाईऑक्साइड ने इस परत में छेद कर दिया जिससे सूर्य की पराबैगनी किरणें धरती पर आने लगीं और त्वचा के कैंसर के साथ अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ गया। इन पराबैगनी किरणों को धरती पर आने से ओजोन की परत रोकती है। ओजोन की परत नष्ट करने में विभिन्न प्रशीतक यंत्रों में प्रयोग की जाने वाली क्लोरो प्लोरो कार्बन का भी हाथ है। यदि पृथ्वी पर जीवन बनाए रखना है तो हमें ओजोन परत को बचाना होगा। इसके लिए धरती पर अधिकाधिक पेड़ लगाना होगा तथा कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन कम करना होगा।

भ्रष्टाचार का दानव
अथवा
भ्रष्टाचार से देश को मुक्त बनाएँ

संकेत बिंदु –

  • भ्रष्टाचार क्या है?
  • देश के लिए घातक
  • भ्रष्टाचार का दुष्प्रभाव
  • लोगों की भूमिका।

भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-नैतिक एवं मर्यादापूर्ण आचारण से हटकर आचरण करना। इस तरह का आचरण जब सत्ता में बैठे लोगों या कार्यालयों के अधिकारियों द्वारा किया जाता है तब जन साधारण के लिए समस्या उत्पन्न हो जाती है। पक्षपात करना, भाई-भतीजावाद को प्रश्रय देना, रिश्वत माँगना, समय पर काम न करना, काम करने के बदले अनुचित माँग रख देना, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं। भ्रष्टाचार समाज और देश के लिए घातक है।

दुर्भाग्य से आज हमारे समाज में इसकी जड़ें इतनी गहराई से जम चुकी हैं कि इसे उखाड़ फेंकना आसान नहीं रह गया है। भ्रष्टाचार के कारण देश की मानमर्यादा कलंकित होती है। इसे किसी देश के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। भ्रष्टाचार के कारण ही आज रिश्वतखोरी, मुनाफाखोरी, चोरबाज़ारी, मिलावट, भाई-भतीजावाद, कमीशनखोरी आदि अपने चरम पर हैं। इससे समाज में विषमता बढ़ रही है। लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है और विकास का मार्ग अवरुद्ध होता जा रहा है।

इसके कारण सरकारी व्यवस्था एवं प्रशासन पंगु बन कर रह गए हैं। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए लोगों में मानवीय मूल्यों को प्रगाढ़ करना चाहिए। इसके लिए नैतिक शिक्षा की विशेष आवश्यकता है। लोगों को अपने आप में त्याग एवं संतोष की भावना मज़बूत करनी होगी। यद्यपि सरकारी प्रयास भी इसे रोकने में कारगर सिद्ध होते हैं पर लोगों द्वारा अपनी आदतों में सुधार और लालच पर नियंत्रण करने से यह समस्या स्वतः कम हो जाएगी।

भारतीय नारी की दोहरी भूमिका
अथवा
कामकाजी स्त्रियों की चुनौतियाँ

संकेत बिंदु –

  • प्राचीनकाल में नारी की स्थिति
  • वर्तमान में नौकरी की आवश्यकता
  • दोहरी भूमिका और चुनौतियाँ
  • सुरक्षा और सोच में बदलाव की आवश्यकता।

परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह परिवर्तन समय के साथ स्वतः होता रहता है। मनुष्य भी इस बदलाव से अछूता नहीं है। प्राचीन काल में मनुष्य ने न इतना विकास किया था और न वह इतना सभ्य हो पाया था। तब उसकी आवश्यकताएँ सीमित थीं। ऐसे में पुरुष की कमाई से घर चल जाता था और नारी की भूमिका घर तक सीमित थी। उसे बाहर जाकर काम करने की आवश्यकता न थी। वर्तमान समय में मनुष्य की आवश्यकता इतनी बढ़ी हुई है कि इसे पूरा करने के लिए पुरुष की कमाई अपर्याप्त सिद्ध हो रही है और नारी को नौकरी के लिए घर से बाहर कदम बढ़ाना पड़ा। आज की नारी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लगभग हर क्षेत्र में काम करती दिखाई देती हैं।

आज की नारी दोहरी भूमिका का निर्वाह कर रही है। घर में उसे खाना पकाने, घर की सफ़ाई, बच्चों की देखभाल और उनकी शिक्षा का दायित्व है तो वह कार्यालयों के अलावा खेल, राजनीति साहित्य और कला आदि क्षेत्रों में उतनी ही कुशलता और तत्परता से कार्य कर रही है। वह दोनों जगह की ज़िम्मेदारियों की चुनौतियों को सहर्ष स्वीकारती हुई आगे बढ़ रही है और दोहरी भूमिका का निर्वहन कर रही है। वर्तमान में नारी द्वारा घर से बाहर आकर काम करने पर सुरक्षा की आवश्यकता महसूस होने लगी है। कुछ लोगों की सोच ऐसी बन गई है कि वे ऐसी स्त्रियों को संदेह की दृष्टि से देखते हैं। ऐसी स्त्रियों को प्रायः कार्यालय में पुरुष सहकर्मियों तथा आते-जाते कुछ लोगों की कुदृष्टि का सामना करना पड़ता है। इसके लिए समाज को अपनी सोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है।

बढ़ती जनसंख्या : प्रगति में बाधक
अथवा
समस्याओं की जड़ : बढ़ती जनसंख्या

संकेत बिंदु –

  • जनसंख्या वृद्धि बनी समस्या
  • संसाधनों पर असर
  • वृद्धि के कारण
  • जनसंख्या रोकने के उपाय।

किसी राष्ट्र की प्रगति के लिए जनसंख्या एक महत्त्वपूर्ण संसाधन होती है, पर जब यह एक सीमा से अधिक हो जाती है तब यह समस्या का रूप ले लेती है। जनसंख्या वृद्धि एक ओर स्वयं समस्या है तो दूसरी ओर यह अनेक समस्याओं की जननी भी है। यह परिवार, समाज और राष्ट्र की प्रगति पर बुरा असर डालती है। जनसंख्या वृद्धि के साथ देश के विकास की स्थिति ‘ढाक के तीन पात वाली’ बनकर रह जाती है।

प्रकृति ने लोगों के लिए भूमि वन आदि जो संसाधन प्रदान किए हैं, जनाधिक्य के कारण वे कम पड़ने लगते हैं तब मनुष्य प्रकृति के साथ खिलवाड़ शुरू कर देता है। वह अपनी बढ़ी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों का विनाश करता है। इससे प्राकृतिक असंतुलन का खतरा पैदा होता है जिससे नाना प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। जनसंख्या वृद्धि के लिए हम भारतीयों की सोच काफ़ी हद तक जिम्मेदार है। यहाँ की पुरुष प्रधान सोच के कारण घर में पुत्र जन्म आवश्यक माना जाता है।

भले ही एक पुत्र की चाहत में छह, सात लड़कियाँ क्यों न पैदा हो जाएँ पर पुत्र के बिना न तो लोग अपना जन्म सार्थक मानते हैं और न उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती दिखती है। इसके अलावा अशिक्षा, गरीबी और मनोरंजन के साधनों का अभाव भी जनसंख्या वृद्धि में योगदान देता है। जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए लोगों का इसके दुष्परिणामों से अवगत कराकर जन जागरूकता फैलाई जानी चाहिए। सरकार द्वारा परिवार नियोजन के साधनों का मुफ़्त वितरण किया जाना चाहिए तथा ‘जनसंख्या वृद्धि’ को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए।

मोबाइल फ़ोन : सुखद व दुखद भी
अथवा
विज्ञान की अद्भुत खोज : मोबाइल फ़ोन

संकेत बिंदु –

  • विज्ञान की अद्भुत खोज
  • फ़ोनों की बदलती दुनिया में
  • संचार क्षेत्र में क्रांति
  • सस्ता और सुलभ साधन
  • लाभ और हानियाँ।

विज्ञान ने मानव जीवन को विविध रूपों में प्रभावित किया है। शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहाँ विज्ञान ने हस्तक्षेप न किया हो। समय-समय पर हुए आश्चर्यजनक आविष्कारों ने मानव जीवन को बदलकर रख दिया है। विज्ञान की इन्हीं अद्भुत खोजों में एक है मोबाइल फ़ोन जिससे मनुष्य इतना प्रभावित हुआ कि आप हर किशोर ही नहीं हर आयु वर्ग के लोग इसका प्रयोग करते देखे जा सकते हैं। वास्तव में मोबाइल फ़ोन इतना उपयोगी और सुविधापूर्ण साधन है कि हर व्यक्ति इसे अपने पास रखना चाहता है और इसका विभिन्न रूपों में प्रयोग भी कर रहा है। संचार की दुनिया में फ़ोन का आविष्कार एक क्रांति थी। तारों के माध्यम से जुड़े फ़ोन पर अपने प्रियजनों से बातें करना एक रोमांचक अनुभव था। शुरू में फ़ोन महँगे और कई उपकरणों का मेल हुआ करते थे। इन्हें लाना-ले-जाना संभव न था।

हमें बातें करने के लिए इनके पास जाना पड़ता था पर मोबाइल फ़ोन जेब में रखकर कहीं भी लाया-ले जाया जा सकता है। अब यह सर्वसुलभ भी बन गया है। वास्तव में मोबाइल फ़ोन का आविष्कार संचार के क्षेत्र में क्रांति से कम नहीं है। आज मोबाइल फ़ोन पर बातें करने के अलावा फ़ोटो खींचना, गणनाएँ करना, फाइलें सुरक्षित रखना जैसे बहुत से काम किए जा रहे हैं क्योंकि यह जेब का कंप्यूटर बन गया है। कुछ लोग इसका दुरुपयोग करने से नहीं चूकते हैं। असमय फ़ोन करके दूसरों को परेशान करना, अवांछित फ़ोटो खींचना जैसे कार्य करके इसका दुरुपयोग करते हैं। इसके कारण छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा है। इसका आवश्यकतानुरूप ही प्रयोग करना चाहिए।

सादा जीवन उच्च विचार
अथवा
मर्यादित जीवन का आधार : सादा जीवन उच्च विचार

संकेत बिंदु –

  • भारतीय संस्कृति और सादा जीवन उच्च विचार
  • महत्ता
  • महापुरुषों ने अपना सादा जीवन उच्च विचार
  • वर्तमान स्थिति।

भारतीय संस्कृति को समृद्धशाली और लोकप्रिय बनाने में जिन तत्त्वों का योगदान है उनमें एक है-सादा जीवन उच्च विचार। सादा जीवन उच्च विचार रहन-सहन की एक शैली है जिससे भारतीय ही नहीं विदेशी तक प्रभावित हुए हैं। प्राचीनकाल में हमारे देश के ऋषि मुनि भी इसी जीवन शैली को अपनाते थे। भारतीयों को प्राचीनकाल से ही सरल और सादगीपूर्ण जीवन पसंद रहा है। इनके आचरण में त्याग, दया, सहानुभूति, करुणा, स्नेह उदारता, परोपकार की भावना आदि गुण विद्यमान हैं।

मनुष्य के सादगीपूर्ण जीवन के लिए इन गुणों की प्रगाढ़ता आवश्यक है। भारतीयों का जीवन किसी तप से कम नहीं रहा है क्योंकि उनके विचारों में महानता और जीवन में सादगी रही है। प्राचीनकाल से ही यह नियम बना दिया गया था कि जीवन के आरंभिक 25 वर्ष को ब्रह्मचर्य जीवन के रूप में बिताया जाय। इस काल में बालक गुरुकुलों में रहकर सादगी और नियम का पाठ सीख जाता था। इनका जीवन ऐशो-आराम और विलासिता से कोसों दूर हुआ करता था।

यही बाद में भारतीयों के जीवन का आधार बन जाता था। महात्मा गांधी, सरदार पटेल आदि का जीवन सादगी का दूसरा नाम था। वे एक धोती में जिस सादगी से रहते थे वह दूसरों के लिए आदर्श बन गया। वे दूसरों के लिए अनुकरणीय बन गए। अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन भी सादगीपूर्ण जीवन बिताते थे। दुर्भाग्य से आज लोगों की सोच में बदलाव आ गया है। अब सादा जीवन जीने वालों को गरीबी और पिछड़ेपन का प्रतीक माना जाने लगा है। अब लोगों की पहचान उनके कपड़ों से की जाने लगी है। लोग उपभोग को ही सुख मान बैठे हैं। सुख एकत्र करने की चाहत में अब जीवन तनावपूर्ण बनता जा रहा है।

सांप्रदायिकता का फैलता जहर
अथवा
मानवता के लिए घातक : सांप्रदायिकता का जहर

संकेत बिंदु –

  • सांप्रदायिकता-अर्थ एवं कारण
  • सांप्रदायिकता का जहर
  • सांप्रदायिकता की रोकथाम
  • हमारी भूमिका।

धर्म के बिगड़े एवं कट्टर रूप को सांप्रदायिकता की संज्ञा दी जा सकती है। ‘धारयति इति धर्मः’ अर्थात् जिसे धारण किया जाए वही धर्म है। मनुष्य अपने आचरण और जीवन को मर्यादित रखने के लिए धर्म का सहारा लिया करता था। बाद में धर्म ने एक जीवन पद्धति का रूप ले लिया। धर्म का यह रूप मनुष्य और समाज के लिए कल्याणकारी माना जाता था। धीरे-धीरे लोगों की सोच में बदलाव आया और धर्म का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करना शुरू कर दिया। यहीं से धर्म में विकृति आई।

लोगों में अपने धर्म के प्रति कट्टरता आने लगी और सांप्रदायिकता अपना रंग दिखाने लगी। सांप्रदायिकता के वशीभूत होकर मनुष्य वाणी और कर्म से दूसरे धर्मावलंबियों की भावनाएँ भड़काता है जो व्यक्ति समाज और राष्ट्र सभी के लिए हानिकारक होती है। दुर्भाग्य से यह कार्य आज समाज के तथा कथित ठेकेदार और समाज सुधारक कहलाने वाले नेता खुले आम कर रहे हैं जिससे लोगों का आपसी विश्वास घट रहा है। इसके अलावा धार्मिक सद्भाव, सहिष्णुता, भाई-चारा, आपसी सौहार्द्र नष्ट हो रहा है तथा घृणा की भावना प्रगाढ़ हो रही है।

सांप्रदायिकता की रोक थाम के लिए धार्मिक भावनाओं को भड़काना बंद किया जाना चाहिए। ऐसा करने वालों को कठोर दंड देना चाहिए। हमारे नेताओं को चाहिए कि वे वोट की राजनीति बंद करें और लोगों को जाति-धर्म के आधार पर न बाँटें। इस स्थिति में हमारा कर्तव्य यह होना चाहिए कि हम किसी के बहकावे में न आएँ और सद्भाव बनाए रखते हुए दूसरों की भावनाएँ और उनके धर्मों का भी आदर करें।

सुविधाओं का भंडार : कंप्यूटर
अथवा
कंप्यूटर : आज की आवश्यकता

संकेत बिंदु –

  • विज्ञान की अद्भुत खोज
  • बढ़ता प्रयोग
  • ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार
  • अधिक प्रयोग हानिकारक।

विज्ञान ने मनुष्य को जो अद्भुत उपकरण प्रदान किए हैं उनमें प्रमुख है-कंप्यूटर। कंप्यूटर ऐसा चमत्कारी उपकरण है जो हमारी कल्पना को साकार रूप दे रहा है। जिन बातों की कल्पना कभी मनुष्य किया करता था, उन्हें कंप्यूटर पूरा कर रहा है। यह बहूपयोगी उपकरण है जिससे मनुष्य की अनेकानेक समस्याएँ हल हुई हैं। कंप्यूटर में लगा उच्च तकनीकि वाला मस्तिष्क मनुष्य की सोच से भी अधिक तेजी से कार्य करता है जिससे मनुष्य का समय और भ्रम दोनों ही बचने लगा है।

आज कंप्यूटर का प्रयोग हर छोटे-बड़े सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों में किया जाने लगा है। इसका प्रयोग इतनी जगह पर किया जा रहा है कि इसे शब्दों में बाँधना कठिन है। पुस्तक प्रकाशन, बैंकों में खाते का रख-रखाव, फाइलों की सुरक्षा, रेल और वायुयान के टिकटों का आरक्षण, रोगियों के आपरेशन, बीमारियों की खोज, विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण आदि में इसका प्रयोग अत्यावश्यक हो गया है। अब तो छात्र अपनी पढ़ाई और लोग अपने व्यक्तिगत प्रयोग के लिए इसका प्रयोग आवश्यक मानने लगे हैं। कंप्यूटर पर अब पीडीएफ (PDF) फ़ॉर्म में पुस्तकें अपलोड कर दी जाती हैं। अब छात्रों को बस एक बटन दबाने की ज़रूरत है।

ज्ञान का संसार कंप्यूटर की स्क्रीन पर प्रकट हो जाता है। अब उन्हें न भारी भरकम बस्ता उठाने की ज़रूरत है और न मोटी-मोटी पुस्तकें। इसके अलावा कंप्यूटर पर गीत सुनने, फ़िल्में देखने और गेम खेलने की सुविधा भी उपलब्ध रहती है। कंप्यूटर का अत्यधिक प्रयोग हमें आलसी और मोटापे का शिकार बनाता है। इंटरनेट के जुड़ जाने से कुछ लोग इसका दुरुपयोग करते हैं। कंप्यूटर का अधिक प्रयोग हमारी आँखों के लिए हानिकारक है। हमें कंप्यूटर का प्रयोग सोच समझकर करना चाहिए।

मनोरंजन के साधनों की बढ़ती दुनिया
अथवा
मनोरंजन का बदलता स्वरूप

संकेत बिंदु –

  • मनोरंजन की आवश्यकता
  • मनोरंजन के प्राचीन साधन
  • मनोरंजन के साधनों में बदलाव
  • आधुनिक साधनों के लाभ-हानियाँ।

मनुष्य श्रमशील प्राणी है। वह आदिकाल से श्रम करता रहा है। इस श्रम के उपरांत थकान उत्पन्न होना स्वाभाविक है। पहले वह भोजन की तलाश एवं जंगली जानवरों से बचने के लिए श्रम करता था। बाद में उसकी आवश्यकता बढ़ीं अब वह मानसिक और शारीरिक श्रम करने लगा। श्रम की थकान उतारने एवं ऊर्जा प्राप्त करने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता महसूस हुई। इसके लिए उसने विभिन्न साधन अपनाए। प्राचीन काल में मनुष्य पशु-पक्षियों के माध्यम से अपना मनोरंजन करता था।

वह पक्षी और जानवर पालता था। उनकी बोलियों और उनकी लड़ाई से वह मनोरंजन करता था। इसके अलावा शिकार करना भी उसके मनोरंजन का साधन था। इसके बाद ज्यों-ज्यों समय में बदलाव आया, उसके मनोरंजन के साधन भी बढ़ते गए। मध्यकाल तक मनुष्य ने नृत्य और गीत का सहारा लेना शुरू किया। नाटक, गायन, वादन, नौटंकी, प्रहसन काव्य पाठ आदि के माध्यम से वह आनंदित होने लगा। खेल तो हर काल में मनोरंजन का साधन रहे हैं। आज मनोरंजन के साधनों में भरपूर वृद्धि हुई है।

अब तो मोबाइल फ़ोन पर गाने सुनना, फ़िल्म देखना, सिनेमा जाना, देशाटन करना, कंप्यूटर का उपयोग करना, चित्रकारी करना, सरकस देखना, पर्यटन स्थलों का भ्रमण करना उसके मनोरंजन में शामिल हो गया है। मनोरंजन के आधुनिक साधन घर बैठे बिठाए व्यक्ति का मनोरंजन तो करते हैं पर व्यक्ति में मोटापा, रक्तचाप की समस्या, आलस्य, एकांतप्रियता और समाज से अलग-थलग रहने की प्रवृत्ति उत्पन्न कर रहे हैं।

दहेज का दानव
अथवा
दहेज प्रथा : एक सामाजिक समस्या

संकेत बिंदु –

  • दहेज क्या है?
  • दहेज का बदलता स्वरूप
  • दहेज प्रथा कितनी घातक
  • दहेज प्रथा की रोकथाम।

भारतीय संस्कृति के मूल में छिपी है-कल्याण की भावना। इसी भावना के वशीभूत होकर प्राचीनकाल में कन्या का पिता अपनी बेटी की सुख-सुविधा हेतु कुछ वस्त्र-आभूषण और धन उसकी विदाई के समय स्वेच्छा से दिया करता था। कालांतर में यही रीति विकृत हो गई। इसी विकृति को दहेज नाम दिया गया। धीरे-धीरे लोगों ने इसे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ लिया। सभ्यता और भौतिकवाद के कारण लोगों में धन लोलुपता बढ़ी है जिसने इस प्रथा को विकृत करने में वही काम किया जो आग में घी करता है।

वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से खुलकर दहेज माँगने लगे और समाज की नज़र बचाकर बलपूर्वक दहेज लेने लगे जिससे इस प्रथा ने दानवी रूप ले लिया। आज स्थिति यह है कि समाज में लड़कियों को बोझ समझा जाने लगा है। लोग घर में कन्या का जन्म किसी अपशकुन से कम नहीं समझते हैं। इससे समाज की सोच में विकृति आई है। दहेज प्रथा हमारे समाज के लिए अत्यंत घातक है। इस प्रथा के कारण ही जन्मी-अजन्मी लड़कियों को मारने का चलन शुरू हो गया। आज का समय तो जन्मपूर्व ही कन्या भ्रूण की हत्या करा देता है।

इसमें असफल रहने के बाद वह जन्म के बाद कन्याओं के पालन-पोषण में दोहरा मापदंड अपनाता है। वह लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा, खानपान और अन्य सुविधाओं के साथ ही उनके साथ व्यवहार में हीनता दिखाता है। दहेज प्रथा के कारण ही असमय नव विवाहिताओं को अपनी जान गवानी पड़ती है। मनुष्यता के लिए इससे ज़्यादा कलंक की बात क्या होगी कि अनेक लड़कियाँ बिन ब्याही रह जाती हैं या उन्हें बेमेल विवाह के लिए बाध्य होना पड़ता है। दहेज प्रथा रोकने के लिए केवल सरकारी प्रयास ही काफ़ी नहीं हैं। इसके लिए युवा वर्ग को आगे आना होगा और दहेज रहित-विवाह प्रथा की शुरूआत करके समाज के सामने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करना होगा।

त्योहारों का बदलता स्वरूप
अथवा
त्योहारों पर हावी भौतिकवाद

संकेत बिंदु –

  • मानव जीवन और त्योहार
  • भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग
  • त्योहार में आते बदलाव
  • हमारा दायित्व
  • वर्तमान स्वरूप।

मनुष्य और त्योहारों का अटूट संबंध है। मनुष्य अपने थके हारे मन को उत्साहित एवं आनंदित करने के साथ ही ऊर्जान्वित करने के लिए त्योहार मनाने का कोई न कोई बहाना खोज ही लेता है। कभी महीना बदलने पर, कभी नई ऋतु आने पर और कभी फ़सल पकने की आड़ में मनुष्य प्राचीन समय से त्योहार मनाता आया है। ये त्योहार, मानव के सुख-दुख, हँसी-खुशी, उल्लास आदि व्यक्त करने का साधन भी होते हैं। त्योहार हमारे संस्कृति के अभिन्न अंग बन गए हैं। इनके माध्यम से हमारी संस्कृति की झलक मिलती है। त्योहारों के अवसर पर प्रयुक्त परिधान, रहन-सहन का ढंग, नृत्य-गायन की कलात्मकता आदि में संस्कृति के दर्शन होते हैं। ये त्योहार हमारी एकता को मज़बूत बनाते हैं। वर्तमान में भौतिकवाद के कारण बदलाव आया है। लोगों की भागम भरी जिंदगी की व्यस्तता और काम से बचने की प्रवृत्ति के कारण अब त्योहार उस हँसी-खुशी उल्लास से नहीं मनाए जाते हैं, जैसे पहले मनाए जाते थे। आज लोगों के मन में धर्म-जाति भाषा क्षेत्रीयता और संप्रदाय की कट्टरता के कारण दूरियाँ बढ़ी हैं। अब तो त्योहारों के अवसर पर दंगे भड़कने का भय स्पष्ट रूप से लोगों को आतंकित किए रहता है। इस कारण लोग इन त्योहारों को जैसे-तैसे मनाकर इतिश्री कर लेते हैं। त्योहारों को हँसी-खुशी मनाने के लिए धार्मिक कट्टरता त्यागनी चाहिए तथा प्रकृति से निकटता बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें इस तरह त्योहार मनाने का प्रयास करना चाहिए जिससे सभी को खुशी मिल सके।

मानव जीवन पर विज्ञापनों का असर
अथवा
विज्ञापनों की दुनिया कितनी लुभावनी
अथवा
मानव मन को सम्मोहित करते विज्ञापन

संकेत बिंदु –

  • विज्ञापन का अर्थ एवं प्रचार-प्रसार
  • विज्ञापनों की लुभावनी भाषा
  • विज्ञापन का प्रभाव
  • विज्ञापन के लाभ-हानि ।

‘ज्ञापन’ में ‘वि’ उपसर्ग लगाने से विज्ञापन शब्द बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-सूचना या जानकारी देना। दुर्भाग्य से आज विज्ञापन का अर्थ सिमट कर वस्तुओं की बिक्री बढ़ाकर लाभ कमाने तक ही सीमित रह गया है। वर्तमान समय में विज्ञापन का प्रचार-प्रसार इतना बढ़ गया है कि अब तो कहीं भी विज्ञापन देखे जा सकते हैं। इस कारण से वर्तमान समय को विज्ञापनों का युग कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। विज्ञापनों की भाषा अत्यंत लुभावनी और आकर्षक होती है।

इनके माध्यम से कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अभिव्यक्ति का प्रयास किया जाता है। विज्ञापन की भाषा सरल एवं सटीक होती है, जिसे विशेष रूप से तैयार करके प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है। दूरदर्शन और अन्य चलचित्रों के माध्यम से दिखाए जाने वाले विज्ञापनों की भाषा और भी प्रभावी बन जाती है। विज्ञापन मानव मन पर गहरा असर डालते हैं। बच्चे और किशोर इन विज्ञापनों के प्रभाव में आसानी से आ जाते हैं।

विज्ञापनों का प्रस्तुतीकरण, उनमें प्रयुक्त नारी देह का दर्शन, उनके हाव-भाव और अभिनय मानवमन पर जादू-सा असर कर सम्मोहित कर लेते हैं। यह विज्ञापनों का असर है कि हम विज्ञापित वस्तुएँ खरीदने का लाभ संवरण नहीं कर पाते हैं। विज्ञापन उत्पादक और उपभोक ता दोनों के लिए लाभदायी हैं। इसके माध्यम से हमारे सामने चुनाव का विकल्प, सुलभता, तुलनात्मक जानकारियाँ उपलब्ध होती हैं तो विक्रेताओं को भी भरपूर लाभ होता है। विज्ञापन के कारण वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाता है। इनमें वस्तु के गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है। अतः हमें विज्ञापनों से सावधान रहना चाहिए।

मनुष्यता का दूसरा नाम : परोपकार
अथवा
परहित सरसि धर्म नहिं भाई

संकेत बिंदु –

  • परोपकार का अर्थ और प्रकृति
  • परोपकार मनुष्य का उत्तम गुण
  • जीवन की सार्थकता
  • परोपकार सच्चे आनंद का स्रोत।

उपकार का अर्थ है-भलाई करना। इसी उपकार में ‘पर’ उपसर्ग लगाने से परोपकार बना है। इसका अर्थ है-दूसरों की भलाई करना। जब मनुष्य निस्स्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई मन, वाणी और कर्म से करता है, तब उसे परोपकार कहा जाता है। परोपकार का सर्वोत्तम उदाहरण हमें प्रकृति के कार्यों से मिलता है। वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं, नदियाँ अपना पानी स्वयं नहीं पीती हैं। इसी प्रकार फूल दूसरों के लिए खिलते हैं और बादल जीवों के कल्याण के लिए अपना अस्तित्व तक नष्ट कर देते हैं। परोपकार मनुष्य का सर्वोत्तम गुण है। हमारे ऋषि-मुनि तो अपना जीवन परोपकार में अर्पित कर देते थे।

उनके कार्य हमें परोपकार की प्रेरणा देते हैं। कहा भी गया है कि ‘वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।’ परोपकार से व्यक्ति को सुख-शांति की अनुभूति होती है तथा जिसकी भलाई की जाती है उसे अपनी दीन-हीन स्थिति से मुक्ति मिल जाती है। परोपकार व्यक्ति को आदर्श जीवन की राह दिखाते हैं। इससे व्यक्ति को मनुष्य बनने की पूर्णता प्राप्त होती है। वास्तव में परोपकार में ही जीवन की सार्थकता है। परोपकार से व्यक्ति को सच्चा आनंद प्राप्त होता है। इसी आनंद के वशीभूत होकर व्यक्ति अपना तन-मन और धन देकर भी परोपकार करता है। महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियाँ देकर मानवता का कल्याण किया तो शिवि ने अपने शरीर का मांस देकर कबूतर की जान बचाई। हमें भी परोपकार का अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।

विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत
अथवा
विपत्ति का साथी : मित्र

संकेत बिंदु –

  • मित्र की आवश्यकता
  • मित्र का स्वभाव
  • सन्मार्ग पर ले जाते मित्र
  • मित्र के चयन में सावधानियाँ।

मानव जीवन को संग्राम की सभा से विभूषित किया गया है, जिसमें दुख और सुख क्रमशः आते-जाते रहते हैं। सुख का समय जल्दी और सरलता से कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता पर दुख के समय में उसे ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत होती है जो उसके काम आए। अब उसे मित्र की आवश्यकता होती है जो उसे दुख सहने का साहस प्रदान करे। मित्र का स्वभाव उदार, परोपकारी होने के साथ ही विपत्ति में साथ न छोड़ने वाला होना चाहिए। उसे जल की भाँति नहीं होना चाहिए जो जाल पड़ने पर जाल में फँसी मछलियों का साथ छोड़कर दूर हो जाता है और मछलियों को मरने के लिए छोड़ जाता है।

वास्तव में मित्र का स्वभाव श्रीराम और सुग्रीव के स्वभाव की भाँति होना चाहिए जिन्होंने एक-दूसरे की मदद करके अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। एक सच्चा मित्र को बुराइयों से हटाकर सन्मार्ग की ओर ले जाता है। एक सच्चा मित्र अपने मित्र को व्यसन से बचाकर सत्कार्य के लिए प्रेरित करता है और उसके लिए घावों पर लगी उस औषधि के समान साबित होता है जो उसकी पीड़ा हरकर शीतलता पहुँचाती है। व्यक्ति के पास धन देखकर बहुत से लोग नाना प्रकार से मित्र बनने की चेष्टा करते हैं। हमें इन अवसरवादी लोगों से सावधान रहना चाहिए। हमारी जी हुजूरी और चापलूसी करने वाले को भी सच्चा मित्र नहीं कहा जा सकता है। हमारी गलत बातों का विरोधकर उचित मार्गदर्शन कराने वाला ही सच्चा मित्र होता है। हमें मित्र के चयन में सावधान रहना चाहिए ताकि मित्रता चिरकाल तक बनी रहे।

जीवन में व्यायाम का महत्त्व
अथवा
स्वास्थ्य के लिए हितकारी : व्यायाम

संकेत बिंदु –

  • स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन
  • उत्तम स्वास्थ्य की औषधि-व्यायाम
  • व्यायाम का सर्वोत्तम समय
  • व्यायाम एक-लाभ अनेक।

स्वास्थ्य और मानवजीवन का घनिष्ठ संबंध है। यूँ तो स्वास्थ्य की महत्ता हर प्राणी के लिए होती है पर मनुष्य इसके प्रति कुछ अधिक ही सजग रहता है और स्वस्थ रहने के नाना उपाय करता है। मनुष्य जानता है कि धन को तुरंत दुबारा कमाया जा सकता है परंतु स्वास्थ्य इतनी सरलता से नहीं पाया जा सकता है। एक स्वस्थ व्यक्ति ही सांसारिक सुखों का लाभ उठा सकता है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं है तो दुनिया का कोई सुख व्यक्ति को रुचिकर नहीं लगता है, तभी स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन कहा गया है। स्वास्थ्य पाने का एक साधन सात्विक भोजन, स्वस्थ आदतें, उचित दिनचर्या और दवाईयाँ हैं, पर ये सभी स्वस्थ रहने के साधन मात्र हैं।

स्वास्थ्य का अर्थ केवल शारीरिक नहीं बल्कि इस परिधि में मानसिक स्वास्थ्य भी आता है। इसे पाने की मुफ्त की औषधि है-व्यायाम, जिसे पाने के लिए धन खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती है। व्यायाम करने का सर्वोत्तम समय भोर की बेला है जब वातावरण में शांति, हवा में शीतलता और सुगंध होती है। ऐसे वातावरण में मन व्यायाम में लगता है। व्यायाम से हमारे शरीर का रक्त प्रवाह तेज़ होता है, हड्डियाँ मज़बूत और मांसपेशियाँ लचीली बनती हैं। इससे तन-मन दोनों स्वस्थ होता है। हमें भी समय निकालकर व्यायाम अवश्य करना चाहिए।

विद्यार्थी और अनुशासन
अथवा
अनुशासन का महत्त्व

संकेत बिंद –

  • अनुशासन का अर्थ
  • अनुशासन की आवश्यकता
  • प्रकृति में अनुशासन
  • अनुशासन सफलता की कुंजी।

‘शासन’ शब्द में ‘अनु’ उपसर्ग जोड़ने से अनुशासन शब्द बना है, जिसका अर्थ है शासन के पीछे चलना अर्थात् समाज द्वारा बनाए नियमों का पालन करते हुए मर्यादित जीवन जीना। जीवन के हर क्षेत्र और हर काल में अनुशासन की महत्ता होती है पर विद्यार्थी काल जीवन की नींव के समान होता है। इस काल में अनुशासन की आवश्यकता और महत्ता और भी बढ़ जाती है। इस काल में विद्यार्थी जो कुछ सीखता है वही उसके जीवन में काम आता है। इस काल में एक बार अनुशासनबद्ध जीवन की आदत पड़ जाने पर आजीवन यही आदत बनी रहती है। मानव मन अत्यंत चंचल होता है। वह स्वच्छंद आचरण करना चाहता है।

इसके लिए अनुशासन बहुत आवश्यक है। प्रकृति अपने कार्य व्यवहार से मनुष्य तथा अन्य प्राणियों को अनुशासन का पाठ पढ़ाती है। सूर्य समय पर निकलता है। चाँद और तारे रात होने पर चमकना नहीं भूलते हैं। ऋतु आने पर फूल खिलना नहीं भूलते हैं। वर्षा ऋतु में बादल बरसना और समयानुसार वृक्ष फल नहीं भूलते हैं। ऋतुएँ समय पर आती जाती हैं और मुर्गा समय पर बाँग देता है। ये हमें अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं। जीवन में जितने भी लोगों ने सफलता प्राप्त की है उसके मूल में अनुशासन रहा है। गांधी जी, नेहरू जी, टैगोर, तिलक, विवेकानंद आदि की सफलता का मूल मंत्र अनुशासन रहा है। विद्यार्थियों को कदम-कदम पर अनुशासन का पालन करना चाहिए और सफलता के सोपान चढ़ना चाहिए।

समय का महत्त्व
अथवा
समय चूकि वा पुनि पछताने

संकेत बिंदु –

  • समय की पहचान
  • समय पर काम न करने पर पछताना व्यर्थ
  • समय का सदुपयोग-सफलता का सोपान
  • आलस्य का त्याग।

एक सूक्ति है – ‘समय और सूक्ति किसी की प्रतीक्षा नहीं करते हैं।’ ये आते और जाते रहते हैं, चाहे कोई इनका लाभ उठाए या नहीं पर गुणवान लोग समय की महत्ता समझकर समय का लाभ उठाते हैं। एक चतुर मछुआरा अपने जाल और नाव के साथ ज्वार की प्रतीक्षा करता है और उसका लाभ उठाता है। जो लोग समय पर काम नहीं करते हैं उनके हाथ पछताने के सिवा कुछ भी नहीं लगता है। समय बीतने पर काम करने से उसकी सफलता का आनंद सूख जाता है। ऐसे ही लोगों के लिए गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है-‘समय चूकि वा पुनि पछताने।’ का बरखा जब कृषि सुखाने। अर्थात् समय पर काम करने से चूक कर पछताना उसी तरह है जैसा कि फ़सल सूखने के बाद वर्षा होने से वह हरी नहीं हो पाती है।

जो व्यक्ति समय का सदुपयोग करते हैं वे हर काम में सफल होते हैं। शत्रु आक्रमण का जो देश मुकाबला नहीं करता वह गुलाम होकर रह जाता है, समय पर बीज न बोने वाले किसान की फ़सल अच्छी नहीं होती है और समय पर वर्षा न होने से भयानक अकाल पड़ जाता है। इस तरह निस्संदेह समय का उपयोग सफलता का सोपान है। समय पर काम करने के लिए आवश्यक है-आलस्य का त्याग करना। आलस्य भाव बनाए रखकर समय पर काम पूरा करना कठिन है। अतः हमें आलस्य भाव त्यागकर समय का सदुपयोग करना चाहिए।

देशाटन
अथवा
मनोरंजन का साधन : पर्यटन

संकेत बिंदु –

  • देशाटन क्या है?
  • देशाटन का महत्त्व
  • देशाटन के लाभ
  • देश की प्रगति में सहायक।

‘देशाटन’ शब्द दो शब्दों ‘देश’ और ‘अटन’ के मेल से बना है जिसका अर्थ है देश का भ्रमण करना अर्थात् ज्ञान और मनोरंजन के उद्देश्य से किया जाने वाला भ्रमण देशाटन कहलाता है। देशाटन करना मनुष्य की स्वाभाविक विशेषता है। वह प्राचीनकाल से ही शिकार और आश्रय के उद्देश्य से भटकता रहा है। मनुष्य आज भी भ्रमण करता है पर उसके भ्रमण की महत्ता आज अधिक है। आज वह ज्ञानार्जन और धनार्जन के लिए भ्रमण करता है जो उसे सामाजिक और आर्थिक रूप से उन्नत बनाता है।

इस प्रकार मनुष्य के जीवन में देशाटन का बहुत महत्त्व है। देशाटन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि मनुष्य विभिन्न वस्तुओं को साक्षात् रूप से देखता है और भिन्न-भिन्न लोगों से मिलता है। वह उस स्थान विशेष की कला, संस्कृति और सभ्यता से परिचित होता है। उसका स्वभाव मिलनसार बनता है। वह भिन्न-भिन्न लोगों की भाषाओं से परिचित होता है। इससे राष्ट्रीय एकता मज़बूत होती है। देशाटन से देश के विकास में सहायता होती है। पर्यटन उद्योग फलता-फूलता है और विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है। लोगों को रोजगार मिलता है। इस प्रकार व्यक्ति और राष्ट्र दोनों की आय बढ़ती है। हमें अवसर मिलते ही देशाटन अवश्य करना चाहिए।

मेरी अविस्मरणीय यात्रा
अथवा
पर्वतीय स्थल की यात्रा का रोमांच

संकेत बिंदु –

  • यात्रा की तैयारी
  • रास्ते का सौंदर्य
  • पर्वतीय सौंदर्य
  • यादगार पल।

मनुष्य के मन में यात्रा करने का विचार जोर मारता रहता है। उसे बस मौके की तलाश रहती है। मुझे भी यात्रा करना बहुत अच्छा लगता है। आखिर मुझे अक्टूबर के महीने में यह मौका मिल ही गया जब पिता जी ने बताया कि हम सभी वैष्णो देवी जाएँगे। वैष्णो देवी का नाम सुनते ही मन बल्लियों उछलने लगा और मैं तैयारी में जुट गया। उधर माँ भी आवश्यक तैयारियाँ करने के क्रम में कपड़े, चादर और खाने के लिए नमकीन बिस्कुट आदि पैक करने लगी। आखिर नियत समय पर हम प्रातः तीन बजे नई दिल्ली स्टेशन पर पहुँचे और स्वराज एक्सप्रेस से जम्मू के लिए चल पड़े। लगभग आधे घंटे बाद हम दिल्ली की सीमा पार करते हुए सोनीपत पहुँचे। अब तक सवेरा हो चुका था। दोनों ओर दूर तक हरे-भरे खेत दिखाई देने लगे। इसी बीच पूरब से भगवान भास्कर का उदय हुआ।

उनका यह रूप मैं दिल्ली में नहीं देख सका था। दस बजे तक तो मैं जागता रहा पर उसके बाद चक्की बैंक पहुँचने पर मेरी नींद खुली। उससे आगे जाने पर हमें एक ओर पहाड़ नज़र आ रहे थे। वहाँ से कटरा जाकर हमने पैदल चढ़ाई की। पर्वतों को इतने निकट से देखने का यह मेरा पहला अवसर था। इनकी ऊँचाई और महानता देखकर अपनी लघुता का अहसास हो रहा था। अब मुझे समझ में आया कि ‘अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे’ मुहावरा क्यों कहा गया होगा। वैष्णो देवी पहुँचकर वहाँ का पर्वतीय सौंदर्य हमारे दिलो-दिमाग पर अंकित हो गया। वहाँ से भैरव मंदिर पहुँचकर जिस सौंदर्य के दर्शन हुए वह आजीवन भुलाए नहीं भूलेगा।

परीक्षा का डर
अथवा
परीक्षा से पहले मेरी मनोदशा

संकेत बिंदु –

  • परीक्षा नाम से भय
  • पर्याप्त तैयारी
  • घबराहट और दिल की धड़कनें हुई तेज़
  • प्रश्न-पत्र देखकर भय हुआ दूर।

परीक्षा वह शब्द है जिसे सुनते ही अच्छे अच्छों के माथे पर पसीना आ जाता है। परीक्षा का नाम सुनते ही मेरा भी भयभीत होना स्वाभाविक है। ज्यों-ज्यों परीक्षा की घड़ी निकट आती जा रही थी त्यों-त्यों यह घबराहट और भी बढ़ती जा रही थी। जितना भी पढ़ता था घबराहट में सब भूला-सा महसूस हो रहा था। खाने-पीने में भी अरुचि-सी हो रही थी। इस घबराहट में न जाने कब ‘जय हनुमान ज्ञान गुण सागर’-उच्चरित होने लगता था पता नहीं। यद्यपि मैं अपनी तरफ से परीक्षा का भय भूलने और सभी प्रश्नों के उत्तर दोहराने की तैयारी कर रहा था और जिन प्रश्नों पर तनिक भी आशंका होती तो उस पर निशान लगाकर पिता जी से शाम को हल करवा लेता था पर मन में कहीं न कहीं भय तो था ही।

परीक्षा का दिन आखिर आ ही गया। सारी तैयारियों को समेटे मैं परीक्षा भवन में चला गया पर प्रश्न-पत्र हाथ में आने तक मन में तरह-तरह की आशंकाएँ आती जाती रही। मैंने अपनी सीट पर बैठकर आँखें बंद किए प्रश्न-पत्र मिलने का इंतज़ार करने पर घबराहट के साथ-साथ दिल की धड़कने तेज़ हो गई थी। इसी बीच घंटी बजी। कक्ष निरीक्षक ने पहले हमें उत्तर पुस्तिकाएँ दी फिर दस मिनट बाद प्रश्न-पत्र दिया। काँपते हाथों से मैंने प्रश्न पत्र लिया और पढ़ना शुरू किया। शुरू के पेज के चारों प्रश्नों को पढ़कर मेरी घबराहट आधी हो गई क्योंकि उनमें से चारों के जवाब मुझे आते थे। पूरा प्रश्न पत्र पढ़ा। अब मैं प्रसन्न था क्योंकि एक का उत्तर छोड़कर सभी के उत्तर लिख सकता था। मेरी घबराहट छू मंतर हो चुकी थी। अब मैं लिखने में व्यस्त हो गया।

देश-प्रेम
अथवा
प्राणों से प्यारा : देश हमारा

संकेत बिंदु –

  • देश से लगाव स्वाभाविक गुण
  • देश के लिए सर्वस्व न्योछावर
  • मातृभूमि ‘माँ’ के समान
  • राष्ट्रीय एकता प्रगाढ़ करने में सहायक।

मनुष्य की स्वाभाविक विशेषता है कि वह जिस व्यक्ति, वस्तु या स्थान के साथ कुछ समय बिता लेता है उससे उसका लगाव हो जाता है। ऐसे में जिस देश में उसने जन्म पाया है, जहाँ का अन्न-जल और वायु ग्रहण कर बड़ा हुआ है, उस स्थान से लगाव होना लाजिमी है। इसी लगाव का नाम है देश-प्रेम। अर्थात् देश के कण-कण से प्रेम होना उसकी सजीव-निर्जीव वस्तुओं के अलावा पेड़-पौधे, जीव-जंतुओं और मनुष्यों से प्यार करना देश-प्रेम कहलाता है। यह वह पवित्र भावना है जो देश की रक्षा करते हुए अपना तन-मन-धन अर्थात् सर्वस्व न्योछावर करने के लिए प्रेरित करती है। ऐसा व्यक्ति ही सच्चादेश प्रेमी कहलाता है। कहा गया है-‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं।

आखिर हो भी क्यों न व्यक्ति को स्वर्ग जाने के योग्य जननी और जन्मभूमि ही बनाते हैं। माँ संतान को जन्म देती है पर जन्मभूमि की रज में लोटकर बच्चा बढ़ता है और यहीं का अन्न जलग्रहण कर बड़ा होता है। वास्तव में जन्मभूमि के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हमारे देश के वीरों और देशभक्तों ने जन्मभूमि की रक्षा के लिए सुख-चैन त्याग दिया, जेल की दर्दनाक यातनाएँ भोगी, हँसते-हँसते लाठियाँ और कोडे खाए और हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को चूम गए। देश प्रेम की पवित्र भावना जाति, धर्म, भाषा, वर्ण, वर्ग, प्रांत और दल से ऊपर होती है। यह इन संकीर्णताओं का बंधन नहीं स्वीकारती है। इससे राष्ट्रीय एकता मज़बूत होती है। हमें अपने देश पर गर्व है। मैं इससे असीम प्यार करता हूँ।

हमारे देश के राष्ट्रीय पर्व
अथवा
देश की अखंडता में सहायक राष्ट्रीय पर्व

संकेत बिंदु –

  • राष्ट्रीय पर्व का अर्थ एवं उनकी महत्ता
  • हमारे राष्ट्रीय पर्व और मनाने का ढंग
  • देश की एकता अखंडता बनाने में सहायक
  • राष्ट्रीय पर्वो का संदेश।

पर्व मानव जीवन को मनोरंजन और ऊर्जा से भरकर मनुष्य की नीरसता दूर करते हैं। इन पर्वो को सांस्कृतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय पर्यों के रूप में बाँटा जा सकता है। राष्ट्रीय पर्व वे पर्व हैं जिन्हें राष्ट्र के सारे लोग बिना किसी भेदभाव के एकजुट होकर मनाते हैं। इनका सीधा संबंध देश की एकता और अखंडता से होता है। राष्ट्रीय पर्व व्यक्तिगत न होकर राष्ट्रीय होते हैं, इसलिए देशवासियों के अलावा विभिन्न प्रशासनिक और सरकारी कार्यालय, विभिन्न संस्थाएँ मिल-जुलकर मनाती हैं।

इस दिन देश में सरकारी अवकाश रहता है। यहाँ तक कि दुकानें और फैक्ट्रियाँ भी बंद रहती हैं ताकि देशवासी इन्हें मनाने में अपना योगदान दें। हमारे राष्ट्रीय पर्व हैं-स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त), गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) और गांधी जयंती (02 अक्टूबर)। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रात:काल सरकारी कार्यालयों एवं भवनों पर झंडा फहराया जाता है और रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है।

इस दिन देशभक्तों और शहीदों के योगदान को याद करते हुए स्वतंत्रता बनाए रखने की प्रतिबद्धता दोहराई जाती है। गांधी जयंती के अवसर पर कृतज्ञ देशवासी गांधी जी के योगदान को याद करते हैं और उनके बताए रास्ते पर चलने की प्रतिज्ञा करते हैं। देश की एकता अखंडता बनाए रखने में राष्ट्रीय त्योहार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री देशवासियों से एकता बनाए रखने का आह्वान करते हैं। ये पर्व हमें एकजुट रहकर देश की स्वतंत्रता की रक्षा करने तथा देश के लिए तन-मन और धन न्योछावर करने का संदेश देते हैं। हमें इस संदेश को सदा याद रखना चाहिए।

गाँवों का देश भारत
अथवा
गाँवों की दयनीय दशा

संकेत बिंदु –

  • देश की 70 प्रतिशत जनता गाँवों में
  • प्रदूषण रहित वातावरण
  • गाँवों में अभाव ग्रस्तता
  • गाँवों की दशा में कुछ बदलाव।

है अपना हिंदुस्तान कहाँ, वह बसा हमारे गाँवों में। अगर हमें अपने देश की सच्ची तसवीर देखनी है तो हमें गाँवों की ओर रुख करना पड़ेगा। हमारे देश की आत्मा इन्हीं गाँवों में निवास करती है। देश की जनसंख्या का 70 प्रतिशत से अधिक भाग इन्हीं गाँवों में बसता है। इनमें से अधिकांश लोगों की आजीविका का साधन कृषि है। यहाँ रहने वाले चाहे खुद भूखे सो जाएँ पर देशवासियों को पेट भरने का दायित्व यही गाँव निभाते हैं। यहाँ के किसानों का श्रम और कार्य देखकर श्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था। गाँवों में चारों ओर हरियाली का साम्राज्य होता है। ये पेड़-पौधे ग्रामवासियों को शुद्ध वायु उपलब्ध कराते हैं।

यहाँ कारखाने और औद्योगिक इकाइयों का अभाव है। यहाँ मोटर गाड़ियों का न धुआँ है और न शोर। यहाँ का वातावरण शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक है। गाँवों की धूलभरी गलियाँ, कच्चे घर, घास-फूस की झोपड़ियाँ, नालियों में बहता गंदा पानी, मैले-कुचैले कपड़े पहने बच्चे और अधनंगे बदन वाले किसान की दयनीय दशा देखकर गाँवों की अभाव ग्रस्तता का पता चल जाता है।

यहाँ रहने वालों की कृषि मानसून पर आधारित है। मानसून की कमी होने पर फ़सल अच्छी नहीं होती है जिससे उन्हें साहूकारों से कर्ज लेने पर विवश होना पड़ता है और वे ऋण ग्रस्तता के जाल में फँस जाते हैं। ग्रामवासी आज भी अंधविश्वास और अशिक्षा के शिकार हैं। गाँवों तक पक्की सड़कें बन जाने और बिजली पहुँच जाने के कारण गाँवों की दशा में कुछ सुधार होता है। सरकार द्वारा शिक्षा की व्यवस्था करने तथा ग्रामवासियों के कल्याण हेतु अनेक योजनाएँ चलाने के कारण अब गाँवों के दिन फिरने लगे हैं।

रंग-बिरंगी ऋतुएँ
अथवा
भारत की छह ऋतुएँ

संकेत बिंदु –

  • ऋतुएँ-प्रकृति का अनुपम उपहार
  • छह ऋतुएँ और उनकी विशेषताएँ
  • ऋतुराज वसंत
  • ऋतुओं का प्रभाव।

प्रकृति ने भारत को अनेक उपहार प्रदान किए हैं। इन उपहारों में एक है-छह ऋतुओं का उपहार। ये ऋतुएँ एक के बाद एक बारीबारी से आती हैं और मुक्त हाथों से सौंदर्य बिखरा जाती हैं। ऋतुओं के जैसा मनभावन मौसम का समन्वय भारत में बना रहता है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। हमारे देश में छह ऋतुएँ पाई जाती हैं। ये छह ऋतुएँ हैं ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत और वसंत। भारतीय महीनों के अनुसार बैसाख और जेठ ग्रीष्म ऋतु के महीने होते हैं। इस समय छोटी-छोटी वनस्पतियाँ सूख जाती हैं। धरती तवे-सी जलने लगती है। आम, कटहल, फालसा, जामुन आदि फल इस समय प्रचुरता से मिलते हैं। इसके बाद अगले दो महीने वर्षा ऋतु के होते हैं। इस समय वर्षा होती है जो मुरझाई धरती और प्राणियों को नवजीवन देती हैं। अधिक वर्षा बाढ़ के रूप में प्रलय लाती है। वर्षा ऋतु के उपरांत शरद ऋतु का आगमन होता है। यह ऋतु दो महीने तक रहती है। दशहरा और दीपावली इस ऋतु के प्रमुख त्योहार हैं। इस समय सरदी और गरमी बराबर होती है, जिससे मौसम सुहाना रहता है। शिशिर और हेमंत ऋतुओं में कड़ाके की सरदी पड़ती है। हेमंत पतझड़ की ऋतु मानी है। इस समय पेड़-पौधे अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। इसके बाद ऋतुराज वसंत का आगमन होता है। इस से मौसम सुहावना होता है। चारों ओर खिले फूल और सुगंधित हवा इस समय को सुहावना बना देते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह सर्वोत्तम ऋतु है। विभिन्न ऋतुओं का अपना अलग-अलग प्रभाव होता है। इस कारण हमारा खान-पान और रहन-सहन प्रभावित होता है। तरह-तरह की फ़सलों के उत्पादन में ऋतुएँ महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। सचमुच ये ऋतुएँ किसी वरदान से कम नहीं हैं।

वन रहेंगे-हम रहेंगे
अथवा
वनों की महत्ता

संकेत बिंदु –

  • वन प्रकृति के अनुपम उपहार
  • वनों के लाभ
  • मनुष्य का स्वार्थपूर्ण व्यवहार
  • वन बचाएँ जीवन बचाएँ।

प्रकृति ने मनुष्य को जो नाना प्रकार के उपहार दिए हैं, वन उनमें सबसे अधिक उपयोगी और महत्त्वपूर्ण हैं। मनुष्य और प्रकृति का साथ अनादिकाल से रहा है। पृथ्वी पर जीवन योग्य जो परिस्थितियाँ हैं उन्हें बनाए रखने में वनों का विशेष योगदान है। मनुष्य अन्य जीव-जंतुओं के साथ इन्हीं वनों में पैदा हुआ, पला, बढ़ा और सभ्य होना सीखा। वनों ने मनुष्य की हर ज़रूरत को पूरा किया है। वन हमें लकड़ी, छाया, फल-फूल, कोयला, गोंद, कागज, नाना प्रकार की औषधियाँ देते हैं। वे पशुओं तथा पशु-पक्षियों के लिए आश्रय-स्थल उपलब्ध करते हैं। इससे जैव विविधता और प्राकृतिक संतुलन बना रहता है।

वन वर्षा लाने में सहायक हैं जिससे प्राणी नवजीवन पाते हैं। वन बाढ़ रोकते हैं और भूक्षरण कम करते हैं तथा धरती का उपजाऊपन बनाए रखते हैं। वास्तव में वन मानवजीवन का संरक्षण करते हैं। वन परोपकारी शिव के समान हैं जो विषाक्त वायु का स्वयं सेवन करते हैं और बदले में प्राणदायी शुद्ध ऑक सीजन देते हैं। दुर्भाग्य से मनुष्य की जब ज़रूरतें बढ़ने लगी तो उसने वनों की अंधाधुंध कटाई शुरू कर दी। नई बस्तियाँ बनाने, कृषि योग्य भूमि पाने, सड़कें बनाने आदि के लिए पेड़ों की कटाई की गई, जिससे पर्यावरण असंतुलन बढ़ा और वैश्विक ऊष्मीकरण में वृद्धि हुई। इससे असमय वर्षा, बाढ़, सूखा आदि का खतरा उत्पन्न हो गया। धरती पर जीवन बचाने के लिए पेड़ों को बचाना आवश्यक है। आओ हम जीवन बचाने के लिए अधिकाधिक पेड़ लगाने और बचाने की प्रतिज्ञा करते हैं।

प्रदूषण की समस्या
अथवा
जीवन खतरे में डालता प्रदूषण

संकेत बिंदु –

  • प्रदूषण का अर्थ
  • प्रदूषण के कारण
  • प्रदूषण के प्रभाव
  • प्रदूषण से बचाव के उपाय।

स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है कि हम जिन वस्तुओं का सेवन करें, जिस वातावरण में रहें वह साफ़-सुथरा हो। जब हमारे पर्यावरण और वायुमंडल में ऐसे तत्व मिल जाते हैं जो उसे दुषित करते हैं तथा इनका स्तर इतना बढ़ जाता है कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाते हैं तब यह स्थिति प्रदूषण कहलाती है। आज सभ्यता और विकास की इस दौड़ में मनुष्य के कार्य व्यवहार ने प्रदूषण को खूब बढ़ाया है। बढ़ती आवश्यकता के कारण एक ओर वनों को काटकर नई बस्तियाँ बसाई गईं तो दूसरी ओर अंधाधुंध कल-कारखानों की स्थापना की गई। इन बस्तियों तक पहुँचने के लिए सड़कें बनाई गईं।

इसके लिए भी वनों की कटाई की गई। सभ्यता की ऊँचाई छूने के लिए मनुष्य ने नित नए आविष्कार किए। मोटर-गाड़ियाँ वातानुकूलित उपकरणों से सजी गाड़ियाँ और मकानों के कार्य आदि के कारण पर्यावरण इतना प्रदूषित हुआ कि आदमी को साँस लेने के लिए शुद्ध हवा मिलना कठिन हो गया है। प्रदूषण के दुष्प्रभाव के कारण प्राकृतिक असंतुलन उत्पन्न हो गया है। वायुमंडल में कार्बनडाई ऑक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ गई है। इससे अम्लीय वर्षा का खतरा पैदा हो गया है।

मोटर-गाड़ियों और फैक्ट्रियों के शोर के कारण स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है। अति वृष्टि, अनावृष्टि और असमय वर्षा प्रदूषण का ही दुष्परिणाम है। इस प्रदूषण से बचने का सर्वोत्तम उपाय है अधिकाधिक वन लगाना। पेड़ लगाकर प्रकृति में संतुलन लाया जा सकता है। इसके अलावा हमें सादा जीवन उच्च विचार वाली जीवन शैली अपनाते हुए प्रकृति के करीब लौटना चाहिए।

बाल मजदूरी
अथवा
बाल मज़दूरी : समाज के लिए अभिशाप

संकेत बिंदु –

  • बाल मजदूर कौन
  • बाल मजदूरी क्यों
  • बाल मजदूरी के क्षेत्र
  • समस्या का समाधान ।

समाज शास्त्रियों ने मानवजीवन को आयु के विभिन्न वर्गों में बाँटा है। इसके अनुसार सामान्यतया 5 से 11 साल के बच्चे को बालक कहा जाता है। इसी उम्र में बालक विद्यालय जाकर पढ़ना-लिखना सीखता है और शिक्षित जीवन की नींव रखता है परंतु परिस्थितियाँ प्रतिकूल होने के कारण जब बच्चे को पढ़ने-लिखने का मौका नहीं मिलता है और उसे अपना पेट पालने के लिए न चाहते हुए काम करना पड़ता है तो उसे बाल मजदूरी कहते हैं। मजदूर की भाँति काम करने वाले इन बालकों को बाल मज़दूर कहते हैं। बाल मजदूरी के मूल में है-गरीबी।

गरीब माता-पिता जब बच्चे को विद्यालय भेजने की स्थिति में नहीं होते हैं और वे परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते हैं तो वे अपने बच्चों को भी काम पर भेजना शुरू कर देते हैं। इसका एक कारण समाज के कुछ लोगों की शोषण की प्रवृत्ति भी है। वे अपने लाभ के लिए कम मजदूरी देकर इन बच्चों से काम करवाते हैं। बाल मजदूरी के कुछ विशेष क्षेत्र हैं जहाँ बच्चों से काम कराया जाता है। दियासलाई उद्योग, पटाखा उद्योग, अगरबत्तियों के कारखाने, कालीन बुनाई, चूड़ी उद्योग, बीड़ी, गुटखा फैक्ट्रियों में बच्चों से काम लिया जाता है। बाल मजदूरी रोकने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने की ज़रूरत है। बाल मजदूरों को मज़बूरी से मुक्त कराकर उन्हें शिक्षित और प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। इसके अलावा स्वार्थी लोगों को अपनी स्वार्थवृत्ति त्यागकर इन बच्चों पर दया करना चाहिए और इनसे काम नहीं करवाना चाहिए।

महानगरों की यातायात को सुखद बनाती-मैट्रो रेल
अथवा
यात्रा सुखद बनाती-मैट्रो रेल

संकेत बिंदु –

  • महानगरों का भीड़भाड़ युक्त जीवन
  • मैट्रो रेल की आवश्यकता
  • मैट्रो रेल के लाभ
  • सुखद यात्रा का साधन ।

महानगर सुख-सुविधा के केंद्र माने जाते हैं। इसी सुख-सुविधा का आकर्षण लोगों को अपनी ओर खींचता है जिससे लोग महानगरों की ओर पलायन करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि महानगर भीड़भाड़ का केंद्र बनते जा रहे हैं। यहाँ भीड़ के कारण यातायात कठिन हो गया है। यहाँ काम-काज के सिलसिले में लोगों को लंबी यात्राएँ करनी पड़ती हैं जो भीड़ के कारण दुष्कर हो जाती हैं। थोड़ी दूर की यात्रा भी पहाड़ पार करने जैसा हो जाती है। ऐसे में आवागमन को सरल, सुगम और सुखद बनाने के लिए ऐसे साधन की आवश्यकता महसूस होने लगी जो इनका समाधान कर सके। महानगरों में आवागमन की समस्या को हल किया है मैट्रो रेल ने।

आज मैट्रो रेल दिल्ली के अलावा अन्य महानगरों जैसे-मुंबई, जयपुर, लखनऊ, चेन्नई आदि में संचालित करने की योजना है जिन पर जोर-शोर से काम हो रहा है। मैट्रो रेल का संचालन खंभों पर पटरियाँ बिछाकर ज़मीन से काफ़ी ऊँचाई पर किया जाता है। इस कारण जाम की समस्या से मुक्ति तो मिली है तीव्र गति से यात्रा भी संभव हो गई है। इसके अलावा वातानुकूलित मैट्रो रेल की यात्रा लोगों को थकान, चिड़चिड़ेपन और रक्तचाप बढ़ने से बचाती है। इस यात्रा के बाद भी थकान की अनुभूति नहीं होती है। मैट्रो में लोगों की बढ़ती भीड़ इसका स्वयं में प्रमाण है। हमें मैट्रो रेल के नियमों का पालन करते हुए स्टेशन और रेल को साफ़-सुथरा बनाना चाहिए ताकि यह सुखद यात्रा सदा वरदान जैसी बनी रहे।

जल है तो जीवन है
अथवा
जल ही जीवन है
अथवा
जल संरक्षण-आज की आवश्यकता

संकेत बिंदु –

  • जीवनदायी जल
  • जल प्रदूषण के कारण
  • जल संरक्षण कितना ज़रूरी
  • जल संरक्षण के उपाय।

पृथ्वी पर प्राणियों के जीवन के लिए हवा के बाद सबसे आवश्यक वस्तु है-जल। यद्यपि भोजन भी आवश्यक है पर इस भोजन को तरल रूप में लाने और सुपाच्य बनाने के लिए जल की आवश्यकता होती है। मानव शरीर में लगभग 70 प्रतिशत जल होता है। कहा भी गया है-क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच तत्व से बना शरीरा। वनस्पतियों में तो 80 प्रतिशत से ज़्यादा जल पाया जाता है। इस जल के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है। पृथ्वी पर यूँ तो तीन चौथाई भाग जल ही है पर इसमें पीने योग्य जल की मात्रा बहुत कम है। यह पीने योग्य जल कुओं, तालाबों, नदियों और झीलों में पाया जाता है जो मनुष्य की स्वार्थपूर्ण गतिविधियों के कारण दूषित होता जा रहा है।

मनुष्य नदी, तालाबों में खुद नहाता है और जानवरों को नहलाता है। इतना ही नहीं वह फैक्ट्रियों और नालियों का दूषित पानी इसमें मिलने देता है जिससे जल प्रदूषित होता है। पेयजल की मात्रा में आती कमी और गिरते भू-जल स्तर के कारण जल संरक्षण अत्यावश्यक हो गया। पृथ्वी पर जीवन बनाए और बचाए रखने के लिए जल बचाना ज़रूरी है। जल संरक्षण का पहला उपाय है-उपलब्ध जल का दुरुपयोग न किया जाए और हर स्तर पर होने वाली बरबादी को रोका जाए। टपकते नलों की मरम्मत की जाए और अपनी आदतों में सुधार लाया जाए। इसे बचाने का दूसरा उपाय है-वर्षा जल का संरक्षण करना और इसे व्यर्थ बहने से बचाना। ऐसा करके हम आने वाली पीढ़ी को जल का उपहार स्वतः दे जाएँगे।

पराधीनता-एक अभिशाप

संकेत बिंदु –

  • पराधीनता का आशय
  • पराधीनता-एक अभिशाप
  • पराधीनता से मुक्ति का साधन-त्याग एवं बलिदान

‘पराधीनता’ शब्द ‘पर’ और ‘अधीनता’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-दूसरों की अधीनता। अर्थात् हमारा जीवन, व्यवहार, कार्य आदि दूसरों की इच्छा पर निर्भर होना। वास्तव में पराधीनता एक अभिशाप है। पराधीन मनुष्य की ज़िंदगी उसी तरह हो जाती है, जैसे-पिंजरे में बंद पक्षी। ऐसा जीवन जीने वाला मनुष्य सपने में भी सुखी नहीं हो सकता है। उसे दूसरों का गुलाम बनकर अपनी इच्छाएँ और मन मारकर जीना होता है। पराधीन व्यक्ति को कितनी भी सुविधाएँ क्यों न दी जाए वह सुखी नहीं महसूस कर सकता है क्योंकि उसकी मानसिकता गुलामों जैसी हो चुकी होती है।

पराधीन व्यक्ति का मान-सम्मान और स्वाभिमान सभी कुछ नष्ट होकर रह जाता है। पराधीनता से मुक्ति पाने का साधन त्याग एवं बलिदान है। हमारा देश भी अंग्रेजों की पराधीनता झेल रहा था, परंतु क्रांतिकारी एवं देशभक्त युवाओं ने अपना सब कुछ त्याग कर स्वयं को संघर्ष की आग में झोंक दिया। उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचार सहे, जेलों में प्राणांतक यातनाएँ सही। हज़ारों-लाखों ने अपनी कुरबानी दी। यह संघर्ष रंग लाया और हमें पराधीनता के अभिशाप से मुक्ति मिली। अब स्वतंत्र रहकर अभावों में भी सुख का अनुभव करते हैं।

जीवन में सत्संग का महत्त्व

संकेत बिंदु –

  • सत्संग क्या है
  • सत्संग दुर्लभ
  • सत्संग के लाभ

सत्संग का अर्थ है अच्छे लोगों अर्थात् सज्जनों का साथ। सज्जनों के साथ रहना, उनकी बातें सुनना, उन्हें जीवन में उतारना ही सत्संग कहलाता है। सत्संग के कारण हमारे जीवन में परिवर्तन होने लगते हैं। इस संसार में सत्संग दुर्लभ माना जाता है। जिस पर ईश्वर की कृपा होती है, उसी को सत्संग का अवसर मिल पाता है। इससे हमारे मन, बुद्धि और मस्तिष्क का विकास होता है। इससे हमारे सोच-विचार और आचरण में बदलाव आने लगता है। व्यक्ति सत्संग के बिना विवेकवान नहीं हो सकता है।

तभी तो तुलसीदास ने कहा है-बिनु सत्संग विवेक ने होई। मनुष्य को जीने के लिए जिस प्रकार हवा और पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार जीवन में उत्थान विकास और विवेकवान बनने के लिए सत्संग आवश्यक है। सत्संग के विषय में कवि रहीम पहले ही कह चुके हैं-‘जैसी संगति कीजिए, तैसोई फल दीन।’ अर्थात् संगति के अनुसार मनुष्य को फल मिलता है। स्वाति नक्षत्र की एक बूंद केले के पत्ते पर पड़कर कपूर, हाथी के मस्तक पर पड़कर गजमौक्तिक और सीप में पड़कर मोती बन जाती है। अतः हमें भी सत्संग अवश्य करना चाहिए।

विद्यार्थी जीवन

संकेत बिंदु –

  • जीवन निर्माण का काल
  • विद्यार्थी के लक्षण
  • विद्यार्थी के कर्तव्य

हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को चार भागों में बाँट दिया था। इनमें जीवन के जिस आरंभिक पच्चीस वर्ष को ‘ब्रह्मचर्य’ के नाम से जाना था, उसी को आज विदयार्थी जीवन कहने में कोई विसंगति न होगी। इसी काल में बालक तरह-तरह की विद्याएँ, संस्कार और सदाचार की बातें सीखता है, अत: यह जीवन-निर्माण का काल होता है। इस समय बालक जो कुछ भी सीखता है, चाहे अच्छा या बुरा, उसका प्रभाव जीवन भर रहता है।

इन्हीं गुणों पर व्यक्ति का भविष्य निर्भर करता है। विद्यार्थी जीवन विद्यार्जन का काल होता है। इसके लिए नम्रता, जिज्ञासा, सेवा तथा कर्तव्य भावना आवश्यक है। इस समय उसे कौए-सी चेष्टा, बगुले-सा ध्यान, कुत्ते-सी निद्रा, कम भोजन करने वाला तथा घर-परिवार की मोहमाया से दूर रहने वाला होना चाहिए। जो विद्यार्थी आलस्य करते हैं या असंयमित आचरण के शिर हो जाते हैं वे सफलता से दूर रह जाते हैं। अतः विद्यार्थियों को विनम्र, जिज्ञासु, संयमी, परिश्रमी तथा अध्यवसायी बनना चाहिए। उसके जीवन में सादगी और विचारों की महानता होने पर वह उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करता है।

महानगरीय जीवन-एक वरदान या अभिशाप

संकेत बिंदु –

  • शहरों की ओर बढ़ते कदम
  • दिवास्वप्न
  • वरदान रूप
  • महानगरीय जीवन-एक अभिशाप

आदिकाल में जंगलों में रहने वाले मनुष्य ने ज्यों-ज्यों सभ्यता की दिशा में कदम बढ़ाए, त्यों-त्यों उसकी आवश्यकताएँ बढ़ती गईं। उसने इन आवश्यकताओं की पूर्ति का केंद्र शहर प्रतीत हुए और उसने शहरों की ओर कदम बढ़ा दिए। महानगरों का अपना विशेष आकर्षण होता है। यही चमक-दमक गाँवों में या छोटे शहरों में रहने वालों को विशेष रूप से आकर्षित करती है। उसे यहाँ सब कुछ आसानी से मिलता प्रतीत होता है। इसी दिवास्वप्न को देखते हुए उसके कदम महानगरों की ओर बढ़े चले आते हैं। इसके अलावा वह रोज़गार और बेहतर जीवन जीने की लालसा में इधर चला आता है। धनी वर्ग के लिए महानगर किसी वरदान से कम नहीं।

उनके कारोबार यहाँ फलते-फूलते हैं। कार, ए.सी., अच्छी सड़कें, विलासिता की वस्तुएँ, चौबीसों घंटे साथ निभाने वाली बिजली यहाँ जीवन को स्वर्गिक आनंद देती हैं। इसके विपरीत गरीब आदमी का जीवन यहाँ दयनीय है। रहने को मलिन स्थानों पर झुग्गियाँ, चारों ओर फैली गंदगी, मिलावटी वस्तुएँ, दूषित हवा, प्रदूषित पानी यहाँ के जीवन को नारकीय बना देते हैं। ऐसा जीवन किसी अभिशाप से कम नहीं।

बिना विचारे जो करे

संकेत बिंदु –

  • सूक्ति का अर्थ

कवि गिरधर की एक कुंडली की पहली पंक्ति है–’बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए, काम बिगारे आपनो जग में होत हँसाय। अर्थात् बिना सोच-विचार किए जो व्यक्ति काम करता है वह बाद में पछताता है। ऐसा करके वह अपना काम बिगाड़ लेता है जिससे संसार में उसकी हँसी होती है। वास्तव में मानव जीवन में मनुष्य की सोच ही उसके व्यवहार का आईना होती है। बिना सोचे-समझे काम करके मानव वह अपनी समस्या को और भी जटिल बना लेता है। ऐसे में वह दूसरों की सहायता लेने के लिए विवश होता है।

सोच-विचार का अर्थ यह तो बिलकुल नहीं है कि वह हवाई खयालों में डूबा रहे और काम को करने के बजाए दिवास्वप्न में डूबा रहे। ऐसा सोच-विचार किस काम का जिससे वह काम करना तो दूर काम को हाथ भी न लगाए। सोच-विचार का अर्थ है काम करने के लिए सही दिशा में बढ़ना और अपनी सोच को इस स्तर का बनाना जिससे काम सफल हो जाए और किसी को हँसने का अवसर भी न मिले। इस तरह की सोच से मनुष्य की पहचान और व्यवहार दोनों ही अच्छा बन जाता है।

अनुशासन का महत्त्व

संकेत बिंदु –

  • अनुशासन का अभिप्राय
  • अनुशासन का महत्त्व
  • सफलता के लिए अनुशासन आवश्यक

अनुशासन का अभिप्राय है-शासन (नियम) के पीछे चलना। अर्थात् विद्वानों तथा समाज के माननीय लोगों द्वारा बनाए गए नैतिक एवं सामाजिक नियमों का पालन करते हुए जीना। जीवन में अनुशासन का बहुत महत्त्व है। अनुशासन जीने की कला है। यह व्यक्ति का वह मार्गदर्शक है जो व्यक्ति को सुपथ पर चलाते हुए लक्ष्य की ओर ले जाता है। अनुशासन का महत्त्व हम इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि अंकुश की सहायता से महावत पागल हाथी को भी वश में कर लेता है और मनचाहे काम करवाता है।

यदि महावत के पास अंकुश न हो तो पागल हाथी बेकाबू होकर विध्वंस बन जाता है। वास्तव में अनुशासनहीन जीवन नाविक विहीन नाव के समान होता है। नाविक नाव को मध्य धारा से धीरे-धीरे किनारे लगा लेता है परंतु नाविक विहीन नाव किसी चट्टान या पत्थर से टकराकर चकनाचूर हो जाती है। अनुशासनहीन व्यक्ति न अपना भला कर पाता है और न समाज या राष्ट्र का। अनुशासनहीन व्यक्ति सफलता से कोसों दूर रह जाता है। अतः जीवन को आनंदमय बनाने के लिए अनुशासन में रहना अत्यावश्यक है।

ऋतुराज-वसंत

संकेत बिंदु –

  • ऋतुराज क्यों
  • जड़-चेतन में नवोल्लास
  • स्वास्थ्यवर्धक ऋतु
  • वसंत ऋतु के त्योहार

हमारे देश भारत में छह ऋतुएँ पाई जाती हैं। इनमें से वसंत को ऋतुराज कहा जाता है। इस काल में न शीत की अधिकता होती है और न ग्रीष्म का तपन। वर्षा ऋतु का कीचड़ और कीट-पतंगों का आधिक्य भी नहीं होता है। माघ महीने की शुक्ल पंचमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक ही यह ऋतु बहुत-ही सुहावनी होती है। इस समय पेड़-पौधों में नवांकुर फूट पड़ते हैं। लताओं पर कलियाँ और फूल आ जाते हैं। चारों दिशाओं में फूलों की सुगंध, कोयल कूक तथा वासंती हवा की सरसर से वातावरण उल्लासमय दिखता है।

इस ऋतु का असर बच्चों, युवा, प्रौढ़ों और वृद्धों पर दिखता है। उनका तन-मन उल्लास से भर जाता है। यह ऋतु स्वास्थ्यवर्धक मानी गई है। स्वास्थ्य के अनुकूल जलवायु, सुंदर वातावरण तथा प्राणवायु की अधिकता के कारण संचार बढ़ जाता है। इससे मन में एक नया उल्लास एवं उमंग भर उठता है। वसंत पंचमी, होली इस ऋतु के त्योहार हैं। वसंत पंचमी के दिन ज्ञानदायिनी सरस्वती की पूजा-आराधना की जाती है तथा होली के दिन रंगों में सराबोर हम खुशी में डूब जाते हैं।

बदलती दुनिया में पीछे छूटते जीवन मूल्य

संकेत बिंदु –

  • संसार परिवर्तनशील
  • बदलाव का प्रभाव
  • खोते नैतिक मूल्य

यह संसार परिवर्तनशील है। यह पल-पल परिवर्तित हो रहा है। इस परिवर्तन के कारण कल तक जो नया था वह आज पुराना हो जाता है। कुछ ही वर्षों के बाद दुनिया का बदला रूप नज़र आने लगता है। इस परिवर्तन से हमारे जीवन मूल्य भी अछूते नहीं हैं। इन जीवन मूल्यों में बदलाव आता जा रहा है। इससे व्यक्ति का दृष्टिकोण बदल रहा है। यह बदलाव व्यक्ति के व्यवहार में स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। विज्ञान की खोजों के कारण हर क्षेत्र में बदलाव आ गया है। पैदल और बैलगाड़ी पर सफ़र करने वाला मनुष्य वातानुकूलित रेलगाड़ियों और तीव्रगामी विमानों से सफ़र कर रहा है।

हरकोर और कबूतरों से संदेश भेजने वाला मनुष्य आज टेलीफ़ोन और तार की दुनिया से भी आगे आकर मोबाइल फ़ोन पर आमने-सामने बातें करने लगा है। दुर्भाग्य से हमारे जीवन मूल्य इस प्रगति में पीछे छूटते गए। कल तक दूसरों के लिए त्याग करने वाला, अपना सर्वस्व दान देनेवाला मनुष्य आज दूसरों का माल छीनकर अपना कर लेना चाहता है। परोपकार, उदारदता, मित्रता, परदुखकातरता, सहानुभूति, दया, क्षमा, साहस जैसे मूल्य जाने कहाँ छूटते जा रहे हैं। हम स्वार्थी और आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं।

देश हमारा सबसे प्यारा

संकेत बिंदु –

  • भारत का नामकरण
  • प्राकृतिक सौंदर्य
  • अनेकता में एकता
  • प्राचीन परंपरा
  • वर्तमान में भारत

स्वर्ग के समय जिस धरा पर मैं रहता हूँ, दुनिया उसे भारत के नाम से जानती-पहचानती है। प्राचीन काल में यहाँ आर्यों (सभ्य) का निवास था, इस कारण इसे आर्यावर्त कहा जाता था। प्राचीन साहित्य में इसे जंबूद्वीप के नाम से भी जाना जाता था। कहा जाता है कि प्रतापी राजा दुष्यंत और शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर इसका नाम भारत पड़ा। भारत का प्राकृतिक सौंदर्य अप्रितम है। यहाँ छह ऋतुएँ बारी-बारी से आकर अपना सौंदर्य बिखरा जाती हैं। इसके उत्तर में मुकुट रूप में हिमालय है। दक्षिण में सागर चरण पखारता है। गंगा-यमुना जैसी पावन नदियाँ इसके सीने पर धवल हार की भांति प्रवाहित होती हैं। यहाँ के हरे-भरे वन इस सौंदर्य को और भी बढा देते हैं।

यहाँ विभिन्न भाषा-भाषी, जाति-धर्म के लोग रहते हैं। उनकी वेषभूषा, रहन-सहन, खान-पान और रीति-रिवाजों में पर्याप्त अंतर है फिर भी हम सभी भारतीय हैं और मिल-जुलकर रहते हैं। यहाँ की परंपरा अत्यंत प्राचीन, महान और समृद्धशाली है। भारतीय संस्कृति की गणना प्राचीनतम संस्कृतियों में की जाती है। वर्तमान में भारत को स्वार्थपरता, आतंकवाद, गरीबी, निरक्षरता आदि का सामना करना पड़ रहा है तथा मानवीय मूल्य कहीं खो गए-से लगते हैं। नेताओं की स्वार्थलोलुपता ने रही-सही कसर पूरी कर दी है, फिर भी हमें निराश होने की जरूरत नहीं है। भारत एक-न-एक दिन अपना खोया गौरव अवश्य प्राप्त करेगा।

इंटरनेट का उपयोग

संकेत बिंदु –

  • इंटरनेट क्या है
  • इंटरनेट के लाभ
  • उपयोग में सावधानियाँ

इंटरनेट को विज्ञान की अद्भुत देन कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। वास्तव में इंटरनेट सूचनाओं एवं जानकारियों का विस्तृत जाल है। इसमें एक-दो नहीं करोड़ों पन्नों की जानकारी भरी है। इंटरनेट की मदद से हम अपनी इच्छित जानकारी और जिज्ञासा का हल कुछ ही पल में कंप्यूटर की मदद से पा सकते हैं। इसकी सहायता से हम कुछ ही क्षण में दुनिया से जुड़ जाते हैं। अपने विचित्र गुण के कारण इंटरनेट अत्यंत तेज़ी से युवाओं के बीच लोकप्रिय हो रहा है।

यह ऐसा माध्यम है जिसमें संचार के लगभग साधनों के गुण समाए हैं। इंटरनेट अपने आप में विशाल पुस्तकालय भी है जिसमें दुर्लभ जानकारियों से भरी अनेकानेक पुस्तकें समायी हैं। इसकी पहुँच दुनिया के कोने-कोने तक है। इंटरनेट बहु उपयोगी साधन है। इसके माध्यम से मनोवांछित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तो घर बैठे सिनेमा या हवाई जहाज़ के टिकट बुक करवा सकते हैं। यह पढ़ने लिखने वालों तथा शोधकर्ताओं के लिए वरदान है। इंटरनेट का सावधानीपूर्वक उपयोग न करने पर इसके दुरुपयोग की संभावना रहती है। इंटरनेट की अश्लील सामग्री से युवाओं का कोमल मन दिग्भ्रमित हो रहा है। विवेकपूर्वक उपयोग करने पर यह वरदान सरीखा है।

पुस्तकालय कितने उपयोगी

संकेत बिंदु –

  • पुस्तकालय क्या है?
  • पुस्तकालय के प्रकार
  • ज्ञान के भंडार
  • आवश्यकता एवं महत्त्व

पुस्तकालय शब्द दो शब्दों ‘पुस्तक’ और ‘आलय’ के मेल से बना है। इसमें आलय का अर्थ है-घर। अर्थात् वह स्थान जहाँ बहुत सारी पुस्तकें सुरक्षित एवं व्यवस्थित ढंग से रखी जाती हैं, उसे पुस्तकालय कहते हैं। प्राचीन काल में कुछ राजा-महाराजा अपना शौक पूरा करने के लिए पुस्तकालय बनवाया करते थे। पुस्तकालय मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं-निजी पुस्तकालय और सार्वजनिक पुस्तकालय। निजी पुस्तकालय व्यक्ति अपने सामर्थ्य, रुचि और आवश्यकता के अनुसार बनवाता है तथा स्वयं उसका उपयोग करता है।

इसके विपरीत सार्वजनिक पुस्तकालय प्रायः सरकार द्वारा बनवाए एवं संचालित किए जाते हैं, जिनके दरवाज़े हर एक के लिए खुले रहते हैं। यहाँ कोई भी जाकर उनका लाभ उठा सकता है। यहाँ विविध विषयों पर बहुत सारी उपयोगी एवं दुर्लभ पुस्तकें मिल जाती हैं। यहाँ धर्म, अर्थ, ज्ञान-विज्ञान, चिकित्सा राजनीतिक विषयों के अलावा पौराणिक पुस्तकें मिलती हैं। इस प्रकार पुस्तकालय ज्ञान के भंडार हैं। इस युग में प्रत्येक व्यक्ति पुस्तकें नहीं खरीद सकता है तथा उनका रख-रखाव नहीं करता है। ज्ञान की उपयोगिता तो सर्वविदित है। ऐसे में पुस्तकालय की आवश्यकता एवं महत्त्व और भी बढ़ जाता है।

आत्मनिर्भरता

संकेत बिंदु –

  • आत्मनिर्भरता क्या है
  • आत्मनिर्भरता के लाभ
  • आत्मनिर्भरता से जुड़ी सावधानियाँ

आत्मनिर्भरता दो शब्दों ‘आत्म’ और निर्भरता से बना है, जिसका अर्थ है-स्वयं पर निर्भर रहना। अर्थात् अपने कार्यों और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दूसरे का मुँह न ताकना। आत्मनिर्भरता उत्तम कोटि का मानवीय गुण है। इससे व्यक्ति कर्म करने लिए स्वतः प्रेरित होता है। व्यक्ति को अपनी शक्ति, योग्यता और कार्यक्षमता पर पूरा विश्वास होता है। इसी बल पर व्यक्ति उत्साहित होकर पूरी लगन से काम करता है और सफलता का वरण करता है। आत्मनिर्भरता व्यक्ति के लिए स्वतः प्रेरणा का कार्य करती है।

यह प्रेरणा व्यक्ति को निरंतर आगे ही आगे ले जाती है। इससे व्यक्ति में निराशा या हीनता नहीं आने पाती है। आगे बढ़ते रहने से हम दसरों के लिए आदर्श और अनुकरणीय बन जाते हैं। यहाँ एक बात यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि हम अति उत्साहित होकर अति आत्मविश्वासी न बन जाएँ क्योंकि इससे हमारे कदम गलत दिशा में उठ सकते हैं। अच्छा हो कि कोई कदम उठाने से पूर्व हम अपनी कार्य क्षमता का आँकलन कर लें, इससे हम असफलता का शिकार होने से बच जाएँगे, पर हमें हर परिस्थिति में आत्म निर्भर बनना चाहिए।

नारी तेरे रूप अनेक

संकेत बिंदु –

  • नारी के विविध रूप
  • शिक्षा में प्रगति
  • विभिन्न पदों पर नारी
  • सुरक्षा की आवश्यकता

समाज में नारी के अनेक रूप हैं। वह विविध भूमिकाएं निभाकर परिवार एवं समाज के विकास में अपना योगदान देती है। वह परिवार में माँ, दादी, पत्नी, बहन, भाभी, चाची, मामी आदि भूमिकाओं में नज़र आती है। अब उसके इस कल्याणी रूप के अलावा नौकरी करने वाला रूप भी दिखने लगा है। स्वतंत्रता के बाद शिक्षा के लिए उठाए गए कदमों से नारी शिक्षा में प्रगति हुई है। साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, जिसमें स्त्री शिक्षा का भी योगदान है। शिक्षा के कारण उसके उत्तरदायित्वों में निरंतर वृद्धि होती गई।

आज नारी घर की चारदीवारी को लाँघकर नौकरी-पेशा करने लगी है। शायद ही कोई क्षेत्र हो जहाँ नारी नौकरी न कर रही हो। डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापिका, नर्स, प्रशासनिक अधिकारी, क्लर्क, विमान परिचारिका के रूप में उसे सेवा देते देखा जा सकता है। उसे सरकारी, गैरसरकारी, सार्वजनिक संस्थानों में काम करते देखा जा सकता है। आज लोगों की सोच में बदलाव आने के कारण नारी को छेड़छाड़, अश्लीलता, छींटाकसी, हिंसात्मक घटनाओं का शिकार होना पड़ रहा है। ऐसे में नारी के प्रति सम्मानजनक सोच, आदर की भावना एवं सुरक्षा देने के लिए तत्परता की आवश्यकता है।

मैंने ग्रीष्मावकाश कैसे बिताया
अथवा
मेरी अविस्मरणीय यात्रा

संकेत बिंदु –

  • पर्वतों का आकर्षण
  • यात्रा की तैयारी एवं प्रस्थान
  • मनभावन स्थल
  • अविस्मरणीय स्मृतियाँ

न जाने क्यों पर्वत मुझे सदा से ही आकर्षित करते हैं। आकाश छूते उनके उन्नत शीश, विशालकाय शरीर, शरीर पर रोएँ के समान उगी वनस्पतियाँ और पेड और इनसे भी अधिक उनके पैरों के पास खड़े होकर उनकी विशालता तथा अपने छोटेपन की अनुभूति मुझे रोमांचित कर देती है। इसी बीते ग्रीष्मावकाश में हम चार-पाँच मित्रों ने परीक्षा से पूर्व ही देहरादून की यात्रा कार्यक्रम घरवालों की अनुमति से बनाया और ‘देहरादून एक्सप्रेस’ से आरक्षण करा लिया। यात्रा की सारी तैयारी करके 02 जून को हम दिल्ली से शाम को चलकर प्रात: देहरादून पहुँच गए। वहाँ होटल में रुके और नित्यकर्म से निवृत्त होकर सहस्रधारा स्नान का मन बनाया।

वहाँ की पतली-सी शीतल धारा में नहाते ही हमारी थकान छूमंतर हो गई। हमने स्वास्थ्य के लिए उपयोगी गंधक का पानी भी पिया। अगले दिन हम बस द्वारा मंसूरी गए। यहाँ की सीली पहाड़ी सड़क की यात्रा बड़ी रोमांचक थी। यहाँ हम चार दिन रुककर कैंपटीफाल समेत अनेक स्थानों को देखा। यहाँ का सौंदर्य रात्रि में और भी निखर उठता था। ‘लाल टिब्बा’ नामक स्थान देखकर हम देहरादून आए और यहाँ सप्ताह भर रुककर गंगा स्नान किया। मंसा देवी मंदिर पैदल जाना एक विचित्र अनुभव था। यहाँ बिताए ग्रीष्मावकाश की स्मृतियाँ आज भी ताज़ी हैं।

मेरे जीवन का लक्ष्य

संकेत बिंदु –

  • लक्ष्य निर्धारण
  • लक्ष्य के प्रति समर्पण, यही लक्ष्य क्यों?
  • विकास में योगदान

लक्ष्यहीन जीवन भटकाव से भरा रहता है। ऐसा जीवन लोगों की दृष्टि में अच्छा नहीं माना जाता है। निरुद्देश्य घूमते रहने से अच्छा है कि हम अपने जीवन का एक लक्ष्य बना लें। बचपन से ही मैं एक अच्छा इंजीनियर बनने के लिए सोचा करता था। अब यही मेरा जीवन लक्ष्य है। इसे मैं पूरा करके ही रहूँगा। इसके लिए मैंने आठवीं कक्षा से ही विज्ञान, गणित, अंग्रेज़ी जैसे विषयों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। मैंने दसवीं में ‘ए’ ग्रेड लाने का फैसला किया है, ताकि ग्यारहवीं में विज्ञान पढ़ने में कोई परेशानी न आए।

यह लक्ष्य मैंने इसलिए चुना क्योंकि समाज में इंजीनियर का स्थान ऊँचा माना जाता है। वह समाज और प्रकृति को सुंदर बनाने में अपना सहयोग देता है। इसमें नौकरी और स्वतंत्र व्यवसाय दोनों के रास्ते खुले रहते हैं। यह आय और सम्मान दोनों ही पाने का साधन है। एक इंजीनियर बनकर औद्योगिक विकास में अपना योगदान देना चाहता हूँ। अपने परिश्रम और नई खोज द्वारा देश के विकास में तनमन से प्रयास करूंगा। मैं प्रसिद्ध भारतीय इंजीनियर सर गंगा राम के कार्यों की तरह समाज के लिए हितकारी काम करना चाहता हूँ।

भ्रष्टाचार की समस्या एवं समाधान

संकेत बिंदु –

  • भूमिका
  • भ्रष्टाचार की परिभाषा
  • भ्रष्टाचार फैलने के कारण
  • समाधान

वर्तमान समय में समाज को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। भ्रष्टाचार की समस्या उनमें सर्वोपरि है, जिससे किसीन-किसी मोड़ पर दो-चार होना पड़ता है। भ्रष्टाचार का अर्थ है-भ्रष्ट आचरण करना अर्थात् स्वार्थ के वशीभूत होकर नैतिक मापदंडों के विरुद्ध आचरण करना ही भ्रष्टाचार है। आज यह समाज में अपनी जड़ें जमा चुका है। बेईमानी, चोरबाज़ारी, रिश्वतखोरी, मिलावट, जमाखोरी, जैसी बुराइयाँ भ्रष्टाचार की ही देन है। सरकारी एवं राजनैतिक अधिकारों का दुरुपयोग कर लोग भ्रष्टाचार में आकर डूबकर अपने भले में लग जाते हैं और दूसरों के हित से उनका कोई लेना-देना नहीं रह जाता है।

भौतिकवाद के प्रभावस्वरूप लोगों की सोच में बदलाव आया है और वे येन-केन प्रकारेण अधिकाधिक धन कमाना अपने जीवन का लक्ष्य मान बैठे हैं। रही-सही कसर उपभोक्तावादी संस्कृति ने पूरी कर दी है, जिसके लोभ में फँसकर व्यक्ति बिना परिश्रम किए अधिकाधिक सुख-सुविधाओं का उपभोग कर लेना चाहता है। भ्रष्टाचार के समाधान के लिए सरकार को कठोर कदम उठाने चाहिए। भ्रष्टाचारियों द्वारा अर्जित संपत्ति जब्त कर उन्हें पदों से हटा देना चाहिए। भ्रष्ट नेताओं की सदस्यता समाप्त कर उनके चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगा देना चाहिए। इसके अलावा लोगों को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा तथा युवाओं को आगे आना चाहिए।

मेरी प्रिय पुस्तक

संकेत बिंदु –

  • प्रिय पुस्तक
  • प्रिय होने का कारण
  • मर्मस्पर्शी कथ्य
  • पथ-प्रदर्शक

अब तक मैंने कहानी, नाटक के अलावा कविताओं की अनेक पुस्तकें पढ़ी हैं, पर जिस पुस्तक ने मुझे सर्वाधिक आकर्षित किया, वह है-गोस्वामी तुलसीदास की अमरकृति रामचरित मानस। इस महाकवि ने रामचरित मानस की रचना चार सौ वर्ष से भी अधिक समय पूर्व की थी परंतु इस पुस्तक की प्रासंगिकता में कोई कमी नहीं आई है। वर्तमान परिस्थितियों में इसकी प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। इसमें पिता-पुत्र, पति-पत्नी, गुरु-शिष्य, स्वामी-सेवक, भाई-भाई और मित्र आदि के संबंधों का सुंदर निरूपण करते हुए उन्हें कर्तव्यबोध भी कराती है। यह सब व्यावहारिक धरातल पर किया गया है। इसमें भारतीय संस्कृति की मूल भावना ‘एकता’ और समन्वय का घनीभूत रूप है। इसका कथ्य भगवान राम की पावन जीवनगाथा है जो जनमानस को कदम-कदम पर प्रेरित करती है और कर्तव्यबोध एवं उत्तरदायित्व की भावना जगाती है। इसकी भाषा-शैली अत्यंत सहज-सरल है, जिसे आसानी से समझा जा सकता है। यह पुस्तक मानव को आजीवन सदाचार की राह दिखाती है।

जीवनमूल्यों की बढ़ती आवश्यकता

संकेत बिंदु –

  • जीवन मूल्यों का अर्थ

जीवन मूल्यों का अर्थ उन आदर्शों और मान्यताओं से है जिन्हें हमारे ऋषि-मुनियों ने जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए बनाया था। ये जीवन मूल्य ही हैं जो मनुष्य को मनुष्य बनाए रखते हैं अन्यथा मनुष्य तथा पशुओं में भेद करना मुश्किल हो जाएगा। किसी तरह छीन-झपटकर अपना पेट भरना, घूमने, सोने जैसे काम तो पशु भी कर लेते हैं, पर जीवन मूल्यों के कारण ही व्यक्ति अपने आगे की थाली किसी भूखे के आगे सरका देता है। कार्ल मार्क्स ने अपनी मेज़ की दराज़ में रखी ब्रेड को दूसरों को खिला दिया। लेनिन ने दूसरों के हक के लिए संघर्ष किया। कर्ण और राजा हरिश्चंद की दानशीलता उनके जीवन मूल्यों के कारण ही थी।

गांधी जी ने दूसरों को अधनंगा देखकर एक धोती से काम चलाया तो, राजा शिवि ने कबूतर की जान बचाने के लिए अपने शरीर का मांस काटकर बाज को दिया। दुर्भाग्य से पाश्चात्य सभ्यता के कारण लोग इन जीवन-मूल्यों की उपेक्षा करते हैं। त्याग, परोपकार, उदारता पर दुख कातरता इतिहास की बातें होती जा रही हैं, इससे व्यक्ति एवं समाज में असंतोष एवं तृष्णा बढ़ रही है।

दूरदर्शन की उपयोगिता

संकेत बिंदु –

  • दूरदर्शन की आवश्यकता
  • दूरदर्शन का महत्त्व
  • शिक्षा और दूरदर्शन
  • सांस्कृतिक प्रदूषण

जे.एल. बेयर्ड ने जब दूरदर्शन की खोज की थी तो यह बिलकुल भी नहीं सोचा था कि उनकी खोज एक दिन हर घर की आवश्यकता बन जाएगी। सचमुच आज दूरदर्शन हर परिवार, क्या हर व्यक्ति के लिए आवश्यक बनता जा रहा है। यह लोगों के थके-हारे मन एवं शरीर को मनोरंजन प्रदान कर नवीन उत्साह से भर देता है। दूरदर्शन केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं बल्कि नित नई-नई जानकारियों का साधन भी है। इससे अपने देश की घटनाओं के अलावा विदेश की जानकारी भी प्राप्त की जाती है और घटनाओं को प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है।

वर्तमान में यह बच्चे, बूढ़े और युवाओं सभी का चेहता बन गया है। छात्रों के लिए एन.सी.ई.आर. टी. द्वारा शैक्षिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। इनमें विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान जैसे विषय मुख्य हैं। विद्यार्थियों को इन कार्यक्रमों का लाभ उठाना चाहिए। दूरदर्शन के अनेक कार्यक्रमों में फूहड़ता, अश्लीलता, हिंसा, मारकाट, लूट आदि के दृश्य होते हैं, जो युवा मन पर कुभाव डालते हैं। इससे सांस्कृतिक प्रदूषण में वृद्धि हुई है परंतु क्या देखना है, कितना देखना है, यह तो मनुष्य के ही हाथ में है।

समय का सदुपयोग

संकेत बिंदु –

  • समय सदुपयोग का महत्त्व
  • आलस्य का महान शत्रु
  • विद्यार्थी जीवन में समय की महत्ता
  • सफलता का रहस्य

समय निरंतर चलने वाली गतिशील शक्ति है। बुद्धिमान इसका महत्त्व समझकर सदुपयोग करते हैं जबकि अज्ञानी इसे व्यर्थ में गँवा देते हैं। समय का सदुपयोग करने वाले लोग ही समय पर अपना काम पूरा कर पाते हैं। जो समय की महत्ता समझता है, समय उसे महत्त्वपूर्ण बना देता है। परिश्रमी एवं कर्मशील व्यक्ति समय का एक-एक पल नियोजित कर सदुपयोग करते हैं। आलसी व्यक्ति आलस करते हुए समय गंवाते हैं और काम अपूर्ण रह जाने पर समय की कमी का रोना रोते हैं। उनका आलस्य उन्हें समय पर काम करने में अवरोध उत्पन्न करता है। आलस्य व्यक्ति का महान शत्रु है। विद्यार्थी जीवन में समय के सदुपयोग की महत्ता और भी बढ़ जाती है। उसे प्रत्येक विषय के लिए समय नियोजन करना पड़ता है। इस काल में विद्यार्थी में जो आदतें पड़ जाती हैं वे आजीवन साथ रहती हैं। ऐसे समय के सदुपयोग की आदत और भी महत्त्वपूर्ण बन जाती है। संसार में जितने भी लोगों ने सफलता का शिखर छुआ, उसके पीछे समय का सदुपयोग करने का रहस्य छिपा था। गांधी, नेहरू, टैगोर, तिलक, नेपोलियन बोनापार्ट आदि की सफलता का मूलमंत्र समय का सदुपयोग ही था।

बच्चों के कंधों पर बढ़ता बोझ

संकेत बिंदु –

  • प्रतियोगिता का दौर
  • बच्चों पर प्रभाव
  • स्वार्थी प्रवृत्ति

वर्तमान समय में प्रतियोगिता का दौर है। इस दौर में हर माता-पिता की यह इच्छा रहती है कि उसका बच्चा सबसे आगे निकल जाए। इसी सोच के कारण आज स्कूल जाने वाले बच्चों के कंधे पर बस्ते का बोझ बढ़ता जा रहा है। कमज़ोर शरीर वाले बच्चे तो अपना बस्ता भी नहीं उठा पाते हैं। जो उठा भी पाते हैं वे कमर झुकाए चल रहे हैं पर माता-पिता देखकर भी इसे अनदेखा कर रहे हैं। शिक्षाविद् तथा विद्वानों ने समय-समय पर सुझाव दिया है कि बस्ते का बोझ कम किया जाए, पर माता-पिता की सोच स्कूल तथा पब्लिशर की लालच के कारण उनके सुझाव कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं।

माता-पिता अपने बच्चे को अल्पकाल में सबसे होशियार बना देना चाहते हैं तो स्कूल के प्रधानाचार्य और प्रबंधक पुस्तकें बेचकर लाभ कमाना चाहते हैं। जब ज़्यादा पुस्तकें चाहिए तो प्रकाशक संस्थानों (Publishers) को काम मिलेगा और उन्हें भी दो का चार बनाने का मौका मिलेगा। अब इसी लोभ में बच्चे की कमर टूटे या वह बस्ता उठाए झुककर चले, इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं रह जाता है। अब समय आ गया है कि बच्चों के बस्ते का बोझ अविलंब कम किया जाए।

अतिथि देवो भवः

संकेत बिंदु –

  • अतिथि भगवान का रूप
  • अतिथि कौन
  • पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव

भारतीय संस्कृति की ऐसी अनेक विशेषताएँ हैं जो इसे अन्य संस्कृतियों से विशिष्ट बनाती है। इनमें एक है अतिथि को देवता मानने की सोच। इस धारणा के कारण लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार अतिथि का स्वागत करते हैं और उसे संतुष्ट रखने का प्रयास करते हैं। अतिथि कौन होता है? अतिथि वह व्यक्ति होता है जिसके आने की कोई तिथि नहीं होती है। वह अचानक आ धमकता है, बिना किसी पूर्व सूचना के। इस स्थिति में जब हम अतिथि का भरपूर स्वागत सत्कार करते हैं तो अतिथि पर ही नहीं समाज पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

भारतीय संस्कृति की परंपरानुसार अतिथि का स्वागत-सत्कार करना हर भारतीय का दायित्व बनता है। हमें इस परंपरा का निर्वाह करना ही चाहिए। आजकल टूटते परिवार, बढ़ती, महँगाई, समयाभाव काम-काज की अधिकता और भागमभाग की जिंदगी के बीच अतिथि का सत्कार करना मुश्किल होता जा रहा है। इसके अलावा पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के कारण हम इसे भूलते जा रहे हैं। कुछ भी हो पर हमें अतिथि सत्कार की परंपरा को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।

ट्रैफिक जाम की समस्या

संकेत बिंदु –

  • ट्रैफिक जाम की वर्तमान स्थिति
  • जाम से निपटने के उपाय
  • ‘आड-इवेन’ योजना

दिल्ली को देश का दिल कहा जाता है। जो यहाँ आता है वह यहीं का होकर रह जाता है। इस कारण इस महानगर में सरकारी और व्यक्तिगत वाहनों की संख्या तीव्र गति से बढ़ती जा रही है। इससे यहाँ हर चौराहे पर लगभग जाम की स्थिति देखने को मिलती है। सुबह-शाम के समय मुख्य मार्गों पर कई-कई किलोमीटर लंबी वाहनों की कतारें देखने को मिलती हैं।

ट्रैफिक जाम से निपटने के लिए सरकार और पुलिस द्वारा समय-समय पर कदम उठाए जाते हैं। दिल्ली में मेट्रो रेल की शुरुआत इसी दिशा में उठाया एक कदम था। जाम से बचाने के लिए व्यस्त चौराहों पर फ़्लाई ओवर बनाए जाते हैं। इसके अलावा दिल्ली सरकार ने ‘ऑड और इवेन’ योजना शुरू की थी। इससे शुरू में लोगों को परेशानी तो हुई, पर जाम की समस्या में कमी आई थी। इससे निपटने के लिए सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग, कार पूलिंग तथा व्यक्तिगत वाहनों का कम से कम प्रयोग करना चाहिए।

पाश्चात्य सभ्यता की गिरफ्त में आते युवा ।

संकेत बिंदु –

  • पाश्चात्य संस्कृति का अर्थ
  • पाश्चात्य संस्कृति का आकर्षण
  • मानवीय मूल्यों पर बुरा असर

पाश्चात्य संस्कृति को पश्चिमी देशों की संस्कृति भी कहा जाता है। अर्थात् पश्चिमी देशों के रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार, आधुनिक जीवन शैली आदि का मिला-जुला नाम पाश्चात्य संस्कृति है। पश्चात्य संस्कृति से युवा वर्ग सम्मोहित हो गया है। वह पाश्चात्य संस्कृति को ललचाई नज़रों से देख रहा है। वह अपना सोच-विचार रहन-सहन, आचार-विचार आदि पश्चिमी देशों जैसा करता जा रहा है। युवाओं के लिए धोती-कुरता या कुरता-पजामा पिछड़ी पोशाकों का प्रतीक है। वे जींस और टी-शर्ट पहनने लगे हैं।

‘प्रणाम’ और ‘चरण-स्पर्श’ की जगह हाय हैलो लेता जा रहा है। भारतीय पकवानों की जगह बर्गर, पीज्जा, चाउमीन, नूडलस, समोसा, मोमोज़, पेटीज आदि रुचिकर लगते हैं। पाश्चात्य संस्कृति का सबसे बुरा असर हमारे जीवन मूल्यों पर पड़ रहा है। त्याग, प्रेम, सद्भाव, भाईचारा, उदारता परोपकार आदि की जगह स्वार्थपरता, आत्मकेंद्रितता और संवेदनहीनता लेती जा रही है। समाज के लिए यह शुभ संकेत नहीं है।

पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र

संकेत बिंदु –

  • पुस्तकों का महत्त्व
  • ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार
  • सच्चा मनुष्य बनने में सहायक

मनुष्य ज्ञान पिपासु एवं जिज्ञासु प्राणी है। उसकी ज्ञान पियासा और जिज्ञासा को शांत करने का सर्वोत्तम साधन पुस्तकें हैं। पुस्तकों में विविध प्रकार का ज्ञान भरा होता है जिससे मनुष्य अच्छा इनसान बनता है तथा उन्नति करता है। इस प्रकार पुस्तकों का बहुत महत्त्व है। पुस्तकें दुविधाग्रस्त व्यक्ति का मार्गदर्शन करती हैं। इससे दुविधाओं से मुक्ति मिलती है। पुस्तकें ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार होती हैं। इनसे व्यक्ति ज्ञानवान बनता है। जब वह कामकाज से थक जाता है तो पुस्तकों से अपना मनोरंजन करता है और थकानमुक्त महसूस करता है।

पुस्तकें हमारे सच्चे विवेकशील मित्र की तरह होती हैं। वे हमें सही-गलत, नैतिक-अनैतिक, ज्ञान-अज्ञान तथा न्याय-अन्याय में अंतर करना सिखाती हैं। पुस्तकें मानसिक शांति प्रदान करती हैं तथा कर्म का संदेश देती हैं। रामचरितमानस, महाभारत श्रीमद् भागवत गीता, कामायनी, निर्मला, साकेत आदि ऐसी ही पुस्तकें हैं। पुस्तकें हमें धर्म की ओर मोड़कर नैतिकता का पाठ पढ़ाती हैं। हमें पुस्तकें पढ़कर फेंकने के बजाय किसी व्यक्ति या पुस्तकालय को दे देनी चाहिए।

औद्योगीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव

संकेत बिंदु –

  • औद्योगीकरण एक आवश्यकता
  • वनों को क्षति
  • पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि

हमारा देश विकासशील राष्ट्र है। विकास के पथ पर बढ़ते हुए यहाँ अनेक औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की गईं। स्वतंत्रता के बाद औद्योगीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया गया। इससे हमारे देश में ही सुई से हवाई जहाज़ तक का निर्माण किया जाने लगा। इससे एक ओर लोगों को रोजगार मिला तो दूसरी ओर अर्थव्यवस्था मज़बूत हुई। इसके लिए पर्याप्त भूमि की आवश्यकता हुई जिसकी पूर्ति के लिए वनों को काटा गया।

इतना ही नहीं इन इकाइयों तक पहुँचने के लिए और इनमें बना माल लाने ले जाने के लिए सड़कें बनाईं गई जिससे हरे-भरे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की गई। इसके अलावा इन औद्योगिक इकाइयों से निकले धुएँ से हवा में प्रदूषक तत्व मिले जिससे हवा जहरीली होती है। इनसे निकला अपशिष्ट पदार्थ और दूषित जल ने आस-पास के जल स्रोतों को प्रदूषित किया। इससे पानी ही नहीं मृदा प्रदूषण भी बढ़ा। इन इकाइयों में लगे उच्च क्षमता के मोटरों ने ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा दिया। औद्योगीकरण एक आवश्यकता है परंतु पर्यावरण का ध्यान रखकर इनकी स्थापना की जानी चाहिए।

संतोष-सबसे बड़ा धन

संकेत बिंदु –

  • भौतिकवाद का असर

मनुष्य की प्रवृत्ति ही है कि वह अधिक से अधिक सुख-सुविधाएँ पा लेना चाहता है। वह दूसरों के हिस्से की सुविधाएँ अपना बनाता जा रहा है। भौतिकवाद ने उसकी तृष्णा और भी बढ़ा दिया है। इससे व्यथित होकर वह सुख के पीछे भागता जा रहा है। वह मृगतृष्णा का शिकार हो रहा है। इसके बाद भी वह सुखी नहीं है, क्योंकि मनुष्य के मन में संतोष नामकी चीज़ ही नहीं बची है। कहा भी गया है- ‘गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन धन खान। जब आए संतोष धन सब धन धूरि समान।।

अर्थात् संतोष रूपी धन के सामने सभी धन तुच्छ हैं। जो व्यक्ति संतोषी होता है वही सच्चा सुख पाता है। धन का लालच व्यक्ति को चैन से बैठने नहीं देता है। लालच के कारण व्यक्ति भूखे पशु की भाँति यहाँ-वहाँ घूमता है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति के मन में संतोष की भावना आ गई तो वह प्रसन्नता की अनुभूति करता है। वह उतने ही पैसों की आवश्यकता महसूस करता है जितना कि उसकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ज़रूरी होती है। ऐसे ही लोग कहते हैं-‘साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय। मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय।’

संयुक्त परिवार के प्रति बदलती अवधारणा

संकेत बिंदु –

  • संयुक्त परिवार के लाभ
  • संयुक्त परिवार टूटने के कारण
  • हानियाँ

भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवार को महत्ता दी गई है। ऐसे परिवार में माता-पिता और बच्चों के अलावा दादा-दादी चाचा-चाची तथा ताऊ-ताई और उनके बच्चे साथ रहते हैं, खाते-पीते हैं और एक ही छत के नीचे रहते हैं। संयुक्त परिवार उस बड़े-बूढ़े बरगद के वृक्ष की भाँति होते हैं जो धूप-सरदी और वर्षा स्वयं सहकर दूसरों को सुख देते हैं। यही स्थिति घर के बुजुर्गों की होती है जो परिवार के अन्य सदस्यों को परेशानी से बचाते हैं। वे छोटे बच्चों को ज्ञानपूर्ण बातों एवं कहानियों से शिक्षा ही नहीं देते बल्कि उनका चरित्र निर्माण भी करते हैं। संयुक्त परिवार टूटने से अब दादी-नानी की कहानियाँ कागजों की बातें बनती जा रही हैं। संयुक्त परिवार टूटने का मुख्य कारण भौतिकवाद बढ़ती स्वार्थी प्रवृत्ति तथा पश्चिमी सभ्यता का असर है। इसके अलावा शिक्षित होकर नौकरी करने अन्य शहर में जाना वहीं बस जाना भी है। संयुक्त परिवार टूटने से अब बच्चों में नैतिक ज्ञान एवं संस्कार की कमी होती जा रही हैं। उन्हें अपनों का संरक्षण न मिल पाने से वे असुरक्षा तथा हीनता से ग्रसित रहते हैं। माता-पिता दोनों के काम पर जाने से बच्चों को केच में अपना बचपन बिताने को विवश होना पड़ रहा है। प्यार तथा अपनेपन की कमी में यही बच्चे वृद्ध माता की उपेक्षा करते हैं जिससे उन्हें वृद्धाश्रम की शरण लेनी पड़ती है।

सादा जीवन उच्च विचार

संकेत बिंदु –

  • सादा जीवन उच्च विचार का आशय
  • उपभोक्तावाद का प्रभाव
  • महापुरुषों के उदाहरण

मनुष्य का व्यवहार, उसका रहन-सहन और कार्यकलाप उसकी अपनी व्यक्तिगत सोच पर निर्भर करता है। कुछ लोग फ़ैशन और चमक-दमक से पूर्ण जीवन को ही आधुनिकता का पर्याय मानते हैं, पर कुछ लोग साधारण किंतु साफ़-सुथरे पहनावे का वरीयता देते हुए अपने आचरण में सरलता पवित्रता, उदारता, त्याग, करुणा आदि उच्च मानवीय गुणों को व्यवहार में बनाए रखते हैं। ऐसा जीवन किसी तपस्या से कम नहीं है। कुछ वर्षों से समाज में उपभोक्तावाद का प्रभाव जोरों पर है। लोग सुख-सुविधाओं का अधिकाधिक प्रयोग करके शारीरिक और भौतिक सुख पाना चाहते हैं। इसके लिए वे तड़क-भड़क और दिखावायुक्त आडंबरपूर्ण जीवन जीते हैं। इससे व्यक्ति की मानसिक शांति छिन जाती है तथा जीवन में रिक्तता एवं व्यग्रता बढ़ती जाती है। हमारे ऋषि-मुनियों ने सादा जीवन जीते हुए विचारों की श्रेष्ठता बनाए रखी। उन्होंने मानवता की भलाई को अपना परम लक्ष्य समझा। गांधी जी ‘सादा जीवन उच्च विचार’ का आदर्श अपनाते थे और संपूर्ण विश्व में पूजनीय बने।

आतंकवाद-एक विश्वव्यापी समस्या

संकेत बिंदु –

  • संपूर्ण विश्व की समस्या
  • आतंकवाद के दुष्प्रभाव
  • समाधान के प्रयास

हर देश की अपनी-अपनी समस्याएँ होती हैं, परंतु जिस समस्या के कारण आज पूरा विश्व परेशान है वह है-आतंकवाद। अपनी हिंसक शक्ति से जनता में भय का वातावरण बनाकर उसे आतंकित करना और अपनी अनुचित माँगे मँगवाने के लिए हिंसा का सहारा लेना ही आतंकवाद है। आज भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सीरिया, ईराक ही नहीं बल्कि अमेरिका और इंग्लैंड भी इसकी गिरफ़्त में आ गए हैं। 02 अक्टूबर 2017 को अमेरिका के लास वेगास के एक कंसर्ट में अंधाधुंध गोलीबारी से साठ से अधिक लोगों की हत्या इसका ताज़ा उदाहरण है। ऐसी घटनाओं से दुनिया की नींद उड़ी है। कब कहाँ कौन-सी आतंकी घटना हो जाए, इसकी आशंका बनी रहती है।

आतंकवाद से समाज और राष्ट्र को अपूर्ण क्षति होती है। अनेक बच्चे जवान और बूढ़े असमय काल-कवलित हो जाते हैं। आतंकवाद से निपटने में जो धन खर्च होता है, उसे विकास कार्यों में लगाया जा सकता है। आतंकवाद से निपटने के लिए दुनिया के सभी देशों को मिल-जुलकर प्रयास करना चाहिए। पकड़े गए आतंकियों का सिर कुचलकर आतंकवाद को मुँह तोड़ जवाब देना चाहिए ताकि इस पर नियंत्रण किया जा सके।

मनोरंजन के आधुनिक साधन

संकेत बिंदु –

  • मनोरंजन की आवश्यकता
  • मनोरंजन के प्राचीन और आधुनिकतम साधन
  • मनोरंजन से किसी को दुख नहीं

श्रम से थके तन-मन और मनोरंजन का अत्यंत गहरा नाता है। मनुष्य दिनभर मानसिक और शारीरिक श्रम से थककर चूर हो जाता है तो वह मनोरंजन करना चाहता है ताकि वह थकान से मुक्त और नई ऊर्जा से भर जाए। प्राचीन काल में मनुष्य पशु-पक्षियों से अपना मनोरंजन करता था। वह मुरगे, भेड़ें तथा भैसों-बैलों की लड़ाई देखकर प्रसन्न होता था। कालांतर में वह साहित्य संगीत, कला आदि से अपना मनोरंजन करने लगा। समय के साथ-साथ वह मनोरंजन के उत्तम साधनों की खोज करता रहा।

विज्ञान का साथ पाकर उसने नए-नए साधन बनाए। ग्रामोफोन, टेलीविजन, वी.सी.आर. फ़िल्मों के अलावा रिकॉर्डेड गीत-संगीत से अपना मनोरंजन करने लगा। कंप्यूटर और मोबाइल फ़ोन भी उसका पसंदीदा साधन बन गया है। अपना मनोरंजन करते समय हमें दूसरों के दुख का भी ध्यान रखना चाहिए। ऊँची आवाज़ में गीत संगीत बजाना, देर रात तक डीजे पर नाचने से किसी को परेशानी हो रही होगी, इसका ध्यान अवश्य रखना चाहिए।

क्रिकेट का लोकप्रिय प्रारूप – टी-ट्वेंटी

संकेत बिंदु –

  • नए प्रारूप की विशेषता
  • लोकप्रियता का कारण
  • टी-ट्वेंटी में भारत की स्थिति

क्रिकेट हमारे देश का अत्यंत लोकप्रिय खेल है। कुछ समय तक दो प्रारूपों टेस्ट मैच और एक दिवसीय रूप में ही खेला जाता था पर इधर करीब एक दशक से इसे टी-20 क्रिकेट के प्रारूप में खेला जाने लगा है। इसका नाम फटाफट क्रिकेट भी है क्योंकि इसे 20-20 ओवरों तक ही खेला जाता है। लगभग चार घंटे में समाप्त हो जाने से इस मैच में रोमांच अपने चरम पर पहँच जाता है। इस प्रारूप में परिणाम का निकलना तय रहता है। कम समय में क्रिकेट का भरपूर आनंद देने के कारण आजकल इसकी लोकप्रियता चरम पर है। आजकल यह क्रिकेट की प्रतिभा परखने का अच्छा साधन मिल गया है। इस प्रारूप में कई बार तो 50 ओवरों तक खेले जाने वाले क्रिकेट मैच से भी अधिक रन बन जाते हैं। रनों की बारिस देखने का मज़ा टी-20 प्रारूप में ही है। भारत ने सन् 2007 में पाकिस्तान को हराकर टी-20 क्रिकेट का विश्वकप जीता था। इस खेल में भारत आज भी विशिष्ट स्थान रखता है। इसी खेल के माध्यम से एक दिवसीय एवं टेस्ट में भारतीय खिलाड़ी विश्व में क्रिकेट प्रेमियों के दिलों पर राज कर रहे हैं।

मधुर वाणी की महत्ता

संकेत बिंदु –

  • वाणी एक अनमोल वरदान
  • मीठी वाणी का प्रभाव
  • कटुभाषा की हानियाँ

मनुष्य को ईश्वर से एक विशिष्ट वरदान मिला है, वह है-वाणी का अनमोल वरदान। इसी अनमोल वाणी के कारण व्यक्ति दूसरों को भी अपना बना लेता है। कहा भी गया है कि ‘कागा काको लेत है कोयल काको देय। मीठे वचन सुनाय के जग अपनो करि लेय। अर्थात् कौआ अपनी कर्कश वाणी के कारण हर जगह से भगाया जाता है जबकि कोयल अपनी वाणी से सबका मन हर लेती है। मीठी वाणी का प्रभाव अत्यंत व्यापक होता है। मीठी बोली बोलने वाले को सुख देती है तो यह सुनने वाले को प्रसन्न कर देती है। मीठी वाणी से बिगड़े काम भी बन जाते हैं। मृदुभाषी को सर्वत्र आदर मिलता है। कवि तुलसी ने कहा है-“तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चहुँओर, वशीकरण एक मंत्र है तजि दे वचन कठोर।” कटुभाषी व्यक्ति की स्थिति कौए जैसी होती है। उसे कहीं भी आदर नहीं मिलता है। अपनी कटुभाषा के कारण उसे हानि उठानी पड़ती है। कटुभाषियों के लिए ही रहीम ने कहा है-“खीरा सिर ते काटिए मलियत नमक मिलाय। रहिमन कडुवे मुखन को चहिए यही सजाय।”

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