Chapter 14 सुमित्रानंदन पंत | class11th | Ncert solution For Hindi Aroh

NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 14 – वे आँखें आरोह भाग-1 हिंदी (Ve Aankhen)

अभ्यास


पृष्ठ संख्या: 149

कविता के साथ

1. अंधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन|

(क) आमतौर पर हमें डर किन बातों से लगता है?

(ख) उन आँखों से किसकी ओर संकेत किया गया है?

(ग) कवि को उन आँखों से डर क्यों लगता है?

(घ) डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन क्यों किया है?

(ङ) यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता क्या तब भी वह कविता लिखता?

उत्तर

(क) आमतौर पर हमें जीवन में अचानक घटने वाली दुर्घटनाओं से डर लगता है जिसमें आर्थिक हानि, प्रियजन की मृत्यु, अपमान या मुसीबत जसी घटनाएँ शामिल होती हैं|

(ख) उन आँखों से किसानों की दयनीय स्थिति की ओर संकेत किया गया है?

(ग) कवि को उन आँखों से डर लगता है क्योंकि उनमें निराशा, शोषण, पीड़ा और रुदन के सिवाय कुछ नहीं है|

(घ) डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन किया है जिससे कि अन्य लोगों को किसानों की वास्तविक स्थिति का पता चल सके| किसानों की जिस पीड़ा का अनुभव कवि ने किया है उसे सभी महसूस कर सकें|

(ङ) यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता तब भी वह कविता अवश्य लिखता क्योंकि कविता लिखने के लिए भावों का होना जरूरी है| कवि के मन में उठते भाव जिस विषय की ओर उन्मुख होते, कविता भी उसी विषय पर आधारित होता|

2. कविता में किसान की पीड़ा के लिए किन्हें जिम्मेदार बताया गया है?

उत्तर

कविता में किसान की पीड़ा के लिए शासक वर्ग जिसमें महाजन, साहूकार तथा कोतवाल आदि आते हैं, को जिम्मेदार बताया गया है| महाजन ने अपने ऋण की वसूली के लिए किसान के घर, बैल, खेत यहाँ तक कि उसकी गाय को भी नीलाम करवा दिया| साहूकार के कारिंदों ने किसान के बेटे की निर्मम हत्या कर दी| पत्नी भी दवा के अभाव में चल बसी| इस प्रकार इन सभी के अत्याचार किसान की पीड़ा के लिए जिम्मेदार हैं|

3. “पिछले सुख की स्मृति आँखों में क्षण भर एक चमक है लाती” में किसान के किन पिछले सुखों की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर

इन पंक्तियों में किसान के पिछले उन सुखों की ओर संकेत किया गया है जिसे याद करके किसान की आँखों में चमक आ जाती है| किसान के छोटे परिवार में उसकी पत्नी, पुत्र, पुत्री, पुत्रवधू सभी थे जिसके साथ वह सुखी जीवन व्यतीत कर रहा था| उसके हरे-भरे लहलहाते खेत थे तथा दूध देने वाली गाय और खेती के लिए बैलों की जोड़ी थी| यहाँ इन्हीं सुखों की ओर संकेत किया गया है|

4. संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें|

(क) उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?

(ख) घर में विधवा रही पतोहू
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,

(ग) पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक है लाती
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती

उत्तर

(क) सन्दर्भ- प्रस्तुत पंक्तियाँ पंत जी द्वारा रचित ‘वे आँखें’ कविता से ली गई हैं| कवि ने स्वतंत्रता से पूर्व के भारतीय किसानों की दयनीय स्थिति का वर्णन किया है| किसान के पाय उजरी नाम की गाय थी जिसे महाजन ने अपना कर्ज वसूलने के लिए बिकवा दिया था|

आशय- किसान के पास उजरी नाम की गाय थी जिससे किसान को बहुत लगाव था| गाय भी उससे स्नेह रखती थी| अतः गाय उसके सिवाय अन्य किसी को अपने पास दूध दुहने नहीं आने देती थी| महाजन द्वारा ऋण वसूली के लिए गाय के बेचे जाने पर आज भी किसान की आँखों के सामने गाय का स्नेह उमड़ पड़ता है|

(ख) संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियाँ पंत जी द्वारा रचित ‘वे आँखें’ कविता से ली गई हैं| साहूकार के कारिंदों ने किसान के बेटे को मार डाला था| उसकी विधवा अर्थात् किसान की पुत्रवधू अब घर में अकेली रह गई थी और पति की ह्त्या का आरोप उसी पर मढ़ा जा रहा था|

आशय- किसान के बेटे की ह्त्या के बाद उसकी जवान विधवा पत्नी अकेली रह गई थी| जब वह इस घर में आई थी तो उसे गृहलक्ष्मी माना जाता था लेकिन पति की मृत्यु के बाद उसे पति घातिन अर्थात् पति की हत्यारिन कहा जाने लगा|

(ग) संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियाँ पंत जी द्वारा रचित ‘वे आँखें’ कविता से ली गई हैं| कवि ने उन सुखद स्मृतियों का वर्णन किया है जिन्हें याद करके किसान की आँखों में चमक आ जाती है| अपने अतीत को याद करके किसान क्षण भर के लिए सुख की प्राप्ति होती है लेकिन वर्तमान का दुख उसे व्याकुल कर जाता है|

आशय- कवि ने इन पंक्तियों में किसान को सुखद स्मृतियों को याद करते हुए दिखाया है| किसान अपने अतीत के सुख और आनंद भरे पलों को याद करके बहुत खुश होता है लेकिन यह ख़ुशी अधिक देर तक नहीं टिकती| जसे ही उसे वास्तविकता का अनुभव होता है उसका दर्द और भी अधिक बढ़ जाता है| उसकी नजरें शून्य की ओर गड़ जाती है अर्थात् उसे चारों तरफ निराशा ही नजर आती है|

5. “घर में विधवा रही पतोहू …../ खैर पैर की जूती, जोरू/एक न सही दूजी आती” इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए ‘वर्तमान समाज और स्त्री’ विषय पर एक लेख लिखें|

उत्तर

भारतीय समाज पुरूष प्रधान समाज है जहाँ स्त्रियों की स्थिति आर्थिक, सामाजिक और व्यावहारिक रूप से बहुत खराब है| गाँव में स्त्रियों की स्थिति और भी अधिक दयनीय है| विधवा होने के बाद औरतों को अभिशाप माना जाता है और पति की हत्या का कारण भी उन्हें ही माना जाता है| पत्नी को अपनी पैर की जूती समझने वाले पुरूष उनके मरने के बाद दूसरी शादी करने में अधिक समय नहीं लगाते| जबकि विधवा महिला का पुनर्विवाह समाज के परंपरा के विरूद्ध माना जाता है| इस प्रकार वर्तमान समाज में भी स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय है|

कविता के आस-पास

1. किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं| इस विषय पर परिचर्चा आयोजित करें तथा कारणों की पड़ताल करें|

उत्तर

यह सच है कि किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं| किसानों के बच्चों की भी खेती से दिलचस्पी कम हो रही है जिसका कारण कृषि कार्य में निहित अत्यधिक श्रम है| मानसून की अनियमितता, प्रकृति का प्रकोप जैसे- बाढ़, सूखा, कम आय, कृषि के आधुनिक संसाधनों का अभाव, सिंचाई तथा उर्वरकों का अभाव तथा जमींदारों द्वारा शोषण किसानों के कृषि से पलायन के कई कारणों में से हैं|

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Chapter 13 रामनरेश त्रिपाठी | class11th | Ncert solution For Hindi Aroh

पथिक Class 11 Hindi Aroh Poem NCERT Books Solutions

पथिक (अभ्यास प्रश्न)

प्रश्न 1: पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है?

पथिक का मन बादल पर बैठकर नीलगगन में घूमना चाहता है और समुद्र की लहरों पर बैठकर सागर का कोना-कोना देखना चाहता है।

प्रश्न 2: सूर्योदय वर्णन के लिए किस तरह के बिंबों का प्रयोग हुआ है?

सूर्योदय वर्णन के लिए कवि ने निम्नलिखित बिंबों का प्रयोग किया है-

(क) समुद्र तल से उगते हुए सूर्य का अधूरा बिंब अर्थात् गोला अपनी प्रात:कालीन लाल आभा के कारण बहुत ही मनोहर दिखता है।

(ख) वह सूर्योदय के तट पर दिखने वाले आधे सूर्य को कमला के स्वर्ण-मंदिर का कैंगूरा बताता है।

(ग) दूसरे बिंब में वह इसे लक्ष्मी की सवारी के लिए समुद्र द्वारा बनाई स्वर्ण-सड़क बताता है।

प्रश्न 3: आशय स्पष्ट करें-

(क) सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है। तट पर खड़ा गगन-गगा के मधुर गीत गाता है।

इन पंक्तियों में कवि रात्रि के सौंदर्य का वर्णन करता है। वह बताता है कि संसार का स्वामी मुस्कराते हुए धीमी गति से आता है तथा तट पर खड़ा होकर आकाश-गंगा के मधुर गीत गाता है।

(ख) कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल हैं यह प्रेम कहानी। जी में हैं अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।

कवि कहता है कि प्रकृति के सौंदर्य की प्रेम-कहानी को लहर, तट, तिनके, पेड़, पर्वत, आकाश, और किरण पर लिखा हुआ अनुभव किया जा सकता है। कवि की इच्छा है कि वह मन को हरने वाली उज्ज्वल प्रेम कहानी का अक्षर बने और संसार की वाणी बने। वह प्रकृति का अभिन्न हिस्सा बनना चाहता है।

प्रश्न 4: कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। ऐसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखें।

कवि ने अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया है जो निम्नलिखित हैं-

(क) प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।

रवि के सम्मुख थिरक रही है। नभ में वारिद-माला।

भाव- यहाँ कवि ने सूर्य के सामने बादलों को रंग-बिरंगी वेशभूषा में थिरकती नर्तकी रूप में दर्शाया है। वे सूर्य को प्रसन्न करने के लिए नए-नए रूप बनाते हैं।

(ख) रत्नाकर गर्जन करता है-

भाव-समुद्र के गर्जन की बात कही है। वह गर्जना ऐसी प्रतीत होती है मानो कोई वीरं अपनी वीरता का हुकार भर रहा हो।

(ग) लाने को निज पुण्य भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।

रत्नाकर ने निमित कर दी स्वण-सड़क अति प्यारी।

भाव- कवि को सूर्य की किरणों की लालिमा समुद्र पर सोने की सड़क के समान दिखाई देती है, जिसे समुद्र ने लक्ष्मी जी के स्वागत के लिए तैयार किया है। यह आतिथ्य भाव को दर्शाता है।

(घ) जब गभीर तम अद्ध-निशा में जग को ढक लता हैं।

अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है।

भाव- इस अंश में अंधकार द्वारा सारे संसार को ढकने तथा आकाश में तारे छिटकाने का वर्णन है। इसमें प्रकृति को चित्रकार के रूप में दर्शाया गया है।

(ड) सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।

तट पर खड़ा गगन-गगा के मधुर गीत गाता है।

भाव- इस अंश में ईश्वर को मानवीय रूप में दर्शाया है। वह मुस्कराते हुए आकाश-गंगा के गीत गाता है।

(च) उससे ही विमुग्ध हो नभ में चद्र विहस देता है।

वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है।

फूल साँस लेकर सुख की सनद महक उठते हैं—

भाव- इसमें चंद्रमा को प्रकृति की प्रेम-लीला पर हँसते हुए दिखाया गया है। मधुर संगीत व अद्भुत सौंदर्य पर मुग्ध होकर चंद्रमा भी मानव की तरह हँसने लगता है। वृक्ष भी मानव की तरह स्वयं को सजाते हैं तथा प्रसन्नता प्रकट करते हैं। फूल द्वारा सुख की साँस लेने की प्रक्रिया मानव की तरह मिलती है।

पथिक (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

प्रश्न 1:

‘पथिक” कविता का प्रतिपादय लिखें।

उत्तर-

‘पथिक कविता में दुनिया के दुखों से विरक्त काव्य नायक पथिक की प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने की इच्छा का वर्णन किया। है। यहाँ वह किसी साधु द्वारा संदेश ग्रहण करके देशसेवा का व्रत लेता है। राजा उसे मृत्युदंड देता है, परंतु उसकी कीर्ति समाज में बनी रहती सागर के किनारे खड़ा पथिक, उसके सौंदर्य पर मुग्ध है। प्रकृति के इस अद्भुत सौंदर्य को वह मधुर मनोहर उज्ज्वल प्रेम कहानी की तरह पाना चाहता है। प्रकृति के प्रति पथिक का यह प्रेम उसे अपनी पत्नी के प्रेम से दूर ले जाता है। इस रचना में प्रेम, भाषा व कल्पना का अद्भुत संयोग मिलता है।

प्रश्न 2:

किन-किन पर मधुर प्रेम-कहानी लिखी प्रतीत होती है?

उत्तर-

समुद्र के तटों, पर्वतों, पेड़ों, तिनकों, किरणों, लहरों आदि पर यह मधुर प्रेम कहानी लिखी प्रतीत होती है।

प्रश्न 3:

‘अहा! प्रेम का राज परम सुंदर, अतिशय सुंदर है।’-भाव स्पष्ट करें।

उत्तर-

कवि प्रकृति के सुंदर रूप पर मोहित है। उसके सौंदर्य से अभिभूत होकर उसे सबसे अधिक सुंदर राज्य कहकर अपने आनंद को अभिव्यक्त कर रहा है।

प्रश्न 4:

सूर्योदय के समय समुद्र के दृश्य का कवि ने किस प्रकार वर्णन किया है?

उत्तर-

पथिक के माध्यम से सूर्योदय का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि इस समय समुद्र की सतह से सूर्य का बिंब अधूरा निकल रहा है अर्थात् आधा सूर्य जल के अंदर है तथा आधा बाहर। ऐसा लगता है मानो यह लक्ष्मी देवी के स्वर्ण-मंदिर का चमकता हुआ केंगूरा हो। पथिक को लगता है कि समुद्र ने अपनी पुण्य भूमि पर लक्ष्मी की सवारी लाने के लिए अति प्यारी सोने की सड़क बना दी हो। सुबह सूर्य का प्रकाश समुद्र तल पर सुनहरी सड़क का दृश्य प्रस्तुत करता है।

पथिक (पठित पद्यांश)

1. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला

रवि के सम्मुख धिरक रही हैं नभ में वारिद-माला।

नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है।

घन पर बैठ बीच में बिचरूं यहीं चाहता मन है।

रत्नाकर गजन करता हैं मलयानिल बहता है।

हरदम यह हौसला हृदय में प्रिसे भरा रहता हैं।

इस विशात्न विस्तृत महिमामय रत्नाकर के घर के

कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरू जी भर के।

प्रश्न

1. कवि किस दृश्य पर मुग्ध है?

2. बादलों को देखकर कवि का मन क्या करता है?

3. समुद्र के बारे में कवि क्या कहता है?

4. ‘कोने-कोने जी भर के। पंक्ति का आशय बताइए।

उत्तर-

1, कवि सूरज की धूप व बादलों की लुका-छिपी पर मुग्ध है। आकाश भी नीला है तथा मनोहर समुद्र भी नीला और विस्तृत है।

2. बादलों को देखकर कवि का मन करता है कि वह बादल पर बैठकर नीले आकाश और समुद्र के मध्य विचरण करे।

3. समुद्र के बारे में पथिक के माध्यम से कवि बताता है कि यह रत्नों से भरा हुआ है। यहाँ सुगंधित हवा बह रही है तथा समुद्र गर्जना कर रहा है।

4. इसका अर्थ है कि कवि लहरों पर बैठकर महान तथा दूर-दूर तक फैले सागर का कोना-कोना घूमकर उसके अनुपम सौंदर्य को देखना चाहता है।

2. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

निकल रहा हैं जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा

कमला के कचन मदिर का मानों का कैमूर।

लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी

रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण सडक त प्यारी।

निर्भय दृढ़ गभीर भाव से गरज रहा सागर है।

नहरों पर लहरों का आना सुदर अति सुदर हैं।

कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी

अनुभव करो हृदय से ह अनुराग-भरी कल्याणी ।।

प्रश्न

1. सूर्योदय देखकर कवि को क्या लगता है।

2. सागर के विषय में पथिक क्या बताता है?

3, पधिक अपनी प्रिया को कैसे संबोधित करता है तथा उसे क्या बताना चाहता है?

4. कमला का कचन मंदिर किसे कहा गया हैं।

उत्तर

1. सूर्योदय का दृश्य देखकर कवि को लगता है कि समुद्र तल पर सूर्य का बिंब अधूरा निकल रहा है अर्थात् आधा सूर्य जल के अंदर है। तथा आधा बाहर, मानो यह लक्ष्मी देवी के स्वर्ण मंदिर का चमकता हुआ कैंगूरा हो।

2. सागर के विषय में पधिक बताता है कि वह निर्भय होकर मजबूती के साथ गंभीर भाव से गरज रहा है, उस पर लहरों का भाना-जाना बहुत सुंदर लगता है।

3. पथिक ने अपनी प्रिया को ‘अनुराग भरी कल्याणी’ कहकर संबोधित किया है। वह उसे बताना चाहता है कि प्रकृति-सौंदर्य असीम है। उसका कोई मुकाबला नहीं है।

4. कमला का कंचन मंदिर उदय होते सूर्य का छोटा अंश है। यह कवि की नूतन कल्पना है। लक्ष्मी का निवास सागर ही है जहां से पूरा निकल रहा है।

3. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

जब गधीर तम अद्ध-निशा में जग को ढक लता है।

अतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है।

सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता हैं।

तट पर खडा गगन-गगा के मधुर गीत गाता है।

उसमें ही विमुग्ध हो नभ में घट्ट विहस देता है।

वृक्ष विविध पक्षों पुष्यों से तन को सज़ लेता है।

पक्षी हर्ष संभाल न सकतें मुग्ध चहक उठते हैं।

फूल साँस लेकर सुख को सनद महक उठते हैं

प्रश्न

1, आर्द्धरात्रि का सौदर्य बताइए।

2. संसार का स्वामी क्या कार्य करता है?

3. चंद्रमा के हैंसने का क्या कारण है?”

4. वृक्षों व पक्षियों पर क्या प्रभाव पड़ता है।

उत्तर-

1, अद्धरात्रि में संसार पर गहरा अंधकार छा जाता है। ऐसे समय में आकाश की छत पर तारे टिमटिमाने लगते हैं। आकाश गंगा को निहारने के लिए संसार का स्वामी गुनगुनाता है।

2.संसार का स्वामी मुसकराते हुए धीमी गति से आता है तथा तट पर खड़ा होकर आकाश गंगा के लिए मधुर गीत गाता है।

3, संसार का स्वामी आकाशगंगा के लिए गीत गाता है। उस प्रक्रिया को देखकर चंद्रमा हँसने लगता है।

4. रात में आकाश गंगा के संदर्य, चंद्रमा के हँसने जगत स्वामी के गीतों से वृक्ष व पक्षी भी प्रसन्न हो जाते हैं। वृक्ष अपने शरीर को पत्तों व फूलों से राजा लेता है तथा पक्षी चहकने लगते हैं।

4. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

वन उपवन गिरि सानु कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।

मेरा आत्म-प्रलय होता हैं नयन नीर झड़ते हैं।

पढ़ो लहर तट तृण तरु गिरि नभ किरन जलद पर प्यारी।

लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहरी।।

कैसी मधुर मनोहर उज्व ल हैं यह प्रेम-कहानी।

जी में हैं अक्षर बन इसके बनें विश्व की बानी।

स्थिर पवित्र आनद प्रवाहित सदा शांति सुखकर हैं।

अहाः प्रेम का राज्य परम सुदर अतिशय सुंदर हैं।।

प्रश्न

1. कवि कन्द भाव-विभोर हो जाता है?

2. कवि अपनी प्रेयसी से क्या अपेक्षा रखता है।

३. प्रकृति के लिए कवि ने किन किन विशेषणों का प्रयोग किया है।

उत्तर-

1. वन, उपवन, पर्वत आदि सभी पर बरसते बादलों को देखकर कवि भाव-विभोर हो जाता है। फलस्वरूप उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं।

2. कवि अपनी प्रेयसी से अपेक्षा रखता है कि वह लहर तट, तिनका, पेड, पर्वत, भाकाश किरण व बादलों पर लिखी हुई प्यारी कहानी को पढ़े और उनसे कुछ सीखे।

3, प्रकृति के लिए कवि ने ‘स्थिर पवित्र आनंद-प्रवाहित तथा ‘सदा शांति सुखकर विशेषणों का प्रयोग किया है।

पथिक

काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न

1

प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।

रवि के सम्मुख थिरक रही हैं नभ में वारिद माला।

नीच नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन हैं।

घन पर बैठ बीच में बिच यही चाहता मन हैं।

प्रश्न

क) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।

ख) काव्यांश का शिल्प-सौदर्य बताइए।

उत्तर-

क) इस काव्यांश में कवि ने पथिक के माध्यम से बादलों के क्षण-क्षण में रूप बदलकर नृत्य करने का वर्णन करता है। प्रकृति का सौंदर्य अप्रतिम है।

ख)

• प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।

• संगीतात्मकता है। अनुप्रास अलंकार है नीचे नील, नील गगन।

• खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है। मुक्त छद है।

• तत्सम शब्दावली की प्रधानता है।

• कवि की कल्पना निराली है।

• दृश्य बिंब है।

2

रत्नाकर गजन करता हैं मलयानिल बहता हैं।

हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये भरा रहता है।

इस विशाल विस्तृत महिमामय रत्नाकर के

घर कैकोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरू जी भर के।

प्रश्न

क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।

ख) काव्याश का शिल्प-सौदर्य बताइए।

उत्तर-

क) कवि ने पथिक के माध्यम से समुद्र के गर्जन, सुगंधित हवा तथा अपनी इच्छा को व्यक्त किया है। सूर्योदय का सुंदर वर्णन है। पथिक सागर का कोना-कोना देखना चाहता है।

ख)

• संस्कृतनिष्ठ शब्दावली है, जैसे- रत्नाकर, मलयानिल, विस्तृत।

• ‘कोन-कोने में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

• जी भरकर’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।

• रत्नाकर’ का मानवीकरण किया गया है।

• विशेषणों का सुंदर प्रयोग है, जैसे विशाल, विस्तृत, महिमामय।

• संबोधन शैली से सौंदर्य में वृद्धि हुई है।

• अनुप्रास अलंकार है-विशाल विस्तृत।

• मुक्त छंद है।

3

निकल रहा हैं जलनिधि-तल पर दिनकर बिब अधूरा।

कमला के कचन-मदिर का मानो कात कुँगुरा।

लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।

रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण सडक अति प्यारी।

प्रश्न

क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

ख) शिल्प सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-

क) पथिक के माध्यम से कवि सूर्योदय का वर्णन करने में अद्भुत कल्पना करता है। वह सूर्योदय के समय समुद्र पर उत्पन्न सौंदर्य से अभिभूत है।

ख)

• सुनहरी लहरों में लक्ष्मी के मंदिर की कल्पना तथा चमकते सूरज में कैंगूरे की कल्पना रमणीय है।

• स्वर्णिम सड़क का निर्माण भी अनूठी कल्पना है।

• रत्नाकर का मानवीकरण किया गया है। अतः मानवीकरण अलंकार है।

• अनुप्रास अलंकार की छटा है कमला के कंचन, कांत कैंगूरा।

• कमला के …..’ कैंगूरा’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।

• तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।

• असवारी’ शब्द में परिवर्तन कर दिया गया है।

• दृश्य बिंब है।

4

वन, उपवन, गिरि सानु कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।

मेरा आत्म-प्रलय होता है नयन नीर झड़ते हैं।

पढ़ो लहर तट तृण, तरु गिरि नभ, किरन, जलद पर प्यारी।

लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहारी।

प्रश्न

क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

ख) शिल्प-सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-

क) इस काव्यांश में कवि ने प्रकृति के प्रेम को व्यक्त किया है। सागर किनारे खड़ा होकर पथिक सूर्योदय के सौंदर्य पर मुग्ध है।

ख)

• प्रकृति को मानवीय क्रियाकलाप करते हुए दिखाया गया है। अतः मानवीकरण अलंकार है।

• संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।

• आत्म-प्रलय’ कवि की विभोरता का परिचायक है।

• छोटे छोटे शब्द अर्थ को स्पष्ट करते हैं।

• अनुप्रास अलंकार की छटा है-नयन नीर, तट, तृण, तरु, पर प्यारी, विश्व-विमोहनहारी।

• संगीतात्मकता है।

• संबोधन शैली भी है।

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Chapter 12 मीरा | class11th | Ncert solution For Hindi Aroh

NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 12 – मीरा आरोह भाग-1 हिंदी (Mira)

अभ्यास

पृष्ठ संख्या: 138

पद के साथ

1. मीरा कृष्ण की उपासना किस रूप में करती है? वह रूप कैसा है?

उत्तर

मीरा कृष्ण की उपासना समर्पित पत्नी के रूप में करती है| वह स्पष्ट रूप से कहती हैं कि कृष्ण के सिवा इस दुनिया में उनका कोई अपना नहीं है| मीरा का यह प्रेम अलौकिक है जिसकी कोई परिभाषा नहीं है| कृष्ण के प्रति उनका प्रेम निश्छल, समर्पित और आस्था से भरा है| वे स्वयं को कृष्ण की दासी मानती हैं|

2. भाव व शिल्प सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए|

(क) अँसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम बेल बोयी
अब तो बेल फ़ैल गई, आणंद-फल होयी

उत्तर

प्रस्तुत पंक्तियों में मीरा की कृष्ण के प्रति भाव-भक्ति का वर्णन किया गया है| उसने अपने आँसुओं से कृष्ण के प्रेम रूपी बेल को सींच-सींच कर बड़ा किया है| उनके प्रेम रुपी बेल में आनंद रुपी फल लग गए हैं अर्थात् कृष्ण-प्रेम में वह इतनी विलीन हो गई हैं कि अब उन्हें अलौकिक आनंद प्राप्त हो रहा है|

शिल्प सौन्दर्य

• भाषा में सरसता व प्रवाहमयता विद्यमान है|
• ‘आणंद फल’ प्रेम-बेलि में रूपक अलंकार है|
• ‘सींचि-सींचि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है|
• अलौकिक आनंद की अनुभूति का वर्णन है|
• बेलि बोयी, बेली फैली में अनुप्रास की छटा है|
• राजस्थानी मिश्रित ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है|

(ख) दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोयी
दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी

उत्तर

प्रस्तुत पंक्तियों में मीरा के कृष्ण-प्रेम की तुलना मक्खन से की गई है| जिस प्रकार दही को मथकर मक्खन निकाला जाता है और शेष बचे छाछ को छोड़ दिया जाता है| उसी प्रकार मीरा ने भी संसार का चिंतन-मनन करके कृष्ण-प्रेम को प्राप्त किया है और व्यर्थ के सांसारिक मोह को त्याग दिया है|

शिल्प सौंदर्य

• छंदबद्धता व लयात्मकता पूर्णतः विद्यमान है|
• उदाहरण अलंकार का प्रयोग है|
• प्रतीकात्मक शैली का भी निर्वाह बखूबी हुआ है|
• ‘दही’ जीवन का प्रतीक है, ‘घृत’ भक्ति का, छोयी (छाछ) सारहीन संसार का प्रतीक है|

3. लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं?

उत्तर

मीरा कृष्ण के प्रेम में इतनी मग्न हो चुकी हैं कि उन्हें दुनिया की सुध नहीं है| उन्हें अपने कुल की मर्यादा की भी कोई चिंता नहीं है| वह स्वयं को कृष्ण की दासी मानती हैं और पैरों में घुँघरू बाँधकर उनके प्रेम में नाचती रहती हैं| लोग मीरा के इस कृष्ण-भक्ति को देखकर ही उसे बावरी कहते हैं|

4. विस का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरा हाँसी- इसमें क्या व्यंग्य छिपा है?

उत्तर

इस पंक्ति में मीरा ने अपने परिवार के लोगों पर व्यंग्य किया है जो उनके कृष्ण-प्रेम को पहचान नहीं पाए| वे मीरा की कृष्ण-भक्ति को कलंक समझते थे| मीरा का भजन नाचना-गाना, साधुओं की संगत में रहना कुल की मर्यादा के विरूद्ध था| इस कारण राणा जी ने भी उन्हें मारने के लिए विष का प्याला पीने के लिए बाध्य किया, जिसे मीरा ने सहर्ष स्वीकार किया| वह हँसते-हँसते जहर पी गईं और अमर हो गईं| कृष्ण की भक्ति ने उन्हें बचा लिया|

5. मीरा जगत को देखकर रोती क्यों हैं?

उत्तर

मीरा संसार के लोगों की अविवेकता और व्यर्थ के सांसारिक मोह-माया में पड़कर भ्रमित होने से दुखी हैं| उन्हें भगवद् प्रेम की समझ नहीं है इसलिए झूठे आडंबरों तथा विषय-वासनाओं में लिप्त हैं| मीरा ऐसे संसार को देखकर रोटी हैं अर्थात् दुखी हैं|

पद के आस-पास

1. कल्पना करें, प्रेम प्राप्ति के लिए मीरा को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा?

उत्तर

मीरा राजघराने से थीं, और साथ में कृष्ण-भक्त भी थीं| उन्होंने कृष्ण-प्रेम के लिए राजसी वैभव का त्याग कर दिया होगा| इसके साथ ही परिवारवालों के अत्याचार तथा समाज के तानों को भी सहना पड़ा होगा|

2. लोक-लाज खोने का अभिप्राय क्या है?

उत्तर

लोक लाज खोने का अर्थ है अपने परिवार या कुल की मर्यादा त्यागकर घर छोड़ देना| साधुओं की संगति में रहना तथा समाज के बन्धनों को तोड़कर जीवन व्यतीत करना|

3. मीरा ने ‘सहज मिले अविनासी’ क्यों कहा है?

उत्तर

यहाँ अविनासी ईश्वर के लिए प्रयुक्त हुआ है क्योंकि वे नश्वर हैं| मीरा के अनुसार प्रभु की भक्ति अगर सच्चे मन से किया जाए तो वे सहजता से प्राप्त हो सकते हैं| मीरा ने कृष्ण भक्ति में डूब कर अपने त्याग से कृष्ण-प्रेम को प्राप्त किया है|

4. ‘लोग कहैं मीरा भइ बावरी, न्यात कहैं कुल-नासी’ मीरा के बारे में लोग और न्यात (कुटुंब) की ऐसी धारणाएँ क्यों हैं?

उत्तर

मीरा भगवान कृष्ण की भक्ति में इतनी लीन हो चुकी थीं कि उन्हें अपनी कुल की मर्यादा का भी ध्यान नहीं रहा| वह साधुओं की संगति में रहती थीं और भजन-कीर्तन करती थीं| मीरा के इस कृष्ण-प्रेम को लोगों ने पागलपन का नाम दिया| उनके कृष्ण के प्रति दीवानगी को देखकर रिश्तेदारों ने उन्हें कुल विनाशिनी कहा है| उनके अनुसार मीरा ने कृष्ण से प्रेम करके कुल की छवि मिट्टी में मिला दी|

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Chapter 11 कबीर | class11th | Ncert solution For Hindi Aroh

कबीर के पद Class 11 Hindi Aroh Poem NCERT Books Solutions

कबीर के पद (अभ्यास प्रश्न)

प्रश्न 1. कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं?

कबीर का कहना है कि ईश्वर एक ही है। उसी का स्वरूप सभी जीवो में विद्यमान है। इसके समर्थन में कबीर दास जी ने कहा है कि एक ही पवन बहती है और सबका कल्याण करती है। एक ही प्रकार का जल सभी की प्यास बुझाता है। एक मिट्टी से ही अनेक बर्तनों का निर्माण होता है। इसी प्रकार सभी प्राणियों में ईश्वर की सत्ता एक ही है। ईश्वर कण-कण में समाया हुआ है।

प्रश्न 2. मानव शरीर का निर्माण किन पाँच तत्वों से हुआ है?

पृथ्वी, वायु, जल, आकाश, अग्नि पाँच तत्व हैं जिनसे मानव शरीर का निर्माण हुआ है। मृत्यु के पश्चात मानव शरीर के सभी तत्व इन मूल तत्व में विलीन हो जाते हैं।

प्रश्न 3.

जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै, अगिनि न काटै कोई।

सब घटि अंतरि तूँही व्यापक धरै सरुपै सोई।।

इसके आधार पर बताइए कि कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?

ईश्वर के स्वरूप का वर्णन करते हुए कबीरदास जी कहते हैं कि बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु उसमें विद्यमान आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार ईश्वर रूपी अग्नि मानव में निवास करती है इसका अर्थ यह है कि ईश्वर सर्वव्यापक है। सभी के अंदर विराजमान है। ईश्वर सभी जीवो के रूप में अपना रूप धारण किए हुए हैं।

प्रश्न 4. कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?

कबीरदास इस माया- युक्त संसार और भ्रम के भेद को जान चुके हैं। वे सभी जीवो में उसी परमात्मा तत्व को देखते हैं और बाह्य आडम्बर में विश्वास नहीं करते और दीवानों की तरह ईश्वर को कण-कण में देखते हैं।

प्रश्न 5. कबीर ने ऐसा क्यों कहा कि संसार बौरा गया है?

कबीर का कहना है कि संसार के लोग सच्ची बात सुनते ही मारने को दौड़ते हैं और झूठी बातों पर विश्वास कर लेते हैं। वे ईश्वर के स्वरूप को स्वीकार नहीं करते एवं पेड़ो तथा पत्थरों में ईश्वर को खोजते फिरते हैं। इसलिए यह संसार बौरा गया है।

प्रश्न 6. कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों की किन कमियों की ओर संकेत किया है?

कबीर का कहना है कि धर्म और नियम का पालन करने वाले लोग अपने भीतर विद्यमान आत्मा तक को नहीं पहचानते। यही आत्मा ही तो परमात्मा है लेकिन यह लोग परमात्मा को पाने के लिए पेड़ों एवं पत्थरों की पूजा करते हैं। इन लोगों को इस सच्चाई का ज्ञान नहीं है कि ईश्वर हमारे अंदर विद्यमान है, उसे बाहर खोजने की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 7. अज्ञानी गुरु की शरण में जाने पर शिष्यों की क्या गति होती है?

गुरु के शिष्य को सत्य ज्ञान देता है और ईश्वर से साक्षात करवाता है लेकिन ज्ञानी गुरु को सच्चा ज्ञान नहीं होता। वह स्वयं माया और अहंकार का शिकार होता है। ज्ञानी गुरु की शरण में जाने वाला शिष्य ज्ञान के रास्ते पर चलता है। ऐसा गुरु और ऐसा शिष्य दोनों ही माया-ग्रस्त होकर डूब जाते हैं। ऐसे शिष्यों को बाद में पछताना पड़ता है।

प्रश्न 8. बाहय आडंबरों की अपेक्षा स्वयं (आत्म) को पहचानने की बात किन पंक्तियों में कही गई है? उन्हें अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर-

बाहय आडंबरों की अपेक्षा स्वयं को पहचानने की बात निम्नलिखित पंक्तियों में कही गई है-

टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।

साखी सब्दहि गावत भूले, आत्म खबरि न जाना।

इसका अर्थ यह है कि हिंदू-मुसलमान-दोनों धर्म के बाहरी स्वरूप में उलझे रहते हैं। कोई टोपी पहनता है तो कोई माला पहनता है। माथे पर तिलक व शरीर पर छापे लगाकर अहकार दिखाते हैं। वे साखी-सबद आदि गाकर अपने आत्मस्वरूप को भूल जाते हैं।

कबीर के पद (हम तो एक एक करै जानां) (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

प्रश्न 1:

‘हम तो एक एक करि जामा’ – पद का प्रतिपादय स्पष्ट करें।

उत्तर-

इस पद में कबीर ने परमात्मा को सृष्टि के कण कण में देखा है, ज्योति रूप में स्वीकारा है तथा उसकी व्याप्ति चराचर संसार में दिखाई है। इसी व्याप्ति को अद्वैत सत्ता के रूप में देखते हुए विभिन्न उदाहरणों के द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति दी है। कबीरदास ने आत्मा और परमात्मा को एक रूप में ही देखा है। संसार के लोग अज्ञानवश इन्हें अलग-अलग मानते हैं। कवि पानी, पवन, प्रकाश आदि के उदाहरण देकर उन्हें एक जैसा बताता है। बाढ़ी लकड़ी को काटता है, परंतु आग को कोई नहीं काट सकता। परमात्मा सभी के हृदय में विद्यमान है। माया के कारण इसमें अंतर दिखाई देता है।

प्रश्न 2:

‘सतों देखो जग बौराना-पद का प्रतिपादय स्पष्ट करें।

उत्तर-

इस पद में कबीर ने बाह्य आडंबरों पर चोट की है। वे कहते हैं कि अधिकतर लोग अपने भीतर की ताकत को न पहचानकर अनजाने में अवास्तविक संसार से रिश्ता बना बैठते हैं और वास्तविक संसार से बेखबर रहते हैं। कबीरदास कहते हैं कि यह संसार पागल हो गया है। यहाँ सच कहने वाले का विरोध तथा झूठ पर विश्वास किया जाता है। हिंदू और मुसलमान राम और रहीम के नाम पर लड़ रहे हैं, जबकि दोनों ही ईश्वर का मर्म नहीं जानते। दोनों बाहय आडंबरों में उलझे हुए हैं। नियम, धर्म, टोपी, माला, छाप, तिलक, पीर, औलिया, पत्थर पूजने वाले और कुरान की व्याख्या करने वाले खोखले गुरु शिष्यों को आडंबर बताकर उनकी निंदा की गई है।

प्रश्न 3:

ईश्वर के स्वरूप के विषय में कबीर क्या कहते हैं?

उत्तर-

कबीरदास कहते हैं कि ईश्वर एक है। और उसका कोई निश्चित रूप या आकार नहीं है। वह सर्वव्यापी है। अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने कई तर्क दिए हैं, जैसे-संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकार का प्रकाश सबके अंदर समाया हुआ है। यहाँ तक कि एक ही प्रकार की मिट्टी से कुम्हार अलग-अलग प्रकार के बर्तन बनाता है। आगे कहते है कि बढ़ई लकड़ी को काटकर अलग कर सकता है परंतु आग को नहीं। यानी मूलभूत तत्वों (धरती, आसमान, जल, आग, और हवा को छोड़कर शेष सबको काट कर आप अलग कर सकते हो। इसी तरह से शरीर नष्ट हो जाता है किंतु आत्मा सदैव बनी रहती। आत्मा परमात्मा का ही अंश है जो अलग- अलग रूपों में सबमें समाया हुआ है। अतः ईश्वर एक है उसके रूप अनेक हो सकते हैं।

प्रश्न 4:

परमात्मा को पाने के लिए कबीर किन दोषों से दूर रहने की सलाह देते हैं?

उत्तर-

परमात्मा को पाने के लिए कबीर मोह, माया, अज्ञान, घमंड आदि से दूर रहने की सलाह देते हैं। वे जीवन यापन के भय से मुक्ति की चेतावनी भी देते हैं। क्योंकि मोह, माया, अज्ञान, घमंड तथा भय आदि परमात्मा को पाने में बाधक हैं। कबीर दास के अनुसार असली साधक में इन दुर्गुणों का समावेश नहीं होता है।

प्रश्न : 5

कबीर पाखंडी गुरुओं के संबंध में क्या टिप्पणी करते हैं?

उत्तर-

कबीर कहते हैं कि पाखंडी गुरुओं को कोई ज्ञान नहीं होता। वे घूम-घूमकर मंत्र देकर शिष्य बनाते हैं। ये शिष्यों से गलत कार्य करवाते हैं। यानी ये मानव समाज को अलग-अलग धार्मिक चौपालों के कट्टर प्रतिनिधि बनाकर समाज में धार्मिक भेद-भाव का वातावरण बनाते हैं। फलस्वरूप समाज में कटुता का भाव पैदा होता है। अतः ऐसे गुरुओं से हमें बचना चाहिए। नहीं तो अंततः पछताना पड़ेगा।

प्रश्न 6:

कबीर की दृष्टि में किन लोगों को आत्मबोध नहीं होता?

उत्तर-

कबीर का मानना है कि वे लोग आत्मबोध नहीं पा सकते जो बाहय आडंबरों में उलझे रहते हैं। वे सत्य पर विश्वास न करके झूठ को सही मानते हैं। धर्म के ठेकेदार लोगों को पाखंड के द्वारा ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताते हैं, जबकि वे सभी गलत हैं। उनके तरीकों से अह भाव का उदय होता है, जबकि ईश्वर की प्राप्ति सहज भाव से प्राप्त की जा सकती है।

कबीर के पद (पठित पद्यांश)

1. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।

दोइ कहें तिनहीं को दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।

जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।।

सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।

एकै पवन एक ही पानी एकै जोति समांनां।

एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै र्कोहरा सांनां।

माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांना

निरभै भया कळू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां।।

प्रश्न

1. कबीरदास परमात्मा के विषय में क्या कहते हैं?

2. भ्रमित लोगों पर कवि की क्या टिप्पणी है।

3. संसार नश्वर है, परंतु आत्मा अमर है-स्पष्ट कीजिए।

4. कबीर ने किन उदाहरण दवारा सिदध किया है कि जग में एक सत्ता है?

उत्तर-

1. कबीरदास कहते हैं कि परमात्मा एक है। वह हर प्राणी के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी स्वरूप धारण किया हो।

2. जो लोग आत्मा व परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं, वे भ्रमित हैं। वे ईश्वर को पहचान नहीं पाए। उन्हें नरक की प्राप्ति होती है।

3. कबीर का कहना है कि जिस प्रकार लकड़ी को काटा जा सकता है, परंतु उसके अंदर की अग्नि को नहीं काटा जा सकता, उसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु आत्मा अमर है। उसे समाप्त नहीं किया जा सकता।

4. कबीर ने जना की सत्ता एक होने यानी ईश्वर एक है के समर्थन में कई उदाहरण दिए हैं। वे कहते हैं कि संसार में एक जैसी पवन, एक जैसा पानी बहता है। हर प्राणी में एक ही ज्योति समाई हुई है। सभी बर्तन एक ही मिट्टी से बनाए जाते हैं, भले ही उनका स्वरूप अलग-अलग होता है।

2. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

सतों दखत जग बौराना।

साँच कहीं तो मारन धार्वे, झूठे जग पतियाना।

नमी देखा धरमी देखा, प्राप्त करें असनाना।

आतम मारि पखानहि पूजें, उनमें कछु नहि ज्ञाना।

बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितब कुराना।

कै मुरीद तदबीर बतार्वे उनमें उहैं जो ज्ञाना।।

आसन मारि डिभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।

पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।

टोपी पहिरे माला पहिरे छाप तिलक अनुमाना।

साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।

हिन्दू कहैं मोहि राम पियारा, तुर्क कहैं रहिमाना।

आपस में दोउ लरि लरि मूए, मम न काहू जाना।

घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।

गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े अत काल पछिताना।

कहैं कबीर सुनो हो सती, ई सब भम भुलाना।।

केतिक कहीं कहा नहि माने, सहजै सहज समाना।

प्रश्न

1. कबीर किसे संबोधित करते हैं तथा क्यों?

2. कवि संसार को पागल क्यों कहता है?

3. कवि ने हिंदुओं के किन आडंबरों पर चोट की है तथा मुसलमानों के किन पाखंडों पर व्यंग्य किया है?

4. अज्ञानी गुरुओं व शिष्यों की क्या गति होगी?

उत्तर-

1. कबीर दास जी संसार के विवेकी व सज्जन लोगों को संबोधित कर रहे हैं, क्योंकि वे संतों को धार्मिक पाखंडों के बारे में बताकर भक्ति के सहज मार्ग को बताना चाहते हैं।

2. कवि संसार को पागल कहता है। इसका कारण है कि संसार सच्ची बात कहने वाले को मारने के लिए दौड़ता है तथा झूठी बात कहने वाले पर विश्वास कर लेता है।

3. कबीर ने हिंदुओं के नित्य स्नान, धार्मिक अनुष्ठान, पीपल-पत्थर की पूजा, तिलक, छापे, तीर्थयात्रा आदि आडंबरों पर चोट की है। इसी तरह उन्होंने मुसलमानों के ईश्वर-प्राप्ति के उपाय, टोपी पहनना, पीर की पूजा, शब्द गाना आदि पाखंडों पर व्यंग्य किया है।

4. अज्ञानी गुरुओं व उनके शिष्यों को अंतकाल में पछताना पड़ता है, क्योंकि ज्ञान के अभाव में वे गलत मार्ग पर चलते हैं तथा अपनाविनाश कर लेते हैं।

कबीर के पद

काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न

पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स:

● शांत रस व माधुर्य गुण है।

● भाषा सधुक्कड़ी है।

● आत्मा में परमात्मा अर्थात सहज साधना पर बल दिया गया है।

● यहाँ कवि ने ईश्वर की सर्वव्यापकता पर प्रकाश डाला है।

1

हम तो एक एक करि जाना।

दोइ कहैं तिनहीं कों दोजग जिन नाहिन पहिचाना।

एकै पवन एक ही पार्टी एके जोति समाना।

एकै खाक गर्दै सब भाड़े एकै कांहरा सना।

जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटे अगिनि न काटे कोई।

सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरे सरूपें सोई।

माया देखि के जगत लुभाना काहे रे नर गरबाना।

निरर्भ भया कछु नहि ब्याएँ कहैं कबीर दिवाना।

प्रश्न

1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।

2. शिल्प सौदर्य बताइए।

उत्तर-

क) इस पद में कवि ने ईश्वर की एक सत्ता को माना है। संसार के हर प्राणी के दिल में ईश्वर है, उसका रूप चाहे कोई भी हो। कवि माया-मोह को निरर्थक बताता है।

ख)

• इस पद में कबीर की अक्खड़ता व निभीकता का पता चलता है।

• आम बोलचाल की सधुक्कड़ी भाषा है।

• जैसे बाढ़ी काटै। कोई’ में उदाहरण अलंकार है। बढ़ई, लकड़ी व आग का उदाहरण प्रभावी है।

• ‘एक एक में यमक अलंकार है-एक-परमात्मा, एक-एक।

• अनुप्रास अलंकार की छटा है काटै। कोई, सरूप सोई, कहै कबीर।

• खाक’ व ‘कोहरा’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।

• पूरे पद में गेयता व संगीतात्मकता है।

2

संतों देखत जग बौराना।

साँच कह तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।।

नेमी देखा धरमी देखा, प्राप्त करें असनाना।

आतम मारि पखानहि पूजे, उनमें कछु नहि ज्ञाना।।

बहुतक देखा पीर औलिया, पढे कितब कुराना।

कै मुरीद तदबीर बतावें, उनमें उहै जो ज्ञाना।।

आसन मारि डिभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।

पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।।

टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।

साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।।

हिन्दू कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कह रहमाना।

आपस में दोउ लरि लरि मूए, मम न काहू जाना।।

घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।

गुरु के सहित सिख्य सब बूड, अत काल पछिताना।।

कहैं कबीर सुनी हो सती, ई सब भम भुलाना।

केतिक कहीं कहा नहि माने, सहजै सहज समाना।।

प्रश्न

क) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।

ख) शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालें।

उत्तर-

क) इस पद में कवि ने संसार की गलत प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है। वे सांसारिक जीवन को सच मानते हैं। समाज में हिंदू-मुसलमान धर्म के नाम लड़ते हैं। वे तरह तरह के आडंबर रचाकर स्वयं को श्रेष्ठ जताने की कोशिश करते हैं। कवि संसार को इन आडंबरों की निरर्थकता के बारे में बार-बार बताता है, परंतु उन पर कोई प्रभाव नहीं होता। कबीर सहज भक्ति मार्ग को सही मानता है।

ख)

• कवि ने आत्मबल पर बल दिया है तथा बाहय आडंबरों को निरर्थक बताया है।

• अनुप्रास अलंकार की छटा है-

– पीपर पाथर पूजन

– कितेब कुराना

– भर्म भुलाना

– सहजै सहज समाना

– सहित शिष्य सब।

– साखी सब्दहि।

– केतिक कहाँ कहा

• ‘घर घर’, ‘लरि लरि में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

• आम बोलचाल की सधुक्कड़ी भाषा है।

• भाषा में व्यंग्यात्मक है।

• पूरे पद में गेयता व संगीतात्मकता है।

• चित्रात्मकता है।

• शांत रस है।

• प्रसाद गुण विद्यमान है।

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Chapter 10 आत्मा का ताप | class11th | Ncert solution For Hindi Aroh

NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 10 – आत्मा का ताप आरोह भाग-1 हिंदी (Aatma ka Taap)

अभ्यास

पृष्ठ संख्या: 125

पाठ के साथ

1. रज़ा ने अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी की पेशकश क्यों नहीं स्वीकार की?

उत्तर

रज़ा ने अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी की पेशकश नहीं स्वीकार की, क्योंकि उन्हें मुंबई में ही रहकर अध्ययन करने का निश्चय किया| उन्हें शहर तथा वहाँ का वतावरण और सभी मित्र बहत पसंद आए|

2. मुंबई में रहकर कला के लिए रज़ा ने क्या-क्या संघर्ष किए?

उत्तर

मुंबई में रहकर कला के लिए रज़ा को कड़ी मेहनत करनी पड़ी| रज़ा को जिस स्टूडियो में डिजाईनर की नौकरी मिली थी, वह फीरोजशाह मेहता रोड पर था| वहाँ वे सुबह दस बजे से शाम छह बजे तक काम करते थे| काम के बाद अध्ययन के लिए मोहन आर्ट क्लब जाते और रात में वे अपने किसी परिचित टैक्सी ड्राइवर के कमरे में रहते थे| वहाँ उन्हें फर्श पर सोना पड़ता था| वे रात के ग्यारह-बारह बजे तक जागकर स्केच बनाया करते थे| इतने कठिन परिश्रम के बाद 1948 में उन्हें बॉम्बे आर्ट ऑफ़ सोसाइटी का स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ| 1943 में आर्ट्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया की प्रदर्शनी में उनकी चित्रों को प्रदर्शित किया गया| कला समीक्षक रुडॉल्फ़ वॉन लेडेन ने उनके चित्रों की प्रशंसा की| प्रदर्शनी में उनके दो चित्र बीस-बीस रूपये में बिक गए| यह उनके बहुत बड़ी उपलब्धि थी| वेनिस अकादमी के प्रोफेसर लैंगहैमर उनके चित्र के प्रशंसक बने तथा उनके द्वारा बनाई गई चित्रों को खरीदने लगे| इससे रजा के अध्ययन में जुट पाना संभव हो गया और वे जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट के नियमित छात्र बन गए|

3. भले ही 1947 और 1948 में महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी हों, मेरे लिए वे कठिन बरस थे- रजा ने ऐसा क्यों कहा?

उत्तर

1947 में भारत आजाद हुआ और 1948 में महात्मा गाँधी की हत्या| लेकिन रजा के लिए ये दोनों वर्ष कठिन दौर थे क्योंकि व्यक्तिगत तौर पर उनके साथ घटनाएँ घटी थीं| 1947 में उनकी माता और फिर 1948 में उनके पिता का देहांत हो गया| पूरे परिवार की जिम्मेदारी का बोझ उनके कन्धों पर आ गया| इस प्रकार उन्हें अनेक क्रूर अनुभवों से गुजरना पड़ा|

4. रज़ा के पसंदीदा फ्रेंच कलाकार कौन थे?

उत्तर

रज़ा के पसंदीदा फ्रेंच कलाकार सेजां, वॉन, गॉग, गोगाँ पिकासो, मातीस, शागाल एवं ब्रॉक थे|

5. तुम्हारे चित्रों में रंग है, भावना है, लेकिन रचना नहीं है| चित्र इमारत की ही तरह बनाया जाता है- आधार, नींव, दीवारें, बीम, छत और तब जाकर वह टिकता है| यह बात

(क) किसने, किस संदर्भ में कही?

(ख) रज़ा पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर

(क) यह बात फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसाँ ने रजा के चित्रों को देखने के बाद कही|

(ख) उनकी इस टिप्पणी से रज़ा पर गहरा एवं सकारात्मक प्रभाव पड़ा| उन्हें यह महसूस हुआ कि उन्हें चित्रों की बुनियाद मजबूत बनानी पड़ेगी अर्थात उनका आधार मजबूत होना चाहिए| इससे उनकी कला में और भी अधिक निखार आ सकता है|

पाठ के आस-पास

1. रजा को जलील साहब जैसे लोगों का सहारा न मिला होता तो क्या तब भी वे एक जाने-माने चित्रकार होते? तर्क सहित लिखिए|

उत्तर

रजा की संघर्ष की घड़ियों में जलील साहब ने उनकी बहुत सहायता की थी, लेकिन कहना उचित नहीं होगा कि यदि उनका सहारा नहीं मिलता, तब भी रजा एक जाने-माने चित्रकार न बन पाते| ऐसा इसलिए है क्योंकि कला किसी के सहारे की मोहताज नहीं होती है| यह सच है कि कभी-कभी आर्थिक तंगी के कारण प्रतिभा को आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिलता| शायद रजा अकोला में ड्राइंग के अध्यापक बन कर ही रह जाते| फिर भी यदि उन्हें जलील साहब जैसे लोगों का सहारा न मिला होता, तब भी वे एक जाने-माने चित्रकार होते|

2. चित्रकला व्यवसाय नहीं, अंतरात्मा की पुकार है- इस कथन के आलोक में कला के वर्तमान और भविष्य पर विचार कीजिए|

उत्तर

ये बातें लेखक एस.एच.रजा ने वर्तमान में हो रहे चित्रकला के व्यवसायीकरण को ध्यान में रखते हुए कही हैं| उन्होंने ये बातें ख़ास तौर पर युवा कलाकारों को संबोधित किया है| वे अपना सर्वस्व देकर चित्रकला के लिए समर्पित होते हैं जबकि बाजार में उनके चित्रों की नीलामी की जाती है| चित्रकला किसी भी कलाकार की अंतरात्मा की आवाज होती है, इसे व्यवसाय प्रधान नहीं बनाना चाहिए| चित्रकला का भविष्य उज्जवल है, लेकिन यह कह पाना कठिन है कि इसके व्यवसायीकरण पर रोक लगाया जा सकेगा|

3. हमें लगता था कि हम पहाड़ हिला सकते हैं- आप किन क्षणों में ऐसा सोचते हैं?

उत्तर

जब भी हम अपने जीवन में किसी नए काम की शुरुआत करते हैं तो उसे हम बड़े ही लगन और उत्साह के साथ करते हैं| हमारी एक अलग पहचान बनती है और लोकप्रिय होने के साथ आत्मबल दोगुना होता जाता है| तभी हमें ऐसा लगता है कि हम पहाड़ हिला सकते हैं|

भाषा की बात

1. जब तक मैं मुंबई पहुँचा, तब तक जे.जे. स्कूल में दाखिला बंद हो चुका था- इस वाक्य को हम दूसरे तरीके से भी कह सकते हैं| मेरे बंबई पहुँचने से पहले जे.जे, स्कूल में दाखिला बंद हो चुका था| नीचे दिए गए वाक्यों को दूसरे तरीके से लिखिए-

(क) जब तक मैं प्लेटफ़ॉर्म पहुँचती तब तक गाड़ी जा चुकी थी|


(ख) जब तक डॉक्टर हवेली पहुँचता तब तक सेठ जी की मृत्यु हो चुकी थी|

(ग) जब तक रोहित दरवाजा बंद करता तब तक उसके साथी होली का रंग लेकर अंदर आ चुके थे|


(घ) जब तक रुचि कैनवास हटाती तब तक बारिश शुरू हो चुकी थी|

उत्तर

(क) मेरे प्लेटफॉर्म पहुँचने से पहले ही गाड़ी जा चुकी थी|

(ख) डॉक्टर के हवेली पहुँचने से पहले ही सेठ जी की मृत्यु हो चुकी थी|

(ग) रोहित के दरवाजा छंद करने रने पहले उसके साथी होली का रंग लेकर अंदर आ चुके थे|

(घ) रुचि के कैनवास हटाने से पहले ही बारिश शुरू हो चुकी थी|

2. आत्मा का ताप पाठ में कई शब्द ऐसे आए हैं जिनमें ऑ का इस्तेमाल हुआ है, (ऑफ़ ब्लॉक नॉर्मल)| नीचे दिए गए शब्दों में यदि ऑ का इस्तेमाल लिया जाए तो शब्द के अर्थ में क्या परिवर्तन आएगा? दोनों शब्दों का वाक्य-प्रयोग करते हुए अर्थ के अंतर को स्पष्ट कीजिए|

हाल, काफी, बाल

उत्तर

• हाल (दशा, स्थिति) आज मरीज किस हाल में है?

हॉल (बडा कमरा) छत के ऊपर एक हॉल बनाया जा सकता है|

• काफी (पर्याप्त) मेरे लिए इतनी सब्जी काफी है|

कॉफी (एक पेय पदार्थ) सदियों में कॉफी पीने से स्फूर्ति आती है|

• बाल (सिर के बाल यानि केश) मेरे बाल बहुत लंबे हो गए हैं|

बॉल (गेंद) क्रिकेट का बॉल बहुत महँगा हो गया है|

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Chapter 9 भारत माता | class11th | Ncert solution For Hindi Aroh

NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 9 – भारत माता आरोह भाग-1 हिंदी (Bharat Mata)

अभ्यास

पृष्ठ संख्या: 116

पाठ के साथ

1. भारत की चर्चा नेहरू जी कब और किससे करते थे?

उत्तर

भारत की चर्चा नेहरू जी अपने जलसों में और किसानों के साथ करते थे|

2. नेहरूजी भारत के सभी किसानों से कौन-सा प्रश्न बार-बार करते थे?

उत्तर

नेहरूजी भारत के सभी किसानों से तीन प्रश्न बार-बार करते थे :

• भारत माता की जय नारे का क्या अर्थ है?

• भारत माता कौन है?

• धरती का अर्थ कहाँ की धरती से है?

3. दुनिया के बारे में किसानों को बताना नेहरू जी के लिए क्यों आसान था?

उत्तर

दुनिया के बारे में किसानों को बताना नेहरू जी के लिए आसान था, इसकी वजह यह थी कि कुछ किसान महाकाव्यों तथा पुराणों की कथा-कहानियों से अच्छी तरह अवगत थे| वहीं कुछ ने भारत के कोने-कोने में जाकर बड़े-बड़े तीर्थों की यात्रा कर रखी थी| कुछ तो ऐसे सिपाही थे जिन्होंने युद्ध में भाग लिया था और विदेशों में भी नौकरियाँ की थीं| वे सन् तीस में उत्पन्न हुई विश्व की आर्थिक मंदी से भी परिचित थे|

4. किसान सामान्यतः भारत माता का क्या अर्थ लेते थे?

उत्तर

किसानों के लिए भारत माता का अर्थ भारत की धरती से था|

5. भारत माता के प्रति नेहरूजी की क्या अवधारणा थी?

उत्तर

नेहरू जी के विचार से भारत माता का अर्थ हिंदुस्तान की नदियाँ, पहाड़, खेत तथा करोड़ों लोग हैं, जो इसके अभिन्न अंग हैं| इन सभी को जोड़कर ही भारत माता की अवधारणा को समझा जा सकता है, जहाँ ये सभी भारत की प्रगति, समृद्धि के सूचक हैं|

6. आजादी से पूर्व किसानों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता था?

उत्तर

आजादी के पूर्व किसानों के समक्ष कई समस्याएँ थीं| उनमें से गरीबी, ऋण, पूँजीपतियों द्वारा शोषण, महाजनों तथा जमींदारों के शिकंजे में फँसना, कृषि के बदले कर चुकाना, अधिक ब्याज तथा पुलिस के अत्याचार प्रमुख समस्याएँ थीं, जिसे विदेशी सरकार ने किसानों पर लाद रखा था|

पाठ के आस-पास

1. आजादी से पहले भारत-निर्माण को लेकर नेहरू के क्या सपने थे? क्या आजादी के बाद वे साकार हुए? चर्चा कीजिए|

उत्तर

आजादी से पहले नेहरू जी ने भारत-निर्माण को लेकर कई सपने देखे थे, जैसे- गरीबी से मुक्ति, कर से छुटकारा, पूँजीपतियों तथा जमींदारी प्रथा का उन्मूलन, ब्याज में कमी, पुलिस के अत्याचारों से मुक्ति, जो विदेशी शासन में भारतीयों पर किए जाते थे|

आजादी के बाद वे सपने कुछ हद तक पूरे हुए| लेकिन कुछ सपने ऐसे भी हैं जो अभी तक अधूरे हैं, जैसे- आज भी कई किसान कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं| लगानों तथा सूद को तो कम कर दिया गया है तथा जमींदारों और पूँजीपतियों से भी छुटकारा मिल गया है| लेकिन, इन सब के बावजूद पुलिस के अत्याचार आज भी लोगों को सहने पड़ते हैं|

2. भारत के विकास को लेकर आप क्या सपने देखते हैं?

उत्तर

भारत के विकास को लेकर नेहरू जी ने जो सपने देखे थे वही सपने हमारे भी हैं| उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :

• भारत में गरीबी का नामोनिशान न हो| आधारभूत आवश्यकताएँ- रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या कहीं भी न हो|

• शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति हो| ऐसी शिक्षा नीति बनाई जाए जिसमें निर्धनों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था हो|

• युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर प्रदान किए जाए, जिससे बेरोजगारी की समस्या समाप्त की जा सके|

• ऐसी कानून व्यवस्था जिसमें सबके साथ न्याय किया जाए| लोगों को पुलिस के अत्याचारों को सहना न पड़े|

• संपूर्ण भारत में सुख और समृद्धि का शासन हो|

3. आपकी दृष्टि में भारत माता और हिंदुस्तान की क्या संकल्पना है? बताइए|

उत्तर

मेरी दृष्टि में भारत माता तथा हिन्दुस्तान की संकल्पना अलग नहीं है| इन दोनों का अर्थ यहाँ की हरियाली, खेत-जंगल, पहाड़, जो हमें अन्न प्रदान करते हैं, नदियाँ तथा इनके किनारे बसे ऋषि-मुनि, जिनसे यहाँ की सभ्यता तथा संस्कृति के बारे में पता चलता है| इनमें यहाँ के करोड़ों निवासी भी शामिल हैं, जो भारत की परंपराओं को जीवित रखे हुए हैं|

4. वर्तमान समय में किसानों की स्थिति किस सीमा तक बदली हैं? चर्चा कर लिखिए|

उत्तर

वर्तमान समय में किसानों की स्थिति में अनेक सुधार हुए हैं| पहले उन्हें ऋण के लिए जमींदारों की शर्तों को माना पड़ता था| वे उनसे मनमाना सूद वसूलते थे| लेकिन वर्तमान समय में किसानों को बैंक से कम ब्याज पर सस्ते ऋण मिल जाते हैं| प्राकृतिक आपदाओं के समय भी उन्हें सरकार की तरफ से कई सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं|

भाषा की बात

1. नीचे दिए गए वाक्यों का पाठ के सन्दर्भ में अर्थ लिखिए-

दक्खिन, पच्छिम, यक-साँ, एक जुज़, ढढ्ढे

उत्तर

दक्खिन- दक्षिणी प्रांतों के लिए; जैसे- केरल, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक|

पच्छिम- पश्चिम के प्रांतों के लिए; जैसे- महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान|

यक-साँ- एक-सा/अर्थात एक समान|

एक जुज़- एक हिस्सा या एक अंश के संदर्भ में|

ढढ्ढे- बोझ के संदर्भ में|

2. नीचे दिए गए संज्ञा शब्दों के विशेषण रूप लिखिए-

आजादी, चमक, हिंदुस्तान, विदेश, सरकार, यात्रा, पुराण, भारत

उत्तर

आजादी- आजाद

चमक- चमकीला

हिंदुस्तान- हिंदुस्तानी

विदेश- विदेशी

सरकार- सरकारी

यात्रा- यात्री

पुराण- पौराणिक

भारत- भारतीय

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Chapter 8 जामुन का पेड़ | class11th | Ncert solution For Hindi Aroh

NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 8 – जामुन का पेड़ आरोह भाग-1 हिंदी (Jamun ka Ped)

अभ्यास

पृष्ठ संख्या: 110

1. बेचारा जामुन का पेड़| कितना फलदार था|
और इसकी जामुनें कितनी रसीली होती थीं|

क. ये संवाद कहानी के किस प्रसंग में आए हैं?

ख. इससे लोगों की कैसी मानसिकता का पता चलता है?

उत्तर

क. आँधी के कारण जामुन का पेड़ सेक्रेटेरियट के लॉन में गिर गया था| उस पेड़ के नीचे एक आदमी दब गया था| जब माली ने सुबह यह देखा तो उसने क्लर्क को सूचित किया| इस बात के पता चलते ही सभी उस पेड़ के आस-पास इकट्ठे हो गए और उपरोक्त बातें करने लगे|

ख. इन बातों से लोगों की संवेदनहीन मानसिकता का पता चलता है| लोग उस पेड़ के नीचे दबे हुए आदमी के बारे में न सोचकर जामुन के पेड़ के गिरने से हुए नुकसान के बारे में सोचते हैं कि अब उन्हें जामुन खाने नहीं मिलेंगे| इससे यह पता चलता है कि वे कितने स्वार्थी और मतलबी हैं|

2. दबा हुआ आदमी एक कवि है, यह बात कैसे पता चली और इस जानकारी का फाइल की यात्रा पर क्या असर पड़ा?

उत्तर

रात को जब माली दबे हुए आदमी को खिचड़ी खिलाते हुए बताया कि मामला ऊपर तक चला गया है| कल सेक्रेटरियों की मीटिंग है और उम्मीद है कि सब ठीक हो जाएगा| इस बात पर दबे हुए आदमी ने कराहते हुए एक शायरी सुना डाली| यह सुनकर माली ने उससे पूछा कि क्या वो शायर है| उसने हामी भरी और यह बात सबको पता चल गई|

इस जानकारी से जो मामला सुलझने वाला था, उसमें और देरी होने की संभावना बढ़ गई| दबे हुए आदमी के कवि होने से फाइल एग्रीकल्चर, व्यापार, हॉर्टीकल्चर जैसे विभागों से होते हुए आखिरकार कल्चरल विभाग तक आ पहुँची| निर्णय लेने में देरी होने के कारण दबा हुआ आदमी अधिक दिन तक जीवित नहीं रह सका और अंततः मर गया|

3. कृषि-विभाग वालों ने मामले को हॉर्टीकल्चर विभाग को सौंपने के पीछे क्या तर्क दिया?

उत्तर

कृषि विभाग वालों ने मामले को हॉर्टीकल्चर विभाग को सौंपने के पीछे यह तर्क दिया कि कृषि विभाग अनाज और खेती-बाड़ी के मामलों में फैसला करने का हकदार है| जामुन का पेड़ चूँकि एक फलदार पेड़ था, इसलिए यह मामला हॉर्टीकल्चर विभाग के अंतर्गत आता है|

4. इस पाठ में सरकार के किन-किन विभागों की चर्चा की गई है और पाठ से उनके कार्य के बारे में क्या अंदाजा मिलता है?

उत्तर

इस पाठ सरकार के निम्नलिखित विभागों की चर्चा की गई है और उनके निम्नलिखित कार्य हैं:

(i) कृषि विभाग- इस विभाग का कार्य कृषि संबंधी मामलों की देखरेख करना है|

(ii) व्यापार विभाग- इसका कार्य देश में होने वाले व्यापार से संबंधित है|

(iii) हॉर्टीकल्चर विभाग- यह विभाग बागवानी तथा उनके रख-रखाव से संबंधित है|

(iv) कल्चरल विभाग- इसका अर्थ है सांस्कृतिक विभाग, जो कला तथा संस्कृति के विकास सबंधी कार्य करता है|

(v) फ़ॉरेस्ट विभाग या वन विभाग- यह विभाग वनों तथा वन्य-प्राणियों के सुरक्षा हेतु कार्य करता है|

(vi) विदेश विभाग- यह विभाग अंतर्राष्ट्रीय संबधों को मजबूत बनाने तथा उससे संबंधित नीतियों के कार्यान्वयन में सहायता करता है|

पाठ के आस-पास

1. कहानी में दो प्रसंग ऐसे हैं, जहाँ लोग पेड़ के नीचे दबे आदमी को निकालने के लिए कटिबद्ध होते हैं| ऐसा कब-कब होता है और लोगों का यह संकल्प दोनों बार किस-किस वजह से भंग होता है?

उत्तर

जैसे ही पता चला कि जामुन के पेड़ के नीचे एक आदमी दबा हुआ है, कुछ मनचले क्लर्कों ने कानून की परवाह किए बिना पेड़ हटाकर उसे बाहर निकालने का निश्चय किया| वे ऐसा करने ही वाले थे कि तभी सुपरिंटेंडेंट दौड़ता हुआ आया और बताया कि यह पेड़ कृषि विभाग के अंतर्गत आता है और उनकी अनुमति के बिना हम इसे नहीं हटा सकते|

जैसे ही फ़ॉरेस्ट विभाग के कर्मचारी आरी-कुल्हाड़ी लेकर पेड़ काटने पहुँचे, तभी विदेश विभाग से आदेश आया कि यह पेड़ नहीं काटा जा सकता क्योंकि यह पेड़ पोटानिया राज्य के प्रधानमंत्री ने लगाया था| पेड़ काटने से दो राज्यों के संबंध बिगड़ सकते हैं और उससे मिलने वाली सहायता भी बंद हो सकती है|

2. यह कहना कहाँ तक युक्तिसंगत है कि इस कहानी में हास्य के साथ-साथ करूणा की भी अंतर्धारा है| अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें|

उत्तर

इस कहानी में हास्य के साथ-साथ करूणा की भी अंतर्धारा है| इस बात से मैं सहमत हूँ| कहानी के आरंभ में ही हास्य दृश्य है, जब जामुन के पेड़ के गिरने पर सभी उसके रसीले फल को याद करके अफ़सोस व्यक्त करते हैं| कोई उसके नीचे दबे हुए आदमी की कराह को नहीं सुनता| कुछ मनचले क्लर्क पेड़ की जगह आदमी को ही काटने की बात करते हैं जिससे कि पेड़ को कोई नुकसान न हो| इस बात से हास्य और करूणा दोनों की अनुभूति होती है| कहानी के अंत में एक ओर फैसला आता है और दूसरी ओर आदमी की मौत हो जाती है तथा चीटियों की एक लंबी पंक्ति उसके मुँह में चली जा रही है| यह अत्यंत ही कारुणिक दृश्य है|

3. यदि आप माली की जगह होते, तो हुकूमत के फैसले का इंतजार करते या नहीं? अगर हाँ, तो क्यों? और नहीं, तो क्यों?

उत्तर

यदि मैं माली की जगह होती/होता, तो हुकूमत के फैसले का इंतजार नहीं करता/करती, क्योंकि किसी व्यक्ति के जीवन से बढ़कर कोई कानून या नियम नहीं है| एक पेड़ के कारण व्यक्ति के जीवन को दाँव पर नहीं लगा सकते| यह कोई सामान्य स्थिति नहीं थी, जिसमें निर्णय का इंतजार किया जा सकता था| एक गिरे हुए पेड़ के कारण आदमी की जान जाने वाली थी| इसलिए किसी भी प्रकार का खतरा उठाए बिना लोगों की सहायता से पेड़ हटाने की कोशिश करता/करती|

शीर्षक सुझाइए

कहानी के वैकल्पिक शीर्षक सुझाएँ| निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखकर शीर्षक गढ़े जा सकते हैं-

• कहानी में बार-बार फाइल का जिक्र आया है और अंत में दबे हुए आदमी के जीवन की फाइल पूर्ण होने की बात कही गई है|

उत्तर

जीवन की फाइल|

• सरकारी दफ्तरों की लंबी और विवेकहीन कार्यप्रणाली की ओर बार-बार इशारा किया गया है|

उत्तर- लंबी तथा विवेकहीन सरकारी प्रणाली|

• कहानी का मुख्य पात्र उस विवेकहीनता का शिकार हो जाता है|

उत्तर- लापरवाही तथा विवेकहीनता के दुष्परिणाम|

भाषा की बात

1. नीचे दिए गए अंग्रेजी शब्दों के हिंदी प्रयोग लिखिए-

अर्जेंट, फ़ॉरेस्ट, डिपार्टमेंट, मेंबर, डिप्टी सेक्रेटरी, चीफ़ सेक्रेटरी, मिनिस्टर, अंडर सेक्रेटरी, हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट, एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट|

उत्तर

अर्जेंट- अति आवश्यक

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट- वन-विभाग

मेंबर- सदस्य

डिप्टी सेक्रेटरी- उप-सचिव

मिनिस्टर- मंत्री

अंडर सेक्रेटरी- अवर-सचिव

हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट- उद्यान कृषि-विभाग

एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट- कृषि-विभाग

2. इसकी चर्चा शहर में भी फ़ैल गई और शाम तक गली-गली से शायर जमा होने शुरू हो गए- यह एक संयुक्त वाक्य है, जिसमें दो स्वतंत्र वाक्यों को समानाधिकरण समुच्चयबोधक शब्द और से जोड़ा गया है| संयुक्त वाक्य को इस प्रकार सरल वाक्य में बदला जा सकता है- इसकी चर्चा शहर में फैलते ही शाम तक गली-गली से शायर जमा होने शुरू हो गए| पाठ में से पाँच संयुक्त वाक्यों को चुनिए और उन्हें सरल वाक्य में रूपांतरित कीजिए|

उत्तर

1. माली ने अचंभे से मुँह में उँगली दबा ली और चकित भाव से बोला- माली अचंभे से मुँह में ऊँगली दबाकर चकित भाव से बोला।

2. इतना बड़ा कवि- ‘ओस के फूल’ का लेखक और हमारी अकादमी का मेंबर नहीं है- ‘ओस के फूल’ का लेखक बड़ा कवि होते हुए भी हमारी अकादमी का मेंबर नहीं है।

3. जामुन का पेड़ चूँकि फलदार पेड़ है,इसलिए यह पेड़ हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट के अंतर्गत आता है- जामुन का पेड़ फलदार पेड़ होने के कारण हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट के अंतर्गत आता है।

4. आधा आदमी उधर से निकल आएगा और पेड़ वहीँ का वहीँ रहेगा- आधा आदमी उधर से निकल आने पर पेड़ वहीँ का वहीँ रहेगा।

5. कल यह पेड़ काट दिया जाएगा, और तुम इस संकट से छुटकारा हासिल कर लोगे- कल इस पेड़ के कटते ही तुम इस संकट से छुटकारा हासिल कर लोगे|

3. साक्षात्कार अपने-आप में एक विधा है| जामुन के पेड़ के नीचे दबे आदमी के फाइल बंद होने (मृत्यु) के लिए जिम्मेदार किसी एक व्यक्ति का काल्पनिक साक्षात्कार करें और लिखें|

उत्तर

जामुन के पेड़ के नीचे दबे आदमी के फ़ाइल बंद होने (मृत्यु) के लिए जिम्मेदार सुपरिंटेंडेंट और साक्षात्कारकर्ता के बीच का काल्पनिक साक्षात्कार-

साक्षात्कारकर्ता: क्या, आप ही इस विभाग के सुपरिंटेंडेंट हैं?

सुपरिंटेंडेंट: जी हाँ !

साक्षात्कारकर्ता: तब तो आपको पता ही होगा कि आपकी लॉन में एक पेड़ गिरने से एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई है|

सुपरिंटेंडेंट: इसमें मेरी कोई गलती नहीं है|

साक्षात्कारकर्ता: लेकिन माली को आपने ही पेड़ काटने से मना किया था|

सुपरिंटेंडेंट: देखिए जनाब, हम सरकारी कर्मचारी हैं इसलिए कार्य को नियम और कानून के दायरे में रहकर करना पड़ता है|

साक्षात्कारकर्ता: चाहे इस नियम और कानून के कारण किसी की जान ही क्यों न चली जाए|

सुपरिंटेंडेंट: नहीं! ऐसा हमने कब कहा? लेकिन….

साक्षात्कारकर्ता: लेकिन क्या?

सुपरिंटेंडेंट: मैंने तो ये कहा कि मैं कानून के दायरे के बाहर नहीं जा सकता था| मुझे अपने से ऊपर जवाब देना पड़ता है|

साक्षात्कारकर्ता: पर ये कहाँ लिखा है कि मरते हुए आदमी को छोड़कर आप फ़ाइल के चक्कर में पड़े रहे|

सुपरिंटेंडेंट: मैं स्वयं निर्णय कैसे लेता? यह काम मेरे विभाग से संबंधित ही नहीं था|

साक्षात्कारकर्ता: तो आप ही बताइए कि इस बेचारे व्यक्ति के मरने की जिम्मेदारी किस विभाग की है?

सुपरिंटेंडेंट: मैं इस बारे में आगे कोई बात नहीं करना चाहता हूँ| मुझे जो ठीक लगा वह मैंने किया अच्छा नमस्कार|

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Chapter 7 रजनी | class11th | Ncert solution For Hindi Aroh

NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 7 – रजनी आरोह भाग-1 हिंदी (Rajni)

अभ्यास

पृष्ठ संख्या: 97

पाठ के साथ

1. रजनी ने अमित के मुद्दे को गंभीरता से लिया, क्योंकि-

क. वह अमित से बहुत स्नेह करती थी|

ख. अमित उसकी मित्र लीला का बेटा था|

ग. वह अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाने की सामर्थ्य रखती है|

घ. उसे अखबार की सुर्ख़ियों में आने का शौक था|

उत्तर

ग. वह अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाने की सामर्थ्य रखती है|

2. जब किसी का बच्चा कमजोर होता है, तभी उसके माँ-बाप ट्यूशन लगवाते हैं| अगर लगे कि कोई टीचर लूट रहा है, तो उस टीचर से न ले ट्यूशन, किसी और के पास चले जाएँ…..यह कोई मजबूरी तो है नहीं- प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताएँ कि यह संवाद आपको किस सीमा तक सही या गलत लगता है, तर्क दीजिए|

उत्तर

अमित के गणित में कम अंक लाने से रजनी ट्यूशन से संबंधित शिकायत लेकर जब हैडमास्टर के पास जाती है तो वे इस बात को गंभीरता से नहीं लेते हैं तथा अध्यापक और बच्चों की समस्या कहकर टाल देते हैं| रजनी इस समस्या की शिकायत शिक्षा निदेशक से करती है| शिक्षा निदेशक के अनुसार माँ-बाप के लिए बच्चों को ट्यूशन भेजना कोई मंजूरी तो है नहीं| यदि उन्हें लगता है कि कोई अध्यापक लूट रहा है तो वे किसी दूसरे अध्यापक के पास जा सकते हैं|

मेरे विचार से शिक्षा निदेशक का यह संवाद बिलकुल ही अतार्किक है| उन्होंने समस्या को गंभीरता से नहीं लिया है| अध्यापकों द्वारा ट्यूशन के लिए मजबूर किया जाना और न पढ़ने पर कम अंक देना, ये उनके लिए कोई बड़ी समस्या नहीं है| उनके द्वारा कही गई इस तरह की बातें उनकी गलत सोच को व्यक्त करता है|

3. तो एक और आंदोलन का मसला मिल गया- फुफुसाकर कही गई बात-

क. किसने किस प्रसंग में कही?

उत्तर

यह बात रजनी के पति ने उस समय कही थी, जब रजनी ने अध्यापकों द्वारा मनमाने ढंग से ट्यूशन लेने के विरूद्ध मीटिंग के दौरान भाषण देने के दौरान यह बताया कि कुछ अध्यापकों को कम वेतन देकर अधिक वेतन पर हस्ताक्षर करवाए जाते हैं| ऐसे अध्यापकों से उसने अनुरोध किया कि वे संगठित होकर आंदोलन करें और इस अन्याय का पर्दाफाश करें|

ख. इससे कहने वाले की किस मानसिकता का पता चलता है?

उत्तर

इससे कहने वाले की संकीर्ण तथा आत्मकेंद्रित सोच का पता चलता है| ऐसे लोग सामाजिक समस्या से स्वयं को अलग रखना चाहते हैं| सिर्फ अपने काम से मतलब रखते हैं| इस तरह के लोग दूसरों की समस्या में उलझकर व्यर्थ की परेशानी में नहीं पड़ना चाहते हैं|

4. रजनी धारावाहिक की इस कड़ी की मुख्य समस्या क्या है? क्या होता अगर-

क. अमित का पर्चा सचमुच खराब होता|

ख. संपादक रजनी का साथ न देता|

उत्तर

रजनी धारावाहिक की इस कड़ी की मुख्य समस्या अध्यापकों द्वारा जबरदस्ती ट्यूशन लेने के लिए छात्रों को मजबूर करना तथा ट्यूशन न पढने पर कम अंक देना है| इस धारावाहिक में इसी समस्या को उजागर किया गया है|

क. यदि अमित का पर्चा सचमुच खराब होता, तो रजनी इस समस्या को लेकर कोई बखेड़ा खड़ा नहीं करती और इस बात के पता चलने पर कोई आंदोलन नहीं करती|

ख. यदि संपादक रजनी का साथ न देता, तो रजनी इस समस्या को एक बड़े आंदोलन का रूप नहीं दे पाती| न ही वह ट्यूशन से संबंधित मसले को सुलझा पाने में सफल हो पाती|

पाठ के आस-पास

1. गलती करने वाला तो है ही गुनहगार, पर उसे बर्दाश्त करने वाला भी कम गुनहगार नहीं होता- इस संवाद के सन्दर्भ में आप सबसे ज्यादा किसे और क्यों गुनहगार मानते हैं?

उत्तर

इस संवाद के सन्दर्भ में मेरे विचार से गलती करने वाला तथा उसे बर्दाश्त करने वाला दोनों ही गुनहगार है| ऐसा इसलिए है, क्योंकि गलती करने वाला (अध्यापक), जो जबरदस्ती ट्यूशन के लिए बच्चों को मजबूर करते हैं, वे दोषी हैं| साथ ही ऐसे अभिभावक जो इस जबरदस्ती को बर्दाश्त करते हैं, समान रूप से दोषी हैं| उन्हें इस अन्याय के विरूद्ध आवाज उठानी चाहिए| अन्याय बर्दाश्त करने से दोषी और अधिक गलती करने की छूट मिल जाती है|

2. स्त्री के चरित्र की बनी-बनाई धारणा से रजनी का चेहरा किन मायनों में अलग है?

उत्तर

सामान्यतः स्त्री का चरित्र कोमल, सहनशील, कमजोर तथा शांत व्यक्तित्व का माना जाता है| जबकि रजनी का चरित्र ठीक इसके विपरीत है| वह एक साहसी, शक्तिशाली तथा अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाने वाली महिला है| प्रायः घरेलू नारी अन्याय को सहन कर चुप रहती है, लेकिन रजनी अन्याय के विरूद्ध अकेले लड़ जाती है| वह अध्यापकों द्वारा ट्यूशन लेने जैसी सामाजिक समस्या को भी सबके सामने लाकर उसका समाधान निकालती है|

3. पाठ के अंत में मीटिंग के स्थान का का विवरण कोष्ठक में दिया गया है| यदि इसी दृश्य को फिल्माया जाए तो आप कौन-कौन से निर्देश देंगे?

उत्तर

यदि इसी दृश्य को फिल्माया जाए, तो निम्नलिखित निर्देश देंगे:

• मीटिंग के अनुरूप तैयार किया गया मंच तथा बैनर|
• लोगों का उत्साह में आना|
• रजनी का मंच पर भाषण देना|

4. इस पटकथा में दृश्य-संख्या का उल्लेख नहीं है| मगर गिनती करें तो सात दृश्य हैं| आप किस आधार पर इस दृश्यों को अलग करेंगे?

उत्तर

पटकथा में दृश्यों को संख्या के आधार पर अलग-अलग नहीं दर्शाया गया है| हम स्थान के आधार पर दृश्यों को अलग कर सकते हैं|

पृष्ठ संख्या: 98

भाषा की बात

1. निम्नलिखित वाक्यों के रेखांकित अंश में जो अर्थ निहित हैं उन्हें स्पष्ट करते हुए लिखिए-

(क) वरना तुम तो मुझे काट ही देतीं|

(ख) अमित जबतक तुम्हारे भोग नहीं लगा लेता, हमलोग खा थोड़े ही सकते हैं|

(ग) बस- बस, मैं समझ गया|

उत्तर

(क) काट देना- अलग करना, छोड़ देना, भूल जाना|

रजनी लीला से अमित के परीक्षा परिणाम की घोषणा को लेकर कहती है कि में तुम्हारे घर न आती तो तुम मुझे मिठाई खिलाने की बात तो भूल ही जाती|

(ख) भोग लगाना- खिला लेना|

अमित जब तक रजनी आंटी को खिला नहीं लेता, तब तक वह किसी और को नहीं खाने देता|

(ग) बस-बस- और अधिक कहने से रोक देना|

संपादक रजनी से कहता है कि और अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है, मैं सारी बात समझ गया।

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Chapter 6 स्पीति में बारिश | class11th | Ncert solution For Hindi Aroh

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 6 स्पीति में बारिश

स्पीति में बारिश (अभ्यास प्रश्न)

प्रश्न 1. इतिहास में स्पीति का वर्णन क्यों नहीं मिलता?

इतिहास में स्पीति का वर्णन इसलिए नहीं मिलता क्योंकि दुर्लंघ्य भूगोल इसका बहुत बड़ा कारण है। ऊँचे दर्रों एवं कठिन रास्तों के कारण यहाँ पर पहुँचना अत्यंत कठिन है। आजकल संचार साधनों में सुधार होने के कारण इसके संपर्क में रह सकते हैं किंतु शीत ऋतु में तो यहाँ जाना ही असंभव है। अधिक जानकारी न होने के कारण इतिहास में इसका वर्णन नहीं मिलता।

प्रश्न 2. स्पीति के लोग जीवनयापन के लिए किन कठिनाइयों का सामना करते हैं?

दुर्गम घाटियों और ऊँचे पहाड़ स्पीति को दुनिया से अलग करने वाले घटक है। बर्फ पड़ने के कारण यहाँ के लोग वर्ष में 8-9 महीने शेष दुनिया से कटे रहते हैं। उन्हें वर्ष में केवल एक ही फसल मिलती है। उनके पास सर्दी से बचने के साधनों का भी अभाव है। यहाँ पर चलने वाली तेज हवाएँ हाथ, मुँह और शरीर के खुले अंगों पर काँटों की तरह चुभती है। यहाँ लुटेरों का भी खतरा बना रहता है।

प्रश्न 3. लेखक माने श्रेणी का नाम बौद्धों के ‘माने’ मंत्र के नाम पर करने के पक्ष में क्यों है?

लेखक माने श्रेणी का नाम बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर करने के पक्ष में इसलिए है क्योंकि ‘ओम मणि पद्मे हुँ’ बौद्धों का बीज मंत्र है। इसके उच्चारण से करुणा की उत्पत्ति होती है। यहाँ के पहाड़ों पर इस मंत्र का जाप बहुत बार किया गया है। इसलिए लेखक यह नाम इन श्रेणियों को देने के पक्ष में है।

प्रश्न 4. ये माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई है- इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने युवा वर्ग से क्या आग्रह किया है?

इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने युवा वर्ग को स्पीति में आने का आग्रह किया है। यह साहसपूर्ण यात्रा है क्योंकि इसका मार्ग दुर्गम है। युवा वर्ग यहाँ आकर अपनी हिम्मत, उत्साह और साहस का परिचय दे सकते हैं। युवा वर्ग के आने से यहाँ के लोगों की उदासीनता भी भंग हो जाएगी और यहाँ के लोगों का दुख-दर्द भी कम होगा।

प्रश्न 5. वर्षा यहाँ एक घटना है, एक सुखद संयोग है- लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?

लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि स्पीति में कभी-कभी ही वर्षा होती है। वर्षा की कमी के कारण ही यहाँ अधिक वनस्पति नहीं होती। यहाँ पर केवल ‘जौ’ की फसल ही मुख्य है। मटर और सरसों को छोड़कर कोई सब्जी नहीं होती। वर्षा की कमी के कारण अधिकतर जमीन/धरती बंजर है। कभी-कभी वर्षा होने के कारण इसे यहाँ सुखद संयोग माना गया है।

प्रश्न 6. स्पीति अन्य पर्वतीय स्थलों से किस प्रकार भिन्न है?

स्पीति मध्य हिमालय में स्थित है। इसकी समुद्र तल से ऊँचाई 13000 फीट है। स्पीति के पहाड़ लाहुल के पहाड़ों से ज्यादा ऊँचे और भव्य हैं। यहाँ बर्फ के जमाव के कारण ठंड की अधिकता है। यह बर्फ गलानेवाली एवं दुख देने वाली है। यहाँ वर्षा न के बराबर है। स्पीति में प्रति वर्गमील चार से भी कम लोग रहते हैं।

स्पीति में बारिश (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

प्रश्न 1:

‘स्पीति में बारिश’ पाठ का प्रतिपादय बताइए।

उत्तर-

यह पाठ एक यात्रा-वृत्तांत है। स्पीति हिमाचल के मध्य में स्थित है। यह स्थान अपनी भौगोलिक एवं प्राकृतिक विशेषताओं के कारण अन्य पर्वतीय स्थलों से भिन्न है। लेखक ने यहाँ की जनसंख्या, ऋतु, फसल, जलवायु व भूगोल का वर्णन किया है। ये एक दूसरे से संबंधित हैं। उन्होंने दुर्गम क्षेत्र स्पीति में रहने वाले लोगों के कठिनाई भरे जीवन का भी वर्णन किया है। कुछ युवा पर्यटकों का पहुँचना स्पीति के पर्यावरण को बदल सकता है। ठंडे रेगिस्तान जैसे स्पीति के लिए उनका आना, वहाँ बूंद भरा एक सुखद संयोग बन सकता है।

प्रश्न -2

शिव का अट्टहास नहीं, हिम का आर्तनाद है। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

लेखक बताता है कि पहाड़ के शिखरों पर जो बर्फ जमी होती है, उसे शिव की तेज हँसी का कारण माना जाता है, परंतु स्पीति में यह मान्यता लागू नहीं होती। यहाँ बर्फ कष्टों का प्रतीक है। जीवन में इतने अभाव हैं कि यहाँ दर्द के सिवाय कुछ नहीं है। यही चीख-पुकार, दर्द बर्फ के रूप में जमा हो गया है।

प्रश्न 3:

स्पीति रेगुलेशन कब पास हुआ? इसके बारे में बताइए।

उत्तर-

पीति रेगुलेशन 1873 ई. में ब्रिटिश सरकार के समय पारित किया गया। इसके निम्नलिखित प्रभाव थे-

(क) लाहुल व स्पीति को विशेष दर्जा दिया गया।

(ख) यहाँ ब्रिटिश भारत के अन्य कानून लागू नहीं होते थे।

(ग) स्थानीय प्रशासन के अधिकार नोनो को दिए गए।

(घ) नोनों मालगुजारी को इकट्ठा करता तथा फौजदारी के छोटे-छोटे मुकदमों का फैसला करता था।

(ङ) अधिक बड़े मामले कमिश्नर को भेजे जाते थे।

प्रश्न 4:

बाहय आक्रमण से स्पीति के लोग अपनी सुरक्षा कैसे करते हैं?

उत्तर-

बाहरी आक्रमण से रक्षा करने के लिए स्पीति के लोग अप्रतिकार का तरीका अपनाते हैं। वे उससे लड़ते नहीं। वे धाँमा का तना पकड़कर या एक-दूसरे को पकड़कर आँख मींचकर बैठ जाते हैं। जब आक्रमणकारी या संकट गुजर जाता है तो वे उठकर वापस आ जाते हैं।

स्पीति में बारिश (पठित गद्यांश)

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। लाहुल-स्पीति का यह योग भी आकस्मिक ही है। इनमें बहुत योगायोग नहीं है। ऊँचे दरों और कठिन रास्तों के कारण इतिहास में भी कम रहा है। अलभ्य भूगोल यहाँ इतिहास का एक बड़ा कारक है। अब जबकि संचार में कुछ सुधार हुआ है तब भी लाहुल-स्पीति का योग प्रातः वायरलेस सेट के जरिए है जो केलग और काजा के बीच खड़कता रहता है। फिर भी केलंग के बादशाह को भय लगा रहता है कि कहीं काजा का सूबेदार उसकी अवज्ञा तो नहीं कर रहा है? कहीं बगावत तो नहीं करने वाला है? लेकिन सिवाय वायरलेस सेट पर संदेश भेजने के वह कर भी क्या सकता है? वसंत में भी 170 मील जाना-आना कठिन है। शीत में प्रायः असंभव है।

प्रश्न

1. स्पीति कहाँ स्थित हैं?

2. स्पीति का नाम इतिहास में कम क्यों हैं?

3. केलग के बादशाह को क्या भय रहता हैं?

उत्तर-

1. स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। यह पहाडी भू-भाग बहुत ऊँचा-नीचा है। यहाँ के दरें और पहाड़ इसे दुर्गम बनाते हैं।

2. स्पीति का इतिहास में कम ही नाम आता है, क्योंकि ऊँचे दरों व कठिन रास्तों के कारण यह आम संसार से कटा रहता है। वहाँ आवागमन अत्यंत कठिन है।

3. कैलग के बादशाह को भय रहता है कि काजा का सूबेदार उसकी आज्ञा का पालन करता हैं या नहीं? कहीं वह बगावत तो नहीं करने वाला। उसके पास संचार का साधन मात्र वायरलेस सेट था।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

2. अचरज यह नहीं कि इतने कम लोग क्यों हैं? अचरज यह है कि इतने लोग भी कैसे बसे हुए हैं? मैंने जब भी स्पीति की विपत्ति बताई है तो लोगों ने यहीं पूछा कि आखिर तब लोग वहाँ रहते क्यों हैं? आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे हुए हैं। ठंड में ठिठुर रहे हैं। सिर्फ एक फसल उगाते हैं। लकड़ी भी नहीं है कि घर गरम रख सकें। वृत्ति नहीं है। फिर क्यों रहते हैं? क्या अपने धर्म की रक्षा के लिए रहते हैं? अपनी । जन्मभूमि के ममत्व के कारण रहते हैं? या इस मजबूरी में रहते हैं कि कहीं और जा नहीं सकते? कहाँ जाएँ? या फिर और बातों के साथ- साथ यह सब कारण हैं? मैं नहीं जानता। मैं तो इतना ही देखता हूँ कि यहाँ रह रहे हैं, इसलिए रह रहे हैं। और कोई तर्क नहीं है। तर्क से हम किसी चीज को भले सिद्ध कर सकें, स्पीति में रहने को सिद्ध नहीं कर सकते। लेकिन तर्क का इतना मोह क्यों? ज्यादा करके संसार और निर्वाण अतय है। तर्क के परे है।

प्रश्न

1. लेखक को स्पीति में लोगों के रहने पर आश्चर्य क्यों है?

2. स्पीति में कोन सी कठिन परिस्थितियाँ हैं?

3. संसार और निवाण अतय क्यों हैं?

उत्तर-

1. लेखक कहता है कि यहाँ भयंकर ठंड होती है। यहाँ लकड़ी, रोजगार नहीं है। फसल भी एक ही होती है। ऐसी दुर्गम स्थितियों में भी लोग यहाँ रहते हैं। इसी बात पर लेखक को हैरानी है।

2. स्पीति में निम्नलिखित कठिन परिस्थितियाँ हैं-

(क) भयंकर ठंड।

(ख) आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे रहना

(ग) एक फसल ले पाना

(घ) घर गर्म करने हेतु लकड़ी तक का न होना

(ङ) रोजगार न होना।

3. संसार और निर्वाण तर्क से परे हैं। लेखक कहना चाहता है कि संसार की हर वस्तु को तर्क के आधार पर सिद्ध नहीं किया जा सकता। प्राणी की उत्पत्ति, संसार का चक्र आदि को कभी समझा नहीं जा सका। इसी तरह मृत्यु के कारण, मृत्यु के बाद जीव का स्थान आदि का सटीक उत्तर नहीं है।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

3. मध्य हिमालय की जो श्रेणियाँ स्पीति को घेरे हुए हैं उनमें से जो उत्तर में हैं उसे बारालाचा श्रेणियों का विस्तार समझे। बारालाचा दरें की ऊँचाई का अनुमान 16221 फीट से लगाकर 16,500 फीट का लगाया गया है। इस पर्वत श्रेणी में दो चोटियों की ऊँचाई 21,000 फीट से अधिक है। दक्षिण में जो श्रेणी है वह माने श्रेणी कहलाती है। इसका क्या अर्थ है? कहीं यह बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर तो नहीं हैं? मणि पद्मे हु इनका बीज मंत्र है इसका बड़ा महात्म्य है। इसे संक्षेप में माने कहते हैं। कहीं इस श्रेणी का नाम इस माने के नाम पर तो नहीं है? अगर नहीं है तो करने जैसा है। यहाँ इन पहाड़ियों में माने का इतना जाप हुआ है कि यह नाम उन श्रेणियों को दे डालना ही सहज है।

प्रश्न

1. स्पीति की किन पवतश्रेणियों ने घर रखा है? उनकी ऊँचाई कितनी हैं?

2. दक्षिण की श्रेणी के नामकरण का क्या आधार हैं?

३. स्पीति में किस धर्म का प्रभाव है? सप्रमाण उत्तर दीजिए।

उत्तर-

1. स्पीति मध्य हिमालय पर बसा हुआ है। इसके उत्तर की ओर बारालाचा श्रेणियाँ हैं। इनकी ऊँचाई 16221 फीट से लेकर 16500 फीट तक है। इस पर्वतश्रेणी की दो चोटियों की ऊँचाई 21,000 फीट से अधिक है। दक्षिण में माने श्रेणी है।

2. दक्षिण की श्रेणी का नाम माने है। बौद्धों में भी माने एक बीज मंत्र है- ॐ मणि पद्मे हु।’ इसकी बड़ी मान्यता है। इसे मान कहते हैं। लेखक का मानना है कि शायद माने मंत्र के अत्यधिक जप के कारण इसे माने श्रेणी कहने लगे हों।

3. स्पीति में बौद्ध धर्म का प्रभाव है। यहाँ की पर्वत श्रेणी को माने श्रेणी कहा जाता है। शायद इसका नाम माने के नाम पर ही हुआ हो। यदि ऐसा नहीं है तो भी यहाँ माने का जाप हुआ है, जिससे स्पष्ट होता है कि यहाँ औद्ध धर्म का प्रभाव है।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

4, मैं ऊंचाई के माप के चक्कर में नहीं हैं। न इनसे होड़ लगाने के पक्ष में हैं। वह एक बार लोसर में जो कर लिया सो बस है। इन ऊंचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु है। हाँ, कभी-कभी उनका मान-मर्दन करना मर्द और औरत की शान है। मैं सोचता हूँ कि देश और दुनिया के मैदानों से और पहाड़ों से युवक-युवतियाँ आएँ और पहले तो स्वयं अपने अहंकार को गलाएँ-फिर इन चोटियों के अहंकार को चूर करें। उस आनंद का अनुभव करें जो साहस और कूवत से यौवन में ही प्राप्त होता है। अहंकार का ही मामला नहीं है। ये माने की चोटियाँ बूढे लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं। युवक-युवतियाँ किलोल करें तो यह भी हर्षित हों। अभी तो इन पर स्पीति का आर्तनाद जमा हुआ है। वह इस युवा अट्टहास की गरमी से कुछ तो पिघले। यह एक युवा निमंत्रण है।

प्रश्न

1. लखक क्या नहीं चाहता तथा क्यों?

2. लेखक किन्हें यहाँ बुलाना चाहता है? क्यों?

3. लखक के अनुसार, माने की चोटियाँ उदास क्यों हैं?

उत्तर-

1. लेखक यह नहीं चाहता कि ऊँचाइयों के माप के चक्कर में पड़ा जाए। वह उनसे होड़ लगाने के पक्ष में भी नहीं है। इसका कारण यह है कि ऊँचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु का कारण बन सकता है।

2. लेखक दुनिया के मैदानों व पहाड़ों से युवक-युवतियों को बुलाना चाहता है ताकि वे यहाँ आकर पहले अपने अहंकार को गलाएँ तथा फिर चोटियों का मान-मर्दन करें। इससे उन्हें आनंद की अनुभूति होगी।

3. लेखक के अनुसार माने की चोटियाँ बुदै लामाओं के जाप से उदास हैं। दूसरे यहाँ के भूगोल के कारण बार्क का आर्तनाद छाया रहता है। अतः ये चोटियाँ उदास हैं।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

5. यह पावस यहाँ नहीं पहुँचता है। कालिदास की वर्षा की शोभा विंध्याचल में है। हिमाचल की इन मध्य की घाटियों में नहीं है। मैं नहीं जानता कि इसका लालित्य लाहुल-स्पीति के नर-नारी समझ भी पाएँगे या न। वर्षा उनके संवेदन का अंग नहीं है। वह यह जानते नहीं हैं।बकि बरसात में नदियाँ बहती हैं, बादल बरसते, मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे-भरे हो जाते हैं, अपने प्यारों से बिछुड़ी हुई स्त्रियाँ रोती- कलपती हैं, मोर नाचते हैं और बंदर चुप मारकर गुफाओं में जा छिपते हैं। अगर कालिदास यहाँ आकर कहें कि ‘अपने बहुत से सुंदर गुणों से सुहानी लगने वाली, स्त्रियों का जी खिलाने वाली, पेड़ों की टहनियों और बेल की सच्ची सखी तथा सभी जीवों का प्राण बनी हुई वर्षा ऋतु । आपके मन की सब साधे पूरी करें तो शायद स्पीति के नर नारी यही पूछेगे कि यह देवता कौन है? कहाँ रहता है? यहाँ क्यों नहीं आता? स्पीति में कभी कभी बारिश होती है। वर्षा ऋतु यहाँ मन की साध पूरी नहीं करती। धरती सूखी, ठंडी और वंध्या रहती है।

प्रश्न

1. स्पीति में पावस क्यों नहीं आता?

2 स्पीति के लोग क्या नहीं जानते? और क्यों?

३. कालिदास यहाँ आकर क्या कहगे?

उत्तर-

1. स्पीति हिमालय की मध्य घाटियों में स्थित है। यहाँ वर्षा ऋतु नहीं होती, क्योंकि यहाँ बादल नहीं पहुँचते। यहाँ कभी-कभी वर्षा होती भी है तो बर्फ की, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है।

2. स्पीति के लोग यह नहीं जानते कि बरसात में नदियाँ बहती हैं, बादल बरसते हैं, मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे-भरे हो जाते हैं, वियोगिनी स्त्रियाँ तड़पती हैं, मोर नाचते हैं तथा बंदर गुफाओं में जा छिपते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहाँ वर्षा न के बराबर ही होती है।

3. कालिदास यहाँ आकर कहेंगे कि अपने बहुत से सुंदर गुणों से सुहानी लगने वाली, स्त्रियों का जी खिलाने वाली, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सखी तथा सभी जीवों का प्राण बनी हुई वर्षा ऋतु आपके मन की सब साधे पूरी करें।

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Chapter 5 गलता लोहा | class11th | Ncert solution For Hindi Aroh

गलता लोहा Class 11 Hindi Aroh NCERT Solutions

गलता लोहा (अभ्यास प्रश्न)

प्रश्न 1. कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विधि का जिक्र आया है?

लेखक ने इस प्रसंग का उल्लेख करके धनराम के किताबी ज्ञान प्राप्त करने में मंदबुद्धि की ओर संकेत किया है। एक बार मास्टर साहब ने धनराम को तेरह का पहाड़ा याद करने के लिए कहा। पूरा दिन याद करने के बाद भी उसे यह पहाड़ा याद नहीं हुआ। मास्टर साहब ने कहा कि “तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है इसमें विद्या का ताप कहाँ लगेगा।” धनराम के पिता की आर्थिक स्थिति धनराम की पढ़ाई कराने की नहीं थी। अतः छोटी सी अवस्था में ही उसे धौंकनी के काम में उलझा दिया। फिर धीरे-धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखाने लगा।

प्रश्न 2. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंदी क्यों नहीं समझता था?

धनराम और मोहन एक ही कक्षा में पढ़ते थे। धनराम ने अपने सहपाठी मोहन से अपने मास्टर के कहने पर बैंत खाए थे। मोहन कक्षा का सबसे होनहार छात्र व पुरोहित खानदान का बेटा था और धनराम निम्न जाति का था। अतः जातिगत हीनता की भावना बचपन से ही उसके मन में बैठी थी इसलिए वह मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझता था।

प्रश्न 3. धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है?

सामान्य तौर पर ब्राह्मण टोली के लोगों का शिल्पकार टोली में उठना-बैठना नहीं होता था। कभी किसी कामकाज के सिलसिले में अगर कोई ब्राह्मण शिल्पकार टोले में आता तो वह खड़े खड़े ही बातचीत करता था। लेकिन मोहन कुछ वर्ष लखनऊ में रहने के बाद शिल्पकार धनराम के पास आकर बहुत लंबे समय तक बैठा, उससे बातचीत की तथा धनराम के साथ भट्टी पर काम भी किया। धनराम को मोहन के इस व्यवहार पर आश्चर्य हुआ।

प्रश्न 4. मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?

मोहन के लखनऊ से आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय कहा है क्योंकि लखनऊ में आने का उसका उद्देश्य अधिक से अधिक विद्या प्राप्त करने का था। किंतु वहाँ रमेश ने उसे किसी अच्छे स्कूल में प्रवेश न दिलाकर एक साधारण से स्कूल में उसका नाम लिखवा दिया। वह घर की औरतों और मोहल्ले की औरतों के कामकाज में हाथ बंटाता था। अतः काम के दबाव के कारण लखनऊ आने का उसका उद्देश्य पूरा नहीं हो सका। अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए वह कारखानों व फैक्ट्रियों के चक्कर काटने लगा। इसीलिए लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय कहा है।

प्रश्न 5. मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने ज़बान की चाबुक कहा है और क्यों?

मास्टर त्रिलोक सिंह ने धनराम पर कटाक्ष करते हुए कहा कि “तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ से लगेगा इसमें।” लेखक ने त्रिलोक सिंह के इस कथन को जुबान की चाबुक कहा है। क्योंकि जब मंदबुद्धि धनराम को तेरह का पहाड़ा याद नहीं हुआ। तब उन्होंने इन कठोर शब्दों में धनराम का अपमान किया। परिणाम स्वरूप यह हुआ कि वह पढ़ाई छोड़कर पिता के काम को सीखने लगा। पिता के देहांत के बाद उसने उनका पूरा काम संभाल लिया।

प्रश्न 6.

( 1 ) बिरादरी का यही सहारा होता है।

(क) किसने किससे कहा?

(ख) किस प्रसंग मं कहा?

(ग) किस आशय से कहा?

(घ) क्या कहानी में यह आशय स्पष्ट हुआ है?

उत्तर-

(क) यह वाक्य मोहन के पिता वंशीधर ने बिरादरी के संपन्न युवक रमेश से कहा।

(ख) जब वंशीधर ने मोहन की पढ़ाई के बारे में चिंता व्यक्त की तो रमेश ने उससे सहानुभूति जताई और उन्हें सुझाव दिया कि वे मोहन को उसके साथ ही लखनऊ भेज दें ताकि वह शहर में रहकर अच्छी तरह पढ़-लिख सकेगा।

(ग) यह कथन रमेश के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए कहा गया। बिरादरी के लोग ही एक-दूसरे की मदद करते हैं।

(घ) कहानी में यह आशय स्पष्ट नहीं हुआ। रमेश अपने वायदे को पूरा नहीं कर पाया। वह मोहन को घरेलू नौकर से अधिक नहीं समझता था। उसने व परिवार ने मोहन का खूब शोषण किया और प्रतिभाशाली विद्यार्थी का भविष्य चौपट कर दिया। अंत में उसे बेरोजगार कर घर वापस भेज दिया।?

(2) उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी-कहानी का यह वाक्य-

(क) किसके लिए कहा गया हैं?

(ख) किस प्रसग में कहा गया हैं?

(ग) यह पात्र-विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है?

उत्तर-

(क) यह वाक्य मोहन के लिए कहा गया है।

(ख) मोहन धनराम की दुकान पर हँसुवे में धार लगवाने आता है। काम पूरा हो जाने के बाद भी वह वहीं बैठा रहता है। धनराम एक मोटी लोहे की छड़ को गरम करके उसका गोल घेरा बनाने का प्रयास कर रहा होता है, परंतु सफल नहीं हो पा रहा है। मोहन ने अपनी जाति की परवाह न करके हथौड़े से नपी-तुली चोट मारकर उसे सुघड़ गोले का रूप दे दिया। अपने सधे हुए अभ्यस्त हाथों का कमाल के उपरांत उसकी आँखों में सर्जक की चमक थी।

(ग) यह मोहन के जाति-निरपेक्ष व्यवहार को बताता है। वह पुरोहित का पुत्र होने के बाद भी अपने बाल सखा धनराम के आफर पर काम करता है। यह कार्य उसकी बेरोजगारी की दशा को भी व्यक्त करता है। वह अपने मित्र से काम न होता देख उसकी मदद के लिए हाथ बढ़ा देता है और काम पूरा कर देता है।

गलता लोहा (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

प्रश्न 1:

‘गलता लोहा’ कहानी का प्रतिपादय स्पष्ट करें।

उत्तर-

गलता लोहा कहानी में समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोणों से टिप्पणी की गई है। यह कहानी लेखक के लेखन में अर्थ की गहराई को दर्शाती है। इस पूरी कहानी में लेखक की कोई मुखर टिप्पणी नहीं है। इसमें एक मेधावी, किंतु निर्धन ब्राहमण युवक मोहन किन परिस्थितियों के चलते उस मनोदशा तक पहुँचता है, जहाँ उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हो जाता है। सामाजिक विधि-निषेधों को ताक पर रखकर वह धनराम लोहार के आफर पर बैठता ही नहीं, उसके काम में भी अपनी कुशलता दिखाता है। मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे के प्रस्तावित करता प्रत होता है मानो लोहा गलकर नया आकार ले रहा हो।

प्रश्न 2:

मोहन के पिता के जीवन-संघर्ष पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर-

मोहन के पिता वंशीधर तिवारी गाँव में पुरोहित का काम करते थे। पूजा-पाठ धार्मिक अनुष्ठान करना करवाना उनका पैतृक पेशा था। वे दूर दूर तक यह कार्य करने जाते थे। इस कार्य से परिवार का गुजारा मुश्किल से होता था। वे अपने हीनहार बेटे को भी नहीं पढ़ा पाए। यजमान उनकी थोड़ी बहुत सहायता कर देते थे।

प्रश्न 3:

कहानी में चित्रित सामाजिक परिस्थितियाँ बताइए।

उत्तर-

कहानी में गाँव के परंपरागत समाज का चित्रण किया गया है। ब्राहमण टोले के लोग स्वयं को श्रेष्ठ समझते थे तथा वे शिल्पकार के टोले में उठते-बैठते नहीं थे। कामकाज के कारण शिल्पकारों के पास जाते थे, परंतु वहाँ बैठते नहीं थे। उनसे बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। मोहन कुछ वर्ष शहर में रहा तथा बेरोजगारी की चोट सही। गाँव में आकर वह इस व्यवस्था को चुनौती देता है।

प्रश्न 4:

वंशीधर को धनराम के शब्द क्यों कचोटते रहे?

उत्तर-

वंशीधर को अपने पुत्र से बड़ी आशाएँ थी। वे उसके अफसर बनकर आने के सपने देखते थे। एक दिन धनराम ने उनसे मोहन के बारे में पूछा तो उन्होंने घास का एक तिनका तोड़कर दाँत खोदते हुए बताया कि उसकी सक्रेटेरियट में नियुक्ति हो गई है। शीघ्र ही वह बड़े पद पर पहुँच जाएगा। धनराम ने उन्हें कहा कि मोहन लला बचपन से ही बड़े बुद्धमान थे। ये शब्द वंशीधर को कचोटते रहे, क्योंकि उन्हें मोहन की वास्तविक स्थिति का पता चल चुका था। लोगों से प्रशंसा सुनकर उन्हें दुःख होता था।

गलता लोहा (पठित गद्यांश)

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

1. लंबे बँटवाले हँसुवे को लेकर वह घर से इस उद्देश्य से निकला था कि अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को काट-छाँटकर साफ़ कर आएगा। बूढे वंशीधर जी के बूते का अब यह सब काम नहीं रहा। यही क्या, जन्म भर जिस पुरोहिताई के बूते पर उन्होंने घर संसार चलाया था, वह भी अब वैसे कहाँ कर पाते हैं। यजमान लोग उनकी निष्ठा और संयम के कारण ही उन पर श्रद्धा रखते हैं लेकिन बुढ़ापे का जर्जर शरीर अब उतना कठिन श्रम और व्रत-उपवास नहीं होल पाता।

प्रश्न

1. मोहन घर से किस उद्देश्य के लिए निकला।

2. वशीधर के लिए कौन सा कार्य कठिन हो गया?

3. यजमान किस पर श्रद्धा रखते हैं तथा क्यों?

उत्तर-

1. मोहन घर से लंबे बँटवाला हँसुआ लेकर निकला। उसका उद्देश्य था कि इससे वह अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियोंनको काट-छाँटकर साफ़ कर देगा।

2. वंशीधर अब बूढ़ा हो गए थे। वे पुरोहिताई का काम तथा खेती से घर का गुजारा करते थे। अधिक उम्र व जर्जर शरीर के कारण अब वे कठिन श्रम व व्रत उपवास को नहीं कर पाते थे।

3 यजमान वंशीधर पर श्रद्धा रखते हैं। वे उनकी निष्ठा व संयम की प्रशंसा करते हैं और इसी कारण उनका मान-सम्मान करते हैं।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

2. मोहन के प्रति थोड़ी-बहुत ईष्य रहने पर भी धनराम प्रारंभ से ही उसके प्रति स्नेह और आदर का भाव रखता था। इसका एक कारण शायद यह था कि बचपन से ही मन में बैठा दी गई जातिगत हीनता के कारण धनराम ने कभी मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा बल्कि वह इसे मोहन का अधिकार समझता रहा था। बीच-बीच में त्रिलोक सिंह मास्टर का यह कहना कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल का और उनका नाम ऊँचा करेगा, धनराम के लिए किसी और तरह से सोचने की गुंजाइश ही नहीं रखता था। और धनराम! वह गाँव के दूसरे खेतिहर या मज़दूर परिवारों के लड़कों की तरह किसी प्रकार तीसरे दर्जे तक ही स्कूल का मुँह देख पाया था।

प्रश्न

1. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वद्वी क्यों नहीं मानता था?

2. त्रिलोक मास्टर ने मोहन के बारे में क्या घोषणा की थी?

3 धनराम की नियति कयौं थे?

उत्तर-

1. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानता था, क्योंकि उसके मन में बचपन से नीची जाति के होने का भाव भर दिया गया था। इसलिए वह मोहन की मार को उसका अधिकार समझता था।

2. त्रिलोक मास्टर ने यह घोषणा की थी कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल व उनका नाम रोशन करेगा।

3 धनराम गाँव के गरीब तबके से संबंधित था। खेतिहर या मज़दूर परिवारों के बच्चों की तरह वह तीसरी कक्षा तक ही पढ़ पाया। उसके बाद वह परंपरागत काम में लग गया। यही उसकी नियति थी।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

3. धनराम की मंदबुद्ध रही हो या मन में बैठा हुआ इ कि पूरे दिन घोटा लगाने पर भी उसे तेरह का पहाड़ा याद नहीं हो पाया था। छुट्टी के समय जब मास्साब ने उससे दुबारा पहाड़ा सुनाने को कहा तो तीसरी सीढ़ी तक पहुँचते-पहुँचते वह फिर लड़खड़ा गया था। लेकिन इस बार मास्टर त्रिलोक सिंह ने उसके लाए हुए बेंत का उपयोग करने की बजाय ज़बान की चाबुक लगा दी थी, तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?’ अपने थैले से पाँच छह दतियाँ निकालकर उन्होंने धनराम को धार लगा लाने के लिए पकड़ा दी थीं। किताबों की विद्या का ताप लगाने की सामध्य धनराम के पिता की नहीं थी। धनराम हाथ-पैर चलाने लायक हुआ ही था कि बाप ने उसे धौंकनी फेंकने या सान लगाने के कामों में उलझाना शुरू कर दिया और फिर धीरे-धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखाने लगा। फर्क इतना ही था कि जहाँ मास्टर त्रिलोक सिंह उसे अपनी पसंद का बेत चुनने की छूट दे देते थे वहाँ गंगाराम इसका चुनाव स्वयं करते थे और ज़रा सी गलती होने पर छड़, बेंत, हत्था जो भी हाथ लग जाता उसी से अपना प्रसाद दे देते। एक दिन गंगाराम अचानक चल बसे तो धनराम ने सहज भाव से उनकी विरासत सँभाल ली और पास-पड़ोस के गाँव वालों को याद नहीं रहा वे कब गंगाराम के आफर को धनराम का आफर कहने लगे थे।

प्रश्न

1. धनराम तेरह का पहाड़ा क्यों नहीं याद कर पाया?

2. ज़बान की चाबुक’ से क्या अभिप्राय है? त्रिलोक सिह ने धनराम को क्या कहा?

3. अध्यापक और लोहार के दड़ देने में क्या अंतर था?

उत्तर-

1. धनराम ने तेरह का पहाड़ा सारे दिन याद किया, परंतु वह इस काम में सफल नहीं हो पाया। इसके दो कारण हो सकते हैं।

(क) धनराम की मंदबुद्ध

(ख) मन में बैठा हुआ पिटाई का डर।

2. इसका अर्थ है-व्यंग्य-वचन। मास्टर साहब ने धनराम को तेरह का पहाड़ा कई बार याद करने को दिया था, परंतु वह कभी याद नहीं कर पाया। उसे कई बार सजा मिली। इस बार उन्होंने उस पर व्यंग्य कसा कि तेरे दिमाग में लोहा भरा है। तुझे पढ़ाई नहीं आएगी।

3. याद न करने पर मास्टर त्रिलोक बच्चे को अपनी पसंद का बेत चुनने की छूट देते थे, जबकि लोहार गंगाराम सज़ा देने का हथियार स्वयं ही चुनते थे। गलती होने पर वे छड़, बेंत, हत्था-जो भी हाथ लगता, उससे सज़ा देते।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

4. औसत दफ़्तरी बड़े बाबू की हैसियत वाले रमेश के लिए सोहन को अपनी भाई-बिरादर बतलाना अपने सम्मान के विरुद्ध जान पड़ता था और उसे घरेलू नौकर से अधिक हैसियत ५ह नहीं देता था, इस बात को मोहन भी समझने लगा था। थोड़ी बहुत हीला हवाली करने के बाद रमेश ने निकट के ही एक साधारण रो रूकुल में उसका नाम लिखवा दिया। लेकिन एकदम नए वातावरण और रात-दिन के काम के बोझ के कारण गाँव का वह मेधावी छात्र शहर के स्कूली जीवन में अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया। उसका जीवन एक बंधी बँधाई लीक पर। चलता रहा। साल में एक बार गर्मियों की छुट्टी में गाँव जाने का मौक भी तभी मिलता जब रमेश या उसके घर का कोई प्राणी गाँव जाने वाला होता वरना उन छुट्टयों को भी अगले दरजे की तैयारी के नाम पर उसे शहर में ही गुज़ार देना पड़ता था। अगले दरजे की तैयारी तो बहाना भर थी, सवाल रमेश और उसकी गृहस्थी की सुविधा-असुविधा का था। मोहन ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था, क्योंकि और कोई चारा भी नहीं था। घरवालों को अपनी वास्तविक स्थिति बतलाकर वह दुखी नहीं करना चाहता था। वंशीधर उसके सुनहरे भविष्य के सपने देख रहे थे।

प्रश्न

1. रमेश मोहन को किस हैसियत में रखता था तथा क्यों?

2. मोहन स्कूल में अपनी पहचान क्यों नहीं बना पाया?

3. मोहन ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया। कर्यो?

उत्तर-

1. रमेश मोहन को घरेलू नौकर की हैसियत में रखता था। इसका कारण यह था कि रमेश औसत दप्तरी बड़े बाबू की हैसियत का था| अतः वह मोहन को अपना भाई-बिरादर बताकर अपना अपमान नहीं करवाना चाहता था।

2. रमेश ने काफी कहने के बाद मोहन का एक साधारण स्कूल में दाखिला करवा दिया। वह मेधावी था, परंतु घर के अत्यधिक काम और नए वातावरण के कारण वह अपनी प्रतिभा नहीं दिखा पाया। अतः उसकी पहचान स्कूल में नहीं बन पाई।

3. मोहन को पढ़ने के लिए शहर भेजा गया था, परंतु वहाँ पर उसे घरेलू नौकर की तरह रखा गया। उसे अपने घर की दीन दशा का पता था। वह अपनी वास्तविक स्थिति घर वालों को बताकर दुखी नहीं करना चाहता था। अतः उसने परिस्थितियों से समझौता कर लिया।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

5. लोहे की एक मोटी छड़ को भट्टी में गलाकर धनराम गोलाई में मोड़ने की कोशिश कर रहा था। एक हाथ से सँडसी पकड़कर जब वह दूसरे हाथ से हथौड़े की चोट मारता तो निहाई पर ठीक घाट में सिरा न फैसने के कारण लोहा उचित ढंग से मुड़ नहीं पा रहा था। मोहन कुछ देर तक उसे काम करते हुए देखता रहा फिर जैसे अपना संकोच त्यागकर उसने दूसरी पकड़ से लोहे को स्थिर कर लिया और धनराम के हाथ से हथौड़ा लेकर नापी-तुली चोट मारते, अभ्यस्त हार्थों से धौंकनी फेंककर लोहे को दुबारा भट्टी में गरम करते और फिर निहाई पर रखकर उसे ठोकते पीटते सुघड़ गोले का रूप दे डाला।

प्रश्न

1. मोहन धनराम के आफर क्यों गया था? उस समय धनराम किस काम में तल्लीन था?

2. धनराम अपने काम में सफल क्यों नहीं हो रहा था?

3. मोहन ने धनराम का अधूरा काम कैसे पूरा किया?

उत्तर-

1. मोहन धनराम के आफर पर अपने हँसुवे की धार तेज़ करवाने के लिए गया था। उस समय धनराम लोहे की एक मोटी छड़ को भट्टी में गलाकर उसे गोलाई में मोड़ने का प्रयास कर रहा था।

2. धनराम अपने काम में इसलिए सफल नहीं हो पा रहा था, क्योंकि वह एक हाथ से सँड़सी पकड़कर दूसरे हाथ से हथौड़े की चोट मारता तो निहाई पर ठीक घाट में सिरा न फैसने का कारण लोहा सही तरीके से नहीं मुड़ रहा था।

3, मोहन कुछ देर तक धनराम के काम को देखता रहा। अचानक वह उठा और दूसरी पकड़ से लोहे को स्थिर करके धनराम का हथौड़ा लेकर नपी तुली चोट की। उसके बाद उसने स्वयं धौंकनी फूककर लोहे को दोबारा भट्टी में गरम किया और फिर निहाई पर रखकर उसे ठोक-पीटकर सुघड़ गोले में बदल दिया।

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