Chapter 14 वे आँखें :सुमित्रानंदन पंत | class 11th | revision notes hindi Aroh

हिंदी Notes Class 11 Hindi Chapter 14 वे आँखें

कविता का सारांश

यह कविता पंत जी के प्रगतिशील दौर की कविता है। इसमें विकास की विरोधाभासी अवधारणाओं पर करारा प्रहार किया गया है। युग-युग से शोषण के शिकार किसान का जीवन कवि को आहत करता है। दुखद बात यह है कि स्वाधीन भारत में भी किसानों को केंद्र में रखकर व्यवस्था ने निर्णायक हस्तक्षेप नहीं किया। यह कविता दुश्चक्र में फैसे किसानों के व्यक्तिगत एवं पारिवारिक दुखों की परतों को खोलती है और स्पष्ट रूप से विभाजित समाज की वर्गीय चेतना का खाका प्रस्तुत करती है।

कवि कहता है कि किसान की अंधकार की गुफा के समान आँखों में दुख की पीड़ा भरी हुई है। इन आँखों को देखने से डर लगता है। वह किसान पहले स्वतंत्र था। उसकी आँखों में अभिमान झलकता था। आज सारे संसार ने उसे अकेला छोड़ दिया है। उसकी आँखों में लहलहाते खेत झलकते हैं जिनसे अब उसे बेदखल कर दिया गया है। उसे अपने बेटे की याद आती है जिसे जमींदार के कारिंदों ने लाठियों से पीटकर मार डाला। कर्ज के कारण उसका घर बिक गया। महाजन ने ब्याज की कौड़ी नहीं छोड़ी तथा उसके बैलों की जोड़ी भी नीलाम कर दी। उसकी उजरी गाय भी अब उसके पास नहीं है।

किसान की पत्नी दवा के बिना मर गई और देखभाल के बिना दुधर्मुही बच्ची भी दो दिन बाद मर गई। उसके घर में बेटे की विधवा पत्नी थी, परंतु कोतवाल ने उसे बुला लिया। उसने कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी। किसान को पत्नी का नहीं, जवान लड़के की याद बहुत पीड़ा देती थी। जब वह पुराने सुखों को याद करता है तो आँखों में चमक आ जाती है, परंतु अगले ही क्षण सच्चाई के धरातल पर आकर पथरा जाती है।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. अधिकार की गुहा सरीखी
उन अखिों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुख का नीरव रांदन!

वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा अखिों में इसका,
छोड़ उसे मंझधार आज
संसार कगार सदृश बह खिसका।

शब्दार्थ

गुहा-गुफा। सरीखी-समान। दारुण-निर्दय, कठोर। दैन्य-दीनता। नीरव-शब्द रहित। रोदन-रोना। स्वाधीन-स्वतंत्र। अभिमान-गर्व। मैंझधार-समस्याओं के बीच। कगार-किनारा। सदृश-समान।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि शोषित किसान की गड्ढों में धैसी हुई आँखें अँधेरी गुफा के समान दिखती हैं जिनसे मन में अज्ञात भय उत्पन्न होता है। ऐसा लगता है कि उनमें बहुत दूर तक कोई कष्टप्रद दयनीयता व दुख का मौन रुदन भरा हुआ है। उसकी आँखों में भयानक गरीबी का दुख व्याप्त है। किसान का अतीत अच्छा था। वह सदैव स्वाधीन था। उसके पास अपने खेत थे। उसकी आँखों में स्वाभिमान झलकता था, परंतु आज वह अकेला पड़ गया है। संसार ने उसे समस्याओं के बीच में छोड़कर किनारे की तरह बहकर उससे दूर चला गया है।

विशेष-
1. किसान की उपेक्षा का मार्मिक चित्रण है।
2. ‘अंधकार की गुह गुहा सरीखी’ में उपमा अलंकर है।
3. ‘दारुण दैन्य दुख’ में अनुप्रास अलंकार है।
4. ‘ कगार सदृश ‘ में उपमा अलंकार।
5. भाषा में लाक्षणिकता है।
6. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।
7. भाषा में प्रवाह है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. कवि किसके बारे में बात कर रहा है?
2. कवि को किससे डर लगता है तथा क्यों?
3. पहले किसान की दशा कैसी थी? अब उसमें क्या परिवर्तन आ गया है?
4. किसान की आँखों के विषय में कवि क्या कहता है?

उत्तर-

1. कवि उस शोषित किसान के बारे में बात कर रहा है जिसकी आँखें गड्ढों में धंस चुकी हैं और वे अँधेरी गुफा के समान डरावनी प्रतीत हो रही हैं।
2. कवि को किसान की आँखों से डर लगता है, क्योंकि उनमें गहरी निराशा, हताशा व उदासीनता भरी है।
3. पहले किसान की दशा अच्छी थी। वह अपनी खेती का मालिक था। उसमें आत्मगर्व भरा था। आज उसकी हालत खराब है। उसकी दीन दशा के कारण समाज ने उससे मुँह मोड़ लिया है। उसका साथ देने वाला कोई नहीं है।
4. कवि कहता है कि किसान की आँखें अँधेरी गुफा के समान दिखती हैं। इनको देखने से मन में अज्ञात भय उत्पन्न होता है। ऐसा लगता है जैसे उनमें बहुत दूर तक कष्टप्रद दयनीयता का भाव व दुख का रुदन भरा पड़ा है। कुल मिलाकर कवि का मानना है कि किसान की आँखों में भयानक गरीबी का दुख व्याप्त है।

2. लहराते वे खेत द्वगों में
हुआ बेदखल वह अब जिनसे,
हसती थी उसके जीवन की
हरियाली जिनके तृन-तृन से !

आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी अखिों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा।

शब्दार्थ

लहराते-लहलहाते, झूमते। दृग-ऑख। बेदखल-अधिकार से वचित। तृन-तिनका। आँखों का तारा-बहुत प्यारा। कारकुन-जमींदार के कारिंदे।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है।

व्याख्या-किसान अपने अतीत की याद करता है। उसकी आँखों के समक्ष खेत लहलहाते नजर आते हैं जबकि अब उन खेतों से उसे बेदखल कर दिया गया है अर्थात् जमींदारों ने उसकी जमीन हड़प ली है। कभी इन खेतों के तिनके-तिनके में कभी हरियाली लहराती थी तथा उसके जीवन को सुखमय बनाती थी। आज वह सब कुछ खत्म हो गया है।

किसान की आँखों में उसके प्यारे पुत्र का चित्र घूमता रहता है। उसे वह दृश्य याद आता है। जब उसके जवान बेटे को जमींदार के कारिंदों ने लाठियों से पीट-पीटकर मार डाला था। यह बड़े दुख की बात थी।

विशेष-
1. इन पंक्तियों में जमींदार के अत्याचारों का वर्णन है।
2. ‘लहराते खेत’ तथा जमींदारों की लाठी से पिटकर मरे पुत्र में दृश्य बिंब साकार हो उठता है।
3. ‘तृन-तृन’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
4. ‘जीवन की हरियाली’ में रूपक अलंकार है।
5. ‘आँखों में घूमना’, ‘आँखों का तारा’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
6. भाषा में लाक्षणिकता है।
7. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. ‘वह’ कौन है? उसके साथ क्या हुआ था?
2. खेती के कारण किसान का जीवन कैसा था?
3. ‘अखों का तारा’ कौन था? वह किसान की आँखों के सामने क्यों घूमता है?
4. कारकुनों ने क्या किया था?

उत्तर-
1. ‘वह’ भारतीय किसान है। उसकी जमीन को जमींदारों ने कानून का सहारा लेकर हड़प लिया था।
2. खेती के कारण किसान का जीवन खुशहाल था। खेतों में हरियाली लहराती थी। किसान की जरूरतें पूरी हो जाती थीं।
3. ‘आँखों का तारा’ किसान का जवान बेटा था। उसकी हत्या जमींदार के कारिंदों ने पीट-पीटकर कर दी थी। किसान की आँखों में वह दृश्य घूमता रहता है।
4. कारकुन जमींदार के कारिंदे होते थे। वे जमीन पर कब्जा करने का काम करते थे। उन्होंने किसान के जवान बेटे की लाठियों से पीट-पीटकर हत्या की थी।

3. बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कड़ी छोड़ी,
रह-रह आँखों में चुभती वह
कुक हुई बरधों की जोड़ी !

उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती !

शब्दार्थ

महाजन-साहूकार, ऋणदाता। कौड़ी-एक पैसा। कुर्क-नीलाम। बरधों की जोड़ी-बैलों की जोड़ी। उजरी-उजली। सिवा-बिना। दुहाने-दूध दुहने के लिए। अह-आह। आँखों में नाचना-बार-बार सामने आना।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे ऑखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि किसान की दयनीय दशा का वर्णन करता है। किसान कर्ज में डूब गया। महाजन ने धन व ब्याज की वसूली के लिए किसान की स्थायी संपत्ति को नीलाम कर दिया। उसे घर से बेघर कर दिया, परंतु अपने ऋण के ब्याज की पाई-पाई चुका ली। किसान को सर्वाधिक पीड़ा तब हुई जब बैलों की जोड़ी को भी नीलाम कर दिया गया। यह बात उसकी आँखों में आज भी चुभती है। उसके रोजगार का साधन छीन लिया गया।

किसान के पास दुधारू गाय उजली (जिसे वह प्यार से उजरी कहता था) थी वह उसके सिवाय किसी और को अपने पास दूध दुहने नहीं आने देती थी। मजबूरी के कारण किसान को उसे बेचना पड़ा। इन सब बातों को याद करके किसान बहुत व्यथित होता है। ये सारे दृश्य उसकी आँखों के सामने नाचते हैं। उसकी सुखभरी खेती उजड़ चुकी है, अत: वह निराश व हताश है।

विशेष-
1. किसान पर महाजनों के अत्याचारों का सजीव वर्णन है।
2. कुकीं व गरीबी के कारण बैल व गाय बेचने का दृश्य कारुणिक है।
3. ‘घर-द्वार’, ‘की कौड़ी’, ‘ने न’, ‘किसे कब’ में अनुप्रास अलंकार है।
4. ‘रह-रह’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
5. ‘आँखों में चुभना’, ‘आँखों में नाचना’ आदि मुहावरों का सार्थक प्रयोग है।
6. देशज शब्द ‘बरधों’ का सटीक प्रयोग है।
7. ग्रामीण परिवेश साकार हो उठा है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. महाजन ने किसान पर क्या-क्या अत्याचार किए?
2. महाजन ने बैलों की जोड़ी का क्या किया?
3. उजरी कौन थी? किसान उसे इतना याद क्यों करता है?
4. किसान की सुख की खेती क्यों उजड़ गई?

उत्तर-
1. महाजन ने किसान से अपने ऋण की वसूली के लिए उसके खेत, घर तक नीलाम कर दिए। ब्याज की वसूली के लिए उसने किसान को बेघर कर दिया तथा कौड़ी-कौड़ी वसूल ली।
2. महाजन ने कर्ज न चुका पाने की दशा में मजबूर किसान के बैलों की जोड़ी को नीलाम करवा दिया। यह बात किसान के दिल को कचोटती है।
3. उजरी किसान की प्रिय दुधारू गाय थी। वह किसान के अतिरिक्त किसी दूसरे व्यक्ति को अपने पास दूध दुहने के लिए आने नहीं देती थी। इस कारण किसान को उसकी याद बहुत आती है।
4. किसान ने लगान चुकाने के लिए महाजन से कर्ज लिया। इसके बाद वह अपना कर्ज चुका नहीं पाया। उसका सब कुछ नीलाम कर दिया गया, इसलिए उसके सुख की खेती उजड़ गई।

4. बिना दवा-दपन के घरनी
स्वरगा चली,-अखं आती भर,
देख-रेख के बिना दुधमुही
बिटिया दो दिन बाद गई मर!

घर में विधवा रही पताहू,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
पकडु मॅाया, कोतवाल ने,
डूब कुएँ में मरी एक दिन।

शब्दार्थ

दवा-दर्पन-दवा आदि। घरनी-पत्नी। स्वरग-स्वर्ग। दुधमुँही-नन्हीं। पतोहू-पुत्रवधू। लछमी-लक्ष्मी। घातिन-मारने वाली।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है।

व्याख्या-किसान की पारिवारिक स्थिति का वर्णन करते हुए कवि बताता है कि उसकी पत्नी दवा-दारू के अभाव में मर गई। उसके पास संसाधनों की इतनी कमी थी कि वह उसका इलाज भी नहीं करा सका। यह सोचकर उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। पत्नी की मृत्यु के बाद उस पर आश्रित किसान की नन्हीं बच्ची भी दो दिन बाद मर गई।

किसान के घर में उसकी विधवा पुत्रवधू बची हुई थी। उसका नाम लक्ष्मी था, परंतु उसे पति को मारने वाला समझा जाता था। समाज में पति की मृत्यु होने पर उसकी पत्नी को हत्या का जिम्मेदार मान लिया जाता है। एक दिन कोतवाल ने उसे बुलवाकर उसकी इज्जत लूटी। लाज के कारण उसने कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली। इस प्रकार से किसान का पूरा परिवार ही बिखर गया था।

विशेष-
1. किसान की गरीबी, शोषण व लाचारी का सजीव वर्णन है।
2. ‘आँखें भर आना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
3. घरनी, स्वरग, लछमी आदि तद्भव शब्दों का प्रयोग भाषा को सहजता प्रदान करता है।
4. अनुप्रास अलंकार है-दवा-दर्पन, दो दिन।
5. पति की हत्या के बाद नारी के प्रति समाज के कटु दृष्टिकोण का पता चलता है।
6. खड़ी बोली है।
7. पुलिस के अत्याचार का वर्णन है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. किसान की पत्नी व बच्ची की मृत्यु का वक्या कारण था?
2. किसान की आँखें भर आने का क्या कारण था?
3. किसान की पतोहू को क्या कहा जाता था? क्यों?
4. किसान की पतोहू ने आत्महत्या क्यों की?

उत्तर-
1. किसान की आर्थिक हालत दयनीय थी। उसकी पत्नी बीमार थी। वह उसका इलाज नहीं करवा पाया। इस कारण उसकी मृत्यु हो गई। उसकी बेटी नवजात थी जो माँ के दूध पर आश्रित थी। माँ के मरने के बाद वह भी दो दिन बाद मर गई।
2. आर्थिक अभावों की वजह से किसान अपनी पत्नी की बीमारी का इलाज नहीं कर पाया, जिसकी वजह से वह मर गई। अपनी इस विवशता को सोचकर उसकी आँखें भर आती हैं।
3. किसान की पतोहू को ‘पति घातिन’ कहा जाता था, क्योंकि उसके पति की हत्या कारकूनों ने कर दी थी। समाज इस हत्या के लिए पतोहू को दोषी मानता है।
4. किसान की पुत्रवधू पर कोतवाल की बुरी नीयत थी। उसने उसे थाने में बुलवाया तथा उसका शारीरिक शोषण किया। इस कलंक व विवशता के कारण उसने कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली।

5. खेर, पैर की जूती, जोरू
न सही एक, दूसरी आती,
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लौटते, फटती छाती।

पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक हैं लाती,
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोंक सदृश बन जाती।

शब्दार्थ

पैर की जूती-उपेक्षित। जोरू-पत्नी। सुधकर-याद करना। साँप लोटते-अत्यधिक व्याकुल होना। फटती छाती-बहुत दुख होना। स्मृति-याद। चमक लाना-खुशी लाना। चितवन-दृष्टि। शून्य-आकाश। सदृश-समान।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे ऑखें’ से लिया गया है इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है।

व्याख्या-किसान को अपनी पत्नी की मृत्यु पर विशेष शोक नहीं है। वह उसे पैर की जूती के समान समझता है। यदि एक नहीं रहती तो दूसरी से विवाह करके लाया जा सकता है, परंतु उसे अपने जवान बेटे की याद आने पर बहुत कष्ट होता है। उसकी छाती पर साँप लौट जाते हैं तथा छाती फटने लगती है। उसे बेटे की मृत्यु का असहनीय कष्ट है।
किसान जब पिछले खुशहाल जीवन को याद करता है तो उसकी आँखों में एक क्षण के लिए प्रसन्नता की चमक आती है, परंतु अगले ही क्षण जब वह सच्चाई के धरातल पर सोचता है, वर्तमान में झाँकता है तो उसकी नजर शून्य में अटककर गड़ जाती है, वह विचार शून्य होकर टकटकी लगाकर देखता है और उसकी नजर तीखी नोक के समान चुभने वाली हो जाती है।

विशेष-
1. पत्नी के प्रति किसान की मानसिकता घटिया है। वह पुत्र को अधिक महत्त्व देता है।
2. साँप लोटना, छाती फटना, पैर की जूती आदि मुहावरों का सजीव प्रयोग है।
3. ‘तीखी नोक सदृश’ में उपमा अलंकार है।
4. खड़ी बोली है।
5. ग्रामीण परिवेश का चित्रण है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. पैर की जूती किसे कहा गया है? इससे क्या सिदध होता है?
2. किसान के मन में सर्वाधिक दुख किसका है?
3. किसान की आँखों में चमक आने का कारण बताइए।
4. वास्तविकता का आभास होने पर किसान को कैसा अनुभव होता है?

उत्तर-
1. प्रस्तुत काव्यांश में पत्नी को ‘पैर की जूती’ कहा गया है। इससे यह सिद्ध होता है कि तत्कालीन समाज में स्त्रियों की दश्ग बहुत दयनीय थी।
2. किसान के मन में सर्वाधिक दुख अपने जवान बेटे की मृत्यु का है। उसकी याद आते ही उसकी छाती पर साँप लोटने लगते हैं। वह ही खेती में उसका एकमात्र सहारा था तथा आँखों का तारा था।
3. जब किसान अपने पुराने दिनों की याद करता है तो उसकी आँखों में चमक आ जाती है। लहलहाते खेत, घर-द्वार, बैल, गाय, जवान बेटा आदि सभी सुखदायी थे।
4. वास्तविकता का आभास होने पर किसान को सुखद यादें तीखी नोक के समान उसके दिल में चुभने लगती हैं। उसके मन में आक्रोश उमड़ आता है।

● काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न

अंधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुख की नीरव रोदन।

वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा आँखों में इसका,
छोड़ उसे माँझधार आज
संसार कगार सदृश बह खिसका।

प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
2. शिल्प-सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-
1. इस अंश में कवि ने किसान की दयनीय दशा का वर्णन किया है। वह हताश व उदासीन है। समाज द्वारा उसकी उपेक्षा करना सर्वथा अनुचित है।
2. ● ‘अंधकार की गुहा सरीखी’ में उपमा
● ‘दारुण दैन्य दुख’ में अनुप्रास अलंकार है। अलंकार है।
● ‘संसार कगार सदृश’ में उपमा अलंकार है।
● संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग है।
● करुण रस है।
● भाषा में लाक्षणिकता है।
● ‘संसार’ में विशेषण विपर्यय अलंकार है।

2. लहराते वे खेत द्वगों में
हुआ बदलखल वह अब जिनसे,
हँसती थी उसके जीवन की
गया जवानी ही में मारा।

आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी अखिों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
हरियाली जिनके तृन-तृन से।

प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
2. शिल्प–सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-
1. इन पंक्तियों में जमींदारों के अत्याचारों का सजीव वर्णन है। जमींदार किसानों की जमीन पर कब्जा करते हैं तथा विरोध करने पर युवाओं की हत्या तक कर दी जाती है।
2. ● ‘तृन-तृन’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
● ‘जीवन की हरियाली’ में रूपक अलंकार है।
● ‘हँसना’ प्रसन्नता का परिचायक है।
● भाषा में लाक्षणिकता है।
● ‘आँखों का तारा’ व ‘आँखों में घूमना’ मुहावरे
● कारकूनों द्वारा लाठी से मारे जाने से दृश्य बिंब का सशक्त प्रयोग है। साकार हुआ है।

3.बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कड़ी छोड़ी,
रह-रह आँखों में चुभती वह अह,
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी।

उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अखिों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती।

प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
2. शिल्प–सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-
1. इस काव्यांश में महाजनी शोषण का मर्मस्पर्शी चित्र है। किसान से कर्ज वसूली के लिए उसके खेत, घर, आदि बिकवा दिया जाता है। ब्याज की वसूली के लिए बैल तक नीलाम करवाए जाते हैं।
2. ● बैलों की कुकी जैसे दृश्य कारुणिक हैं।
● ‘किसे कब’ में अनुप्रास अलंकार है।
● ‘रह-रह’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार हैं।
● ‘बरधों’ शब्द से ग्रामीण परिवेश प्रस्तुत हो जाता है।
● खड़ी बोली में प्रभावी अभिव्यक्ति है।
● मिश्रित शब्दावली है।
● ‘उजरी ….. देती?’ में प्रश्न अलंकार है।
● ‘आँखों में चुभना’ व ‘आँखों में नाचना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।

4. बिना दवा-दपन के घरनी
स्वरग चली, अखें आती भर,
देख-रेख के बिना दुधर्मुही
बिटिया दो दिन बाद गई मर।

घर में विधवा रही पतोहू,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
पकड़ माया, कोतवाल ने,
डूब कुएँ में मरी एक दिन।

प्रश्न
भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
शिल्प–सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-
1. इस काव्यांश में किसान की फटेहाली, विवशता व शोषण का सजीव चित्रण है। अभाव के कारण पत्नी व बच्ची की मृत्यु, पुलिस द्वारा पुत्रवधू का शोषण होना, फिर उसका आत्महत्या करना आदि परिस्थितियाँ किसान की लाचारी को व्यक्त करती हैं। पति की मृत्यु के लिए पत्नी को दोषी मानना भी समाज की रुग्ण मानसिकता का परिचायक है।
2. ● करुण रस की अभिव्यक्ति हुई है।
● ‘आँखें भर आना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
● खड़ी बोली है।
● अनुप्रास अलंकार है-दवा-दर्पन, दो दिन, में मरी। भाषा प्रवाहमयी है।

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Chapter 13 : पथिक, रामनरेश त्रिपाठी | class 11th | revision notes hindi Aroh

हिन्दी Notes Class 11 Hindi Chapter 13 पथिक

पाठ का साराशा

‘पथिक’ कविता में दुनिया के दुखों से विरक्त काव्य नायक पथिक की प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने की इच्छा का वर्णन किया है। यहाँ वह किसी साधु द्वारा संदेश ग्रहण करके देशसेवा का व्रत लेता है। राजा उसे मृत्युदंड देता है, परंतु उसकी कीर्ति समाज में बनी रहती है।

सागर के किनारे खड़ा पथिक, उसके सौंदर्य पर मुग्ध है। प्रकृति के इस अद्भुत सौंदर्य को वह मधुर मनोहर प्रेम कहानी की तरह पाना चाहता है। प्रकृति के प्रति पथिक का यह प्रेम उसे अपनी पत्नी के प्रेम से दूर ले जाता है। इस रचना में प्रेम, भाषा व कल्पना का अद्भुत संयोग मिलता है।

यह ‘पथिक’ खंडकाव्य का अंश है। इसमें कवि ने प्रकृति के सुंदर रूप का चित्रण किया है। पथिक सागर के किनारे खड़ा है। वह आसमान में मेघमाला और नीचे नीले-समुद्र को देखकर बादलों पर बैठकर विचरण करना चाहता है। वह लहरों पर बैठकर समुद्र का कोना-कोना देखना चाहता है। समुद्र तल से आते हए सूरज को देखकर कवि कल्पना करता है मानो सूर्य की किरणों ने लक्ष्मी को लाने के लिए सोने की सड़क बना दी हो। वह सागर की मजबूत, भयहीन व धीर गर्जनाओं पर मुग्ध है तथा असीम आनंद पाता है। चंद्रमा के उदय के बाद आकाश में तारे छिटक जाते हैं और कवि उस सौंदर्य पर मुग्ध है। चंद्रमा की रोशनी से वृक्ष अलंकृत से हो जाते हैं, पक्षी चहक उठते हैं, फूल महक उठते हैं तथा बादल बरसने लगते हैं। पथिक भी भावुक होकर आँसू बहाने लगता है। पथिक लहर, समुद्र, तट, पत्ते, वृक्ष पहाड़ आदि सबको पाकर सुख व आनंद का जीवन जीना चाहता है।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही हैं नभ में वारिद-माला।
नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है।
घन पर बैठ, बीच में बिचरूं यही चाहता मन है।

रत्नाकर गजन करता है, मलयानिल बहता है।
हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता हैं।
इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के-
कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरू जी भर के।

शब्दार्थ

प्रतिक्षण-हर समय। नूतन-नया। वेश-रूप। रंग-बिरंग-रंगीन। निराला-अनोखा। रवि-सूर्य। सम्मुख-सामने। थिरक-नाच। नभ-आकाश। वारिद-माला-गिरती हुई वर्षा की लड़ियाँ। नील-नीला। मनोहर-सुंदर। गगन-आकाश। घन-बादल। बिचरूं-विचरण करूं। रत्नाकर-समुद्र। मलयानिल-मलय पर्वत से आने वाली सुगंधित हवा। हौसला-उत्साह। विस्तृत-फैली हुई। महिमामय-महान।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘पथिक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता रामनरेश त्रिपाठी हैं। इस कविता में पथिक दुनिया के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसना चाहता है। कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताता है।

व्याख्या-प्रस्तुत कविता में पथिक कहता है कि आकाश में सूर्य के सामने बादलों का समूह हर क्षण नए रूप बनाकर निराले रंग में नाचता प्रतीत हो रहा है। नीचे नीला समुद्र है तथा ऊपर मन को हरने वाला नीला आकाश है। ऐसे में पथिक का मन चाहता है कि वह मेघ पर बैठकर इन दोनों के बीच विचरण करे।

पथिक कहता है कि उसके सामने समुद्र गर्जना कर रहा है और मलय पर्वत स आने वाली सुगंधित हवाएँ भी बह रही हैं। वह प्रिय को संबोधित करता है कि इन दृश्यों से मेरे मन में उत्साह भरा रहता है। मैं भी चाहता हूँ कि लहरों पर बैठकर समुद्र के इस विशालकाय व महिमा से युक्त घर के कोने-कोने को देखें।

विशेष-

1. कवि ने प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है।
2. बादलों द्वारा नृत्य करने में मानवीकरण अलंकार है।
3. अनुप्रास अलंकार की छटा है।
4. संस्कृतनिष्ठ शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
5. मुक्त छंद है।
6. ‘कोने-कोने’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
7. संबोधन शैली है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. कवि किस दृश्य पर मुग्ध है?
2. बादलों को देखकर कवि का मन क्या करता है?
3. समुद्र के बारे में कवि क्या कहता है?
4. ‘कोने-कोने ’जी भर के।” पंक्ति का आशय बताइए।

उत्तर-
1. कवि सूरज की धूप व बादलों की लुका-छिपी पर मुग्ध है। आकाश भी नीला है तथा मनोहर समुद्र भी नीला और विस्तृत है।
2. बादलों को देखकर कवि का मन करता है कि वह बादल पर बैठकर नीले आकाश और समुद्र के मध्य विचरण करे।
3. समुद्र के बारे में पथिक के माध्यम से कवि बताता है कि यह रत्नों से भरा हुआ है। यहाँ सुगंधित हवा बह रही है तथा समुद्र गर्जना कर रहा है।
4. इसका अर्थ है कि कवि लहरों पर बैठकर महान तथा दूर-दूर तक फैले सागर का कोना-कोना घूमकर उसके अनुपम सौंदर्य को देखना चाहता है।
2.

निकल रहा हैं जलनिधि-तल पर दिनकर-बिब अधूरा।
कमला के कचन-मदिर का मानों कात कैंगूरा।
लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी।

निर्भय, दृढ़, गभीर भाव से गरज रहा सागर है।
लहरों पर लहरों का आना सुदर, अति सुदर हैं।
कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी?
अनुभव करो हृदय से, ह अनुराग-भरी कल्याणी।

शब्दार्थ

जलनिधि-सागर। दिनकर-सूर्य। बिंब-छवि। कमला-लक्ष्मी। कंचन-सोना। कांत-सुंदर। कैंगूरा-महल का ऊपरी भाग, गुंबद, बूर्ज। निज-अपना। असवारी-सवारी। रत्नाकर-समुद्र। स्वर्ण-सोना। निर्भय-निडर। दृढ़-मजबूत। गंभीर-गहरा। अनुराग-प्रेम। कल्याणी-मंगलकारिणी।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘पथिक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता रामनरेश त्रिपाठी हैं। इस कविता में पथिक दुनिया के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसना चाहता है। कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताता है।

व्याख्या-पथिक सूर्योदय का वर्णन करते हुए कहता है कि समुद्र की सतह से सूर्य का बिंब अधूरा निकल रहा है अर्थात् आधा सूर्य जल के अंदर है तथा आधा बाहर। ऐसा लगता है मानो यह लक्ष्मी देवी के स्वर्ण-मंदिर का चमकता हुआ कैंगूरा हो। पथिक को लगता है कि समुद्र ने अपनी पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की सवारी लाने के लिए अति प्यारी सोने की सड़क बना दी हो। सुबह सूर्य का प्रकाश समुद्र तल पर सुनहरी सड़क का दृश्य प्रस्तुत करता है।

समुद्र भयरहित, मजबूत व गंभीर भाव से गरज रहा है। उस पर लहरें एक के बाद एक आ रही हैं, जो बहुत सुंदर हैं। वह अपनी प्रिया को कहता है कि हे प्रेममयी मंगलकारी प्रिया! तुम अपने हृदय से इस सौंदर्य का अनुभव करो और बताओ कि यहाँ जो सुख मिल रहा है, क्या उससे अधिक सुख कहीं मिल सकता है? अर्थात् इस सौंदर्य का कोई मुकाबला नहीं है।

विशेष-

1. कवि ने सूर्योदय का अद्भुत वर्णन किया है; जैसे-स्वर्णमार्ग की कल्पना।
2. कवि प्रकृति-सौंदर्य व प्रिया-प्रेम में प्रकृति को सुंदर मानता है।
3. कमला ….. कँगूरा’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
4. अनुप्रास अलंकार की छटा है।
5. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।
6. मुक्त छद है।
7. प्रश्न अलंकार है।
8. भाषा प्रवाहमयी है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. सूर्योदय देखकर कवि को क्या लगता है?
2. सागर के विषय में पथिक क्या बताता है?
3. पथिक अपनी प्रिया को कैसे संबोधित करता है तथा उसे क्या बताना चाहता है?
4. ‘कमला का कचन-मंदिर’ किसे कहा गया है?

उत्तर-
1. सूर्योदय का दृश्य देखकर कवि को लगता है कि समुद्र तल पर सूर्य का बिंब अधूरा निकल रहा है अर्थात् आधा सूर्य जल के अंदर है तथा आधा बाहर, मानो यह लक्ष्मी देवी के स्वर्ण-मंदिर का चमकता हुआ कैंगूरा हो।
2. सागर के विषय में पथिक बताता है कि वह निर्भय होकर मजबूती के साथ गंभीर भाव से गरज रहा है, उस पर लहरों का आना-जाना बहुत सुंदर लगता है।
3. पथिक ने अपनी प्रिया को ‘अनुराग भरी कल्याणी’ कहकर संबोधित किया है। वह उसे बताना चाहता है कि प्रकृति-सौंदर्य असीम है। उसका कोई मुकाबला नहीं है।
4. कमला का कंचन-मंदिर उदय होते सूर्य का छोटा-अंश है। यह कवि की नूतन कल्पना है। लक्ष्मी का निवास सागर ही है जहाँ से सूरज निकल रहा है।

3. जब गभीर तम अद्ध-निशा में जग को ढक लता है।
अतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता हैं।
सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
तट पर खड़ा गगन-गगा के मधुर गीत गाता है।

उसमें ही विमुग्ध हो नभ में चद्र विहस देता है।
वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है।
पक्षी हर्ष सभाल न सकतें मुग्ध चहक उठते हैं।
फूल साँस लेकर सुख की सनद महक उठते हैं।

शब्दार्थ

गंभीर-गहरा। तम-अँधेरा। अर्द्ध-आधी। निशा-रात्री। जग-संसार। अंतरिक्ष-धरती की सीमा से परे। सस्मित-मुसकराता हुआ। बदन-मुख। जगत-संसार। मृदु-कोमल। गगन-आकाश। विमुग्ध-प्रसन्न। नभ-आकाश। चंद्र-चाँद। विहँस-हँसना। वृक्ष-पेड़। विविध-कई तरह के। पुष्प-फूल। तन-शरीर। हर्ष-खुशी। मुग्ध-प्रसन्न। सानंद-आनंद सहित।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘पथिक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता रामनरेश त्रिपाठी हैं। इस कविता में पथिक दुनिया के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसना चाहता है। कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताता है।

व्याख्या-पथिक बताता है कि जब आधी रात को गहरा अंधकार सारे संसार को ढक लेता है और आकाश की छत पर तारे बिखेर देता है अर्थात् आकाश में तारे चमकने लगते हैं। उस समय मुस्कराते हुए मुख से संसार का स्वामी अर्थात् ईश्वर धीमी गति से आता है और समुद्र तट पर खड़ा होकर आकाश-गंगा के मनमोहक गीत गाता है।

संसार के स्वामी के इस कार्य पर मुग्ध होकर आकाश में चाँद हँसने लगता है। उस समय प्रकृति भी प्रेम से मुग्ध हो जाती है। वृक्ष अपने पत्तों व फूलों से शरीर को सजा लेते हैं। पक्षी भी खुशी को सँभाल नहीं पाते और मुग्ध होकर चहचहाने लगते हैं। फूल भी सुख की आनंद युक्त साँस लेकर महकने लगते हैं।

विशेष-

1. प्रकृति का मनोहारी चित्रण है।
2. प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।
3. कवि की कल्पना अद्भुत है।
4. संस्कृतनिष्ठ शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
5. मुक्त छद है।
6. अनुप्रास अलंकार की छटा है।
7. प्रसाद गुण है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. अर्द्धरात्रि का सौदर्य बताइए।
2. संसार का स्वामी क्या कार्य करता है?
3. चंद्रमा के हँसने का क्या कारण है?
4. वृक्षों व पक्षियों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर-
1. अद्र्धरात्रि में संसार पर गहरा अंधकार छा जाता है। ऐसे समय में आकाश की छत पर तारे टिमटिमाने लगते हैं। आकाश गंगा को निहारने के लिए संसार का स्वामी गुनगुनाता है।
2. संसार का स्वामी मुसकराते हुए धीमी गति से आता है तथा तट पर खड़ा होकर आकाश-गंगा के लिए मधुर गीत गाता है।
3. संसार का स्वामी आकाश-गंगा के लिए गीत गाता है। उस प्रक्रिया को देखकर चंद्रमा हँसने लगता है।
4. रात में आकाश-गंगा के सौंदर्य, चंद्रमा के हँसने, जगत-स्वामी के गीतों से वृक्ष व पक्षी भी प्रसन्न हो जाते हैं। वृक्ष अपने शरीर को पत्तों व फूलों से सजा लेता है तथा पक्षी चहकने लगते हैं।

4. वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।
मेरा आत्म-प्रलय होता हैं, नयन नीर झड़ते हैं।
पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी।
लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहरी।।

कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल हैं यह प्रेम-कहानी।
जी में हैं अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।
स्थिर, पवित्र, आनद-प्रवाहित, सदा शांति सुखकर हैं।
अहा! प्रेम का राज्य परम सुदर, अतिशय सुदर हैं।।

शब्दार्थ

वन-जंगल। उपवन-बाग। गिरि-पहाड़। सानु-समतल भूमि। कुंज-वनस्पतियों का झुरमुट मेघ-बादल। आत्म-प्रलय-मन का फूट पड़ना। नयन-आँख। नीर-पानी। झड़ना-निकला। तट-किनारा। तृण-घास। तरु-पेड़। नभ-आकाश। जलद-बादल। विश्व-विमोहनहारी-संसार को मुग्ध करने वाली। मनोहर-सुंदर। उज्ज्वल-उजली। जी-दिल। बानी-वाणी। स्थिर-ठहरा हुआ। आनंद-प्रवाहित-आनंद से बहने वाली धारा। सुखकर-सुखदायी। परम-अत्यधिक अतिशय-अत्यधिक।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘पथिक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता रामनरेश त्रिपाठी हैं। इस कविता में पथिक दुनिया के दुखों से विरक्त है और प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसना चाहता है, कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताता है।

व्याख्या-पथिक प्रकृति सौंदर्य से अभिभूत है। वह कहता है कि प्रकृति की प्रेमलीला से वन, उपवन, पहाड़, समुद्र तल व वनस्पतियों पर मेघ बरसने लगते हैं। स्वयं पथिक भी भावुक हो जाता है। उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं। वह अपनी प्रिया से कहता है कि समुद्र की लहरों, किनारों, तिनकों, पेड़ों, पर्वतों, आकाश, किरन व बादलों पर लिखी गई विश्व को मोहित करने वाली कहानी को पढो। यह बहुत प्यारी है।

प्रकृति-सौंदर्य की यह प्रेम-कहानी बहुत मधुर, मनोहर व पवित्र है। पथिक चाहता है कि वह इस प्रेम-कहानी का अक्षर बन जाए और विश्व की वाणी बने। यहाँ सदा आनंद प्रवाहित होता है, पवित्रता है तथा सुख देने वाली शांति है। यहाँ प्रेम का राज्य छाया रहता है तथा यह बहुत सुंदर है।

विशेष-
1. प्रकृति-प्रेम का उत्कट रूप है।
2. प्रश्न, आश्चर्यबोधक व भावबोधक शैली है।
3. प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।
4. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।
5. मुक्त छंद है।
6. अनुप्रास अलंकार की छटा है।
7. आँसुओं के लिए ‘नयन-नीर’ सुंदर प्रयोग है।
8. ‘सुंदर’ के साथ दो विशेषण-परम व अतिशय बहुत प्रभावी हैं।

अर्थग्रहणसंबंधी प्रश्न

1. कवि कब भाव-विभोर हो जाता है?
2. कवि अपनी प्रेयसी से क्या अपेक्षा रखता है?
3. प्रकृति के लिए कवि ने किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है?
4. कवि किसे प्रेम का राज्य कह रहा है? उसकी क्या विशेषता है?

उत्तर-
1. वन, उपवन, पर्वत आदि सभी पर बरसते बादलों को देखकर कवि भाव-विभोर हो जाता है। फलस्वरूप उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं।
2. कवि अपनी प्रेयसी से अपेक्षा रखता है कि वह लहर, तट, तिनका, पेड, पर्वत, आकाश, किरण व बादलों पर लिखी हुई प्यारी कहानी को पढ़े और उनसे कुछ सीखे।
3. प्रकृति के लिए कवि ने ‘स्थिर, पवित्र, आनंद-प्रवाहित’ तथा ‘सदा शांति सुखकर’ विशेषणों का प्रयोग किया है।
4. कवि प्रकृति के असीम सौंदर्य को प्रेम का राज्य कह रहा है। यह प्रेम-राज्य स्थिर, पवित्र शांतिमय, सुंदर व सुखद है।

● काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न

1. प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही हैं नभ में वारिद-माला।
नीच नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन हैं।
घन पर बैठ, बीच में बिचरूं यही चाहता मन हैं।

प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
2. काव्यांश का शिल्प–सौदर्य बताइए।

उत्तर-
1. इस काव्यांश में कवि ने पथिक के माध्यम से बादलों के क्षण-क्षण में रूप बदलकर नृत्य करने का वर्णन करता है। प्रकृति का सौंदर्य अप्रतिम है।
2. ● प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।
● संगीतात्मकता है। अनुप्रास अलंकार है-नीचे नील, नील गगन।
● खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है। मुक्त छद है।
● तत्सम शब्दावली की प्रधानता है।
● कवि की कल्पना निराली है।
● दृश्य बिंब है।

2. रत्नाकर गजन करता हैं, मलयानिल बहता हैं।
हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता है।
इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के-
घर केकोने-कोने में लहरों पर बैठ. फिरूं जी भर के।

प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
2. काव्याश का शिल्प–सौदर्य बताइए।

उत्तर-
1. कवि ने पथिक के माध्यम से समुद्र के गर्जन, सुगंधित हवा तथा अपनी इच्छा को व्यक्त किया है। सूर्योदय का सुंदर वर्णन है। पथिक सागर का कोना-कोना देखना चाहता है।
2. ● संस्कृतनिष्ठ शब्दावली है; जैसे- रत्नाकर, मलयानिल, विस्तृत।
● ‘कोन-कोने’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
● ‘जी भरकर’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।
● ‘रत्नाकर’ का मानवीकरण किया गया है।
● विशेषणों का सुंदर प्रयोग है; जैसे-विशाल, विस्तृत, महिमामय।
● संबोधन शैली से सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
● अनुप्रास अलंकार है-विशाल विस्तृत।
● मुक्त छंद है।

3. निकल रहा हैं जलनिधि-तल पर दिनकर-बिब अधूरा।
कमला के कचन-मदिर का मानो कात कैंगूरा।
लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी।

प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
2. शिल्प-सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-
1. पथिक के माध्यम से कवि सूर्योदय का वर्णन करने में अद्भुत कल्पना करता है। वह सूर्योदय के समय समुद्र पर उत्पन्न सौंदर्य से अभिभूत है।
2. ● सुनहरी लहरों में लक्ष्मी के मंदिर की कल्पना तथा चमकते सूरज में कैंगूरे की कल्पना रमणीय है।
● स्वर्णिम सड़क का निर्माण भी अनूठी कल्पना है।
● रत्नाकर का मानवीकरण किया गया है। अत: मानवीकरण अलंकार है।
● अनुप्रास अलंकार की छटा है-कमला के कंचन, कांत कैंगूरा।
● ‘कमला के …… ’ कैंगूरा’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
● तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
● ‘असवारी’ शब्द में परिवर्तन कर दिया गया है।
● दृश्य बिंब है।

4. वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।
मेरा आत्म-प्रलय होता है, नयन नीर झड़ते हैं।
पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी।
लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहारी।

प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
2. शिल्प–सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-
1. इस काव्यांश में कवि ने प्रकृति के प्रेम को व्यक्त किया है। सागर किनारे खड़ा होकर ‘पथिक’ सूर्योदय के सौंदर्य पर मुग्ध है।
2. ● प्रकृति को मानवीय क्रियाकलाप करते हुए दिखाया गया है। अत: मानवीकरण अलंकार है।
● संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
● ‘आत्म-प्रलय’ कवि की विभोरता का परिचायक है।
● छोटे-छोटे शब्द अर्थ को स्पष्ट करते हैं।
● अनुप्रास अलंकार की छटा है-नयन नीर, तट, तृण, तरु, पर प्यारी, विश्व-विमोहनहारी।
● संगीतात्मकता है।

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Chapter 12 मीरा के पद | class 11th | revision notes hindi Aroh

हिन्दी Notes Class 11 Hindi Chapter 12 मीरा के पद

पाठ का सारांश

पहले पद में मीरा ने कृष्ण के प्रति अपनी अनन्यता व्यक्त की है तथा व्यर्थ के कार्यों में व्यस्त लोगों के प्रति दुख प्रकट किया है। वे कहती हैं कि मोर मुकुटधारी गिरिधर कृष्ण ही उसके स्वामी हैं। कृष्ण-भक्ति में उसने अपने कुल की मर्यादा भी भुला दी है। संतों के पास बैठकर उसने लोकलाज खो दी है। आँसुओं से सींचकर उसने कृष्ण प्रेम रूपी बेल बोयी है। अब इसमें आनंद के फल लगने लगे हैं। उसने दही से घी निकालकर छाछ छोड़ दिया। संसार की लोलुपता देखकर मीरा रो पड़ती हैं और कृष्ण से अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती हैं।
दूसरे पद में प्रेम रस में डूबी हुई मीरा सभी रीति-रिवाजों और बंधनों से मुक्त होने और गिरिधर के स्नेह के कारण अमर होने की बात कर रही हैं।
मीरा पैरों में धुंघरू बाँधकर कृष्ण के सामने नाचती हैं। लोग इस हरकत पर उन्हें बावली कहते हैं तथा कुल के लोग कुलनाशिनी कहते हैं। राणा ने उन्हें मारने के लिए विष का प्याला भेजा जिसे उन्होंने हँसते हुए पी लिया। मीरा कहती हैं कि उसके प्रभु कृष्ण सहज भक्ति से भक्तों को मिल जाते हैं।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. मरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरों न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन द्विग बैठि-बेठि, लोक-लाज खोयी
असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बलि बोयी

अब त बेलि फॅलि गायी, आणद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी
दधि मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही (पृष्ठ-137)

शब्दार्थ-

गिरधर-पर्वत को धारण करने वाला यानी कृष्ण। गोपाल-गाएँ पालने वाला, कृष्ण। मोर मुकुट-मोर के पंखों का बना मुकुट। सोई-वही। जा के-जिसके। छाँड़ि दयी-छोड़ दी। कुल की कानि-परिवार की मर्यादा। करिहै-करेगा। कहा-क्या। ढिग-पास। लोक-लाज-समाज की मर्यादा। असुवन-आँसू। सींचि-सींचकर। मथनियाँ-मथानी। विलायी-मथी। दधि-दही। घृत-घी। काढ़ि लियो-निकाल लिया। डारि दयी-डाल दी। जगत-संसार। तारो-उद्धार। छोयी-छाछ, सारहीन अंश। मोहि-मुझे।

प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित मीराबाई के पदों से लिया गया है। इस पद में उन्होंने भगवान कृष्ण को पति के रूप में माना है तथा अपने उद्धार की प्रार्थना की है।

व्याख्या-मीराबाई कहती हैं कि मेरे तो गिरधर गोपाल अर्थात् कृष्ण ही सब कुछ हैं। दूसरे से मेरा कोई संबंध नहीं है। जिसके सिर पर मोर का मुकुट है, वही मेरा पति है। उनके लिए मैंने परिवार की मर्यादा भी छोड़ दी है। अब मेरा कोई क्या कर सकता है? अर्थात् मुझे किसी की परवाह नहीं है। मैं संतों के पास बैठकर ज्ञान प्राप्त करती हूँ और इस प्रकार लोक-लाज भी खो दी है। मैंने अपने आँसुओं के जल से सींच-सींचकर प्रेम की बेल बोई है। अब यह बेल फैल गई है और इस पर आनंद रूपी फल लगने लगे हैं। वे कहती हैं कि मैंने कृष्ण के प्रेम रूप दूध को भक्ति रूपी मथानी में बड़े प्रेम से बिलोया है। मैंने दही से सार तत्व अर्थात् घी को निकाल लिया और छाछ रूपी सारहीन अंशों को छोड़ दिया। वे प्रभु के भक्त को देखकर बहुत प्रसन्न होती हैं और संसार के लोगों को मोह-माया में लिप्त देखकर रोती हैं। वे स्वयं को गिरधर की दासी बताती हैं और अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती हैं।

विशेष-

1. मीरा कृष्ण-प्रेम के लिए परिवार व समाज की परवाह नहीं करतीं।
2. मीरा की कृष्ण के प्रति अनन्यता व समर्पण भाव व्यक्त हुआ है।
3. अनुप्रास अलंकार की छटा है।
4. ‘बैठि-बैठि’, ‘सींचि-सींचि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
5. माधुर्य गुण है।
6. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का सुंदर रूप है।
7. ‘मोर-मुकुट’, ‘प्रेम-बेलि’, ‘आणद-फल’ में रूपक अलंकार है।
8. संगीतात्मकता व गेयता है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. मीरा किसको अपना सर्वस्व मानती हैं तथा क्यों?
2. मीरा कृष्ण-प्रेम के विषय में क्या बताती हैं?
3. मीरा के रोने और खुश होने का क्या कारण है?
4. कृष्ण को अपनाने के लिए मीरा ने क्या-क्या खोया?

उत्तर-
1. मीरा कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं; क्योंकि उन्होंने कृष्ण बड़े प्रयत्नों से पाया है। वे उन्हें अपना पति मानती हैं।
2. कृष्ण-प्रेम के विषय में मीरा बताती है कि उसने अपने आँसुओं से कृष्ण प्रेम रूपी बेल को सींचा अब वह बेल बड़ी हो गई है और उसमें आनंद-फल लगने लगे हैं।
3. मीरा भक्तों को देखकर प्रसन्न होती हैं तथा संसार के अज्ञान व दुर्दशा को देखकर रोती हैं।
4. कृष्ण को अपनाने के लिए मीरा ने अपने परिवार की मर्यादा व समाज की लाज को खोया है।

2. पग घुँघरू बांधि मीरां नाची,
मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची
लोग कहँ, मीरा भई बावरी, न्यात कहैं कुल-नासी
विस का प्याला राणी भेज्या, पवित मीरा हॉर्सी
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी (पृष्ठ-137)

शब्दार्थ

पग-पैर। नारायण-ईश्वर। आपहि-स्वयं ही। साची-सच्ची। भई-होना। बावरी-पागल। न्यात-परिवार के लोग, बिरादरी। कुल-नासी-कुल का नाश करने वाली। विस-जहर। पीवत-पीती हुई। हाँसी-हँस दी। गिरधर-पर्वत उठाने वाले। नागर-चतुर। अविनासी-अमर।

प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित प्रसिद्ध कृष्णभक्त कवयित्री मीराबाई के पदों से लिया गया है। इस पद में, उन्होंने कृष्ण प्रेम की अनन्यता व सांसारिक तानों का वर्णन किया है।

व्याख्या-मीराबाई कहती हैं कि वह पैरों में धुंघरू बाँधकर कृष्ण के समक्ष नाचने लगी है। इस कार्य से यह बात सच हो गई कि मैं अपने कृष्ण की हूँ। उसके इस आचरण के कारण लोग उसे पागल कहते हैं। परिवार और बिरादरी वाले कहते हैं कि वह कुल का नाश करने वाली है। मीरा विवाहिता है। उसका यह कार्य कुल की मान-मर्यादा के विरुद्ध है। कृष्ण के प्रति उसके प्रेम के कारण राणा ने उसे मारने के लिए विष का प्याला भेजा। उस प्याले को मीरा ने हँसते हुए पी लिया। मीरा कहती हैं कि उसका प्रभु गिरधर बहुत चतुर है। मुझे सहज ही उसके दर्शन सुलभ हो गए हैं।

विशेष-

कृष्ण के प्रति मीरा का अटूट प्रेम व्यक्त हुआ है।
मीरा पर हुए अत्याचारों का आभास होता है।
अनुप्रास अलंकार की छटा है।
संगीतात्मकता है।
राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है।
भक्ति रस की अभिव्यक्ति हुई है।
‘बावरी’ शब्द से बिंब उभरता है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. मीरा कृष्ण-भक्ति में क्या करने लगीं?
2. लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं?
3. राणा ने मीरा के लिए क्या भेजा तथा क्यों?
4. ‘सहज मिले अविनासी’-आशय स्पष्ट करें।

उत्तर-
1. मीरा कृष्ण-भक्ति में अपने पैरों में धुंघरू बाँधकर कृष्ण के सामने नाचने लगीं। वे कृष्ण प्रेम में खो गई।
2. लोग मीरा को बावरी कहते हैं, क्योंकि वे विवाहिता हैं। इसके बावजूद वे कृष्ण को अपना पति मानती हैं। वे लोक-लाज को छोड़ कर मंदिर में कृष्णमूर्ति के
सामने नाचने लगीं। तत्कालीन समाज के लिए यह कार्य मर्यादा-विरुद्ध था।
3. राणा ने मीरा के कृष्ण प्रेम को देखते हुए उन्हें मारने के लिए विष का प्याला भेजा। वह अपने परिवार का अपमान नहीं करवाना चाहता था। मीरा ने उस प्याले को पी लिया।
4. इसका अर्थ है कि जो कृष्ण से सच्चा प्रेम करता है, उसे भगवान सहजता से मिल जाते हैं।

● काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न

1. मंरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन द्विग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी
असुवन जल सींचि-सीचि, प्रेम-बलि बोयी

अब त बलि फैलि गयी, आणद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी
दधि मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही

प्रश्न
1. भाव-सौदर्य बताइए।
2. शिल्प–सौदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-
1. इस पद में मीरा का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम व्यक्त हुआ है। वे कुल की मर्यादा को भी छोड़ देती हैं तथा कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं। उन्होंने कृष्ण-प्रेम की बेल को आँसुओं से सींचकर बड़ा किया है और भक्ति रूपी मथानी से सार रूपी घी निकाला है। वे प्रभु से अपने उद्धार की प्रार्थना करती हैं और उससे विरह की पीड़ा सहती हैं।
2. ● राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में सुंदर अभिव्यक्ति है।
● भक्ति रस है।
● ‘दूध की मथनियाँ . छोयी’ में अन्योक्ति अलंकार है।
● ‘प्रेम-बेलि’, ‘आणद-फल’ में रूपक अलंकार है।
● अनुप्रास अलंकार की छटा है-

– गिरधर गोपाल
– मोर-मुकुट
– कुल की कानि
– कहा करिहै कोई
– लोक-लाज
– बेलि बोयी

● ‘बैठि-बैठि’, ‘सींचि-सींचि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
● कृष्ण के अनेक नामों से काव्य की सुंदरता बढ़ी है-गिरधर, गोपाल, लाल आदि।
● संगीतात्मकता व गेयता है।

2. पग धुंधरू बाधि मीरा नाची,
मैं तो मेरे नारायण सू, आपहि हो गई साची
लोग कहैं, मीरा भई बावरी, न्यात कहै कुल-नासी
विस का प्याला राणा भंज्या, पीवत मीरा हँसी
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिल अविनासी

प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
2. शिल्प–सौदर्य बताइए।

उत्तर-
1. इस पद में मीरा की आनंदावस्था का प्रभावी वर्णन हुआ है। वे धुंघरू बाँधकर नाचती हैं तथा प्रिय कृष्ण को रिझाती हैं। उन्हें लोकनिंदा की परवाह नहीं है।
राणा का विष का प्याला भी उन्हें मार नहीं पाता है। वे अपनी सहज भक्ति से अपने प्रिय को पाती हैं।
2. ● राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में प्रभावी अभिव्यक्ति है।
● संगीतात्मकता व गेयता है।
● अनुप्रास अलंकार है-कहै कुल।
● भक्ति रस की अभिव्यक्ति हुई है।
● नृत्य करने का बिंब प्रत्यक्ष हो उठता है।
● कृष्ण के कई नामों का प्रयोग किया है-नारायण, अविनासी, गिरधर, नागर।

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Chapter 11 कबीर | class 11th | revision notes hindi Aroh

हिन्दी Notes Class 11 Chapter 11 Hindi कबीर के पद

पाठ का सारांश

पहले पद में कबीर ने परमात्मा को सृष्टि के कण-कण में देखा है, ज्योति रूप में स्वीकारा है तथा उसकी व्याप्ति चराचर संसार में दिखाई है। इसी व्याप्ति को अद्वैत सत्ता के रूप में देखते हुए विभिन्न उदाहरणों के द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति दी है। कबीरदास ने आत्मा और परमात्मा को एक रूप में ही देखा है। संसार के लोग अज्ञानवश इन्हें अलग-अलग मानते हैं। कवि पानी, पवन, प्रकाश आदि के उदाहरण देकर उन्हें एक जैसा बताता है। बाढ़ी लकड़ी को काटता है, परंतु आग को कोई नहीं काट सकता। परमात्मा सभी के हदय में विद्यमान है। माया के कारण इसमें अंतर दिखाई देता है।

दूसरे पद में कबीर ने बाहय आडंबरों पर चोट करते हुए कहा है कि अधिकतर लोग अपने भीतर की ताकत को न पहचानकर अनजाने में अवास्तविक संसार से रिश्ता बना बैठते हैं और वास्तविक संसार से बेखबर रहते हैं। कवि के अनुसार यह संसार पागल हो गया है। यहाँ सच कहने वाले का विरोध तथा झूठ पर विश्वास किया जाता है हिंदू और मुसलमान राम और रहीम के नाम पर लड़ रहे हैं, जबकि दोनों ही ईश्वर का मर्म नहीं जानते। दोनों बाहय आडंबरों में उलझे हुए हैं। नियम, धर्म, टोपी, माला, छाप. तिलक, पीर, औलिया, पत्थर पूजने वाले और कुरान की व्याख्या करने वाले खोखले गुरु-शिष्यों को आडंबर बताकर, उनकी निंदा की गई है।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।

एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)

शब्दार्थ

एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।

प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।

व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

विशेष-

1. कबीर ने आत्मा और परमात्मा को एक बताया है।
2. उन्होंने माया-मोह व गर्व की व्यर्थता पर प्रकाश डाला है।
3. ‘एक-एक’ में यमक अलंकार है।
4. ‘खाक’ और ‘कोहरा’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।
5. अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
6. सधुक्कड़ी भाषा है।
7. उदाहरण अलंकार है।
8. पद में गेयता व संगीतात्मकता है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. कबीरदास परमात्मा के विषय में क्या कहते हैं?
2. भ्रमित लोगों पर कवि की क्या टिप्पणी है?
3. संसार नश्वर है, परंतु आत्मा अमर है-स्पष्ट कीजिए।
4. कबीर ने किन उदाहरणों दवारा सिदध किया है कि जग में एक सत्ता है?

उत्तर-
1. कबीरदास कहते हैं कि परमात्मा एक है। वह हर प्राणी के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी स्वरूप धारण किया हो।
2. जो लोग आत्मा व परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं, वे भ्रमित हैं। वे ईश्वर को पहचान नहीं पाए। उन्हें नरक की प्राप्ति होती है।
3. कबीर का कहना है कि जिस प्रकार लकड़ी को काटा जा सकता है, परंतु उसके अंदर की अग्नि को नहीं काटा जा सकता, उसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु आत्मा अमर है। उसे समाप्त नहीं किया जा सकता।
4. कबीर ने जना की सत्ता एक होने यानी ईश्वर एक है के समर्थन में कई उदाहरण दिए हैं। वे कहते हैं कि संसार में एक जैसी पवन, एक जैसा पानी बहता है। हर प्राणी में एक ही ज्योति समाई हुई है। सभी बर्तन एक ही मिट्टी से बनाए जाते हैं, भले ही उनका स्वरूप अलग-अलग होता है।

2. सतों दखत जग बौराना।
साँच कहीं तो मारन धार्वे, झूठे जग पतियाना।
नमी देखा धरमी देखा, प्राप्त करें असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजें, उनमें कछु नहि ज्ञाना।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतार्वे, उनमें उहैं जो ज्ञाना।
आसन मारि डिभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।

टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।
हिन्दू कहैं मोहि राम पियारा, तुर्क कहैं रहिमाना।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मम न काहू जाना।
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।
गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अत काल पछिताना।
कहैं कबीर सुनो हो सती, ई सब भम भुलाना।
केतिक कहीं कहा नहि माने, सहजै सहज समाना।

शब्दार्थ

जग-संसार। बौराना-पागल होना। साँच-सच। मारन-मारने। धावै-दौड़े। पतियाना-विश्वास करना। नेमी-नियमों का पालन करने वाला। धरमी-धर्म का पालन करने वाला। प्राप्त-सुबह। असनाना-स्नान करना। आतम-स्वयं। पखानहि-पत्थरों को, पत्थरों की मूर्तियों को। पीर औलिया-धर्म गुरु और संत ज्ञानी। कितेब-ग्रंथ। मुरीद-शिष्य। तदबीर-उपाय। डिंभ धरि-घमंड करके। गुमाना-घमंड। पाथर-पत्थर। पहिरे-पहने। छाप तिलक अनुमाना-माथे पर तिलक व छापा लगाया। साखी-दोहा, साक्षी। सब्दहि-वह मंत्र जो गुरु शिष्य को दीक्षा के अवसर पर देता है, पद। गावत-गाते। आतम खबरि-आत्मा का ज्ञान, आतम ज्ञान। मोहि-मुझे। तुर्क-मुसलमान। दोउ-दोनों। लरि-लड़ना। मुए-मरना। मर्म-रहस्य। काहू-किसी ने। मन्तर-गुप्त वाक्य बताना। महिमा-उच्चता। सिख्य-शिप्य। बूड़े-डूबे। अंतकाल-अंतिम समय। भर्म-संदेह। केतिक कहीं-कहाँ तक कहूँ। सहजै-सहज रूप से। समाना-लीन होना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में उन्होंने धर्म के नाम पर हो रहे बाहय आडंबरों पर तीखा प्रहार किया है।

व्याख्या-कबीरदास सज्जनों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि देखो, यह संसार पागल हो गया है। जो व्यक्ति सच बातें बताता है, उसे यह मारने के लिए दौड़ता है तथा जो झूठ बोलता है, उस पर यह विश्वास कर लेता है। कवि हिंदुओं के बारे में बताता है कि ऐसे लोग बहुत हैं जो नियमों का पालन करते हैं तथा धर्म के अनुसार अनुष्ठान आदि करते हैं। ये प्रातः उठकर स्नान करते हैं। ये अपनी आत्मा को मारकर पत्थरों को पूजते हैं। वे आत्मचिंतन नहीं करते। इन्हें अपने ज्ञान पर घमंड है, परंतु उन्होंने कुछ भी ज्ञान प्राप्त नहीं किया है। मुसलमानों के विषय में कबीर बताते हैं कि उन्होंने ऐसे अनेक पीर, औलिया देखे हैं जो कुरान का नियमित पाठ करते हैं। वे अपने शिष्यों को तरह-तरह के उपाय बताते हैं जबकि ऐसे पाखंडी स्वयं खुदा के बारे में नहीं जानते हैं। वे ढोंगी योगियों पर भी चोट करते हैं जो आसन लगाकर अहंकार धारण किए बैठे हैं और उनके मन में बहुत घमंड भरा पड़ा है।

कबीरदास कहते हैं कि लोग पीपल, पत्थर को पूजने लगे हैं। वे तीर्थ-यात्रा आदि करके गर्व का अनुभव करते हैं। वे ईश्वर को भूल जाते हैं। कुछ लोग टोपी पहनते हैं, माला धारण करते हैं, माथे पर तिलक लगाते हैं तथा शरीर पर छापे बनाते हैं। वे साखी व शब्द को गाना भूल गए हैं तथा अपनी आत्मा के रहस्य को नहीं जानते हैं। इन लोगों को सांसारिक जीवन पर घमंड है। हिंदू कहते हैं कि उन्हें राम प्यारा है तो तुर्क रहीम को अपना बताते हैं। दोनों समूह ईश्वर की श्रेष्ठता के चक्कर में लड़कर मार जाते हैं, परंतु किसी ने भी ईश्वर की सत्ता के रहस्य को नहीं जाना।

समाज में पाखंडी गुरु घर-घर जाकर लोगों को मंत्र देते फिरते हैं। उन्हें सांसारिक माया का बहुत अभिमान है। ऐसे गुरु व शिष्य सब अज्ञान में डूबे हुए हैं। इन सबको अंतकाल में पछताना पड़ेगा। कबीरदास कहते हैं कि हे संतों, वे सब माया को सब कुछ मानते हैं तथा ईश्वर-भक्ति को भूल बैठे हैं। इन्हें कितना ही समझाओ, ये नहीं मानते हैं। सच यही है कि ईश्वर तो सहज साधना से मिल जाते हैं।

विशेष-

1. कवि ने धार्मिक आडंबरों पर करारी चोट की है।
2. उन्होंने पाखंडी धर्मगुरुओं को लताड़ लगाई है।
3. सधुक्कड़ी भाषा है।
4. अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
5. चित्रात्मकता है।
7. कबीर का अक्खड़पन स्पष्ट है।
8. पद में गेयता व संगीतात्मकता है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. कबीर किसे संबोधित करते हैं तथा क्यों?
2. कवि संसार को पागल क्यों कहता है?
3. कवि ने हिंदुओं के किन आडंबरों पर चोट की है तथा मुसलमानों के किन पाखंडों पर व्यंग्य किया है?
4. अज्ञानी गुरुओं व शिष्यों की क्या गति होगी?

उत्तर-
1. कबीर दास जी संसार के विवेकी व सज्जन लोगों को संबोधित कर रहे हैं, क्योंकि वे संतों को धार्मिक पाखंडों के बारे में बताकर भक्ति के सहज मार्ग को बताना चाहते हैं।
2. कवि संसार को पागल कहता है। इसका कारण है कि संसार सच्ची बात कहने वाले को मारने के लिए दौड़ता है तथा झूठी बात कहने वाले पर विश्वास कर लेता है।
3. कबीर ने हिंदुओं के नित्य स्नान, धार्मिक अनुष्ठान, पीपल-पत्थर की पूजा, तिलक, छापे, तीर्थयात्रा आदि आडंबरों पर चोट की है। इसी तरह उन्होंने मुसलमानों के ईश्वर-प्राप्ति के उपाय, टोपी पहनना, पीर की पूजा, शब्द गाना आदि पाखंडों पर व्यंग्य किया है।
4. अज्ञानी गुरुओं व उनके शिष्यों को अंतकाल में पछताना पड़ता है, क्योंकि ज्ञान के अभाव में वे गलत मार्ग पर चलते हैं तथा अपना विनाश कर लेते हैं।

● काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न

हम तो एक एक करि जाना।
दोइ कहैं तिनहीं कों दोजग जिन नाहिन पहिचाना।
एकै पवन एक ही पानीं एके जोति समाना।
एकै खाक गढ़े सब भाड़े एकै कांहरा सना।

जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटे अगिनि न काटे कोई।
सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरे सरूपैं सोई।
माया देखि के जगत लुभाना काहे रे नर गरबाना।
निरर्भ भया कछू नहि ब्याएँ कहैं कबीर दिवाना।

प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
2. शिल्प-सौदर्य बताइए।

उत्तर-
1. इस पद में कवि ने ईश्वर की एक सत्ता को माना है। संसार के हर प्राणी के दिल में ईश्वर है, उसका रूप चाहे कोई भी हो। कवि माया-मोह को निरर्थक बताता है।
2.
● इस पद में कबीर की अक्खड़ता व निभीकता का पता चलता है।
● आम बोलचाल की सधुक्कड़ी भाषा है।
● ‘जैसे बाढ़ी. काटै। कोई’ में उदाहरण अलंकार है। बढ़ई, लकड़ी व आग का उदाहरण प्रभावी है।
● ‘एक एक’ में यमक अलंकार है-एक-परमात्मा, एक-एक।
● अनुप्रास अलंकार की छटा है-काटै। कोई, सरूप सोई, कहै कबीर।
● ‘खाक’ व ‘कोहरा’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।
● पूरे पद में गेयता व संगीतात्मकता है।

2. सतों दखत जग बौराना।
साँच कहौं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।।
नेमी देखा धरमी देखा, प्राप्त करें असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजे, उनमें कछु नहि ज्ञाना।।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतार्वे, उनमें उहै जो ज्ञाना।।
आसन मारि डिभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।।

टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।।
हिन्दू कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कह रहमाना।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मम न काहू जाना।।
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।
गुरु के सहित सिख्य सब बूड़, अत काल पछिताना।।
कहैं कबीर सुनी हो सती, ई सब भम भुलाना।
केतिक कहीं कहा नहि माने, सहजै सहज समाना।।

प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
2. शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालें।

उत्तर-
1. इस पद में कवि ने संसार की गलत प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है। वे सांसारिक जीवन को सच मानते हैं। समाज में हिंदू-मुसलमान धर्म के नाम लड़ते हैं। वे तरह-तरह के आडंबर रचाकर स्वयं को श्रेष्ठ जताने की कोशिश करते हैं। कवि संसार को इन आडंबरों की निरर्थकता के बारे में बार-बार बताता है, परंतु उन पर कोई प्रभाव नहीं होता। कबीर सहज भक्ति मार्ग को सही मानता है।
2.

● कवि ने आत्मबल पर बल दिया है तथा बाहय आडंबरों को निरर्थक बताया है।
● अनुप्रास अलंकार की छटा है-

– पीपर पाथर पूजन
– कितेब कुराना
– भर्म भुलाना
– सहजै सहज समाना
– सहित शिष्य सब
– साखी सब्दहि
– केतिक कहौं कहा

● ‘घर-घर’, ‘लरि-लरि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
● आम बोलचाल की सधुक्कड़ी भाषा है।
● भाषा में व्यंग्यात्मक है।
● पूरे पद में गेयता व संगीतात्मकता है।
● चित्रात्मकता है।
● शांत रस है।
● प्रसाद गुण विद्यमान है।

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Chapter 10 आत्मा का ताप | CLASS 11TH | REVISION NOTES FOR HINDI AROH

आत्मा का तप Notes Class 11 Chapter 10 Hindi हिन्दी

पाठ का सारांश

यह पाठ रज़ा की आत्मकथात्मक पुस्तक आत्मा का ताप का एक अध्याय है। इसका अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद मधु बी. जोशी ने किया है। इसमें रज़ा ने चित्रकला के क्षेत्र में अपने आरंभिक संघर्षों और सफलताओं के बारे में बताया है। एक कलाकार का जीवन-संघर्ष और कला-संघर्ष, उसकी सर्जनात्मक बेचैनी, अपनी रचना में सर्वस्व झोंक देने का उसका जुनून ये सारी चीजें रोचक शैली में बताई गई हैं।

लेखक को स्कूल की परीक्षा के दस में नौ विषयों में विशेष योग्यता मिली तथा वह कक्षा में प्रथम आया। पिता जी के रिटायर होने के कारण उसे गोंदिया में ड्राइंग टीचर की नौकरी की। शीघ्र ही उन्हें बंबई (मुंबई) के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में अध्ययन के लिए मध्य प्रांत की सरकारी छात्रवृत्ति सितंबर 1943 में मिली। पद से त्यागपत्र देने के बाद वह बंबई पहुँचा तो दाखिला बंद हो चुका था। छात्रवृत्ति वापस ले ली गई। सरकार ने अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी देने की पेशकश की, परंतु वह वापस नहीं लौटा और मुंबई में ही रहने लगा। यहाँ एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो में डिजाइनर की नौकरी की तथा साल भर की मेहनत के बाद स्टूडियो के मालिक जलील व मैनेजर हुसैन ने उसे मुख्य डिजाइनर बना दिया।

दिन भर काम करने के बाद वह पढ़ने के लिए मोहन आर्ट क्लब जाता। वह जेकब सर्कल में टैक्सी ड्राइवर के घर सोता था। वह ड्राइवर रात में टैक्सी चलाता था तथा दिन में सोता था। इस तरह इनका काम चलता था। एक रात नौ बजे वह कमरे पर पहुँचा तो वहाँ पुलिसवाला खड़ा था। पता चला कि यहाँ हत्या हुई है। वह घबरा गया तथा तुरंत पुलिस स्टेशन जाकर उसने कमिश्नर से मिलकर सारी बात बताई। कमिश्नर ने बताया कि टैक्सी में किसी ने सवारी की हत्या कर दी थी। अगले दिन जलील साहब ने सारी कहानी सुनने के बाद उसे आर्ट डिपार्टमेंट में कमरा दे दिया।

जलील साहब ने कई दिनों तक लेखक को देर रात तक स्केच बनाते हुए देखा था। जिससे प्रभावित होकर उन्होंने अपने फ्लैट का एक कमरा लेखक को दे दिया।

लेखक पूरी तरह काम में डूब गया और 1948 ई. में उसे बॉम्बे सोसाइटी का स्वर्ण पदक मिला। इस पुरस्कार को पाने वाला यह सबसे कम आयु का कलाकार था। दो वर्ष बाद इन्हें फ्रांस सरकार की छात्रवृत्ति मिली। नवंबर, 1943 में आट्र्स सोसाइटी ऑफ इंडिया की प्रदर्शनी में लेखक के दो चित्र प्रदर्शित हुए। अगले दिन टाइम्स ऑफ इंडिया में कला समीक्षक रुडॉल्फ वॉन लेडेन ने लेखक के चित्रों की तारीफ की। दोनों चित्र 40-40 रुपये में बिक गए। ये पैसे उसकी महीने भर की कमाई से अधिक थे।

लेखक को प्रोत्साहन देने वालों में वेनिस अकादमी के प्रोफेसर वाल्टर लैंगहैमर भी थे। उन्होंने उसे काम करने के लिए अपना स्टूडियो दे दिया। वे ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में आर्ट डायरेक्टर थे। लेखक दिन में बनाए हुए चित्र उन्हें दिखाता। उसका काम निखरता गया। लैंगहैमर उसके चित्र खरीदने लगे। 1947 ई. में वह जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट का नियमित छात्र बन गया।

1947 व 1948 के वर्ष बहुत कठिन थे। पहले लेखक की माता व फिर पिता का देहांत हो गया। देश में आजादी का उत्साह था, परंतु विभाजन की त्रासदी थी। लेखक युवा कलाकारों के साथ रहता था। उन्हें लगता था कि वे पहाड़ हिला सकते हैं। सभी अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार बढ़िया काम करने में जुट गए।

लेखक 1948 ई. में श्रीनगर जाकर चित्र बनाए। तभी कश्मीर पर कबायली हमला हुआ। हालांकि लेखक ने भारत में रहने का फैसला किया। वह बारामूला तक गया जिसे घुसपैठियों ने ध्वस्त कर दिया था। लेखक के पास कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला का सिफारिश पत्र था जिसके आधार पर वह यात्रा कर सका। इस यात्रा में उसकी भेंट प्रख्यात फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसाँ से हुई। उसने लेखक की चित्रों की प्रशंसा की, परंतु उनमें रचना का अभाव बताया। उसने सेजाँ का काम देखने की सलाह दी। लेखक पर इसका गहरा प्रभाव हुआ। मुंबई आकर उसने अलयांस फ्रांसे में फ्रेंच भाषा सीखी। 1950 ई. में फ्रेंच दूतावास में सांस्कृतिक सचिव से हुए वार्तालाप के बाद उसे दो वर्ष की छात्रवृत्ति मिली।

लेखक 2 अक्टूबर, 1950 को फ्रांस के मार्सेई पहुँचा। बंबई में उसमें काम करने की इच्छा थी। आत्मा का चढ़ा ताप लोगों को दिखाई देता था। लोग सहायता करते थे। वह युवा कलाकारों से कहता है कि चित्रकला व्यवसाय नहीं, आत्मा की पुकार है। इसे अपना सर्वस्व देकर ही कुछ ठोस परिणाम मिल पाते हैं। केवल जहरा जफरी को काम करने की ऐसी लगन मिली। वह दमोह शहर के आसपास के ग्रामीणों के साथ काम करती हैं। लेखक यह संदेश देना चाहता है कि कुछ घटने के इंतजार में हाथ पर हाथ धरे न बैठे रहो-खुद कुछ करो। अच्छे संपन्न परिवारों के बच्चे काम नहीं करते, जबकि उनमें तमाम संभावनाएँ हैं।

लेखक बुखार से छटपटाता-सा अपनी आत्मा को संतप्त किए रहता है। उसकी बात कोई बहुत महत्वपूर्ण नहीं है, परंतु उसमें काम करने का संकल्प है। गीता भी कहती है कि जीवन में जो कुछ है, तनाव के कारण है। जीवन का पहला चरण बचपन एक जागृति है, लेकिन लेखक के लिए बंबई का दौर ही जागृति चरण था। वह कहता है पैसा कमाना महत्वपूर्ण होता है, अंतत: वह महत्वपूर्ण नहीं होता। उत्तरदायित्व पूरे करने के लिए पैसा जरूरी है।

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Chapter 9 भारत माता | CLASS 11TH | REVISION NOTES FOR HINDI AROH

हिन्दी Notes Class 11 Hindi Chapter 9 भारतमाता

पाठ का सारांश

‘भारत माता’ अध्याय हिंदुस्तान की कहानी का पाँचवाँ अध्याय है। इसमें नेहरू ने बताया है कि किस तरह देश के कोने-कोने में आयोजित जलसों में जाकर वे आम लोगों को बताते थे कि अनेक हिस्सों में बँटा होने के बाद भी हिंदुस्तान एक है। इस अपार फैलाव के बीच एकता के क्या आधार हैं और क्यों भारत एक देश है, जिसके सभी हिस्सों की नियति एक ही तरीके से बनती-बिगड़ती है। उन्होंने भारत माता शब्द पर भी विचार किया तथा यह निष्कर्ष निकाला कि भारत माता की जय का मतलब है-यहाँ के करोड़ों-करोड़ लोगों की जय।

नेहरू जी का कहना है कि जब वे जलसों में जाते हैं तो वे श्रोताओं से भारत की चर्चा करते हैं। भारत संस्कृत शब्द है और इस जाति के परंपरागत संस्थापक के नाम से निकला है। शहरों में लोग अधिक समझदार हैं। गाँवों में किसानों से देश के बारे में चर्चा करते हैं। वे उन्हें बताते हैं कि देश के हिस्से अलग होते हुए भी एक हैं। वे उन्हें बताते थे कि उत्तर सँ लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक उनकी समस्याएँ एक जैसी है और स्वराज्य सभी के लिए फायदेमंद है।

नेहरू ने सारे भारत की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने यह समझाने का प्रयास किया कि हर जगह किसानों की समस्याएँ एक-सी हैं-गरीबों, कर्जदारों, पूँजीपतियों के शिकंजे, जमींदार, महाजन, कड़े लगान और सूद, पुलिस के जुल्म। ये सभी बातें विदेशी सरकार की देन हैं तथा सबको इससे छुटकारा पाने के लिए सोचना है। सभी लोगों को देश के बारे में सोचना है। वे . लोगों से चीन, स्पेन, अबीसिनिया, मध्य यूरोप, मिस्र और पश्चिमी एशिया में होने वाले परिवर्तनों का जिक्र करते हैं। वे सोवियत यूनियन व अमरीका की उन्नति के बारे में बताते हैं। किसानों को विदेशों के बारे में समझाना आसान न था किंतु उन्होंने जैसा समझ रखा था वैसा मुश्किल भी न था। इसका कारण यह था कि हमारे महाकाव्यों व पुराणों ने इस देश की कल्पना करा दी थी और तीर्थ यात्रा करने वाले लोगों ने या बड़ी लड़ाइयों में भाग लेने सिपाहियों और कुछ ने विदेशों में नौकरी करके देश-दुनिया की जानकारी दी। सन् तीस की आर्थिक मंदी की वजह से दूसरे देशों के बारे में नेहरू जी के दिए गए उदाहरण लोगों के समझ में आ जाते थे।

जलसों में नेहरू का स्वागत अकसर ‘भारत माता की जय’ के नारे से होता था। वे लोगों से इस नारे का मतलब पूछते तो वे जवाब न दे पाते। एक हट्टे-कट्टे किसान ने भारत माता का अर्थ धरती बताया। उन्होंने पूछा कि कौन-सी धरती? उनके गाँव, जिले, सूबे या पूरे देश की धरती। इस प्रश्न पर फिर सब चुप हो जाते। नेहरू उन्हें बताते हैं कि भारत वह है जो उन्होंने समझ रखा है। इसमें नदी, पहाड़, जंगल, खेत व करोड़ों भारतीय शामिल हैं। भारत माता की जय का अर्थ है–इन सबकी जय। जब वे स्वयं को भारत माता का अंश समझते थे तो उनकी आँखों में चमक आ जाती थी।

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Chapter 8 जामुन का पेड़ | CLASS 11TH | REVISION NOTES FOR HINDI AROH

हिन्दी Notes Class 11 Hindi Chapter 8 जामुन का पेड़

पाठ का सारांश

‘जामुन का पेड़’ कृश्नचंदर की प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कथा है। हास्य-व्यंग्य के लिए चीजों को अनुपात से ज्यादा फैला-फुलाकर दिखलाने की परिपाटी पुरानी है और यह कहानी भी उसका अनुपालन करती है। इसलिए इसकी घटनाएँ अतिशयोक्तिपूर्ण और अविश्वसनीय लगने लगती हैं। विश्वसनीयता ऐसी रचनाओं के मूल्यांकन की कसौटी नहीं हो सकती। प्रस्तुत पाठ यह स्पष्ट करता है कि कार्यालयी तौर-तरीकों में पाया जाने वाला विस्तार कितना निरर्थक और पदानुक्रम कितना हास्यस्पद है। यह व्यवस्था के संवेदनशून्य व अमानवीयता के रूप को भी बताता है।

रात को चली आँधी में सचिवालय के पार्क में जामुन का पेड़ गिर गया। सुबह माली ने देखा कि उसके नीचे एक आदमी दबा पड़ा है। उसने यह सूचना तुरंत चपरासी को दी। इस तरह मिनटों में दबे आदमी के पास भीड़ इकट्ठी हो गई। क्लकों को रसीले जामुनों की याद आ रही थी, तभी माली ने आदमी के बारे में पूछा। उन्हें उस आदमी के जीवित होने में संदेह था, तभी वह दबा आदमी बोल पड़ा। माली ने पेड़ हटाने का सुझाव दिया, परंतु सुपरिंटेंडेंट ने अपने ऊपर के अधिकारी से पूछने की बात कही। इस तरह बात डिप्टी सेक्रेटरी, ज्वांइट सेक्रेटरी, चीफ सेक्रेटरी, मिनिस्टर के पास पहुँची। मंत्री ने चीफ सेक्रेटरी से कुछ कहा और उसी क्रम में बात नीचे तक पहुँची और फाइल चलती रही।

दोपहर को भीड़ इकट्ठी हो गई। कुछ मनचले क्लर्क सरकारी इजाजत के बिना पेड़ हटाना चाहते थे कि तभी सुपरिंटेंडेंट फाइल लेकर भागा-भागा आया और कही कि यह काम कृषि विभाग का है। वह उन्हें फाइल भेज रहा है। कृषि विभाग ने पेड़ हटवाने की जिम्मेदारी व्यापार विभाग पर डाल दी। व्यापार विभाग ने कृषि विभाग पर जिम्मेदारी डालकर अपना पल्ला झाड़ लिया। दूसरे दिन भी फाइल चलती रही। शाम को इस मामले को हॉर्टीकल्चर विभाग के पास भेजने का फैसला किया गया, क्योंकि यह फलदार पेड़ है।

रात को माली ने दबे हुए आदमी को दाल-भात खिलाया, जबकि उसके चारों तरफ पुलिस का पहरा था। माली ने उसके परिवार के बारे में पूछा तो दबे हुए आदमी ने स्वयं को लावारिस बताया। तीसरे दिन हॉर्टीकल्चर विभाग से जवाब आया कि आजकल ‘पेड़ लगाओ’ स्कीम जोर-शोर से चल रही है। अत: जामुन के पेड़ को काटने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

एक मनचले ने आदमी को काटने की बात की। इससे पेड़ बच जाएगा। दबे हुए आदमी ने इस पर आपत्ति की कि ऐसे तो वह मर जाएगा। आदमी काटने वाले ने अपना तर्क दिया कि आजकल प्लास्टिक सर्जरी उन्नति कर चुकी है। यदि आदमी को बीच में से काटकर निकाल लिया जाए तो उसे प्लास्टिक सर्जरी से जोड़ा जा सकता है। इस बात पर फाइल मेडिकल विभाग भेजी गई। वहाँ से रिपोर्ट आई कि सारी जाँच-पड़ताल करके पता चला कि प्लास्टिक सर्जरी तो हो सकती है, किंतु आदमी मर जाएगा। अत: यह फैसला रद्द हो गया।

रात को माली ने उस आदमी को बताया कि कल सभी सचिवों की बैठक होगी। वहाँ केस सुलझने के आसार हैं। दबे हुए आदमी ने गालिब का एक शेर सुनाया

“ये तो माना कि तगाफूल न करोगे लेकिन

खाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक!”

यह सुनकर माली हैरान हो गया। आदमी के शायर होने की बात सारे सचिवालय में फैल गई, फिर यह चर्चा शहर में फैल गई और तरह-तरह के कवि व शायर वहाँ इकट्ठे हो गए। वे सभी अपनी रचनाएँ सुनाने लगे। कई क्लर्क उस आदमी से अपनी कविता पर आलोचना करने को मजबूर करने लगे। जब यह पता चला कि दबा हुआ व्यक्ति कवि है, तो सब-कमेटी ने यह मामला कल्चरल डिपार्टमेंट को सौंप दिया। साहित्य अकादमी के सचिव के पास फाइल पहुँची। सचिव उसी समय उस आदमी का इंटरव्यू लेने पहुँचा। दबे हुए आदमी ने बताया कि उसका उपनाम ओस है तथा कुछ दिन पहले उसका लिखा हुआ ‘ओस के फूल’ गद्य-संग्रह प्रकाशित हुआ है। सचिव ने आश्चर्य जताया कि इतना बड़ा लेखक उनकी अकादमी का सदस्य नहीं है। आदमी ने कहा कि मुझे पेड़ के नीचे से निकालिए। सचिव उसे आश्वासन देकर चला गया।

अगले दिन सचिव ने उसे साहित्य अकादमी का सदस्य चुने जाने की बधाई दी। आदमी ने उसे पेड़ के नीचे से निकालने की प्रार्थना की तो उसने असमर्थता जताई। उसने कहा कि यदि तुम मर गए तो वे उसकी बीवी को वजीफा दे सकते हैं। उनके विभाग का संबंध सिर्फ कल्चर से है। पेड़ काटने का काम आरी-कुल्हाड़ी से होगा। वन विभाग को लिख दिया गया है। शाम को माली ने बताया कि कल वन विभाग वाले पेड़ काट देंगे।

माली खुश था। दबे हुए आदमी का स्वास्थ्य जवाब दे रहा था। दूसरे दिन वन विभाग के लोग आरी-कुल्हाड़ी लेकर आए तो विदेश विभाग के आदेश से यह कार्य रोक दिया गया। यह पेड़ पीटोनिया राज्य के प्रधानमंत्री ने सचिवालय में दस साल पहले लगाया था। पेड़ काटने से दोनों राज्यों के संबंध बिगड़ जाएँगे। दूसरे पीटोनिया सरकार राज्य को बहुत सहायता देती है। दो देशों की खातिर एक आदमी के जीवन का बलिदान दिया जा सकता है।

अंडर सेक्रेटरी ने बताया कि प्रधानमंत्री विदेश दौरे से सुबह वापस आ गए हैं। अब वे ही निर्णय देंगे। शाम के पाँच बजे स्वयं सुपरिंटेंडेंट कवि की फाइल लेकर आया और चिल्लाया कि प्रधानमंत्री ने सारी जिम्मेदारी स्वयं लेते हुए पेड़ काटने की अनुमति ो दे दी। कल यह पेड़ काट दिया जाएगा। तुम्हारी फाइल पूरी हो गई।

परंतु कवि का हाथ ठंडा था। उसके जीवन की फाइल भी पूरी हो चुकी थी।

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 Chapter 7 रजनी | CLASS 11TH | REVISION NOTES FOR HINDI AROH

हिन्दी Notes Class 11 Hindi Chapter 7 रजनी

पाठ का साराशी

पटकथा यानी पट या स्क्रीन के लिए लिखी गई वह कथा रजत पट अर्थात् फिल्म की स्क्रीन के लिए भी हो सकती है और टेलीविजन के लिए भी। मूल बात यह है कि जिस तरह मंच पर खेलने के लिए नाटक लिखे जाते हैं, उसी तरह कैमरे से फिल्माए जाने के लिए पटकथा लिखी जाती है। कोई भी लेखक अन्य किसी विधा में लेखन करके उतने लोगों तक अपनी बात नहीं पहुँचा सकता, जितना पटकथा लेखन द्वारा। इसका कारण यह है कि पटकथा शूट होने के बाद धारावाहिक या फिल्म के रूप में लाखों-करोड़ों दर्शकों तक पहुँच जाती है। इसी कारण पटकथा लेखन की ओर लेखकों का रुझान हुआ है। यहाँ मन्नू भंडारी द्वारा लिखित रजनी धारावाहिक की कड़ी दी जा रही है। यह नाटक 20वीं सदी के नवें दशक का बहुचर्चित टी.वी. धारावाहिक रहा है। यह वह समय था जब हमलोग और बुनियाद जैसे सोप ओपेरा दूरदर्शन का भविष्य गढ़ रहे थे। बासु चटर्जी के निर्देशन में बने इस धारावाहिक की हर कड़ी स्वयं में स्वतंत्र और मुकम्मल होती थी और उन्हें आपस में गूँथने वाली सूत्र रजनी थी। हर कड़ी में यह जुझारन और इंसाफ-पसंद स्त्री-पात्र किसी-न-किसी सामाजिक- राजनीतिक समस्या से जूझती नजर आती थी।

यहाँ रजनी धारावाहिक की जो कड़ी दी जा रही है, वह व्यवसाय बनती शिक्षा की समस्या की ओर समाज का ध्यान खींचती है।

पहला दृश्य

स्थान-लीला का घर
रजनी लीला के घर जाती है तथा उससे बाजार चलने को कहती है। लीला उसे बताती है कि अमित का आज रिजल्ट आ रहा है। रजनी उसे मिठाई तैयार रखने को कहती है, क्योंकि अमित बहुत होशियार है। अमित के लिए रजनी आंटी हीरो है। तभी अमित स्कूल से आता है। उसका चेहरा उतरा हुआ है। वह रिपोर्ट कार्ड माँ की तरफ फेंकते हुए कहता है कि मैंने पहले ही गणित में ट्यूशन लगवाने को कहा था। ट्यूशन न करने की वजह से उसे केवल 72 अंक मिले, लीला कहती है कि तूने सारे सवाल ठीक किए थे। तुझे पंचानवे नंबर जरूर मिलने थे। रजनी कार्ड देखती है। दूसरे विषयों में 86, 80, 88, 82, 90 अंक मिले। सबसे कम गणित में मिले। अमित गुस्से व दुख से कहता है कि सर बार-बार ट्यूशन की चेतावनी देते थे तथा न करने पर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने की चेतावनी देते थे। लीला इसे अंधेरगर्दी कहती है। रजनी अमित को तसल्ली देती है तथा सारी बातों की जाँच करती है। उसे पता चलता है कि मिस्टर पाठक उन्हें गणित पढ़ाते हैं। वे हर बच्चे को ट्यूशन लेने के लिए कहते हैं। अमित ने हाफ ईयरली में छियानबे नंबर लिए थे। अध्यापक ने फिर भी उसे ट्यूशन रखने का आग्रह किया। अमित अपनी माँ पर इसका दोषारोपण किया। रजनी उसे समझाती है कि उसे अध्यापक से लड़ना चाहिए। यह सारी बदमाशी उसकी है। रजनी अमित को कहती है कि वह कल उसके स्कूल जाकर सर से मिलेगी। अमित डरकर उन्हें जाने से रोकता है। रजनी उसे डाँटती है तथा अगले दिन स्कूल जाने का संकल्प लेती है।

दूसरा दृश्य

स्थान-हैडमास्टर का कमरा।
रजनी अमित के स्कूल के हैडमास्टर से मिलने गई। उसने अमित सक्सेना की गणित की कापी देखने की अनुमति माँगी। हैडमास्टर ने वार्षिक परीक्षा की कॉपियाँ दिखाने में असमर्थता दिखाई। रजनी कहती है कि अमित ने मैथ्स में पूरा पेपर ठीक किया था, परंतु उसे केवल बहत्तर अंक मिले। वह देखना चाहती है कि गलती किसकी है। हैडमास्टर फिर भी कॉपी न दिखाने पर अड़ा रहता है और अमित को दोषी बताता है। रजनी कहती है कि अमित के पिछले रिजल्ट बहुत बढ़िया हैं। इस बार उसके नंबर किस बात के लिए काटे गए। हैडमास्टर नियमों की दुहाई देते हैं तो रजनी व्यंग्य करती है कि यहाँ होशियार बच्चों को भी ट्यूशन लेने के लिए मजबूर किया जाता है। हैडमास्टर ट्यूशन को टीचर्स व स्टूडेंट्स का आपसी मामला बताता है। वे इनसे अलग रहते हैं। रजनी उसे कुर्सी छोड़ने के लिए कहती है ताकि ट्यूशन के काले धंधे को रोका जा सके। हैडमास्टर आग-बबूला होकर रजनी को वहाँ से चले जाने को कहता है।

तीसरा दृश्य

स्थान-रजनी का घर
शाम के समय रजनी के पति घर आते हैं। वह उनके लिए चाय लाती है, फिर उन्हें अपने काम के बारे में बताती है। इस पर रवि उसे समझाते हैं कि टीचर ट्यूशन करें या धधा। तुम्हें क्या परेशानी है। तुम्हारा बेटा तो अभी पढ़ने नहीं जा रहा। इस बात पर रजनी भड़क जाती है और कहती है कि अमित के लिए आवाज क्यों नहीं उठानी चाहिए। अन्याय करने वाले से अधिक दोषी अन्याय सहने वाला होता है। तुम्हारे जैसे लोगों के कारण इस देश में कुछ नहीं होता।

चौथा दृश्य

स्थान-डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन का कार्यालय।
रजनी दफ्तर के बाहर बेंच पर बैठी अधिकारी से मिलने की प्रतीक्षा कर रही है। वह बैचेन हो रही है। प्रतीक्षा करते-करते जब बहुत देर हो जाती है तो वह बड़बड़ाने लगती है। तभी एक आदमी आता है तथा स्लिप के नीचे पाँच रुपये का नोट रखकर देता है। चपरासी उसे तुरंत अंदर भेजता है। रजनी यह देखकर क्रोधित होती है। वह चपरासी को धकेलकर अंदर चली जाती है। निदेशक उसे घंटी बजने पर अंदर आने की बात कहता है। रजनी उसे खरी-खोटी सुनाती है। इस पर निदेशक उससे बात करता है। रजनी प्राइवेट स्कूलों और बोर्ड के आपसी संबंधों के बारे में जानकारी इकट्ठा कर रही है। निदेशक समझता है कि शायद वह कोई रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। वह बताता है कि बोर्ड मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूलों को 90% ग्रांट देता है। इस ग्रांट के बदले वे स्कूलों पर नियंत्रण रखते हैं। स्कूलों को उनके नियम मानने होते हैं। इस पर रजनी कहती है कि प्राइवेट स्कूलों में ट्यूशन के धंधे के बारे में आपका क्या रवैया है। निदेशक कहता है कि इसमें धंधे जैसी कोई बात नहीं है। कमजोर बच्चे के माँ-बाप उसे ट्यूशन दिलवाते हैं। यह कोई मजबूरी नहीं है। इस पर रजनी उसे बताती है कि होशियार बच्चों को भी ट्यूशन लेने के लिए मजबूर किया जाता है। अगर ट्यूशन न ली जाए तो उसके नंबर कम दिए जाते हैं। हैडमास्टर ऐसे टीचर के खिलाफ एक्शन लेने से परहेज करता है। क्या आपको ऐसे रैकेट बंद करने के लिए दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए? इस पर निदेशक कहता है कि आज तक कोई शिकायत नहीं आई। रजनी व्यंग्य करती है कि बिना शिकायत के आपको कोई जानकारी नहीं होती। निदेशक अपनी व्यस्तता का तर्क देता है तो रजनी उसे कहती है-मैं आपके पास शिकायतों का ढेर लगवाती हूँ।

पाँचवाँ दृश्य

स्थान-अखबार का कार्यालय
रजनी संपादक के पास जाती है। संपादक उनके कार्य की प्रशंसा करता है और कहता है कि आपने ट्यूशन के विरोध में बाकायदा एक आंदोलन खड़ा कर दिया। यह जरूरी है। रजनी जोश में कहती है कि आप हमारा साथ दीजिए तथा इसे अपने समाचार में स्थान दें। इससे यह थोड़े लोगों की बात नहीं रह जाती। इससे अनेक अभिभावकों को राहत मिलेगी तथा बच्चों का भविष्य सँवर जाएगा।
संपादक रजनी की भावनाएँ समझकर साथ देने का वादा करता है। उसने सारी बातें नोट की तथा एक समाचार भिजवाया। रजनी उसे बताती है कि 25 तारीख को पेरेंट्स की मीटिंग की जा रही है। वे यह सूचना अखबार में जरूर दे दें तो सब लोगों को सूचना मिल जाएगी।

छठा दृश्य

स्थान-बैठक-स्थल
एक हाल में पेरेंट्स की मीटिंग चल रही है। बाहर बैनर लगा हुआ है। काफी लोग आ रहे हैं। अंदर हाल भरा हुआ है। प्रेस के लोग आते हैं। रजनी जोश में संबोधित कर रही है-आपकी उपस्थिति से हमारी मंजिल शीघ्र मिल जाएगी। कुछ बच्चों को ट्यूशन जरूरी है, क्योंकि कुछ माएँ पढ़ा नहीं सकतीं तो कुछ पिता घर के काम में मदद जरूरी नहीं समझते। टीचर्स के एक प्रतिनिधि ने बताया कि उन्हें कम वेतन मिलता है। अत: उन्हें ट्यूशन करना पड़ता है। कई जगह कम वेतन देकर अधिक वेतन पर दस्तखत करवाए जाते हैं। इस पर हमारा कहना है कि वे संगठित होकर आदोलन चलाएँ तथा अन्याय का पर्दाफाश करें। हम यह नियम बनाएँ कि स्कूल का टीचर अपने स्कूल के बच्चों का ट्यूशन नहीं करेगा। इस नियम को तोड़ने वाले टीचर्स के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी। इससे बच्चों के साथ जोर-जबरदस्ती अपने-आप बंद हो जाएगी। सभा में लोगों ने इस बात का समर्थन किया।

सातवाँ दृश्य

स्थान-रजनी का घर
रजनी के पति अखबार पढ़ते हुए बताते हैं कि बोर्ड ने तुम्हारे प्रस्ताव को ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लिया। रजनी बहुत प्रसन्न होती है। पति भी उस पर गर्व करते हैं। तभी लीला बेन, कांतिभाई और अमित मिठाई लेकर वहाँ आते हैं।

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 Chapter 6 स्पीति में बारिश | CLASS 11TH | REVISION NOTES FOR HINDI AROH

हिन्दी Notes Class 11 Hindi Chapter 6 स्पीति में बारिश

पाठ का सारांश

यह पाठ एक यात्रा-वृत्तांत है। स्पीति, हिमालय के मध्य में स्थित है। यह स्थान अपनी भौगोलिक एवं प्राकृतिक विशेषताओं के कारण अन्य पर्वतीय स्थलों से भिन्न है। लेखक ने यहाँ की जनसंख्या, ऋतु, फसल, जलवायु व भूगोल का वर्णन किया है। ये एक-दूसरे से संबंधित हैं। उन्होंने दुर्गम क्षेत्र स्पीति में रहने वाले लोगों के कठिनाई भरे जीवन का भी वर्णन किया है। कुछ युवा पर्यटकों का पहुँचना स्पीति के पर्यावरण को बदल सकता है। ठंडे रेगिस्तान जैसे स्पीति के लिए उनका आना, वहाँ बूंदों भरा एक सुखद संयोग बन सकता है।

लेखक बताता है कि हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील स्पीति है। ऊँचे दरों व कठिन रास्तों के कारण इतिहास में इसका नाम कम ही रहा है। आजकल संचार के आधुनिक साधनों में वायरलेस के जरिए ही केलग व काजा के बीच संबंध रहता है। केलग के बादशाह को हमेशा अवज्ञा या बगावत का डर रहता है। यह क्षेत्र प्राय: स्वायत्त रहा है चाहे कोई भी राजा रहा हो। इसका कारण यहाँ का भूगोल है। भूगोल ही इसकी रक्षा तथा संहार करता है। पहले राजा का हरकारा आता था तो उसके आने तक अल्प वसंत बीत जाता था। जोरावर सिंह हमले के समय स्पीति के लोग घर छोड़कर भाग गए थे। उसने यहाँ के घरों और विहारों को लूटा।

स्पीति में जनसंख्या लाहुल से भी कम है। 1901 में यहाँ 3231 लोग थे, अब यहाँ 34,000 लोग हैं। लाहुल स्पीति का क्षेत्रफल 12210 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ जनसंख्या प्रति वर्गमील बहुत कम है। भारत को यहाँ का प्रशासन ब्रिटिश राज से मिला। अंग्रेजों ने 1846 ई. में कश्मीर के राजा गुलाब सिंह से यहाँ का प्रशासन लिया था ताकि वे पश्चिमी तिब्बत के ऊन वाले क्षेत्र में जा सकें। लद्दाख मंडल के समय यहाँ का शासन स्थानीय राजा (नोनी) द्वारा चलाया जाता था। अंग्रेजी काल में कुल्लू के असिस्टेंट कमिश्नर के समर्थन से नोनो काम करता था। स्थानीय लोग इसे अपना राजा मानते थे।

1873 ई. में स्पीति रेगुलेशन में लाहुल व स्पीति को विशेष दर्जा दिया गया। यहाँ पर अन्य कानून लागू नहीं होते थे। यहाँ के नोनो को मालगुजारी इकट्ठा करने तथा छोटे-छोटे फौजदारी के मुकदमों का फैसला करने का अधिकार दिया गया। उससे ऊपर के मामले वह कमिश्नर के पास भेज देता था। 1960 में इस क्षेत्र को पंजाब राज्य में तथा 1966 में हिमाचल प्रदेश बनने के बाद राज्य के उत्तरी छोर का जिला बनाया गया।

स्पीति 31.42 और 32.59 अक्षांश उत्तर और 77.26 और 78.42 पूर्व देशांतर के बीच स्थित है। यहाँ चारों तरफ पहाड़ हैं। इसकी मुख्य घाटी स्पीति नदी की घाटी है। स्पीति नदी तिब्बत की तरफ से आती है तथा किन्नौर जिले से बहती हुई सतलुज में मिलती है। लेखक पारा नदी, पिन की घाटी के बारे में भी मान भाई से सुना है। यह क्षेत्र अत्यंत बीहड़ और वीरान है। यहाँ लोग रहते कैसे हैं? स्पीति के बारे में बताने पर यह सवाल लोग लेखक से पूछते हैं। ये क्षेत्र आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे हुए हैं। वे एक फसल उगाते हैं तथा लकड़ी व रोजगार भी नहीं है, फिर भी वे यहाँ रह रहे हैं, क्योंकि वे यहाँ रहते आए हैं। यह तर्क से परे की चीज है।

स्पीति के पहाड़ लाहुल से अधिक ऊँचे, भव्य व नंगे हैं। इनके सिरों पर स्पीति के नर-नारियों का आर्तनाद जमा हुआ है। यहाँ हिम का आर्तनाद है, ठिठुरन है और व्यथा है। स्पीति मध्य हिमालय की घाटी है। यह हिमालय का तलुआ है। लाहुल । समुद्र की तरह से 10535 फीट ऊँचा है तो स्पीति 12986 फीट ऊँचा। स्पीति घाटी को घेरने वाली पर्वत श्रेणियों की ऊँचाई 16221 से 16500 फीट है। दो चोटियाँ 21,000 फीट से भी ऊँची हैं। इन्हें बारालचा श्रेणियाँ कहते हैं। दक्षिण की पर्वत श्रेणियों को माने श्रेणियाँ कहते हैं। शायद बौद्धों के माने मंत्रों के नाम पर इनका नामकरण किया गया हो। बौद्धों का बीज मंत्र ‘ओों मणि पद्भे हु’ है। इसे संक्षेप में माने कहते है।

स्पीति के पार बाह्य हिमालय दिखता है। इसकी एक चोटी 23,064 फीट ऊँची बताई जाती है। लेखक चोटियों से होड़ लगाने के पक्ष में नहीं है। इन ऊँचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु है। कभी-कभी उनका मान-मर्यादा करना मर्द और औरत की शान है। लेखक चाहता है कि देश-दुनिया के मैदानों व पहाड़ों से युवक-युवतियाँ आकर अपने अहंकार को गलाकर फिर चोटियों के अहंकार को चूर करें। माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई। युवक-युवतियाँ यहाँ आकर किलोल करें तो यहाँ आनंद का प्रसार हो।

स्पीति में दो ही ऋतुएँ होती हैं। जून से सितंबर तक अल्पकालिक वसंत ऋतु तथा शेष वर्ष शीत ऋतु होती है। बसंत में जुलाई में औसत तापमान 15० सेंटीग्रेड तथा शीत में, जनवरी में औसत तापमान 8० सेंटीग्रेड होता है। वसंत में दिन गर्म तथा रात ठंडी होती है। शीत ऋतु की ठंड की कल्पना ही की जा सकती है। यहाँ वसंत का समय लाहुल से कम होता है। इस ऋतु में यहाँ फूल, हरियाली आदि नहीं आते। दिसंबर से मई तक बर्फ रहती है। नदी-नाले जम जाते हैं। तेज हवाएँ मुँह, हाथ व अन्य खुले अंगों पर शूल की तरह चुभती हैं।

यहाँ मानसून की पहुँच नहीं है। यहाँ बरखा बहार नहीं है। कालिदास को अपने ‘ऋतु संहार’ ग्रंथ में से वर्षा ऋतु का वर्णन हटाना होगा। उसका वर्षा वर्णन लाहुल-स्पीति के लोगों की समझ से परे है। वे नहीं जानते कि बरसात में नदियाँ बहती हैं,बादल बरसते हैं और मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं। जंगलों में हरियाली छा जाती है और वियोगिनी स्त्रियाँ तड़पती हैं। यहाँ के लोगों ने कभी पर्याप्त वर्षा नहीं देखी। धरती सूखी, ठंडी व वंध्या रहती है।

स्पीति में एक ही फसल होती है जिनमें जौ, गेहूँ, मटर व सरसों प्रमुख है। इनमें भी जो मुख्य है। सिंचाई के साधन पहाड़ों से बहने वाले झरने हैं। स्पीति नदी का पानी काम में नहीं आता। स्पीति की भूमि पर खेती की जा सकती है बशर्त वहाँ पानी पहुँचाया जाए। यहाँ फल, पेड़ आदि नहीं होते। भूगोल के कारण स्पीति नंगी व वीरान है। वर्षा यहाँ एक घटना है। लेखक एक घटना का वर्णन करता है। वह काजा के डाक बंगले में सो रहा था। आधी रात के समय उन्हें लगा कि कोई खिड़की खड़का रहा है। उसने खिड़की खोली तो हवा का तेज झोंका मुँह व हाथ को छीलने-सा लगा। उसने पल्ला बंद किया तथा आड़ में देखा कि बारिश हो रही है। बर्फ की बारिश हो रही थी। सुबह उठने पर पता चला कि लोग उनकी यात्रा को शुभ बता रहे थे। यहाँ बहुत दिनों बाद बारिश हुई।

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Chapter 5 गलता लोहा | Class 11th | revision notes for Hindi aroh

हिन्दी Notes Class 11 Hindi Chapter 5 गलता लोहा

पाठ का सारांश

गलता लोहा कहानी में समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोणों से टिप्पणी की गई है। यह कहानी लेखक के लेखन में अर्थ की गहराई को दर्शाती है। इस पूरी कहानी में लेखक की कोई मुखर टिप्पणी नहीं है। इसमें एक मेधावी, किंतु निर्धन ब्राहमण युवक मोहन किन परिस्थितियों के चलते उस मनोदशा तक पहुँचता है, जहाँ उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हो जाता है। सामाजिक विधि-निषेधों को ताक पर रखकर वह धनराम लोहार के आफर पर बैठता ही नहीं, उसके काम में भी अपनी कुशलता दिखाता है। मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे को प्रस्तावित करता प्रतीत होता है मानो लोहा गलकर नया आकार ले रहा हो।

मोहन के पिता वंशीधर ने जीवनभर पुरोहिती की। अब वृद्धावस्था में उनसे कठिन श्रम व व्रत-उपवास नहीं होता। उन्हें चंद्रदत्त के यहाँ रुद्री पाठ करने जाना था, परंतु जाने की तबियत नहीं है। मोहन उनका आशय समझ गया, लेकिन पिता का अनुष्ठान कर पाने में वह कुशल नहीं है। पिता का भार हलका करने के लिए वह खेतों की ओर चला, लेकिन हँसुवे की धार कुंद हो चुकी थी। उसे अपने दोस्त धनराम की याद आ गई। वह धनराम लोहार की दुकान पर धार लगवाने पहुँचा।

धनराम उसका सहपाठी था। दोनों बचपन की यादों में खो गए। मोहन ने मास्टर त्रिलोक सिंह के बारे में पूछा। धनराम ने बताया कि वे पिछले साल ही गुजरे थे। दोनों हँस-हँसकर उनकी बातें करने लगे। मोहन पढ़ाई व गायन में निपुण था। वह मास्टर का चहेता शिष्य था और उसे पूरे स्कूल का मॉनीटर बना रखा था। वे उसे कमजोर बच्चों को दंड देने का भी अधिकार देते थे। धनराम ने भी मोहन से मास्टर के आदेश पर डडे खाए थे। धनराम उसके प्रति स्नेह व आदरभाव रखता था, क्योंकि जातिगत आधार की हीनता उसके मन में बैठा दी गई थी। उसने मोहन को कभी अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा।

धनराम गाँव के खेतिहर या मजदूर परिवारों के लड़कों की तरह तीसरे दर्जे तक ही पढ़ पाया। मास्टर जी उसका विशेष ध्यान रखते थे। धनराम को तेरह का पहाड़ा कभी याद नहीं हुआ। इसकी वजह से उसकी पिटाई होती। मास्टर जी का नियम था कि सजा पाने वाले को अपने लिए हथियार भी जुटाना होता था। धनराम डर या मंदबुद्ध होने के कारण तेरह का पहाड़ा नहीं सुना पाया। मास्टर जी ने व्यंग्य किया-‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे। विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?”

इतना कहकर उन्होंने थैले से पाँच-छह दरॉतियाँ निकालकर धनराम को धार लगा लाने के लिए पकड़ा दी। हालाँकि धनराम के पिता ने उसे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखा दी। विद्या सीखने के दौरान मास्टर त्रिलोक सिंह उसे अपनी पसंद का बेंत चुनने की छूट देते थे, परंतु गंगाराम इसका चुनाव स्वयं करते थे। एक दिन गंगाराम अचानक चल बसे। धनराम ने सहज भाव से उनकी विरासत सँभाल ली।

इधर मोहन ने छात्रवृत्ति पाई। इससे उसके पिता वंशीधर तिवारी उसे बड़ा आदमी बनाने का स्वप्न देखने लगे। पैतृक धंधे ने उन्हें निराश कर दिया था। वे कभी परिवार का पूरा पेट नहीं भर पाए। अत: उन्होंने गाँव से चार मील दूर स्कूल में उसे भेज दिया। शाम को थकामाँदा मोहन घर लौटता तो पिता पुराण कथाओं से उसे उत्साहित करने की कोशिश करते। वर्षा के दिनों में मोहन नदी पार गाँव के यजमान के घर रहता था। एक दिन नदी में पानी कम था तथा मोहन घसियारों के साथ नदी पार कर घर आ रहा था। पहाड़ों पर भारी वर्षा के कारण अचानक नदी में पानी बढ़ गया। किसी तरह वे घर पहुँचे इस घटना के बाद वंशीधर घबरा गए और फिर मोहन को स्कूल न भेजा।

उन्हीं दिनों बिरादरी का एक संपन्न परिवार का युवक रमेश लखनऊ से गाँव आया हुआ था। उससे वंशीधर ने मोहन की पढ़ाई के संबंध में अपनी चिंता व्यक्त की तो वह उसे अपने साथ लखनऊ ले जाने को तैयार हो गया। उसके घर में एक प्राणी बढ़ने से कोई अंतर नहीं पड़ता। वंशीधर को रमेश के रूप में भगवान मिल गया। मोहन रमेश के साथ लखनऊ पहुँचा। यहाँ से जिंदगी का नया अध्याय शुरू हुआ। घर की महिलाओं के साथ-साथ उसने गली की सभी औरतों के घर का काम करना शुरू कर दिया। रमेश बड़ा बाबू था। वह मोहन को घरेलू नौकर से अधिक हैसियत नहीं देता था। मोहन भी यह बात समझता था। कह सुनकर उसे समीप के सामान्य स्कूल में दाखिल करा दिया गया। कारों के बोझ व नए वातावरण के कारण वह । अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया। गर्मियों की छुट्टी में भी वह तभी घर जा पाता जब रमेश या उसके घर का कोई आदमी गाँव जा रहा होता। उसे अगले दरजे की तैयारी के नाम पर शहर में रोक लिया जाता।

मोहन ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था। वह घर वालों को असलियत बताकर दुखी नहीं करना चाहता था। आठवीं कक्षा पास करने के बाद उसे आगे पढ़ने के लिए रमेश का परिवार उत्सुक नहीं था। बेरोज्ग्री का तर्क देकर उसे तकनी स्कूल में दाखिल करा दिया गया। वह पहले की तरह घर व स्कूल के काम में व्यस्त रहता। डेढ़-दो वर्ष के बाद उसे कारखानों के चक्कर काटने पड़े। इधर वंशीधर को अपने बेटे के बड़े अफसर बनने की उम्मीद थी। जब उसे वास्तविकता का पता चला तो उसे गहरा दुख हुआ। धनराम ने भी उससे पूछा तो उसने झूठ बोल दिया। धनराम ने उन्हें यही कहो-मोहन लला बचपन से ही बड़े बुद्धमान थे।

इस तरह मोहन और धनराम जीवन के कई प्रसंगों पर बातें करते रहे। धनराम ने हँसुवे के फाल को बेंत से निकालकर तपाया, फिर उसे धार लगा दी। आमतौर पर ब्राहमण टोले के लोगों का शिल्पकार टोले में उठना-बैठना नहीं होता था। काम-काज के सिलसिले में वे खड़े-खड़े बातचीत निपटा ली जाती थी। ब्राहमण टोले के लोगों को बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। मोहन धनराम की कार्यशाला में बैठकर उसके काम को देखने लगा।

धनराम अपने काम में लगा रहा। वह लोहे की मोटी छड़ को भट्टी में गलाकर गोल बना रहा था, किंतु वह छड़ निहाई पर ठीक से फैंस नहीं पा रही थी। अत: लोहा ठीक ढंग से मुड़ नहीं पा रहा था। मोहन कुछ देर उसे देखता रहा और फिर उसने दूसरी पकड़ से लोहे को स्थिर कर लिया। नपी-तुली चोटों से छड़ को पीटते-पीटते गोले का रूप दे डाला। मोहन के काम में स्फूर्ति देखकर धनराम अवाक् रह गया। वह पुरोहित खानदान के युवक द्वारा लोहार का काम करने पर आश्चर्यचकित था। धनराम के संकोच, धर्मसंकट से उदासीन मोहन लोहे के छल्ले की त्रुटिहीन गोलाई की जाँच कर रहा था। उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी।

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