Chapter 14 पहलवान की ढोलक | Ncert solution for class 12th hindi Aroh

पहलवान की ढोलक Class 12 Hindi Aroh NCERT Books Solutions

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1. कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द कीजिए।

लुट्टन ढोल की आवाज से अत्यधिक प्रभावित था। वह ढोल की एक-एक थाप को सुनकर उत्साहित हो उठता था। ढोल की प्रत्येक थाप उसे कुश्ती का कोई न कोई दाव पेंच अवश्य बताती थी जिससे प्रेरणा लेकर वह कुश्ती करता था। ढोल की ध्वनियाँ उसे इस प्रकार के अर्थ सांकेतिक करती थी:-“

ढोल की आवाजअर्थ
क) चट-धा, गिड़-धाआ जा, भिड़ जा
ख) चटाक-चट-धाउठाकर पटक दे
ग) ढाक-ढिनावाह पट्ठे
घ) चट-गिड़-धामत डरना
ङ) धाक-धिना, तिरकट-तिनादाँव काटो और बाहर हो जा

ये शब्द हमारे मन में भी उत्साह भरते हैं और संघर्ष करने की प्रेरणा देते हैं।

प्रश्न 2. कहानी के किस किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए?

क) सर्वप्रथम माता पिता के निधन के बाद लुट्टन अनाथ हो गया और उसकी विधवा सास ने ही उसका भरण पोषण किया।

ख) श्यामनगर दंगल में लुट्टन ने चाँद सिंह को हरा दिया और राज दरबार में स्थाई पहलवान बन गया।

ग) पन्द्रह साल बाद राजा की मृत्यु हो गई और विलायत से लौटे राजकुमार ने उसे राजदरबार से हटा दिया और वह अपने गाँव लौट आया।

घ) गाँव में अनावृष्टि के बाद मलेरिया और हैजा फैल गया जिससे उसके दोनों पुत्रों की मृत्यु हो गई।

ङ) पुत्रों की मृत्यु के चार-पाँच दिन बाद रात को लुट्टन की भी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 3. लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है?

लुट्टन ने किसी गुरु से कुश्ती के दांव-पेंच नहीं सीखे थे। उसे केवल ढोलक की उत्तेजक आवाज से ही प्रेरणा मिलती थी। ढोलक पर थाप पढ़ते ही उसकी नसे उत्तेजित हो उठती थी और तन-बदन कुश्ती के लिए मचल उठता था। श्यामनगर के मेले में उसने चाँद सिंह को ढोल की आवाज पर ही चित किया था। इसलिए कुश्ती जीतने के बाद उसने ढोल को प्रणाम किया और वह ढोल को ही अपना गुरु मानने लगा।

प्रश्न 4. गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?

लुट्टन पहलवान पर ढोल की आवाज का गहरा प्रभाव पड़ता था। ढोल की आवाज उसके शरीर की नसों में उत्तेजना पर देती थी। यह आवाज गाँव के लोगों को भी उत्साहित करती थी। गाँव में महामारी के कारण लोगों में सन्नाटा छाया हुआ था। उसी ढोल की आवाज से लोगों को जिंदगी का एहसास होता था। लोग समझते थे कि जब लुट्टन का ढोल बज रहा है तो मौत का कैसा डर! अपने बेटों की मृत्यु के बावजूद भी वह मृत्यु के सन्नाटे को तोड़ने के लिए निरंतर ढोल बजाता रहा।

प्रश्न 5. ढोलक की आवाज का पूरे गाँव में क्या असर होता था?

ढोला की आवाज से रात का सन्नाटा और डर कम हो जाता था। बच्चे या बूढ़े हो या जवान; ढोल की आवाज से सभी को आँखों के सामने दंगल का दृश्य नाचने लगता था और वे उत्साह से भर जाते थे। लुट्टन का सोचना था कि ढोलक की आवाज गाँव के लोगों में भी उत्साह उत्पन्न करती है। भले ही लोग रोग के कारण मर रहे थे लेकिन जब तक जिंदा रहते थे तब तक मौत से डरते नहीं थे। ढोलक की आवाज मौत के दर्द को सहनीय बना देती थी और वे आराम से मरते थे।

प्रश्न 6. महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?

महामारी फैलने के बाद पूरे गाँव की तस्वीर बदल गई थी। सूर्योदय होते ही गाँव में हलचल मच जाती थी। भले ही बीमार लोग रोते थे फिर भी उनके चेहरे पर एक कांति होती थी। सवेरा होते ही गाँव के लोग अपने स्वजनों के पास जाते थे और उन्हें सांत्वना देते थे। जिससे उनका जीवन उत्साहित हो उठता था।

सूर्यास्त होते ही लोग अपनी-अपनी झोपड़ियों में चुपचाप घुस जाते थे। उनकी बोलने की शक्ति भी समाप्त हो जाती थी। रात के समय पूरे गाँव में कोई हलचल नहीं होती थी।

प्रश्न 7. कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था-

क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?

अब पहलवानों को कोई भी सम्मान नहीं मिलता। केवल कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में दंगल आयोजित किए जाते हैं। अब राजा-महाराजाओं का जमाना भी नहीं है। उनका स्थान विधायकों एवं सांसद सदस्यों तथì#2366; मंत्रियों ने ले लिया है। उनके पास इन कार्यों के लिए कोई समय नहीं है। दूसरा मनोरंजन के अनेक अन्य साधन अब प्रचलित हो गए हैं।

ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?

कुश्ती या दंगल की जगह अब क्रिकेट, फुटबॉल हॉकी, घुड़दौड़, बैडमिंटन आदि खेल प्रचलित हो गए हैं।

ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?

कुश्ती को फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए अनेक उपाय अपनाए जा सकते हैं। दशहरा और होली आदि पर्व पर कुश्ती का आयोजन किया जा सकता है। सरकार की तरफ से अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवानों को पर्याप्त धनराशि तथा सरकारी नौकरी मिलनी चाहिए। इस प्रकार सेना, रेलवे, बैंक और एयरलाइंस आदि में पहलवानों को नौकरी देकर कुश्ती को बढ़ावा दिया जा सकता है।

प्रश्न 8. आशय स्पष्ट करें

आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी को जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा सफलता पर खिलखिला कर हँस पड़ते थे।

लेखक अमावस्या की घनी काली रात में चमकते व टूटते हुए तारों की रोशनी पर प्रकाश डालता है। जब भी कोई तारा टूटकर जमीन पर गिरता तो ऐसा लगता मानो वह महामारी से पीड़ित लोगों की दयनीय स्थिति पर सहानुभूति प्रकट करने के लिए आकाश से टूटकर पृथ्वी की ओर दौड़ा चला आ रहा है। लेकिन वह बेचारा कर भी क्या सकता था। दूरी होने के कारण उसकी ताकत और रोशनी नष्ट हो जाती थी। आकाश के दूसरे तारे उसकी असफलता को देखकर मानो हँसने लगते थे। भाव यह है कि कोई भी व्यक्ति महामारी से पीड़ित लोगों की सहायता करने में समर्थ नहीं हो पाता था।

प्रश्न 9. पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।

1. अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी।

उत्तर:- आशय – यहाँ पर रात का मानवीकरण किया गया है गाँव में हैजा और मलेरिया फैला हुआ था। महामारी की चपेट में आकार लोग मर रहे थे। चारों ओर मौत का सन्नाटा छाया था ऐसे में ओस की बूंदें आँसू बहाती सी प्रतीत हो रही थी।

2. अन्य तारे अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

उत्तर:- आशय – यहाँ पर तारों को हँसता हुआ दिखाकर उनका मानवीकरण किया गया है। यहाँ पर तारे मज़ाक उड़ाते हुए प्रतीत हो रहें हैं।

पहलवान की ढोलक

अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1:

‘ढोल में तो जैसे पहलवान की जान बसी थी पहलवान की ढोलक पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।

उत्तर –

लुट्टन सिंह जब जवानी के जोश में आकर चाँद सिंह नामक मैंजे हुए पहलवान को ललकार बैठा तो सारा जनसमूह, राजा और पहलवानों का समूह आदि की यह धारणा थी कि यह कच्चा किशोर जिसने कुश्ती कभी सीखी नहीं है, पहले दाँव में ही देर हो जाएगा। हालाँकि लुट्न सिंह की नसों में बिजली और मन में जीत का जज्बा उबाल खा रहा था। उसे किसी की परवाह न थी। हाँ, ढोल की थाप में उसे एक एक दाँव पेंच का मार्गदर्शन जरूर मिल रहा था। उसी थाप का अनुसरण करते हुए उसने ‘शेर के बच्चे को खूब धोया, उठा-उठाकर पटका और हरा दिया। इस जीत में एकमात्र ढोल ही उसके साथ था। अतः जीतकर वह सबसे पहले ढोल के पास दौड़ा और उसे प्रणाम किया।

प्रश्न 2:

‘पहलवान की ढोलक कहानी के प्रारंभ में चित्रित प्रकृति का स्वरूप कहानी की भयावहता की ओर संकेत करता है। इस कथन पर टिप्पणी कजिए।

उत्तर –

कहानी के प्रारंभ में प्रकृति का स्वरूप कहानी की भयावहता की ओर संकेत करता है। रात के भयावह वर्णन में बताया गया है कि चारों तरफ सन्नाटा है। सियारों का क़दन व उल्लू की डरावनी आवाज निस्तब्धता को कभी-कभी भंग कर दी थी। गाँव की झोपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से माँ-माँ पुकारकर रो पड़ते थे। इससे रात्रि की निस्तब्धता में बाधा नहीं पड़ती थी।

प्रश्न 3:

पहलवान लुट्टन के सुख-चैन भरे दिन का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर –

पहलवान लुट्टन के सुख-चैन के दिन तब शुरू हुए जब उसने चाँद सिंह को कुश्ती में हराकर अपना नाम रोशन किया। राजा ने उसे दरबार में रखा। इससे उसकी कीर्ति दूर दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन व राजा की स्नेह दृष्टि मिलने से उसने सभी नामी पहलवानों को जमीन सुंघा दी। अब वह दर्शनीय जीव बन गया। मेलों में वह लंबा चोंगा पहनकर तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मस्त हाथी की तरह चलता था। हलवाई उसे मिठाई खिलाते थे।

प्रश्न 4

लुट्टन के राज-पहलवान बन जाने के बाद की दिनचय पर प्रकाश डालिए।

उत्तर –

लुटून जब राज पहलवान बन गया तो उसकी कीर्ति दूर दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन मिलने से वह राज दरबार का दर्शनीय जीव बन । गया। ठाकुरबाड़े के सामने पहलवान गरजता-‘महावीर। लोग समझ लेते पहलवान बोला। मेलों में वह घुटने तक लंबा चोंगा पहनकर तथा अस्त व्यस्त पगड़ी बाँधकर मतवाले हाथी की तरह चलता था। मेले के दंगल में वह लैंगोट पहनकर, शरीर पर मिट्टी मलकर स्वयं को साँड़ या भैसा साबित करता रहता था।

प्रश्न 5:

लुट्टन पहलवान का चरित्र-चित्रण कजिए।

अथवा

‘पहलवान की ढोलक पाठ के आधार पर लुट्टन का चरित्र चित्रण कजिए।

उत्तर –

लुट्न पहलवान के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं।

1. व्यक्तित्व लुट्टन सिंह लंबा-चौड़ा व ताकतवर व्यक्ति था। वह लंबा चोंगा पहनता था तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधता था। वह इकलौती एवं अनाथ संतान था। अतः उसका पालन-पोषण उसकी विधवा सास ने किया था।

2 भाग्यहीन-लुट्टन का भाग्य शुरू से ही खराब था। बचपन में माता-पिता गुजर गए। पत्नी युवावस्था में ही चल बसी थी। उसके दोनों लड़के महामारी की भेंट चढ़ गए। इस प्रकार वह सदैव पीड़ित रहा।

3 साहसी-लुट्टन साहसी था। उसने अपने साहस के बल पर चाँद सिंह जैसे पहलवान को चुनौती दी तथा उसे हराया। उसने ‘काला खाँ जैसे पहलवान को भी चित कर दिया। महामारी में भी वह सारी रात ढोल बजाता था।

4. संवेदनशील-लुट्टन में संवेदना थी। वह अपनी सास पर हुए अत्याचारों को सहन नहीं कर सका और पहलवान बन गया। गाँव में महामारी के समय निराशा का माहौल था। ऐसे में वह रात में ढोल बजाकर लोगों में जीने के प्रति उत्साह पैदा करता था।

प्रश्न 6:

‘पहलवान की ढोलक’ कहानी का प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

‘पहलवान की ढोलक कहानी व्यवस्था के बदलने के साथ लोक-कला और इसके कलाकार के अप्रासंगिक हो जाने को रेखांकित करती है। राजा साहब के मरते ही नयी व्यवस्था ने जन्म लिया। पुराने संबंध समाप्त कर दिए गए। पहलवानी जैसा लोकखल समाप्त कर दिया गया। यह ‘भारत’ पर इंडिया’ के छा जाने का प्रतीक है। यह व्यवस्था लोक-कलाकार को भूखा मरने पर मजबूर कर देती है।

प्रश्न 7:

लुट्टन को गाँव वापस क्यों आना पड़ा?

उत्तर –

तत्कालीन राजा कुश्ती के शौकीन थे, परंतु उनकी मृत्यु के बाद विलायत से शिक्षा प्राप्त करके आए राजकुमार ने सत्ता संभाली। उन्होंने राजकाज से लेकर महल के तौर तरीकों में भी परिवर्तन कर दिए&##2404; मनोरंजन के साधर्मों में कुश्ती का स्थान घुड़दौड़ ने ले लिया। अतः पहलवानों पर राजकीय खर्च का बहाना बनाकर उन्हें जवाब दे दिया गया। इस कारण लुट्टन को गाँव वापस आना पड़ा।

प्रश्न 8 :

पहलवान के बेटों की मृत्यु पर गाँव वालों की हिम्मत क्यों टूट गई?

उत्तर –

पहलवान के दोनों बेटे गाँव में फैली महामारी की चपेट में आकर चल बसे। इस घटना से गाँव वालों की हिम्मत टूट गई क्योंकि वे पहलवान को अपना सहारा मानते थे। अब उन्हें लगा कि पहलवान अंदर से टूट जाएगा तथा उनकी सहायता करने वाला कोई नहीं रहेगा।

प्रश्न 9:

‘पहलवान की ढोलक’ कहानी में किस प्रकार पुरानी व्यवस्था और नई व्यवस्था के टकराव से उत्पन्न समस्या को व्यक्त किया गया है? लिखिए।

उत्तर –

‘पहलवान की ढोलक कहानी में पुरानी व्यवस्था और नई व्यवस्था के टकराव से उत्पन्न समस्या यह है-

1. पुरानी व्यवस्था में कलाकारों और पहलवानों को राजाओं का आश्रय एवं संरक्षण प्राप्त था। वे शाही खर्च पर जीवित रहते थे, पर नई व्यवस्था में ऐसा न था।

2. पुरानी व्यवस्था में राज-दरबार और जनता द्वारा इन कलाकारों को मान सम्मान दिया जाता था, पर नई व्यवस्था में उन्हें सम्मान देने का प्रचलन न रहा।

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Chapter 13 काले मेघा पानी दे | Ncert solution for class 12th hindi Aroh

काले मेघा पानी दे Class 12 Hindi Aroh NCERT Solutions

काले मेघा पानी दे

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1. लोगों ने लड़कों की टोली को मेंढक मंडली नाम किस आधार पर दिया? यह टोली अपने आपको इंद्रसेना क्यों बुलाती थी?

गाँव के लोग लड़कों को नंग धड़ंग और कीचड़ में लथपथ देखकर बुरा मानते थे। उनका कहना था कि यह ढोंग और अंधविश्वास है। ऐसा करने से वर्षा नहीं होती। इसलिए वे उन्हें मेंढक मण्डली कहते थे। परंतु गाँव के किशोरों की टोली अपने आपको इंद्रसेना कहती थी। बच्चों का यह कहना था कि हम इंद्र भगवान से वर्षा कराने के लिए लोगों से पानी का अर्घ्य मांग रहे हैं। ऐसा करने से इंद्र देवता वर्षा का दान करेंगे और खूब वर्षा होगी।

प्रश्न 2. जीजी ने इंद्रसेना पर पानी फेंके जाने को किस तरह सही ठहराया?

जीजी का कहना था कि देवता से कुछ पाने के लिए हमें कुछ दान और त्याग करना पड़ता है। किसान भी 30-40 मण अनाज पाने के लिए 5-6 सेर गेहूँ की बुवाई करता है। तब कहीं जाकर उसका खेत हरा भरा होकर लहराता है। इंद्रसेना लोगों को यह प्रेरणा देती है कि वे इंद्र देवता को अर्घ्य चढ़ाएँ। यदि लोग भगवान इंद्र को पानी का दान करेंगे तो वह भी झमाझम वर्षा करेंगे। अतः इन्द्रसेना एक प्रकार से वर्षा की अगुवाई कर रही है। हमें इस परंपरा का पालन करना चाहिए।

प्रश्न 3. पानी दे, गुड़धानी दे, मेघो से पानी के साथ-साथ गुड़धानी की मांग क्यों की जा रही है?

गुड़धानी का अर्थ है गुड़ और धान को मिलाकर बनाया गया लड्डू। इंद्रसेना के किशोर देवता से पानी के साथ गुड़धानी की भी मांग कर रहे हैं। बच्चों को पीने के लिए पानी और खाने के लिए गुड़धानी चाहिए। यह सब बादलों पर निर्भर है। यदि बादल बरसेंगे तो खेतों में गन्ना और अनाज पैदा होंगे इस प्रकार इंद्र देवता ही हमें गुड़धानी देने वाले देवता हैं। इसलिए बच्चे पानी के साथ गुड़धानी की मांग कर रहे हैं।

प्रश्न 4. गगरी फूटी बैल प्यासा इंद्र सेना के इस खेलगीत में बैलों के प्यासा रहने की बात क्यों मुखरित हुई है?

बैल भारतीय कृषि व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहे जाते हैं। वह हमारे खेतों को जोतते हैं और अन्न उत्पन्न करते हैं। किसान इन्हीं पर निर्भर होता है। यदि वे प्यासे रहेंगे तो हमारी फसलें नष्ट हो जाएँगी। सांकेतिक रूप में लेखक यही कहना चाहता है कि वर्षा न होने से हमारे खेत सूख रहे हैं और खेती के आधार कहे जाने वाले बैल प्यास से मर रहे हैं। वर्षा होने से हमारे खेत भी बच जाएँगे और बैल भी भूखे प्यासे नहीं रहेंगे।

प्रश्न 5. इंद्र सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय क्यों बोलती है? नदियों का सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश में क्या महत्त्व है?

इंद्र सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय बोलती थी क्योंकि गंगा नदी को सबसे पवित्र नदी माना गया है। गंगा का भारतीय सांस्कृतिक दृष्टि में बहुत महत्त्व है। गंगा का जल प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि गंगाजल अंतिम समय में मुख में डालने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल से भारत के बड़े-बड़े नगर यमुना, गोदावरी और कृष्णा आदि नदियों के किनारे बसे हैं। इन्हीं नदियों के कारण हमारे समाज और सामाजिकता का विकास हुआ है। अब भी लोग नदियों को प्रणाम करते हैं और अनेक प्रमुख नदियों में स्नान करते हैं।

प्रश्न 6. रिश्तो में हमारी भावना शक्ति का बंट जाना विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजती हमारी बुद्धि की शक्ति को कमजोर करती है। पाठ में जीजी के प्रति लेखक की भावना के संदर्भ में इस कथन के औचित्य की समीक्षा कीजिए?

भावना की शक्ति मनुष्य के लिए अत्यधिक उपयोगी है। जिससे मनुष्य को स्नेह की खुराक ही मिलती है और बच्चा भावनात्मक रूप से सुरक्षित रहता है। यही नहीं इससे मानव का बौद्धिक और शारीरिक विकास होता है। बौद्धिक विकास के कारण ही लेखक कुमार सुधार सभा का उपमंत्री बना। लेखक इस स्थिति में पहुँचकर उचित और अनुचित के लिए विवेक का साहरा लेता है। लेकिन जीजी ने तर्कनिष्ठ लेखक को यह एहसास कराने का प्रयास किया कि तर्क और परिणाम ही सब कुछ नहीं होता। भावनात्मक सत्य का अपना ही महत्त्व होता है। लेखक के सारे तर्क हार गए। उसे यह अनुभव हुआ कि भावना और तर्कों में समन्वय आवश्यक है। यह तभी होगा जब मनुष्य तर्कशक्ति के साथ भावनाओं का भी ध्यान रखेगा।

काले मेघा पानी दे

अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1:

काले मेघा पानी दे संस्मरण के लेखक ने लोक – प्रचलित विश्वासों को अंधविश्वास कहकर उनके निराकरण पर बल दिया है। – इस कथन की विवेचना कीजिए ?

उत्तर –

लेखक ने इस संस्मरण में लोक-प्रचलित विश्वास को अंधविश्वास कहा है। पाठ में इंदर सेना के कार्य को वह पाखंड मानता है। आम व्यक्ति इंदर सेना के कार्य को अपने-अपने तकों से सही मानता है, परंतु लेखक इन्हें गलत बताता है। इंदर सेना पर पानी फेंकना पानी की क्षति है। जबकि गरमी के मौसम में पानी की भारी कमी होती है। ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण देश का बौद्धिक विकास अवरुद्ध होता है। हालाँकि एक बार इन्हीं अंधविश्वास की वजह से देश को एक बार गुलामी का दंश भी झेलना पड़ा।

प्रश्न 2:

‘काले मेघा पानी दे’ पाठ की ‘इंदर सेना’ युवाओं को रचनात्मक कार्य करने की प्रेरणा दे सकती हैं तर्क सहित उतार दीजिए।

उत्तर –

इंदर सेना युवाओं को रचनात्मक कार्य करने की प्रेरणा दे सकती है। इंदर सैना सामूहिक प्रयास से इंद्र देवता को प्रसन्न करके वर्षा कराने के लिए कोशिश करती है। यदि युवा वर्ग के लोग समाज की बुराइयों, कमियों के खिलाफ़ सामूहिक प्रयास करें तो देश का स्वरूप अलग ही । होगा। वे शोषण को समाप्त कर सकते हैं। दहेज का विरोध करना, आरक्षण का विरोध करना, नशाखोरी के खिलाफ़ आवाज उठाना-आदि कार्य सामूहिक प्रयासों से ही हो सकते हैं।

प्रश्न 3:

यदि आप धर्मवीर भारती के स्थान पर होते तो जीजी के तक सुनकर क्या करते और क्यों? ‘काले मेधा पानी दे-पाठ के आधार पर बताइए।

उत्तर –

यदि मैं लेखक के स्थान पर होता तो जीजी का तर्क सुनकर वहीं करता जो लेखक ने किया, क्योंकि तर्क करने से तो जीजी शायद ही कुछ समझ पातीं, उनका दिल दुखता और हमारे प्रति उनका सद्भाव भी घट जाता। लेखक की भाँति में भी जीजी के प्यार और सद्भाव को खोना नहीं चाहता । यही कारण है कि आज भी बहुत-सी बेतुकी परंपराएँ हमारे देश को जकड़े हुए हैं।

प्रश्न 4:

‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के आधार पर जल और वर्षा के अभाव में गाँव की दशा का वर्णन कजिए।

उत्तर –

गली-मोहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी से भुन-भुन कर त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे थे। जेठ मास भी अपना ताप फैलाकर जा चुका था और अब तो आषाढ़ के भी पंद्रह दिन बीत चुके थे। कुएँ सूखने लगे थे, नलों में पानी नहीं आता था। खेत की माटी सूख सूखकर पत्थर हो गई थी। पपड़ी पड़कर अब खेतों में दरारें पड़ गई थीं। झुलसा देने वाली लू चलती थी। ढोर-ढंगर प्यास से मर रहे थे, पर प्यास बुझाने के लिए पानी नहीं था। निरुपाय से ग्रामीण पूजा-पाठ में लगे थे। अंत में इंद्र से वर्षा के लिए प्रार्थना करने इंदर सेना भी निकल पड़ी थी।

प्रश्न 5:

दिन-दिन गहराते पानी के संकट से निपटने के लिए क्या आज का युवा वर्ग काले मेघा पानी दे क इंदर सेना की तर्ज पर कोई सामूहिक आंदोलन प्रारंभ कर सकता हैं? अपने विचार लिखिए।

उत्तर –

आज के समय पानी के गहरे संकट से निपटने के लिए युवा वर्ग सामूहिक आंदोलन कर सकता है। युवा वर्ग शहर व गाँवों में पानी की फिजूलखर्ची को रोकने के लिए प्रचार आंदोलन कर सकता है। गाँवों में तालाब खुदवा सकता है ताकि वर्षा के जल का संरक्षण किया जा सके। युवा वृक्षारोपण अभियान चला सकता है ताकि वर्षा अधिक हो तथा पानी भी संरक्षित रह सके। वह घर घर में पानी के सही उपयोग की जानकारी दे सकता है।

प्रश्न 6:

ग्रीष्म में कम पानी वाले दिनों में गाँव-गाँव में डोलती मेढ़क-मंडली पर एक बाल्टी पानी उड़ेलना जीजी के विचार से पानी का बीज बोना हैं, कैसे?

उत्तर –

जीजी का मानना है कि गरमी के दिनों में मेढक मंडली पर एक बाल्टी पानी उड़ेलना पानी का बीज बोना है। वे कहती हैं कि जब हम किसी को कुछ देंगे तभी तो अधिक लेने के हकदार बनेंगे। इंद्र देवता को पानी नहीं देंगे तो वह हमें क्यों पानी देगा। ऋषि-मुनियों ने भी त्याग व दान की महिमा गाई है। पानी के बीज बोने से काले मेधों की फसल होगी जिससे गाँव, शहर, खेत खलिहानों को खूब पानी मिलेगा।

प्रश्न 7:

जीजी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर –

लेखक ने जीजी के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं।

(क) स्नेहशील जीजी लेखक को अपने बच्चों से भी अधिक प्यार करती थीं। वे सारे अनुष्ठान, कर्मकांड लेखक से करवाती थीं ताकि उसे पुण्य मिलें।

(ख) आस्थावती-जीजी आस्थावती नारी थीं। वे परंपराओं, विधियों, अनुष्ठानों में विश्वास रखती र्थी तथा श्रद्धा से उन्हें पूरा करती थीं।

(ग) तर्कशीला-जीजी अपनी बात के समर्थन में तर्क देती थीं। उनके तकों के सामने आम व्यक्ति पस्त हो जाता था। इंदर सेना पर पानी फेंकने के पक्ष में जो तर्क वे देती हैं, उनका कोई सानी नहीं। लेखक भी उनके समक्ष स्वयं को कमजोर मानता है।

प्रश्न 8:

‘गगरी फूटी बैल पियासा’ का भाव या प्रतीकार्थ देश के संदर्भ में समझाइए।

उत्तर –

‘गगरी फूटी बैल पियासा’ एक ओर जहाँ सूखे की ओर बढ़ते समाज का सजीव एवं मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है वहीं यह देश की वर्तमान हालत का भी चित्रण करता है। यहाँ गाँव तथा आम लोगों के कल्याणार्थ भेजी अरबों-खरबों की राशि न जाने कहाँ गुम हो जाती है। भ्रष्टाचार का दानव इस समूची राशि को निगल जाता है और आम आदमी की स्थिति वैसी की वैसी ही रह जाती है अर्थात उसकी आवश्यकता रूप प्यास अनबुझी रह जाती है।

प्रश्न 9:

‘काले मेघा पानी दे’ सस्मरण विज्ञान के सत्य पर सहज प्रेम की विजय का चित्र प्रस्तुत करता हैं स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण में वर्षा न होना, सूखा पड़ना आदि के विषय में विज्ञान अपना तर्क देता है और वर्षा न होने जैसी समस्या के । सही कारणों का ज्ञान कराते हुए हमें सत्य से परिचित कराता है। इस सत्य पर लोक-प्रचलित विश्वास और सहज प्रेम की जीत हुई है क्योंकि लोग इस समस्या का हल अपने-अपने ढंग से हूँढने में जुट जाते हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। लोगों में प्रचलित विश्वास इतना पुष्ट है कि वे विज्ञान की बात मानने को तैयार नहीं होते।

प्रश्न 10:

धमवीर भारती मढ़क-मडली पर पानी डालना क्यों व्यर्थ मानते थे?

उत्तर –

लेखक धर्मवीर भारती मेढक-मंडल पर पानी डालना इसलिए व्यर्थ मानते थे क्योंकि चारों ओर पानी की घोर कमी थी। लोग पीने के लिए बड़ी कठिनाई से बाल्टी-भर पानी इकट्ठा करके रखे हुए थे, जिसे वे इस मेढक-मंडली पर फेंक कर पानी की घोर बर्बादी करते हैं। इससे देश की अति होती है। वह पानी को यूँ फेकना अंधविश्वास के सिवाय कुछ नहीं मानने थे।

प्रश्न 11:

‘काले मघा पानी दे’ में लेखक ने लोक मान्यताओं के पीछ छिपे किस तक को उभारा है? आप भी अपने जीवन के अनुभव से किसी अधविश्वास के पीछे छिपे तक को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

‘काले मेघा पानी दे” में लेखक ने लोक-मान्यताओं के पीछे छिपे उस तर्क को उभारा है, जिसके अनुसार ऐसी मान्यता है कि जब तक हम किसी को कुछ देंगे नहीं, तब तक उससे लेने का हकदार कैसे बन सकते हैं। उदाहरणतया, यदि हम इंद्र देवता को पानी नहीं देंगे तो वे हमें पानी क्यों देंगे। इंदर सेना पर बाल्टी भरकर पानी फेंकना ऐसी ही लोकमान्यता का प्रमाण है। हमारे जीवन के अनुभव से अंधविश्वास के पीछे छिपा तर्क यह है कि यदि काली बिल्ली रास्ता काट जाती है तो अंधविश्वासी लोग कहते हैं कि रुक जाओ, बाद में जाना पर मेरा तर्क यह है कि इसमें कोई सत्यता नहीं है। यह समय को बरबाद करने के अलावा कुछ नहीं है।

प्रश्न 12:

मेढ़क मडली पर पानी डालने को लेकर लखक और जीजी के विचारों में क्या भिन्नता थी?

उत्तर –

मेढक मंडली पर पानी डालने को लेकर लेखक का विचार यह था कि यह पानी की घोर बर्बादी है। भीषण गर्मी में जब पानी पीने को नहीं मिलता हो और लोग दूर-दराज से इसे लाए हों तो ऐसे पानी को इस मंडली पर फेंकना देश का नुकसान है। इसके विपरीत, जीजी इसे पानी की बुवाई मानती हैं। वे कहती हैं कि सूखे के समय हम अपने घर का पानी इंदर सेना पर फेंकते हैं, तो यह भी एक प्रकार की बुवाई है। यह पानी गली में बोया जाता है जिसके बदले में गाँवों, शहरों में, कस्बों में बादलों की फसल आ जाती है।

काले मेघा पानी दे

पठित गद्यांश

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए =

प्रश्न 1:

उन लोगों के दो नाम धे-इंदर सैना या मेढक-मंडली। बिलकुल एक-दूसरे के विपरीत। जो लोग उनके नग्नस्वरूप शरीर, उनकी उछल-कूद, उनके शोर-शराब और उनके कारण गली में होने वाले कीचड़ कॉदों से चिढ़ते थे, वे उन्हें कहते थे मेढ़ क-मंडली। उनकी अगवानी गालियों से होती थी। वे होते थे दस-बारह बरस से सोलह-अठारह बरस के लड़के, साँवला नंगा बदन सिर्फ एक जधिया या कभी-कभी सिर्फ लैंगोटी। एक जगह इकड़े होते थे। पहला जयकारा लगता था, ‘बोल गंगा मैया की जय जयकारा सुनते ही लोग सावधान हो जाते थे। स्त्रियाँ और लड़कियों को बारजे से झाँकने लगती थीं और यह विचित्र नंग-धडंग टोली उछलती-कूदती समवेत पुकार लगाती थी।

प्रश्न

1, गाँव से पानी मांगने वालों के नाम क्या थे? ये पानी क्यों माँगते थे

2. मेक-मंझली से क्या तात्पर्य है।

3. मेढ़क सडली में कैसे लड़के होते थे?

4. इंदर सेना के जयकारे की क्या प्रतिक्रिया होती थी?

उत्तर –

1. गाँव से पानी माँगने वालों के नाम थे-मेढक-मंडली या इंदर सेना। गाँवों में जब आषाढ़ में पानी नहीं बरसता धा या’ सूखा पड़ने का अंदेशा होता था तो लड़के इंद्र देवता से पानी माँगते थे।

2. जो बच्चे मेड़क की तरह उछल-कूद, शोर-शराबा व कीचड़ करते थे, उन्हें मेढक-मंडली कहा जाता था।

3, मेढकमंडली में दस-बारह वर्ष से सौलह अठारह वर्ष के लड़के होते थे। इनका रंग साँवला होता था तथा ये वस्त्र के नाम पर सिर्फ एक धिया या कभी-कभी सिर्फ लँगोटी पहनते थे।

4. इंदर सेना या मेढक मंडली का जयकारा “बोल गंगा मैया की जय” सुनते ही लोगों में हलचल मच जाती थी। स्त्रियाँ और लकियाँ बार से इस टोली के क्रियाकलाप देखने लगती थीं।

प्रश्न 2:

सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी में भुन-भुन कर त्राहिमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीतकर भाषाढ़ का पहला पखवारा भी बीत चुका होता, पर क्षितिज पर कहीं बादल की रेख भी नहीं दिखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को भी मान खौलता हुआ पानी हो। शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब होती थी। जहाँ जुताई होनी चाहिए वहाँ खेतों की मिट्टी सूख कर पत्थर हो जाती, फिर उसमें पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती, लूऐसी कि चलते चलते आदमी आधे रास्ते में लू खाकर गिर पड़े। ढोर इंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का कहीं नाम निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग जब हार जाते तब्य अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंदर सेना। वर्षा के बादलों के स्यामी हैं इंद्र और इंद्र की सेना टोली बाँधकर कीचड़ में लथपथ निकलती, पुकारते हुए मेघों को, पानी माँगते हुए प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए।

प्रश्न

1. लोगों की परेशानी का क्या कारण था?

2. गाँव में लोगों को क्या दशा होती थी ?

३. गाँव वाले बारिश के लिए क्या उपाय करते थे।

4. इंदर सेना क्या है? वह वया करती हैं।

उत्तर –

1, जब आषाढ़ के पंद्रह दिन बीत चुके होते थे तथा बादलों का नामोनिशान नहीं दिखाई होता था। कुओं का पानी सूख रहा होता था। नलों में पानी नहीं आता। यदि आता भी था तो वह बेहद गरम होता था इसी कारण लोगों को परेशानी होती थी।

2, गाँव में बारिश न होने से हालत अधिक खराब होती थी। खेतों में जहाँ जुताई होनी चाहिए, वहाँ की मिट्टी सूखकर – पत्थर बन जाती थी, फिर उसमें पपड़ी पड़ जाती थी और जमीन फटने लगती थी। लू के कारण लोग चलते-चलते गिर जाते थे। पशु प्यास के कारण मरने लगे थें।

3, गाँव वाले बारिश के देवता इंद्र से प्रार्थना करते थे। वे कहीं पूजा-पाठ करते थे तो कहीं कथा-कीर्तन करते थे। इन सबमें विफल होने के बाद इंदर सेना कीचड़ व पानी में लथपथ होकर वर्षा की गुहार लगाती थी।

4, इंदर सैना उन किशोरों का झुंड होता था जो भगवान इंद्र से वर्षा माँगने के लिए गली-गली घूमकर लोगों से पानी माँगते थे। वे लोगों से मिले पानी में नहाते धे, उछलते-कूदते थे तथा कीचड़ में लथपथ होकर मेघों से पानी माँगते थे।

प्रश्न 3:

पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो। बस एक बात मेरे समझ में नहीं आतीं धीं कि जब चारों ओर पानी की इतनी कमी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्ठा करके रखा हुआ प#2366;नी बाल्टी भर-भरकर इन पर क्यों फेंकते हैं। कैसी निर्मम बरबादी है पानी की। देश की कितनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासों से। कौन कहता है इन्हें इंद्र की सेना? अगर इंद्र महाराज से ये पानी दिलवा सकते हैं। तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेते? क्यों मुहल्ले भर का पानी नष्ट करवाते घूमते हैं? नहीं यह सब पाखंड है। अंधविश्वास है। ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और गुलाम बन गए।

प्रश्न

1. लेखक को कौन-सी बात समझ में नहीं आती?

2. देश को किस तरह के अंधविश्वास से क्षति होती हैं?

3. कौन कहता है इन्हे इंद्र की रोना ? – इरा कथन का व्यग्य स्पष्ट कीजिए।

4. इदर सेना के विरोध में लेखक क्या तक देता हैं?

उत्तर –

1. लेखक को यह समझ में नहीं आता कि जब पानी की इतनी कमी है तो लोग कठिनाई से इकट्टे किए हुए पानी को बाल्टी भर-भरकर इंदर सेना पर क्यों फेंकते हैं। यह पानी की बरबादी है।

2. वर्षा न होने पर पानी की कमी हो जाती है। ऐसे समय में ग्रामीण बच्चों की मंडली पर पानी फेंककर गलियों में पानी बरबाद करने जैसे अंधविश्वासों से देश की क्षति होती है।

3 इस कथन से लेखक ने इंदर सेना और मेढक-मंडली पर व्यंग्य किया है। ये लोग पानी की बरबादी करते हैं तथा पाखंड फैलाते हैं। यदि ये इंद्र से औरों को पानी दिलवा सकते हैं तो अपने लिए ही क्यों नहीं माँग लेते।

4 इंदर सेना के विरोध में लेखक तर्क देता है कि यदि यह सेना इंद्र महाराज से पानी दिलवा सकती है तो यह अपने लिए घड़ा-भर पानी क्यों नहीं माँग लेती? यह सेना मुहल्ले का पानी क् बरबाद करवा रही है?

प्रश्न 4

मैं असल में था तो इन्हीं मेढक-मंडली वालों की उमर का, पर कुछ तो बचपन के आर्यसमाजी संस्कार थे और एक कुमारसुधार सभा कायम हुई थी उसका उपमंत्री बना दिया गया था-सी समाज-सुधार का जोश कुछ ज्यादा ही था। अंधविश्वासों के खिलाफ तो तरकस में तीर रखकर घूमता रहता था। मगर मुश्किल यह थी कि मुझे अपने बचपन में जिससे सबसे ज्यादा प्यार मिला वे धीं जीजी। यूँ मेरी रिश्ते में कोई नहीं थीं। उम्र में मेरी माँ से भी बड़ी थीं, पर अपने लड़के-बहू सबको छोड़कर उनके प्राण मुझी में बसते थे। और वे थीं उन तमाम रीति-रिवाजों, तीज- त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों की खान जिन्हें कुमारसुधार सभा का यह उपमंत्री अंधविश्वास कहता था, और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता था। पर मुश्किल यह थी कि उनका कोई पूजा-विधान, कोई त्योहार अनुष्ठान मेरे बिना पूरा नहीं होता था।

प्रश्न:

1. लेखक बचपन में क्या काम करता था?

2 लेखक अंधविश्वासों को मानने के लिए क्यों विवश होता था?

3. अधविश्वासों के खिलाफ तरकस में तीर रखकर घूमने का आशय क्या हैं?

उत्तर –

1. लेखक बचपन में आर्यसमाजी संस्कारों से प्रभावित था। वह कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री था। वह अंधविश्वासों के खिलाफ़ प्रचार करता था। वह मेढक-मंडली को नापसंद करता था।

2. जीजी तमाम रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों को मानती थीं तथा वे इन सबके विधि-विधान लेखक से पूरा करवाती थीं। लेखक को बहुत चाहती थीं। इस कारण लेखक को इन अंधविश्वासों को मानने के लिए विवश होना पड़ता था।

3. अंधविश्वासों के खिलाफ़ तरकस में तीर रखकर घूमने का आशय है-अंधविश्वासों के खिलाफ़ जन-जागृति फैलाते हुए उन्हें समाप्त करने का प्रयास करना।

प्रश्न 5:

लेकिन इस बार मैंने साफ़ इन्कार कर दिया। नहीं फेंकना है मुझे बाल्टी भर-भरकर पानी इस गंदी मेढक-मंडली पर। जब जीजी बाल्टी भरकर पानी ले गईं-उनके बूढे पाँव डगमगा रहे थे, हाथ काँप रहे थे, तब भी मैं अलग मुँह फुलाए खड़ा रहा। शाम को उन्होंने लडू-मठरी खाने को दिए तो मैंने उन्हें हाथ से अलग खिसका दिया। मुँह फेरकर बैठ गया, जीजी से औला भी नहीं। पहले वे भी तमतमाई, लेकिन ज्यादा देर तक उनसे गुस्सा नहीं रहा गया। पास आकर मेरा सर अपनी गोद में लेकर बोलीं, ‘देख भइया, रूठ मत। मेरी बात सुन। यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे?” मैं कुछ नहीं बोला। फिर जीजी बोली, “तू इसे पानी की बरबादी समझता है पर यह बरबादी नहीं है। यह पानी का अध्य चढ़ाते हैं, जो चीज मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे? इसीलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।”

प्रश्न:

1. लेखक ने किस काय से इनकार किया तथा क्यों?

2 पानी डालते समय जीजी की क्या हालत थी?

3 जीजी ने नाराज लेखक से क्या कहा?

4 जीजी ने दान के पक्ष में क्या तर्क दिए?

उत्तर –

1. लेखक ने मेक-मंडली पर बाल्टी भर पानी डालने से साफ़ इनकार कर दिया क्योंकि वह इसे पानी की बरबादी समझता है और इसे अंधविश्वास मानता है।

2 पानी डालते समय जीजी के हाथ कॉप रहे थे तथा उसके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे।

3 जीजी ने नाराज लेखक को पहले लड़ भरी खाने को दिए पर लेखक के न खाने पर वे तमतमाई तथा फिर उसे स्नेह से कहा कि यह| अंधविश्वास नहीं है। यदि हम इंद्र को अध्य नहीं चढ़ाएँगे तो भगवान इंद्र हमें पानी कैसे देंगे।

4. जीजी ने दान के पक्ष में यह तर्क दिया कि यदि हम इंदर सेना को पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देगा। यह पानी की बरबादी नहीं है। यह बादलों पर अध्य चढ़ाना है। जो हम पाना चाहते हैं, उसे पहले दान देना पड़ता है। तभी हमें वह बढ़कर मिलता है। ऋषि मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।

प्रश्न 6:

फिर जीजी बोलीं, “देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा। पर एक बात देखी है। कि अगर तीस-चालीस मन गेहूं उगाना है तो किसान पाँच-छह से अच्छा गेहूं अपने पास से लेकर जमीन में क्यारियाँ बनाकर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे के समय हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे। भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ सिर्फ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि ‘यथा प्रजा तथा राजा’। यह तो गाँधी जी महाराज कहते हैं।” जीजी का एक लड़का राष्ट्रीय आंदोलन में पुलिस की लाठी खा चुका था, तब से जीजी गाँधी महाराज की बात अकसर करने लगी थीं।

प्रश्नः

1. जीजी अपनी बात के समर्थन में क्या तर्क देती है ?

2. जीजी पानी की बुवाई के संबंध में क्या बात कहती है ?

3. जीजी द्वारा गांधी जी का नाम लेने के पीछे क्या कारण था ?

4. ‘यथा राजा तथा प्रजा’ व ‘यथा प्रजा तथा राजा’ में क्या अंतर है?

उत्तर –

1. जीजी अपनी बात के समर्थन में खेत की बुवाई का तर्क देती हैं। किसान तीस-चालीस मन गेहूं की फसल लेने के लिए पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से खेत में क्यारियाँ बनाकर डालता है।

2. जीजी पानी की बुवाई के विषय में कहती हैं कि सूखे के समय हम अपने घर का पानी इंदर सेना पर फेंकते हैं तो यह भी एक प्रकार की बुवाई है। यह पानी गली में बोया जाता है जिसके बदले में गाँव, शहर, कस्बों में बादलों की फसल आ जाती है।

3. जीजी के लड़के को राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए पुलिस की लाठियाँ खानी पड़ी थीं। उसके बाद से जीजी गांधी महाराज की बात करने लगी थीं।

4. ‘यथा राजा तथा प्रज्ञा’ का अर्थ है-राजा के आचरण के अनुसार ही प्रज्ञा का आचरण होना। ‘यथा प्रजा तथा राजा’ का आशय है- जिस देश की जनता जैसी होती है, वहाँ का राजा वैसा ही होता है।

प्रश्न 7:

कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भो में ये बातें मन को कचोट जाती हैं, हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं। पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पिया के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?

प्रश्न:

1. लेखक के मन को क्या बातें कचोटती हैं और क्यों?

2. गगरी तथा बैल के उल्लख से लखक क्या कहना चाहता हैं?

3. भ्रष्टाचार की चचा करते समय क्या आवश्यक हैं और क्यों?

4. ‘आखिर कब बदलेगी यह स्थिति आपके विचार से यह स्थिति कब और कैसे बदल सकती है?

उत्तर –

1. लेखक के मन को यह बात बहुत कचोटती है कि लोग आज अपने स्वार्थ के लिए बड़ी-बड़ी माँगें करते हैं, स्वार्थों की घोषणा करते हैं। उसे यह बात इसलिए कचोटती है क्योंकि वे न तो त्याग करते हैं और न अपना कर्तव्य करते हैं।

2. गगरी और बैल के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि आज हमारे देश में संसाधनों की कमी नहीं है परंतु भ्रष्टाचार के कारण वे । साधन लोगों के पास तक नहीं पहुँच पाते। इससे देश की जनता की जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं।

3. भ्रष्टाचार की चर्चा करते समय यह आवश्यक है कि हम ध्यान रखें कि कहीं हम उसमें लिप्त तो नहीं हो रहे हैं, क्योंकि हम भ्रष्टाचार में| शामिल हो जाते हैं और हमें यह पता भी नहीं चल पाता है।

4 ‘आखिर कब बदलेगी यह स्थिति मेरे विचार से यह स्थिति तब बदल सकती है जब समाज और सरकार में इसे बदलने की दृढ़ इच्छा शक्ति जाग्रत हो जाए और लोग स्वार्थ तथा भ्रष्टाचार से दूरी बना लें।

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Chapter 12 बाजार दर्शन | Ncert solution for class 12th hindi Aroh

बाजार दर्शन Class 12 Hindi Aroh NCERT Books Solutions

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1. बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या क्या असर पड़ता है?

बाजार का जादू चढ़ने पर मनुष्य बाजार की आकर्षक वस्तुओं को खरीदने लगता है। जिनके मन खाली हैं तथा जिनके पास खरीदने की शक्ति अर्थात परचेसिंग पावर है। ऐसे लोग बाजार की चकाचौंध का शिकार हो जाते हैं और बाजार की अनावश्यक वस्तुएँ खरीदकर अपने मन की शांति भंग करते हैं। परंतु जब बाजार का जादू उतर जाता है तो उसे पता चलता है कि जो वस्तु उसने अपनी सुख-सुविधाओं के लिए खरीदी थी, वह तो उसके आराम में बाधा उत्पन्न कर रही है।

प्रश्न 2. बाजार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौनसा सशक्त पहलू उभर कर आता है? क्या आपकी नजर में उनका आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है?

भगत जी चौक बाजार में चारों और सब कुछ देखते हुए चलते हैं लेकिन वह बाजार की ओर आकृष्ट नहीं होते बल्कि संतुष्ट मन से सब कुछ देखते हुए चलते हैं। उन्हें तो केवल जीरा और काला नमक ही खरीदना होता है। उनके जीवन का यह सशक्त पहलू उभरकर सामने आता है निश्चय से भक्तिन का यह आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है यदि मनुष्य अपनी आवश्यकता के अनुसार वस्तुओं की खरीद करता है तो इससे बाजार में महंगाई भी नहीं बढ़ेगी और लोगों में संतोष की भावना उत्पन्न होगी।

प्रश्न 3. बाज़ारूपन से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाजार की सार्थकता किसमें है?

बाजारूपन का अर्थ है- ओछापन। इसमें दिखावा अधिक होता है और आवश्यकता बहुत कम होती है। जिन लोगों में बाजारूपन होता है, वे बाजार को निरर्थक बना देते हैं; परंतु जो लोग आवश्यकता के अनुसार बाजार से वस्तु खरीदते हैं। वहीं बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। ऐसे लोगों के कारण ही केवल वही वस्तुएँ बेची जाती हैं जिनकी लोगों को आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में बाजार हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन बनता है। भगत जी जैसे लोग जानते हैं कि उन्हें बाजार से क्या खरीदना है । अतः ऐसे लोग ही बाजार को सार्थक बनाते हैं।

प्रश्न 4. बाजार किसी का लिंग, जाति, धर्म, क्षेत्र नहीं देखता; बस देखता है सिर्फ उसकी क्रय शक्ति को। और इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं?

यह कहना सही है कि बाजार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता। बाजार यह नहीं पूछता कि आप किस जाति, धर्म से संबंधित है वह तो केवल ग्राहक को महत्त्व देता है। ग्राहक के पास पैसे होने चाहिए, वह उसका स्वागत करता है। इस दृष्टि में बाजार निश्चय से सामाजिक समता की रचना करता है क्योंकि बाजार के समक्ष चाहे ब्राह्मण हो या निम्न जाति का व्यक्ति; मुसलमान हो या इसाई, सब बराबर है। वे ग्राहक के सिवाय कुछ नहीं है और इस दृष्टि से मैं पूर्णतया सहमत हूँ।

प्रश्न 5. आप अपने तथा समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें –

क. जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।

जब बड़ा से बड़ा अपराधी अपने पैसे की शक्ति से निर्दोष साबित कर दिया जाता है तब हमें पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत होता है।

ख. जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।

असाध्य बीमारी के आगे पैसे की शक्ति काम नहीं आती है।

बाजार दर्शन

अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1:

‘बाजार दर्शन’ पाठ के आधार पर बताइए कि पैसे की पावर का रस किन दो रूपों में प्राप्त किया जाता हैं?

उत्तर –

पैसे की पावर का रस निम्नलिखित रूप में प्राप्त किया जा सकता है-

1, मकान, संपत्ति, कोठी, कार, सामान आदि देखकर।

2. संयमी बनकर पैसे की बचत करके। इससे मनुष्य पैसे के गर्व से फूला रहता है तथा उसे किसी की सहायता की जरूरत नहीं होती।

प्रश्न 2:

कैसे लोग बाजार से न सच्चा लाभ उठा पाते हैं, न उसे सच्चा लाभ दे सकते हैं? वे “बाजारूपन’ को कैसे बढ़ाते है?

उत्तर –

लेखक कहता है कि समाज में कुछ लोग क्रय-शक्ति के बल पर बाजार से वस्तुएँ खरीदते हैं, परंतु उन्हें अपनी जरूरत का पता ही नहीं होता। ऐसे लोग बाजार से न सच्चा लाभ उठा पाते हैं, न उसे सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे धन के बल पर बाजार में कपट को बढ़ावा देते हैं। वे समाज में असंतोष बढ़ाते हैं। वे सामान्य लोगों के सामने अपनी क्रय-शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। वे शान के लिए उत्पाद खरीदते हैं। इस प्रकार से वे बाजारूपन को बढ़ाते हैं।

प्रश्न 3:

बाजार का जादू क्या हैं? उसके चढ़ने-उतरने का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता हैं?’बाजार दर्शान’ पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए।

उत्तर –

बाजार की तड़क-भड़क और वस्तुओं के रूप-सौंदर्य से जब ग्राहक खरीददारी करने को मजबूर हो जाता है तो उसे बाजार का जादू कहते हैं। बाजार का जादू तब सिर चढ़ता है जब मन खाली हो। मन में निश्चित भाव न होने के कारण ग्राहक हर वस्तु को अच्छा समझता है तथा अधिक आराम व शान के लिए गैर जरूरी चीजें खरीदता है। इस तरह वह जादू की गिरफ्त में आ जाता है। वस्तु खरीदने के बाद उसे पता चलता है कि फ़ैसी चीजें आराम में मदद नहीं करतीं, बल्कि खलल उत्पन्न करती हैं। इससे वह झुंझलाता है, परंतु उसके स्वाभिमान को सेंक मिल जाती है।

प्रश्न 4:

‘बाजार दर्शन पाठ का प्रतिपादय बताइए।

उत्तर –

‘बाजार दर्शन’ निबंध में गहरी वैचारिकता व साहित्य के सुलभ लालित्य का संयोग है। कई दशक पहले लिखा गया यह लेख आज भी उपभोक्तावाद व बाजारवाद को समझाने में बेजोड़ है। लेखक अपने परिचितों, मित्रों से जुड़े अनुभव बताते हुए यह स्पष्ट करते हैं कि बाजार की जादुई ताकत मनुष्य को अपना गुलाम बना लेती है। यदि हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें तो उसका लाभ उठा सकते हैं। इसके विपरीत, बाजार की चमक-दमक में फँसने के बाद हम असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल होकर सदा के लिए बेकार हो सकते हैं। लेखक ने कहीं दार्शनिक अंदाज में तो कहीं किस्सागों की तरह अपनी बात समझाने की कोशिश की है। इस क्रम में उन्होंने बाजार का पोषण करने वाले अर्थशास्त्र को अनीतिशास्त्र बताया है।

प्रश्न 5:

‘बाजार दर्शन से क्या अभिप्राय है?

उत्तर –

‘बाजार दर्शन’ से अभिप्राय है-बाजार के बारे में बताना। लेखक ने बाजार की प्रवृत्ति, ग्राहक के प्रकार, आधुनिक ग्राहकों की सोच आदि के बारे में पाठकों को बताया है।

प्रश्न 6:

बाजार का जादू किन पर चलता है और क्यों?

उत्तर –

बाजार का जादू उन लोगों पर चलता है जो खाली मन के होते हैं तथा जेब भरी होती है। ऐसे लोगों को अपनी जरूरत का पता ही नहीं होता। वे ‘पर्चेजिंग पावर’ को दिखाने के लिए अनाप-शनाप वस्तुएँ खरीदते हैं ताकि लोग उन्हें बड़ा समझे। ऐसे व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान नहीं करते।

प्रश्न 7:

‘पैसा पावर हैं।-लेखक ने ऐसा क्यों कहा?

उत्तर –

लेखक ने पैसे को पावर कहा है क्योंकि यह क्रय-शक्ति को बढ़ावा देता है। इसके होने पर ही व्यक्ति नई-नई चीजें खरीदता है। दूसरे, यदि व्यक्ति सिर्फ धन ही जोड़ता रहे तो वह इस बैंक बैलेंस को देखकर गर्व से फूला रहता है। पैसे से समाज में व्यक्ति का स्थान निर्धारित होता है। इसी कारण लेखक ने पैसे को पावर कहा है।

प्रश्न 8:

भगत जी बाजार की सार्थक व समाज की शांत केसे कर रहें हैं?’ बाजार दर्शन’ पाठ के आभार पर बताइए?

उत्तर –

भगत जी निम्नलिखित तरीके से बाजार को सार्थक व समाज को शांत कर रहे हैं-

1, वे निश्चित समय पर चूरन बेचने के लिए निकलते हैं।

2. छह आने की कमाई होते ही बचे चूरन को बच्चों में मुफ़्त बाँट देते हैं।

3. बाजार में जीरा व नमक खरीदते हैं।

4. सभी का अभिवादन करते हैं।

5. बाजार के आकर्षण से दूर रहते हैं।

6. अपने चूर्ण का व्यावसायिक तौर पर उत्पादन नहीं करते।

प्रश्न 9:

खाली मन तथा भरी जब से लेखक का क्या आशय है? ये बातें बाजार को कैसे प्रभावित करती हैं?

उत्तर –

‘खाली मन तथा भरी’ जेब से लेखक का आशय है – मन में किसी निश्चित वस्तु को खरीदने की इच्छा न होना या वस्तु की आवश्यकता न होना। परंतु जब जेबें भरी हो तो व्यक्ति आकर्षण के वशीभूत होकर वस्तुएँ खरीदता है। इससे बाजारवाद को बढ़ावा मिलता है।

प्रश्न 10:

‘बाजार दर्शन ‘ पाठ के आधार पर ‘पेस की व्यग्य शक्ति’ कथन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर = पैसे में व्यंग्य शक्ति होती है। पैदल व्यक्ति के पास से धूल उड़ाती मोटर चली जाए तो व्यक्ति परेशान हो उठता है। वह अपने जन्म तक को कोसता है। परंतु यह व्यंग्य चूरन वाले व्यक्ति पर कोई असर नहीं करता। लेखक ऐसे बल के विषय में कहता है कि यह कुछ अपर जाति को तत्व है। कुछ लोग इसे आत्मिक, धार्मिक व नैतिक कहते हैं।

प्रश्न 11:

‘बाजार दर्शन’ पाठ के आधार पर बाजार का जादू चढ़ने और उतरने का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

‘बाजार दर्शन’ पाठ के आधार पर बाजार का जादू चढ़ने और उतरने का आशय है बाजार की तड़क-भड़क और रूप-सौंदर्य से जब ग्राहक खरीददारी करने को मजबूर हो जाता है तो उसे बाजार का जादू कहते हैं। बाजार का जादू तब सिर चढ़ता है जब मन खाली हो। मन में निश्चित भाव न होने के कारण ग्राहक हर वस्तु को अच्छा समझता है तथा अधिक आराम व शान के लिए गैर-जरूरी चीजें खरीदता है। इस तरह वह जादू की गिरफ्त में आ जाता है। वस्तु खरीदने के बाद उसे पता चलता है कि फैसी चीजें आर&##2366;म में मदद नहीं करतीं, बल्कि खलल उत्पन्न करती हैं।

बाजार दर्शन

पठित गद्यांश

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1:

उनका आशय था कि यह पत्नी की महिमा है। उस महिमा का मैं कायल हैं। आदिकाल से इस विषय में पति से पत्नी की ही प्रमुखता प्रमाणित है। और यह व्यक्तित्व का प्रश्न नहीं जीव का प्रश्न है। स्त्री माया न जोड़े, तो क्या मैं जोड़ें। फिर भी सच सच है और वह यह कि इस बात में पत्नी की ओट ली जाती है। मूल में एक और तत्व की महिमा सविशेष है। वह तत्त्व है मनीबैग, अर्थात पैसे की गरमी या एनर्जी। पैसा पावर है। पर उसके सबूत में आस-पास माल-टाल न जमा हो तो क्या वह खाक पावर है. पैसे को देखने के लिए बैंक-हिसाब देखिए, पर माल-असबाब मकान-कोठी तो अनदेखें भी देखते हैं। पैसे की इस पचेंजिग पावर के प्रयोग में ही पावर का रस है। लेकिन नहीं। लोग संयमी भी होते हैं। वे फ़िल सामान को फ़िजूल समझते हैं। वे पैसा बहाते नहीं हैं और बुद्धमान होते हैं। बुद्ध और संयमपूर्वक वे पैसे को जोड़ते जाते हैं, जोते जाते हैं। वे पैसे की पावर को इतना निश्चय समझते हैं कि इसके प्रयोग की परीक्षा उन्हें दरकार नहीं है। बस खुद पैसे के । होने पर उनका मन गर्व से भरा फूला रहता है।

प्रश्न:

1, लेखक के अनुसार पत्नी की महिमा का क्या कारण हैं।

2. सामान्य लोग अपनी पावर का प्रदर्शन किस तरह करते हैं?

3. आपके अनुसार स्त्री की आड़ में किस सच को छिपाया जा रहा है?

4. सामान्यतः संयमी व्यक्ति क्या करते है ?

उत्तर –

1, आदिकाल से ही स्त्री को महत्वपूर्ण माना गया है। स्त्री (पत्नी) ही महिमा है और इस महिमा का प्रशंसक उसका पति है। वहीं इसकी प्रमुखता को प्रमाणित कर रहा है।

2. सामान्य लोग पैसे को अपनी पावर समझते हैं। वे इस पावर का प्रदर्शन करना ही अपनी प्रतिष्ठा समझते हैं। वे अपने आस-पास माल टाल, कोठी, मकान खड़ा करके इसका प्रदर्शन करते हैं।

3. स्त्री की आड़ में यह सच छिपाया जा रहा है कि इन महाशय के पास भरा हुभा मनीबैग है, पैसे की गर्मी है, ये इस गर्मी से अपनी एनर्जी साबित करने के लिए स्त्री को फ़िजूल खर्च करने देते हैं।

4, संयमी लोग ‘पर्चेजिंग पावर’ के नाम पर अपनी शान नहीं दिखाते। वे धन को जोड़कर बुद्धि और संयम से अपनी पावर बनाते हैं, प्रसन्न रहते हैं, और फ़िजूल खर्च नहीं करते।

प्रश्न 2 :

मैंने मन में कहा, ठीक। बाजार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो । सब भूल जाओ, मुझको देखो। मेरा रूप और किसके लिए है? मैं तुम्हारे लिए हूँ। नहीं कुछ चाहते हो, तो भी देखने में क्या हर्ज है। अजी आओ भी। इस आमंत्रण में यह खूबी है कि आग्रह नहीं है । आग्रह तिरस्कार जगाता है। लेकिन ऊँचे बाजार का आमंत्रण मूक होता है और उससे चाह जगती है। चाह मतलब अभाव। चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को लगने लगता है कि उसके अपने पास काफ़ी नहीं है और चाहिए, और चाहिए। मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है, ओह! कोई अपने को न जाने तो बाजार का यह चौक उसे कामना से विकल बना छोड़े। विकाल क्यों, पागल। असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल करके मनुष्य को सदा के लिए यह बेकार बना डाल सकता है।

प्रश्नः

क) ‘चाह’ का मतलब ‘अभाव’ क्यों कहा गया है?

ख) बाजार, आदमी की सोच को बदल देता हैं- गद्यांश के आधार पर स्पष्ट कीजिए?

ग) बाजार के चौक के बारे में क्या बताया गया हैं?

उत्तर –

क) ‘चाह’ का अर्थ है-इच्छा, जो बाजार के मूक आमंत्रण से हमें अपनी ओर आकर्षित करती है और हम भीतर महसूस करके सोचते हैं कि यहाँ कितना अधिक है और मेरे यहाँ कितना कम है। इसलिए चाह’ का मतलब है’ अभाव’ ।

ख) आदमी जब बाजार में जाता है तो वहाँ की चकाचौंध से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता। बाजार में अपरिमित वस्तुएँ देखकर वह सोचता है कि उसके पास सीमित वस्तुएँ है। इस प्रकार बाजार आदमी की सोच बदल देता है।

ग) बाजार का चौक हमें विकल व पागल कर सकता है। असन्तोष, चाह और ईष्या के भाव से आहत मनुष्य को सदा के लिए बेकार बना सकता है।

प्रश्न 3:

बाजार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीज़ों का निमन्त्रण उस तक पहुँथ जाएगा। कहीं उस वक्त व भरी हो तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है। मालूम होता है यह भी लें, वह भी लें। सभी सामान ज़रूरी और आराम को बढ़ाने वाला मालूम होता है।

प्रश्न

1. बाजार का जादू ‘आँख की राह किस प्रकार काम करता है?

2. क्या आप भी बाज़ार के जादू में फंसे हैं?अपना अनुभव लिखिए जब आप न चाहने पर भी सामान खरीद लेते हैं?

3. बाजार का जादू अपना असर किन स्थितियों में अधिक प्रभावित करता है और क्यों?

4. क्या आप इस बात से सहमत है कि कमजोर इच्छा-शक्ति वाले लोग बाजार के जादू से मुक्त नहीं हो सकते? तक़ सहित लिखिए।

उत्तर –

1. बाजार का जादू हमेशा ‘भौंख की राह से इस तरह काम करता है कि बाजार में सजी सुंदर वस्तुओं को हम आँखों से देखते है और उनकी सुंरताप आकृष्ट होकर आवश्यकता न होने पर भी उन्हें खरीदने के लिए ललानित हो उठते है।

2. हाँ, में भी बाजार के जादू’ में पैसा हैं। एक बार एक बड़े मॉल में प्रदर्शित मोबाइल फोनों को देखकर मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। यद्यपि मेरे पास ठीक-ठाक फोन था, फिर भी मैंने 2400 रुपये का फोन किश्तों पर खरीद लिया।

३, बाजार के जादू की मर्यादा यह है कि वह तब ज्यादा आसार करता है जब जेब भरी और मन खाली हो। जेब के खाली रहने और मन भरा रहने पर यह असर नहीं कर पाता।

4. जिन लोगों को इछा शक्ति कमजोर होती है, वे बाजार के जादू से मुक्त नहीं हो सकते। ऐसे लोग अपने मन पर नियंत्रण न रख पाने और कमजोर इच्छा-शक्ति के कारण बाजार के जादू का सरलता से शिकार बन जाते हैं।

प्रश्न 4:

पर उस जादू की जकड़ से बचने का एक सीधा-सा उपाय है। वह यह कि बाजार जाओ तो मन खाली न हो। मन खाली हो, तब बाजार में जाओ। कहते हैं लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए। पानी भीतर हो, लूका लूपन व्यर्थ हो जाता है। मन लक्ष्य में भरा हो तो बाणार भी फैला-का-फैला ही रह जाएगा। तब वह घाव बिलकुल नहीं दे सकेगा, बल्कि कुछ आनंद ही देगा। तब बाजार तुमसे कृतार्थ होगा, क्योंकि तुम कुछ-न-कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे। बाजार की असली कृतार्थता है आवश्यकता के समय काम अनि।

प्रश्न:

1. बाजार के जादू की पकड़ से बचने का सीधा-सा उपाय क्या हैं?

2. मनुष्य को बाजार कब नहीं जाना चाहिए और क्यों?

३. बाजार की सार्थकता किसमें है?

4. बाजार से कब आनद मिलता हैं?

उत्तर –

1, बाजार के जादू की पकड़ से बचने का सीधा-सा उपाय यह है कि जब ग्राहक बाजार में जाए तो उसके मन में भटकाव नहीं होना चाहिए। उसे अपनी जरूरत के बारे में स्पष्ट पता होना चाहिए।

2. पूयक बार ताब हाँजना बाहरजबाञ्चसाकम यल हो ऐसा स्तमें बाजरके सापक गटू उसे पकड़ लेता है।

3. बाजार की सार्थकता लोगों की भावश्यकता पूरी करने में है। ग्राहक को अपनी आवश्यकता का सामान मिल जाता है तो बाजार सार्थक हो जाता है।

4, बाजार से उस समय आनंद मिलता है जब ग्राहक के मन में अपनी खरीद का लक्ष्य निश्चित होता है। वह भटकता नहीं।

प्रश्न : 5.

यहाँ एक अंतर चीन्ह लेना बहुत जरूरी है। मन खाली नहीं रहना चाहिए, इसका मतलब यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए। जो बंद हो जाएगा, वह शून्य हो जाएगा। शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का है जो रानतिन भाव से संपूर्ण है। शेष राब अपूर्ण है। इसरो मन बंद नहीं रह सकता। सत्य इच्छाओं का निरोध कर लोगे, यह झूठ है और अगर ‘इच्छानिरोधस्तपः’ का ऐसा ही नकारात्मक अर्थ हो तो यह तप झूठ है। वैसे तप की राह रेगिस्तान को जाती होगी, मोक्ष की राह वह नहीं है। ठाठ देकर मन को बंद कर रखना जड़ता है।

प्रश्न:

1. ‘मन खाली होने तथा ‘मन बंद होने में क्या अंतर हैं?

2. मन बद होने से क्या होगा?

3. परमात्मा व मनुष्य की प्रकृति में क्या अंतर है?

4. लेखक किसे झूठ बताता हैं?

उत्तर –

1. ‘मन खाली होने का अर्थ है-निश्चित लक्ष्य न होना। ‘मन बंद होने का अर्थ है-इच्छाओं का समाप्त हो जाना।

2. मन बंद होने से मनुष्य की इच्छाएँ समाप्त हो जाएँगी। वह शून्य हो जाएगा और शून्य होने का अधिकार परमात्मा का है। वह सनातन भाव से संपूर्ण है, शेष सब अपूर्ण है।

3. परमात्मा संपूर्ण है। वह शून्य होने का अधिकार रखता है, परंतु मनुष्य अपूर्ण है। उसमें इच्छा बनी रहती है।

4. मनुष्य द्वारा अपनी सभी इच्छाओं का निरोध कर लेने की बात को लेखक झूठ बताता है। कुछ लोग इच्छ-निरोध को तप मानते हैं। किंतु इस तप को लेखक झूठ मानता है।

प्रश्न 6:

लोभ का यह जीतना नहीं कि जहाँ लोभ होता है, यानी मन में, वहाँ नकार हो! यह तो लोभ की ही जीत है और आदमी की हार। अखि अपनी फोः काली, तब लोभनीय के दर्शन से बचे तो क्या हुआ? ऐसे क्या लोभ मिट जाएगा? और कौन कहता है कि आँख फूटने पर ५५ दिए। बंद हो जाएगा? क्या भौंख बंद करके ही हम सपने नहीं लेते हैं और वे सपने क्या चैन-भंग नहीं करते हैं। इससे मन को बंद कर डालने की कोशिश तो अच्छी नहीं। वह अकारथ हैं यह तो हठ वाला योग हैं। शायद हठ-ही-हठ है, योग नहीं है। इससे मन कृश भले ही हो जाए और पीला और अशक्त; जैसे विद्वान का ज्ञान। वह मुक्त ऐसे नहीं होता। इससे वह व्यापक की जगह संकीर्ण और विराट की जगह शुद्ध होता है। इसलिए उसका रोम-रोम मूंदकर बंद तो मन को करना नहीं चाहिए।

प्रश्नः

1. लेखक के अनुसार लोभ की जीत क्या हैं तथा आदमी की हार क्या हैं?

2, आँख फोड़ डालने का क्या अर्थ है? उससे मनुष्य पर क्या असर पड़ेगा ?

3. हठयोग के बारे में लेखक क्या कहता है ?

4. हठयोग का क्या प्रभाव होता है ?

उत्तर –

1, लोभ को नकारना लोभ की ही जीत है क्योंकि लोभ को नकारने के लिए लोग मन को मारते हैं। इनका यह नकारना वैदिक नहीं होता। इसके लिए वे योग का नहीं, हठयोग का सहारा लेते हैं। इस तरह यह लोभ की ही जीत होती है।

2. आँखें फोड़ने का दृष्टांत इसलिए दिया गया है क्योंकि लोग अपने लोभ के प्रति संयम नहीं रख पाते। वे अपनी 31श पर बाह्य रूपा दिखताब होजने की बात सच हैंप आँखें बंदक के भी इसरू की अनुप्त की जाती हैं।

3. ‘शायद हठ ही है, योग नहीं का आशय यह है कि लोभ को रोकने के लिए लोग शारीरिक कष्टों का सहारा लेते हैं। वे हठपूर्वक इसे रोकना चाहते हैं पर यह योग जैसा सरल, स्वाभाविक और शरीर के लिए उपयुक्त तरीका नहीं है।

4, मुक्त होने के लिए लेखक ने आवश्यक शर्त यह बताई हैं कि हठयोग से मन कमजोर, पीला और अशक्त हो जाता है। इससे मन| संकीर्ण हो जाता है। इसलिए मन का रोम-रोम बंद करके मन को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 7:

हम में पूर्णता होती तो परमात्मा से अभिन्न हग गहाशून्य ही न होते? अपूर्ण हैं, इसी से हम हैं। राध्या ज्ञान रादा इसी अपूर्णता के बोध को हम में गहरा करता है। सजा क सदा इस अपूर्णता की स्वीकृति के साथ होता है। अतः उपाय कोई नहीं हो सकता है जो बलात मन को रोकने को न कहे, जो मन को भी इसलिए सुनें क्योंकि वह अप्रयोजनीय रूप में हमें नहीं प्राप्त हुआ है। हाँ, मनमानेपन की छूट मन को न हो, क्योंकि वह अखिल का अंग है, खुद कुल नहीं है।

प्रश्न:

1. सच्चे ज्ञान क्या है?

2. मनुष्य में पूर्णत होती तो क्या होता?

3. मनमनैपर की छिट मन को क्यों नहीं होनी चाहिए?

4. लेखक किस उपाय के बारे में बताता है।

उत्तर –

1. सच्चा ज्ञान वह है जो मनुष्य में अपूर्णता का बोध गहरा करता है। वह उसे पूर्ण होने की प्रेरणा देता है।

2. यदि मनुष्य में पूर्णता होती तो वह परमात्मा से अभिन्न महाशून्य होता।

3. मनमानेपन की छूट मन को नहीं होनी चाहिए क्योंकि वह अखिल का अंग है। वह स्वयं पूर्ण नहीं है, भपूर्ण है।

4. लेखक उपाय के बारे में कहता है कि कोई वहीं हो सकता है जो बलात मन को रोकने को न कहे तथा मन की भी सुने क्योंकि वह अप्रयोजनीय रूप में अभी प्राप्त नहीं हुआ है।

प्रश्न : 8

तो वह क्या बल है जो इस तीखे व्यंग्य के आगे ही अजेय नहीं रहता, बल्कि मानो उस व्यंग्य की क्रूरता को ही पिघला देता है? उस पल को नाग जो दो; पर वह निश्चय उस जल की वस्तु नहीं है जहाँ पर संसारी वैभव फलता-फूलता है। वह कुछ अपर जाति का तत्व है। लोग स्पिरिचुअल कहते हैं, आत्मिक, धार्मिक, नैतिक कहते हैं। मुझे योग्यता नहीं कि मैं उन शब्दों में अंतर देखें और प्रतिपादन करूं। मुझे शब्द से सरोकार नहीं। मैं विद्वान नहीं कि शब्दों पर भटके। लेकिन इतना तो है कि जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है। बल्कि यदि उसी बल को सच्चा बल मानकर बात की जाए तो कहना होगा कि संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की निर्बलता ही प्रमाणित होती हैं। निर्बल ही धन की ओर झुकता है। वह अबलता है। वह मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय हैं।

प्रश्न:

1. उस बल’ से क्या तात्पर्य हैं? उसे किस जाति का तत्व बताया हैं तथा क्यों?

?, लेखक किन शब्दों के सूक्ष्म अतर में नहीं पड़ना चाहता

3. व्यक्ति की निर्बलता किससे प्रमाणित होती है और क्यों ?

4. मनुष्य पर धन की विजय चेतन पर जड़ की विजय कैसे है?

उत्तर –

1. ‘उस बल’ से तात्पर्य है बाजार में वस्तु खरीदने के निश्चय का निर्णय। लेखक ने इस बल को अपर जाति का बताया है क्योंकि अग व्यक्ति भाकर्षण के कारण ही निरर्थक वस्तुएँ खरीदता है।

2. लेलक स्पिरिचुअल, आत्मिक, धार्मिक व नैतिक शब्दों के बारे में बताता है। वह इन शब्दों के सूक्ष्म अतर के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता। ये सभी गुण आंतरिक हैं।

3. तिकबिलता संक्यका तृण औ वैभावकचहसे प्रमाण होता है क्योंकि नलव्यिक्ताह धमाके आकण में बँधता है।

4, मनुष्य चेतन है तथा धन गई। मनुष्य धन की चाह में उसके वश में हो जाता है। इसी कारण जड़ की चेतन पर विजय हो जाती है।

प्रश्न : 9

हाँ मुझे ज्ञात होता है कि बाजार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति-शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति-ही बाजार को देते हैं। न तो वे बाजार से लाभ उठा सकते हैं न उस बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। जिसका मतलब है कि कपट बढ़ाते हैं। कपट की बढ़ती का अर्थ परस्पर में सद्भाव की घटी।

प्रश्न

1. बाज़ार को सार्थकता कौन देते है और कैसे ?

2. ‘पर्चेजिंग पावर’ का क्या ताप्तर्य है ? बाज़ार को पर्थेजिंग पावर वाले लोगों की क्या देन हैं?

3, आशय स्पष्ट कीजिए-में लोग बाज़ार का बाजारूपन बढ़ाते हैं?

4. बाजारवाद परस्पर सद्भाव में ह्रास कैसे लाता हैं।

उत्तर –

1. बाजार को सार्थकता वे व्यक्ति देते हैं जो अपनी आवश्यकता को जानते हैं। वे बाजार से जरूरत की चीजें खरीदते हैं जो बाजार का दायित्व है।

2. ‘पर्चेजिंग पावर’ का अर्थ है-खरीदने की शक्ति। पर्चेजिंग पावर वाले लोग बाजार को विनाशक शक्ति प्रदान करते हैं। वे निरर्थक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देते हैं।

3. लेखक कहना चाहता है कि क्रयशक्ति से संपन्न लोग चमक-दमक व दिखावे के लिए व्यर्थ की चीजें खरीदते हैं। इससे उनकी अमीरी का पता चलता है।

4. बाजारवाद परस्पर सद्भाव में उस समय कमी लाता है जब व्यापार में कपट आ जाता है। कपट तब आता है जब दिखावे के लिए निरर्थक वस्तुएँ खरीदी जाती हैं।

प्रश्न 10:

इस सद्भाव के ह्रास पर आदमी आपस में भाई-भाई और सुहृद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे गाहक और बेचककी तरह व्यवहार करते हैं। मानो दोनों एक-दूसरे को ठगने की घात में हों। एक की हानि में दूसरे को अपना लाभ दिखता है और यह बाजार का, बल्कि इतिहास का, सत्य माना जाता है। ऐसे बाजार को बीच में लेकर लोगों में आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं होता, बल्कि शोषण होने लगता है, तब कपट सफल होता है, निष्कपट शिकार होता है। ऐसे बाजार मानवता के लिए विडंबना हैं और जो ऐसे बाजार का पोषण करता है, जो उसका शास्त्र बना हुआ है, वह अर्थशास्त्र सरासर औंधा है वह मायावी शास्त्र है वह अर्थशास्त्र अनीति शास्त्र है।

प्रश्न:

1. किस सद्भाव के हास की बात की जा रहा है उसका क्या परिणाम दिखाई पड़ता है ?

2. ऐसे बाज़ार प्रयोग का सांकेतिक अर्थ स्पष्ट कीजिए ?

3. लेखक ने संकेत किया हैं कि कभी-कभी बाजार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती हैं। इस विचार के पक्ष या विपक्ष में दो तर्क दीजिए ?

4. अर्थशास्त्र के लिए प्रयुक्त दो विशेषणों का ऑचित्य बताइए?

उत्तर –

1. लेखक ग्राहक व दुकानदार के सद्भाव के हारा की बात कर रहा है। ग्राहक परी की ताकत दिखाने हेतु खरीददारी करता है तथा दुकानदार कपट से निरर्थक वस्तुएँ ग्राहक को बेचता है।

2. ‘ऐसे बाजार से तात्पर्य है कपट का बाजार। ऐसे बाजारों में लोभ, ईष्या, अहंकार व तृष्णा का व्यापार होता है।

3. लेखक ने ठीक कहा है कि बाजार आवश्यकता को शोषण का रूप बना लेता है। व्यापारी सिर्फ़ लाभ पर ध्यान केंद्रित रखते हैं तथा लूटने की फ़िराक में रहते हैं। वे छल कपट के जरिये ग्राहक को बेवकूफ़ बनाते हैं।

4 अर्थशास्त्र के निम्नलिखित दो विशेषण प्रयुक्त हुए हैं –

क) मायावी – यह विशेषण बाजार के छल-कपट, आकर्षक रूप के लिए प्रयुक्त हुआ है।

ख) सरासर औधा – इसका अर्थ है विपरीत होना। बाजार का उद्देश्य मनुष्य की जरूरतों को पूरा करना है, परंतु वह जरूरतों को ही शोषण का रूप बना लेता है।

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Chapter 11 भक्तिन | Ncert solution for class 12th hindi Aroh

भक्तिन solution

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1. भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया होगा?

भक्तिन का वास्तविक नाम लछमिन अर्थात लक्ष्मी था। लक्ष्मी धन की देवी है परंतु इस लक्ष्मी के भाग्य में धन तो नाम मात्र था। उसे हमेशा गरीबी भोगनी पड़ी। केवल कुछ दिन के लिए ही इसे भरपेट भोजन मिल सका अन्यथा आजीवन दुर्भाग्य ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। अतः धन की देवी लक्ष्मी का मान रखने के लिए ही वह हमेशा अपने नाम को छुपाती रही।

भक्तिन का लछमिन अर्थात लक्ष्मी नाम उसके माता-पिता ने दिया होगा। इस नाम के पीछे उसकी स्नेह-भावना रही होगी। शायद उन्होंने यह भी सोचा होगा कि यह नाम रखने से उनके अपने घर में धन का आगमन होगा।

प्रश्न 2. दो कन्यारत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र महिमा में अंधी अपनी जेठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अक्सर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। क्या आप इससे सहमत हैं?

भक्तिन ने दो नहीं अपितु तीन कन्याओं को जन्म दिया था। कन्यारत्न उत्पन्न करने के बावजूद भक्तिन पुत्र महिमा में अंधी अपनी जेठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी रही। इससे यह सिद्ध होता है भारतीय समाज युगो से बेटियों की अपेक्षा बेटों को अधिक महत्त्व देता रहा रहा है। सच्चाई तो यह है कि स्त्रियाँ स्वयं ही अपने आप को पुरुष से हीन समझती हैं। इसलिए वे पुत्रवती होने की कामना करती हैं। कन्या भ्रूण हत्या के पीछे भी नारियों की सहमति हमेशा रहती है। स्त्रियाँ ही दहेज की मांग रखती है। अतः यह कहना सर्वथा उचित होगा कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है।

प्रश्न 3. भक्तिन की पेटी पर पंचायत द्वारा जबरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार( विवाह करें या न करें अथवा किससे करें) को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे?

भक्तिन की विधवा बेटी के साथ उसके ताऊ के लड़के के साले ने जोर जबरदस्ती की। उसे इस दुराचरण के लिए दंड मिलना चाहिए था लेकिन गाँव की पंचायत ने न्याय न करके अन्याय किया। और लड़की की अनिच्छा के बावजूद उस तीतरबाज युवक की पत्नी घोषित कर दिया। विवाह के मामले में लड़की की रजामंदी की ओर हमारा समाज ध्यान नहीं देता। यह निश्चित से मानवाधिकार का हनन है। अतः भक्तिन में की बेटी को जबरन पति थोपा जाना स्त्री के मानवाधिकार को कुचलना है।

प्रश्न 4. भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं। लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा?

लेखिका को पता है कि भक्तिन में अनेक गुणों के बावजूद कुछ दुर्गुण भी हैं, जो निम्नलिखित हैं-

क) भक्तिन लेखिका के इधर-उधर पड़े पैसों को भंडार घर की मटकी में छिपा कर रख देती है और लेखिका को ये पैसे लौटाती भी नहीं। पूछने पर वह इसे चोरी भी नहीं मानती

ख) जब उसकी मालकिन कभी उस पर क्रोधित होती है तो वह बात को इधर-उधर करके बताती है।

ग) शास्त्रीय कथनों की वह इच्छानुसार व्याख्या करती है।

घ) वह दूसरों के कहे को नहीं मानती बल्कि दूसरों को भी अपने अनुसार बना लेती है।

प्रश्न 5. भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है?

भक्तिन स्वयं को बहुत समझदार समझती है। वह प्रत्येक बात को अपने ढंग से अर्थ निकालना जानती है। जब लेखिका ने उससे सिर मुंडवाने से रोकना चाहा तो भक्तिन ने शास्त्र की दुहाई दी और यह कहा कि शास्त्रों में लिखा है “तीर्थ गए मुँडाए सिद्ध” लगता है यह उक्ति उसकी अपनी गढ़ी हुई है।

प्रश्न 6. भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गई?

भक्तिन संपूर्णता देहाती थी। वह अपनी देहाती जीवन पद्धति को नहीं छोड़ सकी। इसलिए उसने महादेवी को भी अपने सांचे में ढाल दिया। उसे जो सहज व सरल पकाना आता था, महादेवी को वही खाना पड़ता था। लेखिका को रात को बने मकई के दलिए के साथ मट्ठा पीना पड़ता था। बाजरे के तिलवाले पुए खाने पड़ते थे। ज्वार के बुने हुए भुट्टों की खिचड़ी भी खानी पड़ती थी। यह सब देहाती भोजन था। यही महादेवी को खाने के लिए मिलता था। अतः महादेवी भी भक्तिन के समान देहाती बन गई।

भक्तिन

अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1

भक्तिन पाठ के अधार पर भक्तिन का चरित्र चित्रण कीजिए।

अथवा

भक्तिन के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

अथवा

पाठ के आधार पर भक्तिन की तीन विशेषताएँ बताइए।

उत्तर –

‘भक्तिन’ लेखिका की सेविका है। लेखिका ने उसके जीवन संघर्ष का वर्णन किया है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं?

i. व्यक्तित्व-भक्तिन अधेड़ उम्र की महिला है। उसका कद छोटा व शरीर दुबला-पतला है। उसके होंठ पतले हैं तथा ऑखें छोटी हैं।

ii. परिश्रमी-भक्तिन कर्मठ महेला है। ससुराल में वह बहुत मेहनत करती है। वह घर, खेत, पशुओं आदि का सारा कार्य अकेले करती है। लेखिका के घर में भी वह उसके सारे कामकाज को पूरी कर्मठता से करती है। वह लेखिका के हर कार्य में सहायता करती है।

iii. स्वाभिमानिनी भक्तिन बेहद स्वाभिमानिनी है। पिता की मृत्यु पर विमाता के कठोर व्यवहार से उसने मायके जाना छोड़ दिया। पति की मृत्यु के बाद उसने किसी का पल्ला नहीं थामा तथा स्वयं मेहनत करके घर चलाया। जमींदार द्वारा अपमानित किए जाने पर वह गाँव छोड़कर शहर आ गई।

iv. महान सेविका भक्तिन में सच्चे सेवक के सभी गुण हैं। लेखिका ने उसे हनुमान जी से रपद्र्धा करने वाली बताया है। वह छाया की तरह लेखिका के साथ रहती है तथा उसका गुणगान करती है। वह उसके साथ जेल जाने के लिए भी तैयार है। वह युद्ध, यात्रा आदि में हर समय उसके साथ रहना चाहती है।

प्रश्न 2:

भक्तिन की पारिवारिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये ?

उत्तर –

भक्तिन झुंसी गाँव के एक गोपालक की इकलौती संतान थी। इसकी माता का देहांत हो गया था। फलतः भक्तिन की देखभाल विमाता ने । किया। पिता का उस पर अगाध स्नेह था। पाँच वर्ष की आयु में ही उसका विवाह हैंडिया गाँव के एक ग्वाले के सबसे छोटे पुत्र के साथ कर दिया गया। नौ वर्ष की आयु में उसका गौना हो गया। विमाता उससे ईष्या रखती थी। उसने उसके पिता की बीमारी का समाचार तक उसके पास नहीं भेजा।

प्रश्न 3:

भक्तिन के ससुराल वालों का व्यवहार कैसा था?

उत्तर –

भक्तिन के ससुराल वालों का व्यवहार उसके प्रति अच्छा नहीं था। घर की महिलाएँ चाहती थीं कि भक्तिन का पति उसकी पिटाई करे। वे उस पर रौब जमाना चाहती थीं। इसके अतिरिक्त, भक्तिन ने तीन कन्याओं को जन्म दिया, जबकि उसकी सास व जेठानियों ने लड़के पैदा किए थे। इस कारण उसे सदैव प्रताड़ित किया जाता था। पति की मृत्यु के बाद उन्होंने भक्तिन पर पुनर्विवाह के लिए दबाव डाला। उसकी विधवा लड़की के साथ जबरदस्ती की। अंत में, भक्तिन को गाँव छोड़ना पड़ा।

प्रश्न 4 :

भक्तिन का जीवन सदैव दुखों से भरा रहा। स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर –

भक्तिन का जीवन प्रारंभ से ही दुखमय रहा। बचपन में ही माँ गुजर गई। विमाता से हमेशा भेदभावपूर्ण व्यवहार मिला। विवाह के बाद तीन लड़कियाँ उत्पन्न करने के कारण उसे सास व जेठानियों का दुझ्यवहार सहना पड़ा। किसी तरह परिवार से अलग होकर समृद्ध पाई, परंतु भाग्य ने उसके पति को छीन लिया। ससुराल वालों ने उसकी संपत्ति छीननी चाही, परंतु वह संघर्ष करती रही। उसने बेटियों का विवाह किया तथा बड़े जमाई को घर-जमाई बनाया। शीघ्र ही उसका देहांत हो गया। इस तरह उसका जीवन शुरू से अंत तक दुखों से भरा रहा।

प्रश्न 5 :

लछमिन के पैरों के पंख गाँव की सीमा में आते ही क्र्यो झड़ गए?

उत्तर –

लछमन की सारा का व्यवहार सदैव कटु रहा। जब उसने लछमन को मायके यह कहकर भेजा कि “तुम बहुत दिन से मायके नहीं गई हो, जाओ देखकर आ जाओ” तो यह उसके लिए अप्रत्याशित था। उसके पैरों में पंख से लग गए थे। खुशी खुशी जब वह मायके के गाँव की सीमा में पहुँची तो लोगों ने फुसफुसाना प्रारंभ कर दिया कि ‘हाय! बेचारी लछमिन अब आई है। लोगों की नजरों से सहानुभूति झलक रही थी। उसे इस बात का अहसास नहीं था कि उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है या वे गंभीर बीमार थे। विमाता ने उसके साथ अन्याय किया था। इरालिए वह हतप्रभ धी। उसकी तमाम खुशी समाप्त हो गई।

प्रश्न 6:

लछमिन ससुराल वालों से अलग क्यों हुई? इसका क्या परिणाम हुआ?

उत्तर –

लछमन मेहनती थी। तीन लड़कियों को जन्म देने के कारण सास व जेठानियाँ उसे सदैव प्रताड़ित करती रहती थीं। वह व उसके बच्चे घर, खेत व पशुओं का सारा काम करते थे, परंतु उन्हें खाने तक में भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ता था। लड़कियों को दोयम दर्जे का खाना मिलता था। उसकी दशा नौकरों जैसी थी। अतः उसने ससुराल वालों से अलग होकर रहने का फैसला किया। अलग होते रामय उसने अपने ज्ञान के कारण खेत, पशु घर आदि में अच्छी चीजें ले लीं। परिश्रम के बलबूते पर उसका धर समृद्ध हो गया।

प्रश्न 7:

भक्तिन व लेखिका के बीच कैसा संबंध था?

उत्तर –

लेखिका व भक्तिन के बीच बाहरी तौर पर सेवक-स्वामी का संबंध था, परंतु व्यवहार में यह लागू नहीं होता था। महादेवी उसकी कुछ आदतों से परेशान थीं, जिसकी वजह से यदा कदा उसे घर चले जाने को कह देती थीं। इस आदेश को वह हँसकर टाल देती थी। दूसरे, वह नौकरानी कम, जीवन की धूप व अधिक थी। वह लेखिका की छाया बनकर घूमती थी। वह आने जाने वाले, अंधेरे-जाले और आँगन में फूलने वाले गुलाब व भाम की तरह पृथक अस्तित्व रखती तथा हर सुख-दुख में लेखिका के साथ रहती थी।

प्रश्न 8:

लेखिका के परिचित के साथ भकितन केसा व्यवहार करती थी?

उत्तर –

लेखिका के पास अनेक साहित्यिक बंधु आते रहते थे, परंतु भनिन के मन में उनके लिए कोई विशेष सम्मान नहीं था। वह उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती थी जैसा लेखिका करती थी। उसके सम्मान की भाषा, लेखिका के प्रति उनके सम्मान की मात्रा पर निर्भर होती थी और सद्भाव उनके प्रति लेखिका के सद्भाव से निश्चित होता था। भक्तिन उन्हें आकार-प्रकार व वेश-भूषा से स्मरण रखती थी या किसी को नाम के अपभ्रंश द्वारा। कवि तथा कविता के संबंध में उसका ज्ञान बढ़ा है, पर आदरभाव नहीं।

प्रश्न 9;

भक्तिन के आने से लेखिका अपनी असुविधाएँ क्यों छिपाने लगीं?

उत्तर –

भक्तिन के आने से लेखिका के खान-पान में बहुत परिवर्तन आ गए। उसे मीठा, घी आदि पसंद था। उसके स्वास्थ्य को लेकर उसके परिवार वाले भी चिंतित रहते थे। घर वालों ने उसके लिए अलग खाने की व्यवस्था कर दी थी। अब वह मीठे व धी से विरक्ति करने लगी थी। यदि लेखिका को कोई असुविधा होती भी थी तो वह उसे भक्तिन को नहीं बताती थी। भक्तिन ने उसे जीवन की सरलता का पाठ पढ़ा दिया।

प्रश्न 10;

लछमिन को शहर क्यों जाना पड़ा?

उत्तर –

लछमन के बड़े दामाद की मृत्यु हो गई। उसके स्थान पर पारेवार वालों ने जिठाँत के साले को जबरदस्ती विधवा लड़की का पति बनया दिया। पारिवारिक द्वैप बढ़ने से खेती-बाड़ी चौपट हो गई। स्थिति यहाँ तक आ गई कि लगान भी नहीं चुकाया गया। जब जमींदार ने लगान न पहुँधा घर भक्तिन को दिनभर की धूप में खड़ा रखा तो उसके स्वाभिमानी हदय को गहरा आघात लगा। यह उसी कर्मठता के लिए सबसे बड़ा कलंक बन गया। इस अपमान के कारण वह दूसरे ही दिन कमाई के विचार से शहर भा गई।

प्रश्न 11:

कारागार के नाम से भक्तिन पर क्या प्रभाव पड़ता था?

उत्तर –

वह जेल जाने के लिए क्यों तैयार हो गई? भक्तिन को कारागार से बहुत भय लगता था। वह उसे यमलोक के समान समझती थी। कारागार की ऊँची दीवारों को देखकर वह चकरा जाती थी। जब उसे पता चला कि महादेवी जेल जा रही हैं तो वह उनके साथ जेल जाने के लिए तैयार हो गई। वह महादेवी के बिना अलग रहने की कल्पना मात्र से परेशान हो उठती थी।

प्रश्न 12:

महादेवी ने भक्ति के जीवन को कितने परिच्छेदों में बाँटा?

उत्तर –

महादेवी ने भक्ति के जीवन को चार परिच्छेदों में बाँटा जो निम्नलिखित हैं –

प्रथम – विवाह से पूर्व।

द्वितीय – ससुराल में सधवा के रूप में।

तृतीय – विधवा के रूप में।

चतुर्थ – महादेवी की सेवा में।

प्रश्न 13:

भक्तिन की बेटी पर पचायत द्वारा पति क्यों थोपा गया? इस घटना के विरोध में दो तर्क दीजिए।

उत्तर –

भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा पति इसलिए थोपा गया क्योंकि भक्तिन की विधया बेटी के साथ उसके ताऊ के लड़के के साले ने जबरदस्ती करने की कोशिश की थी। लड़की ने उसकी खून्य पिटाई की परंतु पंचायत ने कोई भी तर्क न सुनकर एकतरफा फसला सुना दिया। इसके विरोध में दो तर्क निम्नलिखित हैं –

1. महिला के मानवाधिकार का हनन होता है।

2. योग्य लड़की का विवाह अयोग्य लड़के के साथ हो जाता है।

प्रश्न 14:

‘भक्तिन’ अनेक अवगुणों के होते हुए भी महादेव जी के लिए अनमोल क्यों थी?

उत्तर –

अनेक अवगुणों के होते हुए भी भक्तिन महादेवी वर्मा के लिए इसलिए अनमोल धी क्योंकि

1. भक्तिन में सेवाभाव कूट-कूटकर भरा था।

2. भक्तिन लेखिका के हर कष्ट को स्वयं झेल लेना चाहती थी।

3, वह लेखिका द्वारा पैसों की कमी का जिक्र करने पर अपने जीवनभर की कमाई उसे दे देना चाहती थी।

4. भक्तिन की सेवा और भक्ति में नि:स्वार्थ भाव था। वह अनवरत और दिन-रात लेखिका की सेवा करना चाहती थी।

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Chapter 10 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख | Ncert solution for class 12th hindi Aroh

छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

(अभ्यास-प्रश्न)

प्रश्न 1. छोटे चौकोने खेत को कागज का पन्ना कहने में क्या अर्थ निहित है?

कवि अपने कवि-कर्म को किसान के कर्म के समान बताना चाहता है अर्थात कविता की रचना खेती करने जैसी है। इसलिए कवि ने कागज के पन्ने को छोटा चौकोना खेत कहा है। जिस प्रकार खेत में बीज बोकर उसमें पानी और रसायन दिया जाता है और फिर उससे अंकुर और फल फूल उत्पन्न होता है। उसी प्रकार कागज कागज़ के पन्ने पर कवि के संवेदनशील भाव शब्दों का सहारा पाकर अभिव्यक्त होते हैं। जिससे पाठक को आनंद प्राप्त होता है।

प्रश्न 2. रचना के संदर्भ में अंधड़ और बीज क्या है?

अंधड़ का तात्पर्य है- संवेदनशील भावनाओं का आवेग। कवि के मन में अनजाने में कोई भाव जाग उठता है। जैसे एक दुबले-पतले भिक्षु को देखकर ‘निराला जी’ के मन में भावना का अंधड़ उठ खड़ा हुआ था और उन्होंने भिक्षुक कविता की रचना की।

बीज का अर्थ है किसी निश्चित विषय वस्तु का मन में जागना। जब कोई विषय कवि के मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है और बिंब के रूप में अभिव्यक्त होने के लिए कुलबुलाने लगता है तो उसे हम बीज रोपना कह सकते हैं।

प्रश्न 3. ‘रस का अक्षयपात्र’ से कवि ने रचनाकर्म की किन विशेषताओं की ओर इंगित किया है?

कवि की काव्य-रचना को रस का अक्षय पात्र कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि कविता में निहित सौंदर्य, रस, भाव आदि कभी नष्ट नहीं होते। वे अनंत काल तक कविता में विद्यमान रहते हैं। किसी भी काल अथवा युग का पाठक उस कविता को पढ़कर आनंदानुभूति प्राप्त कर सकता है। इसलिए कविता को कवि ने ‘रस का अक्षयपात्र’ कहा है।

प्रश्न 4.1 व्याख्या करें –

शब्द के अंकुर फूटे,

पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।

उत्तर:- ‘छोटा मेरा खेत’ में खेती के रूपक द्वारा काव्य-रचना प्रक्रिया को स्पष्ट किया गया हे। जिस प्रकार धरती में बीज बोया जाता है और वह बीज विभिन्न रसायनों – हवा, पानी, आदि को पीकर तथा विभिन्न चरणों से गुजरकर बड़ा होता है उसी प्रकार जब कवि को किसी भाव का बीज मिलता है तब कवि उसे आत्मसात करता है। उसके बाद बीज में से शब्दरुपी अंकुर फूटते है। उसमे विशेष भावों के पत्ते और फूल पनपते है।

प्रश्न 4.2 व्याख्या करें –

रोपाई क्षण की,

कटाई अनंतता की

लुटते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।

उत्तर:- साहित्यिक कृति से जो अलौकिक रस-धारा फूटती है, उसमें निहित सौंदर्य, रस और भाव न तो कम होता है, न नष्ट होता है। वह क्षण में होने वाली रोपाई का ही परिणाम है पर यह रस-धारा अनंत काल तक चलने वाली कटाई है।

छोटा मेरा खेत

(अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

1. छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने खेत को रस का अक्षय पात्र क्यों कहा है?

उत्तर –

कवि ने खेत को रस का अक्षय पात्र इसलिए कहा है क्योंकि अक्षय पात्र में रस कभी खत्म नहीं होता। उसके रस को जितना बाँटा जाता है, उतना ही वह भरता जाता है। खेत की फसल कट जाती है, परंतु वह हर वर्ष फिर उग आती है। कविता का रस भी चिरकाल तक आनंद देता है। यह सृजन-कर्म की शाश्वतता को दर्शाता है।

2. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता का रूपक स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर –

इस कविता में कवि ने कवि-कर्म को कृषि के कार्य के समान बताया है। जिस तरह कृषक खेत में बीज बोता है, फिर वह बीज अंकुरित, पल्लवित होकर पौधा बनता है तथा फिर वह परिपक्व होकर जनता का पेट भरता है। उसी तरह भावनात्मक आँधी के कारण किसी क्षण एक रचना, विचार तथा अभिव्यक्ति का बीज बोया जाता है। यह विचार कल्पना का सहारा लेकर विकसित होता है तथा रचना का रूप ग्रहण कर लेता है। इस रचना के रस का आस्वादन अनंतकाल तक लिया जा सकता है। साहित्य का रस कभी समाप्त नहीं होता।

3. कवि को खेत का रूपक अपनाने की ज़रूरत क्यों पड़ी?

उत्तर –

कवि का उद्देश्य कवि कर्म को महत्ता देना है। वह कहता है कि काव्य रचना बेहद कठिन कार्य है। बहुत चिंतन के बाद कोई विचार उत्पन्न होता है तथा कल्पना के सहारे उसे विकसित किया जाता है। इसी प्रकार खेती में बीज बोने से लेकर फसल की कटाई तक बहुत परिश्रम किया जाता है। इसलिए कवि को खेत का रूपक अपनाने की जरूरत पड़ी।

4. छोटा मेरा खेत हैं कविता का उद्देश्य बताइए।

उत्तर –

कवि ने रूपक के माध्यम से कवि कर्म को कृषक के समान बताया है। किसान अपने खेत में बीज बोता है, वह बीज अंकुरित होकर पौधा बनता है तथा पकने पर उससे फल मिलता है जिससे लोगों की भूख मिटती है। इसी तरह कवि ने कागज को अपना खेत माना है। इस खेत में भावों की आँधी से कोई बीज बोया जाता है। फिर वह कल्पना के सहारे विकसित होता है। शब्दों के अंकुर निकलते ही रचना स्वरूप । ग्रहण करने लगती है तथा इससे अलौकिक रस उत्पन्न होता है। यह रस अनंतकाल तक पाठकों को अपने में डुबोए रखता है। कवि ने कवि- कर्म को कृषि कर्म से महान बताया है वयोंकि कृषि कर्म का उत्पाद निश्चित समय तक रस देता है, परंतु कवि कर्म का उत्पाद अनंतकाल तक रस प्रदान करता है।

5. शब्दरूपी अंकुर फूटने से कवि का क्या तात्पर्य है?

उत्तर –

कवि कहता है कि जिस प्रकार खेत में बीज पड़ने के कुछ दिनों बाद उसमें अंकुर फूटने लगते हैं, उसी प्रकार विचाररूपी दिस अंड्रफ्ट लातेहैं। यहाकविता कर्मक पाहताचणहै इसके बाद हारवना अनास्वाप – ग्रहण करती है।

6. कविता लुटने पर भी क्यों नहीं मिटती या खत्म होती?

उत्तर –

यहाँ लुटने से आशय बाँटने से है। कविता का आस्वादन अनेक पाठक करते हैं। इसके बावजूद यह खत्म नहीं होती क्योंकि कविता जितने अधिक लोगों तक पहुँचती है उतना ही अधिक उस पर चिंतन किया जाता है। वह शाश्वत हो जाती है।

7. अंधड़’ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर –

अंधड़ भावनात्मक आवेग है। काव्य-रचना अचानक किसी प्रेरणा से होती है। कवि के मन में भावनाएँ होती हैं। जिस भी विचार का आवेग अधिक होता है, उसी विचार की रचना अपना स्वरूप ग्रहण करती है।

8. बीज गल गया ‘से क्या तात्पर्य है?

उत्तर –

इसका अर्थ यह है कि जब तक कवि के मन में कविता का मूल भाव पूर्णतया समा नहीं जाता, तब तक वह निजता (अह) से मुक्त नहीं हो सकता। कविता तभी सफल मानी जाती है, जब वह समग्र मानव जाति की भावना को व्यक्त करती है। कविता को सार्वजनिक बनाने के लिए कवि का अहं नष्ट होना आवश्यक है।

बगुलों के पंख

(अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

9. बगुलों के पंख ‘कविता का प्रतिपाद्य बताइए।

उत्तर –

यह सुंदर दृश्य कविता है। कवि आकाश में उड़ते हुए बगुलों की पंक्ति को देखकर तरह-तरह की कल्पनाएँ करता है। ये बगुले कजरारे बादलों के ऊपर तैरती साँझ की सफेद काया के समान लगते हैं। कवि को यह दृश्य अत्यंत सुंदर लगता है। वह इस दृश्य में भटककर रह जाता है। एक तरफ वह इस सौंदर्य से बचना चाहता है तथा दूसरी तरफ वह इसमें बँधकर रहना चाहता है।

10. पाँती-बँधी से कवि का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

इसका अर्थ है-एकता। जिस प्रकार ऊँचे आकाश में बगुले पंक्ति बाँधकर एक साथ चलते हैं। उसी प्रकार मनुष्यों को एकता के साथ रहना चाहिए। एक होकर चलने से मनुष्य अद्भुत विकास करेगा तथा उसे किसी का भय भी नहीं रहेगा।

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Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल | Ncert solution for class 12th hindi Aroh

रुबाइयाँ, गज़ल

(अभ्यास-प्रश्न)

प्रश्न 1. शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है ?

राखी एक पवित्र धागा है। इसे बहन अपने भाई की कलाई पर बाँधती है। भले ही यह कच्चा धागा है परंतु इसका बंधन बहुत ही पक्का है। इसका आकर्षक बिजली जैसा है जिस प्रकार आकाश में चमकने वाली बिजली की हम उपेक्षा नहीं कर सकते। उसी प्रकार राखी के धागे की उपेक्षा नहीं की जा सकती। भले ही भाई-बहन एक दूसरे से दूर रहते हों, परंतु राखी का पावन त्यौहार एक दूसरे की याद दिलाता रहता है। कवि की भाव व्यंजना अधिक मनोरम और प्रभावशाली बन पड़ी है।

प्रश्न 2. खुद का पर्दा खोलने से क्या आशय है?

‘खुद का पर्दा खोलने’ मुहावरे का प्रयोग उन लोगों के लिए किया गया है जो दूसरों की निंदा करते हैं। सच्चाई तो यह है कि ऐसे लोग अपनी छोटी सोच का उद्घाटन करते हैं। इससे हमें बिना बताए लोग अपने चरित्र के बारे में बता देते हैं। कवि बताते हैं कि निंदा करना बुरी बात होती है। फिर भी कबीरदास जी ने कहा है कि-

“निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय।

बिन साबुन पानी, निर्मल होत सुभाय।।”

प्रश्न 3. किस्मत हमको रो लेवे हैं हम किस्मत को रो ले हैं- इस पंक्ति में शायर की किस्मत के साथ तनातनी का रिश्ता अभिव्यक्त हुआ है। चर्चा कीजिए।

किस्मत और मानव का गहरा संबंध है। सर्वप्रथम हम इस बात पर चर्चा करते हैं कि किस्मत हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। हम और किस्मत एक दूसरे के पूरक है। विद्वानों ने जो कुछ हमारे भाग्य में लिखा है वही प्राप्त होता है। किस्मत पर रोना और कोसना व्यर्थ है। हमारा कर्तव्य है कि हम किस्मत की अधिक चिंता न करके अपना कर्म और परिश्रम करें। परिश्रम करने से हमें जीवन में सफलता अवश्य मिलती है।

रुबाइयाँ

(अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

प्रश्न 1:

‘रुबाइयाँ” के आधार पर घर-आँगन में दीवाली और राखी के दुश्य-बिंब को अपने शब्दों में समझाइए।

उत्तर –

कवि दीपावली के त्योहार के बारे में बताते हुए कहता है कि इस अवसर पर घर में पुताई की जाती है तथा उसे सजाया जाता है। घरों में मिठाई के नाम पर चीनी के बने खिलौने आते हैं। रोशनी भी की जाती है। बच्चे के छोटे-से घर में दिए के जलाने से माँ के मुखड़े की चमक में नयी आभा आ जाती है। रक्षाबंधन का त्योहार सावन के महीने में आता है। इस त्योहार पर आकाश में हल्की घटाएँ छाई होती हैं। राखी के लच्छे भी बिजली की तरह चमकते हुए प्रतीत होते हैं।

प्रश्न 2:

फिराक की गजल में प्रकृति को किस तरह चित्रित किया गया है?

उत्तर –

फिराक की गजल के प्रथम दो शेर प्रकृति वर्णन को ही समर्पित हैं। प्रथम शेर में कलियों के खिलने की प्रक्रिया का भावपूर्ण वर्णन है। कवि इस शेर को नव रसों से आरंभ करता है। हर कोमल गाँठ के खुल जाने में कलियों का खिलना और दूसरा प्रतीकात्मक अर्थ भी है कि सब बंधनों से मुक्त हो जाना, संबंध सुधर जाना। इसके बाद कवि कलियों के खिलने से रंग और सुगंध के फैल जाने की बात करता है। पाठक के समक्ष एक बिंब उभरता है। वह सौंदर्य और सुगंध दोनों को महसूस करता है।

प्रश्न 3:

‘फिराक’ की रुबाइयों में उभरे घरेलू जीवन के बिबों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

‘फिराक’ की रुबाइयों में घरेलू जीवन का चित्रण हुआ है। इन्होंने कई बिंब उकेरे हैं। एक बिंब में माँ छोटे बच्चे को अपने हाथ में झुला रही है। बच्चे की तुलना चाँद से की गई है। दूसरे बिंब में माँ बच्चे को नहलाकर कपड़े पहनाती है तथा बच्चा उसे प्यार से देखता है। तीसरे बिंब में बच्चे द्वारा चाँद लेने की जिद करना तथा माँ द्वारा दर्पण में चाँद कवि दवाक बचेक बहानेक कशिक बताया गया है। ये साथ बिंबालभागह घेलूजवनामें पाए जाते हैं।

ग़ज़ल

(अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

प्रश्न 4:

पाठ्यपुस्तक में संकलित फिराक गोरखपुरी की गजल का केंद्रीय भाव लिखिए।

उत्तर –

फिराक गोरखपुरी ने गजल” में दर्द व कसक का वर्णन किया है। उसने बताया है कि लोगों ने उसे सदा ताने दिए हैं। उसकी किस्मत हमेशा उसे दगा देती रही। दुनिया में केवल गम ही था जो उसके पास रहा। उसे लगता है जैसे रात के सन्नाटे में कोई बोल रहा है। इश्क के बारे में। शायर का कहना है कि इश्क वही पा सकता है जो अपना सब कुछ दाँव पर लगा दे। कवि की गजलों पर मीर की गजलों का प्रभाव है। यह गज़ल इस तरह बोलती है जिसमें दर्द भी है एक शायर की ठसक भी है और साथ ही है काव्यशिल्प की वह ऊँचाई, जो गजल की विशेषता मानी जाती है।

प्रश्न 5:

फिराक की न्याई में भाषा के विलक्षण प्रयोग किए गए हैं-स्पष्ट करें।

उत्तर –

कवि की भाषा उर्दू है, परंतु उन्होंने हिंदी व लोकभाषा का भी प्रयोग किया है। उनकी रचनाओं में हिंदी, उर्दू व लोकभाषा के अनूठे गठबंधन के विलक्षण प्रयोग हैं जिसे गाँधी जी हिंदुस्तानी के रूप में पल्लवित करना चाहते थे। ये विलक्षण प्रयोग हैं-लोका देना, घुटनियों में लेकर कपड़े पिन्हाना, गेसुओं में कंघी करना, रूपवती मुखड़ा, नर्म दमक, जिदयाया बालक रस की पुतली। माँ हाथ में आईना देकर बच्चे को बहला रही है।

रुबाइयाँ

(पठित काव्यांश)

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.

आंगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी

हाथों पे झुलाती हैं उसे गोद भरी

रह-रह के हवा में जो लोका देती हैं।

गूँज उठती हैं खिलखिलाते बच्चे की हँसी।

प्रश्न

(क) कवि ने चाँद का टुकड़ा’ किसे कहा है और क्यों?

(ख) माँ के लिए कविता में किस शब्द का प्रयोग हुआ है और क्यों?

(ग) बच्चे की हसी का कारण क्या है? उसके गूंजने से क्या तात्पर्य है?

(घ) काव्यांश के भाव को अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।

उत्तर –

(क) कवि ने चाँद का टुकड़ा माँ की गोद में खेल रहे बच्चे को कहा है क्योंकि वह चाँद के समान ही सुंदर है।

(ख) माँ के लिए कविता में गोद भरी’ शब्द का प्रयोग है क्योंकि माँ की गोद में बच्चा होने के कारण उसकी गोद भरी हुई है।

(ग) बच्चे की हँसी का कारण है माँ द्वारा बच्चे को हवा में लोका दिया जाना या उसे खुश करने के लिए हवा में उछालना। उसके गूजने का तात्पर्य है-इससे बच्चा खुश होकर हँसता है और उसकी हँसी गूंजने लगती है।

(घ) काव्यांश का भाव यह है कि माँ अपने चाँद जैसी सुंदर संतान को गोद में लिए खड़ी है। वह उसे अपने हाथों पर झुलाती हुई हवा में उछाल देती है। इससे बच्चा खिलखिलाकर हँसने लगता है।

प्रश्न 2.

नहला के छलके छलके निर्मल जल से

उलझे हुए गैसुओं में कंघी

किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को

करके जब घुटनियों में ले के हैं पिन्हाती कपड़े।

प्रश्न

(क) माँ बच्चे को किस प्रकार नहलाती हैं।

(ख) माँ बच्चे की कंघी कैसे करती हैं?

(ग) बध्धा कब अपनी माँ को प्यार से देखता हैं?

(घ) बच्चा अपनी माँ को किस प्रकार देखता है?

उत्तर –

(क) माँ बच्चे को स्वच्छ जल से नहलाती है। पानी के छलकने से बच्चा प्रसन्न होता है।

(ख) माँ बच्चे के उलझे हुए बालों में कंघी करती है।

(ग) जब म बच्चे को अपने घुटनों में लेकर कपड़े पहनाती है तब वह अपनी माँ को देखता है।

(घ) बच्चा अपनी माँ को बहुत ही प्यार से देखता है।

प्रश्न 3.

दीवाली की शाम घर पुते और सजे

चीनी के खिलौने जगमगाते लावे

वो रूपवती मुखड़े पै इक नम दमक

बच्चे के घरौदे में जलाती हैं दिए।

प्रश्न

(क) दीवाली पर लोग क्या करते हैं?

(ख) इस अवसर पर माँ बच्चे के लिए क्या लाती है?

(ग) माँ के चेहरे पर कैसा भाव आता हैं?

उत्तर –

(क) दीवाली के अवसर पर लोग घरों में रंग-रोगन करते हैं तथा उसे सजाते हैं।

(ख) इस अवसर पर माँ बच्चे के लिए चीनी के बने खिलौने लाती है।

(ग) जब मों बच्चे के घर में दिया जलाती है तो उसके सुंदर मुख पर दमक होती है।

प्रश्न 4.

आँगन में ठनक रहा है जिदयाय हैं।

बालक तो हुई चाँद में ललचाया है।

दर्पण उसे दे के कह रही है माँ

देख आईने में चाँद उतर आया है।

प्रश्न

(क) कौन ठुनक रहा है और जिदयाया है।

(ग) बाल – मनोविज्ञान के किस पक्ष का वर्णन हुआ है।

(ख) बच्चा किसको देखकर ललचाया है।

(घ) माँ अपने बेटे को किस तरह मनाती हैं?

उत्तर –

(क) बच्चा दुनक रहा है और जिदयाया हुआ है।

(ख) बच्चा चाँद को देखकर ललचाया है।

(ग) इसमें शायर ने बाल-मनोविज्ञान का सहज चित्रण किया है। बच्चे किसी भी बात या वस्तु पर जिद कर बैठते हैं तथा मचलने लगते हैं।

(घ) माँ बच्चे को दर्पण में चाँद का प्रतिबिंब दिखाकर उसे बहलाती है।

प्रश्न 5.

रक्षाबंदन की सुबह रस की पुतली

छायी है घटा गगन की हलकी हलकी

बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे

भाई के है बाँधती चमकती राखी

प्रश्न

(क) रस की पुतली’ कौन है? उसे यह संज्ञा क्यों दी गई हैं?

(ख) राखी के दिन कैसा मौसम है? बताइए।

(ग) ‘बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे।-पक्ति का आशय बताइए।

(घ) बहन किसके हाथों में कैसी राखी बाँधती है?

उत्तर –

(क) रस की पुतली’ राखी बाँधने वाली बहन है। उसे यह संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि उसके मन में अपने भाई के प्रति अत्यधिक स्नेह है।।

(ख) राखी के दिन आकाश में हलके हलके काले बादल छाए हैं तथा बिजली भी चमक रही है।

(ग) इसका अर्थ यह है कि राखी में जो चमकदार लच्छे हैं, वे बिजली की तरह चमकते हैं।

(घ) बहन अपने भाई के हाथों में चमकती राखी बाँधती है।

गजल

(पठित काव्यांश)

प्रश्न 1.

नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरौं खोले हैं।

या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोले हैं।

प्रश्न

(क) कवि ने किस ऋतु का वर्णन किया हैं?

(ख) पहली पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

(ग) ‘नीरस ‘विशेषण से क्या अभिप्राय हैं?

(घ) कलियाँ किस तैयारी में हैं?

उत्तर –

(क) कवि ने बसंत ऋतु का वर्णन किया है।

(ख) इसका अर्थ यह है कि बसंत ऋतु में कलियों में नया रस भरा होता है और वे अपनी पंखुड़ियों से कोमल बंधनों को खोल रही हैं।

(ग) इसका अर्थ है-नया रस। बसंत के मौसम में कलियों में नया रस भर जाता है।

(घ) कलियाँ फूल बनने की तैयारी में हैं। उनके खिलने से खुशबू चारों तरफ फैल जाएगी।

प्रश्न 2.

तारे आँखें झपकावे हैं जर्रा – जर्रा सोये हैं।

तुम भी सुनो हो यारो। शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं।

प्रश्न

(क) रात के समय कैसा दूश्य हैं?

(ख) ज़र्रा ज़र्रा हैं में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

(ग) शब में कौन बोलता हैं तथा कैसे?

(घ) कवि किसे संबोधित कर रहा है तथा क्यों?

उत्तर –

(क) रात के समय वातावरण शांत है। आकाश में तारे आँखें झपकाते हुए लगते हैं।

(ख) इसका अर्थ है-रात के समय सारी सृष्टि शांत हो जाती है। हर जगह सन्नाटा छा जाता है।

(ग) रात में सन्नाटा बोलता है। इस समय चुप्पी की आवाज सुनाई देती है।

(घ) कवि दोस्तों को संबोधित करता है और बताता है कि रात को खामोशी भी बोलती हुई लगती है।

प्रश्न 3.

हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला

किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं।

प्रश्न

(क) कवि किस-किसको समान बताता है?

(ख) ‘किस्मत हमको रो ले है। अर्थ स्पष्ट करें।

(ग) कवि तथा किस्मत क्या कार्य करते हैं?

(घ) कवि ने मानव स्वभाव के बारे में किस सत्य का उल्लेख किया हैं?

उत्तर –

(क) कवि ने स्वयं तथा भाग्य को एक समान बताया है।

(ख) इसका अर्थ यह है कि कवि की बदहाली को देखकर किस्मत उसकी अकर्मण्यता पर झल्लाती है।

(ग) कवि अपनी दयनीय दशा के लिए भाग्य को दोषी ठहराता है तथा किस्मत उसकी अकर्मण्यता को देखकर झल्लाती है। दोनों एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं।

(घ) कवि ने अपने माध्यम से मानव स्वभाव के बारे में उस सत्य का उल्लेख किया है कि किसी भी प्रकार की अभावग्रस्तता होने पर वह किस्मत को ही दोषी ठहराता है।

प्रश्न 4.

जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें

मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं।

प्रश्न

(क) निदा करने वाले दूसरों की निदा के साथ-साथ अपनी निदा स्वय कर जाते हैं, कैसे?

(ख) निदक किन्हें कहते हैं। वे किसे बदनाम करना चाहते हैं?

(ग) कवि कुछ लोगों को सचेत क्यों करना चाहता है?

(घ) ‘मेरा परदा खोले हैं-आशय स्पष्ट करें।

उत्तर –

(क) निंदक किसी की बुराइयाँ जब दूसरों के सामने प्रस्तुत करते हैं तो उससे उनकी अपनी कमियाँ स्वयं प्रकट हो जाती हैं। इस प्रकार वे अपनी निंदा स्वयं कर जाते हैं।

(ख) निंदक वे लोग होते हैं जो अकारण दूसरों की कमियों को बिना सोचे समझे दूसरों के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं। ऐसे लोग कवि को बदनाम करना चाहते हैं।

(ग) कवि कुछ लोगों को इसलिए सचेत करना चाहता है क्योंकि जो लोग कवि को बदनाम करना चाहते हैं, उन्हें इतना समझना चाहिए कि इस कार्य से वे अपने रहस्य भी दूसरों को बता रहे हैं।

(घ) इसका अर्थ यह है कि कवि के विरोधी उसकी कमियों को समाज के सामने प्रस्तुत करते हैं ताकि उसकी बदनामी हो जाए।

प्रश्न 5.

ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास

तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ली हैं।

प्रश्न

(क) हम बदुरुस्त-ए-होशो-हवास’ का अर्थ बताइए।

(ख) कवि किसे संबोधित करता है?

(ग) सौदा करने से क्या अभिप्राय है?

(घ) कवि किसकी कीमत अदा करने की बात कहता है?

उत्तर –

(क) इसका अर्थ है-हम पूरे होशोहवास से। दूसरे शब्दों में हम पूरे विवेक से।

(ख) कवि प्रियतमा को संबोधित करता है।

(ग) इसका अर्थ है-किसी चीज को खरीदना। यहाँ यह प्रेम की कीमत अदा करने से संबंधित है।

(घ) कवि प्रेम की कीमत अदा करने की बात कहता है।

प्रश्न 6.

तेरे गम का पासे-अदब हैं कुछ दुनिया का खयाल भी हैं।

सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके चुपके रो ले हैं।

प्रश्न

(क) तेरे गम का पास-अदब हैं – भाव स्पष्ट कीजिए।

(ख) कवि को किसका ख्याल हैं, क्यों?

(ग) कवि चुपके-चुपके क्यों रोता है?

(घ) कवि की मनोदशा कैसी है?

उत्तर –

(क) इसका अर्थ यह है कि कवि के मन में अपने प्रिय की विरह-वेदना के प्रति पूर्ण सम्मान है।

(ख) कवि को सांसारिकता का ख्याल है क्योंकि वह सामाजिक प्राणी है और अपने प्रेम को बदनाम नहीं होने देना चाहता।

(ग) कवि अपने प्रेम को दुनिया के लिए मजाक या उपहास का विषय नहीं बनाना चाहता। इसी कारण वह चुपके-चुपके रो लेता है।

(घ) कवि प्रेम के विरह से पीड़ित है। उसे संसार की प्रवृत्ति से भी भय है। वह अपने वियोग को चुपचाप सहन करता है ताकि बदनाम न हो।

प्रश्न 7.

फितरत का कायम हैं तवाजुन आलमे हुस्नो इश्क में भी

उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं।

प्रश्न

(क) कवि किस संतुलन की बात करता है?

(ख) आलमे-हुस्नो-इश्क का अर्थ बताइए।

(ग) प्रिय को कैसे पाया जा सकता है।

(घ) “खुद को खोने का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

(क) कवि प्रेम और सौंदर्य के लिए खोने और पाने में संतुलन की बात करता है।

(ख) इसका अर्थ है-प्रेम और सौंदर्य की दुनिया।

(ग) प्रिय को पाने का एकमात्र उपाय है-खुद को प्रेमी के प्रति समर्पित कर देना।

(घ) इराका अर्थ है-अहं भाव को छोड़कर प्रेमी के प्रति समर्पित होना।

प्रश्न 8.

आबो-ताब अशआर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो

ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं।

प्रश्न

(क) कवि किसकी चमक की बात कर रहा हैं?

(ख) आँखें रक्खो हो का भाव स्पष्ट कीजिए।

(ग) जगमग बैंतों की चमक’ का आशय बताइए।

(घ) ‘या हम सोती रोले हैं का अर्थ बताइए।

उत्तर –

(क) कवि अपनी शायरी की चमक की बात कर रहा है।

(ख) इसका अर्थ है- विवेक से हर बात को समझना, मर्म को जानना।

(ग) इसका अर्थ है-शेरो-शायरी का आलंकारिक सौंदर्य।

(घ) कवि कहता है कि मेरी कविता में विरह की वेदना व्यक्त हुई है।

प्रश्न 9.

ऐसे में तू याद आए है अंजुमने मय में रिंदों को

रात गए गर्दै पै फ़रिश्ते बाबे गुनह जग खोले हैं।

प्रश्न

(क) प्रथम पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

(ख) ‘तू’ कौन हैं? उसके बारे में कवि क्या कहता हैं?

(ग) रात में फ़रिश्ते क्या करते हैं?

(घ) ‘अंजुमने-मय में रिंदों को’ से कवि क्या बताता हैं?

उत्तर –

(क) प्रथम पंक्ति का भाव यह है कि शायर अपनी प्रिया, प्रेमिका को बहुत ही सिद्दत से याद करता है। यह याद ठीक वैसी है जैसे शराबखाने में शराब को शराब याद आती है।

(ख) तू कवि की प्रेमिका है। वह उसे विरह के समय याद आती है।

(ग) रात के समय देवदूत आकाश में सारे संसार के पापों का अध्याय खोलते हैं।

(घ) इसमें कवि शराबखाने में शराबियों की दशा का वर्णन करता है। यहाँ उसे शराब की बहुत याद आती है।

प्रश्न 10.

सदके फिराक एजाज-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज

इन गलों के पदों में तो मीर’ की गजलें बोले हैं।

प्रश्न

(क) फिराक किस पर कुर्बान हैं?

(ख) फिराक की शायरी किससे प्रभावित है।

(ग) कवि के प्रशंसकों ने क्या प्रतिक्रिया जताई।

(घ) ‘मीर की गजलें बोले हैं का भाव समझाइए

उत्तर –

(क) फिराक अपनी शायरी पर कुर्बान हैं।

(ख) फिराक की शायरी प्रसिद्ध शायर मीर से प्रभावित है।

(ग) कवि के प्रशंसकों ने कहा कि उसने कविता की यह सुंदरता कहाँ से उड़ा ली।

(घ) ‘मीर की गजलें बोले हैं का भाव यह है कि कवि फिराक गोरखपुरी की गजलों और सुप्रसिद्ध शायर ‘मीर’ की गजलों में पर्याप्त समानता है।

रुबाइयाँ

काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न

पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स:

● सहज, सरल साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।

● शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं सटीक है।

● संपूर्ण पद में दृश्य तथा श्रव्य-बिंबों का सुंदर प्रयोग है।

● प्रसाद- गुण तथा वात्सल्य रस का प्रयोग है।

● रुबाई छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1

आंगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी

हाथों पे झुलाती हैं उसे गोद-भरी

रह-रह के हवा में जो लोका देती है

पूँज उठती हैं खिलखिलाते बच्चे की हँसी।

नहला के छलके छलके निर्मल जल से

उलझे हुए गेसुओं में कंघी

किस प्यार से देखता हैं बच्चा मुँह को

करके जब घुटनियों में ले के हैं पिन्हाती कपड़े।

प्रश्न

(क) चाँद का टुकड़ा’ कौन हैं? इस बिंब के प्रयोगगत भावों में क्या विशेषता हैं?

(ख) बच्चे को लेकर माँ के किन क्रियाकलापों का चित्रण किया गया हैं? उनसे उसके किस भाव की अभिव्यक्ति हो रही है?

(ग) ‘किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को ‘ में अभिव्यक्त बच्चे के चष्टजन्य सौंदर्य की विशेषता को स्पष्ट कीजिए।

(घ) माँ और बच्चे के स्नेह-सबधों पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर –

(क) चाँद का टुकड़ा’ माँ की गोद में खेल रहा वह बच्चा है, जिसे माँ हाथों में लिए हवा में झुला रही है। इस प्रयोग से बच्चे को प्रसन्न करने के लिए उसे हवा में झुलाती माँ का बिंब साकार हो उठा है।

(ख) बच्चे को लेकर माँ आँगन में खड़ी है। वह हँसाने के लिए बच्चे को हवा में झुला रही है, लोका दे रही है। इन क्रियाओं से प्रेम और वात्सल्य के साथ ही उसकी ममता की अभिव्यक्ति हो रही है।

(ग) किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को अंश में बालसुलभ और चेष्टाजन्य क्रियाएँ साकार हो उठी हैं। माँ बच्चे को नहला-धुलाकर जब अपने घुटनों में लेकर कपड़े पहनती है तो बच्चा अपनत्व भाव से मों के चेहरे को देखता है। ऐसे में बच्चे का सौंदर्य और भी निखर जाता है।

(घ) माँ और बच्चे का संबंध वात्सल्य और ममता से भरपूर होता है। बच्चा अपनी सारी जरूरतों के लिए जहाँ माँ पर निर्भर होता है, वहीं माँ को बच्चा सर्वाधिक प्रिय होता है। वह उसकी जरूरतों का ध्यान रखती है तथा प्यार और ममता से पोषित करके उसे बड़ा करती है।

2

आँगन में ठनक रहा हैं जिदयाय है।

बालक तो हई चाँद में ललचाया है।

दर्पण उसे दे के कह रही हैं माँ

देख आईने में चाँद उतर आया है।

प्रश्न

(क) काव्यांश की भाषा की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

(ख) यह काव्यांश किस छंद में लिखा गया हैं? विशेषता बताइए।

(ग) ‘देख आईने में चाँद उतर आया है कथन के सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

(क) काव्यांश की भाषा उर्दू-हिंदी भाषा है। इसमें सरलता, सुबोधता है। बाल-मनोविज्ञान का राजीव चित्रण है।

(ख) यह काव्यांश रुबाई छंद में लिखा गया है। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। इसकी पहली व चौथी पंक्ति में तुक मिलाया जाता है तथा तीसरी पंक्ति स्वतंत्र होती है।

(ग) इस कथन में माँ की सूझ बूझ का वर्णन है। वह बच्चे की जिद को आईने में चाँद को दिखाकर पूरा करती है। यहाँ ग्रामीण संस्कृति प्रत्यक्ष रूप से साकार हो उठती है।

गजल

काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न

पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स:

● इस शेर का भाव और भाषा दोनों उर्दू भाषा से प्रभावित हैं।

● शब्द चयन उचित एवं सटीक है।

● अभिव्यक्ति की दृष्टि से शेर सरल और ह्रदयग्राही है।

● इस शेर में कवि ने प्रकृति के सौंदर्य का सजीव वर्णन किया है।

निम्नलिखित शेरों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला

किस्मत हमको रो लेते है हम किस्मत को रो ले हैं।

जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें

मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं।

प्रश्न

(क) गजल के इस अंश की दो भाषिक विशेषताएँ बताइए।

(ख) प्रधम शेर में आइ पंक्तियों की व्यंजना स्पष्ट कजिए।

(ग) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कजिए-

‘मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं।

उत्तर –

(क) गजल में उर्दू भाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग होता है। दूसरा, इसमें सर्वनामों का प्रयोग होता है। जो, वे, हम, अपना आदि सर्वनाम उर्दू गजलों में पाए जाते हैं। इनका लक्ष्य कोई भी हो सकता है।

(ख) कवि अपनी किस्मत से असंतुष्ट है। वह उसे अपने ही समान मानता है। दोनों एक-दूसरे को कोसते रहते हैं।

(ग) कवि इन पंक्तियों में कहता है कि उसको बदनाम करने वाले लोग स्वयं ही बदनाम हो रहे हैं। वे अपने चरित्र को स्वयं ही उद्घाटित कर रहे हैं।

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Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप | Ncert solution for class 12th hindi Aroh

कवितावली, लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप Ncert solution

(अभ्यास-प्रश्न)

प्रश्न 1. कवितावली से उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।

भले ही तुलसीदास राम भक्त कवि थे परंतु अपने युग के प्रतिनिधियों से भी भली प्रकार परिचित थे। उन्होंने तत्कालीन लोगों की समस्याओं और आर्थिक स्थिति को समीप से देखा था। इसलिए कवि ने स्वीकार किया है कि उस समय लोग बेरोजगारी के शिकार थे। उनके पास कोई काम धंधा नहीं था। जिससे वे अपना पेट भर सके। मजदूर, किसान, भिखारी, कलाकार, व्यापारी आदि सभी काम न मिलने के कारण परेशान थे। तुलसीदास ने लोगों की आर्थिक दुर्दशा को देखकर कवितावली के छंदों में आर्थिक विषमता का यथार्थ वर्णन किया है।

प्रश्न 2. पेट की आग का शमन ईश्वर(राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है- तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग सत्य हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।

तुलसीदास ने यह स्वीकार किया है कि मनुष्य के पेट की आग को ईश्वर भक्ति रूपी मेघ ही शांत कर सकते हैं। तुलसी का यह काव्य सत्य प्रत्येक युग पर चरितार्थ होता है। हम अपने चारों ओर देखते हैं कि करोड़ों लोग कोई न कोई व्यवसाय कर रहे हैं। कुछ लोगों को आशातीत सफलता प्राप्त होती है परंतु कुछ लोग खूब मेहनत करके काम करते हैं फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिलती। इसे हम ईश्वर की कृपा के सिवाय कुछ नहीं कह सकते।

प्रश्न 3. तुलसी ने यह कहने की जरूरत क्यों समझी?

धूत कहौ, अवधूत कहौ, राजपूत कहौ, जोलहा कहौ कोऊ/ काहू की बेटी सों बेटा न ब्याहब काहू की जाति बिगार न सोऊ। इस सवैया में काहू के बेटा सों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता?

यदि तुलसीदास ‘काहू की बेटी से बेटा न ब्याहब’ की बजाय यह कहते कि ‘काहू के बेटा सो बेटी ना ब्याहब’ तो सामाजिक अर्थ में बहुत अंतर आ जाता। विवाह के बाद बेटी अपने पिता के कुल गोत्र को त्यागकर पति के कुल गोत्र को अपना लेती है। अतः यदि कवि के सामने अपनी बेटी के विवाह का प्रश्न होता तो उनकी कुल गोत्र को बिगड़ने का भय था।

प्रश्न 4. धूत कहौ…. वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखलाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं?

इस सवैया से कवि की सच्ची भक्ति भावना तथा उनके स्वाभिमानी स्वभाव का पता चलता है। वे स्वयं को ‘सरनाम गुलामु है राम को’ कहकर अपनी दीनता हीनता को प्रकट करते हैं। इससे पता चलता है कि वे राम के सच्चे भक्त हैं और उनमें समर्पण की भावना भी है। परंतु एक स्वाभिमानी भक्त भी थे। लोगों ने जो उन पर कटाक्ष किए, उनकी भी उन्होंने परवाह नहीं की। इसलिए वे निंदकों को स्पष्ट करते हैं कि उनके बारे में जिसे जो कुछ कहना है; वह कहे। उन्हें किसी से कोई लेना देना नहीं है।

प्रश्न 5.1 व्याख्या करें –

मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।

जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू।।

उत्तर:- लक्ष्मण के मूर्छित होने पर राम विलाप करते हुए बोले – हे भाई! तुम मुझे कभी दुःखी नहीं देख सकते थे। तुम्हारा स्वभाव सदा से ही कोमल था। मेरे हित के लिए तुमने माता-पिता को भी छोड़ दिया और वन में जाड़ा, गरमी और हवा सब सहन किया। वह प्रेम अब कहाँ है? मेरे व्याकुलतापूर्वक वचन सुनकर उठते क्यों नहीं? यदि मुझे ज्ञात होता कि वन में मैं अपने भाई से बिछड़ जाऊँगा मैं पिता का वचन (जिसका मानना मेरे लिए परम कर्तव्य था) उसे भी न मानता और न तुम्हें साथ लेकर आता।

प्रश्न 5.2 व्याख्या करें –

जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही।।

उत्तर:- मूर्च्छित लक्ष्मण को गोद में लेकर विलाप कर रहे हैं कि तुम्हारे बिना मेरी दशा ऐसी हो गई है जैसे पंख बिना पक्षी, मणि बिना सर्प और सूँड बिना श्रेष्ठ हाथी की स्थिति अत्यंत दयनीय हो जाती है। यदि तुम्हारे बिना कहीं जड़ दैव मुझे जीवित रखे तो मेरा जीवन भी ऐसा ही होगा।

प्रश्न 5.3 व्याख्या करें –

माँगि कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबको दोऊ।।

उत्तर:- तुलसीदास को समाज की उलाहना से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। वे किसी पर आश्रित नहीं है। वे श्री राम का नाम लेकर दिन बिताते हैं और मस्जिद में सो जाते हैं।

प्रश्न 5.4 व्याख्या करें –

ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।।

उत्तर:- तुलसीदास ने समकालीन समाज का यथार्थपरक चित्रण किया है। उन्होंने देखा कि उनके समय में बेरोजगारी की समस्या से मजदूर, किसान, नौकर, भिखारी आदि सभी परेशान थे। अपनी भूख मिटाने के लिए सभी अनैतिक कार्य कर रहे हैं। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए लोग अपनी संतानों तक को बेच रहे थे। पेट भरने के लिए मनुष्य कोई भी पाप कर सकता है।

प्रश्न 6. भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में दिखाया है। क्या आप इससे सहमत है? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि लक्ष्मण की मूर्च्छा पर शोकग्रस्त होकर विलाप करने वाले राम भगवान नहीं हो सकते। कवि का यह कहना सही प्रतीत नहीं होता कि वह भगवान के रूप में नरलीला कर रहे हैं। जब कोई मनुष्य अत्यधिक शोकग्रस्त होता है तो वह असहाय होकर दुख के कारण प्रलाप करने लगता है। राम के द्वारा यह कहना कि यदि उन्हें पता होता कि वन में भाई से उनका वियोग हो जाएगा तो वे अपने पिता की आज्ञा का पालन न करते। यह बात तो सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में प्रकट हुई है। इसे हम नरलीला नहीं कह सकते।

प्रश्न 7. शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?

वैद्य सुषेण ने कहा था कि अगर प्रातः होने से पूर्व संजीवनी बूटी मिल गई तो लक्ष्मण बच सकता है। अन्यथा उसकी मृत्यु हो जाएगी। अर्द्धरात्रि बीत चुकी थी और हनुमान अभी तक लौट कर नहीं आया था। संपूर्ण भालू और वानर सेना घबराई हुई थी। राम भी लक्ष्मण की मृत्यु के डर के कारण घबरा गए थे। और वे भावुक होकर विलाप करने लगे, परंतु इस बीच हनुमान संजीवनी बूटी लेकर पहुँच गए। हनुमान को देखकर राम के विलाप म&##2375;ं आशा और उत्साह का संचार हो गया क्योंकि अब सभी की है आशा बंध गई थी कि लक्ष्मण होश में आ जाएँगे और फिर रावण पर विजय प्राप्त की जा सकेगी।

प्रश्न 8.

“जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारी हेतु प्रिय भाई गँवाई।।

बरु अपजस सहतेउँ जग माही। नारी हानि बिसेष छति नाहीं।।

भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?

इस प्रकार के विलाप को सुनकर विलाप करने वाले की पत्नी को बुरा ही लगेगा। परंतु यह भी सच्चाई है कि इस प्रकार के प्रलाप का कोई अर्थ नहीं होता। यह शोक से व्यथित एक व्यक्ति की उक्ति है। इसे यथार्थ नहीं समझना चाहिए। इस उक्ति से यह भी अर्थ प्रकट हो सकता है कि प्रायः लोग पत्नी को भाई से अधिक महत्त्व देते हैं। और कभी-कभी ऐसे उदाहरण देखे जा सकते हैं जहाँ लक्ष्मण जैसे भाई अपनी भाभी के लिए अपनी जान देने को तैयार रहते हैं। परंतु आज ऐसा भी देखने में आया है कि पुरुष अपनी पत्नी के लिए भाई को छोड़ देता है। अतः नारी के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण सर्वत्र एक जैसा नहीं है।

कवितावली

(अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

1. लक्ष्मण-मूछ और राम का विलाप काव्याश के आधार पर आव्रशक में बेचैन राय की दशा को अपने शब्दों में प्रस्तुत कॉजिए।

अथवा

लक्ष्मण-मूच्छा और राम का विलाप कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

लक्ष्मण को मूर्चिछत देखकर राम भाव विहवल हो उठते हैं। वे आम व्यक्ति की तरह विलाप करने लगते हैं। वे लक्ष्मण को अपने साथ लाने के निर्णय पर भी पछताते हैं। वे लक्ष्मण के गुणों को याद करके रोते हैं। वे कहते हैं कि पुत्र, नारी, धन, परिवार आदि तो संसार में बार-बार मिल जाते हैं, किंतु लक्ष्मण जैसा भाई दुबारा नहीं मिल सकता। लक्ष्मण के बिना वे स्वयं को पंख कटे पक्षी के समान असहाय, मणिरहित साँप के समान तेजरहित तथा सँडरहित हाथी के समान असक्षम मानते हैं। वे इस चिंता में थे कि अयोध्या में सुमित्रा माँ को क्या जवाब देंगे तथा लोगों का उपहास कैसे सुनेंगे कि पत्नी के लिए भाई को खो दिया।

2. बेकारी की समस्या तुलसी के जमाने में भी थी, उस बेकारी का वर्णन तुलसी के कवित्त के आधार पर कीजिए।

अथवा

तुलसी ने अपने युग की जिस दुर्दशा का चित्रण किया है, उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर –

तुलसीदास के युग में जनसामान्य के पास आजीविका के साधन नहीं थे। किसान की खेती चौपट रहती थी। भिखारी को भीख नहीं मिलती थी। दान कार्य भी बंद ही था। व्यापारी का व्यापार ठप था। नौकरी भी लोगों को नहीं मिलती थी। चारों तरफ बेरोजगारी थी। लोगों को समझ में नहीं आता था कि वे कहाँ जाएँ क्या करें?

3. तुलसी के समय के समाज के बारे में बताइए।

उत्तर –

तुलसीदास के समय का समाज मध्ययुगीन विचारधारा का था। उस समय बेरोजगारी थी तथा आम व्यक्ति की हालत दयनीय थी। समाज में कोई नियम-कानून नहीं था। व्यक्ति अपनी भूख शांत करने के लिए गलत कार्य भी करते थे। धार्मिक कट्टरता व्याप्त थी। जाति व संप्रदाय के बंधन कठोर थे। नारी की दशा हीन थी। उसकी हानि को विशेष नहीं माना जाता था।

4. तुलसी युग की आर्थिक स्थिति का अपने शब्दों में वर्णन कजिए।

उत्तर –

तुलसी के समय आर्थिक दशा खराब थी। किसान के पास खेती न थी, व्यापारी के पास व्यापार नहीं था। यहाँ तक कि भिखारी को भीख भी। नहीं मिलती थी। लोग यही सोचते रहते थे कि क्या करें, कहाँ जाएँ? वे धन-प्राप्ति के उपायों के बारे में सोचते थे। वे अपनी संतानों तक को बेच देते थे। भुखमरी का साम्राज्य फैला हुआ था।

लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप

(अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

5. लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर राम क्या सोचने लगे?

उत्तर –

लक्ष्मण शक्तिबाण लगने से मूर्चित हो गए। यह देखकर राम भावुक हो गए तथा सोचने लगे कि पत्नी के बाद अब भाई को खोने जा रहे हैं। केवल एक स्त्री के कारण मेरा भाई आज मृत्यु की गोद में जा रहा है। यदि स्त्री खो जाए तो कोई बड़ी हानि नहीं होगी, परंतु भाई के खो जाने का कलंक जीवनभर मेरे माथे पर रहेगा। वे सामाजिक अपयश से घबरा रहे थे।

6. क्या तुलसी युग की समस्याएँ वतमान में समाज में भी विद्यमान हैं? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर –

तुलसी ने लगभग 500 वर्ष पहले जो कुछ कहा था, वह आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने अपने समय की मूल्यहीनता, नारी की स्थिति, आर्थिक दुरवस्था का चित्रण किया है। इनमें अधिकतर समस्याएँ आज भी विद्यमान हैं। आज भी लोग जीवन निर्वाह के लिए गलत-सहीं कार्य करते हैं। नारी के प्रति नकारात्मक सोच आज भी विद्यमान है। अभी भी जाति व धर्म के नाम पर भेदभाव होता है। इसके विपरीत, कृषि, वाणिज्य, रोजगार की स्थिति आदि में बहुत बदलाव आया है। इसके बाद भी तुलसी युग की अनेक समस्याएँ आज भी हमारे समाज में विद्यमान हैं।

7. कुंभकरण ने रावण को किस सच्चाई का आइना दिखाया?

उत्तर –

कुंभकरण रावण का भाई था। वह लंबे समय तक सोता रहता था। उसका शरीर विशाल था। देखने में ऐसा लगता था मानो काल आकर बैठ गया हो। वह मुँहफट तथा स्पष्ट वक्ता था। वह रावण से पूछता है कि तुम्हारे मुँह क्यों सूखे हुए हैं? रावण की बात सुनने पर वह रावण को फटकार लगाता है तथा उसे कहता है कि अब तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। इस प्रकार उसने रावण को उसके विनाश संबंधी सच्चाई का आईना दिखाया।

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Chapter 7 बादल राग | Ncert solution for class 12th hindi Aroh

बादल राग

(अभ्यास-प्रश्न)

प्रश्न 1. ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्ति में दुख की छाया किसे कहा गया और क्यों?

‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्ति में दुख की छाया क्रांति अथवा विनाश का प्रतीक है। सुविधा भोगी लोगों के पास सुख के अनेक साधन होते हैं। इसलिए वे क्रांति से हमेशा डरे रहते हैं। क्रांति से पूँजीपतियों को हानि होगी, गरीबों को नहीं। इसलिए कवि ने अमीर लोगों के सुख को अस्थिर कहा है। क्रांति की संभावना ही दुख की वह छाया है जिससे वे हमेशा डरे रहते हैं। यही कारण है कि दुख की छाया का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 2. अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर- पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है?

‘अशनि पात से शापित उन्नत शत शत वीर’ पंक्ति में क्रांति विरोधी अभिमानी पूँजीपतियों की ओर संकेत किया गया है जो क्रांति को दबाने का भरसक प्रयास करते हैं। परंतु क्रांति के वज्र के प्रहार से घायल होकर वे क्षत विक्षत हो जाते हैं। जिस प्रकार बादलों के द्वारा किए गए अशनि पात से पर्वतों की ऊँची-ऊँची चोटियाँ क्षत विक्षत हो जाती है उसी प्रकार क्रांति की मारकाट से बड़े बड़े पूँजीपति तथा वीर लोग की धरती चाटने लगते हैं।

प्रश्न 3. विप्लव रव से छोटे ही शोभा पाते -पंक्ति में विप्लव-रव से क्या तात्पर्य है? छोटे ही शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है?

‘विप्लव-रव’ से तात्पर्य है- क्रांति की गर्जना। क्रांति से समाज के सामान्य जन को ही लाभ प्राप्त होता है। उससे सर्वहारा वर्ग का विकास होता है क्योंकि क्रांति शोषकों और पूँजीपतियों के विरुद्ध होती है। संसार में जहाँ कहीं क्रांति हुई है, वहाँ पूँजीपतियों का विनाश हुआ है और गरीब तथा अभावग्रस्त लोगों की आर्थिक हालत सुधरी है। इसलिए कवि ने इस भाव के लिए ‘छोटे ही है शोभा पाते’ आदि शब्दों का प्रयोग किया है।

प्रश्न 4. बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है?

बादलों के आगमन से प्रकृति में असंख्य परिवर्तन होते हैं। पहले तो तेज हवा चलने लगती है और बादल गरजने लगते हैं। उसके बाद मूसलाधार बरसात होती है। बिजली के गिरने से ऊँचे ऊँचे पर्वतों की चोटियों क्षत विक्षत हो जाती है परंतु छोटे-छोटे पौधे वर्षा का पानी पाकर प्रसन्नता से खिल उठते हैं।

प्रश्न 5.1 व्याख्या कीजिए

तिरती है समीर-सागर पर

अस्थिर सुख पर दुख की छाया-

जग के दग्ध हृदय पर

निर्दय विप्लव की प्लावित माया-

उत्तर:- कवि बादल को संबोधित करते हुए कहता है कि हे क्रांति दूत रूपी बादल। तुम आकाश में ऐसे मंडराते रहते हो जैसे पवन रूपी सागर पर नौका तैर रही हो। छाया ‘उसी प्रकार पूंजीपतियों के वैभव पर क्रांति की छाया मंडरा रही है इसीलिए कहा गया है ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’।

कवि ने बादलों को विप्लवकारी योद्धा, उसके विशाल रूप को रण-नौका तथा गर्जन-तर्जन को रणभेरी के रूप में दिखाया है। कवि कहते है कि हे बादल! तेरी भारी-भरकम गर्जना से धरती के गर्भ में सोए हुए अंकुर सजग हो जाते हैं अर्थात् कमजोर व् निष्क्रिय व्यक्ति भी संघर्ष के लिए तैयार हो जाते हैं।

प्रश्न 5.2 व्याख्या कीजिए

अट्टालिका नहीं है रे

आतंक-भवन

सदा पंक पर ही होता

जल-विप्लव-प्लावन

उत्तर:- कवि कहते है कि पूँजीपतियों के ऊँचे-ऊँचे भवन मात्र भवन नहीं हैं अपितु ये गरीबों को आतंकित करने वाले भवन हैं। इसमें रहनेवाले लोग महान नहीं हैं। ये तो भयग्रस्त हैं। जल की विनाशलीला तो सदा पंक को ही डुबोती है, कीचड़ को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उसी प्रकार क्रांति की ज्वाला में धनी लोग ही जलते है, गरीबों को कुछ खोने का डर ही नहीं।

बादल राग

(अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

1. बादल राग’ कविता में कवि ने बादलों के बहाने क्रांत का आहवान किया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।

उत्तर –

‘विप्लव-रव’ से तात्पर्य है-क्रांति का स्वर। क्रांति का सर्वाधिक लाभ शोषित वर्ग को ही मिलता है क्योंकि उसी के अधिकार छीने गए होते हैं। क्रांति शोषक वर्ग के विशेषाधिकार खत्म होते हैं। आम व्यक्ति को जीने के अधिकार मिलते हैं। उनकी दरिद्रता दूर होती है। अतः क्रांति की गर्जना से शोषित वर्ग प्रसन्न होता है।

2. क्रांति की गर्जना का शोषक वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ता है? उनका मुख ढंकना किस मानसिकता का द्योतक है?”बादल राग कविता के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तर –

शोषक वर्ग ने आर्थिक साधनों पर एकाधिकार जमा लिया है, परंतु क्रांति की गर्जना सुनकर वह अपनी सत्ता को खत्म होते देखता है। वह बुरी तरह भयभीत हो जाता है। उसकी शांति समाप्त हो जाती है। शोषक वर्ग का मुख ढाँकना उसकी कमजोर स्थिति को दर्शाता है। क्रांति के परिणामों से शोषक वर्ग भयभीत है।

3, “बादल राग ‘जीवन-निर्माण के नए राग का सूचक है। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

‘बादल राग’ कविता में कवि ने लघु-मानव की खुशहाली का राग गाया है। वह आम व्यक्ति के लिए बादल का आहवान क्रांति के रूप में । करता है। किसानों तथा मजदूरों की आकांक्षाएँ बादल को नवनिर्माण के राग के रूप में पुकार रही हैं। क्रांति हमेशा वंचितों का प्रतिनिधित्व करती है। बादलों के अंग-अंग में बिजलियाँ सोई हैं, वज्रपात से शरीर आहत होने पर भी वे हिम्मत नहीं हारते। गरमी से हर तरफ सब कुछ रूखा सूखा और मुरझाया सा है। धरती के भीतर सोए अंकुर नवजीवन की आशा में सिर ऊँचा करके बादल की ओर देख रहे हैं। क्रांति जो हरियाली लाएगी, उससे सबसे अधिक उत्फुल्ल नए पौधे, छोटे बच्चे ही होंगे।

4, बादल राग ‘कविता में ऐ विप्लव के वीर/किसे कहा गया हैं और क्यों?

उत्तर –

‘बादल राग’ कविता में ‘ऐ विप्लव के वीर!बादल को कहा गया है। बादल घनघोर वर्षा करता है तथा बिजलियाँ गिराता है। इससे सारा जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। बादल क्रांति का प्रतीक है। क्रांति आने से बुराई रूपी कीचड़ समाप्त हो जाता है तथा आम व्यक्ति को जीने योग्य स्थिति मिलती है।

5. बादल राग’ शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।

उत्तर –

‘बादल राग’ क्रांति की आवाज का परिचायक है। यह कविता जनक्रांति की प्रेरणा देती है। कविता में बादलों के आने से नए पौधे हर्षित होते हैं, उसी प्रकार क्रांति होने से आम आदमी को विकास के नए अवसर मिलते हैं। कवि बादलों का बारिश करने या क्रांति करने के लिए करता है। यह शीर्षक उद्देश्य के अनुरूप है। अतः यह शीर्षक सर्वथा उचित है।

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Chapter 6 उषा | Ncert solution for class 12th hindi Aroh

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 6 उषा

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 6 उषा

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

कविता के साथ

प्रश्न 1.
कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द चित्र है? (CBSE-2009, 2011, 2013, 2014)
अथवा

शमशेर की कविता गाँव की सुबह का जीवंत चित्रण है।’-पुष्टि कीजिए। (CBSE-2016)
उत्तर:

कवि ने गाँव की सुबह का सुंदर चित्रण करने के लिए गतिशील बिंब-योजना की है। भोर के समय आकाश नीले शंख की तरह पवित्र लगता है। उसे राख से लिपे चौके के समान बताया गया है जो सुबह की नमी के कारण गीला लगता है। फिर वह लाल केसर से धोए हुए सिल-सा लगता है। कवि दूसरी उपमा स्लेट पर लाल खड़िया मलने से देता है। ये सारे उपमान ग्रामीण परिवेश से संबंधित हैं। आकाश के नीलेपन में जब सूर्य प्रकट होता है तो ऐसा लगता है जैसे नीले जल में किसी युवती का गोरा शरीर झिलमिला रहा है। सूर्य के उदय होते ही उषा का जादू समाप्त हो जाता है। ये सभी दृश्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इनमें गतिशीलता है।

प्रश्न 2.
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
नई कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।
उत्तर:

नई कविता के लगभग सभी कवियों ने सदा कुछ विशेष कहना चाहा है अथवा कविता की विषयवस्तु को नए ढंग से प्रस्तुत करना चाहा है। उन्होंने इसके लिए कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच स्थान छोड़ दिया है। जो कुछ उन्होंने इसके माध्यम से कहा है, कविता उससे नए अर्थ देती है। उपरोक्त पंक्तियों में यद्यपि सुबह के आकाश को चौका जैसा माना है और यदि इसके कोष्ठक में दी गई पंक्ति को देखा जाए तो तब चौका जो अभी-अभी राख से लीपा है, उसका रंग मटमैला है। इसी तरह सुबह का आकाश भी दिखाई देता है।

अपनी रचना

अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।
उत्तर:
सूर्योदय                                                                                     सूर्यास्त
सुबह का आकाश                                                                     गोधूलि की वेला में

बहुत कुछ समुद्री जल जैसा                                                      सब कुछ धुंधला-सा हो जाता है।

सुबह आकाश कुछ                                                                  कुछ ऐसा जैसे कि
मानो नए बोर्ड पर                                                                     तवे का उत्तरार्ध
लिखे नए शब्दों जैसा                                                                बहुत कुछ ऐसा
और…                                                                                     जैसा कि काले अच्छर
धीरे-धीरे यह आवरण हट रहा है।                                             धीरे-धीरे सारा परिवेश

तवे की तरह सुर्ख लाल                                                             गहन अंधेरे में जा रहा है।
सूर्य उदय होने को है।                                                              अब सूर्यास्त होगा।

आपसदारी

सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ और अज्ञेय की ‘बावरा अहेरी’ की पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही हैं। ‘उषा’ कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज्यादा अच्छी लगी और क्यों?

शब्द चयन

उपमानपरिवेश
बीती विभावरी जाग री!
अंबर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी।
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिए,
अलकों में मलयज बंद किए
तू अब तक सोई है आली}
आँखों में भरे विहाग री
– जयशंकर प्रसाद
भोर का बावरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ पर जब खींचता है जाल को
बाँध लेता है सभी को साथः
छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मॅझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखी
डैनों वाले डील वाले डौल के बेडौल
उड़ने जहाज़,
कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिखर से ले
तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी
बेपनाह काया कोः
गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी
पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि
रूप-रेखा को
और दूर कचरा जलानेवाली कल की उदंड चिमनियों को, जो
धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी
को हरा देंगी।
– सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

उत्तर:
सभी कविताओं को कवियों ने नए उपमान के द्वारा प्रस्तुत किया है। यदि प्रसाद जी ने पनघट, नागरी, खग, लतिका, नवल रस विहाग आदि उपमानों के माध्यम से प्रात:काल का वर्णन किया है तो अज्ञेय ने भोर को बावरा अहेरी, मंदिर, नाटी मोटी और चपटी गोल धूसे, गोधूली आदि उपमानों के द्वारा प्रस्तुत किया है। शमशेर बहादुर सिंह ने प्रात:काल के लिए नीले शंख, काला सिल, चौका, स्लेट, युवती आदि उपमानों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। उपमानों की तरह तीनों कवियों की शब्द योजना बिलकुल सटीक और सार्थक है।

तीनों ही कवियों ने साधारण बोलचाल के शब्दों का सुंदर एवं स्वाभाविक प्रयोग किया है। तीनों कवियों ने सूर्योदय का मनोहारी चित्रण किया है। हमें शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित ‘उषा’ शीर्षक की कविता सबसे अच्छी लगती है। कारण यही है कि ‘बावरी अहेरी’ और ‘बीती विभावरी जाग री’ शीर्षक कविताएँ उपमानों, शब्द योजना की दृष्टि से ‘उषा’ कविता की अपेक्षा कठिन प्रतीत होती है। ‘उषा’ कविता आम पाठक की समझ में शीघ्र आ जाती है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि को सुबह का आकाश मटमैला क्यों दिखाई देता है?
उत्तर:

कवि ने सुबह के आकाश के लिए राख से लिपे हुए चौके का उपमान दिया है। जिस प्रकार गीला चौका मटमैला और साफ़ होता है।

प्रश्न 2.
कवि ने किस जादू के टूटने का वर्णन किया है?
उत्तर:

कवि ने नए-नए उपमानों के द्वारा सूर्योदय का सुंदर वर्णन किया है। ये उपमान सूर्य के उदय होने में सहायक हैं। कवि ने इनका प्रयोग प्रगतिशीलता के लिए किया है। सूर्योदय होते ही यह जादू टूट जाता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित काव्यांश का भाव-सौंदर्य बताइए –
बहुत काली सिर जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो।
उत्तर:

कवि कहता है कि जिस प्रकार ज्यादा काली सिर अर्थात् पत्थर पर थोड़ा-सा केसर डाल देने से वह धुल जाती है अर्थात् उसका कालापन खत्म हो जाता है, ठीक उसी प्रकार काली सिर को किरण रूपी केसर धो देता है अर्थात् सूर्योदय होते ही हर वस्तु चमकने लगती है।

प्रश्न 4.
‘उषा’ कविता के आधार पर सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण कीजिए।
उत्तर:

कवि को सुबह का आकाश ऐसा लगता है कि मानो चौका राख से लीपा गया हो तथा वह अभी गीला हो। जिस तरह गीला चौका स्वच्छ होता है, उसी प्रकार सुबह का आकाश भी स्वच्छ होता है, उसमें प्रदूषण नहीं होता।

प्रश्न 5.
‘उषा’ कविता में भोर के नभ की तुलना किससे की गई है और क्यों ?
उत्तर:

‘उषा’ कविता में प्रात:कालीन नभ की तुलना राख से लीपे गए गीले चौके से की है। इस समय आकाश नम तथ धुंधला होता है। इसका रंग राख से लिपे चूल्हे जैसा मटमैला होता है। जिस प्रकार चूल्हा चौका सूखकर साफ़ हो जाता है, उसी प्रकार कुछ देर बाद आकाश भी स्वच्छ एवं निर्मल हो जाता है।

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Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है | Ncert solution for class 12th hindi Aroh

Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है Ncert solution for class 12th hindi Aroh

(अभ्यास-प्रश्न)

प्रश्न 1. टिप्पणी कीजिए गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल

गरबीली गरीबी

कवि को अपने गरीब होने का कोई दुख नहीं है बल्कि वह अपनी गरीबी पर भी गर्व करता है। उसे गरीबी के कारण न तो हीनता की अनुभूति होती और न ही कोई ग्लानि। कवि स्वाभिमान के साथ जी रहा है।

भीतर की सरिता

इसका अभिप्राय यह है कि कवि के हृदय में असंख्य कोमल भावनाएँ हैं। नदी के पानी के समान कोमल भावनाएँ उनके हृदय में प्रवाहित होती रहती है।

बहलाती सहलाती आत्मीयता

कवि के हृदय में प्रिया की आत्मीयता है। इस आत्मीयता के दो विशेषण है: बहलाती और सहलाती। यह आत्मीयता कवि को न केवल बहलाने का काम करती है बल्कि उसके दुख दर्द को और पीड़ा को सहलाती भी है और उसकी सहनशक्ति को बढ़ाती है।

ममता के बादल

वर्षा ऋतु में बादल बरसकर हमें आनंदित करते हैं। उसी प्रकार प्रेम की कोमल भावनाएँ कवि को आनंदानुभूति प्रदान करती है।

प्रश्न 2. इस कविता में और भी टिप्पणी योग्य पद-प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक का प्रयोग अपनी ओर से लेकर उस पर टिप्पणी करें।

दक्षिणी ध्रुवी अंधकार अमावस्या

जिस प्रकार दक्षिणी ध्रुव में अमावस्या जैसा घना काला अंधकार छाया रहता है, उसी प्रकार कवि अपनी प्रिया के वियोग रूपी घोर अंधकार में डूब जाना चाहता है। कवि की इच्छा है कि वियोग की गहरी अमावस्या, उसके चेहरे, शरीर और हृदय में व्याप्त हो जाए।

रमणीय उजेला

उजेला हमेशा प्रिय होता है। कवि अपनी प्रिया के स्नेह उजाले से आच्छादित है, परंतु कवि के लिए यह मनोरम उजाला असहनीय हो गया है। कवि उससे मुक्त होना चाहता है।

प्रश्न 3. व्याख्या कीजिए जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता हैजितना भी उँडेलता हूँ, भर भर फिर आता है दिन में क्या झरना है?मीठे पानी का सोता हैभीतर वह, ऊपर तुम मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात भर मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है !उपयुक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए बताइए कि यहाँ कवि चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार-अमावस्या में क्यों नहाना चाहता है?

कवि की आत्मा में उसकी प्रिया का प्रकाश फैला रहता है। कवि इस प्रकाश की तुलना आकाश में व्याप्त चंद्रमा के साथ करता है परंतु अब कवि प्रिया के प्रकाश को त्यागकर अमावस्या के अंधकार में डूबना चाहता है। कवि प्रिया के संयोग को त्यागकर वियोग को झेलना चाहता है ताकि वह वियोगावस्था को झेलता हुआ स्वतंत्र जी सके और उसे प्रिया पर निर्भर न रहना पड़े।

प्रश्न 4. तुम्हें भूल जाने की दक्षिण पूर्वी अंधकार अमावस्याशरीर पर चेहरे पर अंतर में पा लूँ मैं झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादितरहने का रमणीय यह उजेला अबसहा नहीं जाता है।

क) यहाँ अंधकार अमावस्या के लिए क्या विशेषण प्रयोग किया गया है और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है?

कवि ने अंधकार अमावस्या के लिए ‘दक्षिणी ध्रुवी’ विशेषण का प्रयोग किया है। इस विशेषण के प्रयोग से विशेष्य अंधकार की सघनता का पता चलता है। अर्थात अंधकार घना और काला है। कवि अपनी प्रिया को भूलकर किसी घने काले अंधकार में लीन हो जाना चाहता है।

ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा है?

कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में अपनी प्रिया की वियोगजन्य वेदना एवं निराशा की स्थिति को अमावस्या की संज्ञा दी है। अतः इस स्थिति के लिए अमावस्या शब्द का प्रयोग उचित एवं सटीक है।

ग) इस स्थिति से ठीक विपरीत आने वाली कौन सी स्थिति कविता में व्यक्त हुई है? इस वैपरीत्य को व्यक्त करने वाले शब्द का व्याख्यापूर्वक उल्लेख करें।

वर्तमान स्थिति है दक्षिणी-ध्रुवी अंधकार अमावस्या। यह स्थिति कवि की वियोगावस्था से उत्पन्न पीड़ा की परिचायक है। इसकी विपरीत स्थिति है ‘तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित रहने का रमणीय उजेला अब’ जोकि कवि के संयोग प्रेम को इंगित करता है। एक और कवि ने वियोगजन्य निराशा को गहरी अमावस्या के माध्यम से व्यक्त किया है। प्रथम स्थिति निराशा को व्यक्त करती है। द्वितीय स्थिति आशा को। इसलिए कवि ने रमणीय उजेला की बात की है।

घ) कवि अपने संबोधन को पूरी तरह भूल जाना चाहता है इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए क्या युक्ति अपनाई है? रेखांकित अंशों को ध्यान में रखकर उत्तर दें।

वियोग की स्थिति में कवि अपनी प्रिया को भूलना चाहता है। इस स्थिति की तुलना कवि ने दक्षिणी-ध्रुवी अंधकार अमावस्या से की है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि कवि अपनी चाँद रूपी प्रिया से सर्वथा अलग रहकर एकांकी जीवन व्यतीत करना चाहता है। वह अब वियोग से उत्पन्न पीड़ा को झेलना चाहता है। इस स्थिति के लिए कवि ने शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं’ आदि शब्दों का प्रयोग किया है।

प्रश्न 5. बहलाती सहलाती आत्मीयता बर्दाश्त नहीं होती- और कविता के शीर्षक ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं? चर्चा कीजिए।

‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में कवि ने दो विपरीत स्थितियों की चर्चा की है। कवि अपनी प्रिया की प्रत्येक वस्तु अथवा दृष्टिकोण को प्रसन्नता-पूर्वक स्वीकार करता है। प्रथम स्थिति वह है जब कवि प्रेम के संयोग पक्ष को भोग रहा है। लेकिन अब कवि के लिए यह स्थिति असहनीय बन गई है। कवि प्रिया की आत्मीयता को त्यागना चाहता है और उसे दूर रहकर वियोग के अंधकार में डूब जाना चाहता है। अतः बहलाती सहलाती आत्मीयता से कवि दूर जाना चाहता है। यहाँ स्वीकारा और अस्वीकार का भाव होने के कारण अंतर्विरोध है।

सहर्ष स्वीकारा है

(अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

1. कवि के जीवन में ऐसा क्या-क्या है जिसे उसने सहर्ष स्वीकारा है?

उत्तर –

कवि ने जीवन के सुख-दुख की अनुभूतियों को सहर्ष स्वीकारा है। उसके पास गर्वीली गरीबी है, जीवन के गहरे अनुभव हैं, विचारों का वैभव, भावनाओं की बहती सरिता है, व्यक्तित्व की दृढ़ता है तथा प्रिय का प्रेम है। ये सब उसकी प्रियतमा को पसंद हैं, इसलिए उसे ये सब सहर्ष स्वीकार हैं।

2. मुक्तिबोध की कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि ने किसे सहर्ष स्वीकार था। आगे चलकर वह उसी को क्यों भूलना। चाहता था?

उत्तर –

कवि ने अपने जीवन में सुखद-दुखद, कटु, मधुर, व्यक्तित्व की दृढ़ता व मीठे-तीखे अनुभव आदि को सहर्ष स्वीकारा है क्योंकि वह इन सबकोबअपनी प्रियतमा के साथ जुड़ा पाता है। कवि का जीवन प्रियतमा के स्नेह से आच्छादित है। वह अतिशय भावुकता व संवेदनशीलता से तंग । आ चुका है। इससे छुटकारा पाने के लिए वह विस्मृति के अंधकार में खो जाना चाहता है।

3. ‘सहर्ष स्वीकारा हैं’ के कवि ने जिस चाँदनी को सहर्ष स्वीकारा था, उससे मुक्ति पाने के लिए वह अंग-अंग में अमावस की चाह क्यों कर रहा है?

उत्तर –

कवि अपनी प्रियतमा के अतिशय स्नेह, भावुकता के कारण परेशान हो गया। अब वह अकेले जीना चाहता है ताकि मुसीबत आने पर उसका । सामना कर सके। वह आत्मनिर्भर बनना चाहता है। यह तभी हो सकता है, जब वह प्रियतमा के स्नेह से मुक्ति पा सके। अतः वह अपने अंग- अंग में अमावस की चाह कर रहा है ताकि प्रिया के स्नेह को भूल सके।

4. ‘सहर्ष स्वीकारा है कविता का प्रतिपाद्य बतायिए।

उत्तर –

सहर्ष स्वीकारा है कविता गजानन माधव मुक्तिबोध के काव्य-संग्रह ‘भूरी-भूरी खाक-धूल’ से ली गई है। इसमें कवि ने अपने जीवन के समस्त अनुभवों, सुख दुख, संघर्ष अवसाद, उठा-पटक आदि स्थितियों को सहर्ष स्वीकारने की बात कहता है, क्योंकि इन सभी के साथ वह अपनी प्रियतमा का जुड़ाव अनुभव करता है। उसका जो कुछ है वह सब उसकी प्रियतमा को अच्छा लगता है। कवि अपनी स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गंभीर अनुभव, व्यक्तित्व की दृढ़ता, मन में उठती भावनाएँ जीवन में मिली उपलब्धियाँ सभी के लिए अपनी प्रियतमा को प्रेरक मानता है। कवि को लगता है कि वह अपनी प्रियतमा के प्रेम के प्रभावस्वरूप कमजोर पड़ता जा रहा है। उसे अपना भविष्य अंधकारमय लगता है। वह अंधकारमय गुफा में एकाकी जीवन जीना चाहता है, इसके लिए वह अपनी प्रियतमा को पूरी तरह से भूल जाना चाहता है।

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