Chapter 5 चित्रकूट में भरत Summary Notes for Class 6 Hindi Bal Ramkatha

अयोध्या की घटनाओं से वंचित, भरत अपने ननिहाल केकय राज्य में थे। उन्होंने एक विचित्र स्वप्न देखा जो अपने मित्रों को सुना रहे थे। तभी अयोध्या से घुड़सवार वहाँ पहुँचा । भरत को सौ रथों और सेना के साथ अयोध्या भेजा गया। आठ दिन बाद वे अयोध्या पहुँचे। माता कैकई ने भरत को राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार दिया । भरत शोक में थे, वे राम से मिलने का आग्रह करने लगे। कैकई ने उन्हें वरदानों और राम के वनवास के बारे में बताया। यह सुनकर भरत क्रोध से चीख पड़े और बोले कि पिता और भाई को खो कर उन्हें ये राज्य नहीं चाहिए। वे राम को लेने जाने का कहते हुए मूर्छित हो गए। होश आने पर कौशल्या के पास जा कर रोए और क्षमा माँगी। कौशल्या ने उन्हें माफ़ कर गले लगा लिया।

अगले दिन भरत सभी के साथ राम को लेने चित्रकूट गए। राम, सीता और लक्ष्मण ने एक पहाड़ी पर पर्णकुटी बनाई थी। सेना की कोलाहल से सारे जंगल में खलबली मच गयी। लक्ष्मण पहरा दे रहे थे, आवाज़ सुन वे पेड़ पर चढ़कर देखने लगे। उन्हें लगा सेना उन्हें मारने आ रही है, राम ने उन्हें समझाया कि भरत हमला नहीं करेंगे। सेना को नीचे रोक भरत और शत्रुघ्न नंगे पाव ऊपर आए और शिला पर बैठे राम के चरणों में गिर गए। उन्होंने बड़े साहस से पिता की मृत्यु के समाचार दिए। राम–लक्ष्मण और सीता पहाड़ी से उतरकर नगरवासियों और गुरुजनों से मिले। अगले दिन भरत ने राम से राजमहल चलने का आग्रह किया परंतु राम ने कहा पिताजी की आज्ञा का पालन अनिवार्य है। निराश होकर भरत ने राम की खड़ाऊ मांगी और उसे माथे से लगा कर कहा 14 वर्ष तक इन पादुकाओं का शासन रहेगा। अयोध्या पहुंचकर भरत ने उनकी पूजा की। भरत अयोध्या नहीं रुके, तपस्वी वस्त्र धारण कर नंदीग्राम चले गए और राम के आने का इंतजार करने लगे।

Read More

Chapter 5 चित्रकूट में भरत Notes for Class 6 Hindi Bal Ramkatha

पाठ का सार

कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसी को नहीं थी। कैकेयी अपनी जिद पर अड़ी थी। सारे नगर में राम के राज्याभिषेक का उत्साह था। गुरु वशिष्ठ, महामंत्री सुमंत्र सभी शुभ घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे। महाराज के न आने पर महर्षि ने सुमंत्र को राजभवन भेजा। मंत्री सुमंत्र ने देखा महाराज पलंग पर बीमार अवस्था में पड़े हैं। दशरथ ने टूटते स्वर में राम से मिलने की इच्छा जाहिर की।

राम के साथ लक्ष्मण भी वहाँ आ गए। राम ने पिता और माता कैकेयी को प्रणाम किया। राजा दशरथ उन्हें देखकर राम कहकर मूर्छित हो गए। होश आने पर भी वे कुछ नहीं बोले। राम ने पिता से पूछा-“पिताजी मुझसे कोई अपराध हुआ है? कैकेयी बोली-“महाराज दशरथ ने मुझे दो वरदान दिए थे। मैंने कल रात्रि दोनों वर माँगे। जिससे यह पीछे हट रहे हैं। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का ही हो और तुम चौदह वर्ष के लिए वन में रहो| राम पिता के वचन को पूरा करने के लिए आज ही वन जाने के लिए तैयार हो गए। कैकेयी के महल से निकलकर राम सीधे अपनी माता कौशल्या के पास गए। उन्होंने माता कौशल्या को कैकेयी के भवन में हुए वार्तालाप के बारे में बताया और अपना निर्णय सुनाया। कौशल्या ने उन्हें अनुचित राजाज्ञा न मानने के लिए कहा पर राम ने इसे पिता की आज्ञा मानकर माता से वन जाने के लिए आशीर्वाद माँगा। कौशल्या ने अपने पुत्र को दसों दिशाओं को जीतने का आशीर्वाद दिया।

लक्ष्मण राम के इस निर्णय से सहमत न होकर इस आज्ञा का विरोध करना चाहते थे| राम ने उन्हें समझाया| कौशल्या-भवन से राम सीता के पास गए और उसे सारी बातें बताकर वन जाने के लिए विदा माँगी। सीता उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गई क्योंकि उसे उसके पिता ने सदा अपने पति की छाया बनकर रहने का उपदेश दिया था। लक्ष्मण भी राम के साथ जाने के लिए तैयार हो गए। तीनों वन जाने के लिए तैयार होकर पिता का आशीर्वाद लेने आए। वहाँ तीनों रानियाँ, मंत्रिगण आदि भी उपस्थित थे। सब कैकेयी को समझा रहे थे, पर वह टस-से-मस नहीं हुईं। दशरथ ने कहा कि – पुत्र मैं वचन से बँधा हूँ परन्तु तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। तुम मुझे बंदी बनाकर राज संभालो। राम ने उन्हें समझाया कि उसे राज्य का लोभ नहीं था। कैकेयी ने राम, लक्ष्मण और सीता को वल्कल वस्त्र दिए। उन्होंने राजसी वस्त्र त्याग कर तपस्वियों के वस्त्र पहन लिए और महल से बाहर आ गए।

महल के बाहर सुमंत्र रथ लेकर खड़े थे। राम, सीता और लक्ष्मण रथ पर सवार हो गए। राम के रथ को तेज़ चलाने के लिए कहा। सुमंत्र ने शाम तक राम, लक्ष्मण व सीता को श्रृंगवेरपुर में पहुँचा दिया। निषादराज गुह ने उसका स्वागत किया। सुमंत्र के अयोध्या लौटते ही सभी लोगों ने तथा महाराज ने प्रश्न पूछने शुरू किए। वन-गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्याग दिए। राम का वियोग उनसे सहा नहीं गया। दूसरे दिन महर्षि वशिष्ठ ने मंत्रिपरिषद् से चर्चा की कि राजगद्दी खाली नहीं रहनी चाहिए। तय हुआ कि भरत को तत्काल अयोध्या बुलाया जाए। एक घुड़सवार दूत को भरत को लाने के लिए भेजा गया तथा उसे भरत को अयोध्या की घटनाएँ न बताने को कहा गया|

शब्दार्थ –

• कोलाहल – शोर-शराबा का स्थान
• विस्मित – हैरान
• राज्याभिषेक – राजतिलक
• शास्त्र सम्मत – शास्त्रों के अनुसार
• असहज – जो स्वाभाविक न हो
• स्पंदनहीन – कोई हरकत न होना आयोजन – प्रबंध
• क्षीण – कमज़ोर
• मंगलकारी – शुभ
• अनिष्ठ – नुकसान
• प्रतिवाद – विरोध
• वल्कल – पेड़ों की छाल
• विचलित – व्याकुल
• दूत – संदेशवाहक

Read More

Chapter 3 दो वरदान Notes for Class 6 Hindi Bal Ramkatha

पाठ का सार

अयोध्या लौटने के बाद राजा दशरथ के मन में राम का राज्यभिषेक करने की इच्छा बची हुई थी। दशरथ उन्हें युवराज का पद देना चाहते थे इसीलिए उन्होंने राम को राज-काज में शामिल करना शुरू कर दिया था। प्रजा भी उनको चाहती थी। राजा दशरथ वृद्ध हो चुके थे। मुनि वशिष्ट से विचार विमर्श करने के बाद उन्होंने राम का राज्याभिषेक करने का निश्चय किया। दरबार में बैठे सभी व्यक्तियों ने राजा के इस फैसले का स्वागत किया और यह खबर पूरे राज्य में आग की तरह फैल गई।

अगले दिन सुबह राम का राज्याभिषेक होना था। परंतु जब यह बात रानी केकई की दासी मंथरा को पता चली तो वह जल-भूल गई। राम का राज्याभिषेक उसे एक षड्यंत्र लगा। उस समय भरत और शत्रुघ्न भी अयोध्या में नहीं थे वह अपने नाना केकयराज के यहां गए हुए थे और उन्हें यह भी नहीं पता था कि राम का राज्याभिषेक होने वाला है। मंथरा ने केकई को राम का राज्याभिषेक ना होने के लिए उकसाया।

मंथरा ने रानी केकई से कहा कि तुम राजा दशरथ से अपने दो वचन मांग लो जो राजा दशरथ ने तुम्हें युद्ध के समय दिए थे। तो रानी केकई ने ऐसा ही किया उसने पहले वचन के रूप में राम को 14 वर्ष का वनवास और दूसरे वचन के रूप में भरत का राज्यभिषेक मांगा। यह सुनकर राजा दशरथ के होश उड़ गए । वह रानी केकई से ऐसा करने से मना करते रहे। फिर केकई ने कहा कि अपने वचन से पीछे पीछे हटना रघुकुल का अनादर है। और अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मैं विष पीकर अपनी जान दे दूंगी। यह सुनकर दशरथ बेहोश होकर गिर पड़े और रात को जब कभी उन्हें होश आता तो वह दोबारा से केकई को समझाते गिड़गिड़ाते, पर केकई नहीं मानी।

Read More

Chapter 2 जंगल और जनकपुर Notes for Class 6 Hindi Bal Ramkatha

पाठ का सार

महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को लेकर राज महल से निकल चुके थे। वे आगे बढ़ रहे थे उन्होंने सरयू नदी को पार करते हुए उसके किनारे चलते गए। राम और लक्ष्मण उनके पीछे पीछे चल रहे थे अयोध्या बहुत पीछे छूट चुका था। अचानक महर्षि रुके और उन्होंने आसमान पर दृष्टि डाली जहां पर चिड़ियों के झुंड थे चरवाहे लौट रहे थे। महर्षि ने आज रात वहीं रुकने का फैसला किया।उन्होंने वहां पर राम और लक्ष्मण को बला – अतिबला नाम की विद्या सिखाई। पत्तों और तिनको के बिस्तर पर रात उन्होंने वही व्यतीत की।
सुबह होते ही वे दोबारा चल पड़े सरयू नदी के किनारे-किनारे और एक ऐसे स्थान पर पहुंच गए जहां पर दो नदियां आपस में मिलती थी। दूसरी नदी गंगा थी।

महर्षि अब भी आगे चल रहे थे और वे उनके पीछे चल रहे थे उनकी बातों को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। आगे उन्हें जंगलों से होकर जाना था जो यात्रा कठिन थी। अब उन्हें नदी पार करनी थी लेकिन अंधेरा हो चुका था इसलिए उन्होंने रात यही गुजारने का निश्चय किया और अगली सुबह उन्होंने नाव से गंगा नदी पार की। नदी पार करके आगे जंगल था और जंगल में असली खतरा ताड़का राक्षसी से था। ताड़का के डर से जंगल में कोई नहीं आता था। महर्षि की आज्ञा पाकर राम ने धनुष की प्रत्यंचा खींच दी। उसकी आवाज सुनकर ताड़का राक्षसी क्रोधित हो गई उसके बाद राम और लक्ष्मण ने उन पर तीरो की बौछार कर दी और राम जी का एक तीर उसके हृदय में जा लगा जिससे उसकी मृत्यु हो गई। ताड़का राक्षसी की मृत्यु से विश्वामित्र बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने राजकुमारों को सौ तरह के नए अस्त्र-शस्त्र दिए । उनको उपयोग करने की विधि बताई और उनका महत्व समझाया। अब रात हो चुकी थी इसीलिए तीनों ने रात वहीं ताड़का वन में व्यतीत की।

सिद्धाश्रम पहुंचने के लिए वे थोड़ी दूर और चले।आश्रम पहुंचने पर आश्रम वासियों ने उनका स्वागत किया और वहां पर खुशी की लहर दौड़ उठी। विश्वामित्र ने आश्रम की रक्षा का कार्यभार राजकुमारों को सौंप दिया और खुद यज्ञ की तैयारी में लग गए। 5 दिनों तक सब ठीक चला लेकिन यज्ञ के अंतिम दिन में वहां पर सुबाहू और मारीच नामक राक्षसों के दल ने आश्रम पर आक्रमण कर दिया। वे अपनी मां ताड़का की मृत्यु का बदला लेने आए थे।

राम ने राक्षसों पर बाणों की बौछार कर दी और सभी राक्षसों को मार भगाया। यज्ञ समाप्त होने के बाद वे तीनों मिथिला की तरफ चल दिए। मिथिला में राजा जनक ने उनका भव्य स्वागत किया। विश्वामित्र ने उन्हें बताया कि मैं इन राजकुमारों को आपका शिव धनुष दिखाने लाया हूं। शिव धनुष को लोहे की पेटी में रखकर लाया गया। उस पेटी में 8 पहिए लगे हुए थे और उस धनुष को उठाना लगभग असंभव था। राजा जनक ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि जो इस धनुष को उठाकर इस पर प्रत्यंचा चलाएगा उससे वह अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे। बहुत सारे योद्धाओं ने शिव धनुष को उठाने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे । महर्षि की आज्ञा पाकर राम ने शिव धनुष उठा लिया और जब उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे तो उस दबाव में वह धनुष टूट गया। उसके बाद बरात के लिए अयोध्या में निमंत्रण भेजा गया। 5 दिनों के बाद बारात मिथिला पहुंच गई।और वहां पर श्री राम का विवाह सीता से संपन्न हुआ उसके बाद लक्ष्मण का विवाह उर्मिला से भरत का विवाह मांडवी से और शत्रुघ्न का विवाह श्रुत्कीर्ति से हुआ। बारात कुछ दिनों तक मिथिला में रुकने के बाद अयोध्या वापस लौट आई।

Read More

Chapter 1 अवधपुरी में राम Notes for Class 6 Hindi Bal Ramkatha

पाठ का सार

इस पाठ में अवध का वर्णन किया गया है। अवध में अयोध्या नगर का वर्णन किया गया है जो सरयू नदी के किनारे स्थित है। अयोध्या के राजा दशरथ थे। राजा दशरथ एक कुशल और न्याय प्रिय शासक थे। उन्हें रघु के वंशज या रघुकुल के उत्तराधिकारी भी कहा गया है। राजा दशरथ के पास किसी चीज की कमी नहीं थी उनकी तीन रानियां थी – कौशल्या, सुमित्रा और केकई। परंतु उनकी एक भी संतान नहीं थी। इसी कारण राजा दशरथ चिंतित थे।जब उन्होंने अपनी यह समस्या वशिष्ठ मुनि को बताई तो उन्होंने राजा दशरथ से पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी।

पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए राजा दशरथ ने सरयू नदी के किनारे एक यज्ञशाला बनवाई। यज्ञ में सब ने आहुति डाली और अंतिम आहुति राजा दशरथ की थी। यज्ञ पूरा होने के बाद अग्नि देवता ने महाराज दशरथ को आशीर्वाद दिया। कुछ समय बाद महारानी कौशल्या ने राम को जन्म दिया। राम का जन्म चेत्र महा की नवमी के दिन हुआ था। रानी सुमित्रा के दो पुत्र हुए- लक्ष्मण और शत्रुघ्न। रानी केकई के पुत्र का नाम भरत रखा गया। चारों राजकुमार एक साथ खेलते थे वे धीरे-धीरे बड़े हुए।

राजा दशरथ को राम सबसे अधिक प्रिय थे। कुछ वर्षों पश्चात राजकुमार विवाह योग्य हुए। एक दिन राज महल में राजकुमारों के विवाह की चर्चा चल रही थी कि तभी एक द्वारा पाल घबराया हुआ अंदर आया। उसने बताया कि महर्षि विश्वामित्र पधारे हैं। विश्वामित्र कभी स्वयं एक बड़े और बलशाली राजा थे। बाद में उन्होंने राजपाट त्याग कर सन्यास ग्रहण कर लिया। जंगल में चले गए थे और वही अपना आश्रम बनाया। राजा दशरथ ने महर्षि विश्वामित्र का स्वागत सत्कार किया और उनसे पूछा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? विश्वामित्र ने उन्हें बताया कि वे एक यज्ञ कर रहे थे और दो राक्षसों ने उनके यज्ञ में बाधा डाल दी। वे उन राक्षसों के वध के लिए राम को ले जाने आए हैं। राजा दशरथ ने कहा कि मेरा राम तो अभी 16 बरस का है वह राक्षसों से कैसे लड़ेगा। इस पर महर्षि ने कहा कि आप रघुकुल की रीति तोड़ रहे हैं राजन। बाद में मुनि वशिष्ठ ने दशरथ को समझाया और उन्हें राम को भेजने के लिए मना लिया। इस पर दशरथ ने मुनि वशिष्ठ की बात मान ली। पर उन्होंने राम को अकेले भेजने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि राम के साथ लक्ष्मण भी जाएगा। दोनों राजकुमार विश्वामित्र के साथ जंगल की ओर चल दिए। इस बात की सूचना राम की माता कौशल्या को भी दे दी गई कि राम और लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ जंगल जा रहे हैं ।

Read More

Chapter 17 साँस साँस में बांस Class 6 Summary notes class 6th Hindi Vasant

साँस साँस में बाँस निबंध में एलेक्स एम जॉर्ज जी ने बांस की विशेषता का बड़े विस्तार से वर्णन किया है।उन्होंने निबंध के प्रारम्भ में एक जादूगर चंगकीचंगलनबा  बारे में बताया है।जिसने अपने मरने पर कहा था कि यदि मेरी कब्र को छठे दिन खोदेगो ,तो वहां कुछ नया पाओगे। लोगों ने छठे दिन उसकी कब्र खोदी ,तो वहां बांस की टोकरियों के कई डिजाईन मिलें।लोगों ने इसकी नक़ल करके सीखा ,साथ ही कुछ नए डिजायन भी इजाद किये। 

बाँस पूरे भारत में होता है। भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में बहुतायत उगता है। अतः वहाँ बांस की बहुत सारी चीज़ें बनाने की खूब प्रचलन है। मनुष्य तभी से बाँस की चीज़ें बना रहा है ,जब से वह कलात्मक चीज़ें बना रहा है।उसने शायद बया चिड़ियाँ के घोसलें से बुनावट की तरकीब सोची होगी।बांस की खपच्चियों से बहुत सारी चीज़ें बनायीं जाती है।जैसे – चटाईयां ,टोपियाँ ,टोकरियाँ ,बर्तन ,बैल गाड़ियाँ ,फर्नीचर,सजावटी समान ,जाल ,मकान ,पुल और खिलौने आदि।असम में बाँस के खपच्चियों से मछली पकड़ने का जाल बनाया जाता है।साथ ही चाय बगानों में काम करने वालों लोगों के लिए टोपियाँ और टोकरियाँ बनायीं जाती है। 

बरसात के समय लोग बाँसों को इकठ्ठा करने लगते हैं।आमतौर पर ३ वर्ष की आयु वालों बाँसों को काटा जाता है। बाँस से शाखाओं और पत्तियों को अलग कर लिया जाता है।दाओ से इन्हें छीलकर खपच्चियों तैयार कर ली जाती है। खपच्चियों की लम्बाई अलग अलग होती है।टोकरी या आसन बनाने के लिए अलग अलग लम्बाई की खपच्चियाँ काटी जाती है। इनकी चौड़ाई एक इंच से ज्यादा नहीं होती है। खपच्चियाँ चीरने के लिए हुनर चाहिए। इस हुनर को सीखने के लिए बहुत समय चाहिए। टोकरी बनाने के लिए खपच्चियों को चिकना बनाया जाता है।इसके बाद गुड़हल ,इमली की पत्तियों से रंगा जाता है।बांस की बुनाई साधारणत: ही होती है। इसे आड़ा – तिरछा रखा जाता है।चैक का डिजायन बनता है।टोकरी के सिरों पर खपच्चियों को या तो चोटी की गूंथ लिया जाता है।या कटे सिरों को नीचे की ओर मोड़कर फंसा दिया जाता है।इस प्रकार टोकरी तैयार हो जाती है।इसे बाजार में बेचा जा सकता है या फिर घर के कामों में प्रयोग किया जा सकता है। 

Read More

Chapter 16 वन के मार्ग में summary class 6th Hindi Vasant

पुर तें निकसी रघुबीर-बधू,धरि धीर दये मग में डग द्वै।
झलकीं भरि भाल कनी जल की,पुट सूखि गये मधुराधर वै।।
फिरि बूझति हैं-”चलनो अब केतिक,पर्णकुटी करिहौ कित है?”
तिय की लखि आतुरता पिय की, अँखिया अति चारू चलीं जल च्वै।।

व्याख्या – प्रस्तुत सवैया में तुलसीदास ने कहा है कि राम के वनवास के समय ,नगर के निकलते ही सीता जी कुछ दूर चलने में थक गयी।उनके माथे पर पसीना बहने लगा और ओंठ पानी न मिलने के कारण सूख गए।वे अपनी पति श्री रामचंद से पूछती है कि अभी कितनी दूर चलना है और पर्णकुटी कहाँ बनायेंगे। पत्नी सीता की आतुरता एवं दुःख देखकर श्रीराम की आँखों में आंसू आ जाते हैं। 

जल कों गए लक्खनु, हैं लरिका,परिखौ, पिय! छाँह घरीक ह्वै ठाढ़े।
पोंछि पसेउ बयारि करौं , अरु पांय पखारिहौं भूभुरि-डाढ़े।
तुलसी रघुबीर प्रिया-श्रम जानि कै ,बैठि बिलंब लौं कंटक काढ़े। 
जानकी नाहकौ नेहु लख्यौ,पुलकौ तनु, बारि बिलोचन बाढ़े।

व्याख्या –  प्रस्तुत सवैया में तुलसीदास जी कहते हैं कि लक्ष्मण जी पानी की खोज में गए हैं। तब सीता जी अपने पति से कहती है कि जब तक लक्ष्मण जी पानी लेकर आते हैं।तब तक आप वृक्ष की छाया में आराम कर लीजियेगा। श्रीराम सीता जी के कहने पर वृक्ष की छाया में कुछ देर के लिए विश्राम करने लगते हैं। इसी बीच वे सीता जी के पैसे में काँटा गडा हुआ देखते हैं ,जिसे वे अपने हाथों से निकालना शुरू कर देते हैं ,जिसे देखकर सीता जी बहुत प्रसन्न हो जाती है। 

Read More

Chapter 15 नौकर summary class 6th hindi vasant

नौकर वसंत भाग – 1 (Summary of Naukar Vasant)

यह पाठ अनु बंद्योपाध्याय द्वारा रचित निबंध है। गाँधीजी नौकर का काम खुद से करते थे| आश्रम में गांधी जी आटा चक्की पर स्वयं पीसते थे। उन्हें बाहरी लोगों के सामने भी शारीरिक मेहनत करने में शर्म अनुभव नहीं होती थी। एक बार कॉलेज के कुछ छात्र गांधी जी से मिलने आए और उनसे कुछ सेवा करने के लिए कहने लगे। गांधी जी ने उन छात्रों को भी गेहूँ साफ़ करने दिया। वे एक घंटे में ही इस कार्य को करने से थक गए और गांधी जी से विदा लेकर चले गए।

गांधी जी ने कुछ वर्षों तक आश्रम में भंडार का काम भी संभाला था। उन्हें सब्जी, फल और अनाज के पौष्टिक गुणों का ज्ञान था। गांधी जी आश्रमवासियों को स्वयं भोजन परोसते थे, जिस कारण उन लोगों को बेस्वाद, उबली हुई सब्ज़ियाँ बिना शिकायत किए खानी पड़ती थीं। उन्हें चमकते हुए बरतन पसंद थे।

गांधी जी आश्रम में चक्की पीसने और कुएँ से पानी निकालने का काम रोज़ करते थे। उन्हें यह पसंद नहीं था कि जब तक शरीर में बिलकुल लाचारी न हो तब तक कोई उनका काम करे। उनमें हर प्रकार का काम करने की अद्भुत क्षमता तथा शक्ति थी। दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध के दौरान उन्होंने घायलों को स्ट्रेचर पर लाद कर पच्चीस-पच्चीस मील तक ढोया था। एक बार किसी तालाब की भराई का काम चल रहा था। उनके साथी वहाँ पर काम कर रहे थे। उन्होंने लौटकर देखा कि गांधी जी ने उन लोगों के नाश्ते के लिए फल आदि तैयार करके रखे हुए थे।

एक बार दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीयों की माँगों को लेकर गांधी जी लंदन गए। वहाँ भारतीय छात्रों ने उन्हें शाकाहारी भोज के लिए आमंत्रित किया। वे लोग स्वयं गांधी जी के लिए भोजन बनाने लगे। तीसरे पहर एक दुबला-पतला व्यक्ति भी उनमें शामिल होकर काम करने लगा। बाद में छात्रों को पता चला कि वह दुबला-पतला व्यक्ति गांधी जी ही थे।

दूसरों से काम लेने में गांधीजी बहुत सख्त थे परन्तु दूसरों से अपना काम कराना उन्हें नापसंद था| एक बार गांधी जी राजनीतिक सम्मेलन से लौटकर रात के दस बजे अपना कमरा झाड़ लेकर साफ़ करने लगे।  गांधी जी को बच्चों से बहुत प्यार था। उनका मानना था कि बच्चों के विकास के लिए माँ-बाप का प्यार और उनकी देखभाल अनिवार्य है।

दक्षिण अफ्रीका में जेल से छूटने पर उन्होंने देखा कि उनके मित्र की पत्नी श्रीमती पोलक बहुत कमज़ोर और दुबली हो गई हैं, क्योंकि बच्चा बहुत प्रयत्न के बाद उनका दूध पीना नहीं छोड़ रहा था। गांधी जी ने एक महीने तक बच्चे को अपने पास सुलाया। रात के लिए वे अपनी चारपाई के पास पानी रख कर सोते थे। यदि बच्चे को प्यास लगती तो वे पानी पिला देते। आधे महीने तक माँ से अलग सोने पर बच्चे ने माँ का दूध पीना छोड़ दिया। 

गांधी जी अपने से बड़ों का आदर करते थे। दक्षिण अफ्रीका में गोखले जी गांधी जी के साथ ठहरे थे। गांधी जी उनके सभी काम स्वयं करते। जब कभी आश्रम में किसी सहायक को रखने की आवश्यकता होती तो वे किसी हरिजन को रखने का आग्रह करते थे। उनके अनुसार नौकरों को हमें वेतनभोगी मज़दूर नहीं बल्कि अपने भाई के समान मानना चाहिए। इसमें कुछ कठिनाई हो सकती है, कुछ चोरियाँ हो सकती हैं, फिर भी हमारी कोशिश बेकार नहीं जाएगी| इंग्लैंड में गांधी जी ने देखा था कि ऊँचे घरानों में घरेलू नौकरों को परिवार के आदमी की तरह रखा जाता था।

कठिन शब्दों के अर्थ –

• बैरिस्टरी – वकालत

• आगंतुक – अतिथि

• कालिख – धुएँ आदि से काला होना

• नवागत – नया आया हुआ मेहमान

• प्रवासी – दूसरे देश में रहने वाले

• अनुकरण करना – नकल करना।

• फर्श बुहारना – फर्श पर झाडू लगाना

• पखवाड़ा – पन्द्रह दिन का समय

• अधिवेशन – मीटिंग

• कारकुन – कार्यकर्ता

• प्रतिदान – किसी ली हुई वस्तु के बदले दूसरी वस्तु देना

Read More

Chapter 14 लोकगीत summary Notes class 6th Hindi Vasant

लोकगीत वसंत भाग – 1 (Summary of Lokgit Vasant)

यह पाठ एक निबंध है जिसमें लेखक ने लोकगीत की उत्पत्ति, विकास और महत्व को विस्तार से समझाया है| लोकगीत जनता का संगीत है| लोकगीत अपनी लोच, ताजगी और लोकप्रियता के कारण शास्त्रीय संगीत से अलग होता है। त्योहारों और विशेष अवसर पर ये गाए जाते हैं| इन्हें साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि वाद्ययंत्रों की मदद से गाया जाता है। पहले ये शास्त्रीय संगीत से खराब समझा जाता था परन्तु बदलते समय ने

लोकगीतों और लोकसाहित्य को उच्च स्थान दिया है।

लोकगीत कई प्रकार के होते हैं। आदिवासी मध्य प्रदेश, दकन, छोटा नागपुर में गोंड-खांड, ओराँव-मुंडा, भील-संथाल आदि क्षेत्रों में फैले हुए हैं और इनके संगीत बहुत ही ओजस्वी तथा सजीव होते हैं| पहाड़ियों के गीत भिन्न-भिन्न रूपों में होते हैं। गढ़वाल, किन्नौर, कांगड़ा आदि के अपने-अपने गीत हैं और उन्हें गाने की अपनी-अपनी विधियाँ हैं। विभिन्न होते हुए भी इन गीतों का नाम ‘पहाड़ी’ पड़ गया है। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि के लोकगीत मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के अन्य पूर्वी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाए जाते हैं। बंगाल में बाऊल और भतियाली, पंजाब में माहिया, हीर-राँझा, सोहनी-महिवाल संबंधी गीत और राजस्थान में ढोला मारु लोकगीत बड़े चाव से गाए जाते हैं। 

लोकगीत कल्पना पर आधारित नहीं होते हैं बल्कि देहाती जीवन के रोजमर्रा के विषय पर आधारित होते हैं। इनके राग भी साधारणत: पीलू, सारंग, दुर्गा, सावन आदि हैं। देहात में कहरवा, बिरहा, धोबिया आदि राग गाए जाते हैं। बिहार में ‘बिदेसिया’ बहुत लोकप्रिय है। इनका विषय रसिका प्रेमी और प्रियाओं तथा परदेसी प्रेमी पर आधारित होता है। जंगल की जातियों में भी दल-गीत होते हैं जो बिरहा आदि पर गाए जाते हैं। बुंदेलखंड में आल्हा के गीत गाए जाते हैं। इनकी शुरुआत चंदेल राजाओं के राजकवि जगनिक द्वारा रचित आल्हा-ऊदल की वीरता के महाकाव्य से माना जाता है। धीरे-धीरे दूसरे देहाती कवियों ने इन्हें अपनी बोली में उतारा है। इन गीतों को नट रस्सियों पर खेल करते हुए गाते हैं|

हमारे देश में स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले लोकगीतों की संख्या ज्यादा है। इनकी रचना भी वे ही करती हैं। भारत के लोकगीत अन्य देशों से भिन्न हैं क्योंकि अन्य देशों में स्त्रियों के गीत मर्द से अलग नहीं होते। हमारे देश में विभिन्न अवसरों पर विभिन्न गीत गाए जाते हैं – जैसे जन्म, विवाह, मटकोड़, ज्यौनार आदि जो स्त्रियाँ गाती हैं। इन अवसरों पर गाए जाने वाले गीतों का संबंध प्राचीन काल से है। बारहमासा गीत आदमियों के साथ-साथ स्त्रियाँ भी गाती हैं। स्त्रियों के गीत दल बनाकर गाए जाते हैं। इनके स्वरों में मेल नहीं होता है फिर भी अच्छे लगते हैं। होली, बरसात में गाई जाने वाली कजरी सुनने वाली होती है। पूर्वी भारत में अधिकतर मैथिल कोकिल विद्यापति के गीत गाए जाते हैं। गुजरात में ‘गरबा’ नामक नृत्य गायन प्रसिद्ध है। इस दल में औरतें घूम-घूम कर एक विशेष विधि से गाती हैं और नाचती हैं। ब्रज में होली के अवसर पर रसिया दल बनाकर गाया जाता है। गाँव के गीतों के अनेक प्रकार हैं|

कठिन शब्दों के अर्थ –

• लोच-लचीलापन

• झाँझ–एक वाद्य यंत्र जो काँसे की दो तश्तरियों से बना होता है

• करताल-तालियाँ

• हेय-हीन

• निर्द्वद्व-बिना किसी दुविधा के

• मर्म को छूना-प्रभावित करना

• आह्लादकर–प्रसन्न करने वाले 

• सिरजती-बनाती

• पुट-अंश

• उद्दाम-निरंकुश

Read More

ch-13 मैं सबसे छोटी होऊँ Summary Notes class 6th Hindi Vasant

प्रस्तुत कविता में एक बालिका अपनी माँ की सबसे छोटी संतान बनने की इच्छा प्रकट करती है। ऐसा करने से वह सदा अपनी माँ का प्यार और दुलार पाती रहेगी। उसकी गोद में खेल पाएगी। उसकी माँ हमेशा उसे अपने आँचल में रखेगी, उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेगी। उसे लगता है कि वह सबसे छोटी होगी, तो माँ उसका सबसे अधिक ध्यान रखेगी। सबसे छोटी होने से उसकी माँ उसे अपने हाथ से नहलाएगी, सजाएगी और सँवारेगी। उसे प्यार से परियों की कहानी सुनाकर सुलाएगी। वह कभी बड़ी नहीं होना चाहती क्योंकि इससे वह अपनी माँ का सुरक्षित और स्नेह से भरा आँचल खो देगी।

भावार्थ
मैं सबसे छोटी होऊँ
तेरी गोदी में सोऊँ
तेरा आँचल पकड़-पकड़कर
फिरू सदा माँ तेरे साथ
कभी न छोड़ूँ तेरा हाथ


भावार्थ- कविता की इन पक्तियों में बच्ची कह रही है कि काश मैं अपनी माँ की सबसे छोटी संतान बनूँ ताकि मैं उनकी गोदी में प्यार से सो सकूँ। प्यार से उनका आँचल पकड़कर, हमेशा उनके साथ घूमती रहूँ और उनका हाथ कभी ना छोड़ूँ।


बड़ा बनाकर पहले हमको
तू पीछे छलती है मात
हाथ पकड़ फिर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन-रात


भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में बालिका कह रही है कि जैसे ही हम बड़े हो जाते हैं, माँ हमारा साथ छोड़ देती है। फिर वह दिन-रात हमारे आगे-पीछे नहीं घूमती, इसलिए हमें छोटा ही बने रहना चाहिए।


अपने कर से खिला, धुला मुख
धूल पोंछ, सज्जित कर गात
थमा खिलौने, नहीं सुनाती
हमें सुखद परियों की बात


भावार्थ- प्रस्तुत पक्तितों में बच्ची आगे कहती है कि बड़े होने के बाद माँ हमें अपने हाथ से नहलाती नहीं, ना ही सजाती और सँवारती है। फिर तो माँ हमें प्यार से एक जगह बिठा कर खिलौनों से नहीं खिलाती और परियों की कहानी भी नहीं सुनाती।


ऐसी बड़ी न होऊँ मैं
तेरा स्‍नेह न खोऊँ मैं
तेरे अंचल की छाया में
छिपी रहूँ निस्‍पृह, निर्भय
कहूँ दिखा दे चंद्रोदय


भावार्थ- प्रस्तुत अंतिम पक्तियों में बच्ची कह रही है कि मुझे बड़ा नहीं बनना है क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो मैं माँ के आँचल का साया खो दूँगी, जिसमें मैं निर्भय और सुरक्षित होकर आराम से सो जाती हूँ।
अतः बच्ची हमेशा छोटी ही रहना चाहती है क्योंकि बड़ा होने के बाद उसे माँ का प्यार और दुलार नहीं मिल पाएगा।

Read More