Chapter 6 दंडक वन में दस वर्ष Notes for Class 6 Hindi Bal Ramkatha

भरत के अयोध्या लौट जाने के बाद चित्रकूट में शांति लौट आई थी। अयोध्या के पास होने से लोगों का आना–जाना बना रहता था। तीनों वनवासी दंडक वन की और चल पड़े। यहाँ अनेक आश्रम थे परंतु दानव मुनियों को परेशान करते थे। राम, लक्ष्मण और सीता दंडकारण्य में स्थान और आश्रम बदल कर दस वर्ष रहे। एक बार उन्हें क्षरभंग के आश्रम में हड्डियों का ढेर दिखा। सुतीक्षण मुनि ने राम को दानवों के अत्याचार के बारे में बताया और उन्हें अगस्त्य ऋषि से मिलने की सलाह दी। गोदावरी नदी के तट पर पंचवटी जाते हुए उन्हें मार्ग में जटायु मिले। पंचवटी में सुंदर कुटिया बना कर वे रह रहे थे और वन में दानवों का वध भी कर रहे थे। एक दिन जब तीनों कुटी के बाहर बैठे थे तब लंका के राजा रावण की बहन शूर्पणखा सुंदर स्त्री के रूप आ कर राम और लक्ष्मण से विवाह का आग्रह करने लगी। कुछ समय बाद जब दोनों भाइयों ने विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो सीता को इसका कारण बताकर वो क्रोध में आकर सीता पर झपट गई।

लक्ष्मण ने क्रोध में शूर्पणखा के नाक–कान काट दिए। खून से लथपथ शूर्पणखा अपने भाई खर और दूषण के पास गई। उन्होंने क्रोध में आकर 14 राक्षस भेजे, उनके मारे जाने पर स्वयं सेना लेकर गए और मारे गए। अकंपन नामक राक्षस ने यह घटना रावण को बता कर सीता का अपहरण करने की सलाह दी। रावण को अपहरण करते जाने वक्त मारीच मिला ,वह उसे वापिस महल ले आया। शूर्पणखा ने रावण को उकसाकर फिर पंचवटी भेजा। मारीच एक मायावी हिरण का रूप धारण कर कुटिया के पास घूमने लगा। रावण तपस्वी के भेष में पेड़ के पीछे छुप गया। हिरण पर मुग्ध होकर सीता ने राम को उसे लाने को कहा। राम और लक्ष्मण को सोने के हिरण पर संदेह था परंतु सीता के आग्रह को वे मना न कर सके और लक्ष्मण को सीता की रक्षा करने का आदेश देकर राम हिरण लाने के लिए चले गए।

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Chapter 5 चित्रकूट में भरत Summary Notes for Class 6 Hindi Bal Ramkatha

अयोध्या की घटनाओं से वंचित, भरत अपने ननिहाल केकय राज्य में थे। उन्होंने एक विचित्र स्वप्न देखा जो अपने मित्रों को सुना रहे थे। तभी अयोध्या से घुड़सवार वहाँ पहुँचा । भरत को सौ रथों और सेना के साथ अयोध्या भेजा गया। आठ दिन बाद वे अयोध्या पहुँचे। माता कैकई ने भरत को राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार दिया । भरत शोक में थे, वे राम से मिलने का आग्रह करने लगे। कैकई ने उन्हें वरदानों और राम के वनवास के बारे में बताया। यह सुनकर भरत क्रोध से चीख पड़े और बोले कि पिता और भाई को खो कर उन्हें ये राज्य नहीं चाहिए। वे राम को लेने जाने का कहते हुए मूर्छित हो गए। होश आने पर कौशल्या के पास जा कर रोए और क्षमा माँगी। कौशल्या ने उन्हें माफ़ कर गले लगा लिया।

अगले दिन भरत सभी के साथ राम को लेने चित्रकूट गए। राम, सीता और लक्ष्मण ने एक पहाड़ी पर पर्णकुटी बनाई थी। सेना की कोलाहल से सारे जंगल में खलबली मच गयी। लक्ष्मण पहरा दे रहे थे, आवाज़ सुन वे पेड़ पर चढ़कर देखने लगे। उन्हें लगा सेना उन्हें मारने आ रही है, राम ने उन्हें समझाया कि भरत हमला नहीं करेंगे। सेना को नीचे रोक भरत और शत्रुघ्न नंगे पाव ऊपर आए और शिला पर बैठे राम के चरणों में गिर गए। उन्होंने बड़े साहस से पिता की मृत्यु के समाचार दिए। राम–लक्ष्मण और सीता पहाड़ी से उतरकर नगरवासियों और गुरुजनों से मिले। अगले दिन भरत ने राम से राजमहल चलने का आग्रह किया परंतु राम ने कहा पिताजी की आज्ञा का पालन अनिवार्य है। निराश होकर भरत ने राम की खड़ाऊ मांगी और उसे माथे से लगा कर कहा 14 वर्ष तक इन पादुकाओं का शासन रहेगा। अयोध्या पहुंचकर भरत ने उनकी पूजा की। भरत अयोध्या नहीं रुके, तपस्वी वस्त्र धारण कर नंदीग्राम चले गए और राम के आने का इंतजार करने लगे।

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Chapter 5 चित्रकूट में भरत Notes for Class 6 Hindi Bal Ramkatha

पाठ का सार

कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसी को नहीं थी। कैकेयी अपनी जिद पर अड़ी थी। सारे नगर में राम के राज्याभिषेक का उत्साह था। गुरु वशिष्ठ, महामंत्री सुमंत्र सभी शुभ घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे। महाराज के न आने पर महर्षि ने सुमंत्र को राजभवन भेजा। मंत्री सुमंत्र ने देखा महाराज पलंग पर बीमार अवस्था में पड़े हैं। दशरथ ने टूटते स्वर में राम से मिलने की इच्छा जाहिर की।

राम के साथ लक्ष्मण भी वहाँ आ गए। राम ने पिता और माता कैकेयी को प्रणाम किया। राजा दशरथ उन्हें देखकर राम कहकर मूर्छित हो गए। होश आने पर भी वे कुछ नहीं बोले। राम ने पिता से पूछा-“पिताजी मुझसे कोई अपराध हुआ है? कैकेयी बोली-“महाराज दशरथ ने मुझे दो वरदान दिए थे। मैंने कल रात्रि दोनों वर माँगे। जिससे यह पीछे हट रहे हैं। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का ही हो और तुम चौदह वर्ष के लिए वन में रहो| राम पिता के वचन को पूरा करने के लिए आज ही वन जाने के लिए तैयार हो गए। कैकेयी के महल से निकलकर राम सीधे अपनी माता कौशल्या के पास गए। उन्होंने माता कौशल्या को कैकेयी के भवन में हुए वार्तालाप के बारे में बताया और अपना निर्णय सुनाया। कौशल्या ने उन्हें अनुचित राजाज्ञा न मानने के लिए कहा पर राम ने इसे पिता की आज्ञा मानकर माता से वन जाने के लिए आशीर्वाद माँगा। कौशल्या ने अपने पुत्र को दसों दिशाओं को जीतने का आशीर्वाद दिया।

लक्ष्मण राम के इस निर्णय से सहमत न होकर इस आज्ञा का विरोध करना चाहते थे| राम ने उन्हें समझाया| कौशल्या-भवन से राम सीता के पास गए और उसे सारी बातें बताकर वन जाने के लिए विदा माँगी। सीता उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गई क्योंकि उसे उसके पिता ने सदा अपने पति की छाया बनकर रहने का उपदेश दिया था। लक्ष्मण भी राम के साथ जाने के लिए तैयार हो गए। तीनों वन जाने के लिए तैयार होकर पिता का आशीर्वाद लेने आए। वहाँ तीनों रानियाँ, मंत्रिगण आदि भी उपस्थित थे। सब कैकेयी को समझा रहे थे, पर वह टस-से-मस नहीं हुईं। दशरथ ने कहा कि – पुत्र मैं वचन से बँधा हूँ परन्तु तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। तुम मुझे बंदी बनाकर राज संभालो। राम ने उन्हें समझाया कि उसे राज्य का लोभ नहीं था। कैकेयी ने राम, लक्ष्मण और सीता को वल्कल वस्त्र दिए। उन्होंने राजसी वस्त्र त्याग कर तपस्वियों के वस्त्र पहन लिए और महल से बाहर आ गए।

महल के बाहर सुमंत्र रथ लेकर खड़े थे। राम, सीता और लक्ष्मण रथ पर सवार हो गए। राम के रथ को तेज़ चलाने के लिए कहा। सुमंत्र ने शाम तक राम, लक्ष्मण व सीता को श्रृंगवेरपुर में पहुँचा दिया। निषादराज गुह ने उसका स्वागत किया। सुमंत्र के अयोध्या लौटते ही सभी लोगों ने तथा महाराज ने प्रश्न पूछने शुरू किए। वन-गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्याग दिए। राम का वियोग उनसे सहा नहीं गया। दूसरे दिन महर्षि वशिष्ठ ने मंत्रिपरिषद् से चर्चा की कि राजगद्दी खाली नहीं रहनी चाहिए। तय हुआ कि भरत को तत्काल अयोध्या बुलाया जाए। एक घुड़सवार दूत को भरत को लाने के लिए भेजा गया तथा उसे भरत को अयोध्या की घटनाएँ न बताने को कहा गया|

शब्दार्थ –

• कोलाहल – शोर-शराबा का स्थान
• विस्मित – हैरान
• राज्याभिषेक – राजतिलक
• शास्त्र सम्मत – शास्त्रों के अनुसार
• असहज – जो स्वाभाविक न हो
• स्पंदनहीन – कोई हरकत न होना आयोजन – प्रबंध
• क्षीण – कमज़ोर
• मंगलकारी – शुभ
• अनिष्ठ – नुकसान
• प्रतिवाद – विरोध
• वल्कल – पेड़ों की छाल
• विचलित – व्याकुल
• दूत – संदेशवाहक

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Chapter 3 दो वरदान Notes for Class 6 Hindi Bal Ramkatha

पाठ का सार

अयोध्या लौटने के बाद राजा दशरथ के मन में राम का राज्यभिषेक करने की इच्छा बची हुई थी। दशरथ उन्हें युवराज का पद देना चाहते थे इसीलिए उन्होंने राम को राज-काज में शामिल करना शुरू कर दिया था। प्रजा भी उनको चाहती थी। राजा दशरथ वृद्ध हो चुके थे। मुनि वशिष्ट से विचार विमर्श करने के बाद उन्होंने राम का राज्याभिषेक करने का निश्चय किया। दरबार में बैठे सभी व्यक्तियों ने राजा के इस फैसले का स्वागत किया और यह खबर पूरे राज्य में आग की तरह फैल गई।

अगले दिन सुबह राम का राज्याभिषेक होना था। परंतु जब यह बात रानी केकई की दासी मंथरा को पता चली तो वह जल-भूल गई। राम का राज्याभिषेक उसे एक षड्यंत्र लगा। उस समय भरत और शत्रुघ्न भी अयोध्या में नहीं थे वह अपने नाना केकयराज के यहां गए हुए थे और उन्हें यह भी नहीं पता था कि राम का राज्याभिषेक होने वाला है। मंथरा ने केकई को राम का राज्याभिषेक ना होने के लिए उकसाया।

मंथरा ने रानी केकई से कहा कि तुम राजा दशरथ से अपने दो वचन मांग लो जो राजा दशरथ ने तुम्हें युद्ध के समय दिए थे। तो रानी केकई ने ऐसा ही किया उसने पहले वचन के रूप में राम को 14 वर्ष का वनवास और दूसरे वचन के रूप में भरत का राज्यभिषेक मांगा। यह सुनकर राजा दशरथ के होश उड़ गए । वह रानी केकई से ऐसा करने से मना करते रहे। फिर केकई ने कहा कि अपने वचन से पीछे पीछे हटना रघुकुल का अनादर है। और अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मैं विष पीकर अपनी जान दे दूंगी। यह सुनकर दशरथ बेहोश होकर गिर पड़े और रात को जब कभी उन्हें होश आता तो वह दोबारा से केकई को समझाते गिड़गिड़ाते, पर केकई नहीं मानी।

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Chapter 2 जंगल और जनकपुर Notes for Class 6 Hindi Bal Ramkatha

पाठ का सार

महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को लेकर राज महल से निकल चुके थे। वे आगे बढ़ रहे थे उन्होंने सरयू नदी को पार करते हुए उसके किनारे चलते गए। राम और लक्ष्मण उनके पीछे पीछे चल रहे थे अयोध्या बहुत पीछे छूट चुका था। अचानक महर्षि रुके और उन्होंने आसमान पर दृष्टि डाली जहां पर चिड़ियों के झुंड थे चरवाहे लौट रहे थे। महर्षि ने आज रात वहीं रुकने का फैसला किया।उन्होंने वहां पर राम और लक्ष्मण को बला – अतिबला नाम की विद्या सिखाई। पत्तों और तिनको के बिस्तर पर रात उन्होंने वही व्यतीत की।
सुबह होते ही वे दोबारा चल पड़े सरयू नदी के किनारे-किनारे और एक ऐसे स्थान पर पहुंच गए जहां पर दो नदियां आपस में मिलती थी। दूसरी नदी गंगा थी।

महर्षि अब भी आगे चल रहे थे और वे उनके पीछे चल रहे थे उनकी बातों को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। आगे उन्हें जंगलों से होकर जाना था जो यात्रा कठिन थी। अब उन्हें नदी पार करनी थी लेकिन अंधेरा हो चुका था इसलिए उन्होंने रात यही गुजारने का निश्चय किया और अगली सुबह उन्होंने नाव से गंगा नदी पार की। नदी पार करके आगे जंगल था और जंगल में असली खतरा ताड़का राक्षसी से था। ताड़का के डर से जंगल में कोई नहीं आता था। महर्षि की आज्ञा पाकर राम ने धनुष की प्रत्यंचा खींच दी। उसकी आवाज सुनकर ताड़का राक्षसी क्रोधित हो गई उसके बाद राम और लक्ष्मण ने उन पर तीरो की बौछार कर दी और राम जी का एक तीर उसके हृदय में जा लगा जिससे उसकी मृत्यु हो गई। ताड़का राक्षसी की मृत्यु से विश्वामित्र बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने राजकुमारों को सौ तरह के नए अस्त्र-शस्त्र दिए । उनको उपयोग करने की विधि बताई और उनका महत्व समझाया। अब रात हो चुकी थी इसीलिए तीनों ने रात वहीं ताड़का वन में व्यतीत की।

सिद्धाश्रम पहुंचने के लिए वे थोड़ी दूर और चले।आश्रम पहुंचने पर आश्रम वासियों ने उनका स्वागत किया और वहां पर खुशी की लहर दौड़ उठी। विश्वामित्र ने आश्रम की रक्षा का कार्यभार राजकुमारों को सौंप दिया और खुद यज्ञ की तैयारी में लग गए। 5 दिनों तक सब ठीक चला लेकिन यज्ञ के अंतिम दिन में वहां पर सुबाहू और मारीच नामक राक्षसों के दल ने आश्रम पर आक्रमण कर दिया। वे अपनी मां ताड़का की मृत्यु का बदला लेने आए थे।

राम ने राक्षसों पर बाणों की बौछार कर दी और सभी राक्षसों को मार भगाया। यज्ञ समाप्त होने के बाद वे तीनों मिथिला की तरफ चल दिए। मिथिला में राजा जनक ने उनका भव्य स्वागत किया। विश्वामित्र ने उन्हें बताया कि मैं इन राजकुमारों को आपका शिव धनुष दिखाने लाया हूं। शिव धनुष को लोहे की पेटी में रखकर लाया गया। उस पेटी में 8 पहिए लगे हुए थे और उस धनुष को उठाना लगभग असंभव था। राजा जनक ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि जो इस धनुष को उठाकर इस पर प्रत्यंचा चलाएगा उससे वह अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे। बहुत सारे योद्धाओं ने शिव धनुष को उठाने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे । महर्षि की आज्ञा पाकर राम ने शिव धनुष उठा लिया और जब उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे तो उस दबाव में वह धनुष टूट गया। उसके बाद बरात के लिए अयोध्या में निमंत्रण भेजा गया। 5 दिनों के बाद बारात मिथिला पहुंच गई।और वहां पर श्री राम का विवाह सीता से संपन्न हुआ उसके बाद लक्ष्मण का विवाह उर्मिला से भरत का विवाह मांडवी से और शत्रुघ्न का विवाह श्रुत्कीर्ति से हुआ। बारात कुछ दिनों तक मिथिला में रुकने के बाद अयोध्या वापस लौट आई।

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Chapter 1 अवधपुरी में राम Notes for Class 6 Hindi Bal Ramkatha

पाठ का सार

इस पाठ में अवध का वर्णन किया गया है। अवध में अयोध्या नगर का वर्णन किया गया है जो सरयू नदी के किनारे स्थित है। अयोध्या के राजा दशरथ थे। राजा दशरथ एक कुशल और न्याय प्रिय शासक थे। उन्हें रघु के वंशज या रघुकुल के उत्तराधिकारी भी कहा गया है। राजा दशरथ के पास किसी चीज की कमी नहीं थी उनकी तीन रानियां थी – कौशल्या, सुमित्रा और केकई। परंतु उनकी एक भी संतान नहीं थी। इसी कारण राजा दशरथ चिंतित थे।जब उन्होंने अपनी यह समस्या वशिष्ठ मुनि को बताई तो उन्होंने राजा दशरथ से पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी।

पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए राजा दशरथ ने सरयू नदी के किनारे एक यज्ञशाला बनवाई। यज्ञ में सब ने आहुति डाली और अंतिम आहुति राजा दशरथ की थी। यज्ञ पूरा होने के बाद अग्नि देवता ने महाराज दशरथ को आशीर्वाद दिया। कुछ समय बाद महारानी कौशल्या ने राम को जन्म दिया। राम का जन्म चेत्र महा की नवमी के दिन हुआ था। रानी सुमित्रा के दो पुत्र हुए- लक्ष्मण और शत्रुघ्न। रानी केकई के पुत्र का नाम भरत रखा गया। चारों राजकुमार एक साथ खेलते थे वे धीरे-धीरे बड़े हुए।

राजा दशरथ को राम सबसे अधिक प्रिय थे। कुछ वर्षों पश्चात राजकुमार विवाह योग्य हुए। एक दिन राज महल में राजकुमारों के विवाह की चर्चा चल रही थी कि तभी एक द्वारा पाल घबराया हुआ अंदर आया। उसने बताया कि महर्षि विश्वामित्र पधारे हैं। विश्वामित्र कभी स्वयं एक बड़े और बलशाली राजा थे। बाद में उन्होंने राजपाट त्याग कर सन्यास ग्रहण कर लिया। जंगल में चले गए थे और वही अपना आश्रम बनाया। राजा दशरथ ने महर्षि विश्वामित्र का स्वागत सत्कार किया और उनसे पूछा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? विश्वामित्र ने उन्हें बताया कि वे एक यज्ञ कर रहे थे और दो राक्षसों ने उनके यज्ञ में बाधा डाल दी। वे उन राक्षसों के वध के लिए राम को ले जाने आए हैं। राजा दशरथ ने कहा कि मेरा राम तो अभी 16 बरस का है वह राक्षसों से कैसे लड़ेगा। इस पर महर्षि ने कहा कि आप रघुकुल की रीति तोड़ रहे हैं राजन। बाद में मुनि वशिष्ठ ने दशरथ को समझाया और उन्हें राम को भेजने के लिए मना लिया। इस पर दशरथ ने मुनि वशिष्ठ की बात मान ली। पर उन्होंने राम को अकेले भेजने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि राम के साथ लक्ष्मण भी जाएगा। दोनों राजकुमार विश्वामित्र के साथ जंगल की ओर चल दिए। इस बात की सूचना राम की माता कौशल्या को भी दे दी गई कि राम और लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ जंगल जा रहे हैं ।

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