Chapter 18 संघर्ष के कराण मैं तुनुकमिजाज हो गया धनराज summary class 7th hindi

संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिज़ाज हो गया: धनराज सार वसंत भाग – 1 (Summary of Sangharsh ke karan main tunukmizaz ho gya Vasant)

यह पाठ एक प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्लै का पैतींस वर्ष के हो जाने पर विनीता पांडेय द्वारा लिया गया साक्षात्कार है  जिसमें धनराज पिल्लै के बचपन से लेकर अब तक की प्रमुख घटनाओं का वर्णन है।

धनराज पिल्लै का बचपन अनेक कठिनाइयों से भरा हुआ था। उनका परिवार बहुत गरीब था। इनके दोनों बड़े भाई हॉकी खेलते थे। धनराज भी हॉकी खेलना चाहते थे। परंतु उनके पास हॉकी स्टिक खरीदने के लिए पैसे नहीं थे इसलिए वह अपने साथियों की स्टिक उधार माँग कर खेलते थे। जब इनके बड़े भाई को भारतीय कैंप में चुन लिया गया तो उन्होंने धनराज को अपनी पुरानी स्टिक दे दी थी जो धनराज की अपनी पहली स्टिक बनी|

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इन्हें सन 1985 में मणिपुर में खेले जाने वाली जूनियर राष्ट्रीय हॉकी खेलने का अवसर मिला| उस समय ये सोलह वर्ष के दुबले-पतले, छोटे बच्चे जैसे चेहरे वाले दिखाई देते थे। सन 1986 में इन्हें सीनियर टीम में चुन लिया गया और ये मुंबई आ गए। इसी वर्ष इन्होंने और इनके बड़े भाई रमेश ने मुंबई लीग में बेहतरीन खेल-खेलकर धूम मचा दी थी। 1988 में नेशनल कैंप के 57 खिलाड़ियों के लिस्ट में शामिल नहीं होने के कारण मायूस हो गए मगर एक साल बाद ऑलिवन एशियन कप के लिए चुना गया जिसके बाद से ये सदैव आगे बढ़ते गए।

धराज पढ़ाई में बहुत कमज़ोर थे| वे दसवीं तक ही पढ़ पाए। उनका मानना था कि यदि वे हॉकी के खिलाड़ी नहीं होते तो शायद उन्हें चपरासी की नौकरी भी न मिलती। अब उन्हें गर्व है कि वे बैचलर ऑफ़ साइंस या आर्ट्स भले ही ना हों परंतु बैचलर ऑफ़ हॉकी तो हैं ही।   

विनीता पांडेय ने जब उनसे उनके तुनुकमिज़ाज होने का कारण पूछा हो तो उन्होंने इस स्वभाव का कारण अपने बचपन से जुड़ा हुआ बताया। उनकी माँ को उनके पालन-पोषण के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती थी। वे अपना गुस्सा रोक नहीं सकते थे। अन्य लोग उन्हें उकसाते थे जिससे उनका गुस्सा और भी अधिक हो जाता था। उन्हें जिंदगी में छोटी-छोटी चीजों के लिए संघर्ष करना पड़ा था। इससे वे चिड़चिड़े हो गए। वे भावुक भी बहुत हैं। वे किसी को कष्ट में देख नहीं सकते। वे अपनी गलतियों पर माफ़ी माँगने में भी संकोच नहीं करते।

उन्होंने बताया कि कृत्रिम घास को देखकर वह विज्ञान की तरक्की पर अचंभित थे। उनकी सबसे पहली कार सेकंड हैंड अरमाडा थी| बाद में 2000 में उन्होंनेफ़ोर्ड आइकॉन खरीदी। फिर सर्वप्रथम 1994 में पूणे के भाऊ रोड पर दो बेडरूम का फ्लैट खरीदा| बाद में 1999 में महाराष्ट्र सरकार ने पवई में एक फ्लैट दिया। उन्होंने बताया कि उन्हें ख़ास तब महसूस हुआ जब वे राष्ट्रपति से मिले।

कठिन शब्दों के अर्थ –

• तुनुकमिज़ाज – चिड़चिड़ा 

• कष्ट साध्य – कष्ट देने वाला 

• जुझारू – संघर्ष करने वाला 

• कृत्रिम – बनावटी

• शोहरत – प्रसिद्धि 

• हैसियत – सामर्थ्य

• कद्र – आदर

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Chapter 17 वीर कुवर सिंह summary class 7th hindi

वीर कुंवर सिंह सार वसंत भाग – 1 (Summary of Vir Kunwar Singh Vasant)

इस पाठ में सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा कुँवर सिंह की वीरता और साहस का वर्णन किया गया है। अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने पर 8 अप्रैल, सन 1857 ई० को मंगल पांडे को फाँसी दे दी गई थी। 10 मई, सन 1857 को मेरठ में भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन किया। 11 मई को उन्होंने दिल्ली पर कब्ज़ा कर बहादुरशाह ज़फ़र को भारत का शासक बना दिया।

सन 1857 में ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिलाने वाले स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी थे- मंगल पांडे, नाना साहेब, ताँत्या टोपे, बख़ खान, अजीममुल्लाखान, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, कुंवर सिंह, मौलवी अहमदुल्लाह, बहादुर खान, राव तुलाराम आदि थे। इस आंदोलन में कुंवर सिंह जैसे वयोवृद्ध व्यक्ति ने भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ बहादुरी के साथ युद्ध किया|

वीर कुंवर सिंह का जन्म 1782 में बिहार के शाहाबाद जिले के जगदीशपुर रिसायत में हुआ था। उनके माता-पिता पंचरतन कुँवर और साहबजादा सिंह थे। कुँवर सिंह अपने पिता की तरह ही वीर, स्वाभिमानी और उदार थे। पिता की मृत्यु के बाद 1827 ई. में उन्होंने जगदीशपुर रियासत की ज़िम्मेदारी सँभाली। उन्होंने अंग्रेजी सरकार से डटकर लोहा लिया|

25 जुलाई, सन 1857 को दानापुर की सैनिक टुकड़ी ने विद्रोह कर दिया और वे सोन नदी पार कर आरा की ओर चल पड़े। कुँवर सिंह ने आरा पर विजय प्राप्त कर ली। उस समय आरा क्रांति का मुख्य केंद्र बन गया। जमींदारों का अंग्रेजों के साथ सहयोग और आधुनिक शस्त्रों की कमी के कारण अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर कब्जा कर लिया| लेकिन कुँवर सिंह ने हार नहीं मानी और वे भावी संग्राम की योजना में तुरंत लग गए। उन्होंने सासाराम से मिर्जापुर, रीवा, कालपी, कानपुर, लखनऊ, आजमगढ़ में क्रांति की आग को जलाए रखा। लगातार अंग्रेजों से युद्ध करते हुए कुँवर सिंह ने 22 मार्च, सन 1858 को आजमगढ़ पर कब्ज़ा कर लिया। अंग्रेजों के आक्रमण करने पर उन्हें दोबारा भी हराया और कुंवर सिंह 23 अप्रैल, सन 1858 को स्वतंत्रता का विजय झंडा लहराकर जगदीशपुर चले गए। लेकिन इसके तीन दिन बाद 26 अप्रैल, सन 1858 को वीर कुंवर सिंह का निधन हो गया।

वीर कुंवर सिंह युद्ध-कला में पूरी तरह कुशल थे| वे अत्यंत चतुर तथा साहसी योद्धा थे। उन्होंने अनेकों बार अंग्रेजों को चकमा दिया। एक बार गंगा नदी को पार करने के लिए अंग्रेज सेनापति डगलस को झूठी खबर में फँसाकर अपनी सेना के साथ शिवराजपुर से गंगा पार कर गए| कुँवर सिंह कुशल योद्धा के साथ-साथ सामाजिक कार्य भी करते थे। उन्होंने अपने समय में निर्धनों की सहायता की, कुएँ खुदवाए, तालाब बनवाए। वे अत्यंत उदार एवं संवेदनशील व्यक्ति थे। लोकभाषाओं में आज भी उस वीर सेनानी का यशगान किया जाता है।

कठिन शब्दों के अर्थ –

• उदार – दयालु 

• वीरवर – श्रेष्ठ वीर

• स्वाभिमानी – जिसको अपने ऊपर अभिमान हो 

• अभिराम – सुंदर

• ब्रिटिश हुकूमत – अंग्रेजी सरकार 

• गगन – आकाश

• चरम सीमा – अंतिम सीमा

• अमर – जो कभी न मरे

• सशस्त्र – शस्त्र के साथ

• रजवाड़े – छोटी-छोटी रियासत

• कूच कर गए – चल दिए

• विस्तृत भू-भाग – पृथ्वी का बहुत बड़ा हिस्सा 

• देशव्यापी – देश में फैली 

• वयोवृद्ध – आयु से बूढ़े

• गुप्त-ढंग – छिपे रूप से 

• क्रय-विक्रय – खरीदना-बेचना

• एकत्र – इकट्ठा 

• विख्यात – प्रसिद्ध 

• जयघोष – जय का नारा 

• मुक्तिवाहिनी – मुक्ति रूपी नाव 

• परास्त – हारना 

• संचालक – चलाने वाले 

• कीर्ति – यश 

• रणनीति – युद्ध-नीति 

• निकट – समीप

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Chapter 16 भोर और बरखा summary class 7th hindi

भोर और बरखा सार वसंत भाग – 1 (Summary of Bhor aur Barkha Vasant)

‘भोर और बरखा’ मीराबाई द्वारा रचित दो पद हैं। पहला पद भोर अर्थात् सुबह के बारे में हैं। दूसरा पद बरखा अर्थात वर्षा ऋतु के बारे में है।

पहला पद

कवयित्री ने माँ यशोदा द्वारा बाल कृष्ण को जगाने का वर्णन किया है। माँ यशोदा कृष्ण को जगाती हुई कहती हैं कि रात बीत गई है और सुबह हो गई| हर घर के दरवाजे खुल गए हैं। गोपियाँ दही को मथकर मक्खन निकाल रही हैं। उनके कंगनों की झंकार साफ़ सुनाई दे रही है। उठो मेरे बेटे! देवता व मनुष्य सभी दरवाजे पर खड़े हैं। ग्वाल-बाल सब तुम्हारी जय-जयकार कर रहे हैं। तब श्रीकृष्ण उठ जाते हैं और अपने हाथ में मक्खन और रोटी लेकर गायों की रखवाली के लिए चल पड़ते हैं। मीराबाई कहती हैं श्रीकृष्ण अपनी शरण में आने वालों का उद्धार करते हैं।

दूसरा पद

मीरा कहती हैं कि सावन के बादल बरसने लगे हैं जो कवियित्री के मन को बहुत अच्छे लगते हैं। सावन के आने को कृष्ण के आगमन का सुखद संदेश समझ रही हैं। इसके कारण मेरे मन में उमंग भर गया है क्योंकि इसमें मेरे प्रभु के आने की आहट सुनाई दे रही है। बादल चारों दिशाओं से उमड़-घुमड़ कर बरसने के लिए आए हैं। बीच-बीच में बिजली भी चमक रही है। वर्षा की छोटी-छोटी बूंदें धरती पर पड़ रही हैं और ठंडी, सुहावनी हवा चल रही है। ऐसे में कवयित्री अपने प्रभु गिरधर नागर के लिए सुखद और मंगलगीत गाना चाहती है।

कठिन शब्दों के अर्थ –

• रजनी – रात

• भोर – सुबह

• भयो – हो गई

• किंवारे – किवाड़

• द्वार

• मथत – मथना

• सुर-नर – देवता और मनुष्य

• ठाढे – खड़े।

• कुलाहल – शोर

• सबद – शब्द

• उचारै – उच्चारण करना

• लीनी – ले ली

• गउवन – गायें

• रखवारे – रखवाली करने वाले

• सरण – शरण

• तारै – उद्धार करना

• बरस – बरसना

• बदरिया – बादल

• भावन – अच्छा लगना

• उमग्यो – प्रसन्न होना

• मनवा – मन

• भनक – खबर

• हरि – भगवान

• आवन – आना

• चहुँदिस – चारों दिशाओं से

• दामिण – बिजली

• दमक – चमक

• लावण – लाना

• मेहा – मेघ, बादल

• सीतल – ठंडी

• नागर – चतुर

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Chapter 15 नीलकंठ summary class 7th hindi

नीलकंठ सार वसंत भाग – 1 (Summary of Nilkanth Vasant)

यह पाठ एक रेखाचित्र है जिसमें लेखिका ने अपने सभी पालतू पशुओं में से एक मोर जिसे उन्होंने नीलकंठ नाम दिया है उसका वर्णन किया है| उसके स्वभाव, व्यवहार और चेष्टाओं को विस्तार से बताया है|

एक बार लेखिका अतिथि को स्टेशन पहुँचाकर लौट रही थी तो बड़े मियाँ चिड़ियावाले के यहाँ से मोर-मोरनी के दो बच्चे ले आईं। जब वे दोनों पक्षी लेकर घर पहुँची तो सबने कहा कि वे मोर की जगह तीतर ले आई है| दुकानदार ने उन्हें ठग लिया है। यह सुनकर लेखिका चिढ़कर दोनों पक्षियों को अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में ले गई। दोनों पक्षी उनके कमरे में आजादी से घूमते रहे। जब वे लेखिका से घुल-मिल गए तो वे लेखिका का ध्यान अपनी हरकतों से अपनी ओर खींचते। जब वे थोड़े बड़े हुए तो उसे अन्य पशु-पक्षियों के साथ जालीघर पहुँचा दिया गया। धीरे-धीरे दोनों बड़े होने लगे और सुंदर मोर-मोरनी में बदल गए।

मोर के सिर की कलगी बड़ी और चमकीली हो गई थी। चोंच और तीखी हो गई थी। गर्दन लंबी नीले-हरे रंग की थी। पंखों में चमक आने लगी थी। मोरनी का विकास मोर की तरह सौंदर्यमयी नहीं था परंतु वह मोर की उपयुक्त
सहचारिणी थी। मोर की नीली गरदन के कारण उसका नाम नीलकंठ रखा गया था। मोरनी मोर की छाया थी इसलिए उसका नाम राधा रखा गया। नीलकंठ लेखिका के चिड़ियाघर का स्वामी बन गया था। जब कोई
पक्षी मोर की बात नहीं मानता था तब मोर उसे अपनी चोंच के प्रहार से दंड देता था। एक बार एक साँप ने खरगोश के बच्चे को मुँह में दबा लिया था| नीलकंठ ने उस साँप को अपने चोंच के प्रहार से टुकड़े कर दिए| खरगोश के बच्चे को रातभर अपने पंखों के नीचे रखकर गरमी देता रहा।

वसंत पर मेघों की सांवली छाया में अपने इंद्रधनुषी पंख फैलाकर नीलकंठ एक सहजात लय-ताल में नाचता रहता। लेखिका को नीलकंठ का नाचना बहुत अच्छा लगता। अनेक विदेशी महिलाओं ने उसकी मुद्राओं को अपने प्रति व्यक्त सम्मान समझकर उसे ‘परफेक्ट जेंटलमैन’ की उपाधि दे दी थी। नीलकंठ और राधा को वर्षा ऋतु बहुत अच्छी लगती थी। उन्हें बादलों के आने से पहले उनकी आहट सुनाई देने लगती थी। बादलों की गड़गड़ाहट, वर्षा की रिम-झिम, बिजली की चमक जितनी अधिक होती थी, नीलकंठ के नृत्य में उतनी ही तन्मयता और वेग बढ़ता जाता था। बरसात के समाप्त होने पर वह दाहिने |पंजे पर दाहिना पंख और बाएँ पर बायाँ पंख फैलाकर सुखाने लग जाता था। उन दोनों के प्रेम में एक दिन तीसरा भी आ गया।

एक दिन लेखिका को बड़े मियाँ की दुकान से एक घायल मोरनी सात रुपये में मिली। पंजों की मरहमपट्टी करने पर एक महीने में वह ठीक हो गई और डगमगाती हुई चलने लगी तो उसे जाली घर में पहुँचा दिया गया उसके दोनों पैर खराब हो गए थे, जिसके कारण वह डगमगाती हुई चलती थी। उसका नाम ‘कुब्जा’ रखा गया था| नीलकंठ और राधा को वह जब भी साथ देखती, उन्हें मारने दौड़ती। उसने चोंच से मार-मारकर राधा की कलगी और पंख नोच डाले थे। नीलकंठ उससे दूर भागता, पर वह उसके साथ रहना चाहती।

कुब्जा की किसी भी पक्षी से मित्रता नहीं थी। कुछ समय बाद राधा ने दो अंडे दिए। वह उन अंडों को अपने पंखों में छिपाए बैठी रहती थी। जैसे ही कुब्जा को राधा के अंडों के विषय में पता चला उसने अपनी चोंच के प्रहार से उसके अंडों को तोड़ दिया। नीलकंठ इससे बहुत दु:खी हो गया। लेखिका को आशा थी कि कुछ दिनों में सब | में मेल हो जाएगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ।

तीन-चार माह के बाद अचानक एक दिन सुबह लेखिका ने नीलकंठ को मरा हुआ पाया। न उसे कोई बीमारी हुई थी और न ही उसके शरीर पर चोट का कोई निशान था। लेखिका ने उसे अपनी शाल में लपेट कर संगम में प्रवाहित कर दिया। नीलकंठ के न रहने पर राधा कई दिन तक कोने में बैठी रह नीलकंठ का इंतज़ार करती रही। परंतु कुब्जा ने नीलकंठ के दिखाई न देने पर उसकी खोज आरंभ कर दी। एक दिन वह लेखिका की अल्सेशियन कुतिया कजली के सामने पड़ गई। कुब्जा ने उसे देखते ही चोंच से प्रहार कर दिया। कजली ने अपने स्वभाव के अनुरूप कुब्जा की गर्दन पर दो दाँत लगा दिए। कुब्जा का इलाज करवाया गया परंतु वह नहीं बची| राधा नीलकंठ की प्रतीक्षा कर रही है। बादलों को देखते ही वह अपनी केका ध्वनि से नीलकंठ को बुलाती है।

कठिन शब्दों के अर्थ –

• चिड़िमार – पक्षियों को पकड़ने वाला 

• बारहा – बार-बार

• शावक – बच्चा 

• अनुसरण – पीछे-पीछे चलना 

• आविर्भूत – प्रकट 

• नवागंतुक – नया-नया आया हुआ 

• मार्जारी – मादा बिल्ली 

• सघन – बहुत घनी

• बंकिम – टेढ़ा 

• नीलाभ – नीली आभा 

• ग्रीवा – गरदन 

• भंगिमा – मुद्रा 

• युति – चमक 

• उद्दीप्त होना – चमकना 

• श्याम – काली 

• मंथर – धीमी 

• चंचु-प्रहार – चोंच से चोट करना 

• आर्तक्रंदन – दर्द भरी आवाज़ में चीखना

• व्यथा – पीड़ा

• निश्चेष्ट – बेहोश होना 

• उष्णता – गर्मी 

• अधर – बीच में

• कार्तिकेय – शिव का पुत्र 

• नित्य – प्रतिदिन 

• विस्मयाभिभूत – हैरानी भरा 

• पैनी – तेज़ 

• हौले-हौले – धीरे-धीरे 

• पुष्पित – फूलों से 

• मंजरियाँ – नई कोंपलें

• स्तब्क – गुलदस्ता 

• सोपान – सीढ़ी 

• करुण-कथा – दुःख भरी कहानी 

• विरल – बहुत कम 

• पूँज – बाण की रस्सी 

• सारांश – निचोड़ 

• कुब्जा – कुबड़ी

• दुकेली – जो अकेली न हो

• मेघाच्छन्न – बादलों से ढका हुआ 

• केका – मोर की बोली 

• सुरम्य – मनोहर

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Chapter 14 खानपान की बदलती तस्वीर summary class 7th hindi

खानपान की बदलती तस्वीर सार वसंत भाग – 1 (Summary of Khanpan ki Badalti Tasvir Vasant)

इस निबंध के द्वारा लेखक श्री प्रयाग शुक्ल ने आधुनिक युग तथा पश्चिमी सभ्यता के कारण खान-पान की बदलती हुई तस्वीर को दर्शाया है। पिछले दस-पंद्रह वर्षों से हमारे देश की खान-पान की संस्कृति में बहुत बदलाव आया है। उन्होंने समूचे भारत को एकीकृत कर दिया है। दक्षिण भारतीय व्यंजन इडली, डोसा, सांभर उत्तर भारत में बड़े चाव से खाए जाते हैं वहीं उत्तर भारतीय व्यंजन रोटी, दाल, साग देश के सभी भागों में मिलते हैं। फ़ास्ट फूड (तुरंत भोजन) का चलन सब जगह बढ़ चुका है। ‘टू मिनिट नूडल्स’ के पैकेट बंद रूप से सभी लोग परिचित हो चुके हैं। अब स्थानीय व्यंजनों के साथ अन्य प्रदेशों के व्यंजन पकवान भी प्रायः हर क्षेत्र में उपलब्ध हैं। गुजरात का ढोकला और बंगाल के रसगुल्ले हर जगह दिखाई देते हैं। अंग्रेजों के समय के ब्रेड अब लाखों-करोड़ों घर में नाश्ते का रूप ले चुके हैं।

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खानपान की इस मिश्रित संस्कृति का सबसे सकरात्मक पक्ष यह है कि नई पीढ़ी को देश-विदेश के व्यंजनों को जानने का अवसर मिला है। अब कामकाजी महिलाएँ जल्दी तैयार होनेवाले व्यंजन को पसंद करती हैं| मध्यमवर्गीय जीवन में भोजन विविधता अपनी जगह बना चुकी है। खान-पान की नई संस्कृति में राष्ट्रीय एकता के नये बीज मिलते हैं।

लेकिन खानपान की मिश्रित संस्कृति से हमारे स्थानीय व्यंजनों की लोकप्रियता घट गई। अब यह केवल पाँच सितारा होटल में ‘एथनिक’ के नाम से प्रचलित है। मौसमी सब्जियों के व्यंजन भी अब नहीं मिलते हैं। गली-मुहल्लों में मिलने वाली आम वस्तुएँ केवल खास-दुकानों पर ही बिकती हैं। खान-पान की मिश्रित संस्कृति से भी हमें असली स्वाद नहीं मिलता। लेकिन इस मिश्रित संस्कृति का विकास अभी रुका नहीं है बल्कि यह और भी विकसित होती रहेगी|

कठिन शब्दों के अर्थ –

• खान-पान – खाना-पीना
• बड़ा – दक्षिण भारतीय एक व्यंजन
• मिश्रित – मिली-जुली
• सकारात्मक – अच्छा
• गृहिणियों में – घर में रहने वाली स्त्रियों में
• कामकाजी – काम करने वाली
• विस्तार – फैलाव
• आम – सामान्य
• खास – विशेष

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Chapter 13 एक तिनका summary class 7th hindi

एक तिनका पाठ सार

एक तिनका कविता में कवि ‘हरिऔध’ जी ने हमें कभी भी अहंकार ना करने की सलाह देते हुए कहते है कि एक दिन जब वे अभिमान से तथा अकड़ से भरे हुए अपने घर के छत के निचले हिस्से पर खड़े होकर घमंड से चुर होकर सोच रहे थे कि उनके जीवन में कोई दुख नहीं है। तभी एकदम से हवा से उड़कर एक तिनका उड़ता हुआ आया और उनकी आँख मे पड़ जाता है और उनका अपने जीवन में किसी दुःख के न होने का घमंड चूर – चूर हो गया।  आँख में तिनका चले जाने के कारण वे अपने घमंड पर लज्जित हो गए और चिन्तित हो कर तिलमीला उठते है, उन्हें बड़ी तकलीफ होती है।  तिनके के आँख  में जाने के कारण उनकी आँख लाल हो गई थी और उसमें दर्द होने लग गया था। उनकी तकलीफ को देखकर लोग उनकी मदद करने पहुँच जाते है। कपड़े की मूँठ से जैसे-तैसे तिनका उनकी आँख से निकला जा सका। तिनके के निकलने के साथ ही कवि के मन से घमंड भी निकल जाता है और उन्हें यह एहसास होता है कि मनुष्य को जीवन में कभी अहंकार नहीं करना चाहिए । कवि कहते हैं कि आँख में तिनका चले जाने से उन्हें बड़ी ही बेचैनी हुई। उनकी आँख लाल हो गई और दुखने लगी। इसके बाद उन्हें मन में एक ख़याल आया कि उन्हें घमंड नहीं करना चाहिए था, उनका घमंड तो एक मामूली तिनके ने ही तोड़ दिया। इन पंक्तियों के ज़रिए कवि हमें भी घमंड से दूर रहने का संदेश दे रहे हैं। चाहे इंसान कितना भी बड़ा हो जाए, उसका घमंड चकनाचूर हो ही जाता है। एक तिनका कविता में कवि हरिऔध जी ने हमें घमंड ना करने की प्रेरणा दी है।
 

 

एक तिनका पाठ व्याख्या

मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ ,

एक दिन जब था मुंडेर पर खड़ा।

आ अचानक दूर से उड़ता हुआ ,

एक तिनका आँख में मेरी पड़ा ।

शब्दार्थ –

घमंड – अभिमान , अकड़बाज़ , डींग मारने वाला

ऐंठ – अकड़ , गर्व , हठ

मुंडेर – छज्जा ( छत का निचला हिस्सा )

अचानक – एकदम से  

तिनका – सुखे घास का छोटा सा हिस्सा

व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते हैं कि एक दिन जब वे अभिमान से तथा अकड़ से भरे हुए अपने घर के छत के निचले हिस्से पर खड़े होकर घमंड से चुर होकर सोच रहे थे कि उनके जीवन में कोई दुख नहीं है। तभी एकदम से हवा से उड़कर एक तिनका उड़ता हुआ आया और उनकी आँख मे पड़ जाता है और उनका अपने जीवन में किसी दुःख के न होने का घमंड चूर – चूर हो गया। 

भावार्थ – जीवन में कभी किसी भी चीज पर घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि जीवन में आने वाली विभिन्न परिस्थितियों में छोटी से छोटी वस्तु या तुच्छ से तुच्छ व्यक्ति भी आपको हानि या दुःख पहुँचा सकता है।

मैं झिझक उठा , हुआ बेचैन – सा ,

लाल होकर आँख भी दुखने लगी।

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मूँठ देने लोग कपड़े की लगे ,

ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी।

शब्दार्थ –

झिझक – संकोच , किसी कार्य में लज्जा या भय आदि के कारण होने वाला संकोच , हिचक

बेचैन – चिन्तित , व्याकुल , उत्सुक , बेसब्र , उतावला , अधीर

मूँठ – किसी वस्तु को मट्ठी भर का आकार देना

ऐंठ – घमंड  

दबे पाँव आना / जाना (मुहावरा ) –  बिना आहट किए आना / जाना

व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते हैं कि आँख में तिनका चले जाने के कारण वे अपने घमंड पर लज्जित हो गए और चिन्तित हो उठे। तिनके के आँख  में जाने के कारण उनकी आँख लाल हो गई थी और उसमें दर्द होने लग गया था। लोग कपड़े को मट्ठी भर का आकार दे कर उनकी आँख से तिनका निकालने की कोशिश करने लगे। इस दौरान उनका अहंकार और घमंड उनके मन से बिना कोई आवाज़ किए कहीं दूर भाग गए।

भावार्थ – जीवन में घमंड ही आपके दुःख का सबसे बड़ा कारण होता है और घमंड के चले जाने पर ही आपको मन की शांति प्राप्त हो सकती है अन्यथा नहीं।

जब किसी ढब से निकल तिनका गया ,

तब ‘ समझ ’ ने यों मुझे ताने दिए ।

ऐंठता तू किसलिए इतना रहा ,

एक तिनका है बहुत तेरे लिए ।

शब्दार्थ –

ढब –  ढंग , तरीका , कोई कार्य करने की विशेष प्रक्रिया , युक्ति , उपाय

यों – इस तरह

ताने – व्यंग्यपूर्ण वाक्य , बुरा भला कहना , निन्दा करना

व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते हैं कि लोंगो ने जैसे – तैसे उपाय करके कवि की आँखों से तिनका निकाला। इस सारे वाक्य के बाद कवि के मन ने कवि  पर व्यंग्य कस्ते हुए कवि से कहा कि कवि किस बात का घमंड कर रहा था जबकि एक छोटे से तिनके ने ही उसको इतना दुःख दे दिया अर्थात कवि के मन में यह ख़याल आया कि उन्हें घमंड नहीं करना चाहिए था, उनका घमंड तो एक मामूली तिनके ने ही चूर कर दिया।

भावार्थ – व्यक्ति कितना भी ताकतवर हो जाए , कितना भी धनी हो जाए , उसे घमंड नहीं करना चाहिए। जिंदगी में कभी भी अपने किसी हुनर पर घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि पत्थर जब पानी में गिरता है तो अपने ही वजन से डूब जाता है।

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Chapter 12 कंचा summary class 7th hindi

कंचा सार वसंत भाग – 1 (Summary of Kancha Vasant)

इस कहानी में लेखक श्री टी० पद्मनाभन ने बालजीवन का सुंदर चित्रण किया है| कैसे एक बालक अपने खेलने के सामान बाकी अन्य चीज़ों से ऊपर रखता है और किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता| अप्पू हाथ में बस्ता लटकाए नीम के पेड़ों की घनी छाया से गुजर रहा था। वह सियार, कौए की कहानी का मन-ही-मन मज़ा ले रहा था। वह चलते-चलते एक दुकान पर पहुँचा जहाँ अलमारी में काँच के ज़ार रखे थे। कंचे सफ़ेद गोल बड़े आँवले जैसे दिख रहे थे। वह कंचे को देखते-दखते उसमें खो गया।

वह कंचे लेना चाहता था लेकिन स्कूल की घंटी सुनते ही दौड़ पड़ा। स्कूल में देरी से आने पर वह सबसे पीछे बैठा। उसके सहपाठी रामन, मल्लिका, अम्मू आदि आगे बैठे थे। जार्ज जो उसका सहपाठी था, आज बुखार होने के कारण स्कूल नहीं आया था। वह उसके बारे में सोचने लगा क्योंकि वह कंचे का अच्छा खिलाड़ी था। मास्टर साहब उस समय रेलगाड़ी के बारे में पढ़ा रहा था परंतु अप्पू का ध्यान पढ़ाई में नहीं था। वह अभी भी कंचे के बारे में सोच रहा था। इतने में ही उसे एक चॉक का टुकड़ा आ लगा और वह खड़ा हो गया। मास्टर जी उसके पास आकर डाँटने लगे। मास्टर जी उसका चेहरा देखकर समझ गए कि इसका ध्यान कहीं और था। उन्होंने अप्पू से प्रश्न पूछा जिसका जवाब वह नहीं दे पाया। मास्टर जी ने उसे बेंच पर खड़ा कर दिया। सभी बच्चे उसकी हँसी उड़ा रहे थे। वह रोने लगा। बेंच पर खड़ा अप्पू अभी भी कंचों के बारे में ही सोच रहा था। वह सोच रहा था कि जॉर्ज के आने पर कंचे खेलेगा। जॉर्ज के साथ वह दुकानदार के पास जाएगा।

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मास्टर जी अपना घंटा समाप्त कर चले गए। अप्पू अब भी यही सोच रहा था कि कंचे कैसे लिए जाएँ। मास्टर जी ने सब बच्चों को फीस भरने के लिए कहा। सब बच्चे अपनी | फ़ीस भरने क्लर्क के पास चले गए। मास्टरजी के कहने पर अप्पू भी बेंच से उतरकर फीस भरने गया। बच्चे एक-एक करके फीस भरने लगे। ज्यादातर बच्चों ने फ़ीस भर दिया लेकिन अप्पू अभी भी कंचे के बारे में सोच रहा था। घंटी बजने पर सभी बच्चे कक्षा में आ गए।

शाम को वह इधर-उधर घूमता रहा। मोड़ पर उसी दुकान पर पहुँचकर वह शीशे के जार में रखे कंचे देखने लगा। उसने अपनी फ़ीस के एक रुपया पचास पैसे के उस दुकानदार से कंचे खरीद लिए। जब वह कंचे लेकर घर आ रहा था तो रास्ते में उसे देखने के लिए जैसे ही कागज़ की पुड़िया खोला तो सारे कंचे बिखर गए। अब वह उन्हें चुनने लगा। अपनी किताबें बाहर निकाल वह कंचे बस्ते में डालने लगा। वह उसे चुनने लगा तभी एक गाड़ी आई और वहाँ रुक गई। गाड़ी की ड्राइवर को अप्पू पर बहुत गुस्सा आया पर उसे खुश देख वह मुसकराकर चला गया। जब अप्पू घर पहुँचा और माँ को कंचा दिखाया तो माँ इतने सारे कंचे देखकर हैरान हो गई| अप्पू ने बताया कि वह फ़ीस के पैसों से ये कंचे खरीद लाया है। माँ ने कहा कि अब खेलोगे किसके साथ? यह कहकर माँ रोने लगी क्योंकि उसकी एक बहन थी मुन्नी, जो अब दुनिया में नहीं रही थी। तब अप्पू ने माँ से पूछा कि आपको कंचे अच्छे नहीं लगे। माँ उसकी भावनाओं को समझ गई और हँसकर बोली बहुत अच्छे हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ –

• केंद्रित – स्थिर 

• छाँव – छाया

• नौ दो ग्यारह होना – भाग जाना

• जार – काँच के डिब्बे 

• कतार – पंक्ति

• आकृष्ट – आकर्षित

• टुकर-टुकर ताकना – टकटकी लगाकर देखना

• निषेध में – मना करना 

• थामे – पकड़े

• मात खाना – हार जाना

• आँखों में चिंगारियाँ सुलगना – बहुत अधिक क्रोधित होना

• सुबकना – धीमी आवाज में रोना

• चिकोटी – चुटकी

• सींखचे – लकड़ी के पट्टे

•  रकम – पैसे

• पोटली – थैली

• गुस्सा हवा होना – गुस्सा शांत हो जाना

• काहे – क्यों

NCERT Solutions of कंचा

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Chapter 11 रहीम की दोहे summary class 7th  hindi

रहीम के दोहे सार वसंत भाग – 1 (Summary of Rahim ke Dohe Vasant)

कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।

बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत।।

अर्थ – रहीम कहते हैं कि जब हमारे पास धन-संपत्ति होती है तो हमारे बहुत से मित्र और संबंधी बन जाते हैं परन्तु जो व्यक्ति संकट के समय सहायता करता है वही सच्चा मित्र होता है।

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह॥

अर्थ – इस दोहे में कवि ने जल के प्रति मछली के गहरे प्रेम के बारे में बताया है। मछली जल से प्रेम करती है पर जल मछली से प्रेम नहीं करता। रहीम कहते हैं कि जब मछली पकड़ने के लिए जाल को जल में डाला जाता है तो मछलियों के प्रति मोह को छोड़कर जल शीघ्र ही जाल से बह जाता है लेकिन मछलियाँ जल के प्रति अपने प्रेम को नहीं खत्म कर पातीं। वे जल से अलग होते ही तड़प-तड़प कर मर जाती हैं।

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियत न पान। 
कहि रहीम परकाज हित, संपति-संचहि सुजान॥

अर्थ – वे कहते हैं कि जिस प्रकार वृक्ष स्वयं फल नहीं खाते हैं, सरोवर स्वयं पानी नहीं पीते ठीक उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति धन का संचय खुद के लिए न करके परोपकार के लिए करते हैं।

थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात।

धनी पुरुष निर्धन भए, करें पाछिली बात॥

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अर्थ – इस दोहे में कवि ने क्वार मास के बादलों का वर्णन किया है। रहीम कहते हैं कि क्वार मास में आकाश में बिना पानी के खाली बादल केवल गरजते हैं बरसते नहीं ठीक उसी प्रकार धनी पुरुष गरीब हो जाने पर भी अपने सुख के दिनों की बातें याद करके घमंड भरी बातें बोलते रहते हैं।

धरती की-सी रीत है, सीत घाम औ मेह। 

जैसी परे सो सहि रहे, त्यों रहीम यह देह॥

अर्थ – रहीम कहते हैं कि शरीर की झेलने की रीति धरती के समान होनी चाहिए। जिस प्रकार धरती सर्दी, गर्मी और वर्षा की विपरीत स्थितियों को सहन कर लेती है उसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी ऐसा होना चाहिए जो जीवन में आने वाले सुख-दुःख की जैसी भी परिस्थितियाँ हों, उन्हें सहन कर ले।

कठिन शब्दों के अर्थ –

• संपति – धन

• सगे-संगे – संबंधी

• बनत – बनना

• बहुत – अनेक

• रीत – प्रकार

• विपत्ति – संकट

• कसौटी – परखने का पत्थर

• जे – जो

• कसे – घिसने पर

• तेई – वही

• साँचे – सच्चे

• मति – मित्र

• परे – पड़ने पर

• जात बहि – बाहर निकलना

• तजि – त्यागना

• मीनन – मछलियाँ

• मोह – लगाव

• नीर – पानी

• तऊ – तब भी

• छाँड़ति – छोड़ती है

• छोह – मोह

• तरुवर – पेड़

• नहिं – नहीं

• सरवर – तालाब

• पियत – पीना

• पान – पानी

• परकाज – दूसरों के कार्य

• हित – भलाई

• सचहिं – संचय करना

• सुजान – सज्जन व्यक्ति

• थोथे – जलरहित

• बादर – बादल

• घहरात – गड़गड़ाना

• भए – होना

• पाछिली – पिछली

• रीत – व्यवहार

• सीत – ठंड

• घाम – धूप

• औ – और

• मेह – बारिश

• जैसी परे – जैसी परिस्थिति

• सो – वह

• सहि – सहना

• देह – शरीर

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Chapter 10 अपूर्व अनुभव summary class 7th hindi

अपूर्व अनुभव सार वसंत भाग – 1 (Summary of Apurv Anubhav Vasant)

यह कहानी मूलतः जापानी भाषा में लिखा गया है जिसमें तोमोए में पढ़ने वाले तोत्तो-चान तथा यासुकी-चान नामक दो जापानी बच्चों के संघर्ष को दिखाया गया है। यहाँ हरेक बच्चा एक-एक पेड़ को अपने खुद के चढ़ने का पेड़ मानता था और वह उनकी निजी संपत्ति होती थी। तोत्तो-चान यासुकी-चान को अपने पेड़ पर चढ़ने का न्योता देती है। यासुकी-चान को पोलियो हो गया था, जिस कारण वह पेड़ पर चढ़ नहीं सकता था|

तोत्तो-चान का पेड़ मैदान के बाहरी हिस्से में कुहोन्बुत्सु जाने वाली सड़क के पास था। उस बड़े पेड़ पर चढ़ने पर पैर फिसलने लगते थे| ठीक से चढ़ने पर ज़मीन से छह फुट की ऊँचाई पर स्थित द्विशाखा तक पहुँचा जा सकता था। वह झूले जैसी आरामदेह जगह थी। तोत्तो-चान अक्सर खाने की छुट्टी के समय या स्कूल के बाद उस पर चढ़ी मिलती। वहाँ से वह दूर आकाश को या सड़क पर आने-जाने लोगों को देखती।

तोत्तो-चान यासुकी-चान के साथ मिलकर उसे पेड़ पर चढ़ाने की योजना बनाती है। वे अपने घर में माता-पिता को भी इस बारे में कुछ नहीं बताते। तोत्तो-चान अपनी माँ से झूठ बोलती है कि वह यासुकी-चान के घर जा रही है। वह यासुकी-चान को स्कूल में मिलती है और उसे लेकर अपने पेड़ के पास पहुँचती है। इस पेड़ पर वह कई बार चढ़ चुकी थी। तोत्तो-चान चाहती थी कि अब यासुकी-चान भी उस पेड़ पर चढ़े। यासुकी-चान भी पेड़ पर चढ़ने के विचार से बहुत उत्साहित था।

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तोत्तो-चान उसे अपने पेड़ के पास ले गई। वहाँ वह चौकीदार के यहाँ से एक सीढ़ी उठाकर ले आई। तोत्तो-चान चौकीदार के छप्पर से एक सीढ़ी घसीटकर पेड़ के तने के सहारे लगा देती है। वह यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने के लिए कहती है। यासुकी-चान बिना सहारे के एक सीढ़ी भी नहीं चढ़ पाता। वह निराश हो जाता है परन्तु तोत्तो-चान हार नहीं मानती और फिर चौकीदार के छप्पर की ओर दौड़कर वहाँ से तिपाई सीढ़ी घसीट लाती है| पसीने से लथपथ तिपाई सीढ़ी को द्विशाखा से लगा देती है। तोत्तो-चान उसको एकएक सीढ़ी पर चढ़ाकर उसे पूरा सहारा दे रही थी। यासुकी-चान भी पूरी शक्ति लगाकर पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था। आखिरकार वह पेड़ के पास तक पहुँच ही जाता है। तभी तोत्तो-चान को लगता है कि उनकी सारी मेहनत बेकार हो गई है चूँकि यासुकी-चान पेड़ के पास तो पहुँच गया था किंतु पेड़ पर नहीं चढ़ पा रहा था।

तोत्तो-चान का रोने का मन होने लगा लेकिन वह रोती नहीं है| तोत्तो-चान यासुकी-चान को पेड़ का सहारा लेकर लेटने के लिए कहती है। वह उसे पेड़ की ओर पूरी शक्ति से खींचने लगती है। यह एक खतरे से भरा काम था। यासुकी-चान को तोत्तो-चान पर पूरा विश्वास था। अंत में तोत्तो-चान यासुकी-चान को अपने पेड़ पर खींचकर लाने में सफल हो ही जाती है। पसीने से लथपथ तोत्तो-चान सम्मान से यासुकी-चान का अपने पेड़ पर स्वागत करती है। वे दोनों काफ़ी देर तक पेड़ पर बैठकर इधर-उधर की बातें करते रहे। यासुकी-चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह पहला और अंतिम अवसर था।

कठिन शब्दों के अर्थ –

• विशाखा – दो शाखाएँ

• आरामदेह – आराम देने वाली 

• आमंत्रित – बुलाया जाना 

• सूना – खाली, सुनसान 

• उत्तेजित – जोश में आना 

• ठिठियाकर – खिलखिलाकर

• धकियाना – धक्का देना 

• छप्पर – झोंपड़ी के ऊपर की छत

• तिपाई – तीन पैरों वाली 

• तरबतर – भीगी हुई 

• धरने में – रखने में 

• हुरै – जीत की खुशी व्यक्त करने वाला शब्द 

• थामना – पकड़ना 

• जोखिम – खतरा

• झिझकता-हुआ – संकोच करता हुआ 

• सूमो-कुश्ती – जापानी पहलवानों की कुश्ती

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Chapter 9 चिड़िया की बच्ची  summary class 7th hindi

चिड़िया की बच्ची सार वसंत भाग – 1 (Summary of Chidiya ki Bachchi Vasant)

इस कहानी में लेखक श्री जैनेंद्र कुमार ने आज़ादी की महत्ता और मनुष्य के स्वार्थी स्वभाव का वर्णन किया है| माधव दास बहुत ही अमीर व्यक्ति हैं। उन्होंने संगमरमर की आलीशान कोठी बनवाई है। उसके सामने सुंदर बगीचा लगवाया है जिसमें फ़व्वारा भी लगा था| शाम के समय कोठी के चबूतरे पर तख्त डलवाकर मसनद के सहारे बैठकर बगीचे की सुंदरता का आनंद लिया करते थे। शाम के समय कोठी के चबूतरे पर तख्त डलवाकर मसनद के सहारे बैठकर बगीचे की सुंदरता का आनंद लिया करते थे। परन्तु उन्हें कुछ खाली-सा लगता था| 

एक शाम एक चिड़िया गुलाब की टहनी पर आकर बैठ गई थी। उसकी गर्दन लाल थी और धीरे-धीरे गुलाबी होते हुए किनारों पर नील रंग थे। पंख बहुत चमकदार थे। उसके शरीर पर विचित्र चित्रकारी थी। माधवदास को वह चिड़िया बहुत सुंदर लगी। चिड़िया बगीचे से खुश होकर डालों पर थिरक रही थी| थोड़ी देर तक उसे देखते रहने के बाद उन्होंने चिड़िया से कहा कि यह बगीचा उन्होंने उसी के लिये बनवाया है। चिड़िया माधवदास की बात सुनकर संकोच में पड़ गई । उसने कहा कि वह तो यहाँ केवल साँस लेने के लिए रुक गई थी। माधवदास ने उससे कहा कि यह बगीचा मेरा है और वह यहाँ रह सकती थी। माधवदास की बातें सुनकर चिड़िया थिरकना भूल गई। माधवदास ने उस चिड़िया को उसके सूने महल में रुककर चहचहाने के लिए कहा। चिड़िया बोली कि वह अपने घर माँ के पास जा रही थी। वह अपने घर से धूप खाने, हवा से खेलने और फूलों से बातें करने निकली थी।

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माधवदास ने रुकने के बदले चिड़िया को सोने का पिंजरा बनवाने की बात की। उसने चिड़िया को खाने के लिए मोती देने को कहा। चिड़िया उसकी बात सुन कर डर गयी| वह कहती है माँ से अच्छी कोई चीज़ नहीं लगती है। उसके पास माँ का बनाया हुआ घोंसला है, खाना है| वह अपने घर वापस जा रही है। उसकी माँ उसका इंतज़ार कर रही होगी। माधवदास उसे रोकने के तरह-तरह के लालच देता है परन्तु वह नहीं मानती| माधवदास उसे कहते हैं कि वे उसके रहने के लिए सोने का पिंजरा बनवा देंगे, महल में मोतियों के झालर बनवा देंगें। जिस कटोरी में वह पानी पिएगी वह भी सोने की होगी।

इसी बीच माधव दास एक बटन दबा देते हैं जिसकी आवाज़ सुनते ही कोठी के अन्दर से एक नौकर दौड़ा आता है। सेठ माधवदास उसे इशारे करके नौकर से चिड़िया को पकड़ने के लिए कहता है। सेठ उसे जान-बूझकर रोके रखने के लिए उसके भाई-बहनों के बारे में पूछता है। चिड़िया उसे बताती है कि उसकी दो बहन और एक भाई है। चिड़िया को अपने घर जाने की जल्दी थी चूँकि कुछ ही देर में रात होने वाली थी|

अचानक चिड़िया को अपने शरीर पर कठोर हाथों का स्पर्श महसूस होता है। वह चीख मारती हुई नौकर के हाथ से फिसल जाती है। वह जल्दी-जल्दी उड़ती हुई अपनी माँ के पास जा पहुँची। वह अपनी माँ की गोद में दुबक कर जोर-जोर से रोना शुरू कर देती है। माँ ने उससे उसके रोने का कारण पूछती है परन्तु यह कुछ नहीं बोल पाती। वह अपनी माँ की छाती से इस तरह चिपक जाती है जैसे कभी अलग नहीं होगी।

कठिन शब्दों के अर्थ –

• सुहावना – सुंदर

• व्यसन – दोष

• अभिरुचि – पसंद

• रकाबियाँ – तश्तरी

• मसनद – बड़ा गोल तकिया

• तृप्ति – पूर्ण संतोष

• विनोद-चर्चा – हँसी मजाक

• स्याह – गहरे नीले

• चित्र-विचित्र – अजीबोगरीब

• बेखटके – बिना किसी डर के

• असावधान – निश्चिंत

• संकोच – हिचकिचाहट

• सकुचाना – घबराना

• बोध होना – पता चलना

• चित्त – मन

• प्रफुल्लित – प्रसन्न

• बहार – हरियाली

• बहुतेरी – बहुत सारी

• बाट देखना – प्रतीक्षा करना

• महामान्य – महान व्यक्ति

• निरी – बिल्कुल

• अनजान – नासमझ 

• तृष्णा – प्यास

• भाँति-भाँति के – भिन्न-भिन्न प्रकार के

• उजेला – प्रकाश

• चौकन्नी – सावधान रहना 

• हाल – तबीयत

• राहू – रास्ता

• चिचियाना – डर से चिल्लाना

• सुबकना – हिचकी लेकर रोना

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