पाठ का सार
लंका विजय के बाद विभीषण चाहते थे कि राम कुछ दिन लंका में ही रुक जाएं क्योंकि राम ने लंका देखी नहीं थी। परंतु राम वहां जरा सा भी समय नष्ट नहीं करना चाहते थे क्योंकि उनके वनवास की अवधि पूरी हो चुकी थी और भरत ने प्रतिज्ञा की थी कि अगर राम विलंब से लौटे तो वह अपने प्राण त्याग देंगे। इसके बाद सभी विभीषण द्वारा दिए गए पुष्पक विमान में बैठकर लंका के लिए उत्तर दिशा की ओर निकल पड़े। विमान के उड़ जाने के बाद वानर सेना भी किष्किंधा की ओर चल पड़ी । विमान में राम सीता के साथ बैठे थे और मार्ग में आने वाले प्रमुख स्थानों का विवरण कर रहे थे। पहले रणभूमि और उसके बाद नल नील द्वारा बनाया गया सेतुबंध, उसके बाद किष्किंधा भी रास्ते में ही था। विमान किष्किंधा उतरा, सुग्रीव की रानियों तारा और रूपा को लेने।
उसके बाद ऋषि मुख पर्वत और उसके बाद पंपा सरोवर को पार करने के बाद उनकी बनाई गई पर्णकुटी जो पंचवटी में पडती थी जो गोदावरी नदी के किनारे पर थी। उसके बाद गंगा यमुना के संगम पर ऋषि भारद्वाज का आश्रम था वहां विमान उतारा गया और रात वंही व्यतीत की गई। वहां से उन्होंने हनुमान को संदेश देकर भरत के पास भेजा। भरत राम के आगमन की सूचना सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। सारे नगर को सजाया गया और राम के आगमन की भव्य तैयारियां शुरू कर दी गई। उसके बाद अगली सुबह जब राम ने वहां से प्रस्थान किया तो उनका विमान नंदीग्राम उतरा जहां पर भरत उनका इंतजार कर रहा था। उसके बाद राम ने पुष्पक विमान को वापस कुबेर के पास भेज दिया जिसको रावण ने बलपूर्वक छीन लिया था। उसके बाद सभी राज महल पहुंचे जहां पर मुनि वशिष्ट ने अगले दिन राम का राज्याभिषेक किया। राम के द्वारा सभी को उपहार दिए गए उसके बाद विभीषण और सुग्रीव अपने-अपने राज्य को लौट गए परंतु हनुमान राम के साथ अयोध्या में ही रुक गए। राम ने लंबे समय तक अयोध्या पर राज किया। उनके राज में सब सुखी थे और किसी में कोई भेदभाव नहीं था।
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