साँस साँस में बाँस निबंध में एलेक्स एम जॉर्ज जी ने बांस की विशेषता का बड़े विस्तार से वर्णन किया है।उन्होंने निबंध के प्रारम्भ में एक जादूगर चंगकीचंगलनबा बारे में बताया है।जिसने अपने मरने पर कहा था कि यदि मेरी कब्र को छठे दिन खोदेगो ,तो वहां कुछ नया पाओगे। लोगों ने छठे दिन उसकी कब्र खोदी ,तो वहां बांस की टोकरियों के कई डिजाईन मिलें।लोगों ने इसकी नक़ल करके सीखा ,साथ ही कुछ नए डिजायन भी इजाद किये।
बाँस पूरे भारत में होता है। भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में बहुतायत उगता है। अतः वहाँ बांस की बहुत सारी चीज़ें बनाने की खूब प्रचलन है। मनुष्य तभी से बाँस की चीज़ें बना रहा है ,जब से वह कलात्मक चीज़ें बना रहा है।उसने शायद बया चिड़ियाँ के घोसलें से बुनावट की तरकीब सोची होगी।बांस की खपच्चियों से बहुत सारी चीज़ें बनायीं जाती है।जैसे – चटाईयां ,टोपियाँ ,टोकरियाँ ,बर्तन ,बैल गाड़ियाँ ,फर्नीचर,सजावटी समान ,जाल ,मकान ,पुल और खिलौने आदि।असम में बाँस के खपच्चियों से मछली पकड़ने का जाल बनाया जाता है।साथ ही चाय बगानों में काम करने वालों लोगों के लिए टोपियाँ और टोकरियाँ बनायीं जाती है।
बरसात के समय लोग बाँसों को इकठ्ठा करने लगते हैं।आमतौर पर ३ वर्ष की आयु वालों बाँसों को काटा जाता है। बाँस से शाखाओं और पत्तियों को अलग कर लिया जाता है।दाओ से इन्हें छीलकर खपच्चियों तैयार कर ली जाती है। खपच्चियों की लम्बाई अलग अलग होती है।टोकरी या आसन बनाने के लिए अलग अलग लम्बाई की खपच्चियाँ काटी जाती है। इनकी चौड़ाई एक इंच से ज्यादा नहीं होती है। खपच्चियाँ चीरने के लिए हुनर चाहिए। इस हुनर को सीखने के लिए बहुत समय चाहिए। टोकरी बनाने के लिए खपच्चियों को चिकना बनाया जाता है।इसके बाद गुड़हल ,इमली की पत्तियों से रंगा जाता है।बांस की बुनाई साधारणत: ही होती है। इसे आड़ा – तिरछा रखा जाता है।चैक का डिजायन बनता है।टोकरी के सिरों पर खपच्चियों को या तो चोटी की गूंथ लिया जाता है।या कटे सिरों को नीचे की ओर मोड़कर फंसा दिया जाता है।इस प्रकार टोकरी तैयार हो जाती है।इसे बाजार में बेचा जा सकता है या फिर घर के कामों में प्रयोग किया जा सकता है।
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