हिन्दी Notes Class 11 Hindi Chapter 18 हे भूख! मत मचल
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. हो भूख ! मत मचल
प्यास, तड़प मत हे
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
मद ! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
अो चराचर ! मत चूक अवसर
आई हूँ सदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का
शब्दार्थ
मचल-पाने की जिद। तड़प-छटपटाना। पाश-बंधन। ढील-ढीला करना। मद-नशा। मदहोश-नशे में उन्मत या होश खो बैठना। चराचर-जड़ व चेतन। चूक-छोड़ना, भूलना। चन्नमल्लिकार्जुन-शिव।
प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित ‘वचन’ से उद्धृत है। जो शैव आंदोलन से जुड़ी कर्नाटक की प्रसिद्ध कवयित्री अक्क महादेवी द्वारा रचित है। वे शिव की अनन्य भक्त थीं। इस पद में कवयित्री इंद्रियों पर नियंत्रण का संदेश देती है।
व्याख्या-इसमें अक्क महादेवी इंद्रियों से आग्रह करती हैं। वे भूख से कहती हैं कि तू मचलकर मुझे मत सता। सांसारिक प्यास को कहती हैं कि तू मन में और पाने की इच्छा मत जगा। हे नींद ! तू मानव को सताना छोड़ दे, क्योंकि नींद से उत्पन्न आलस्य के कारण वह प्रभु-भक्ति को भूल जाता है। हे क्रोध! तू उथल-पुथल मत मचा, क्योंकि तेरे कारण मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है। वह मोह को कहती हैं कि वह अपने बंधन ढीले कर दे। तेरे कारण मनुष्य दूसरे का अहित करने की सोचता है। हे लोभ! तू मानव को ललचाना छोड़ दे। हे अहंकार! तू मनुष्य को अधिक पागल न बना। ईष्य मनुष्य को जलाना छोड़ दे। वे सृष्टि के जड़-चेतन जगत् को संबोधित करते हुए कहती हैं कि तुम्हारे पास शिव-भक्ति का जो अवसर है, उससे चूकना मत, क्योंकि मैं शिव का संदेश लेकर तुम्हारे पास आई हैं। चराचर को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।
विशेष-
1. प्रभु-भक्ति के लिए इंद्रिय व भाव नियंत्रण पर बल दिया गया है।
2. सभी भावों व वृत्तियों को मानवीय पात्रों के समान प्रस्तुत किया गया है, अत: मानवीकरण अलंकार है।
3. अनुप्रास अलंकार की छटा है।
4. संबोधन शैली है।
5. शांत रस का परिपाक है।
6. खड़ी बोली है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. कवयित्री ने किन-किन को संबोधित किया है?
2. कवयित्री क्या प्रार्थना करती है तथा क्यों?
3. कवयित्री चराचर जगत् को क्या प्रेरणा देती है?
4. कवयित्री किसकी भक्त है? अपने आराध्य को प्राप्त करने का उसने क्या उपाय बताया है?
उत्तर –
1. कवयित्री ने भूख, प्यास, नींद, मोह, ईष्या, मद और चराचर को संबोधित किया है।
2. कवयित्री इंद्रियों व भावों से प्रार्थना करती है कि वे उसे सांसारिक कष्ट न दें, क्योंकि इससे उसकी भक्ति बाधित होती है।
3. कवयित्री चराचर जगत् को प्रेरणा देती है कि वे इस अवसर को न चूकें तथा सांसारिक मोह को छोड़कर प्रभु की भक्ति करें। वह भगवान शिव का संदेश लेकर आई है।
4. कवयित्री चन्नमल्लिकार्जुन अर्थात् शिव की भक्त है। उसने आराध्य को प्राप्त करने का यह उपाय बताया है कि मनुष्य की अपनी इंद्रियों को वश में करने से आराध्य (शिव) की प्राप्ति की जा सकती है।
2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि में झूकूं उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।
शब्दार्थ
जूही-एक सुगधित फूल। भीख-भिक्षा। हाथ बढ़ाना-सहायता करना। झपटकर-खींचकर।
प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित ‘वचन’ से उद्धृत है। जो शैव आदोलन से जुड़ी कर्नाटक की प्रसिद्ध कवयित्री अक्क महादेवी द्वारा रचित है। वे शिव की अनन्य भक्त थीं। इस पद में कवयित्री ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव व्यक्त करती है। वह अपने अहंकार को नष्ट करके ईश्वर में समा जाना चाहती है।
व्याख्या-कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती है कि हे जूही के फूल को समान कोमल व परोपकारी ईश्वर! आप मुझसे ऐसे-ऐसे कार्य करवाइए जिससे मेरा अह भाव नष्ट हो जाए। आप ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कीजिए जिससे मुझे भीख माँगनी पड़े। मेरे पास कोई साधन न रहे। आप ऐसा कुछ कीजिए कि मैं पारिवारिक मोह से दूर हो जाऊँ। घर का मोह सांसारिक चक्र में उलझने का सबसे बड़ा कारण है। घर के भूलने पर ईश्वर का घर ही लक्ष्य बन जाता है। वह आगे कहती है कि जब वह भीख माँगने के लिए झोली फैलाए तो उसे कोई भीख नहीं दे। ईश्वर ऐसा कुछ करे कि उसे भीख भी नहीं मिले। यदि कोई उसे कुछ देने के लिए हाथ बढ़ाए तो वह नीचे गिर जाए। इस प्रकार वह सहायता भी व्यर्थ हो जाए। उस गिरे हुए पदार्थ को वह उठाने के लिए झुके तो कोई कुत्ता उससे झपटकर छीनकर ले जाए। कवयित्री त्याग की पराकाष्ठा को प्राप्त करना चाहती है। वह मान-अपमान के दायरे से बाहर निकलकर ईश्वर में विलीन होना चाहती है।
विशेष-
1. ईश्वर के प्रति समर्पण भाव को व्यक्त किया गया है।
2. जूही के फूल जैसे ईश्वर’ में उपमा अलंकार है।
3. अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
4. सहज एवं सरल भाषा है।
5. ‘घर’ सांसारिक मोह-माया का प्रतीक है।
6. ‘कुत्ता’ सांसारिक जीवन का परिचायक है।
7. संवादात्मक शैली है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. कवयित्री आराध्य से क्या प्रार्थना करती है?
2. ‘अपने घर भूलने’ से क्या आशय है?
3. पहले भीख और फिर भोजन न मिलने की कामना क्यों की गई है?
4. ईश्वर को जूही के फूल की उपमा क्यों दी गई है?
उत्तर –
1. कवयित्री आराध्य से प्रार्थना करती है कि वह ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करे जिससे संसार से उसका लगाव समाप्त हो जाए।
2. ‘अपना घर भूलने’ से आशय है-गृहस्थी के सांसारिक झंझटों को भूलना, जिसे संसार को लोग सच मानने लगते हैं।
3. भीख तभी माँगी जा सकती है जब मनुष्य अपने अहभाव को नष्ट कर देता है और भोजन न मिलने पर मनुष्य वैराग्य की तरफ जाता है। इसलिए कवयित्री ने पहले भीख और फिर भोजन न मिलने की कामना की है।
4. ईश्वर को जूही के फूल की उपमा इसलिए दी गई है कि ईश्वर भी जूही के फूल के समान लोगों को आनंद देता है, उनका कल्याण करता है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न
1. हो भूख ! मत मचल
प्यास, तड़प मत हे
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
मद ! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
अो चराचर ! मत चूक अवसर
आई हूँ सदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का
प्रश्न
1. इस पद का भाव स्पष्ट करें।
2. शिल्प व भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर –
1. इस पद में, कवयित्री ने इंद्रियों व भावों पर नियंत्रण रखकर ईश्वर-भक्ति में लीन होने की प्रेरणा दी है। मनुष्य को भूख, प्यास, नींद, क्रोध, मोह, लोभ, ईष्या, अहंकार आदि प्रवृत्तियाँ सांसारिक चक्र में उलझा देती हैं। इस कारण वह ईश्वर-भक्ति के मार्ग को भूल जाता है।
2. यह पद कन्नड़ भाषा में रचा गया है। इसका यहाँ अनुवाद है। इस पद में संबोधन शैली का प्रयोग किया है। इंद्रियों व भावों को मानवीय तरीके से संबोधित किया गया है। अत: मानवीकरण अलंकार है। ‘मत मचल’ ‘मचा मत’ में अनुप्रास अलंकार है। प्रसाद गुण है। शैली में उपदेशात्मकता है। खड़ी बोली के माध्यम से सहज अभिव्यक्ति है।
2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि में झूकूं उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।
प्रश्न
1. इस पद का भाव स्पष्ट करें।
2. शिल्प–सौदंर्य बताइए।
उत्तर –
1. इस वचन में, कवयित्री ने अपने आराध्य के प्रति पूर्णत: समर्पित भाव को व्यक्त किया है। वह अपने आराध्य के लिए तमाम भौतिक साधनों को त्यागना चाहती है वह अपने अहकार को खत्म करके ईश्वर की प्राप्ति करना चाहती है। कवयित्री निस्पृह जीवन जीने की कामना रखती है।
2. कवयित्री ने ईश्वर की तुलना जूही के फूल से की है। अत: उपमा अलंकार है। ‘मैंगवाओ मुझसे’ व ‘कोई कुत्ता’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘अपना घर’ यहाँ अह भाव का परिचायक है। सुंदर बिंब योजना है, जैसे भीख न मिलने, झोली फैलाने, भीख नीचे गिरने, कुत्ते द्वारा झपटना आदि। खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है। संवादात्मक शैली है। शांत रस का परिपाक है।
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