The Tale of Melon City Summary In English
Once there was a just and gentle king who ruled over a country. The king announced publicly that a curved structure should be built which should extend across the major public road in a victorious manner to benefit the beholders spiritually.
Obeying the king’s orders, the workmen went there and built the arch. The king rode down the thoroughfare to enlighten the spectators. Since the arch was built too low, the king lost his crown under the arch. The eyebrows of the gentle king were knit in displeasure. He called it a disgrace and declared that the chief of builders would be hanged.
The rope and gallows were arranged and the chief of builders was led out. As he passed the king, he shouted, “O king, it was the workmen’s fault.” The king stopped the proceedings and Ordered that all the workmen be hanged instead. The workmen looked surprised and said to the king that he had not realized that the bricks were made of the wrong size.
The king ordered that the masons be called there. The masons were brought there. They stood trembling with fear. They now blamed the architect. The architect was called. The king ordered that the architect was to be hanged. The architect reminded the king that he had made certain improvements in the plans when he showed them to the king. On hearing this, the king became very angry and was unable to act calmly.
Being a just and gentle king, he observed that it was a very difficult business and he needed some advice. He ordered that the wisest man in the country be brought there. The wisest man was found and brought to the Royal Court. He was so old that he could not walk or see. So he had to be carried there. He said in a trembling voice that the culprit must be punished. It was the arch that had hit the crown off, so it must be hanged. The arch was then taken to the scaffold. Then a councillor observed how they could hang something that had touched the head of the king.
The king thought carefully and said it was true. However, by now the crowd became restless and was muttering aloud. The king noticed their mood and trembled. He asked the people who had assembled there to postpone deliberation over finer points like guilt. Since the nation wants a hanging, someone must be hanged and that too immediately.
The noose was setup somewhat high. Each man was measured by and by. Only one man was tall enough to fit it. That man was the king. So he was hanged by the Royal ordinance. The ministers felt satisfied that they had found someone to be hanged. Otherwise the unruly town might have rebelled against the king. They shouted “Long live the king!”
Since the king was dead, the practical minded ministers sent messengers to declare in the name of His (former) Majesty that the next to pass the City Gate would choose the ruler of their state. It was their custom and it wound be observed with proper respect. An idiot passed by the City Gate. The guards asked him to decide: “Who is to be the King?” The idiot replied “a melon” because it was his standard answer to all questions.
The ministers crowned a melon as their king. Then they led (carried) the Melon to the throne and set it down there with proper respect. When asked how their king happenes to be a melon, the people would reply that it was on account of customary choice. If the king felt happy in being a melon, it was all right for them. They would not question him taking any shape as long as he left them in peace and liberty and allowed them to carry on their private business without government control.
The Tale of Melon City Summary In Hindi
एक समय एक न्यायी तथा नम्र राजा था जो एक देश पर राज्य करता था। राजा ने सार्वजनिक घोषणा की कि मुख्य राजमार्ग के आरपार विजय की घोषणा सहित एक वृत्तखण्ड (मेहराब) बनाई जाए जो दर्शकों को अध्यात्मिक रूप से सुधार सके।
राजा के आदेशों को मानते हुए श्रमिक वहाँ गए तथा उन्होंने मेहराब बना दी। लोगों को सुधारने के लिए राजा घोड़े पर सवार होकर वहाँ पहुँचा। क्योंकि यह मेहराब बहुत नीची बनाई गई थी, राजा अपना मुकुट मेहराब के नीचे गैंवा बैठा। राजा की भृकुटियाँ क्रोध में तन गईं। उसने इसे अपमानजनक कहा तथा घोषणा की कि मुख्य श्रमिक को सूली पर लटका दिया जाए।
रस्सी तथा सूली का प्रबन्ध किया गया तथा श्रमिकों के मुखिया को वहाँ ले जाया गया। राजा के समीप से गुज़रते हुए वह चिल्लाया “राजन! यह तो श्रमिकों का दोष था।” राजा ने कार्रवाही रोक दी तथा आदेश दिया कि उसकी बजाय सभी श्रमिकों को फासी दी जाए। श्रमिक आश्चर्यचकित दिखाई दिए तथा उन्होंने राजा से कहा कि उसने यह महसूस नहीं किया था कि ईंटें गलत आकार की बनी हुई थीं।
राजा ने आदेश दिया कि राज मिस्त्रियों को वहाँ बुलाया जाए। राज मिस्त्री वहाँ लाए गए। वे भय से काँपते हुए वहाँ खड़े रहे। अब उन्होंने शिल्पी पर दोष लगाया। शिल्पकार को बुलाया गया। राजा ने आदेश दिया कि शिल्पी को फैासी देनी थी। शिल्पकार ने राजा को याद दिलाया कि जब उसने योजना राजा को दिखाई थी तो उसने उन में कुछ सुधार किए थे। यह सुनकर राजा आग-बबूला हो गया तथा शान्तिपूर्वक काम करने में असमर्थ हो गया।
न्यायी एवं नम्र राजा होने के कारण उसने कहा कि यह एक कठिन कार्य था तथा उसे कुछ परामर्श की आवश्यकता थी। उसने आदेश दिया कि देश का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति वहाँ लाया जाए। सबसे बुद्धिमान व्यक्ति को ढूंढा गया तथा वहाँ लाया गया। वह इतना बूढ़ा था कि वह न तो चल सकता था और न ही देख सकता था। अतः उसे उठाकर वहाँ ले जाया गया। उसने काँपती आवाज़ में कहा कि दोषी को अवश्य दण्ड मिलना चाहिए। मेहराब ने राजा के मुकुट को गिराया था, अतः इसे फासी पर लटका देना चाहिए। मेहराब को फासी के चबूतरे पर ले जाया गया। फिर एक परामर्शदाता ने कहा कि वे ऐसी किसी वस्तु को कैसे फाँसी दे सकते थे जिसने राजा के सिर को स्पर्श किया हो।।
राजा ने सावधानीपूर्वक विचार किया तथा कहा कि यह सत्य था। किन्तु अब तक भीड़ उत्तेजित हो गई तथा ज़ोर-ज़ोर से बड़बड़ा रही थी। उसने वहाँ उपस्थित लोगों से अपराध जैसे सूक्ष्म बिन्दुओं पर विचार करने को स्थगित करने को कहा। क्योंकि राष्ट्र चाहता था कि फाँसी लगे, अतः किसी को फाँसी देनी थी और वह भी तत्काल। | फाँसी का फन्दा कुछ ऊँचा स्थापित किया गया। प्रत्येक व्यक्ति को बारी-बारी से मापा गया। केवल एक ही व्यक्ति इतना ऊँचा था कि वह इसमें सही समा सके। वह व्यक्ति राजा था। अतः राजसी आदेश के अनुसार उसे फाँसी लगा दी गई। मन्त्रिगण प्रसन्न थे कि उन्होंने फाँसी लगाने के लिए किसी व्यक्ति को ढूंढ लिया था वरना अनियन्त्रित नगरवासियों ने राजा के विरूद्ध विद्रोह कर दिया होता। वे चिल्लाए ‘राजा दीर्घजीवी हों।
क्योंकि राजा की मृत्यु हो गई थी, व्यावहारिक बुद्धिवाले मन्त्रियों ने पूर्ववर्ती राजा के नाम से घोषणा कराने को दूत भेजे कि नगर द्वार से गुजरनेवाला अगला व्यक्ति उनके देश के राजा को चुनेगा। यह उनकी प्रथा थी तथा इसका उचित सम्मान सहित पालन किया जायेगा। एक बुधू (मूर्ख) नगरे द्वार से गुज़रा। रक्षकों ने उसे यह निर्णय करने को कहा कि राजा कौन होगा। बुद्धू ने उत्तर दिया कि ‘खरबूजा’ क्योंकि सभी प्रश्नों का उसका यही एक मात्र नपा-तुला उत्तर था।
मन्त्रियों ने खरबूजे को राजा के रूप में मुकुट पहनाया। फिर वे खरबूजे को राजगद्दी तक ले गए तथा उचित आदर सहित इसे वहाँ विराजमान कर दिया। जब यह पूछा जाता कि उनका राजा खरबूजा कैसे बना, तो लोग उत्तर देते कि यह तो प्रथा के कारण था। यदि राजा को खरबूजा बनने में प्रसन्नता होती हो, तो उनके लिए यह सही (ठीक) था। वे उसके किसी भी आकार धारण करने से आपत्ति नहीं करेंगे जब कि वह उन्हें शान्ति तथा स्वतन्त्रता में रहने दे तथा उनके मुक्त व्यापार में राजकीय हस्तक्षेप न करे।
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