भरत के अयोध्या लौट जाने के बाद चित्रकूट में शांति लौट आई थी। अयोध्या के पास होने से लोगों का आना–जाना बना रहता था। तीनों वनवासी दंडक वन की और चल पड़े। यहाँ अनेक आश्रम थे परंतु दानव मुनियों को परेशान करते थे। राम, लक्ष्मण और सीता दंडकारण्य में स्थान और आश्रम बदल कर दस वर्ष रहे। एक बार उन्हें क्षरभंग के आश्रम में हड्डियों का ढेर दिखा। सुतीक्षण मुनि ने राम को दानवों के अत्याचार के बारे में बताया और उन्हें अगस्त्य ऋषि से मिलने की सलाह दी। गोदावरी नदी के तट पर पंचवटी जाते हुए उन्हें मार्ग में जटायु मिले। पंचवटी में सुंदर कुटिया बना कर वे रह रहे थे और वन में दानवों का वध भी कर रहे थे। एक दिन जब तीनों कुटी के बाहर बैठे थे तब लंका के राजा रावण की बहन शूर्पणखा सुंदर स्त्री के रूप आ कर राम और लक्ष्मण से विवाह का आग्रह करने लगी। कुछ समय बाद जब दोनों भाइयों ने विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो सीता को इसका कारण बताकर वो क्रोध में आकर सीता पर झपट गई।
लक्ष्मण ने क्रोध में शूर्पणखा के नाक–कान काट दिए। खून से लथपथ शूर्पणखा अपने भाई खर और दूषण के पास गई। उन्होंने क्रोध में आकर 14 राक्षस भेजे, उनके मारे जाने पर स्वयं सेना लेकर गए और मारे गए। अकंपन नामक राक्षस ने यह घटना रावण को बता कर सीता का अपहरण करने की सलाह दी। रावण को अपहरण करते जाने वक्त मारीच मिला ,वह उसे वापिस महल ले आया। शूर्पणखा ने रावण को उकसाकर फिर पंचवटी भेजा। मारीच एक मायावी हिरण का रूप धारण कर कुटिया के पास घूमने लगा। रावण तपस्वी के भेष में पेड़ के पीछे छुप गया। हिरण पर मुग्ध होकर सीता ने राम को उसे लाने को कहा। राम और लक्ष्मण को सोने के हिरण पर संदेह था परंतु सीता के आग्रह को वे मना न कर सके और लक्ष्मण को सीता की रक्षा करने का आदेश देकर राम हिरण लाने के लिए चले गए।
Discover more from EduGrown School
Subscribe to get the latest posts sent to your email.