जैसा कि हम सब जानते हैं कि रामायण में सीता जी को जल करके रावण अपने लंका में ले गया था जहां पर ने स्थान में सीता जी दुष्ट, अहंकारी रावण से सिर्फ नफ़रत करती थी और थोड़ा सहम भी जाती थी। वहीं रावण ने सीता जी को आश्वासन दिया था कि उनकी मर्जी के बिना वह सीता जी को स्पर्श भी नहीं करेगा। रावण सीता जी को अपनी रानी बनाना चाहता था मगर सीता जी केवल दशरथ पुत्र राम को ही अपना सर्वस्व मानती थी।
सीता जी ने रावण को फटकार लगाया और उसे डांटकर कहा कि अगर तुम मुझे मेरे राम के पास छोड़कर उनसे माफी मांग लोगे तो वह तुमको माफ़ कर देंगे और तुम ऐसा नहीं करोगे तो तुम ही पछताओगे। रावण क्रोधित होकर वहां से चला जाता है।
रावण के लंका कि राक्षसनी सब मिलकर सीता को प्रतारित करती है और उनको रावण का प्रस्ताव स्वीकार करने को कहती हैं। मगर सब नाकामयाब होती है। तभी वहां हनुमानजी प्रवेश करते हैं एक वानर के रूप में। कहीं सीता जी उनको रावण का कोई अनुचर न समझे इसलिए सीता जी के सामने हनुमान जी एक वानर बनकर पहले पेड़ पर राम जी का गुणगान करते हैं ताकि सीता जी डरे नहीं और ऐसा ही हुआ वानर को राम के अनुचर समझकर राम के संदेश को स्वीकार करती है।
हनुमान जी सीता माता को अपने कांधे पर बिठाकर राम जी के पास ले जाना चाहते थे मगर सीता माता ने कहा दिया कि यह ग़लत है वह नहीं चाहती थी कि कोई गड़बड़ी हो और संदेश का आदान-प्रदान बंद हो इसलिए वह साथ चलने से इंकार करती है।
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