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संगतकार Sangatkar summary Class 10 Hindi कविता का सार
कवि परिचय
मंगलेश डबराल
इनका जन्म सन 1948 में टिहरी गढ़वाल, उत्तरांचल के काफलपानी गाँव में हुआ और शिक्षा देहरादून में। दिल्ली आकर हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद ये पूर्वग्रह सहायक संपादक के रूप में जुड़े। इलाहबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की, बाद में सन 1983 में जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक का पद संभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादक रहने के बाद आजकल नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हैं।
संगतकार Class 10 Hindi कविता का सार ( Short Summary )
‘संगतकार’ कविता गायन के मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार के महत्त्व और उसकी अनिवार्यता की ओर संकेत करती है। वह मुख्य गायक की सफलता में अति महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। संगतकार केवल गायन के क्षेत्र में ही महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि नाटक, फिल्म, संगीत, नृत्य आदि के लिए भी उपयोगी है। जब कोई मुख्य गायक अपने भारी स्वर में गाता है तब संगतकार का छोटा भाई या उसका कोई शिष्य अपनी सुंदर कमजोर कांपती आवाज़ से उसे और अधिक सुंदर बना देता है। युगों से संगतकार अपनी आवाज़ को मुख्य गायक के स्वर के साथ मिलाते ही रहे हैं। जब मुख्य गायक अंतरे की जटिल तान में खो चुका होता है या अपने ही सरगम को लांघ जाता है तब संगतकार ही स्थायी को संभाल कर आगे बढ़ाता है। जैसे वह उसे उसका बचपन याद दिला रहा हो। वही मुख्य गायक के गिरते हुए स्वर को ढाढ़स बंधाता है। कभी-कभी वह उसे यह अहसास दिलाता है कि गाने वाला अकेला नहीं है, बल्कि वह उसका साथ देने वाला था जो राग पहले गाया जा चुका है, वह फिर से गाया जा सकता है। वह मुख्य गायक के समान अपने स्वर को उँचा उठाने का प्रयत्न नहीं करता। इसे उसकी विफलता नहीं समझना चाहिए बल्कि उसकी मनुष्यता समझना चाहिए। वह ऐसा करके मुख्य गायक के प्रति अपने हृदय का सम्मान प्रकट करता है।
संगतकार Class 10 Hindi कविता का सार ( Detailed Summary )
संगतकार कविता का भावार्थ – Sangatkar Class 10 Detailed Summary :
मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज सुंदर कमजोर काँपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
मुख्य गायक की गरज में
वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीने काल से
भावार्थ :- कवि अपने इन पंक्तियों में कहता है की जब मुख्य गायक अपने चट्टान जैसे भारी स्वर में गाता है तब उसका संगतकार हमेशा उसका साथ देता है। वह आवाज मानो ऐसे प्रतीत हो रही है मानो बहुत ही कमजोर, कापंती हुई लेकिन बहुत ही सुन्दर थी जो मुख्य गायक के आवाज के साथ मिलकर उसकी प्रभावशीलता को और बढ़ा देते हैं। कवि को ऐसा लगता है की यह संगतकार गायक का कोई बहुत ही करीब का रिस्तेदार या पहचानने वाला है जो की उससे गायकी सिख रहा शिष्य है। और इस प्रकार वह बिना किसी के नजर में आये निरंतर अपना कार्य करते चला जाता है।
गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है
या अपने ही सरगम को लाँघकर
चला जाता है भटकता हुअ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था।
भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने यह बताने का प्रयास किया है की जब कोई महान संगीतकार अपने गाने के लय में डूब जाता है तो उसे गाने के सुर ताल की भनक नहीं पड़ती और वह कभी कभी अपने गाने में भटक सा जाता है उसे आगे सुर कैसे पकड़ना है यह समझ नहीं आता और वह उलझ सा जाता है। तो ऐसे दुविधा के समय में भी उसका जो सहायक या संगतकार होता है वह निरंतर अपने कोमल एवं सुरीली आवाज में संगीत के सुर ताल को पकडे हुआ रहता है और मुख्य गायक को कहीं भटकने नहीं देता और संगीत के सुरताल को वापस पकड़ने में उसकी सहायता करता है। मानो मुख्य गायक अपना सामन पीछे छोड़ते हुए चला जाता है और संगीतकार उसे समेटा हुआ आगे बढ़ता है। और इससे मुख्य लेखक को उसके बचपन की याद आ जाती है जब वह संगीत सीखा करता था और स्वर अक्सर भूल जाया करता था।
तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढ़ाँढ़स बँधाता
कहीं से चला आता है संगीतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग
भावार्थ :- इन पंक्तियों में कवि कहता है की जब मुख्य गायक ऊँचे स्वर में गाता-गाता थक जाता है और उसके अंदर गाने की इच्छा एवं ऊर्जा समाप्त हो जाती है और उसके स्वर निचे आने लगते हैं तब उस वक्त मुख्य गायक का हौसला बढ़ाने और और उसके स्वर को फिर से ऊपर उठाने के लिए सहायक का स्वर पीछे से सुनाई देता है। और यह सुनकर मुख्य गायक में फिर से ऊर्जा का संसार हो जाता है और वह अपनी धुन में गाता चला जाता है।
और कभी कभी तो वह सिर्फ इसलिए जाता है की मानो मुख्य गायक को यह अहसास दिला रहा हो की वह अकेला नहीं है और कभी कभी एक राग को दूबारा भी गाया जा सकता है। अगर आप कोई राग बिच में कहीं छूट जाए तो।
और उसकी आवाज में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
भावार्थ : – इस पंक्ति में कवि ने एक सहायक के त्याग को दिखाया है जो खुद की प्रशिद्धि एवं मान सम्मान की परवाह किये बिना मुख्य गायक के साथ गाता चला जाता है। उसे तो इस बात की चिंता भी रहती है की कहीं वह मुख्य गायक से ज्यादा अच्छे स्वर में ना गा दे और इसी कारण वश उसके आवाज में हिचक साफ़ सुनाई देती है। और वह हमेशा यही कोशिश करता हैं एवं अपने आवाज को मुख्य गायक के आवाज से ज्यादा उठने नहीं देता यह उसकी विफलता नहीं बल्कि उसका बड्डपन एवं उसकी मनुष्यतता समझा जाना चाहिए।
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NCERT Solution –संगतकार
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