लेखक परिचय
धीरंजन मालवे
इनका जन्म बिहार के नालंदा जिले के डुंवरावाँ गाँव में 9 मार्च 1952 को हुआ। ये एम.एससी (सांख्यिकी), एम. बी.ए और एल.एल.बी हैं। वे आज भी वैज्ञानिक जानकारी को आकाशवाणी और दूरदर्शन के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने में लगे हुए हैं। मालवे ने कई भरतीय वैज्ञानिकों की संक्षिप्त जीवनियाँ लिखी हैं, जो इनकी पुस्तक ‘विश्व-विख्यात भारतीय वैज्ञानिक’ पुस्तक में समाहित हैं।
वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन पाठ का सारांश : Very Short Summary
वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन्’ प्रस्तुत पाठ भारत के महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रामन के जीवन पर आधारित है। इसके लेखक धीरंजन मालवे जी ने भारत की इस महान विभूति को यह पाठ समर्पित किया है। रामन जी गुलाम भारत के सफल और प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। उन्होंने पूरे विश्व में अपनी योग्यता का परचम फहराया। वह पहले ऐसे भारतीय नागरिक थे, जिन्हें अपनी खोज के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने पूरे विश्व में यह सिद्ध कर दिया की गुलाम देश के नागरिक में भी कुछ कर दिखाने की योग्यता होती है। रामन एक प्रतिभावान छात्र थे। लेखक ने हमारे देश के इस प्रतिभावान छात्र के संघर्षमय जीवन और उपलब्धियों को हमारे सम्मुख रखा है। उन्होंने इस पाठ में रामन जी के जीवन के हर उस क्षण को दिया है, जो हमें उस प्रतिभावान व्यक्ति से परिचित करवा सके। पाठक को उनके विषय में पूरी और सही जानकारी प्राप्त हो सके।
वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन पाठ का सारांश : Detailed Summary
यह लेख वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकट रामन की संघर्षमय जीवन यात्रा तथा उनकी उपलब्धियों की जानकारी बखूबी कराता है। रामन ग्यारह साल की उम्र में मैट्रिक, विशेष योग्यता की साथ इंटरमीडिएट, भौतिकी और अंग्रेज़ी में स्वर्ण पदक के साथ बी. ए. और प्रथम श्रेणी में एम. ए. करके मात्र अठारह साल की उम्र में कोलकाता में भारत सरकार के फाइंनेस डिपार्टमेंट में सहायक जनरल एकाउटेंट नियुक्त कर लिए गए थे। इनकी प्रतिभा से इनके अध्यापक तक अभिभूत थे। इस दौरान वे बहूबाज़ार स्थित प्रयोगशाला में कामचलाऊ उपकरणों का इस्तेमाल करके शोध कार्य करते थे।
फिर उन्होंने अनेक भारतीय वाद्ययंत्रों का अध्ययन किया और वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर पश्चिम देशों की इस भ्रांति को तोड़ने का प्रयास किया कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्यों की तुलना में घटिया हैं। बाद में वे सरकारी नौकरी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद को स्वीकार किया । यहां वे अपना सारा समय अध्ययन, अध्यापन और शोध में बिताने लगे। सन 1921 में जब रामन समुद्री यात्रा पर थे तो समुद्र के नीले रंग को देखकर उसके वज़ह का सवाल हिलोरें मारने लगा। उन्होंने इस दिशा में आगे प्रयोग किए तथा इसका परिणाम ‘रामन प्रभाव’ की खोज के रूप में सामने लाया। रामन की खोज की वजह से पदार्थों मे अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया।
उन्हें ‘भारत रत्न’ तथा ‘नोबल पुरस्कारों’ सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाज़ा गया। भारतीय संस्कृति से रामन को हमेशा ही लगाव रहा। उन्होंने अपनी भारतीय पहचान को हमेशा बनाए रखा। वे देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास के प्रति समर्पित थे। उन्होंने बैंगलोर में एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध-संस्थान ‘रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ की स्थापना की। रामन वैज्ञानिक चेतना और दृष्टि की साक्षात प्रतिमुर्त्ति थे।उन्होंने हमेशा प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन वैज्ञानिक दृष्टि से करने का संदेश दिया।
Important Link
NCERT Solution -वैज्ञानिक चेतना के वाहक
For Free Video Lectures Click here
Discover more from EduGrown School
Subscribe to get the latest posts sent to your email.