कवि परिचय
रैदास
इनका जन्म सन 1388 और देहावसान सन 1518 में बनारस में ही हुआ, ऐसा माना जाता है। मध्ययुगीन साधकों में इनका विशिष्ट स्थान है। कबीर की तरह रैदास भी संत कोटि के कवियों में गिने जाते हैं। मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रैदास का ज़रा भी विश्वास न था। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे।
Raidas Ke Pad Explanation – रैदास के पद का सार : Short Summary
संत कवि रैदास उन महान सन्तों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग है, जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। उनका सच्चे ज्ञान पर विश्वास था। उन्होंने भक्ति के लिए परम वैराग्य को अनिवार्य माना था। उनके अनुसार ईश्वर एक है और वह जीवात्मा के रूप में प्रत्येक जीव में मौजूद है।
इसी विचारधारा के अनुसार, उन्होनें अपने प्रथम पद “अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी” में हमें यह शिक्षा दी है कि हमें ईश्वर किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं मिलेंगे या किसी मूर्ति में नहीं मिलेंगे। ईश्वर को प्राप्त करने का एक मात्र उपाय अपने मन के भीतर झाँकना है। कवि ने यहाँ प्रकृति एवं जीवों के विभिन्न रूपों का उपयोग करके यह कहा है कि भक्त और भगवान एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। उनके अनुसार ईश्वर सर्वश्रेष्ठ हैं और हर जन्म में वे ही सर्वश्रेष्ठ रहेंगे।
अपने दूसरे पद “ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।” में रैदास जी ने ईश्वर की महत्ता का वर्णन किया है। उनके अनुसार ईश्वर धनी-गरीब, छुआ-छूत आदि में विश्वास नहीं करते और वे सभी का उद्धार करते हैं। वे चाहें तो नीच को भी महान बना सकते हैं। ईश्वर ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैनु जैसे संतों का उद्धार किया था और वे हमारा भी उद्धार करेंगे। इस तरह, उन्होंने हमें उस समय के समाज में व्याप्त जात-पाँत, छुआ-छूत जैसे अंधविश्वासों का त्याग करने की सलाह दी है।
रैदास के पद अर्थ सहित – Raidas ke Pad in Hindi with Meaning
(1)
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भक्ति करै रैदासा।
प्रभु! हमारे मन में जो आपके नाम की रट लग गई है, वह कैसे छूट सकती है? अब मै आपका परम भक्त हो गया हूँ। जिस तरह चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार मेरे तन मन में आपके प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है । आप आकाश में छाए काले बादल के समान हो, मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ। जैसे बरसात में घुमडते बादलों को देखकर मोर खुशी से नाचता है, उसी भाँति मैं आपके दर्शन् को पा कर खुशी से भावमुग्ध हो जाता हूँ। जैसे चकोर पक्षी सदा अपने चंद्रामा की ओर ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी सदा आपका प्रेम पाने के लिए तरसता रहता हूँ।
हे प्रभु ! आप दीपक हो और मैं उस दिए की बाती जो सदा आपके प्रेम में जलता है। प्रभु आप मोती के समान उज्ज्वल, पवित्र और सुंदर हो और मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ। आपका और मेरा मिलन सोने और सुहागे के मिलन के समान पवित्र है । जैसे सुहागे के संपर्क से सोना खरा हो जाता है, उसी तरह मैं आपके संपर्क से शुद्ध हो जाता हूँ। हे प्रभु! आप स्वामी हो मैं आपका दास हूँ।
(2)
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसाईआ मेरा माथै छत्रु धरै॥
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचउ ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरू तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥
हे प्रभु ! आपके बिना कौन कृपालु है। आप गरीब तथा दिन – दुखियों पर दया करने वाले हैं। आप ही ऐसे कृपालु स्वामी हैं जो मुझ जैसे अछूत और नीच के माथे पर राजाओं जैसा छत्र रख दिया। आपने मुझे राजाओं जैसा सम्मान प्रदान किया। मैं अभागा हूँ। मुझ पर आपकी असीम कृपा है। आप मुझ पर द्रवित हो गए । हे स्वामी आपने मुझ जैसे नीच प्राणी को इतना उच्च सम्मान प्रदान किया। आपकी दया से नामदेव , कबीर जैसे जुलाहे , त्रिलोचन जैसे सामान्य , सधना जैसे कसाई और सैन जैसे नाई संसार से तर गए। उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया। अंतिम पंक्ति में रैदास कहते हैं – हे संतों, सुनो ! हरि जी सब कुछ करने में समर्थ हैं। वे कुछ भी करने में सक्षम हैं।
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NCERT Solution – रैदास
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