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NCERT important questions For Class 10 Hindi Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत
प्रश्न 1.
अमीरुद्दीन के मामा की दिनचर्या की शुरुआत कैसे होती थी?
उत्तर-
अमीरुद्दीन के मामा देश के जाने-माने शहनाई वादक थे। उनकी दिनचर्या की शुरुआत बालाजी के मंदिर से होती थी। वे सर्वप्रथम इसी मंदिर की ड्योढ़ी पर आ बैठते और रोज बदल-बदलकर मुल्तानी, कल्याण, ललित और कभी भैरव राग सुनाते रहते थे। इसके बाद ही वे विभिन्न रियासतों के दरबार में शहनाई बजाने जाया करते थे।
प्रश्न 2.
रीड क्या है? शहनाई के लिए इसकी क्या उपयोगिता है?
उत्तर-
रीड, एक प्रकार की घास ‘नरकट’ से बनाई जाती है। यह बिहार के डुमराँव में सोन नदी के किनारे पाई जाती है। रीड अंदर से पोली खोखली होती है। इसी के सहारे शहनाई में हवा फेंकी जाती है। इसी की मदद से शहनाई बजती है। यदि रीड न हो तो शहनाई बजना कठिन हो जाएगा।
प्रश्न 3.
बिस्मिल्ला खाँ बालाजी मंदिर क्यों जाया करते थे? वे किस रास्ते से मंदिर जाया करते थे?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के रियाज़ के लिए प्रतिदिन नियमित रूप से बालाजी मंदिर जाया करते थे। वे मंदिर तक पहुँचने के लिए रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के पास से जाने वाले रास्ते का प्रयोग करते थे। उन्हें इस रास्ते से जाना अच्छा लगता था। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी दादरा, कभी टप्पे आदि सुनते हुए वे मंदिर पहुँचते थे।
प्रश्न 4.
इतिहास में शहनाई का उल्लेख किस तरह मिलता है?
उत्तर-
वैदिक इतिहास में शहनाई का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। संगीत शास्त्रों में इसे सुषिर वाद्य के रूप में गिना जाता है। अरब देश में नरकट या रीड वाले वाद्य यंत्रों को नये कहा जाता है। शहनाई को सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि प्रदान की गई है। सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में तानसेन द्वारा रचित बंदिश में शहनाई आदि का उल्लेख मिलता है।
प्रश्न 5.
बिस्मिल्ला खाँ अपने खुदा से सजदे में क्या माँगते हैं? इससे उनके व्यक्तित्व की किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ अपनी संगीत कला को समर्पित कलाकार थे। वे अपनी संगीत कला में निखार लाने के लिए खुदा से सच्चे सुर की नेमत माँगा करते थे। वे सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते थे और बार-बार सच्चे सुर की माँग करते। थे। इससे बिस्मिल्ला खाँ की विनम्रता और सीखने की ललक जैसी विशेषताओं का पता चलता है।
प्रश्न 6.
बिस्मिल्ला खाँ की तुलना कस्तूरी मृग से क्यों की गई है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ अपनी सफलता और उपलब्ध्यिों से संतुष्ट होने वाले व्यक्ति न थे। वे सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचकर भी अपने कदम ज़मीन पर रखे हुए थे। जिस तरह हिरन अपनी ही कस्तूरी की महक से परेशान होकर उसे जंगल भर में खोजता फिरता है, उसी प्रकार बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के सुर सम्राट होकर भी यही सोचते थे कि उन्हें सुरों को बरतना अभी तक क्यों नहीं आया।
प्रश्न 7.
बिस्मिल्ला खाँ अपनी जवानी के दिनों की किन यादों में खो जाते हैं?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ अपनी जवानी के दिनों की निम्नलिखित यादों में खो जाते हैं
- वे अपने युवावस्था में रियाज को कम जुनून को अधिक याद करते हैं।
- वे पक्का महाल की कुलसुम हलवाइन की कचौड़ी वाली दुकान को याद करते हैं।
- वे गीताबाली एवं अपनी पसंदीदा अभिनेत्री सुलोचना की यादों में खो जाते हैं।
प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ फ़िल्म देखने के अपने शौक को किस तरह पूरा किया करते थे?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ फ़िल्म देखने के जुनूनी थे। उस समय थर्ड क्लास का टिकट छह पैसे का मिलता था। वे दो पैसे मामू से, दो पैसे मौसी से और दो पैसे नानी से लेते थे और घंटों लाइन में लगकर टिकट हासिल किया करते थे। वे सुलोचना की। नई फ़िल्म सिनेमाहाल में आते ही बालाजी मंदिर पर शहनाई बजाने से होने वाली आमदनी लेकर फ़िल्म देखने चल पड़ते थे।
प्रश्न 9.
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ काशी विश्वनाथ जी के प्रति अपार श्रद्धा रखते हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जिस तरह अपने धर्म के प्रति समर्पित थे, उसी प्रकार काशी विश्वनाथ जी के प्रति अपार श्रद्धा रखते थे। वे जब भी काशी से बाहर रहते थे, तब विश्वनाथ एवं बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते थे और थोड़ी देर के लिए ही सही पर, शहनाई उन्हें समर्पित कर बजाते थे। उनके मन की आस्था बालाजी और बाबा काशी विश्वनाथ में लगी रहती थी।
प्रश्न 10.
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर अन्यत्र क्यों नहीं जाना चाहते हैं?
उत्तर-
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ काशी से असीम लगाव रखते हैं। बाबा विश्वनाथ और बालाजी में उनकी गहन आस्था है। उनके पूर्वजों ने काशी में रहकर शहनाई बजाई । बिस्मिल्ला खाँ काशी में ही रहकर शहनाई बजाना सीखा और संस्कार अर्जित किए। उनके नाना और मामा का जुड़ाव भी काशी से रहा है, इसलिए वे कोशी छोड़कर अन्यत्र नहीं जाना चाहते हैं।
प्रश्न 11.
आज के युवाओं को बिस्मिल्ला के चरित्र से क्या सीख लेनी चाहिए?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ अत्यंत सादगी से जीवन जीते थे। वे सफलता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी घंटों रियाज किया करते थे। वे बनाव-सिंगार पर ध्यान न देकर लक्ष्य प्राप्ति में जुटे रहे। उनके चरित्र से युवाओं को फैशन एवं सिंगार से दूर रहकर सफलता या लक्ष्य प्राप्ति की ओर ध्यान लगाने, परिश्रमी बनने तथा निरंतर अभ्यास करने की सीख लेनी चाहिए।
प्रश्न 12.
‘नौबतखाने में इबादत’ नामक पाठ में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘नौबतखाने में इबादत’ नामक पाठ में एक ओर सादगीपूर्ण जीवन जीने का संदेश निहित है तो दूसरी ओर निरंतर अभ्यास करने के अलावा धार्मिक कट्टरता त्यागकर धार्मिक उदारता बनाए रखने, दूसरे धर्मों का आदर करने, अभिमान न करने, सफलता मिलने पर भी जमीन पर पाँव टिकाए रखने तथा ईश्वर के प्रति कृतज्ञता बनाए रखने का संदेश निहित है।
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