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NCERT Important Questions For Class 10 Hindi Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी
प्रश्न 1.
इंदौर में लेखिका के पिता खुशहाली के दिन जी रहे थे। लेखिका के पिता के खुशहाली भरे दिनों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इंदौर में लेखिका के पिता की प्रतिष्ठा थी, नाम था और सम्मान था। वे कांग्रेस के साथ-साथ सुधार कार्यों से जुड़े थे। शिक्षा के नाम पर वे केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे बल्कि आठ-दस विद्यार्थियों को अपने घर पर रखकर पढ़ाया करते थे, जिनमें से कई आज अच्छे पदों पर हैं। वहाँ उनकी उदारता के चर्चे भी खूब प्रसिद्ध थे।
प्रश्न 2.
लेखिका के पिता का स्वभाव शक्की क्यों हो गया था? इस शक का परिवार पर क्या असर पड़ रहा था?
उत्तर-
लेखिका के पिता का स्वभाव इसलिए शक्की हो गया था क्योंकि उन्होंने जिन लोगों पर आँख बंद करके भरोसा किया था उन्होंने उनके साथ विश्वासघात किया। इतना ही नहीं उनके अपनों ने भी उनके विश्वास पर चोट पहुँचाई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि वे परिवार के सदस्यों को भी शक की दृष्टि से देखते थे और उनके क्रोध का शिकार परिवारवालो को होना पड़ता था।
प्रश्न 3.
लेखिका अपने भीतर अपने पिता को किन-किन रूपों में पाती है?
उत्तर-
लेखिका के व्यक्तित्व के विकास में उसके पिता का सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों रूपों में योगदान है। लेखिका आज अपने विश्वास को जो खंडित पाती है, उसकी व्यथा के नीचे उनके शक्की स्वभाव की झलक दिखाई पड़ती है। इसके अलावा उसके पिता जी उसके भीतर कुंठा के रूप में, प्रतिक्रिया के रूप में और कहीं प्रतिच्छाया के रूप में विद्यमान हैं।
प्रश्न 4.
लेखिका अपने ही घर में हीनभावना का शिकार क्यों हो गई ?
उत्तर-
लेखिका बचपन में काली, दुबली-पतली और मरियल-सी थी। इसके विपरीत उसकी दो साल बड़ी बहन सुशीला खूब गोरी, स्वस्थ और हँसमुख थी। लेखिका के पिता को गोरा रंग पसंद था। वे बात-बात में लेखिका की तुलना उसकी बहन से करते और उसे हीन सिद्ध करते। इससे लेखिका के मन में धीरे-धीरे हीनता की ग्रंथि पनपने लगी और वह हीन भावना का शिकार हो गई।
प्रश्न 5.
लेखिका को अपने वजूद का अहसास कब हुआ?
अथवा
घर में लेखिका के व्यक्तित्व को सकारात्मक विकास कब से शुरू हुआ?
उत्तर-
अपने ही घर में लेखिका के व्यक्तित्व का सकारात्मक विकास उस समय शुरू हुआ जब उसकी बड़ी बहनों का विवाह हो गया और उसके भाई घर से बाहर अर्थात् कोलकाता पढ़ाई करने चले गए। अब पिता जी ने उसके व्यक्तित्व पर ध्यान देना शुरू किया। वे उसे रसोई में न भेजकर उन बैठकों में उठने-बैठने के लिए प्रोत्साहित करते जहाँ राजनीतिक गतिविधियों पर चर्चाएँ होती थीं।
प्रश्न 6.
उन कारणों का उल्लेख कीजिए जिनके कारण वह अपनी माँ को आदर्श नहीं बना सकी?
उत्तर-
लेखिका की माँ ने अपने आप को परिवार की भलाई में समर्पित कर दिया था। उनका अपना कोई व्यक्तित्व न था। वे बच्चों की उचित-अनुचित माँग को पूरा करते हुए तथा पति के अत्याचार को सहन करते हुए जी रही थी। इसके अलावा निम्नलिखित कारणों से लेखिका उन्हें अपना आदर्श नहीं बना पा रही थी
- वे अनपढ़ थीं।
- उनका अपना कोई व्यक्तित्व न था।
- उनका त्याग मजबूरी में लिपटा हुआ था।
प्रश्न 7.
लेखिका का अपने पिता के साथ टकराव क्यों चलता रहा? यह टकराव कब तक चलता रहा?
उत्तर-
लेखिका का अपने पिता के साथ इसलिए टकराव चलता रहा क्योंकि लेखिका के पिता विशिष्ट बनना-बनाना तो चाह रहे। थे, परंतु वे लेखिका की स्वतंत्रता घर की चारदीवारी तक ही सीमित रखना चाहते थे। वे नहीं चाहते थे कि मन्नू सड़कों पर नारे लगवाए, लड़कों के साथ हड़तालें करवाए और दुकान बंद कराती एवं सड़कों पर भाषण देती फिरे। अपने पिता के साथ उसका यह टकराव राजेंद्र से शादी होने तक चलता रहा।
प्रश्न 8.
दसवीं के बाद लेखिका द्वारा पुस्तकों का चयन और साहित्य चयन का दायरा कैसे बढ़ता गया?
उत्तर-
लेखिका दसवीं कक्षा तक लेखकों को चुनाव किए बिना, उनकी महत्ता समझे बिना किताबें पढ़ लिया करती थी, क्योंकि साहित्य संबंधी उसकी समझ विकसित नहीं हुई थी। जब वह वर्ष 1945 में फर्स्ट ईयर में आई और हिंदी की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल से परिचय हुआ तो उन्होंने स्वयं पुस्तकें चुनकर उसे दी और साल-दो साल बीतते उसकी दुनिया शरत, प्रेमचंद से आगे बढ़कर जैनेंद्र, अज्ञेय, यशपाल और भगवती चरण वर्मा तक पहुँच गई । इस तरह उसका दायरा बढ़ता गया।
प्रश्न 9.
लेखिका ने कौन-कौन से उपन्यास पढ़े? उन उपन्यासों पर उसकी क्या प्रतिक्रिया रही?
उत्तर-
उपन्यासों की दुनिया में कदम रखते ही उसे जैनेंद्र द्वारा लिखित उपन्यास ‘सुनीता’ अच्छा लगा, जिसके छोटे-छोटे वाक्यों की शैली ने उसे बहुत प्रभावित किया। उसने अज्ञेय का उपन्यास शेखर : एक जीवनी पढ़ा जिसे वह एक बार में नहीं समझ सकी। नदी के द्वीप उसे इतना अच्छा लगा कि वह शेखर को फिर से पढ़ गई । इसी क्रम में उसने जैनेंद्र का त्यागपत्र और भगवती बाबू का चित्रलेखन पढ़ा जिस पर उसने शीला के साथ बहसें कीं।
प्रश्न 10.
प्रिंसिपल के बुलावे पर लेखिका के पिता कॉलेज नहीं जाना चाहते थे पर वहाँ ऐसा क्या हुआ कि वे खुश होकर लौटे?
उत्तर-
लेखिका के कॉलेज की प्रिंसिपल ने अनुशासनहीनता की शिकायत करते हुए पत्र भेजा। पत्र पाकर उसके पिता आग-बबूला होते हुए कॉलेज गए। वहाँ प्रिंसिपल ने बताया कि सारे कॉलेज की लड़कियों पर मन्नू का रोब है। उसके एक इशारे पर वे बाहर आ जाती हैं। इससे कक्षाएँ चलाना मुश्किल हो रहा है। यह सुनकर उसके पिता खुश हुए। उन्होंने प्रिंसिपल से कहा, यह सारे देश की पुकार है। इसके बाद वे खुशी-खुशी घर लौटे।
प्रश्न 11.
देश की राजनैतिक गतिविधियों में युवा वर्ग अपना योगदान किस तरह दे रहा था?
उत्तर-
वर्ष 1942 के आसपास युवावर्ग देश की राजनैतिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग ले रहा था। यह वर्ग अपने साथियों या नेताओं की पुकार पर कॉलेज से बाहर आ जाता, हड़तालों में भाग लेता, नारेबाजी करता, जुलूस-प्रदर्शन करता तथा प्रभात फेरियाँ निकलवाने में मदद करता। इसके अलावा अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध प्रकट करने के लिए दुकानें भी बंद करवाता था। इस समय युवावर्ग का खून लावा बन गया था।
प्रश्न 12.
वर्ष 1947 में लेखिका को कौन-कौन सी खुशियाँ मिलीं? उसे कौन-सी खुशी सबसे महत्त्वपूर्ण लगी और क्यों?
उत्तर-
वर्ष 1947 में लेखिका को मुख्य रूप से दो खुशियाँ मिलीं। पहली थर्ड ईयर की कक्षाएँ शुरू करवाना, दूसरी उसका पुनः कॉलेज जाना और तीसरी देश को मिली आज़ादी। वर्ष 1947 में कॉलेज वालों ने थर्ड ईयर की कक्षाएँ बंद करके अनुशासनहीनता फैलाने वाली लड़कियों का कॉलेज में प्रवेश निषिद्ध कर दिया और शीला अग्रवाल को नोटिस थमा दिया, पर मन्नू और अन्य लड़कियों ने बाहर से इतना शोर मचाया कि उन्हें अगस्त में थर्ड ईयर की कक्षाएँ फिर शुरू करनी पड़ीं। इसके तुरंत बाद उसे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण खुशी मिली के योंकि इसका इंतजार सारे देश को था।
प्रश्न 13.
‘एक कहानी यह भी’ पाठ का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर-
‘एक कहानी यह भी’ पाठ में लेखिका मन्नू भंडारी के किशोर जीवन से जुड़ी घटनाओं के अतिरिक्त उनके पिता और उनकी कॉलेज की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल को व्यक्तित्व उभरकर आया है जिनके व्यक्तित्व का असर लेखिकीय व्यक्तित्व में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । यहाँ एक साधारण-सी लड़की के असाधारण बनने तथा वर्ष 1946-47 की आज़ादी की आँधी में जोश और उत्साह में भागीदारी निभाने का वर्णन है।
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