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लेखक परिचय
प्रेमचंद
इनका जन्म सन 1880 में बनारस के लमही गाँव में हुआ था। इनका मूल नाम धनपत राय था। बी.ए. तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने शिक्षा विभाग में नौकरी कर ली परंतु असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और लेखन कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए। सन १९३६ में इस महान कथाकार का देहांत हो गया।
दो बैलों की कथा पाठ का सारांश ( Very Short Summary)
यह कहानी दो बैलों के बारे में है जो अपने मालिक से बेहद प्यार करते थे और जिनमे आपस में भी गहरी मित्रता थी। दोनों बैल स्वाभिमानी, बहादुर और परोपकारी हैं। उनका मालिक उन्हें बड़े स्नेह से रखता है। लेकिन एक बार दोनों बैलों को मालिक के ससुराल भेज दिया जाता है। नये ठिकाने पर उचित सम्मान न मिलने के कारण दोनों बैल वहाँ से भागकर अपने असली मालिक के पास आते हैं। उन्हें दोबारा नये ठिकाने पर भेज दिया जाता है। जब वे दोबारा भागने की कोशिश करते हैं तो कई मुसीबतों में फँस जाते हैं। आखिर में उन्हें किसी कसाई के हाथ नीलाम कर दिया जाता है। लेकिन दोनों बैल उस कसाई के चंगुल से छूटने में भी कामयाब हो जाते हैं और अंत में अपने असली मालिक के पास पहुँच जाते हैं। यह कहानी बड़ी ही रोचक है और सरल भाषा में लिखी गई है।
दो बैलों की कथा पाठ का सारांश (Detailed Summary)
लेखक के अनुसार गधा एक सीधा और निरापद जानवर है। वह सुख-दुख , हानि-लाभ, किसी भी दशा में कभी नहीं बदलता। उसमें ऋषि-मुनियों के गुण होते हैं, फिर भी आदमी उसे बेवकूफ़ कहता है। बैल गधे के छोटे भाई हैं जो कई रीतियों से अपना असंतोष प्रकट करते हैं।
झूरी काछी के पास हीरा और मोती नाम के दो स्वस्थ और सुंदर बैल थे। वह अपने बैलों से बहुत प्रेम करता था। हीरा और मोती के बीच भी घनिष्ठ संबंध था। एक बार झूरी ने दोनों को अपने ससुराल के खेतों में काम करने के लिए भेज दिया। वहाँ उनसे खूब काम करवाया जाता था लेकिन खाने को रुखा-सूखा ही दिया जाता था। अत: दोनों रस्सी तुड़ाकर झूरी के पास भाग आए। झूरी उन्हें देखकर बहुत खुश हुआ और अब उन्हें खाने-पीने की कमी नहीं रही। दोनों बड़े खुश थे। मगर झूरी की स्त्री को उनका भागना पसंद नहीं आया। उसने उन्हें खरी-खोटी और मजूर द्वारा खाली सूखा भूसा खिलाया गया। दूसरे दिन झूरी का साला फिर उन्हें लेने आ गया। फिर उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी पर खाने को सूखा भूसा ही मिला।
कई बार काम करते समय मोती ने गाड़ी खाई में गिरानी चाही तो हीरा ने उसे समझाया। मोती बड़ा गुस्सैल था , हीरा धीरज से काम लेता था। हीरा की नाक पर जब खूब डंडे बरसाए गए तो मोती गुस्से से हल लेकर भागा, पर गले में बड़ी रस्सियाँ होने के कारण पकड़ा गया। कभी-कभी उन्हें खूब मारा-पीटा भी जाता था। इस तरह दोनों की हलत बहुत खराब थी।
वहाँ एक छोटी-सी बालिका रहती थी। उसकी माँ मर चुकी थी। उसकी सौतेली माँ उसे मारती रहती थी , इसलिए उन बैलों से उसे एक प्रकार की आत्मीयता हो गई थी। वह रोज़ दोनों को चोरी-छिपे दो रोटियाँ डाल जाती थी। इस तरह दोनों की दशा बहुत खराब थी। एक दिन उस बालिका ने उनकी रस्सियाँ खोल दी। दोनों भाग खड़े हुए। झूरी का साला और दूसरे लोग उन्हें पकड़ने दौड़े पर पकड़ न सके। भागते-भागते दोनों नई ज़गह पहुँच गए। झूरी के घर जाने का रास्ता वे भूल गए। फिर भी बहुत खुश थे। दोनों ने खेतों में मटर खाई और आज़ादी का अनुभव करने लगे। फिर एक साँड से उनका मुकाबला हुआ। दोनों ने मिलकर उसे मार भगाया , लेकिन खेत में चरते समय मालिक आ गया। मोती को फँसा देखकर हीरा भी खुद आ फँसा। दोनों काँजीहौस में बंद कर दिए गए। वहाँ और भी जानवर बंद थे। सबकी हालत बहुत खराब थी। जब हीरा-मोती को रात को भी भोजन न मिला तो दिल में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। फिर एक दिन दीवार गिराकर दोनों ने दूसरे जानवरों को भगा दिया। मोती भाग सकता था पर हीरा को बँधा देखकर वह भी न भाग सका।
काँजीहौस के मालिक को पता लगने पर उसने मोती की खूब मरम्मत की और उसे मोटी रस्सी से बाँध दिया। एक सप्ताह बाद कँजीहौस के मालिक ने जानवरों को कसाई के हाथों बेच दिया। एक दढ़ियल आदमी हीरा-मोती को ले जाने लगा। वे समझ गए कि अब उनका अंत समीप है। चलते-चलते अचानक उन्हें लगा कि वे परिचित राह पर आ गए हैं। उनका घर नज़दीक आ गया था। दोनों उन्मत्त होकर उछलने लगे और दौड़ते हुए झूरी के द्वार पर आकर खड़े हो गए। झूरी ने देखा तो खुशी से फूल उठा। अचानक दढ़ियल ने आकर बैलों की रस्सियाँ पकड़ ली। झूरी ने कहा कि वे उसके बैल हैं , पर दढ़ियल ज़ोर-ज़बरदस्ती करने लगा। तभी मोती ने सींग चलाया और दढ़ियल को दूर तक खदेड़ दिया। थोड़ी देर बाद ही दोनों खुशी से खली-भूसी-चूनी खाते दिखाई पड़े । घर की मालकिन ने भी आकर दोनों को चूम लिया।
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NCERT Solution – दो बैलों की कथा
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Saransh of class pariksha