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दिये जल उठे पाठ का सारांश ( Very Short Summary ) class 9 Sanchayan
दांडी कूच की तैयारी के सिलसिले में वल्लभभाई पटेल सात मार्च को रास पहुँचे थे। लोगों के आग्रह पर पटेल ने संक्षिप्त भाषण दिया। इसी बीच मजिस्ट्रेट ने निषेधाज्ञा लागू कर दी और पटेल को गिरफ़्तार कर लिया गया। यह गिरफ़्तारी शिलिडी के आदेश पर हुई थी जिसे पटेल ने पिछले आंदोलन के समय अहमदाबाद से भगा दिया था। पटेल को बोरसद की आदलत में लाया गया। पटेल को 500 जुर्माने के साथ तीन महीने की जेल हुई। पटेल को अहमदाबाद से साबरमती जेल लाया गया। साबरमती आश्रम में गांधी को पटेल की गिरफ़्तारी, सजा और उन्हें जेल ले जाने की सूचना मिली जिससे वे बहुत क्षुब्ध हुए।
बोरसद से जेल का रास्ता साबरमती आश्रम से होकर जाता था। सारे आश्रमवासी इन्तजार कर रहे थे। पटेल को गिरफ़्तार करके ले जाने वाली मोटर रुकी और पटेल सबसे मिले। पटेल की गिरफ़्तारी की देशभर में प्रतिक्रिया हुई। सबने जेल भेजने के सरकारी कदम की भर्त्सना की।
दांडी कुछ से पहले नेहरू गांधी जी से मिलना चाहते थे लेकिन गांधी जी ने उन्हें पत्र द्वारा बता दिया कि वह अपनी यात्रा को आगे नहीं बढ़ायेंगे। तय दिन गांधी जी नमक बनाने के लिए आश्रम से निकल पड़े। रास में उनका भव्य स्वागत हुआ। वहाँ के दरबारी लोग उनके साथ मिल गए। वहाँ उमड़े जनसभा में गांधी जी ने भाषण दिया और ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनौती दी। गांधी जी किसी राजघराने के इलाके से नहीं जाना चाहते थे। वे चाहते थे कि अपनी पूरी यात्रा ब्रिटिश हुकूमतवाली जमीन से ही करें लेकिन फिर भी उन्हें कुछ रास्ता बड़ौदा रियासत के बीच से तय करना पड़ा।
सत्याग्रही शाम छह बजे रास से चले और आठ बजे कनकापुरा पहुँचे। वहाँ की जनसभा को गांधीजी ने संबोधित करते हुए ब्रितानी कुशासन का जिक्र किया। संबोधन के बाद उस दिन की यात्रा समाप्त होनी थी परन्तु उसमे बदलाव किया गया। कनकापुरा से दांडी जाने के लिए मही नदी पर करनी थी तय हुआ कि नदी को आधी रात के समय समुद्र का पानी चढ़ने पर पार किया जाए ताकि कीचड़ और दलदल में कम-से-कम चलना पड़े। रात साढ़े दस बजे भोजन के बाद सत्याग्रही नदी की ओर चल पड़े। अँधेरी रात में गांधी जी लगभग चार किलोमीटर दलदली जमीन पर चले और नदी के तट पर एक कुटिया में आराम किया।
आधी रात को मही नदी का किनारा भरा था। कनकापुरा के लोगों के हाथ में दिए थे। तट के दूसरी ओर भी लोग दिए जलाकर खड़े थे। लोगों ने दिए द्वारा उस रात को जगमग रात बना दिया था। गांधीजी घुटने भर पानी में चलकर नाव पर चढ़े। महात्मा गांधी, सरदार पटेल और नेहरू की जय के नारे लगने लगे। महिसागर नदी का दूसरा तट भी कीचड़ और दलदली जमीन से भरा था। डेढ़ किलोमीटर कीचड़ और पानी में चलकर रात एक बजे उस पार पहुंचे और सीधे विश्राम करने चले गए। दोनों किनारों पर लोग रातभर दिए लेकर खड़े रहे चूँकि कई सत्याग्रहियों को नदी पार करनी थी।
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