कवि परिचय
वीरेन डंगवाल
इनका जन्म 5 अगस्त 1947 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के कृतिनगर में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में और उच्च शिक्षा इलाहाबाद में हुई। इन्होने ऐसी बहुत सी चीज़ों और जीव-जंतुओं को अपनी कविता को आधार बनाया।
तोप पाठ सार ( Short Summary )
प्रस्तुत पाठ हमें याद दिलाता है कि कभी ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने के इरादे से आई थी। भारत में उसका स्वागत किया गया था परन्तु धीरे – धीरे वो हमारी शासक बन गई। अगर उन्होंने कुछ बाग़ – बगीचे बनाये तो उन्होंने तोपें भी तैयार की। कवि कहते हैं कि यह जो 1857 की तोप आज कंपनी बाग़ के प्रवेश द्वार पर रखी गई है इसकी बहुत देखभाल की जाती है। जिस तरह यह कंपनी बाग़ हमें विरासत में अंग्रेजों से मिला है उसी तरह यह तोप भी हमें अंग्रेजों से ही विरासत में मिली है। सुबह और शाम को बहुत सारे व्यक्ति कंपनी के बाग़ में घूमने के लिए आते हैं। तब यह तोप उन्हें अपने बारे में बताती है कि मैं अपने ज़माने में बहुत ताकतवर थी। अब तोप की स्थिति बहुत बुरी है- छोटे बच्चे इस पर बैठ कर घुड़सवारी का खेल खेलते हैं। चिड़ियाँ इस पर बैठ कर आपस में बातचीत करने लग जाती हैं। कभी – कभी शरारती चिड़ियाँ खासकर गौरैयें तोप के अंदर घुस जाती हैं। वह हमें बताना चाहती है कि ताकत पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि ताकत हमेशा नहीं रहती।
तोप कविता का भावार्थ- Tope Poem Explanation in Hindi :
कम्पनी बाग़ के मुहाने पर
धर रखी गई है यह 1857 की तोप
इसकी होती है बड़ी सम्हाल
विरासत में मिले
कम्पनी बाग की तरह
साल में चमकायी जाती है दो बार
प्रस्तुत कविता में कवि वीरेन डंगवाल ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के युद्ध में अंग्रेज़ों द्वारा इस्तेमाल की हुई तोप का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि यह तोप आज कम्पनी बाग़ के प्रवेश द्वार रखी हुई है। जिस तरह कम्पनी बाग़ हमें अंग्रेज़ों द्वारा विरासत में मिली थी उसी तरह यह तोप भी हमें अंग्रेज़ो से ही प्राप्त हुआ जिसे आजकल बहुत देखभाल से रखा जाता है। कम्पनी बाग़ की तरह इसे भी साल में दो बार चमकाया जाता है।
सुबह-शाम कम्पनी बाग में आते हैं बहुत से सैलानी
उन्हें बताती है यह तोप
कि मैं बड़ी जबर
उड़ा दिये थे मैंने
अच्छे-अच्छे सूरमाओं के छज्जे
अपने ज़माने में
सुबह-शाम को बहुत सारे यात्री कम्पनी बाग़ में घूमने आते हैं तब यह तोप अपने बारे में बताती है की मैं बड़ी ताकतवर थी। उस समय मैंने बहुत सारे वीरों के मारा था। बहुत अत्याचार किये थे।
अब तो बहरहाल
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फारिग होतो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप
कभी-कभी शैतानी में वे इसके भीतर भी घुस जाती हैं
ख़ासकर गौरैयें
वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उनका मुँह बन्द !
परन्तु अब तोप की स्थिति बहुत बुरी है छोटे बच्चे इसपर बैठकर घुड़सवारी का खेल खेलते हैं। जब तोप बच्चों से मुक्त हो जाती है तब चिड़ियाँ इसपर बैठकर आपस में गप्प करती हैं। कभी-कभी चिड़ियाँ ख़ास तौर पर गौरेये तोप के भीतर घुस जाती हैं। इस दृश्य से कवि को ऐसा महसूस होता है मानो वह कह रही हों कोई कितना भी अत्याचारी और क्रूर हो उसका अंत एक न एक दिन जरूर होना है।
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