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Class 12 Hindi Unseen Passages अपठित काव्यांश
अपठित काव्यांश वे काव्यांश हैं जिनका अध्ययन हिंदी की पाठ्यपुस्तक में नहीं किया गया है। इन काव्यांशों के अध्ययन का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों की भावग्रहण क्षमता को विकसित करना है।
अपठित काव्यांश हल करने की विधि :
- सर्वप्रथम काव्यांश का दो-तीन बार अध्ययन करें ताकि उसका अर्थ व भाव समझ में आ सके।
- तत्पश्चात् काव्यांश से संबंधित प्रश्नों को ध्यान से पढ़िए।
- प्रश्नों के पढ़ने के बाद काव्यांश का पुनः अध्ययन कीजिए ताकि प्रश्नों के उत्तर से संबंधित पंक्तियाँ पहचानी जा सकें।
- प्रश्नों के उत्तर काव्यांश के आधार पर ही दीजिए।
- प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट होने चाहिए।
- उत्तरों की भाषा सहज व सरल होनी चाहिए।
गत वर्षों के पूछे गए प्रश्न
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
1. शांति नहीं तब तक, जब तक
सुख-भाग न सबका सम हो।
नहीं किसी को बहुत अधिक हो
नहीं किसी को कम हो।
स्वत्व माँगने से न मिले,
संघात पाप हो जाएँ।
बोलो धर्मराज, शोषित वे
जिएँ या कि मिट जाएँ?
न्यायोचित अधिकार माँगने
से न मिले, तो लड़ के
तेजस्वी छीनते समय को,
जीत, या कि खुद मर के।
किसने कहा पाप है? अनुचित
स्वत्व-प्राप्ति-हित लड़ना?
उठा न्याय का खड्ग समर में
अभय मारना-मरना?
प्रश्नः
(क) कवि के अनुसार शांति के लिए क्या आवश्यक शर्त है?
(ख) तेजस्वी किस प्रकार समय को छीन लेते हैं ?
(ग) न्यायोचित अधिकार के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए?
(घ) कृष्ण युधिष्ठिर को युद्ध के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं ?
उत्तरः
(क) कवि के अनुसार, शांति के लिए आवश्यक है कि संसार में संसाधनों का वितरण समान हो।
(ख) अपने अनुकूल समय को तेजस्वी जीतकर छीन लेते हैं।
(ग) न्यायोचित अधिकार के लिए मनुष्य को संघर्ष करना पड़ता है। अपना हक माँगना पाप नहीं है।
(घ) कृष्ण युधिष्ठिर को युद्ध के लिए इसलिए प्रेरित कर रहे हैं ताकि वे अपने हक को पा सकें, अपने प्रति अन्याय को खत्म कर सकें।
2. नीड़ का निर्माण फिर-फिर
नेह का आह्वान फिर-फिर
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा
धूलि-धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया फिर
रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा,
इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुसकान फिर-फिर
नीड़ का निर्माण फिर-फिर
नेह का आह्वान फिर-फिर
प्रश्नः
(क) आँधी तथा बादल किसके प्रतीक हैं ? इनके क्या परिणाम होते हैं ?
(ख) कवि निर्माण का आह्वान क्यों करता है?
(ग) कवि किस बात से भयभीत है और क्यों?
(घ) उषा की मुसकान मानव-मन को क्या प्रेरणा देती है?
उत्तरः
(क) आँधी और बादल विपदाओं के प्रतीक हैं। जब विपदाएँ आती हैं तो उससे जनजीवन अस्तव्यस्त हो जाता है। मानव मन का उत्साह नष्ट हो जाता है।
(ख) कवि निर्माण का आह्वान इसलिए करता है ताकि सृष्टि का चक्र चलता रहे। निर्माण ही जीवन की गति है।
(ग) विपदाओं के कारण चारों तरफ निराशा का माहौल था। कवि को लगता था कि निराशा के कारण निर्माण कार्य रुक जाएगा।
(घ) उषा की मुसकान मानव में कार्य करने की इच्छा जगाती है। वह मानव को निराशा के अंधकार से बाहर निकालती है।
3. पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे,
और प्रज्वलित प्राण देश कया कभी मरेगा मारे?
लहू गर्म करने को रक्खो मन में ज्वलित विचार,
हिंसक जीव से बचने को चाहिए किंतु तलवार ।
एक भेद है और जहाँ निर्भय होते नर-नारी
कलम उगलती आग, जहाँ अक्षर बनते चिंगारी
जहाँ मनुष्यों के भीतर हरदम जलते हैं शोले,
बातों में बिजली होती, होते दिमाग में गोले।
जहाँ लोग पालते लहू में हालाहल की धार
क्या चिंता यदि वहाँ हाथ में हुई नहीं तलवार?
प्रश्नः
(क) कलम किस बात की प्रतीक है?
(ख) तलवार की आवश्यकता कहाँ पड़ती है?
(ग) लहू को गरम करने से कवि का क्या आशय है?
(घ) कैसे व्यक्ति को तलवार की आवश्यकता नहीं होती?
उत्तरः
(क) कलम क्रांति पैदा करने का प्रतीक है। वह वैचारिक क्रांति लाती है।
(ख) तलवार की आवश्यकता हिंसक पशुओं से बचने के लिए होती है अर्थात् अन्यायी को समाप्त करने के लिए इसकी ज़रूरत होती है।
(ग) इसका अर्थ है-क्रांतिकारी विचारों से मन में जोश व उत्साह का बनाए रखना।
(घ) वे व्यक्ति जिनमें अंदर जोश है, वैचारिक शक्ति है, उन्हें तलवार की ज़रूरत नहीं होती।
4. यह लघु सरिता का बहता जल
कितना शीतल, कितना निर्मल
हिमगिरि के हिम से निकल-निकल,
यह विमल दूध-सा हिम का जल,
कर-कर निनाद कल-कल, छल-छल,
तन का चंचल मन का विह्वल
यह लघु सरिता का बहता जल।
ऊँचे शिखरों से उतर-उतर
गिर-गिर, गिरि की चट्टानों पर,
कंकड़-कंकड़ पैदल चलकर
दिनभर, रजनी-भर, जीवन-भर
धोता वसुधा का अंतस्तल
यह लघु सरिता का बहता जल।
हिम के पत्थर वो पिघल-पिघल,
बन गए धरा का वारि विमल,
सुख पाता जिससे पथिक विकल
पी-पी कर अंजलि भर मृदुजल
नित जलकर भी कितना शीतल
यह लघु सरिता का बहता जल।
कितना कोमल कितना वत्सल
रे जननी का वह अंतस्तल,
जिसका यह शीतल करुणाजल
बहता रहता युग-युग अविरल
गंगा, यमुना, सरयू निर्मल
यह लघु सरिता का बहता जल।
प्रश्नः
(क) वसुधा का अंतस्तल धोने में जल को क्या-क्या करना पडता है?
(ख) जल की तुलना दूध से क्यों की गई है?
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए-‘तन का चंचल मन का विह्वल’
(घ) ‘रे जननी का वह अंतस्तल’ में जननी किसे कहा गया है?
उत्तरः
(क) वसुधा का अंतस्तल धोने के लिए जल ऊँचे पर्वतों से उतरकर पर्वतों की चट्टानों पर गिरकर कंकड़-कंकड़ों पर पैदल चलते हुए दिन-रात जीवन पर्यंत कार्य करता है।
(ख) हिम के पिघलने से जल बनता है जो शुद्ध व पवित्र होता है। दूध को भी पवित्र व शुद्ध माना जाता है। अतः जल की तुलना दूध से की गई है।
(ग) इसका मतलब है कि जिस प्रकार शरीर में मन चंचल अपने भावों के कारण हर वक्त गतिशील रहता है, उसी तरह छोटी नदी का जल भी हर समय गतिमान रहता है।
(घ) इसमें भारत माता को जननी कहा गया है।
5. यह जीवन क्या है ? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है।
सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है।
कब फूटा गिरि के अंतर से? किस अंचल से उतरा नीचे।
किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे।
निर्झर में गति है जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है।
धुन एक सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है।
बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता,
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता।
लहरें उठती हैं, गिरती हैं, नाविक तट पर पछताता है,
तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है।
निर्झर कहता है बढ़े चलो! देखो मत पीछे मुड़कर,
यौवन कहता है बढ़े चलो! सोचो मत क्या होगा चल कर।
चलना है केवल चलना है! जीवन चलता ही रहता है,
रुक जाना है मर जाना है, निर्झर यह झरकर कहता है।
प्रश्नः
(क) जीवन की तुलना निर्झर से क्यों की गई है?
(ख) जीवन और निर्झर में क्या समानता है ?
(ग) जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए?
(घ) ‘तब यौवन बढ़ता है आगे!’ से क्या आशय है?
उत्तरः
(क) जीवन व निर्झर में समानता है क्योंकि दोनों में मस्ती होती है तथा दोनों ही सुख-दुख के किनारों के बीच चलते हैं।
(ख) जीवन की तुलना निर्झर से की गई है क्योंकि जिस तरह निर्झर विभिन्न बाधाओं को पार करते हुए निरंतर आगे चलता रहता है, उसी प्रकार जीवन भी बाधाओं से लड़ते हुए आगे बढ़ता है।
(ग) जीवन का उद्देश्य सिर्फ चलना है। रुक जाना उसके लिए मृत्यु के समान है।
(घ) इसका आशय है कि जब जीवन में विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं तो आम व्यक्ति रुक जाता है, परंतु युवा शक्ति आगे बढ़ती है। वह परिणाम की परवाह नहीं करती।
6. आँसू से भाग्य पसीजा है, हे मित्र कहाँ इस जग में?
नित यहाँ शक्ति के आगे, दीपक जलते मग-मग में।
कुछ तनिक ध्यान से सोचो, धरती किसती हो पाई ?
बोलो युग-युग तक किसने, किसकी विरुदावलि गाई ?
मधुमास मधुर रुचिकर है, पर पतझर भी आता है।
जग रंगमंच का अभिनय, जो आता सो जाता है।
सचमुच वह ही जीवित है, जिसमें कुछ बल-विक्रम है।
पल-पल घुड़दौड़ यहाँ है, बल-पौरुष का संगम है।
दुर्बल को सहज मिटाकर, चुपचाप समय खा जाता,
वीरों के ही गीतों को, इतिहास सदा दोहराता।
फिर क्या विषाद, भय चिंता जो होगा सब सह लेंगे,
परिवर्तन की लहरों में जैसे होगा बह लेंगे।
प्रश्नः
(क) ‘रोने से दुर्भाग्य सौभाग्य में नहीं बदल जाता’ के भाव की पंक्तियाँ छाँटकर लिखिए।
(ख) समय किसे नष्ट कर देता है और कैसे?
(ग) इतिहास किसे याद रखता है और क्यों?
(घ) ‘मधुमास मधुर रुचिकर है, पर पतझर भी आता है’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
(क) ये पंक्तिया हैं आँसू से भाग्य पसीजा है, हे मित्र, कहाँ इस जग में नित यहाँ शक्ति के आगे, दीपक जलते मग-मग में।
(ख) समय हमेशा कमजोर व्यवस्था को चुपचाप नष्ट कर देता है। दुर्बल तब समय के अनुसार स्वयं को बदल नहीं पाता तथा प्रेरणापरक कार्य नहीं करता।
(ग) इतिहास उन्हें याद रखता है जो अपने बल व पुरुषार्थ के आधार पर समाज के लिए कार्य करते हैं। प्रेरक कार्य करने वालों को जनता याद रखती है।
(घ) इसका अर्थ है कि अच्छे दिन सदैव नहीं रहते। मानव के जीवन में पतझर जैसे दुख भी आते हैं।
7. तरुणाई है नाम सिंधु की उठती लहरों के गर्जन का,
चट्टानों से टक्कर लेना लक्ष्य बने जिनके जीवन का।
विफल प्रयासों से भी दूना वेग भुजाओं में भर जाता,
जोड़ा करता जिनकी गति से नव उत्साह निरंतर नाता।
पर्वत के विशाल शिखरों-सा यौवन उसका ही है अक्षय,
जिनके चरणों पर सागर के होते अनगिन ज्वार साथ लय।
अचल खड़े रहते जो ऊँचा, शीश उठाए तूफ़ानों में,
सहनशीलता दृढ़ता हँसती जिनके यौवन के प्राणों में।
वही पंथ बाधा को तोड़े बहते हैं जैसे हों निर्झर,
प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर।
प्रश्नः
(क) कवि ने किसका आह्वान किया है और क्यों?
(ख) तरुणाई की किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?
(ग) मार्ग की रुकावटों को कौन तोड़ते हैं और कैसे?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-‘जिनके चरणों पर सागर के होते अनगिन ज्वार साथ लय।’
उत्तरः
(क) कवि ने युवाओं का आह्वान किया है क्योंकि उनमें उत्साह होता है और वे संघर्ष क्षमता से युक्त होते हैं।
(ख) तरुणाई की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख कवि ने किया है-उत्साह, कठिन परिस्थितियों का सामना करना, हार से निराश न होना, दृढ़ता, सहनशीलता आदि।
(ग) मार्ग की रुकावटों को युवा शक्ति तोड़ती है। जिस प्रकार झरने चट्टानों को तोड़ते हैं, उसी प्रकार युवा शक्ति अपने पंथ की रुकावटों को खत्म कर देती है।
(घ) इसका अर्थ है कि युवा शक्ति जनसामान्य में उत्साह का संचार कर देती है।
8. अचल खड़े रहते जो ऊँचा शीश उठाए तूफानों में,
सहनशीलता, दृढ़ता हँसती जिनके यौवन के प्राणों में।
वही पंथ बाधा तो तोड़े बहते हैं जैसे हों निर्झर,
प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर।
आज देश की भावी आशा बनी तुम्हारी ही तरुणाई,
नए जन्म की श्वास तुम्हारे अंदर जगकर है लहराई।
आज विगत युग के पतझर पर तुमको नव मधुमास खिलाना,
नवयुग के पृष्ठों पर तुमको है नूतन इतिहास लिखाना।
उठो राष्ट्र के नवयौवन तुम दिशा-दिशा का सुन आमंत्रण,
जागो, देश के प्राण जगा दो नए प्रात का नया जागरण।
आज विश्व को यह दिखला दो हममें भी जागी तरुणाई,
नई किरण की नई चेतना में हमने भी ली अंगड़ाई।
प्रश्नः
(क) मार्ग की रुकावटों को कौन तोड़ता है और कैसे?
(ख) नवयुवक प्रगति के नाम को कैसे सार्थक करते हैं ?
(ग) “विगत युग के पतझर’ से क्या आशय है?
(घ) कवि देश के नवयुवकों का आह्वान क्यों कर रहा है?
उत्तरः
(क) मार्ग की रुकावटों को वीर तोड़ता है। वे अपने उत्साह, संघर्ष, सहनशीलता व वीरता से पथ की बाधाओं को दूर करते हैं।
(ख) नवयुवक प्रगति के नाम को दुर्गम रास्तों पर चलकर सार्थक करते हैं।
(ग) इसका आशय है कि पिछले कुछ समय से देश में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हो पा रहा है।
(घ) कवि देश के नवयुवकों का आह्वान इसलिए कर रहा है क्योंकि उनमें नए, कार्य करने का उत्साह व क्षमता है। वे नए इतिहास को लिख सकते हैं। उन्हें देश में नया उत्साह जगाना है।
9. मैंने गढ़े
ताकत और उत्साह से
भरे-भरे
कुछ शब्द
जिन्हें छीन लिया मठाधीशों ने
दे दिया उन्हें धर्म का झंडा
उन्मादी हो गए
मेरे शब्द
तलवार लेकर
बोऊँगी उन्हें मिटाने लगे
अपना ही वजूद
फिर रचे मैंने
इंसानियत से लबरेज
ढेर सारे शब्द
नहीं छीन पाएगा उन्हें
छीनने की कोशिश में भी
गिर ही जाएँगे कुछ दाने
और समय आने पर
फिर उगेंगे वे
अबकी उन्हें अगवा कर लिया
सफ़ेदपोश लुटेरों ने
और दबा दिया उन्हें
कुर्सी के पाये तले
असहनीय दर्द से चीख रहे हैं
मेरे शब्द और वे
कर रहे हैं अट्टहास
अब मैं गर्दैगी
निराई गुड़ाई और
खाद-पानी से
लहलहा उठेगी फ़सल
तब कोई मठाधीश
कोई लुटेरा
एक बार
दो बार
बार-बार
लगातार उगेंगे
मेरे शब्द
प्रश्नः
(क) ‘मठाधीशों’ ने उत्साह भरे शब्दों को क्यों छीना होगा?
(ख) आशय समझाइए-कुर्सी के पाये तले दर्द से चीख रहे हैं
(ग) कवयित्री किस उम्मीद से शब्दों को बो रही है?
(घ) ‘और वे कर रहे हैं अट्टहास’ में ‘वे’ शब्द किनके लिए प्रयुक्त हुआ है?
उत्तरः
(क) मठाधीशों ने उत्साह भरे शब्दों को छीन लिया ताकि वे धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए उनका इस्तेमाल कर सके।
(ख) इसका आशय है कि सत्ता ने इंसानियत के शब्दों को कैद कर लिया। वे मुक्ति चाहते हैं, परंतु सत्ता उन्हें अपने हितों के लिए इस्तेमाल करती है।
(ग) कवयित्री अपने शब्दों को बो रही है ताकि इन शब्दों को कोई लूट या कब्जा न कर सके। जब इनकी फ़सल उग जाएगी तो ये चिरस्थायी हो जाएँगे।
(घ) ‘वे’ शब्द सफ़ेदपोश लुटेरों के लिए है।
10. खुल कर चलते डर लगता है
बातें करते डर लगता है
क्योंकि शहर बेहद छोटा है।
ऊँचे हैं, लेकिन खजूर से
मुँह है इसीलिए कहते हैं,
जहाँ बुराई फूले-पनपे-
वहाँ तटस्थ बने रहते हैं,
नियम और सिद्धांत बहुत
दंगों से परिभाषित होते हैं-
जो कहने की बात नहीं है,
वही यहाँ दुहराई जाती,
जिनके उजले हाथ नहीं हैं,
उनकी महिमा गाई जाती
यहाँ ज्ञान पर, प्रतिभा पर,
अवसर का अंकुश बहुत कड़ा है-
सब अपने धंधे में रत हैं
यहाँ न्याय की बात गलत है
क्योंकि शहर बेहद छोटा है।
बुद्धि यहाँ पानी भरती है,
सीधापन भूखों मरता है-
उसकी बड़ी प्रतिष्ठा है,
जो सारे काम गलत करता है।
यहाँ मान के नाप-तौल की,
इकाई कंचन है, धन है-
कोई सच के नहीं साथ है
यहाँ भलाई बुरी बात है।
क्योंकि शहर बेहद छोटा है।
प्रश्नः
(क) कवि शहर को छोटा कहकर किस ‘छोटेपन’ को अभिव्यक्त करना चाहता है ?
(ख) इस शहर के लोगों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?
(ग) आशय समझाइए
‘बुद्धि यहाँ पानी भरती है,
सीधापन भूखों मरता है’
(घ) इस शहर में असामाजिक तत्व और धनिक क्या-क्या प्राप्त करते हैं ?
उत्तरः
(क) कवि ने शहर को छोटा कहा है क्योंकि यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। व्यक्तियों के स्वार्थ में डूबे होने के कारण हर जगह अन्याय स्थापित हो रहा है।
(ख) इस शहर के लोग संवेदनहीन, स्वार्थी, डरपोक, अन्यायी का गुणगान करने वाले व निरर्थक प्रलाप करने वाले हैं।
(ग) इस पंक्ति का आशय है कि यहाँ विद्वान व समझदार लोगों को महत्त्व नहीं दिया जाता। सरल स्वभाव का व्यक्ति अपना जीवन निर्वाह भी नहीं कर सकता।
(घ) इस शहर में असामाजिक तत्व दंगों से अपना शासन स्थापित करते हैं तथा नियम बनाते हैं। धनिक अवैध कार्य करके धन कमाते हैं।
11. जाग रहे हम वीर जवान,
जियो, जियो ऐ हिंदुस्तान!
हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल,
हम नवीन भारत के सैनिक, धीर, वीर, गंभीर, अचल।
हम प्रहरी ऊँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं,
हम हैं शांति-दूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।
वीरप्रसू माँ की आँखों के, हम नवीन उजियाले हैं,
गंगा, यमुना, हिंद महासागर के हम ही रखवाले हैं।
तन, मन, धन, तुम पर कुर्बान,
जियो, जियो ऐ हिंदुस्तान!
हम सपूत उनके, जो नर थे, अनल और मधु के मिश्रण,
जिनमें नर का तेज प्रखर था, भीतर था नारी का मन।
एक नयन संजीवन जिनका, एक नयन था हालाहल,
जितना कठिन खड्ग था कर में, उतना ही अंतर कोमल।
थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर,
स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर।
हम उन वीरों की संतान,
जियो, जियो ऐ हिंदुस्तान!
प्रश्नः
(क) ‘नवीन भारत’ से क्या तात्पर्य है?
(ख) उस पंक्ति को उद्धृत कीजिए जिसका आशय है कि भारतीय बाहर से चाहे कठोर दिखाई पड़ें, उनका हृदय कोमल होता है।
(ग) ‘हम उन वीरों की संतान’-उन पूर्वज वीरों की कुछ विशेषताएँ लिखिए।
(घ) ‘वीरप्रसू माँ’ किसे कहा गया है? क्यों?
उत्तरः
(क) ‘नवीन भारत’ से तात्पर्य है-आज़ादी के पश्चात् निरंतर विकसित होता भारत।
(ख) उक्त भाव को व्यक्त करने वाली पंक्ति है-जितना कठिन खड्ग था कर में, उतना ही अंतर कोमल।
(ग) कवि ने पूर्वज वीरों की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं
- इनकी वीरता से संसार भयभीत था।
- वीरों में आग व मधु का मेल था।
- वीरों में तेज था, परंतु वे कोमल भावनाओं से युक्त थे।
(घ) ‘वीरप्रसू माँ’ से तात्पर्य भारतमाता से है। भारतमाता ने देश का मान बढ़ाने वाले अनेक वीर दिए हैं।
12. देखो प्रिये, विशाल विश्व को आँख उठाकर देखो,
अनुभव करो हृदय से यह अनुपम सुषमाकर देखो।
यह सामने अथाह प्रेम का सागर लहराता है,
कूद पड़ें, तैरूँ इसमें, ऐसा जी में आता है।
रत्नाकर गर्जन करता है मलयानिल बहता है,
हरदम यह हौसला हृदय में प्रिय! भरा रहता है।
इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के,
कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरूँ जी भर के॥
निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा,
कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा।
लाने को निज पुण्यभूमि पर लक्ष्मी की असवारी,
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी॥
प्रश्नः
(क) कवि अपनी प्रेयसी से क्या देखने का अनुरोध कर रहा है और क्यों?
(ख) समुद्र को ‘रत्नाकर’ क्यों कहा जाता है ?
(ग) विशाल सागर को देखने पर कवि के मन में क्या इच्छाएँ जगती हैं ?
(घ) काव्यांश के आधार पर सूर्योदय का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तरः
(क) कवि अपनी प्रेयसी से विशाल विश्व को देखने का अनुरोध कर रहा है क्योंकि वह विश्व की सुंदरता का अनुभव उसे कराना चाहता है।
(ख) समुद्र को ‘रत्नाकर’ इसलिए कहा गया है क्योंकि इसके अंदर संसार के कीमती खनिज-पदार्थ, रत्न आदि मिलते हैं।
(ग) विशाल सागर को देखकर कवि के मन में इसमें कूदकर तैरने की इच्छा उत्पन्न होती है।
(घ) कवि कहता है कि समुद्र के तल पर सूर्य आधा निकला है जो लक्ष्मी के सोने के मंदिर का चमकता कंगूरा जैसा लगता है जैसे, लक्ष्मी की सवारी को लाने के लिए सागर ने सोने की सड़क बना दी हो।
13. तुम नहीं चाहते थे क्या
फूल खिलें
भौरे गूंजें
तितलियाँ उड़ें?
नहीं चाहते थे तुम
शरदाकाश
वसंत की हवा
मंजरियों का महोत्सव
कोकिल की कुहू, हिरनों की दौड़?
तुम्हें तो पसंद थे भेड़िये
भेड़ियों-से धीरे-धीरे जंगलाते आदमी
समूची हरियाली को धुआँ बनाते विस्फोट!
तुमने ही बना दिया है सबको अंधा-बहरा
आकाशगामी हो गए सब
कोलाहल में डूबे, वाणी-विहीन
अब भी समय है
बाकी है भविष्य अभी
खड़े हो जाओ अँधेरों के खिलाफ
वेद-मंत्रों से ध्याता,
पहचानो अपनी धरती
अपना आकाश!
प्रश्नः
(क) आतंकी विस्फोटों के क्या-क्या परिणाम होते हैं ?
(ख) आतंकवादियों को धरती के कौन-कौन से रूप नहीं लुभाते?
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए
‘तुम्हें तो पसंद थे भेडिये
भेड़ियों से धीरे-धीरे जंगलाते आदमी’
(घ) ‘अब भी समय है’ कहकर कवि क्या अपेक्षा करता है?
उत्तरः
(क) आतंकी विस्फोटों के निम्नलिखित परिणाम होते हैं-हरियाली का नष्ट होना, जीवधारियों की शांति भंग होना, विनाशक शकि तयों का प्रबल होना।
(ख) आतंकवादियों को-धरती पर फूल खिलना, भौरों का गुंजन, तितलियाँ उड़ना, वसंती हवा, मंजरियों का उत्सव, हिरनों की दौड़, कोयल का गाना आदि पसंद नहीं है।
(ग) इसका अर्थ है कि आतंकवादियों को धूर्त व हत्यारी प्रकृति के लोग पसंद होते हैं। ऐसे लोगों की बढ़ती संख्या से जंगलीपन बढ़ता जाता है।
(घ) ‘अब भी समय है’ कहकर कवि यह अपेक्षा करता है कि आतंकी अपना बहुत कुछ खो चुके हैं, परंतु अभी सुधरने का समय है। वे इन प्रकृतियों के खिलाफ खड़े होकर समाज को बचा सकते हैं।
14. ‘सर! पहचाना मुझे ?’
बारिश में भीगता आया कोई
कपड़े कीचड़-सने और बालों में पानी।
बैठा। छन-भर सुस्ताया। बोला, नभ की ओर देख-
‘गंगा मैया पाहुन बनकर आई थीं’
झोंपड़ी में रहकर लौट गईं-
नैहर आई बेटी की भाँति
चार दीवारों में कुदकती-फुदकती रहीं
खाली हाथ वापस कैसे जातीं!
घरवाली तो बच गईं-
दीवारें ढहीं, चूल्हा बुझा, बरतन-भाँडे-
जो भी था सब चला गया।
प्रसाद-रूप में बचा है नैनों में थोड़ा खारा पानी
पत्नी को साथ ले, सर, अब लड़ रहा हूँ
ढही दीवार खड़ी कर रहा हूँ
कादा-कीचड़ निकाल फेंक रहा हूँ।’
मेरा हाथ जेब की ओर जाते देख
वह उठा, बोला-‘सर पैसे नहीं चाहिए।
जरा अकेलापन महसूस हुआ तो चला आया
घर-गृहस्थी चौपट हो गई पर
रीढ़ की हड्डी मज़बूत है सर!
पीठ पर हाथ थपकी देखकर
आशीर्वाद दीजिए-
लड़ते रहो।’
प्रश्नः
(क) बाढ़ की तुलना मायके आई हुई बेटी से क्यों की गई है?
(ख) ‘सर’ का हाथ जेब की ओर क्यों गया होगा?
(ग) आगंतुक ‘सर’ के घर क्यों आया था?
(घ) कैसे कह सकते हैं कि आगंतुक स्वाभिमानी और संघर्षशील व्यक्ति है?
उत्तरः
(क) बाढ़ की तुलना मायके आई हुई बेटी से इसलिए की है क्योंकि शादी के बाद बेटी अचानक आकर मायके से बहुत कुछ सामान लेकर चली जाती है। इसी तरह बाढ़ भी अचानक आकर लोगों की जमापूँजी लेकर ही जाती है।
(ख) ‘सर’ का हाथ जेब की ओर इसलिए गया होगा ताकि वह बाढ़ में अपना सब कुछ गँवाए हुए व्यक्ति की कुछ आर्थिक सहायता कर सके।
(ग) आगंतुक ‘सर’ के घर आर्थिक मदद माँगने नहीं आया था। वह अपने अकेलेपन को दूर करने आया था। वह ‘सर’ से संघर्ष करने की क्षमता का आशीर्वाद लेने आया था।
(घ) आगंतुक के घर का सामान बाढ़ में बह गया। इसके बावजूद वह निराश नहीं था। उसने मकान दोबारा बनाना शुरू किया। उसने ‘सर’ से आर्थिक सहायता लेने के लिए भी इनकार कर दिया। अतः हम कह सकते हैं कि आगंतुक स्वाभिमानी और संघर्षशील व्यक्ति है।
15. स्नायु तुम्हारे हों इस्पाती।
देह तुम्हारी लोहे की हो, स्नायु तुम्हारे हों इस्पाती,
युवको, सुनो जवानी तुममें आए आँधी-सी अर्राती।
जब तुम चलो चलो ऐसे
जैसे गति में तूफान समेटे।
हो संकल्प तुम्हारे मन में।
युग-युग के अरमान समेटे।
अंतर हिंद महासागर-सा, हिमगिरि जैसी चौड़ी छाती।
जग जीवन के आसमान में
तुम मध्याह्न सूर्य-से चमको
तुम अपने पावन चरित्र से
उज्ज्व ल दर्पण जैसे दमको।
साँस-साँस हो झंझा जैसी रहे कर्म ज्वाला भड़काती।
जनमंगल की नई दिशा में ‘
तुम जीवन की धार मोड़ दो
यदि व्यवधान चुनौती दे तो
तुम उसकी गरदन मरोड़ दो।
ऐसे सबक सिखाओ जिसको याद करे युग-युग संघाती।
स्नायु तुम्हारे हों इस्पाती।
प्रश्नः
(क) युवकों के लिए फ़ौलादी शरीर की कामना क्यों की गई है?
(ख) किसकी गरदन मरोड़ने को कहा गया है और क्यों?
(ग) बलिष्ठ युवकों की चाल-ढाल के बारे में क्या कहा गया है?
(घ) युवकों की तेजस्विता के बारे में क्या कल्पना की गई है?
उत्तरः
(क) युवकों के लिए फ़ौलादी शरीर की कामना इसलिए की गई है ताकि उनमें उत्साह का संचार रहे। उनकी गति में तूफान व संकल्पों में युग-युग के अरमान समा जाएँ।
(ख) कवि ने व्यवधान की गरदन मरोड़ने को कहा है क्योंकि उसे सबक सिखाने की ज़रूरत है। उसे ऐसे सबक को लंबे समय तक याद रखना होगा।
(ग) बलिष्ठ युवकों की चाल-ढाल के बारे में कवि कहता है कि उन्हें तूफान की गति के समान चलना चाहिए। उनका मन हिंद महासागर के समान गहरा व सीना हिमालय जैसा चौड़ा होना चाहिए।
(घ) युवकों की तेजस्विता के बारे में कवि कल्पना करता है कि वे संसार के आसमान में दोपहर के सूर्य के समान चमकें। वे अपने पवित्र चरित्र से उज्ज्वल दर्पण के समान दमकने चाहिए।
16. नए युग में विचारों की नई गंगा कहाओ तुम,
कि सब कुछ जो बदल दे, ऐसे तूफ़ाँ में नहाओ तुम।
अगर तुम ठान लो तो आँधियों को मोड़ सकते हो
अगर तुम ठान लो तारे गगन के तोड़ सकते हो,
अगर तुम ठान लो तो विश्व के इतिहास में अपने-
सुयश का एक नव अध्याय भी तुम जोड़ सकते हो,
तुम्हारे बाहुबल पर विश्व को भारी भरोसा है-
उसी विश्वास को फिर आज जन-जन में जगाओ तुम।
पसीना तुम अगर इस भूमि में अपना मिला दोगे,
करोड़ों दीन-हीनों को नया जीवन दिला दोगे।
तुम्हारी देह के श्रम-सीकरों में शक्ति है इतनी-
कहीं भी धूल में तुम फूल सोने के खिला दोगे।
नया जीवन तुम्हारे हाथ का हल्का इशारा है
इशारा कर वही इस देश को फिर लहलहाओ तुम।
प्रश्नः
(क) यदि भारतीय नवयुवक दृढ़ निश्चय कर लें, तो क्या-क्या कर सकते हैं ?
(ख) नवयुवकों से क्या-क्या करने का आग्रह किया जा रहा है?
(ग) युवक यदि परिश्रम करें, तो क्या लाभ होगा?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए
‘कहीं भी धूल में तुम फूल सोने के खिला दोगे।’
उत्तरः
(क) यदि भारतीय नवयुवक दृढ़ निश्चय कर लें तो वे विपदाओं का रास्ता बदल सकते हैं, वे विश्व के इतिहास को बदल सकते है, असंभव कार्य को संभव कर सकते हैं तथा अपने यश का नया अध्याय जोड़ सकते हैं।
(ख) कवि नवयुवकों से आग्रह करता है कि वे नए विचार अपनाकर जनता को जाग्रत कर तथा उनमें आत्मविश्वास का भाव जगाएँ।
(ग) युवक यदि परिश्रम करें तो करोड़ों दीन-हीनों को नया जीवन मिल सकता है।
(घ) इस पंक्ति का अर्थ है कि युवकों में इतनी कार्यक्षमता है कि वे कम साधनों के बावजद विकट स्थितियों में भी समाज को अधिक दे सकते हैं।
17. महाप्रलय की अग्नि साथ लेकर जो जग में आए
विश्वबली शासन का भय जिनके आगे शरमाए
चले गए जो शीश चढ़ाकर अर्घ्य दिया प्राणों का
चलें मज़ारों पर हम उनकी, दीपक एक जलाएँ।
टूट गईं बंधन की कड़ियाँ स्वतंत्रता की बेला
लगता है मन आज हमें कितना अवसन्न अकेला।
जीत गए हम, जीता विद्रोही अभिमान हमारा।
प्राणदान से क्षुब्ध तरंगों को मिल गया किनारा।
उदित हुआ रवि स्वतंत्रता का व्योम उगलता जीवन,
आज़ादी की आग अमर है, घोषित करता कण-कण।
कलियों के अधरों पर पलते रहे विलासी कायर,
उधर मृत्यु पैरों से बाँधे, रहा जूझता यौवन।
उस शहीद यौवन की सुधि हम क्षण भर को न बिसारें,
उसके पग-चिहनों पर अपने मन में मोती वारें।
प्रश्नः
(क) कवि किनकी मज़ारों पर दीपक जलाने का आह्वान कर रहा है और क्यों?
(ख) ‘टूट गईं बंधन की कड़ियाँ’-कवि किस बंधन की बात कर रहा है?
(ग) ‘विश्वबली शासन’ किसे कहा है? क्यों?
(घ) शहीद किसे कहते हैं ? शहीदों के बलिदान से हमें क्या प्राप्त हुआ?
उत्तर
(क) कवि शहीदों की मज़ारों पर दीपक जलाने का आह्वान कर रहा है क्योंकि उन शहीदों ने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया था।
(ख) ‘टूट गई बंधन की कड़ियाँ’ पंक्ति में कवि ने पराधीनता के बंधन की बात कही है।
(ग) “विश्वबली शासन’ से तात्पर्य है- ब्रिटिश शासन। कवि ने विश्वबली शासन इसलिए कहा है क्योंकि उस समय दुनिया के बड़े हिस्से पर अंग्रेज़ों का शासन था।
(घ) शहीद वे हैं जो क्रांति की ज्वाला लेकर आते हैं तथा देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं। वे मृत्यु से भी नहीं घबराते। शहीदों के बलिदान से हमें आज़ादी मिली।
अन्य उदाहरण (हल सहित)
1. एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक
धूप बरसी
पर अंतरिक्ष से नहीं
फटी मिट्टी से।
छायाएँ मानव जन की
दिशाहीन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूटकर
बिखर गए हों
दसों दिशा में
कुछ क्षण का वह उदय-अस्त।
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेने वाली दोपहरी
फिर?
छायाएँ मानव-जन की
नहीं मिटी लंबी हो-होकर
मानव ही सब भाप हो गए।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं।
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।
प्रश्नः
(क) क्षितिज से न उगकर नगर के बीचों-बीच बरसने वाला ‘वह सूरज’ क्या था?
(ख) वह दुर्घटना कब कहाँ, घटी थी?
(ग) उसे ‘कुछ क्षण का उदय-अस्त’ क्यों कहा गया है?
(घ) ‘मानव ही, सब भाप हो गए’ कथन का क्या आशय है?
उत्तरः
(क) क्षितिज से न उगकर नगर के बीचों-बीच बरसने वाला वह सूरज अमेरिका द्वारा जापान पर गिराया गया अणुबम था।
(ख) वह दुर्घटना दूसरे विश्वयुद्ध के अंत में जापान के हिरोशिमा नगर में हुई।
(ग) परमाणु बम विस्फोट अचानक हुआ था और कुछ ही क्षणों में सब कुछ नष्ट हो गया था।
(घ) इसका अर्थ है कि प्रचंड गरमी के कारण मनुष्य नष्ट हो गए। वे राख बन गए थे।
2. कलम आज उनकी जय बोल
पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रहीं लू लपट दिशाएँ
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल।
कलम आज उनकी जय बोल॥
अंध चकाचौंध का मारा,
क्या जाने इतिहास बिचारा।
साक्षी हैं जिनकी महिमा के
सूर्य, चंद्र, भूगोल, खगोल।
कलम आज उनकी जय बोल।
प्रश्नः
(क) स्वाधीनता संग्राम के शहीदों के सिंहनाद से आज भी धरती क्यों डोल जाती है?
(ख) ‘क्या जाने इतिहास बिचारा’ कहकर कवि इतिहास को युग का दर्पण क्यों नहीं मानता?
(ग) स्वाधीनता के वीर बलिदानियों की महिमा के साक्षी सूर्य, चंद्र, भूगोल और खगोल क्यों बताए गए हैं?
(घ) कलम से किनकी जय बोलने का आग्रह किया गया है और क्यों?
उत्तरः
(क) आज भी स्वाधीनता के शहीदों की वीरगाथा रोमांचित कर देती है। उनके सिंहनाद से आज भी पृथ्वी काँप जाती है। विदेशी सत्ता उसका ताप नहीं सह पाईं।
(ख) कवि की मान्यता है कि इतिहास में स्वार्थ-प्रेरित कुछेक लोगों का वर्णन मिलता है। सच्चे वीरों के वृत्तांत इतिहास में नहीं मिलते। इतिहास युग का दर्पण नहीं है। इसीलिए इतिहास को बेचारा व अनजाना कहा है।
(ग) स्वतंत्रता के शहीदों के चश्मदीद गवाह सूरज, चाँद, ज़मीन और आकाश इसलिए बताए गए हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य देखा है और वे इतिहास की भाँति अँधे नहीं हैं।
(घ) कवि चाहता है कि लेखनी उन बलिदानी वीरों की जय-जयकार करे, जिन्होंने स्वतंत्रता की बलिवेदी पर प्राण निछावर कर दिए और उनके बलिदान की आग से आज भी अंग्रेज़ी सत्ता थर्राती है।
3. वैराग्य छोड़ बाहों की विभा सँभालो,
चट्टानों की छाती से दूध निकालो।
है रुकी जहाँ भी धार शिलाएँ तोड़ो,
पीयूष-चंद्रमाओं को पकड़ निचोड़ो
चढ़ तुंग शैल-शिखरों पर सोम पियो रे।
योगियों नहीं, विजयी के सदृश जियो रे।
छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए,
मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाए।
दो बार नहीं यमराज कंठ धरता है,
मरता है जो एक ही बार मरता है।
तुम स्वयं मरण के मुख पर चरण धरो रे,
जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे।
स्वातंत्र्य जाति की लगन व्यक्ति की धुन है,
बाहरी वस्तु यह नहीं, भीतरी गुण है।
नत हुए बिना जो अशनि-घात सहती है,
स्वाधीन जगत में वही जाति रहती है।
वीरत्व छोड़ पर का मत चरण गहो रे।
जो पड़े आन खुद ही सब आग सहो रे॥
प्रश्नः
(क) कवि भारतीय युवकों को ऐसा जीवन जीने को क्यों कहता है, जो योगियों जैसा नहीं, वरन् पराक्रमी वीरों जैसा हो?
(ख) कवि के अनुसार किन परिस्थितियों में मृत्यु की चिंता नहीं करनी चाहिए?
(ग) स्वतंत्रता को ‘बाहरी वस्तु न कह कर भीतरी गुण’ क्यों कहा गया है? स्पष्ट कीजिए।
(घ) इस काव्यांश का मूल रूप क्या है? स्वाधीन जगत में वही जाति रहती है।
उत्तरः
(क) कवि भारतीय युवकों को पराक्रमी वीरों जैसा जीवन जीने के लिए कहता है क्योंकि पराक्रमी व्यक्तियों से दूसरे राष्ट्र भयभीत रहेंगे तथा देश की स्वाधीनता सुरक्षित रहेगी। योगी जैसे जीवन वाले व्यक्ति देश की रक्षा नहीं कर सकते।
(ख) कवि के अनुसार, आत्मसम्मान की प्राप्ति रक्षा के लिए यदि मृत्यु भी स्वीकार करनी पड़े तो चिंता नहीं करनी चाहिए।
(ग) कवि का मानना है कि प्राकृतिक रूप से मानव स्वतंत्र रहने का आदी होता है। कोई भी व्यक्ति पराधीन नहीं रहना चाहता। यह गुण जन्मजात होता है। यह बाहरी गुण नहीं है।
(घ) इस काव्यांश का मूल स्वर वैराग्य भाव त्यागकर पराक्रमी बनकर रहने का है। पराक्रमी व्यक्ति अपनी व देश की स्वाधीनता को कायम रख सकता है।
4. काँधे धरी यह पालकी
है किस कन्हैयालाल की?
इस गाँव से उस गाँव तक
नंगे बदन, फेंटा करो,
बारात किसकी ढो रहे?
किसकी कहारी में फँसे?
यह कर्ज पुश्तैनी अभी किस्तें हज़ारों साल की।
काँधे धरी यह पालकी है किस कन्हैयालाल की?
इस पाँव से उस पाँव पर,
ये पाँव बेवाई फटे।
काँधे धरा किसका महल?
हम नींव पर किसकी डटे?
यह माल ढोते थक गई तकदीर खच्चर हाल की।
काँधे धरी यह पालकी है किस कन्हैयालाल की?
फिर एक दिन आँधी चली
ऐसी कि पर्दा उड़ गया।
अंदर न दुलहन थी न दूल्हा
एक कौवा उड़ गया…
तब भेद आकर यह खुला हमसे किसी ने चाल की
काँधे धरी यह पालकी लाला अशर्फीलाल की।
प्रश्नः
(क) ‘खच्चर हाल’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कर बताइए कि यहाँ इस शब्द का प्रयोग क्यों किया गया है?
(ख) “यह कर्ज़ पुश्तैनी… साल की” काव्य-पंक्ति में समाज की किस कुरीति पर चोट की गई है और क्यों?
(ग) क्रांति की आँधी ने एक दिन कौन-सा भेद खोल दिया?
(घ) ‘लाला अशफ़ीलाल’ और ‘पालकी ढोने वाले’ समाज के किन वर्गों के प्रतीक हैं ?
उत्तरः
(क) ‘खच्चर’ एक पशु हैं जो जीवन भर खराब दशाओं में भार ढोता है। इसी तरह पालकी ढोने वाले तमाम उम्र दूसरों का बोझ ढोते है तथा बदले में उन्हें कोई सुख नहीं मिलता।
(ख) इस पंक्ति में, कवि ने कर्ज की समस्या को बताया है। समाज का एक बड़ा तबका महाजनी ऋण से दबे रहते हैं तथा उनकी कई पीढ़ियाँ इस कर्ज को चुकाने में गुज़र जाती है।
(ग) क्रांति की आँधी ने एक दिन पालकी ढोने वालों को यह भेद बताया कि इसमें दुल्हा व दुल्हन नहीं थी। इसमें पूँजीपति थे जो उनका शोषण कर रहे थे।
(घ) ‘लाला अशर्फीलाल’ पूँजीपति वर्ग तथा ‘पालकी ढोने वाले’ समाज के शोषित वर्ग के प्रतीक हैं जो सदियों से पूँजीपतियों की मार झेल रहे हैं।
5. बहुत दिनों से आज मिली है साँझ अकेली-साथ नहीं हो तुम ।
पेड़ खड़े बाहें फैलाए
लौट रहे घर को चरवाहे
यह गोधूली-साथ नहीं हो तुम।
कुलबुल-कुलबुल नीड़-नीड़ में
चहचह-चहचह भीड़-भीड़ में
धुन अलबेली-साथ नहीं हो तुम।
ऊँचे स्वर से गाते निर्झर
उमड़ी धारा, जैसी मुझ पर –
बीती, झेली-साथ नहीं हो तुम
साँझ अकेली-साथ नहीं हो तुम।
प्रश्नः
(क) ‘तुम’ कौन है? उसके बिना साँझ कैसी लग रही है और क्यों?
(ख) सूर्यास्त के पूर्व का दृश्य कैसा है ?
(ग) किस ध्वनि को ‘अलबेली’ कहा है और क्यों?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए – ‘जैसी मुझ पर बीती, झेली’।
उत्तरः
(क) ‘तुम’ कवि की प्रेमिका है। प्रेमिका के बिना साँझ अच्छी नहीं लग रही है क्योंकि साँझ के सौंदर्य का महत्त्व प्रेमिका के बिना नष्ट हो जाता है।
(ख) सूर्यास्त के पूर्व पेड़ ऐसे खड़े मिलते हैं मानो बाहें फैलाए हुए हैं, चरवाहे घर लौट रहे हैं, पक्षियों के घरों में चहचहाहट है तथा झरने ऊँचे स्वर में गा रहे होते हैं।
(ग) सायंकाल के समय पक्षियों के झुंडों से आने वाली आवाज़ को ‘अलबेली’ कहा गया है क्योंकि उसमें मिलन की व्याकुलता होती है।
(घ) इसका अर्थ है कि सांझ के समय मौसम सुहावना व मस्त है। प्रकृति व मानव की हर क्रिया मिलन की तरफ बढ़ रही है, परंतु कवि अकेला है। उसे प्रेमिका की कमी खल रही है। वह इस पीड़ा को सहन कर रहा है।
6. स्वातंत्र्य उमंगों की तरंग, नर में गौरव की ज्वाला है,
स्वातंत्र्य रूह की ग्रीवा में अनमोल विजय की माला है,
स्वातंत्र्य-भाव नर को अदम्य, वह जो चाहे कर सकता है,
शासन की कौन बिसात, पाँव विधि की लिपि पर धर सकता है।
जिंदगी वहीं तक नहीं, ध्वजा जिस जगह विगत युग में गाड़ी,
मालूम किसी को नहीं अनागत नर की दुविधाएँ सारी,
‘सारा जीवन नप चुका’ कहे जो, वह दासता-प्रचारक है,
नर के विवेक का शत्रु, मनुज की मेधा का संहारक है।
रोटी उसकी जिसका अनाज, जिसकी ज़मीन, जिसका श्रम है,
अब कौन उलट सकता स्वतंत्रता का सुसिद्ध सीधा क्रम है।
आज़ादी है अधिकार परिश्रम का पुनीत फल पाने का,
आज़ादी है अधिकार शोषणों की धज्जियाँ उड़ाने का।
प्रश्नः
(क) कवि ने मनुष्य पर स्वतंत्रता का प्रभाव किन रूपों में लक्षित किया है?
(ख) कवि दासता फैलाने वाला किसे मानता है और क्यों?
(ग) कवि के मत में स्वतंत्रता का सीधा क्रम क्या है?
(घ) स्वतंत्रता हमें क्या-क्या अधिकार देती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
(क) कवि ने मनुष्य पर स्वतंत्रता का प्रभाव निम्नलिखित रूपों में लक्षित किया है-
- स्वातंत्र्य उमंगों की तरंग
- गौरव की ज्वाला, आत्मा के गले में अनमोल विजय की माला, नर का अदम्य भाव जिससे वह कुछ भी कर सकता है।
(ख) कवि दासता फैलाने वाला उसे मानता है जो हमेशा यह कहते रहते हैं कि मनुष्य संपूर्णता को प्राप्त कर चुका है तथा इससे आगे कुछ भी नहीं है। इससे मानव की विकास प्रक्रिया बाधित होती है।
(ग) कवि के मत में स्वतंत्रता का सीधा क्रम यह है कि जो व्यक्ति मेहनत करता है, भोजन पर हक भी उसी का है।
(घ) स्वतंत्रता हमें निम्नलिखित अधिकार देती है
- परिश्रम का फल पाने का अधिकार।
- शोषण का विरोध करने का अधिकार।
7. जीवन का अभियान दान-बल से अजस्र चलता है,
उतनी बढ़ती ज्योति, स्नेह जितना अनल्प जलता है।
और दान में रोकर या हँस कर हम जो देते हैं,
अहंकारवश उसे स्वत्व का त्याग मान लेते हैं।
ऋतु के बाद फलों का रुकना डालों का सड़ना है,
मोह दिखाना देय वस्तु पर आत्मघात करना है।
देते तरु इसलिए कि रेशों में मत कीट समाएँ,
रहें डालियाँ स्वस्थ कि उनमें नये-नये फल आएँ।
यह न स्वत्व का त्याग, दान तो जीवन का झरना है,
रखना उसको रोक, मृत्यु से पहले ही मरना है।
किस पर करते कृपा वृक्ष यदि अपना फल देते हैं ?
गिरने से उसको सँभाल, क्यों रोक नहीं लेते हैं ?
जो नर आत्मदान से अपना जीवन घट भरते हैं,
वही मृत्यु के मुख में भी पड़कर न कभी मरते हैं।
जहाँ कहीं है ज्योति जगत में, जहाँ कहीं उजियाला,
वहाँ खड़ा है कोई अंतिम मोल चुकाने वाला।
प्रश्नः
(क) भाव स्पष्ट कीजिए-उतनी बढ़ती ज्योति, स्नेह जितना अनल्प जलता है।
(ख) दान को ‘जीवन का झरना’ क्यों कहा गया है?
(ग) देय वस्तुओं के प्रति मोह रखना आत्मघात कैसे है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
(घ) वे कौन से मनुष्य हैं जो मर कर भी नहीं मरते? उनके चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
उत्तरः
(क) इसका अर्थ है कि हम निस्स्वार्थ भाव से जितना अधिक दूसरों को स्नेह देंगे, उतना ही हमारा यश फैलता जाएगा।
(ख) दान को जीवन का झरना कहा गया है क्योंकि जिस प्रकार झरना बिना किसी भेदभाव के सबको जल देता है, उसी प्रकार दान करना भी जीवन का महान कार्य है। दान न करने से जीवन रुक जाता है तथा नाश को प्राप्त करना है।
(ग) कवि कहता है कि वृक्ष फलों को इसलिए देते हैं कि उनकी डालियाँ स्वस्थ रहें तथा नए-नए फल आएँ। यदि वे ऐसा न करें तो फल सड़ जाएगा तथा उसमें कीड़े हो जाएँगे जो पेड़ को भी नष्ट कर देंगे। अतः दी हुई वस्तु पर मोह नहीं दिखाना चाहिए।
(घ) वे व्यक्ति जो दूसरों के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देते हैं, वे मृत्यु को प्राप्त करके भी अमर रहते हैं। उनके कार्य सदैव याद किए जाते हैं।
8. जहाँ भूमि पर पड़ा कि
सोना धंसता, चाँदी धंसती,
धंसती ही जाती पृथ्वी में
बड़ों-बड़ों की हस्ती।
शक्तिहीन जो हुआ कि
बैठा भू पर आसन मारे,
खा जाते हैं उसको
मिट्टी के ढेले हत्यारे!
मातृभूमि है उसकी, जिसको
उठ जीना होता है,
दहन-भूमि है उसकी, जो
क्षण-क्षण गिरता जाता है।
भूमि खींचती है मुझको
भी, नीचे धीरे-धीरे
किंतु लहराता हूँ मैं नभ पर
शीतल-मंद-समीरे।
काला बादल आता है
गुरु गर्जन स्वर भरता है,
विद्रोही-मस्तक पर वह
अभिषेक किया करता है।
विद्रोही हैं हमीं, हमारे
फूलों में फल आते,
और हमारी कुरबानी पर,
जड़ भी जीवन पाते।
प्रश्नः
(क) ‘विद्रोही हैं हमीं’-पेड़ अपने आप को विद्रोही क्यों मानते हैं ?
(ख) ‘धंसती ही जाती पृथ्वी में बड़ों-बड़ों की हस्ती’-काव्य-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस काव्यांश में कवि ने किसे ‘मातृभूमि’ के लिए उपयुक्त और किसे ‘दहन-भूमि’ के योग्य बताया है ?
(घ) काला बादल किसका अभिषेक किया करता है और क्यों?
उत्तरः
(क) पेड़ स्वयं को विद्रोही मानते हैं क्योंकि इनके फूलों में भी फल आते हैं। दूसरे शब्दों में, पेड़ त्याग व समर्पण करते हैं।
(ख) इसका अर्थ है कि संसार में कोई भी व्यक्ति कितना ही शक्तिशाली, धनी, सुंदर आदि हो, उसका अभिमान सदा नहीं रहता। अंत में, सबको इस संसार से जाना पड़ता है तथा वे सभी अन्य लोगों की तरह मिट्टी में ही मिल जाते हैं।
(ग) कवि ने ‘मातृभूमि’ उन लोगों के लिए उपयुक्त बताई है जिनमें संघर्ष करने की क्षमता होती है तथा ‘दहनभूमि’ के योग्य उन व्यक्तियों को बताया है जो क्षण-क्षण गिरते जाते हैं।
(घ) काला बादल विद्रोही व क्रांतिकारी विचारों वाले व्यक्ति का अभिषेक करता है क्योंकि बादल स्वयं गर्जना करके विद्रोह का परिचय देता है।
9. जिसकी भुजाओं की शिराएँ फड़की ही नहीं,
जिनके लहू में नहीं वेग है अनल का;
शिव का पदोदक ही पेय जिनका है रहा,
चक्खा ही जिन्होंने नहीं स्वाद हलाहल का;
जिनके हृदय में कभी आग सुलगी ही नहीं,
ठेस लगते ही अहंकार नहीं छलका;
जिनको सहारा नहीं-भुज के प्रताप का है,
बैठते भरोसा किये वे ही आत्मबल का।
उसकी सहिष्णुता, क्षमा का है महत्त्व ही क्या,
करना ही आता नहीं जिसको प्रहार है?
करुणा, क्षमा को छोड़ और क्या उपाय उसे,
ले न सकता जो वैरियों से प्रतिकार है?
सहता प्रहार कोई विवश कदर्प जीव
जिसकी नसों में नहीं पौरुष की धार है;
करुणा, क्षमा है क्लीव जाति के कलंक घोर,
क्षमता क्षमा की शूरवीरों का सिंगार है।
प्रश्नः
(क) किसकी सहनशीलता और क्षमा को महत्त्वहीन माना गया है और क्यों?
(ख) लहू में अनल का वेग होने से क्या तात्पर्य है?
(ग) कवि के अनुसार आत्मबल का भरोसा किन्हें रहता है ?
(घ) शूरवीरों का श्रृंगार किसे माना गया है और क्यों?
उत्तरः
(क) कवि ने उन लोगों की सहनशीलता और क्षमा को महत्त्वहीन माना है जो आरामपरस्त हैं, भाग्यवादी हैं, स्वाभिमानी नहीं हैं तथा जो अत्याचार का विरोध नहीं करते। इन लोगों में प्रहार करने की शक्ति नहीं होती। ऐसे व्यक्ति किसी को क्षमा नहीं करने में सक्षम नहीं होते।
(ख) इसका अर्थ है-अत्याचार, विद्रोह आदि को देखकर प्रतिकार का भाव न उठना। ऐसे व्यक्तियों को कायर माना जाता है जो कभी प्रतिरोध भाव को व्यक्त नहीं करते।
(ग) कवि का मत है कि आत्मबल का भरोसा वही लोग करते हैं जिनकी भुजाओं में ताकत नहीं है। वे अन्याय का प्रतिकार नहीं कर पाते।
(घ) शूरवीरों का श्रृंगार क्षमा करने की क्षमता है। इसका कारण यह है कि शूरवीर ही किसी को क्षमा कर सकता है। कमज़ोर व्यक्ति प्रतिरोध न करने के कारण क्षमा करने का अधिकारी नहीं होता।
10. किस भाँति जीना चाहिए किस भाँति मरना चाहिए,
सो सब हमें निज पूर्वजों से याद करना चाहिए।
पद-चिह्न उनके यत्नपूर्वक खोज लेना चाहिए,
निज पूर्व गौरव-दीप को बुझने न देना चाहिए।
आओ मिलें सब देश-बांधव हार बनकर देश के,
साधक बनें सब प्रेम से सुख शांतिमय उद्देश्य के।
क्या सांप्रदायिक भेद से है ऐक्य मिट सकता, अहो,
बनती नहीं क्या एक माला विविध सुमनों की कहो॥
प्राचीन हो कि नवीन, छोड़ो रूढ़ियाँ जो हों बुरी,
बनकर विवेकी तुम दिखाओ हंस जैसी चातुरी।
प्राचीन बातें ही भली हैं-यह विचार अलीक है,
जैसी अवस्था हो जहाँ, वैसी व्यवस्था ठीक है॥
मुख से न होकर चित्त से देशानुरागी हो सदा,
हे सब स्वदेशी बंधु, उनके दुःखभागी हो सदा।
देकर उन्हें साहाय्य भरसक सब विपत्ति व्यथा हरो,
निज दुख से ही दूसरों के दुख का अनुभव करो॥
प्रश्नः
(क) हमें अपने अतीत के गौरव को बनाए रखने के लिए क्या करना होगा?
(ख) कवि को यह विश्वास क्यों है कि सांप्रदायिकता हमारी एकता को भंग नहीं कर सकती?
(ग) रूढ़ियों को त्यागने की बात कवि ने क्यों कही है?
(घ) ‘मुख से न होकर चित्त से देशानुरागी हो सदा’-कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
(क) कवि कहता है कि हमें अपने अतीत के गौरव को बनाए रखने के लिए पूर्वजों के द्वारा सुझाए गए मार्गों का अनुसरण करना चाहिए। इस तरह हम पुराने गौरव को बचाए रख सकेंगे।
(ख) कवि कहता है कि जिस प्रकार विभिन्न तरह के फूल एक माला में बँधकर रहते हैं, उसी प्रकार भारत में अनेक धर्मों के लोग मिल-जुलकर रह सकते हैं। इस तरीके से कवि को विश्वास है कि सांप्रदायिकता हमारी एकता को भंग नहीं कर सकती।
(ग) रूढियाँ समय के बदलने पर विकास में बाधा उत्पन्न करती हैं। कवि रूढ़ियों को त्यागने की बात कहता है क्योंकि ये हर युग में प्रासांगिक नहीं होती। हमें विवेकपूर्वक कार्य करने चाहिए।
(घ) इसका अर्थ है कि मनुष्य को देश विकास या देशप्रेम की केवल बातें नहीं करनी चाहिए। देश-कल्याण के लिए सार्थक प्रयास भी करने चाहिए। कवि व्यावहारिकता पर बल देता है।
11. इन दिनों छटपटा रहा है वह
अच्छी लगने वाली बातों के अलावा
और सब कुछ तो हो रहा है
इन दिनों वाले समय में
यह आखिरी तनाव
यह आखिरी पीड़ा
यह अंतिम कुंठा
यह अंतिम भूख
पर कहाँ?
जाते हैं सिलसिले
बढ़ी जाती है बेक़रारी
गुज़र जाते हैं दिन-पर-दिन
अनचीन्हे-से
भीड़ के विस्फोट में गुम होने से पहले
आएगा क्या, कोई, ऐसा दिन एक
उसका अपने वाला भी?
उसका अपने वाला भी?
उसका अपने वाला भी?
अथ से इति तक
अच्छी लगने वाली हो उसे
उस दिन भी हवा वैसे ही चले
वैसे ही चले दुनिया भी
लोग भी वही करें चले
रोटियाँ भी वैसे ही पकें
जैसा वह चाहे
जैसा वह कहे।
प्रश्नः
(क) कवि की छटपटाहट का कारण क्या है?
(ख) कवि कैसे दिन की प्रतीक्षा में है?
(ग) ‘अथ से इति तक’ का तात्पर्य बताइए।
(घ) भाव स्पष्ट कीजिए- “अच्छी लगने वाली बातों के अलावा और सब कुछ तो हो रहा है।”
उत्तरः
(क) कवि की छटपटाहट का कारण यह है कि आजकल अच्छी लगने वाली बातों के अलावा सब कुछ हो रहा है अर्थात् दुख देने वाली बातें व कार्य हो रहे हैं।
(ख) कवि ऐसे दिन की प्रतीक्षा में है. जिसमें शुरू से लेकर अंत तक अच्छी लगने वाली घटनाएँ हों।
(ग) इसका अर्थ है-प्रारंभ से समाप्ति तक।
(घ) इसका अर्थ है कि समाज में पीड़ा, कुंठा, भूख, तनाव आदि उच्चतम स्तर पर है। आम व्यक्ति को अच्छी लगने वाली बातें नहीं होती।
12. भीड़ जा रही थी
मैंने सुनी पदचापें,
बड़ा शोर था पर एक आहट ने मुझे पुकारा
वह शायद तुम्हारी थी।
अकेलेपन के, कुंठाओ के जालों को तोड़कर
हो गया खड़ा
और अब विश्वास है मुझे
मैं कुछ बनूँगा
मैं कुछ कर गुज़रूँगा
किंतु अपनी मुट्ठी-भर योग्यताओं के बल पर नहीं,
तुम्हारे विश्वास के बल पर
तुम्हारी आशाओं के बल पर
तुम्हारी शुभ कामनाओं के बल पर।
मेरे मित्र!
आहट ने मुझसे कहा
बैठे क्यों हो?
तुम भी चलो, चलना ही तो जीवन है।
तब मैं
शायद यह साथ रहे न रहे हमेशा
मैं जानता हूँ-रह भी नहीं सकता
पड़ेगा बिछुड़ना
जाना पड़ेगा दूर
फिर भी मेरे साथ रहेगी तुम्हारी स्मृति
जो देती रहेगी मुझे सहारा, नव उत्साह!
और मैं जब भी बढ़ाऊँगा क़दम किसी सफलता की ओर
तो मेरा हृदय अवश्य कहेगा एक बात
धन्यवाद मित्र, धन्यवाद मित्र, धन्यवाद!
प्रश्नः
(क) कवि को कुछ बनने, कुछ कर गुज़रने का विश्वास किसने प्रदान किया?
(ख) तीन बार ‘धन्यवाद’ कहने से अर्थ में क्या विशेषता आ गई है?
(ग) मित्र के साथ न रहने पर कवि को किस बात का भरोसा है ?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए–’तुम भी चलो, चलना ही तो जीवन है’।
उत्तरः
(क) कवि को कुछ बनने, कुछ कर गुज़रने का विश्वास उसके मित्र ने प्रदान किया।
(ख) कवि ने तीन बार ‘धन्यवाद’ किया है। इससे पता चलता है कि मित्र की प्रेरणा से कवि में उत्साह जगा है। वह अपनी हार्दिकतरीके से आभार व्यक्त करना चाहता है।
(ग) मित्र के साथ न रहने पर कवि को भरोसा है कि उस समय दोस्त की स्मृति उसके साथ रहेंगी जो सदैव उसमें उत्साह पैदा करती रहेगी।
(घ) इसका अर्थ है कि निरंतर चलना ही जीवन है। मनुष्य को स्वयं भी आगे बढ़ना चाहिए तथा दूसरों को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए।
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