अनुच्छेद लेखन
किसी विषय से संबंद्ध महत्तवपूर्ण बातों का सार एक अनुच्छेद में सुंदर ढंग से उपस्थित कर देना “अनुच्छेद लेखन” कहलाता है। अनुच्छेद और निबंध में काफी अंतर होता है। जैसे:
- 1. निबंध में किसी विषय को विस्तार में प्रयुक्त किया जाता है जबकि अनुच्छेद में विषय का सार लिखा जाता है।
- 2. निबंध में हर बिंदु को अलग-अलग पैरा में लिखा है जबकि अनुच्छेद में केवल एक ही पैरा में लिखा जाता है।
- 3. निबंध में उदाहरण, सूक्तियाँ, उद्धरण आदि का समावेश होता है, जबकि अनुच्छेद में प्रायः ऐसा नहीं होता।
- 4. निबंध के शब्दों की मात्रा अनुच्छेद से बहुत अधिक होती है।
अनुच्छेद लिखने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
विषय से संबंधित सभी बातों को एकत्र कर लीजिए। मुख्य सामग्री को प्रमुख बिंदुओं में बाँट लीजिए। तत्पश्चात् उन्हें संक्षेप में स्पष्ट कीजिए। विषय के अनावश्यक विस्तार तथा पक्ष-विपक्ष की विवेचना से बचना चाहिए। वाक्य छोटे व प्रभावशाली हों। भाषा सरल और सुगम होनी चाहिए। आरंभ में बिना भूमिका बाँधे सीधे विषय पर आ जाना चाहिए। सभी प्रमुख बिंदुओं का समावेश होना चाहिए। लेखन करते समय वाक्यों में तारतम्य बना रहना चाहिए। अनुच्छेद में अनेक पैरा नहीं बनाना चाहिए। केवल एक ही पैरा में लिखना चाहिए।
उदाहरण स्वरूप कुछ अनुच्छेद आगे दिए जा रहे हैं:
सच्चा मित्र
यदि हम किसी से कोई सहायता न माँगें तो सारी दुनिया ऐसा दर्शाएगी जैसे कि वह हमारी मित्र है। पर, जैसे ही हम किसी के सामने मदद के लिए हाथ पसारते हैं, तो कोई भी मदद के लिए नहीं आता। विपत्ति के समय हमें अकेला रहना पड़ता है। संपन्नता में तो हमारे कई मित्र बन जाते हैं, परंतु संकट की घड़ी में सही मित्रों की पहचान होती है। दरअसल, सच्चा मित्र वही है, जो संकट के समय काम आए। जो व्यक्ति कठिनाई के वक्त हमारी सहायता करता है, वही सच्चा मित्र है, बाकी सब मतलब के यार हैं। सच्चा मित्र हमें आफत में फंसा देखकर भाग नहीं सकता। वह हरसंभव उपाय करेगा। इसलिए तो किसी ने कहा है- सच्चा मित्र वही है जो संकट के समय काम आए।
वसंत ऋतु
वर्षा यदि ऋतुओं की रानी है तो वसंत “ऋतुराज” है। ऋतुराज वसंत फाल्गुन, चैत्र एवं वैशाख मास में आता है। वसंत अत्यंत सौंदर्ययुक्त ऋतु है। इस समय न अधिक गर्मी होती है, और न अधिक सर्दी। वसंत की सुहावनी वायु मन को आनंदित कर देती है। वृक्षों के सूखे पत्ते झड़ जाते हैं। प्रकृति नए-नए वस्त्र धारण करके, नूतन श्रृंगार करके एक दूल्हन की भाँति सजधज कर आती है। भाँति-भाँति के सुगंधित पुष्पों पर भौरे गूंजने लगते हैं। सरसों के खेतों को देखकर प्रतीत होता है मानो प्रकृति ने पीली चादर ओढ़ ली है। वास्तव में देखा जाए तो वसंत मौज-मस्ती, मादकता तथा सौंदर्य की ऋतु है। इस ऋतु में भ्रमण करने से अजीब आनंद मिलता है। इसी ऋतु में वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। वसंत ऋतु का प्रारंभ ही वसंत पंचमी से होता है। कहते हैं, इसी दिन ज्ञान की देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। अतः वसंत पंचमी के दिन धूमधाम से सरस्वती देवी की पूजा-अर्चना विद्यार्थी लोग करते हैं।
प्रदूषण
आज के युग को विज्ञान का युग कहा जाता है। आज मनुष्य ने पृथ्वी, आकाश तथा जल पर अपना आधिपत्य जमा लिया है तथा अपनी सुविधाओं के लिए अनेक मशीनों एवं आविष्कारों को जन्म दिया है। जनसंख्या वृद्धि के कारण वनों की कटाई तेजी से हुई है और वहाँ उद्योग-धंधों का विस्तार हुआ है। वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ गया है। वर्षा, जलवायु तथा भूमि पर इसका दुष्प्रभाव पड़ा है। चिमनियों से निकलने वाले धुएँ बसों-ट्रकों आदि वाहनों से निकलने वाले धुएँ से वातावरण प्रदूषित हो गया है जिससे अनेक प्रकार के रोग हो रहे हैं। धुएँ में जहरीले पदार्थ होते हैं जो साँस के द्वारा हमारे शरीर में पहुँच जाते हैं। इसी प्रकार मिलों से बेकार हो जाने वाला पदार्थ नदियों में बहा दिया जाता है। इससे पानी प्रदूषित हो जाता है जिससे अनेक प्रकार के रोगों का जन्म होता है। प्रदूषण की समस्या अत्यंत भयंकर समस्या है। वनों की कटाई पर रोक लगाई जानी चाहिए तथा वृक्षारोपण पर बल दिया जाना चाहिए। इससे प्रदूषण कम होता जाएगा क्योंकि वृक्ष दूषित वायु को स्वच्छ वायु में परिवर्तित करते हैं। हम सबका यह कर्तव्य है कि वृक्ष लगाएँ।
आत्म सम्मान
मानव जीवन में आत्मसम्मान या स्वाभिमान का बहुत अधिक महत्त्व है। आत्म सम्मान में अपने व्यक्ति को अधिक-से-अधिक सशक्त एवं प्रतिष्ठित बनाने की भावना निहित होती है। इससे शक्ति, साहस, उत्साह आदि गुणों का जन्म होता है; जो जीवन की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। आत्मसम्मान की भावना से पूर्ण व्यक्ति संघर्षों की परवाह नहीं करता है और हर विषम परिस्थिति से टक्कर लेता है। आत्मसम्मानी व्यक्ति धर्म, सत्य, न्याय और नीति के पथ का अनुगमन करता है। ऐसे व्यक्ति में राष्ट्र के प्रति सच्ची निष्ठा होती है। चूँकि आत्मसम्मानी व्यक्ति अपनी अथवा दूसरों की आत्मा का हनन करना पसंद नहीं करता, इसलिए वह ईर्ष्या-द्वेष जैसी भावनाओं से मुक्त होकर मानव-मात्र को अपने परिवार का सदस्य मानता है। निश्छल हृदय होने के कारण वह आसुरी वृत्तियों से सर्वथा मुक्त होता है। उसमें ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति, विश्वास एवं निष्ठा होती है, जिससे उसकी आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है। जीवन को सरस और मधुर बनाने के लिए आत्मसम्मान रसायन-तुल्य है।
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