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स्मृति पाठ का सारांश ( Very Short Summary ) class 9 Sanchayan
पं० श्रीराम शर्मा द्वारा रचित लेख ‘स्मृति’ एक संस्मरणात्मक लेख है, जो साहसिक एवं शिकार कथा पर आधारित है। यह पं० श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘शिकार’ नामक पुस्तक से संकलित है जिसमें लेखक ने अपने बचपन की रोमांचकारी घटना का वर्णन किया है। सन् 1908 ई० में दिसंबर या जनवरी के महीने में शाम के साढ़े तीन या चार बजे जब लेखक अपने छोटे भाई के साथ झरबेरी से बेर तोड़कर खा रहा था, उन्हें (लेखक को) उनके बड़े भाई ने बुलवाया। लेखक पिटाई के भय से डर गया, परंतु भाई साहब ने लेखक को मक्खनपुर डाकखाने में पत्र डालने के लिए दिए जो बहुत आवश्यक थे। लेखक अपने छोटे भाई के साथ अपने-अपने डंडे लेकर व माँ के दिए चने लेकर चल दिए। लेखक ने पत्रों को अपनी टोपी में रख लिया क्योंकि उनके कुर्ते में जेबें न थी। मार्ग में दोनों भाई उस कुएँ के पास पहुँचे जो कच्चा था तथा जिसमें एक अतिभयंकर काला साँप था। प्रतिदिन लेखक व उसके मित्र कुएँं में ढेला फेंककर साँप की क्रोधपूर्ण फुसकार पर कहकहे लगाते थे। आज भी लेखक के मन में साँप की फुसकार सुनने की इच्छा जाग्रत हुई।
लेखक ने एक ढेला उठाया और एक हाथ से टोपी उतारकर कुएँ में गिरा दिया। लेखक के टोपी हाथ में लेते ही तीनों चिट्ठियाँ जो टोपी में रखी थीं चक्कर काटती हुए कुएँ में गिर गई। निराशा व पिटने के भय से दोनों भाई कुएँ के पाट पर बैठकर रोने लगे। लेखक का मन करता कि माँ आकर गले लगाकर कहे कोई बात नहीं या घर जाकर झूठ बोल दे, परंतु लेखक झूठ बोलना नहीं जानता था तथा सच बताने पर उसे पिटाई का भय था, तब लेखक ने कुएँ मे घुसकर चिट्ठियाँ निकालने का दृढ़ निश्चय किया। लेखक ने अपनी व भाई की धोतियाँ तथा रस्सी बाँधी और रस्सी के एक सिरे पर डंडा बाँधकर कुएँ में डाल दिया तथा दूसरा सिरा कुएँ की डेंग से बाँध दिया और स्वयं धोती के सहारे कुएँ मे घुस गया। कुएँ में धरातल से चार-पाँच गज की ऊँचाई से लेखक ने देखा कि साँप उसका मुकाबला करने के लिए फन पैâलाकर तैयार था। लेखक को साँप को मारने व चिट्ठियाँ लेने के लिए कुएँ के धरातल पर उतरना ही था क्योंकि चिट्ठियाँ वहीं गिरी हुई थी। जैसे-जैसे लेखक नीचे उतरता वैसे-वैसे उसका चित्त एकाग्र होता जाता। कच्चे कुएँ का व्यास कम होता है इसलिए डंडा चलाने के लिए पर्याप्त स्थान न था। तभी लेखक ने साँप को न छेड़ने का निर्णय लिया। लेखक ने डंडे से चिट्ठियाँ सरकाने का प्रयास किया और साँप की फुसकार से लेखक के हाथ से डंडा छूट गया। लेखक ने दूसरा प्रयास किया और साँप डंडे से चिपट गया।
डंडे के लेखक की ओर खिंच आने से साँप की मुद्रा बदल गई और लेखक ने लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिए। लेखक ने चिट्ठियों को धोती से बाँध दिया, जिसे छोटे भाई ने ऊपर खींच लिया तथा डंडा उठाकर हाथों के सहारे ऊपर चढ़ गया। ऊपर आकर वह थोड़ी देर पड़ा रहा तथा किशनपुर के जिस लड़के ने उसे ऊपर चढ़ते देखा था उसे कहा कि इस घटना के बारे में किसी से न कहे। सन 1915 में मैट्रीक्युलेशन उत्तीर्ण करने के बाद लेखक ने यह घटना अपनी माँ को बताई और माँ ने लेखक को अपनी गोद में छुपा लिया।
स्मृति पाठ का सारांश ( Detailed Summary ) class 9 Sanchayan
प्रस्तुत पाठ या संस्मरण स्मृति लेखक श्रीराम शर्मा जी के द्वारा लिखित है | इस पाठ के माध्यम से लेखक ने अपने बाल्यावस्था के अविस्मरणीय घटना का वर्णन किया है | प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने उस घटना का चित्रण किया है, जिसमें उन्होंने साँप से लड़कर चिट्ठीयों को सुरक्षा प्रदान किया था |
आगे प्रस्तुत पाठ या संस्मरण के अनुसार, ठंड का मौसम गतिमान था | एक रोज शाम में जब लेखक अपने दोस्तों के साथ क्रीड़ा अथवा खेल-कूद कर रहे थे, तभी एक आदमी ने उन्हें आवाज़ दी कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं | लेखक
अपने छोटे भाई के साथ डरे-सहमे घर की तरफ़ चल पड़ते हैं | लेखक के मन में किसी गलती के कारण पिटने का ख़ौफ़ सता रहा था | जब लेखक अपने घर पहुँचते हैं तो वे देखते हैं कि उनके बड़े भाई चिट्ठी लिख रहे हैं | तत्पश्चात्, लेखक को उनके बड़े भाई ने चिट्टियाँ सौंपी तथा उन्हें मक्खनपुर पोस्ट ऑफिस में पोस्ट करने को कहा | लेखक और उनके छोटे भाई ने चिट्ठीयों को टोपी में रखा और अपने-अपने डंडे पकड़कर चल दिए | आगे पाठ के अनुसार, वे लोग गाँव से चार फर्लांग दूर उस कुएँ के पास आ पहुँचे, जहाँ पर एक भयंकर काला साँप मौजूद था | देखा जाए तो कुआँ कच्चा था तथा लगभग चौबीस हाथ गहरा था | पानी के नाम पर उस कुएँ में कुछ भी नहीं था | वास्तव में, जब लेखक और उसके सहपाठी स्कूल के लिए जाते थे, तब उस वक़्त वे लोग कुएँ में ढेला मारते और साँप की आवाज़ सुनकर मजे लेते थे | आज भी कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला | लेखक ने ढेला उठाया और एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर ढेला मार दिया | टोपी के हाथ में लेते ही तीनों चिट्ठीयाँ कुएँ में गिर पड़ी | लेखक को ऐसा लगा मानों उसकी जान ही निकल गई हो | तत्पश्चात्, लेखक और उनके छोटे भाई दोनों कुएँ के समीप बैठकर दहाड़ें मार-मार कर रोने लगते हैं | कुछ समय गुजर जाने के पश्चात् दोनों के मध्य यह भयमुक्त फैसला लिया गया कि लेखक कुएँ के अंदर जाकर चिट्ठीयाँ निकाल कर लाएँगे |
आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, उन लोगों ने धोतियों और रस्सियों में गाठें लगाकर एक बड़ी रस्सी तैयार की | तत्पश्चात्, रस्सी के एक छोर पर डंडा बाँधा गया और उसे कुएँ में डाल दिया गया | लेखक ने रस्सी के दूसरे छोर को लकड़ी से बाँधकर अपने छोटे भाई के हाथ में थमा दिया | कुएँ के अंदर साँप फ़न फैलाकर बैठा था | लेखक भी अपने साहस का परिचय देते हुए धीरे-धीरे कुएँ के अंदर उतरने लगे | लेखक अपनी आँखें साँप के फ़न की तरफ़ ही टिकाकर रखे थे | लेकिन जहाँ साँप था, वहाँ पर डंडा चलाने का स्थान भी नहीं था | इन्हीं सब वजहों से लेखक को अपनी योजना कहीं न कहीं असफल होते लगने लगी थीं | अभी तक साँप ने लेखक पर किसी प्रकार का हमला नहीं किया था | इसलिए लेखक ने भी अपने डंडे से फ़न को दबाने की कोई कोशिश नहीं की थी | तत्पश्चात्, ज्यों ही लेखक ने डंडे को साँप के दायीं ओर पड़ी चिट्ठी की तरफ बढ़ाया, साँप ने अपना विष डंडे पर छोड़ दिया | लेकिन इसके बाद लेखक के हाथ से डंडा छूट गया | तत्पश्चात्, साँप ने डंडे के ऊपर लगातार तीन प्रहार किए | इस दृश्य को देखकर लेखक के छोटे भाई को अंदेशा हुआ कि कहीं लेखक को साँप ने डस तो नहीं लिया है | यह सोचकर लेखक का भाई चीखता है | आगे पाठ के अनुसार, लेखक ने डंडे को पुन: उठाकर चिट्ठीयाँ उठाने का प्रयत्न किया, परन्तु साँप ने फिर से वार किया | लेकिन इस बार लेखक ने अपने हाथों से डंडा नहीं गिरने दिया | पर तत्पश्चात् जैसे ही साँप का पिछला भाग लेखक के हाथों में स्पर्श हुआ, लेखक ने फ़ौरन डंडा पटक दिया | इसी उठा-पटक में साँप का जगह बदल गया | तभी लेखक ने तुरंत चिट्ठीयों को उठाया और रस्सी में बाँध दिया | तत्पश्चात्, लेखक के भाई ने रस्सी से बंधे चिट्ठीयों को ऊपर की ओर खींच लिया |
आगे पाठ के अनुसार, नीचे गिरे अपने डंडे को साँप के पास से लेने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ा | आगे लेखक के साथ और भी मुश्किल सामने आई, उसे अब अपने हाथों के बल पर ऊपर चढ़ना था | लेखक ने ग्यारह वर्ष की उम्र में 36 फुट चढ़ने का कारनामा किया था | वो भी जान हथेली पर रखकर उन्होंने ऐसे साहस भरे काम को अंजाम दिया था | तत्पश्चात्, लेखक और उनके छोटे भाई ने वहीं पर विश्राम किया | जब लेखक 10वीं की परीक्षा पास किए तो उन्होंने यह साहसिक घटना अपनी माँ को सुनाई | उस वक़्त लेखक की माँ ने उन्हें अपनी गोद में बैठाकर लेखक के प्रति प्रशंसा के पुल बाँधे |