Table of Contents
कवि परिचय
सुमित्रानंदन पंत
इनका जन्म सन 20 मई 1900 को उत्तराखंड के कौसानी-अल्मोड़ा में हुआ था। इन्होनें बचपन से ही कविता लिखना आरम्भ कर दिया था। सात साल की उम्र में इन्हें स्कूल में काव्य-पाठ के लिए पुरस्कृत किया गया। 1915 में स्थायी रूप से साहित्य सृजन किया और छायावाद के प्रमुख स्तम्भ के रूप में जाने गए। इनकी प्रारम्भिक कविताओं में प्रकृति प्रेम और रहस्यवाद झलकता है। इसके बाद वे मार्क्स और महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हुए।
पर्वत प्रदेश में पावस – पठन सामग्री और व्याख्या NCERT Class 10th Hindi
(1)- पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश |
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘सुमित्रानंदन पंत’ जी के द्वारा रचित कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से उद्धृत हैं | इस कविता के माध्यम से कवि पंत जी पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु का सजीव चित्रण कर रहे हैं | वर्षा ऋतु के आगमन से वहाँ प्रकृति में पल-पल परिवर्तन हो रहे हैं |
(2)- मेखलाकार पर्वत अपारअपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड़,अवलोक रहा है बार-बारनीचे जल में निज महाकार, — जिसके चरणों में पला ताल दर्पण-सा फैला है विशाल !
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘सुमित्रानंदन पंत’ जी के द्वारा रचित कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि ऊँचे-ऊँचे पर्वतों की श्रृंखला का आकार लिए अपने पुष्प रूपी नेत्रों को फाड़े नीचे देख रहा है | आगे कवि पंत जी कहते हैं कि ये विशाल पर्वत के चरणों में तालाब का अस्तित्व है, जो की दर्पण के समान प्रतीत हो रहा है | ये पर्वत दर्पण समान तालाब का अवलोकन कर रहा है |
(3)- गिरि का गौरव गाकर झर-झरसुमित्रानंदन पंत
मद में नस-नस उत्तेजित करमोती की लड़ियों-से सुन्दरझरते हैं झाग भरे निर्झर ! गिरिवर के उर से उठ-उठ करउच्चाकांक्षाओं से तरुवरहैं झाँक रहे नीरव नभ परअनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर |
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘सुमित्रानंदन पंत’ जी के द्वारा रचित कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि ये जो झरने हैं, वो विशाल पर्वत के गौरव का बखान करते हुए झर-झर बह रहे हैं | इन झरनों की ध्वनियाँ नस-नस में उत्साह का प्रस्फुटन करती हैं | कवि कहते हैं कि ये जो झाग भरे झरने हैं, वो मोती के समान प्रतीत हो रहे हैं, जिससे विशाल पर्वत की खूबसूरती निखरता ही जा रहा है | आगे कवि कहते हैं कि पर्वत पर टिके अनेक वृक्ष ऐसे लग रहे हैं, मानो वे उँची आकांक्षाएँ लिए दृढ़तापूर्वक और स्थिरवश शांत आकाश को निहार रहे हैं और साथ ही चिंतित मालूम भी पड़ रहे हैं |
(4)- उड़ गया, अचानक लो, भूधरफड़का अपार वारिद के पर ! रव-शेष रह गए हैं निर्झर ! है टूट पड़ा भू पर अंबर ! धँस गए धरा में सभय शाल ! उठ रहा धुऑं, जल गया ताल ! -यों जलद-यान में विचर-विचरट था इंद्र खेलता इंद्रजाल |
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘सुमित्रानंदन पंत’ जी के द्वारा रचित कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि इस मौसम में अचानक आकाश में बादलों के छाने से विशाल पर्वत जैसे गायब हो गए हों | ऐसा आभास हो रहा है, मानो आसमान धरती पर टूटकर आ गिरा हो | सिर्फ झरनों की आवाज़ ही सुनाई दे रही है, बल्कि तेज बारिश के कारण धुंध सा उठता दिखाई दे रहा है, जिससे ऐसा लग रहा है मानो तालाब में आग लगी हो | इंद्र भी अपने बादल रूपी यान में सवार होकर इधर-उधर अपना घूम रहे हैं | ऐसाे प्रतीत होता है कि मौसम के विकराल रूप देखकर शाल वृक्ष डरकर धरती में धँस गए हैं |
Important Link
NCERT Solution – पर्वत प्रदेश में पावस
For Free Video Lectures Click here
Tags
Discover more from EduGrown School
Subscribe to get the latest posts sent to your email.