Full summary of topi shukla in hindi टोपी शुक्ला Sanchyan Hindi Class 10th
प्रस्तुत पाठ या उपन्यास अंश टोपी शुक्ला , लेखक राही मासूम रज़ा साहब के द्वारा लिखा गया है | लेखक राही साहब ने प्रस्तुत पाठ के माध्यम से बताया है कि बच्चों को जहाँ अपनत्व और प्यार-दुलार मिलता है, वे वहीं रहना पसंद करते हैं | इसीप्रकार टोपी को बचपन में अपने परिवार की नौकरानी और अपने दोस्त की दादी से अपनत्व और प्यार मिलता है | फलस्वरूप, वह उन्हीं लोगों के साथ रहना पसंद करता है | टोपी का एक दोस्त है — इफ़्फ़न | दोनों के घर अलग-अलग थे | दोनों के धर्म भी अलग थे | फिर भी दोनों में अच्छी दोस्ती और प्रेम का रिश्ता कायम था |
दरअसल टोपी शुक्ला कहानी दो अलग-अलग धर्मों से जुड़े बच्चों की है। इस कहानी में एक बच्चे और एक बूढ़ी दादी के बीच प्यार को दिखाया गया है।
टोपी शुक्ला और इफ़्फ़न एक-दूसरे के बहुत पुराने और गहरे मित्र थे। दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे थे। टोपी शुक्ला हिंदू धर्म को मानता था, वहीं उसके दोस्त इफ़्फ़न और उसकी दादी मुस्लिम धर्म से थे और दोनों के दिलों में प्यार की प्यास थी। लेकिन जब भी टोपी शुक्ला अपने दोस्त इफ़्फ़न के घर जाता था तो वह दादी के पास ही बैठता। इफ़्फ़न की बूढ़ी दादी की मीठी पूरबी बोल उसके मन को बहुत भाता था। दादी पहले रोज टोपी शुक्ला की अम्मी के बारे में पूछती थी और फिर उसे रोज कुछ खाने को देती थीं। टोपी शुक्ला को बूढ़ी दादी का हर शब्द गुड़ की डली सा लगता था। इसीलिए दोनों का रिश्ता बहुत ही खास और गहरा था। इफ़्फ़न की दादी जितना उसे प्यार करती थीं उतना ही टोपी शुक्ला को भी करती थीं, ना ही उससे कम ,ना ही उससे ज्यादा। वहीं एक दिन ऐसा हुआ जब बूढ़ी दादी का मृत्यु हो गया उसके बाद टोपी शुक्ला को ऐसा लगने लगा कि उसकी जिंदगी में दादी का छत्रछाया ही नहीं रहा और उसको अपने दोस्त इफ़्फ़न का घर खाली लगने लगा।
जल्दी ही इफ्फन के पिता का तबादला हो गया। उस दिन टोपी ने कसम खाई कि आगे से किसी ऐसे लड़के से मित्रता नहीं करेगा, जिसके पिता की नौकरी बदलने वाली हो। इफ्फन के जाने के बाद टोपी अकेला हो गया। उस शहर के अगले कलेक्टर हरिनाम सिंह थे। उनके तीन लड़के थे। तीनों लड़कों में से कोई उसका दोस्त न बन सका। डब्बू बहुत छोटा था। बीलू बहुत बड़ा था। गुड्डू केवल अंग्रेज़ी बोलता था। उनमें से किसी ने टोपी को अपने पास फटकने न दिया। माली और चपरासी टोपी को जानते थे इसलिए वह बँगले में घुस गया। उस समय तीनों लड़के क्रिकेट खेल रहे थे। उनके साथ टोपी का झगड़ा हो गया। डब्बू ने अलसेशियन कुत्ते को टोपी के पीछे लगा दिया। टोपी के पटे में सात सइुयाँ लगीं तो उसे होश आया। फिर उसने कभी कलेक्टर के बँगले का रुख नहीं किया।.
इसके बाद टोपी ने अपना अकेलापन घर की बूढ़ी नौकरानी सीता से दूर किया। सीता उसे बहुत प्यार करती थी। वह उसका दुख-दर्द समझती थी। घर के सभी सदस्य उसे बेकार समझते थे। घर में सभी के लिए सर्दी में गर्म कपड़े बने, परंतु टोपी को मुन्नी बाबू का उतरा कोट मिला। उसने इसे लेने से इनकार कर दिया। उसने वह कोट घर की नौकरानी केतकी को दे दिया। उसकी इस हरकत पर दादी क्रोधित हो गई। उन्होंने उसे बिना गर्म कपड़े के सर्दी बिताने का आदेश दे दिया।
टोपी नवीं कक्षा में दो बार फेल हो गया था, जिस कारण उसे घर में और अधिक डाँट पड़ने लगी थी। जिस समय वह पढ़ने बैठता था, उसी समय घर के सदस्यों को बाहर से कुछ-न-कुछ मँगवाना होता था। स्कूल में भी उसे अध्यापकों ने सहयोग नहीं दिया। अध्यापकों ने उसके नवीं में लगातार तीन साल फेल होने पर उसे नज़रअंदाज़ कर दिया था। पिछले दर्जे के छात्रों के साथ बैठना उसे अच्छा नहीं लगता था। कोई भी ऐसा नहीं था, जो उसके साथ सहानुभूति रखता; उसे परीक्षा में पास होने के लिए प्रेरित करता। घर और स्कूल में किसी ने भी उससे अपनापन नहीं दिखाया। उसने स्वयं ही मेहनत की और तीसरी श्रेणी में नवीं पास कर ली। उसके नवीं पास करने पर दादी ने कहा कि उसकी रफ्तार अच्छी है। तीसरे वर्ष में तीसरी श्रेणी में पास तो हो गए हो।
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